शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2009
वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-6)
किसी ने कहा कि लैंगिक आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव का स्थान आधुनिक नागरिक समाज में नही है , पर लैंगिक मर्यादाओं के भी अपने तकाजे रहे हैं और इसका निर्वाह भी हर देश कल में होता रहा है तो किसी ने कहा कि भारतीय दंड विधान की धारा -३७७ जैसे दकियानूसी कानून की आड़ में भारत के सम लैंगिक और ट्रांसजेंदर लोगों को अकारण अपराधी माना जाता रहा है, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने किसी भी प्रकार के यौन और जेंडर रुझानों से ऊपर उठकर सभी नागरिकों के अधिकार को मान्यता देने का ऐतिहासिक कार्य किया है तो किसी ने कहा की यह विड्न्बना ही कहा जायेगा की अंग्रेजों द्वारा १८६० में बनाया गया यह कानून ख़ुद इंगलैंड के कानूनी किताबों में से सालो पहले मिट चुका ,लेकिन भारत में यह उनके जाने के बाद भी दसकों तक कायम है....आदि ।
रेखा की दुनिया ने अपने ०९ जुलाई २००९ के अंक में समलैगिकता की जोरदार वकालत करते हुए लिखा है जिस देश में कामसूत्र की रचना हुयी आज उसी धरती पर वात्स्यायन के बन्शज काम संवंधी अभिरुचि को बेकाम ठहराने पर लगे हैं ......!" घ्रृणा के इस दोहरे मापदंड पर उनका गुस्सा देखने लायक है इस आलेख में ।
महाशक्ति के दिनांक २९.०७.२००९ के आलेखका शीर्षक है समलैंगिंक बनो पर अजीब रिश्ते को विवाह का नाम न दो, विवाह को गाली मत दो । परमेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं की वह दृश्य बड़ा भयावह होगा जब लोग केवल आप्रकृतिक सेक्स के लिये समलैगिंक विवाह करेगे, अर्थात संतान की इच्छा विवाह का आधार नही होगा। अपने ब्लॉग पर अंशुमाल रस्तोगी कहते हैं कि अब धर्मगुरु तय करेंगे कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
नया जमाना के १६ अगस्त २००९ के पोस्ट वात्स्यायन,मिशेल फूको और कामुकता (2) के अनुसार समलैंगिकों की एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में फूको ने कहा 'कामुकता' को 'दो पुरूषों के प्रेम' के साथ जोड़ना समस्यामूलक और आपत्तिजनक है। ''अन्य को जब हम यह एक छूट देते हैं कि समलैंगिता को शुध्दत: तात्कालिक आनंद के रूप में पेश किया जाए, दो युवक गली में मिलते हैं, एक- दूसरे को आंखों से रिझाते हैं, एक-दूसरे के हाथ एक-दूसरे के गुप्तांग में कुछ मिनट के लिए दिए रहते हैं। इससे समलैंगिकता की साफ सुथरी छवि नष्ट हो जाती है।
दस्तक ने अपने ११ July २००९ के पोस्ट में टी.वी चैनलों का उमडता गे प्रेम... पर चिंता व्यक्त की है । कहा है कि २ जुलाई का दिन दिल्ली हाई कोर्ट का वह आदेश पूरा मीडिया जगत के शब्दों में कहें तो खेलनें वाला मु्द्दा दे गया । जी हॉ हम बात कर रहें हैं हाई कोर्ट के उस आदेश का जिसमें देश में अपनें मर्जी से समलैगिंक संबंध को मंजूरी दे दी गयी थी । ठीक हॉ भाई समलैंगिको मंजूरी मिली। उनको राहत मिला । पर उनका क्या जिनका चैन हराम हो गया । आखिर जो गे नहीं उनकी तो शामत आ गई । इधर चैनल वालों को ऐसा मसाला मिल गया जिसकों कोई भी चैनल नें छोड़ना उमदा नहीं समझा । उधर इस चक्कर और दूसरें मुद्दे जरूर छूट गए ।
दिलीप के दलान से July १० , २००९ को एक घटना का जिक्र आया की घर की घंटी बजी साथ साथ बहुत लोगों की । अंदर से गुड्डी दौड़ती हुई झट से दरवाजा खोली । बाहर खड़े भैया ने गुड्डी से कहा गुड्डी ये तुम्हारी भाभी हैं । गुड्डी के चेहरें पर खुशी के जगह बारह बज गए और वह फिर दोबारा जितनी तेजी से दौड़ती हुई आयी थी उतनी तेजी से वापस दौड़ती हुई मॉ के पास गयी । और मॉ से बोली मॉ भैया ... आपके लिए भैया लेके आए हैं । परिकल्पना पर भी मंगलवार, २८ जुलाई २००९ को ऐसी ही एक घटना का जिक्र था जिसका शीर्षक था -शर्मा जी के घर आने वाली है मूंछों वाली वहू ...बहूभोज में आप भी आमंत्रित हैं .
बात कुछ ऐसी है के ७ जुलाई २००९ के एक पोस्ट यहां आसानी से पूरी होती है समलैगिक साथी की तलाश में यह रहस्योद्घाटन किया गया है की क्लबों, बार, रेस्टोरेंट व डिस्कोथेक में होती है साप्ताहिक पार्टियां।पिछले 10 वर्ष से लगातार बढ़ रही है समलैंगिक प्रवृति । पिछले छह वर्ष में बढ़ा है समलैंगिकता का चलन । समलैगिकों में 16 से 30 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की संख्या अधिकदक्षिणी दिल्ली व पश्चिमी दिल्ली में होती हैं । यह प्रवृतिअप्राकृतिक संबधों को गलत नहीं मानते समलैंगिक
।उनके लिए प्यार का अहसास भी अलग है और यौन संतुष्टि की परिभाषा भी अलग है। समलिंगी साथी के आकर्षण का सामीप्य ही उन्हें चरम सुख प्रदान करता है तभी तो चढ़ती उम्र में वह एक ऐसी हमराही की तलाश करते हैं जो तलाश उन्हें आम आदमी से कुछ अलग करती है।
इस सन्दर्भ में भड़ास के तेवर कुछ ज्यादा तीखे दिखे जिसमें उसने स्पष्ट कहा की समलैंगिकता स्वीकार्य नही बल्कि उपचार्य है । मोहल्ला का समलेंगिकता पर क़ानून की मोहर से प्रकाशित शीर्षक में कहा गया है की नैतिकता ये कहती है कि यौन संबंधों का उद्देश्य संतानोत्पत्ति है, लेकिन समलेंगिक या ओरल इंटरकोर्स में यह असंभव है। वहीं ब्लॉग खेती-बाड़ी के दिनांक ०५ जुलाई २००९ के एक पोस्ट में समलैंगिकता के सवाल पर बीबीसी हिन्दी ब्लॉग पर राजेश प्रियदर्शी की एक बहुत ही यथार्थ टिप्पणी आयी है, जो थोड़ा असहज करनेवाला है....लेकिन समलैंगिक मान्यताओं वाले समाज में इन दृश्यों से आप बच कैसे सकते हैं?
बहरहाल आप पढ़ें राजेश प्रियदर्शी के विचारों को तबतक हम लेते हैं एक छोटा सा विराम .....!
मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009
वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-5)
कुछ ब्लॉग ऐसे है जिनकी चर्चा कई ब्लॉग विश्लेषकों के माध्यम से विगत वर्ष २००८ में भी हुयी थी और आशा की गई थी की वर्ष २००९ में इनकी चमक बरक़रार रहेगी । ब्लॉग चर्चा के अनुसार सिनेमा पर आधारित तीन ब्लॉग वर्ष २००८ में शीर्ष पर थे । एक तरफ़ तो प्रमोद सिंह के ब्लॉग सिलेमा सिलेमा पर सारगर्भित टिप्पणियाँ पढ़ने को मिलीं थी वहीं दिनेश श्रीनेत ने इंडियन बाइस्कोप के जरिये निहायत ही निजी कोनों से और भावपूर्ण अंदाज से सिनेमा को देखने की एक बेहतर कोशिश की थी । तीसरे ब्लॉग के रूप में महेन के चित्रपट ब्लॉग पर सिनेमा को लेकर अच्छी सामग्री पढ़ने को मिली थी । हालाँकि समयाभाव के कारण परिकल्पना पर केवल एक ब्लॉग इंडियन बाईस्कोप की ही चर्चा हो पाई थी । यह अत्यन्त सुखद है की उपरोक्त तीनों ब्लोग्स वर्ष २००९ में भी अपनी चमक और अपना प्रभाव बनाये रखने में सफल रहे हैं ।
इसीप्रकार जहाँ तक राजनीति को लेकर ब्लॉग का सवाल है तो अफलातून के ब्लॉग समाजवादी जनपरिषद, नसीरुद्दीन के ढाई आखर, अनिल रघुराज के एक हिन्दुस्तानी की डायरी, अनिल यादव के हारमोनियम, प्रमोदसिंह के अजदक और हाशिया का जिक्र किया जाना चाहिए। ये सारे ब्लोग्स वर्ष २००८ में भी शीर्ष पर थे और वर्ष २००९ में भी शीर्ष पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हुए हैं ।
वर्ष २००८ में संगीत को लेकर टूटी हुई, बिखरी हुई आवाज, सुरपेटी, श्रोता बिरादरी, कबाड़खाना, ठुमरी, पारूल चाँद पुखराज का चर्चित हुए थे , जिनपर सुगम संगीत से लेकर क्लासिकल संगीत को सुना जा सकता था , पिछले वर्ष रंजना भाटिया का अमृता प्रीतम को समर्पित ब्लॉग ने भी ध्यान खींचा था और जहाँ तक खेल का सवाल है, एनपी सिंह का ब्लॉग खेल जिंदगी है पिछले वर्ष शीर्ष पर था। पिछले वर्ष वास्तु, ज्योतिष, फोटोग्राफी जैसे विषयों पर भी कई ब्लॉग शुरू हुए थे और आशा की गई थी कि ब्लॉग की दुनिया में २००९ ज्यादा तेवर और तैयारी के साथ सामने आएगा। यह कम संतोष की बात नही कि इस वर्ष भी उपरोक्त सभी ब्लोग्स सक्रीय ही नही रहे अपितु ब्लॉग जगत में एक प्रखर स्तंभ की मानिंद दृढ़ दिखे । निश्चित रुप से आनेवाले समय में भी इनके दृढ़ता और चमक बरकरार रहेगी यह मेरा विश्वास है ।
यदि साहित्यिक लघु पत्रिका की चर्चा की जाए तो पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष ज्यादा धारदार दिखी मोहल्ला । अविनाश का मोहल्ला कॉलम में चुने ब्लॉगों पर मासिक टिप्पणी करते हैं और उनकी संतुलित समीक्षा भी करते हैं। इसीप्रकार वर्ष २००८ की तरह वर्ष २००९ भी अनुराग वत्स के ब्लॉग ने एक सुविचारित पत्रिका के रूप में अपने ब्लॉग को आगे बढ़ाया हैं।
आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा की भारतीय सिनेमा में जीवित किवदंती बन चुके बिग बी श्री अमिताभ बच्चन जल्द ही अपना हिंदी में ब्लॉग शुरू करेंगे। यह घोषणा उन्होंने १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस के अवसर पर की है । उन्होंने कहा है कि-" यह बात सही नहीं है कि मैं सिर्फ अंग्रेजी भाषा के प्रशंसकों के लिए लिखता हूं।"अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर खुलासा किया है कि "वह जल्दी ही हिंदी और अन्य भाषाओं में ब्लॉग लिखने की चेष्टा करेंगे, ताकि हिंदी भाषी प्रशंसकों को सुविधा हो।" जबकि मनोज बाजपेयी पहले से ही हिन्दी में ब्लॉग लेखन से जुड़े हैं ।
पिछले वर्ष ग्रामीण संस्कृति को आयामित कराने का महत्वपूर्ण कार्य किया था खेत खलियान ने , वहीं विज्ञान की बातों को बहस का मुद्दा बनाने सफल हुए थे पंकज अवधिया अपने ब्लॉग मेरी प्रतिक्रया में । हिन्दी में विज्ञान पर लोकप्रिय और अरविन्द मिश्रा के निजी लेखों के संग्राहालय के रूप में पिछले वर्ष चर्चा हुयी थी सांई ब्लॉग की ,गजलों मुक्तकों और कविताओं का नायाब गुलदश्ता महक की ,ग़ज़लों एक और गुलदश्ता है अर्श की, युगविमर्श की , महाकाव्य की, कोलकाता के मीत की , "डॉ. चन्द्रकुमार जैन " की, दिल्ली के मीत की, "दिशाएँ "की, श्री पंकज सुबीर जी के सुबीर संवाद सेवा की, वरिष्ठ चिट्ठाकार और सृजन शिल्पी श्री रवि रतलामी जी का ब्लॉग “ रचनाकार “ की, वृहद् व्यक्तित्व के मालिक और सुप्रसिद्ध चिट्ठाकार श्री समीर भाई के ब्लॉग “ उड़न तश्तरी “ की, " महावीर" " नीरज " "विचारों की जमीं" "सफर " " इक शायर अंजाना सा…" "भावनायें... " आदि की।
इसी क्रम में हास्य के एक अति महत्वपूर्ण ब्लॉग "ठहाका " हिंदी जोक्स तीखी नज़र current CARTOONS बामुलाहिजा चिट्ठे सम्बंधित चक्रधर का चकल्लस और बोर्ड के खटरागी यानी अविनाश वाचस्पति तथा दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका आदि की । वर्ष २००८ के चर्चित ब्लॉग की सूची में और भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग जैसे जबलपुर के महेंद्र मिश्रा के निरंतर अशोक पांडे का -“ कबाड़खाना “ , डा राम द्विवेदी की अनुभूति कलश , योगेन्द्र मौदगिल और अविनाश वाचस्पति के सयुक्त संयोजन में प्रकाशित चिट्ठा हास्य कवि दरबार , उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के प्रवीण त्रिवेदी का “ प्राइमरी का मास्टर “ , लोकेश जी का “अदालत “ , बोकारो झारखंड की संगीता पुरी का गत्यात्मक ज्योतिष , उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर सकल डीहा के हिमांशु का सच्चा शरणम , विवेक सिंह का स्वप्न लोक , शास्त्री जे सी फ़िलिप का हिन्दी भाषा का सङ्गणकों पर उचित व सुगम प्रयोग से सम्बन्धित सारथी , ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल और दिनेशराय द्विवेदी का तीसरा खंबा आदि की चर्चा वर्ष -२००८ में परिकल्पना पर प्रमुखता के साथ हुयी थी और हिंदी ब्लॉगजगत के लिए यह अत्यंत ही सुखद पहलू है , की ये सारे ब्लॉग वर्ष-२००९ में भी अपनी चमक बनाये रखने में सफल रहे हैं . ...!
इन में से कुछ ब्लॉग की चर्चा हम इसबार के ब्लॉग विश्लेषण में भी करेंगे और आपको बताएँगे की ये ब्लॉग कैसे आनेवाले समय में हिंदी ब्लॉग के लिए मील का पत्थर साबित होगा ?
आज बस इतना ही मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ....
सोमवार, 26 अक्टूबर 2009
वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-4)
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009
वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-3)
गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009
वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-2)
प्रेम विवाह से क्षुब्ध एक बाप अपनी जिन्दा बेटी का पुतला जला देता है । उसकी शव यात्रा निकालता है । शरद कहते हैं की पहली बार किसी को मृत देख इन्सान हैरान रह गया होगा सवाल पूछा होगा की इस शिथिल शारीर को हो क्या गया है । तब से मृत्यु के किस्से चले और परंपराएँ बनी ।