शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-6)

वर्ष -२००८ में २६/११ की घटना को लेकर हिन्दी ब्लॉग जगत काफ़ी गंभीर रहा । आतंकवादी घटना की घोर भर्त्सना हुयी और यह उस वर्ष का सबसे बड़ा मुद्दा बना , मगर इस वर्ष यानि २००९ में जिस घटना को लेकर सबसे ज्यादा बबाल हुआ वह है समलैंगिकता के पक्ष में दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला ।पहली बार हिन्दुस्तान ने समलैंगिकता के मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से बहस किया है। हिन्दी ब्लॉग जगत ने भी इसके पक्ष विपक्ष में बयान दिए और देश में समलैंगिकता पर बहस एकबारगी सतह पर आ गई ।

किसी ने कहा कि लैंगिक आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव का स्थान आधुनिक नागरिक समाज में नही है , पर लैंगिक मर्यादाओं के भी अपने तकाजे रहे हैं और इसका निर्वाह भी हर देश कल में होता रहा है तो किसी ने कहा कि भारतीय दंड विधान की धारा -३७७ जैसे दकियानूसी कानून की आड़ में भारत के सम लैंगिक और ट्रांसजेंदर लोगों को अकारण अपराधी माना जाता रहा है, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने किसी भी प्रकार के यौन और जेंडर रुझानों से ऊपर उठकर सभी नागरिकों के अधिकार को मान्यता देने का ऐतिहासिक कार्य किया है तो किसी ने कहा की यह विड्न्बना ही कहा जायेगा की अंग्रेजों द्वारा १८६० में बनाया गया यह कानून ख़ुद इंगलैंड के कानूनी किताबों में से सालो पहले मिट चुका ,लेकिन भारत में यह उनके जाने के बाद भी दसकों तक कायम है....आदि ।


रेखा की दुनिया ने अपने ०९ जुलाई २००९ के अंक में समलैगिकता की जोरदार वकालत करते हुए लिखा है जिस देश में कामसूत्र की रचना हुयी आज उसी धरती पर वात्स्यायन के बन्शज काम संवंधी अभिरुचि को बेकाम ठहराने पर लगे हैं ......!" घ्रृणा के इस दोहरे मापदंड पर उनका गुस्सा देखने लायक है इस आलेख में ।


महाशक्ति के दिनांक २९.०७.२००९ के आलेखका शीर्षक है समलैंगिंक बनो पर अजीब रिश्‍ते को विवाह का नाम न दो, विवाह को गाली मत दो । परमेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं की वह दृश्‍य बड़ा भयावह होगा जब लोग केवल आप्रकृतिक सेक्स के लिये समलैगिंक विवाह करेगे, अर्थात संतान की इच्‍छा विवाह का आधार नही होगा। अपने ब्लॉग पर अंशुमाल रस्तोगी कहते हैं कि अब धर्मगुरु तय करेंगे कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।


नया जमाना के १६ अगस्त २००९ के पोस्ट वात्‍स्‍यायन,मि‍शेल फूको और कामुकता (2) के अनुसार समलैंगिकों की एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में फूको ने कहा 'कामुकता' को 'दो पुरूषों के प्रेम' के साथ जोड़ना समस्यामूलक और आपत्तिजनक है। ''अन्य को जब हम यह एक छूट देते हैं कि समलैंगिता को शुध्दत: तात्कालिक आनंद के रूप में पेश किया जाए, दो युवक गली में मिलते हैं, एक- दूसरे को आंखों से रिझाते हैं, एक-दूसरे के हाथ एक-दूसरे के गुप्तांग में कुछ मिनट के लिए दिए रहते हैं। इससे समलैंगिकता की साफ सुथरी छवि नष्ट हो जाती है।


दस्तक ने अपने ११ July २००९ के पोस्ट में टी.वी चैनलों का उमडता गे प्रेम... पर चिंता व्यक्त की है । कहा है कि २ जुलाई का दिन दिल्ली हाई कोर्ट का वह आदेश पूरा मीडिया जगत के शब्दों में कहें तो खेलनें वाला मु्द्दा दे गया । जी हॉ हम बात कर रहें हैं हाई कोर्ट के उस आदेश का जिसमें देश में अपनें मर्जी से समलैगिंक संबंध को मंजूरी दे दी गयी थी । ठीक हॉ भाई समलैंगिको मंजूरी मिली। उनको राहत मिला । पर उनका क्या जिनका चैन हराम हो गया । आखिर जो गे नहीं उनकी तो शामत आ गई । इधर चैनल वालों को ऐसा मसाला मिल गया जिसकों कोई भी चैनल नें छोड़ना उमदा नहीं समझा । उधर इस चक्कर और दूसरें मुद्दे जरूर छूट गए ।


दिलीप के दलान से July १० , २००९ को एक घटना का जिक्र आया की घर की घंटी बजी साथ साथ बहुत लोगों की । अंदर से गुड्डी दौड़ती हुई झट से दरवाजा खोली । बाहर खड़े भैया ने गुड्डी से कहा गुड्डी ये तुम्हारी भाभी हैं । गुड्डी के चेहरें पर खुशी के जगह बारह बज गए और वह फिर दोबारा जितनी तेजी से दौड़ती हुई आयी थी उतनी तेजी से वापस दौड़ती हुई मॉ के पास गयी । और मॉ से बोली मॉ भैया ... आपके लिए भैया लेके आए हैं । परिकल्पना पर भी मंगलवार, २८ जुलाई २००९ को ऐसी ही एक घटना का जिक्र था जिसका शीर्षक था -शर्मा जी के घर आने वाली है मूंछों वाली वहू ...बहूभोज में आप भी आमंत्रित हैं .


बात कुछ ऐसी है के ७ जुलाई २००९ के एक पोस्ट यहां आसानी से पूरी होती है समलैगिक साथी की तलाश में यह रहस्योद्घाटन किया गया है की क्लबों, बार, रेस्टोरेंट व डिस्कोथेक में होती है साप्ताहिक पार्टियां।पिछले 10 वर्ष से लगातार बढ़ रही है समलैंगिक प्रवृति । पिछले छह वर्ष में बढ़ा है समलैंगिकता का चलन । समलैगिकों में 16 से 30 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की संख्या अधिकदक्षिणी दिल्ली व पश्चिमी दिल्ली में होती हैं । यह प्रवृतिअप्राकृतिक संबधों को गलत नहीं मानते समलैंगिक
।उनके लिए प्यार का अहसास भी अलग है और यौन संतुष्टि की परिभाषा भी अलग है। समलिंगी साथी के आकर्षण का सामीप्य ही उन्हें चरम सुख प्रदान करता है तभी तो चढ़ती उम्र में वह एक ऐसी हमराही की तलाश करते हैं जो तलाश उन्हें आम आदमी से कुछ अलग करती है।



इस सन्दर्भ में भड़ास के तेवर कुछ ज्यादा तीखे दिखे जिसमें उसने स्पष्ट कहा की समलैंगिकता स्वीकार्य नही बल्कि उपचार्य हैमोहल्‍ला का समलेंगिकता पर क़ानून की मोहर से प्रकाशित शीर्षक में कहा गया है की नैतिकता ये कहती है कि यौन संबंधों का उद्देश्य संतानोत्पत्ति है, लेकिन समलेंगिक या ओरल इंटरकोर्स में यह असंभव है। वहीं ब्लॉग खेती-बाड़ी के दिनांक ०५ जुलाई २००९ के एक पोस्ट में समलैंगिकता के सवाल पर बीबीसी हिन्‍दी ब्‍लॉग पर राजेश प्रियदर्शी की एक बहुत ही यथार्थ टिप्‍पणी आयी है, जो थोड़ा असहज करनेवाला है....लेकिन समलैंगिक मान्‍यताओं वाले समाज में इन दृश्‍यों से आप बच कैसे सकते हैं?

बहरहाल आप पढ़ें राजेश प्रियदर्शी के विचारों को तबतक हम लेते हैं एक छोटा सा विराम .....!

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-5)

...............वर्ष-२००९ में जो कुछ भी हुआ उसे चिट्ठाजगत ने किसी भी माध्यम की तुलना में बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की पूरी कोशिश की है। चाहे बाढ़ हो या सुखा या फ़िर मुम्बई के आतंकवादी हमलों के बाद की परिस्थितियाँ, चाहे नक्श्ल्वाद हो या अन्य आपराधिक घटनाएँ , चाहे पिछला लोकसभा चुनाव हो अथवा हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनाव या साम्प्रदायिकता, चाहे फिल्में हों या संगीत, चाहे साहित्य हो या कोई अन्य मुद्दा, तमाम ब्लॉग्स पर इनकी बेहतर प्रस्तुति हुयी है।

कुछ ब्लॉग ऐसे है जिनकी चर्चा कई ब्लॉग विश्लेषकों के माध्यम से विगत वर्ष २००८ में भी हुयी थी और आशा की गई थी की वर्ष २००९ में इनकी चमक बरक़रार रहेगी । ब्लॉग चर्चा के अनुसार सिनेमा पर आधारित तीन ब्लॉग वर्ष २००८ में शीर्ष पर थे । एक तरफ़ तो प्रमोद सिंह के ब्लॉग सिलेमा सिलेमा पर सारगर्भित टिप्पणियाँ पढ़ने को मिलीं थी वहीं दिनेश श्रीनेत ने इंडियन बाइस्कोप के जरिये निहायत ही निजी कोनों से और भावपूर्ण अंदाज से सिनेमा को देखने की एक बेहतर कोशिश की थी । तीसरे ब्लॉग के रूप में महेन के चित्रपट ब्लॉग पर सिनेमा को लेकर अच्छी सामग्री पढ़ने को मिली थी । हालाँकि समयाभाव के कारण परिकल्पना पर केवल एक ब्लॉग इंडियन बाईस्कोप की ही चर्चा हो पाई थी । यह अत्यन्त सुखद है की उपरोक्त तीनों ब्लोग्स वर्ष २००९ में भी अपनी चमक और अपना प्रभाव बनाये रखने में सफल रहे हैं ।


इसीप्रकार जहाँ तक राजनीति को लेकर ब्लॉग का सवाल है तो अफलातून के ब्लॉग समाजवादी जनपरिषद, नसीरुद्दीन के ढाई आखर, अनिल रघुराज के एक हिन्दुस्तानी की डायरी, अनिल यादव के हारमोनियम, प्रमोदसिंह के अजदक और हाशिया का जिक्र किया जाना चाहिए। ये सारे ब्लोग्स वर्ष २००८ में भी शीर्ष पर थे और वर्ष २००९ में भी शीर्ष पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हुए हैं ।

वर्ष २००८ में संगीत को लेकर टूटी हुई, बिखरी हुई आवाज, सुरपेटी, श्रोता बिरादरी, कबाड़खाना, ठुमरी, पारूल चाँद पुखराज का चर्चित हुए थे , जिनपर सुगम संगीत से लेकर क्लासिकल संगीत को सुना जा सकता था , पिछले वर्ष रंजना भाटिया का अमृता प्रीतम को समर्पित ब्लॉग ने भी ध्यान खींचा था और जहाँ तक खेल का सवाल है, एनपी सिंह का ब्लॉग खेल जिंदगी है पिछले वर्ष शीर्ष पर था। पिछले वर्ष वास्तु, ज्योतिष, फोटोग्राफी जैसे विषयों पर भी कई ब्लॉग शुरू हुए थे और आशा की गई थी कि ब्लॉग की दुनिया में २००९ ज्यादा तेवर और तैयारी के साथ सामने आएगा। यह कम संतोष की बात नही कि इस वर्ष भी उपरोक्त सभी ब्लोग्स सक्रीय ही नही रहे अपितु ब्लॉग जगत में एक प्रखर स्तंभ की मानिंद दृढ़ दिखे । निश्चित रुप से आनेवाले समय में भी इनके दृढ़ता और चमक बरकरार रहेगी यह मेरा विश्वास है ।


यदि साहित्यिक लघु पत्रिका की चर्चा की जाए तो पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष ज्यादा धारदार दिखी मोहल्ला । अविनाश का मोहल्ला कॉलम में चुने ब्लॉगों पर मासिक टिप्पणी करते हैं और उनकी संतुलित समीक्षा भी करते हैं। इसीप्रकार वर्ष २००८ की तरह वर्ष २००९ भी अनुराग वत्स के ब्लॉग ने एक सुविचारित पत्रिका के रूप में अपने ब्लॉग को आगे बढ़ाया हैं।

आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा की भारतीय सिनेमा में जीवित किवदंती बन चुके बिग बी श्री अमिताभ बच्चन जल्द ही अपना हिंदी में ब्लॉग शुरू करेंगे। यह घोषणा उन्होंने १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस के अवसर पर की है । उन्होंने कहा है कि-" यह बात सही नहीं है कि मैं सिर्फ अंग्रेजी भाषा के प्रशंसकों के लिए लिखता हूं।"अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर खुलासा किया है कि "वह जल्दी ही हिंदी और अन्य भाषाओं में ब्लॉग लिखने की चेष्टा करेंगे, ताकि हिंदी भाषी प्रशंसकों को सुविधा हो।" जबकि मनोज बाजपेयी पहले से ही हिन्दी में ब्लॉग लेखन से जुड़े हैं ।

पिछले वर्ष ग्रामीण संस्कृति को आयामित कराने का महत्वपूर्ण कार्य किया था खेत खलियान ने , वहीं विज्ञान की बातों को बहस का मुद्दा बनाने सफल हुए थे पंकज अवधिया अपने ब्लॉग मेरी प्रतिक्रया में । हिन्दी में विज्ञान पर लोकप्रिय और अरविन्द मिश्रा के निजी लेखों के संग्राहालय के रूप में पिछले वर्ष चर्चा हुयी थी सांई ब्लॉग की ,गजलों मुक्तकों और कविताओं का नायाब गुलदश्ता महक की ,ग़ज़लों एक और गुलदश्ता है अर्श की, युगविमर्श की , महाकाव्य की, कोलकाता के मीत की , "डॉ. चन्द्रकुमार जैन " की, दिल्ली के मीत की, "दिशाएँ "की, श्री पंकज सुबीर जी के सुबीर संवाद सेवा की, वरिष्ठ चिट्ठाकार और सृजन शिल्पी श्री रवि रतलामी जी का ब्लॉग “ रचनाकार “ की, वृहद् व्यक्तित्व के मालिक और सुप्रसिद्ध चिट्ठाकार श्री समीर भाई के ब्लॉग “ उड़न तश्तरी “ की, " महावीर" " नीरज " "विचारों की जमीं" "सफर " " इक शायर अंजाना सा…" "भावनायें... " आदि की।


इसी क्रम में हास्य के एक अति महत्वपूर्ण ब्लॉग "ठहाका " हिंदी जोक्स तीखी नज़र current CARTOONS बामुलाहिजा चिट्ठे सम्बंधित चक्रधर का चकल्लस और बोर्ड के खटरागी यानी अविनाश वाचस्पति तथा दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका आदि की । वर्ष २००८ के चर्चित ब्लॉग की सूची में और भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग जैसे जबलपुर के महेंद्र मिश्रा के निरंतर अशोक पांडे का - कबाड़खाना “ , डा राम द्विवेदी की अनुभूति कलश , योगेन्द्र मौदगिल और अविनाश वाचस्पति के सयुक्त संयोजन में प्रकाशित चिट्ठा हास्य कवि दरबार , उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के प्रवीण त्रिवेदी का “ प्राइमरी का मास्टर “ , लोकेश जी का “अदालत “ , बोकारो झारखंड की संगीता पुरी का गत्यात्मक ज्योतिष , उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर सकल डीहा के हिमांशु का सच्चा शरणम , विवेक सिंह का स्वप्न लोक , शास्त्री जे सी फ़िलिप का हिन्दी भाषा का सङ्गणकों पर उचित व सुगम प्रयोग से सम्बन्धित सारथी , ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल और दिनेशराय द्विवेदी का तीसरा खंबा आदि की चर्चा वर्ष -२००८ में परिकल्पना पर प्रमुखता के साथ हुयी थी और हिंदी ब्लॉगजगत के लिए यह अत्यंत ही सुखद पहलू है , की ये सारे ब्लॉग वर्ष-२००९ में भी अपनी चमक बनाये रखने में सफल रहे हैं . ...!
इन में से कुछ ब्लॉग की चर्चा हम इसबार के ब्लॉग विश्लेषण में भी करेंगे और आपको बताएँगे की ये ब्लॉग कैसे आनेवाले समय में हिंदी ब्लॉग के लिए मील का पत्थर साबित होगा ?

आज बस इतना ही मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ....

सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-4)

..... पिछले क्रम में मुद्दों पर आधारित श्री सत्येन्द्र प्रताप के ब्लॉग की चर्चा हुयी थी ।आज हम एक और मुद्दे पर आधारित ब्लॉग को लेकर आपके सामने आए हैं, जो आदिवासीजन से जुडे मुद्दों को प्राथमिकता देता है , जिन्हें समाज के हाशिये से भी नीचे धकेलते रहने के जान-अनजाने प्रयास किये जाते रहे हैं। ब्लॉग का नाम है " आदिवासी जगत " और ब्लॉगर हैं -श्री हरि राम मीणा ।

यह ब्लॉग आदिवासी समाज को लेकर फ़ैली भ्रांतियों के निराकरण और उनके कठोर यथार्थ को तलाशने का विनम्र प्रयास है । दिनांक २२.०५.२००९ को प्रकाशित अपने आलेख आदिवासी संस्कृति-वर्तमान चुनौतियों का उपलब्ध मोर्चा में श्री मीणा कहते हैं, की -"आदिवासी संस्कृति को समझने के लिए ‘प्रकृति’ व ‘संस्कृति’ के अन्तर व सम्बन्धों पर विचार करते हुए बात की शुरुआत की जा सकती है। प्रकृति दृश्यमान खगोलीय व भौगोलिक तत्त्वों की सृष्टि है जो नैसर्गिक है। इसका स्वरूप मौलिक भी है और परिवर्तनशील भी। सुविधा के लिए कहा जा सकता है कि यह प्राणी जगत से पृथक परिवेश है जिसमें प्रकृति के जड़ व चेतन दोनों तत्त्वों का अस्तित्त्व होता है।"

श्री मीणा आदिवासी समाज के ज्ञान भंडार को डिजिटल शब्दों के साथ साईबर संसार में फैलाना चाहते हैं । कहते हैं की आदिवासी गल्प, स्वप्न, मुहावरे अदि की जानकारियाँ आदिवासियों की नई पीढी और गैर आदिवासियों को भी मिलनी चाहिए । पेशे से सीनियर पुलिस ऑफिसर श्री मीना ग्लोब्लायिजेसन को लेकर सवाल करते हैं । पूछते हैं की ग्लोबलायिजेसन के लाभ यदि आम जन के लिए है तो उनके जीवन का हिस्सा कब बनेंगे ?यह प्रश्न अपने आप में एक वेहद गंभीर बहस को जन्म देता है । यदि आप बाद-विवाद-संवाद में अभिरुचि रखते हैं तो इस ब्लॉग पर विचरण कर सकते हैं , क्योंकि यह ब्लॉग आदिवासी- विमर्श के बहाने गंभीर वहस को जन्म देता है ।


......अब आईये उस ब्लॉग की ओर रुख करते हैं जो एक ऐसे ब्लोगर की यादों को अपने आगोश में समेटे हुए है जिसकी कानपुर से कुबैत तक की यात्रा में कहीं भी माटी की गंध महसूस की जा सकती है । अपने ब्लॉग मेरा पन्ना में कानपुर के जीतू भाई कुवैत जाकर भी कानपुर को ही जीते हैं।वतन से दूर, वतन की बातें, एक हिन्दुस्तानी की जुबां से…अपनी बोली में.... !

दिनांक ०९.०९.२००९ को इस ब्लॉग के पाँच साल पूरे हो गए। इंटरनेट के चालीस साल होने के इस महीने में हिंदी के एक ब्लॉग का पांच साल हो जाना कम बड़ी बात नहीं है।

मेरा पन्ना के मोहल्ला पुराण में छपे लेखों के जरिये कानपुर की एक दिलचस्प तस्वीर बनती रहती है। जीतू बताते हैं कि कैसे कॉमिक्स पढ़ने के लिए पी रोड पर राजाराम बुकस्टॉल और राधा मोहन मार्केट में मनोरंजन संग्रहालय के ग्राहक बने। फिर कहानी आगे बढ़ती हुई बताती है कि कॉमिक्स बुक्स किराये पर देने के लिए दुकानदारों ने ग्राहकों का चेन बनाने में पाठकों का ही इस्तेमाल किया। नया ग्राहक लाने वाले को दस पैसे में वहीं बैठ कर पढ़ने की इजाजत मिलती थी। नए ग्राहकों से बीस पैसे प्रति कॉमिक्स की पढ़ाई लेता था।

इसके अलावा वो फुर्सत में छतियाना एक दिलचस्प लेख है। अपार्टमेंट के इस दौर में छतों का उपयोग पेंट हाउस या फिर पानी की टंकी के आरामगाह के रूप में ही रहा है। अब छतों पर मानव आबादी अपने अनुभवों का निर्माण विकास नहीं करती है। महानगरों के अखबार बताते हैं कि फलां ने छत से कूद कर आत्महत्या कर ली। कभी छत जिंदगी के असली केंद्र हुआ करते थे। तभी तो जीतू भाई ने छत पर की गई शरारतों को छतियाना लिखा ।

इस ब्लॉग पर प्रकाशित दिलचस्प किस्सों में बहुत कुछ दिखता है। 20-30 साल पहले के सामाजिक संबंध, शहर का ढांचा आदि आदि। ब्लॉग और ब्लोगर से संबंधित सबसे सुखद पहलू तो यह है की इन्होंने अपने लिए कभी ब्लॉगिंग नहीं की। गूगल एडसेंस से पैसे मिले तो बाकी ब्लागरों को भी बताया कि ब्लगिंग से पैसा कैसे कमाया जा सकता है। ब्लगिंग से जुड़ी तकनीकी जानकारी देने वाले कई लेख मेरा पन्ना पर मिलेंगे।

इस वेहद खुबसूरत और सारगर्भित ब्लॉग को दीर्घायु जीवन की मंगल कामना...........!
इस क्रम में बस इतना ही, मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ...!

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-3)


........आपका स्वागत है हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण-2009 के क्रम -3 में । यद्यपि हम अभी समाज और राजनीति के महत्वपूर्ण पहलू पर चरचा कर रहे हैं , ऐसे में अभी किसी अन्य विषय को उठाना श्रेयष्कर नही होगा । इसलिए आईये शपथ , इस्तीफा , पुतला दहन के बाद रुख करते हैं राजनीति के चौथे महत्वपूर्ण पहलू "मुद्दे " की ओर....


जी हाँ ! कहा जाता है कि मुद्दों के बिना राजनीति तवायफ का वह गज़रा है , जिसे शाम को पहनो और सुबह में उतार दो । अगर भारत का इतिहास देखें तो कई मौकों और मुद्दों पर हमने ख़ुद को विश्व में दृढ़ता से पेश किया है । लेकिन अब हम भूख, मंहगाई , बेरोजगारी जैसे मुद्दों से लड़ रहे हैं । अज़कल मुद्दे भी महत्वकांक्षी हो गए हैं ।

अब देखिये न ! पानी के दो मुद्दे होते हैं , एक पानी की कमी और दूसरा पानी कि अधिकता । पहले वाले मुद्दे का पानी हैंडपंप में नही आता, कुओं से गायब हो जाता है , नदियों में सिमट जाता है और यदि टैंकर में लदकर किसी मुहल्ले में पहुँच भी जाए तो एक-एक बाल्टी की लिए तलवारें खिंच जाती हैं । दूसरे वाले मुद्दे इससे ज्यादा भयावह है । यह संपूर्ण रूप से एक बड़ी समस्या है । जब भी ऐसी समस्या उत्पन्न होती है , समाज जार-जार होकर रोता है , क्योंकि उनकी अरबों रुपये की मेहनत की कमाई पानी बहा ले जाता है । सैकड़ों लोग , हजारों मवेशी अकाल मौत की मुंह में चले जाते हैं और शो का पटाक्षेप संदेश की साथ होता है - अगले साल फ़िर मिलेंगे !


ऐसे तमाम मुद्दों से रूबरू होने के लिए आपको मेरे साथ चलना होगा बिहार जहाँ के श्री सत्येन्द्र प्रताप ने अपने ब्लॉग जिंदगी के रंग पर दिनांक ०७.०८.२००९ को अपने आलेख .... कोसी की अजब कहानी में ऐसी तमाम समस्यायों का जिक्र किया है जिसको पढ़ने के बाद बरबस आपके मुंह से ये शब्द निकल जायेंगे कि क्या सचमुच हमारे देश में ऐसी भी जगह है जहाँ के लोग पानी की अधिकता से भी मरते हैं और पानी न होने के कारण भी ।
जी हाँ वह क्षेत्र है बिहार में सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, अररिया, कटिहार और पूर्णिया, जहाँ इस साल सूखे पड़े हैं। बाढ़ ने पिछले साल इन इलाकों को डुबाया था, नहर की व्यवस्था ध्वस्त होने से खेतों में पानी नहीं पहुंच रहा है। मानसूनी बारिश न होना भी कोढ़ में खाज बन गया । सत्येन्द्र प्रताप के अलावा भी कई ब्लोगर हैं जिन्होंने कोसी की कहानी लिखी है और बताया है कि कैसे रहत कार्य लूटपाट से मुक्त नही है । कई डूबते को नही मिल रहा बैंक का सहारा और कैसे मधेपुरा के २०० साल पुराने मुरली बाज़ार को लील गयी कोसी नदी .....आदि । ये हुयी न कोसी की कहानी के अलोक में मुद्दे की बात । जून से लेकर अक्टूबर तक चलने वाले शो में हर साल लाखों लोग बेघर हो जाते हैं। दाने-दाने और दो घूँट पानी को बड़ी आवादी तरस जाती है यह उत्तर और पूर्वी बिहार की जनता की कहानी है जो सैकड़ों साल से सच्ची दर्दनाक और भयावह फ़िल्म तबाही और नेताओं के खोखले वादों को झेलती चली आरही है .... !
ऐसा नही कि श्री सत्येन्द्र अपने ब्लॉग पर केवल स्थानीय मुद्दे ही उठाते है , अपितु राष्ट्रिय मुद्दों को भी बड़ी विनम्रता से रखने में उन्हें महारत हासिल है । दिनांक ०४.०६.२००९ के अपने एक और महत्वपूर्ण पोस्ट यह कैसा दलित सम्मान? में श्री सत्येन्द्र ने दलित होने और दलित न होने से जुड़े तमाम पहलुओ को सामने रखा है दलित महिला नेत्री मीरा कुमार के बहाने । सत्येन्द्र कहते हैं, कि-"बड़ा दुख होता है कि मीरा कुमार के लोकसभा अध्यक्ष बनने के बाद सत्तासीन पार्टी कहते फिर रही है कि दलित को अध्यक्ष बना दिया। दलित और उनके जाति के संबोधन को भारतीय समाज में गालियों की तरह ही लिया जाता है। अब मीरा को इतनी बार दलित कहा जा रहा है कि वे इस एहसान से दब जाएंगी कि ऐसा लगता है कि बगैर किसी योग्यता के दलित होने के चलते ही उन्हें यह पद मिल गया है। हालांकि उनका पिछला इतिहास देखा जाए तो हर मौके पर उन्होंने अपनी योग्यता साबित की है।"
पानी होने और पानी न होने , दलित होने और दलित न होने जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों से भरा-पड़ा है यह ब्लॉग । कुल मिलकर यह ब्लॉग ज्वलंत मुद्दों का जीवंत आईना है । जिंदगी के रंग में रंगने हेतु एक बार अवश्य जाईये ब्लॉग जिंदगी के रंग पर और बताईये कैसा है?
तबतक हम लेते हैं एक छोटा सा विराम ।

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-2)




..............स्तीफा के सन्दर्भ में पद्मश्री के पी सक्सेना कहते हैं ,कि " जिसे जाना होता है वह दे देता है अगला ले लेता है इसे मंजूर कर ही लेना राष्ट्रपति या राज्यपाल की मजबूरी है , क्योंकि यही उनकी नौकरी है कि शपथ खिलाओ और इस्तीफा उगलवा लो इस्तीफा दान एक छोटी सी क्रिया है उठायी एक कलम और लिख दिया - जा ले जा अपनी गद्दी नही बैठते कल को जरूरत पड़े तो फ़िर बुला लेना शपथ ले लेंगे नेता हैं कोई दूध नही कि जमकर एक बार दही हो गया तो दोबारा दूध नहीं बन सकता ....!"हालाँकि मुंशी प्रेमचंद की कहानी " इस्तीफा " की भावभूमि समाज के राजनीतिकरण से संबंधित है कि राजनीति से यदि आप इस कहानी को अभी तक पढ़ा अथवा सुना है तो आवाज़ पर जाईये और अवश्य सुनिए



शपथ-इस्तीफा के बाद राजनीति का तीसरा महत्वपूर्ण पहलू है पुतला दहन विरोध प्रदर्शनों का परमानेंट आईटम यह हमेशा किसी नुक्कड़ किसी चौराहे पर किया जाता है पुतला दहन का सीधा-सीधा मतलब है जिन्दा व्यक्तियों की अंत्येष्ठी पहले इस प्रकार का कृत्य सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों तक सीमित था बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में रावण-दहन कि परम्परा थी , कालांतर में राजनीतिक और प्रशासनिक व्यक्तियों के द्वारा किए गए ग़लत कार्यों के विरोध में जनता द्वारा किए जाने वाले विरोध के रूप में हुआ पुतला-दहन धीरे - धीरे अपनी सीमाओं को लांघता चला गया आज नेताओं के अलावा महेंद्र सिंह धौनी से लेकर सलमान खान तक के पुतले जलते हैं मगर छ्त्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में एक बाप ने अपनी जिंदा बेटी का पुतला जलाकर पुतला - दहन की परम्परा को राजनीतिक से पारिवारिक कर दिया और इसका बहुत ही मार्मिक विश्लेषण किया है शरद कोकास ने अपने ब्लॉग पास-पड़ोस पर दिनांक २४.०७.२००९ को प्रेम के दुश्मन शीर्षक से






इस खबर के अनुसार " बेटी के प्रेम विवाह से क्षुब्ध होकर प्रधान आरक्षक पिता ने सिर्फ पुत्री का पुतला बनाकर विधिवत दाह संस्कार किया बल्कि बाकायदा शोक पत्र छपवाकर मुंडन संस्कार भी करवाया इस मामले मे हाँलाकि बाद में पति बने प्रेमी के साथ पकडाई युवती को अदालत मे पेश किये जाने के बाद उसके बालिग होने के चलते मर्ज़ी से कहीं भी रहने के आदेश हुए हैं जिसके बाद से वह अपने पति के साथ ही रह रही है "






शरद कहते हैं ,कि- "बेटी के प्रेम विवाह से आहत पिता का यह कदम आश्चर्य जनक तो है ,हमारी उनसे सहानुभुति भी है लेकिन हम उम्मीद करते है कि जैसे फिल्मों में होता है कि वही बेटी, जिसका बहिष्कार किया गया अंत मे अपने पिता के काम आती है और दामाद बेटे से बढकर साथ देता है ।इस दुखी पिता के साथ भी ऐसा ही हो और इस तरह हैप्पी एंडिंग के साथ दोनो का संसार सुखी हो यह शुभकामना "




प्रेम विवाह से क्षुब्ध एक बाप अपनी जिन्दा बेटी का पुतला जला देता है उसकी शव यात्रा निकालता है शरद कहते हैं की पहली बार किसी को मृत देख इन्सान हैरान रह गया होगा सवाल पूछा होगा की इस शिथिल शारीर को हो क्या गया है तब से मृत्यु के किस्से चले और परंपराएँ बनी



इस ब्लॉग के कुछ और महत्वपूर्ण पोस्ट है, जिसे पढ़ने के बाद आप सोचने पर मजबूर हो जायेंगे वह है - "ब्लॉग पर लिखते हुए रो रहा हूँ मैं / कवि और कविता से डरा भी हूँ मैं /होता जरूर है एक और जन्म आपका आदि .....!"ब्लोगिंग जगत में जमीनी और सार्थक लेखन करने वाला शरद कोकास के और ब्लॉग है-इतिहास विषयक आलोचना विषयक विज्ञान विषयक और साहित्य विषयक....


इनके सभी ब्लॉग पर एकबारगी नज़र दौडाई जाए तो यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि शरद किसी डायरी की तरह समाज की बातें लिखते हैंपुरातत्व के विद्यार्थी होने के कारण समाज, इतिहास और किस्सों को मिलकर पुरातत्व के किस्सों को सजीव बनाते हैंसबसे मजे की बात तो यह है कि शरद प्रसिद्द पुरातत्ववेता विक्रम श्रीधर के साथ काम करने के अनुभवों को हिन्दी में ब्लॉग पर उतर रहे हैंइतिहास का यह हिस्सा जटिल अंग्रेजी में लीखे जाने के कारन आम लोगों कि दिलचस्पियों से दूर हो गया है , जिसे शरद किस्से में बदलकर जनसुलभ करा रहे हैं


इनके सभी ब्लॉग गंभीर है और इन पर अनेकों गंभीर विषयों को बड़े सहज ढंग से उठाया गया है । इनके ब्लॉग कर्म और अकर्म के बीच मानवीय भावनाओं के अंतर्विरोधों को आयामित करते हुए दिखाई देते है । अज का सच क्या है ? जानना हो तो इनके ब्लॉग पर एक बार अवश्य आईये …..




आप ब्लॉग पढिये तबतक हम लेते हैं एक अल्पविराम .....!
 
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