सोमवार, 31 दिसंबर 2007

नव वर्ष की मंगलकामनायें


स्मृति वर्ष-2007 में
तय किये आपने नई उपलब्धियों के नए मुकाम ,
देकर प्रगतिशीलता को नूतन आयाम ।
वर्ष -2008 के आगमन पर ,
मेरी शुभकामना है कि -
आप धैर्य रूपी पिता , क्षमा रूपी माता , शांति रूपी गृहिणी ,
सत्य रूपी पुत्र , दया रूपी बहन तथा सयंम रूपी भाई का
सान्निध्य प्राप्त करें ।
स्वावलंबन आपके घर को अपना निवास स्थान बनाए , और -
आपका जीवन शांति,सुख,संतुष्टि से भर जाये ।
नव वर्ष पर इन्हीं शुभकामनाओं के साथ -
आपका -
रवीन्द्र प्रभात

रविवार, 30 दिसंबर 2007

हिन्दी चिट्ठाकार विश्लेषण -2007 (भाग-3)



बडे ढोल म पोल बड़ी , यही मुकद्दस बात !

जिसका दिल जितना बड़ा , वही "चकल्लस " गात !!



नीरव की यह "वाटिका " देती है सन्देश !
अनवरत साहित्य बढे , प्रगति करे यह देश !!


"घुघूती बासूती" को, " कथाकार" की राय !
उत्तरोत्तर सोपान पे , नया साल ले जा य !!


" आलोक पुराणिक " बोले, " नीरज " जी को छोड़ !
चिट्ठा- चिट्ठा घूम के , लगा रहे हो होड़ !!



कुछ विनोद भी सुस्त है , निकल गया "अरमान"
"
मंगलम " कहते रहे, सबको दो सम्मान !!


" अनूप शुक्ल " श्रधेय हैं, करते नहीं" भदेस" !

सबको देते स्नेह से , शांति- सुख- सन्देश !!


अपना चिंतन बांचिये , देकर सबको प्यार !
सदीच्छा से भरा रहे, यह सुन्दर संसार !!


कुछ चिट्ठे नाराज हैं, अंकित नही है नाम !
खास-खास को छोड़ के , जोड़े हो क्यूं आम ? ?


भाई मेरे यह सोचो, कुछ तो हुआ कमाल !
पढा है जिसको मैंने , पूछा उसका हाल !!


बस इतनी सी बात है , ना समझे तो ठीक!
समझदार तो सबहीं हैं,समझ गए तो ठीक

() रवीन्द्र प्रभात
(इन्हीं काव्य टिप्पणियों के साथ शुभ विदा स्मृति वर्ष-2007 )

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007

हिन्दी चिट्ठाकार विश्लेषण -2007 ( भाग -2 )



गूँज रहा है "रेडियो" "ई-मिरची" के संग !
"बाल किशन" का ब्लोग भी , खूब दिखाया रंग !!


"शब्द लेख" यह सारथी, और "संजय" उवाच !
"अंकुर गुप्ता" ढूंढ रहे, "हिन्दी पन्ना" आज !!


"ठुमरी" गाकर मस्त है, खूब निपोरे खीश !
विमल बेचारे सोचे , कहाँ गए हैं "श्रीश" !!


लाये विनोद "हसगुल्ले" "संजय" देखें जोग !
" आशीष महर्षि" बोले, बनाबा दो अब योग !!


दूर खड़े ही सोचते, रह-रहकर "उन्मुक्त " !
"चक्रव्यूह " के व्यूह से, कब होंगे हम मुक्त !!





कोलकत्ते में "मीत" क्यों , खोज रहे हैं मीत !
गजल हुयी है बेवफा , खंडित हो गए गीत !!



"अन्तरध्वनि " में नीरज जी, " महक " बिखेरें आज !
छंद की गरिमा ढूंढें, " वाचस्पति अविनाश " !!


" अनुगुन्जन " और " इयता " सुन्दर सा है ब्लोग !

संकृत्यायन कह रहे , मेरा है यह शौक !!


" नोटपैड " पर लिखिये , जो जी में आ जाये !
या " कबाड़ " में फेंकिये , उल्टी- सीधी राय !!


" विनीत कुमार " की गाहे, और बगाहे बात !
" जोशिम " के संग गाईये , ग़ज़ल अगर हो याद !!


"पुनीत ओमर " " अर्बूदा " , "अनिल " कलम के साथ !
लिखें क्या अब ब्लोग में, पीट रहे हैं माथ !!


"नारद" घूमे ब्लोग पे, चाहे जागे सोय !
नर हो या नारायण हो, चर्चा सबकी होय!!


मतलब वाली बतकही, करती है दिन-रात !
अपनी भी "परिकल्पना" हो गयी है कुख्यात !!

बुधवार, 26 दिसंबर 2007

हिन्दी चिट्ठाकार विश्लेषण -2007


विश्लेषण-2007
कुछ खट्टा - कुछ मीठा है ,
ब्लॉगजगत का हाल !
आओ तुम्हें सुनाएँ ,
कैसे बीता साल !!
कहीं राड़- तकरार था , कहीं प्यार - इजहार ! तोल-मोल में व्यस्त थे , हिन्दी -चिट्ठाकार !!
खूब लुटाये "ज्ञान" ने , ज्ञान का अक्षय कोष !
और "सारथी" ने किये , हिन्दी का जयघोष !!
कहीं हास व व्यंग्य है , कहीं तकनिकी ज्ञान !
ब्लोगर के घर हो रहे , नित्य नया संधान !!
ब्लॉगजगत में "तश्तरी" , बनकर के अपबाद !
घूम रहे हैं आजकल , भारत में निर्बाध !!
" चिट्ठा " नए कलेवर में , यत्र-तत्र- सर्वत्र !
"अलोक" ढूँढते रह गए , हिन्दी मापक यंत्र !!
कांव- कांव "काकेश " के , कभी न माने हार !
नए शोध में व्यस्त हैं , अपने " अमर कुमार "!!
अजब यहाँ संयोग है , शब्द- शब्द में प्यार !
"महावीर " की साधना , "ममता" का शृंगार !!
कहीं "अनिता" दर्शन में , कहीं "साध्वी '' संग !
"मीनाक्षी" ने मिला दिए , चिंतन में हीं भंग !!
मोती को खंगाल के , फेंक रहे हैं सीप !
बाँट रहे हैं रोशनी , " दीपक भारतदीप " !!
"रवि रतलामी " ने मियाँ , खूब जमाये रंग !
शब्द-शब्द साहित्य में , सम्मानों के संग !!
"परमजीत" की जीत हुई , फिर से आये "राज"
फिल्म समीक्षा कर-करके , व्यस्त हुए "दिव्याभ"!!
संवेदन - संसार में , हास बना हथियार !
लगा रहा " ठहाका "है , मुम्बई वाला यार !!
वर्ष -२००७ में चिट्ठाजगत की गतिविधियों पर , हमारा यह काव्य विश्लेषण अगले पोस्ट में भी जारी रहेगा । इस विश्लेषण के पीछे किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह अथवा दुराग्रह नही है ,बल्कि केवल मनोरंजन के उद्देश्य से प्रकाशित किया जा रहा है , यहाँ मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि कोई भी ब्लोगर भाई इसे अन्यथा न लें !क्योंकि-
"लिए विशद बिषाद - हर्ष !
बीत गया स्मृतियों का वर्ष !! "
() रवीन्द्र प्रभात

रविवार, 23 दिसंबर 2007

सर्दी के बहाने कुछ मतलब की बातें ग़ज़ल के माध्यम से


ओस के कतरे बदन को धो गए आशा ,
आंच
दे कुछ सर्द मौसम हो गए आशा !


देखना धीरे से आना पास मेरे तुम ,
रेत
के थे फर्श फिशलन हो गए आशा !


हो गयी इतनी बड़ी बेटी मेरी फ़िर भी ,
आए ना वो क़र्ज़ लेकर जो गए आशा !


मिल गए थे लोग कुछ मेरे शहर के सब,
आँख के आंसू जिगर को धो गए आशा !


हुकूमत की बेचैनी थी उन्हें शायद "प्रभात"
जो शहर में नफ़रतों को बो गए आशा !

()रवीन्द्र प्रभात()

(कॉपी राइट सुरक्षित )


शनिवार, 15 दिसंबर 2007

जिसमें साहस विवेक और आत्मबल व्याप्त होता है , उसीको बेटिकट सफर का सौभाग्य प्राप्त होता है !





आज की युवा पीढी जिसे एम जनरेसन की संज्ञा दी जाती है ,जो नि:संदेह हमारे देश को प्रगति की राह पर ले जाने में पूरी तरह सक्षम है .मगर कुछ पुराने रूढीवादियों , खोखले आदर्शों में आबद्ध नेताओं एवं तथाकथित समाजवादिओं की कुत्सित प्रवृतियो का परिवेश उन्हें दिग्भ्रमित करता है और वातावरण प्रदूषित करने में कोई कोर कसर बाकी नही रखता . इसका ज्वलंत उदाहरण पिछले दिनों मैंने बिहार यात्रा के दौरान देखा .मैं रेलवे के जिस कम्पार्टमेंट में यात्रा कर रहा था उसी में कुछ मनचले भी बिना टिकट यात्रा कर रहे थे , जब टी. टी. इ. ने पूछा कि " बेटिकट क्यों चलते हो ?"
तो इसपर उन्होने मजे लेते हुए कहा कि - " भाई, अपने लालू जी की रेल है / बेटिकट यात्रियों की इतनी रेलम-पेल है , ऐसे में हमने टिकट नही ली तो कौन सा गुनाह कर दिया ?" उसके साथ बैठे एक और नव जवान ने अपनी बात कुछ इसप्रकार रखी कि - " भाई साहब , जब खुदा ने बख्शी है यह उमर बेटिकट / तब क्यों न करें हम रेल में सफर बेटिकट ?" बेचारा टी. टी. ई. उस नवजवान की बातों के आगे किं कर्तव्य विमूढ़ हो गया . उसदिन यात्रा के क्रम में उस नवजवान औरटी. टी. ई. के बीच जो विचारों का आदान-प्रदान हुआ उसे मेरा कवि मन लगातार अध्ययन करता रहा ,जिसे बाद में मैंने एक व्यंग्य कविता का रुप दे दिया , जो इसप्रकार है-
!! बेटिकट सफर !!
एक वार एक नवजवान बेटिकट सफर करता हुआ पकडा गया
टी टी ई के गिरफ्त में बाबजह जकडा गया
टी. टी. ई.ने पूछा-
क्यों बेटिकट चलते हो ?
इतना बड़ा संगीन अपराध क्यों करते हो?

नवजवान बोला /अपने लवों को खोला-
" मेरे लिए यह एक सिद्धांत, एक दर्शन है
जीवन सफल बनाने का प्रशिक्षण है
जब खुदा ने बख्शी है यह उमर बेटिकट
तो क्यों न करें हम रेल में सफर बेटिकट ?"

सुनकर वक्तव्य उसका टी. टी. ई. झल्लाया
सिद्धांत-दर्शन की बातें सुन भावावेश में आया
चिल्लाते हुए फरमाया-
" रे मूर्ख ! कैसी बहकी-बहकी बातें करता है
बे-टिकट सफर को सिद्धांत-दर्शन कहता है?
सरकार की संपत्ति को अपनी संपत्ति समझ कर
चल दिए हो बेटिकट पूरी तरह अकड़कर
जब जेल जाओगे/ जेल की मोटी रोटी खाओगे
पछताओगे ,सिद्धांत-दर्शन सब स्वयं भूल जाओगे ....!"

" नहीं महाशय !
अक्सर डरते हैं वही व्यक्ति जेल जाने से
जो डरते हैं कटु सत्य से आंख मिलाने से
क्योंकि जिसमें साहस विवेक और आत्मबल व्याप्त होता है,
उसीको बे-टिकट सफर का सौभाग्य प्राप्त होता है .....!"

इतना कहकर वह नवजवान मुस्कुराया / जेल की अह्मिअत से
उन्हें अवगत कराया और फरमाया-
" महाशय!
जेल जाना तो तीर्थाटन करने के समान है / जेल जाने वाला प्रत्येक व्यक्ति महान है
परम सौभाग्यवान है ....!
क्योंकि जेल ने हीं राष्ट्रपिता गांधी को महात्मा बनाया ,
कृष्ण को पैदा करके परमात्मा बनाया .
चिन्तक हुए जवाहर लाल जेल जाने के पश्चात / नहीं थे वे राजनेता अथवा -
चिन्तक जन्मजात ....!

जेल जाने बाद हीं सबने सुभाष-भगत को जाना
विश्मिल- वीर सावरकर का दुनिया ने लोहा माना ....!
एक और उदाहरण देखें / मस्तिस्क पर जोर डालें और सोचें-
एक वार जब सत्ता में थी कॉंग्रेस आई.
विक्षुब्ध विपक्षी नेताओं ने अपनी ताकत दिखलाई
और खुलकर विरोध जताया ....!
बात बिगराते देख इंदिरा ने-
देश में इमरजेंसी लगाई/ और अगले ही क्षण -
सारे विरोधियों को हवालात की सैर कराई...!
फिर तो लोकनायक बनाकर उभरे जय प्रकाश/ राम मनोहर लोहिया,
चन्द्रशेखर और अटल बिहारी बाजपेयी की लौटरी खुल गयी अनायाश.
इसप्रकार-
अनेक नेता जेल जाने के बाद महान हुए/ जनता की नजरों में-
परम सौभाग्यबान हुए !
देश महान हुआ या ना हुआ यह सोचना निरर्थक है ,
अपना भला हो गया तो जीवन अपना सार्थक है !

नवजवान की बातें सुन , टी. टी. ई. ने अपनी अक्ल दौडाई
तब जाकर उसके भेजे में यह बात आयी
कि, नवजवान की बातों में यकीनन है दम
अब तो न भय रही, न भ्रांति और न भ्रम
क्योंकि जब चलते हैं खुलेआम बेटिकट महात्मा, सिपाही और नेता
तब क्यों न चले हमारा यह बेरोजगार बेटा !

भाई, महात्मा को खौफ इसलिए नही होता
कि चल जाता है धर्म के नाम पर उनका सिक्का खोटा
अब अयोध्या में यानी राम के शरण में जाएँ या-
कृष्ण की जन्मस्थली जेल में धूनी रमायें
क्या फर्क पङता है.
इसीलिए वह नि:संकोच बेटिकट सफर करता है ...!
पुलिस या प्रशासन से कभी नहीं डरता है ... ।

भाई, सिपाहियों की बात अलग है, वे कानून के संरक्षक हैं,
उन्हें कौन पकडेगा वे तो देश के भाग्य विधाताओं के रक्षक हैं .
आप कहीं भी किसी भी क्षेत्र की रेल में जायेंगे
सिपाहियों को बेटिकट हीं पायेंगे !
क्योंकि, वे देश और कानून दोनों के रक्षक हैं
इसीलिए उन्हें बेटिकट सफर का मौरूसी हक है...!

नेताओं की बात मत पूछिए , बहुत बबाल है
क्योंकि हमारे देश के नेता खुद में हीं एक उलझे हुए सवाल हैं
एकबार एक नेता ने कहा- कि सफेदी का मतलब सच्चाई,
बरखुरदार ! कुछ बात समझ में आयी ?
मैंने कहा - कि भेजे में कुछ भी नही आया
तो उसने कहा - यही तो हमारे और तुम्हारे में फर्क है भाया !
मने कहा क्या मतलब?
उन्होने कहा- चलो समझा हीं देता हूँ अब....
कि अपना काम बनता , भाड़ में जाये जनता !
यह बात अपने हीं तक रखना किसी से कहना मत , नही तो -
बेटिकट पछतायेगा / औरों की तरह तू भी जान से जाएगा !
इसलिए देश में जो हो रहा है होने दे ,
किसी को पाने दे, किसी को खोने दे !


देश में पार्टी का आम प्रदर्शन हो अगर
बरबस खींच लेते हैं ये सबकी नज़र
फिर, दिल्ली चलो का नारा बुलंद हो जाता है
यही नेता जनता को बेटिकट सफर करने का बेटिकट सबक सिखाता है


भाई, यहाँ प्रजातंत्र है , कुछ भी असंभव नही है
करिये , करते रहिये जैसी परीपाटी रही है।

जब बेटिकट नेता जी जनता से बेटिकट सफर करवाए तो फ़िर -
बेरोजगारों के साथ सख्ती क्यों की जाये ?
इनका भी होगा कल, इन्हें क्यों सताया जाए ?
जब सरकार की संपत्ति अपनी संपत्ति होती है
तब क्योकर बेटिकट सफर की अशुभ परिणति होती है?
इतना सोचने के बाद जब टी.टी.इ. को अपनी नौकरी का ख़याल आया
तो सिद्धांत-दर्शन का भूत अचानक उतर आया
और उसने फरमाया -
बेटा ! चलना है तो चले बेटिकट महात्मा, सिपाही , नेता
उन लोगों का रे मूर्ख, तू क्यों आश्रय लेता?
बेटिकट सफर का होता परिणाम न अच्छा / कब समझेगा मेरा बच्चा ?
माना कि तेरा कथ्य कटु सत्य है
पर मेरे बालक ,बेटिकट सफर पथ्य नही कुपथ्य है .....!

सुनकर नवजवान मुस्कुराया ,
और बिना किसी उत्तर के कंपार्टमेंट से बाहर आया .
मगर मित्रों वह नवजवान छोड़ गया कई अनुत्तरित प्रश्न -अपने जाने के साथ
.......क्योंकि वह मनुष्य नही था , मनुष्य के रुप में था अपबाद ....मनुष्य के रुप में था अपबाद....!
() रवीन्द्र प्रभात
(कॉपीराईट सुरक्षित ) .

बुधवार, 12 दिसंबर 2007

!! मोगैम्बो खुश हुआ !!


बिक गया स्वाभिमान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !
देश और सम्मान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !!


ऐसी लड़ी है आंख पश्चिम से कि देखो खो गयी-
मनमोहनी मुस्कान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !!


एक-दूजे पे उछाले खूब कीचड, बेच दी नेताओं ने -
गुजरात का अभियान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !!


मिलाई लीद घोडें की धनिया में वो चर्बी तेल में -
बिक गया इंसान सस्ते में , मोगैम्बो खुश हुआ !!


भरोसे राम के ही चल रही संसद हमारे देश की -
नेता बना भगवान सस्ते में , मोगैम्बो खुश हुआ !!


बेचकर सरे-आम अबला की यहाँ अस्मत कोई -
कर
रहा उत्थान सस्ते में , मोगैम्बो खुश हुआ !!


मिल गए "करूणा" से "बुद्ध" रामसेतु के बहाने -
कर गए अपमान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !!


कर दिए खारीज़ हमारे राम के अस्तित्व को ही-
खो गयी पहचान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !!


अब बचा क्या बिल्लोरानी जान हीं तो शेष है -
कहो तो दे दूं जान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ!!

() रवीन्द्र प्रभात
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सोमवार, 10 दिसंबर 2007

मज़हवी उन्माद और हम ......!



आये दिन कहीं -न - कहीं ऐसा सुनने को मिल ही जाता है , कि फलां जगह आतंकवादियों ने ब्लास्ट करके जान माल की हानि करदी । भाई मेरे , यदि मज़हब को ढाल बनाकर ये कुकृत्य किये जा रहे हैं तो गलत है , क्योंकि आतंकवाद का कोई मज़हब नही होता । पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में एक साथ तीन ब्लास्ट किये गए थे , उस समय मैं वाराणसी में ही था . वाराणसी की जानकारी तो तत्क्षण हो गयी , बाद में फैजाबाद और लखनऊ के बारे में ज्ञात हुआ तो रौंगटे खडे हो गए । उन घटनाओं को बाद में मैंने दृश्य मीडिया में भी बार -बार देखा , फलत: मेरा कवि मन चित्कार कर उठा , उस घटना को शब्दों में बांधने की पूरी कोशिश की जिसका परिणाम है यह पोस्ट-. . .

।। मज़हवी उन्माद और हम ।।

अकस्मात नि:स्तब्धता को चीरती हुई
मानव अस्तित्व को धूमिल करती हुई
एक आबाज़ गूंजी / एक ठहाका हुआ
दूर कहीं दूर ..../फिर आसपास के वातावरण में धुआं ही धुआं
पुन: एक धमाका हुआ और डूब गया सारा शहर दहशत में
धुन्धुआती एक अस्पष्ट चेतना में
सबकी निगाहें हुई बरबस खामोश।

लहू से लथपथ शरीर को मैंने अपनी आगोश में लेकर
बीभत्स दृश्यों को देख हुआ बेहोश
पुन: जब होश में आया तो मैं अपने आपको पाया
जलते हुए वाराणसी की सडकों पर / लाशों के ढेर के ऊपर - असहाय ...अधनंगा
जैसे हिमालय के ऊपर अवस्थित हो हिमनद / फिर शरीर की गंगोत्री से -

फूटकर
बहने लगी एक गंगा /जी हाँ खून की गंगा , जिसमें नहा रहे थे /
परस्पर दूबकियां लगा रहे थे सभी जाति-धर्म-मज़हब के लोग,
क्या वह था महज एक संयोग?

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आज भूल गए हैं हम / गुरुनानक के अमर उपदेश को -" अब्बल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बन्दे ,एक नूर तो सब जग उपज्या कौन भले कौन भंदे!"

भूल गए हैं हम अलामा इकबाल के उस संदेश को -" मज़हब नही सिखाता आपस में बैर रखना , हिन्दी हैं हम वतन हैं हिन्दुस्तान हमारा !"

भूल गए हैं हम गांधी की अमर वाणी को -" प्रभु भक्त कहलाने का अधिकारी वही है , जो दूसरों के कष्ट को समझे !"

भूल गए हैं हम योगीराज कृष्ण के उपदेश को -" कर्मनये वाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन "

भूल गए हैं हम तुलसीदास के धर्म की परिभाषा को -" परहित सरिस धर्म नही भाई !"

इसप्रकार-मन्दिर,मस्जिद,गिरजा,गुरुद्वारा तो शक्ति का साधन स्थल है / परस्पर प्रेम, सौहार्य,एकता और धार्मिक-सांस्कृतिक सहिष्णुता का पूज्य स्थल है / सर्व-धर्म-समभाव ही हमारी सभ्यता और संस्कृति का मूल प्राण है ...!

अनेकता में एकता ही हमारी आन-बान-शान है!निष्काम कर्म ही मनुष्य का धर्म है / मानवता का मूल मन्त्र है ....!

याद करो राष्ट्रीय कवि मैथिली शरण गुप्त की वह कविता -"यह पशु-प्रवृति है कि आप ही आप चरे, मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिए मरे !"

याद करो रहीम के सत्य के प्रतिपादन को / सच्ची मानवता के दर्शन को -" यो रहीम सुख होत है उपकारी के संग, बाटन वारे के लगे ज्यों मेहदी के रंग "

सलीब पर चढ़ते हुए / अपने हत्यारों के लिए दुआ माँगते हुए ईसाईयों के प्रबर्तक /धर्म के पथ-प्रदर्शक ईसा ने क्या कहा था-" प्रभु इन्हें सुबुद्धि दे , सुख-शांति दे / ये नहीं जानते कि क्या कराने जारहे हैं !"

याद करो - कर्बला के मैदान में / प्राणों की बलि देने वाले / अन्तिम साँस तक मानव कल्याण हेतु दुआ मांगने वाले/ धर्म का मर्म बताने वाले मोहम्मद साहब ने क्या कहा था?

ज़रा सोंचिये - आर्य समाज के प्रबर्तक महर्षि दयानंद ने / अभय दान क्यों दे दिया अपने हत्यारों को / महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म के प्रचार में / अन्य धर्मों के विरूद्ध द्वेष का प्रदर्शन क्यों नही किया ? स्वामी विवेकानंद, रामतीर्थ ,रामकृष्ण परमहंश ने किसी धर्म के लिए अपशब्द क्यों नही कहे ? सूफी संत अमीर खुसरो, हज़रत निजामुद्दीन , संत कवीर और नामदेव ने क्यों सर्वस्व नेओछावर कर दिया मज़हवी एकता के लिए अर्थात " सर्व धर्म समन्वय " के लिए !

फ़िर धर्म के नाम पर हिंसा का तांडव क्यों ? भाई-भाई के बीच मज़हवी दीवार क्यों? आज विलुप्त हो रहे हमारे मानवीय आचार-व्यवहार क्यों?

आपने कभी सोचा है - इस आतंक के पीछे कौन होता है ?

जब वोट की चोट से राजनीतिक महकमे में हमे बांटने की तैयारी की जाती है , तब फिरकापरस्ती के तबे पर रोटी सेंकने का सिलसिला शुरू हो जाता है और किसी न किसी रूप में बलि का बकरा बनते हैं हम और आखिरकार उन्मादों को हवा देकर हमारा ही घोंट दिया जाता है गला , क्योंकि धर्म जब राजनीति को बिस्तर पर लेटाकर रात को रंगीन बनाने की कोशिश करेगा तो आखिरकार वही होगा जो आज़कल देखने को कहीं न कहीं , किसी न किसी शहर में मिल ही जाता है....!

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2007

करे जारी सभी फतबा उसी पर क्यों , कि जिसके हाँथ में खंज़र नहीं दिखता ?






एक
गजल
तसलीमा
के
बहाने
प्रसंगवश -



कहीं
आँगन , कहीं छप्पर नहीं दिखता ।
कोई सदभाव सा मंज़र नहीं दिखता ।।
यहाँ हैवानियत का है घना कोहरा -
कि जिसमें आदमी अक्सर नहीं दिखता ।।
करें किससे सनद हम बेगुनाही की -
सभी शैतान हैं , परवर नहीं दिखता ।।
बड़ी मुश्किल यहाँ घर ढूँढना महबूब का -
कि मुझको भीड़ में रहबर नहीं दिखता ।।
करे जारी सभी फतबा उसी पर क्यों -
कि जिसके हाँथ में खंज़र नहीं दिखता ?
हमारी बात सुन न हंस सके न रो सके -
वही नेता बना , अजगर नहीं दिखता ?
आंधियां आती सहम करके " प्रभात "
कि हर सूं रेत का अब घर नहीं दिखता ।।
() रवीन्द्र प्रभात
 
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