शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-13)


रैंकिंग संवंधी विश्लेषण से पूर्व आईये एक ऐसे ब्लोगर के जज्बे को सलाम करते हैं जिसने सिहरन , संदेह और भय-भ्रम-भ्रान्ति की दुनिया का कच्चा चिट्ठा खोलने का साहस किया है अपने ब्लॉग बीहड़ के माध्यम से । इस ब्लॉग को लाने के पीछे श्री योगेश जादो का मुख्य उद्देश्य रहा है बीहड़ से जुड़े प्रमाणिकता को बिना किसी लग-लपेट के प्रस्तुत करना और इस अद्भुत जमीन के बारे में जानकारी देना । योगेश कहते हैं कि- "यहाँ की जमीन सभी को लुभाती है , रिझाती है और डराती है । इस ब्लॉग पर डाकुओं के अनेक गैंग की चर्चा पूरी निर्भीकता के साथ हुयी है , मसलन ढीमर गैंग, राम सहाय ,कमल गुर्जर, जगन गुर्जर , जे जे आदि ।


इस ब्लॉग को जितना पढ़िए उतनी ही नई जानकारी मिलती है । ब्लोगर का दायरा केवल उत्तर या मध्य प्रदेश ही नही है , अपितु राजस्थान तक फैला हुआ इलाका है । इसमें गबर सिंह की तरह फिल्मी ड्रामा प्रस्तुत नही होता , इसमें प्रस्तुत होता है रोम-रोम में सिहरन पैदा कराने वाली सच्ची और प्रमाणिक घटनाएँ ....



यह ब्लॉग अप्रैल-२००८ में हिन्दी ब्लॉग जगत का हिस्सा बना और महज डेढ़ वर्ष के भीतर दहशत की दुनिया के कई अजीबो-गरिब घटनाओं से रूबरू कराते हुए बीहड़ की सच्चाई को सामने रखने में सफलता पाई है ...वर्ष-२००९ में इस पर केवल २७ पोस्ट डाले गए हैं , किंतु सभी पोस्ट अपने-आप में महत्वपूर्ण है । योगेश को मेरी ढेरों शुभकामनाएं ....!

आईये अब पिछली चर्चा से आगे बढ़ते हैं । पिछले दो पोस्ट में चिट्ठाजगत की रैंकिंग , विभिन्न एग्रीगेटरों के द्वारा प्रस्तुत पेज रैंक और ब्लॉग वाणी के माध्यम से ज्यादा पढ़े जाने वाले पोस्ट की चर्चा हुयी ।

इसी प्रकार जब हम पिछले सभी ब्लॉग की टेक्नोरैटी रैंकिंग निकालने का प्रयास करते हैं तो वर्त्तमान समय में जो स्थिति बन रही है उसके अनुसार हिन्दी ब्लॉग टिप्स आगे है और दूसरे स्थान पर उड़न तश्तरी काबिज है । आगे के क्रम में क्रमश: मोहल्ला ...कस्बा .....सारथी .....मानसिक हलचल ......फुरसतिया .....शब्दों का सफर .....रेडियो वाणी ....रवि रतलामी का ब्लॉग ....कबाड़खाना ......चोखेरबाली ......भड़ास ....अजदक ....टूटी हुयी बिखरी हुयी ......महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर .....शिव कुमार मिश्र और ज्ञान दत्त पांडे का ब्लॉग .....अनवरत ......प्रत्यक्षा ......जोग लिखी ......आवाज़ ....आलोक पुराणिक की अगड़म-बगड़म ....अमीर धरती गरीब लोग ......उन्मुक्त .....एक शाम मेरे नाम .....रचनाकार .....दीपक भारतदीप का चिंतन ....समाजवादी जन परिषद् ......हिंद युग्म ....एको Sहम .....आवारा बंजारा .....दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका .....दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका .....नौ दो ग्यारह .....तीसरा खंबा आदि ब्लॉग है ।

इसी प्रकार जब हम अलेक्सा की रैंकिंग निकालते हैं तो पहले स्थान पर आता है जोग लिखी और दूसरे स्थान पर हिंद युग्म । क्रमश: आगे इस प्रकार है - आवाज़...नौ दो ग्यारह .....चिट्ठा चर्चा ....हिन्दी ब्लॉग टिप्स .....ताऊ डोट इन ....रवि रतलामी का हिन्दी ब्लॉग ....भड़ास .....सारथी ....महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर .....आलोक पुराणिक की अगड़म-बगड़म ......मेरा पन्ना .....रचनाकार .....रेडियो वाणी ....मोहल्ला ...फुरसतिया ....शब्दों का सफर .....उड़न तश्तरी .....कबाड़खाना ....मानसिक हलचल ....घुघूती बासूती .......नारी .....अमीर धरती गरीब लोग ....तीसरा खंबा ....अनबरत.....शिव कुमार मिश्र और ज्ञान दत्त का हिन्दी ब्लॉग ....उन्मुक्त .... प्रत्यक्षा ....एक शाम मेरे नाम .....अजदक .....कस्बा ....चोखेरबाली .....एकोS हम .....समाजवादी जन परिषद् ......दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका .....दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका ....टूटी हुयी बिखरी हुयी ...आवारा बंजारा आदि ।

जब हम वर्ष-२००९ में ब्लोगवाणी के अंतर्गत सर्वाधिक पसंदीदा पोस्ट का अवलोकन करते हैं तो पहले स्थान पर महाशक्ति ....और दूसरे स्थान पर कबाड़खाना है ...! इन दोनों चिट्ठों के पसंदीदा पोस्ट का क्रमांक क्रमश: ९९ और ९२ तक पहुँचा है । इसी प्रकार आगे हैं -अपना घर ....महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर .....विरोध ...इयता .... ताऊ डोट इन ....आज की आवाज़ ....धान के देश में ....चर्चा हिन्दी चिट्ठों की ....विनय पत्रिका ......कुमायूनी चेली ....लपूझन्ना ......घुघूती बासूती ......मसिजीवी ....मेरी कलम मेरी अभिव्यक्ति ......मीडिया मर्ग ...एक जिद्दी धुन...अमीर धरती गरीब लोग.....दरअसल.....साहित्य शिल्पी ....प्रकाश पाखी ...मेरी दुनिया ....स्वप्न लोक ....हिदी ब्लॉग टिप्स ...नारी ...शिव कुमार मिश्र और ज्ञान दत्त पण्डे का ब्लॉग....अल्पना वर्मा की कवितायें ...उड़न तश्तरी ....दिल की बात ...हमारा हिन्दुस्तान ...कुछ इधर की कुछ उधर की ....पल ले इक रोग नादाँ जिंदगी के वास्ते ....नुक्कड़ .....ब्लॉग बुखार ....अलग सा ...अनवरत ......विस्फोट डोट कॉम ....खजाना .....ज्योतिष की सार्थकता.....आदि ।

चर्चा अभी जारी है ...मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ....!

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-12)


आज के इस महत्वपूर्ण विश्लेषण से पूर्व बात करते हैं पिछले वर्ष की २६/११ की घटना से, मुम्बई में हुयी आतंकवादी घटना से पूरा विश्व थर्रा गया था अचानक ....सबसे पहले हम उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जो असमय हमसे -आपसे जुदा हो गए ।


...जी हाँ वही ओम आर्य जिसने ०८ अक्टूबर २००८ को अपने ब्लॉग मौन के खाली घर से अपने उपस्थिति का शंखनाद किया और अगले ही वर्ष २००९ के ग्यारह महीनों में १८४ पोस्ट लिखने का गौरव हाशिल किया है .....सबसे पहले आईये इस नए किन्तु जुझारू चिट्ठाकार के जज्बे को सलाम करते है ....

जिस समय पूरे विश्व में आतंक का वातावरण कायम था , बिहार के सीतामढ़ी जैसे छोटे से जनपद मुख्यालय में एक नया चिट्ठाकार हिंदी ब्लॉग जगत में नए सिरे से धमाल मचाने को बेताब था .....उसकी सृजनात्मकता करवटें ले रही थी और मौन के खाली घर में फूट रहे थे स्वर ओम आर्य के ....यह चिट्ठाकार निश्चित रूप से आने वाले समय में अपनी सृजनात्मकता से हिंदी चिट्ठाकारी को नयी पहचान देने में सफल होगा , ऐसी आशा है !



दो प्रसिद्ध ब्लॉग-एग्रीगेटर चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी की पेज़रैंक का अवलोकन करते हुए हिन्दी के ब्लॉग और ब्लॉग एग्रीगेटरों के पेज़ रैंक पर गहन पड़ताल के बाद यह स्पष्ट होता है कि मशहूर ब्लॉगर रवि रतलामी का हिन्दी ब्लॉग आगे है ...इसी क्रम में शीर्ष पर हैं -'नौ दो ग्यारह' हिन्दिनी (यानी फुरसतिया, ईस्वामी), मोहल्ला, उड़न तश्तरी, हिन्द-युग्म का कविता पृष्ठ, अज़दक, सारथी, एक हिंदुस्तानी की डायरी, मेरा पन्ना, रचनाकार, शब्दों का सफर, मसिजीवी, जोगलिखी, उन्मुक्त, शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग, यूनुस ख़ान का हिंदी ब्‍लॉग : रेडियो वाणी ----yunus khan ka hindi blog RADIOVANI, प्रत्यक्षा, चिट्ठा चर्चा, एक शाम मेरे नाम, घुघूतीबासूती, जो न कह सके, समाजवादी जनपरिषद, गत्यात्मक ज्योतिष्, काकेश की कतरनें,.......इत्यादि , जैसा कि आप सभी को विदित है गूगल की पेज रैंक 10, याहू की 9 तथा एमएसएन और एवोएल की पेज़-रैंक क्रमशः 8-8 है।।

मगर जब ब्लोगवाणी के अनुसार सबसे ज्यादा पढ़े गए पोस्ट पर नज़र डालते हैं तो दृश्य कुछ और सामने आता है -पहले स्थान पर तब तो हर स्त्री, हर पत्नी हर माँ वेश्या है मसिजीवी जी ( अपना घर ) और उसके बाद क्रमश: संपादक पर बलात्कार का आरोप ? (विरोध ) इस्‍लाम का संदेश आतंक मचाओ हूर मिलेगी ( महाशक्ति) अथातो जूता जिज्ञासा-14 (इयता) स्वाईन फ्लू --- जितना हो सके बच लें। (मिडिया डॉक्टर) चुनाव के नतीज़ों ने जी खट्टा कर (कबाड़खाना) आप किस ब्रांड के आतंकवादी के हाथ मरना पसंद करेंगे ? ( घुघूती बासूती ) हिन्दुत्ववादी ब्लॉगरों से परहेज, नामवर सिंह का आतंक और सैर-सपाटा यानी इलाहाबाद ब्लॉगर सम्मेलन… ( महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर ) अथ चूतिया नंद कथा ( मेरी छोटी सी दुनिया ) धन्यवाद साथियो ! ( स्वप्न लोक ) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कीमत ( शिव कुमार मिश्र और ज्ञान दत्त पण्डे का ब्लॉग ) आउटलुक का सेक्स संस्करण

( क़स्बा ) पसंद न कर पाने के बहाने का अंत- नया ब्‍लॉगवाणी विज़ेट ( मसिजीवी )
ब्लॉग जगत के बलात्कारी ब्वायज़ ( चोखेर वाली ) महफूज़ भाई के प्यार कि दास्ताँ... इंटरवल के बाद का शेष ( मसि कागद ) अनचाही मोबाइल फोन कॉल की लोकेशन का पता लगाइए.. ( हिंदी ब्लॉग टिप्स ) नए ब्‍लागर के स्‍वागत में उसके द्वारा की गयी चोरी का पर्दाफाश ( गत्यात्मक ज्योतिष )
औरतों के जननांग पर फहरा दो विजय की पताका ( चिटठा चर्चा ) भारतीये संस्कृति के पतन मे आप का कितना हाथ हैं शास्त्री जी ( नारी ) हे भीष्म पितामह, हम ब्लॉगर नहीं, पर वहां थे… ( शब्दों का सफ़र ) नरेन्द्र मोदी के दस अवगुण ( जोग लिखी ) चाहता तो बच सकता था, मगर कैसे बच सकता था (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की !!!)... छि: यादव जी, आप कैसे साहित्‍यकार हैं जी!!! ( मोहल्ला ) समीर भाई को साधुवाद! ( निर्मल आनंद ) ब्लागिंग की जूतम पैजार और एग्रीगेटरों की भूमिका -ये लोग (क्वचिदन्यतोअपि..........! ) किसी ने देखा तो नहीं! ( उड़न तश्तरी ) अरविन्द जी की इस टिप्पणी ने बहुत hurt किया ( ममता टी वी ) जिनका पहले से ही छोटा है, या काला है, वे यहाँ न देखें ( जिंदगी के मेले ) क्या यादव जी के चुरट सुलगाने को भी जायज कहेंगे आप? ( मेरी छोटी सी दुनिया ) विषाक्त मन ऐसे होते हैं :-( विवादीत पोस्ट और टिप्पणी : "चोखेरबाली" पर (lavanyam-antarman )
हिन्दी ब्लॉग सर्वेक्षण : परिणाम हाजिर हैं (Raviratlami Ka Hindi Blog ) परिचयनामा : श्री नीरज गोस्वामी (ताऊ डॉट इन ) आरती ओम् जय जगदीश हरे का सच..... आईये जानें इसको (मेरी रचनाएँ ) कुहासा (ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल ) ...इत्यादि !

चर्चा अभी जारी है .....मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ...!

सोमवार, 23 नवंबर 2009

वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-11)

क्या है , इस बात क़ा अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, कि वर्ष -२००७ में हिन्दी ब्लॉग की संख्या लगभग पौने चार हजार के आस- पास थी जबकि महज दो वर्षों के भीतर चिट्ठाजगत के आंकड़ों के अनुसार सक्रीय हिन्दी चिट्ठों की संख्या ग्यारह हजार के पार हो चुकी है .........वर्ष- २००९ में कानपुर से टोरंटो तक ......इलाहबाद से न्यू जर्सी तक ....... मुम्बई से लन्दन तक...... और भोपाल से दुबई तक होता रहा हिन्दी चिट्ठाकारी का धमाल ......छाया रहा कहीं हिन्दी की अस्मिता का सवाल तो कहीं आती रही हिन्दी के नाम पर भूचाल .....इसमें शामिल रहे कहीं कवि , कही कवियित्री , कहीं गीतकार , कहीं कथाकार , कहीं पत्रकार तो कहीं शायर और शायरा .....और उनके माध्यम से होता रहा हिन्दी का व्यापक और विस्तृत दायरा .....

कहीं चिटठा चर्चा करते दिखे अनूप शुक्ल तो कहीं उड़न तस्तरी प़र सवार होकर ब्लॉग भ्रमण करते दिखे समीर लाल जैसे पुराने और चर्चित ब्लोगर ....कहीं सादगी के साथ अलख जगाते दिखे ज्ञान दत्त पांडे तो कहीं शब्दों के माया जाल में उलझाते रहे अजित वाडनेकर ........कहीं हिन्दी के उत्थान के लिए सारथी का शंखनाद तो कहीं मुहल्ला और भड़ास का जिंदाबाद ......कारवां चलता रहा लोग शामिल होते रहे और बढ़ता रहा दायरा हिन्दी का कदम-दर कदम .....!

इस कारवां में शामिल रहे उदय प्रकाश , विष्णु नागर , विरेन डंगवाल , लाल्टू , बोधिसत्व और सूरज प्रकाश जैसे वरिष्ठ साहित्यकार तो दूसरी तरफ़ पुण्य प्रसून बाजपेयी और रबिश कुमार जैसे वरिष्ठ पत्रकार ....कहीं मजबूत स्तंभ की मानिंद खड़े दिखे मनोज बाजपेयी जैसे फिल्मकार तो कहीं आलोक पुराणिक जैसे अगड़म-बगड़म शैली के रचनाकार ......कहीं दीपक भारतदीप का प्रखर चिंतन दिखा तो कहीं सुरेश चिपलूनकर का महा जाल....कहीं रेडियो वाणी का गाना तो कहीं कबाड़खाना ....

एकतरफ़ कम्युनिटी ब्लॉग चोखेरवाली तो दूसरी तरफ़ रामपुरिया का हरियाणवी ताऊनामा यानि शब्दों की गरम-गरम प्याली.....कहीं आस-पास की घटनाओं को शब्दों में समेटता दिखा प्राईमरी का मास्टर तो कहीं अपनी दमदार आवाज़ को कविताओं कहानियों में ढालता रहा ॐ आर्य जैसा नया ब्लोगर ......एक साल की लंबी चुप्पी के बाद बसंत आर्य सक्रीय तो हुए ....मगर कभी जागे, कभी सो लिए ....कुल मिलकर वर्ष-२००९ में सर्वाधिक चिट्ठों की सक्रियता देखी गई।


चिट्ठाजगत की रैंकिंग पर गौर किया जाय, तो जो फैक्ट फिगर सामने आता है उसके आधार पर वर्ष-२००९ के प्रथम छमाही से पहले प्रथम पायदान पर मानसिक हलचल रहा जबकि दूसरे छमाही में 1. उड़न तश्तरी .... ....प्रथम पायदान पर दिखे .....इसी प्रकार दूसरे और तीसरे स्थान पर प्रथम छमाही में क्रमश: उड़न तश्तरी और मोहल्ला रहा जबकि द्वितीये छमाही में इन दोनों स्थान पर 2. मानसिक हलचल और 3. ताऊ डॉट इन ने अपना स्थान बनाया ......प्रथम छमाही में क्रमश: चौथे और पांचवें स्थान पर रहा हिंद युग्म और रवि रतलामी का हिन्दी ब्लॉग , जबकि द्वितीय छमाही आते-आते इस स्थान पर काबिज हो गए 4. हिन्द-युग्म और 5. मोहल्‍ला .....इसी प्रकार छठे और सातवें स्थान पर प्रथम छमाही से पूर्व फुरसतिया और भड़ास ब्लॉग था जबकि द्वितीय छमाही आते-आते6. फुरसतिया ने तो अपना स्थान बचाए रखा मगर सातवें स्थान पर काबिज हुए7. दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका .....आठवें और नौवें स्थान पर प्रथम छमाही में अजदक और दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका ब्लॉग रहा, जबकि द्वितीय छमाही आते-आते इन दोनों स्थान पर क्रमश:8. दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका और9. चिठ्ठा चर्चा काबिज हो गए ...इसीप्रकार प्रथम छमाही से पूर्व दसवें स्थान पर कस्बा था , जबकि द्वितीय छमाही में इस स्थान पर 10. Hindi Blog Tips पहुँचने में सफल रहा है ।

पहली छमाही से पूर्व ग्यारहवें से चालीसवें स्थान पर रहे क्रमश:शब्दों क़ा सफर , रचनाकार , सारथी, आलोक पुराणिक की अगड़म-बगड़म , चिटठा चर्चा , मेरा पन्ना , दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका , रेडियो वाणी , कबाड़खाना , राम पुरिया क़ा हरियाणवी ताऊनामा , दीपक भारतदीप का चिंतन , एको sहम ,महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर , उन्मुक्त , शिव कुमार मिश्रा और ज्ञान दत्त पण्डे का ब्लॉग, अनवरत , तीसरा खंबा , नारी , एक शाम मेरे नम , प्रत्यक्षा , हिन्दी ब्लॉग टिप्स,नौ दो ग्यारह , आवाज़ , अमीर धरती गरीब लोग , घुघूती बासूती , चोखेर वाली , जोग लिखी , आवारा बंजारा, टूटी हुयी बिखरी हुयी और समाजवादी जन परिषद् ।

द्वितीय छमाही बीतने में वैसे तो अभी एक माह शेष है , मगर कल की रैंकिंग के अनुसार ग्यारहवें से चालीसवें स्थान पर जो ब्लॉग हैं वह इस प्रकार है -11. भड़ास blog 12. दीपक भारतदीप का चिंतन 13. शब्दों का सफर 14. अज़दक 15. रचनाकार 16. कबाड़खाना 17. कस्‍बा qasba 18. छींटें और बौछारें 19. सारथी 20. लो क सं घ र्ष ! 21. आलोक पुराणिक की अगड़म बगड़म 22. मेरा पन्ना 23. तीसरा खंबा 24. अमीर धरती गरीब लोग 25. महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar) 26. अनवरत 27. दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका 28. एकोऽहम् 29. आदित्य (Aaditya) 30. मसिजीवी 31. नारी 32. आवाज़ 33. उन्मुक्त 34. Gyan Darpan ज्ञान दर्पण 35. Vyom ke Paar...व्योम के पार 36. क्वचिदन्यतोअपि..........! 37. निर्मल-आनन्द 38. घुघूतीबासूती 39. सच्चा शरणम् 40. उच्चारण

उपरोक्त रैंकिंग दिनांक २३.११.२००९ की सायं ०७ बजे तक की है जो अस्थायी है , किंतु स्थायी रैंकिंग कुछ और होती है ।हम आज से शुरू कर रहे हैं हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला के अंतर्गत अपनी पसंदीदा ५० शीर्ष हिन्दी ब्लॉग की चर्चा , जिसमें उनकी सक्रियता का आकलन हम करेंगे चिट्ठाजगत , एलेक्सा,तेकनोरिति रैंकिंग के साथ-साथ गूगल पेज रैंक का अवलोकन कर .....साथ हीं उनके द्वारा प्रस्तुत हर महीने के प्रमुख पोस्ट का चयन कर उनकी विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए हम बताएँगे कि कैसे ये ब्लॉग मेरे पसंदीदा है ....उसके बाद के क्रम में हमारा प्रयास होगा कि वर्ष-२००९ में अपनी उपस्थिति से जिन नए चिट्ठों ने धमाल मचाया है उनकी भी चर्चा करूँ ....आशा है मेरे पसंदीदा ब्लॉग आपको भी पसंद आयेंगे ....!


आज बस इतना हीं मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ....!

शनिवार, 14 नवंबर 2009

वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-10)

..आज जिसप्रकार हिन्दी के चिट्ठाकार अपने लघु प्रयास से व्यापक प्रभामंडल बनाने में सफल हो रहे हैं, वह भी साधन और सूचना की न्यूनता के बावजूद , कम संतोष की बात नही है । हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप देने में हर उस ब्लोगर की महत्वपूर्ण भुमिका है जो बेहतर प्रस्तुतीकरण, गंभीर चिंतन, सम सामयिक विषयों पर सूक्ष्मदृष्टि, सृजनात्मकता, समाज की कु संगतियों पर प्रहार और साहित्यिक- सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से अपनी बात रखने में सफल हो रहे हैं। ब्लॉग लेखन और वाचन के लिए सबसे सुखद पहलू तो यह है कि हिन्दी में बेहतर ब्लॉग लेखन की शुरुआत हो चुकी है जो हम सभी के लिए शुभ संकेत का द्योतक है ।
हम चर्चा करेंगे वर्ष -२००९ के उन महत्वपूर्ण चिट्ठों की जिनके पोस्ट पढ़ते हुए हमें महसूस हुआ कि यह विचित्र किंतु सत्य है । यानी आज की इस चर्चा में हम चौंकाने वाले उन आलेखों की बात करेंगे जिन्हें पढ़ने के बाद आप यह कहने को विवश हो जायेंगे कि क्या सचमुच ऐसा ही है ? आईये उत्सुकता बढ़ाने वाले आलेखों की शुरुआत करते हैं हम मसिजीवी पर जुलाई-२००९ में प्रकाशित पोस्ट ३८ लाख हिन्दी पृष्ठ इंटरनेट पर से । इस आलेख में यह बताया गया है कि -चौदह हजार एक सौ बाइस पुस्तकों के अड़तीस लाख छत्तीस हजार पॉंच सौ बत्तीस ..... हिन्दी के पृष्ठ । बेशक ये एक खजाना है जो हम सभी को उपलब्ध है ....बस एक क्लिक की दूरी पर ...!इस संकलन में कई दुर्लभ किताबें तक शामिल हैं ।
दूसरा आलेख जो सबसे ज्यादा चौंकाता है वह है -उन्मुक्त पर २८ जून को प्रकाशित आलेख सृष्टि के कर्ता-धर्ता को भी नहीं मालुम इसकी शुरुवात का रहस्य । इस आलेख में श्रृष्टि के सृजन से संवंधित अनेक प्रमाणिक तथ्यों की विवेचना की गई है । वैसे यह ब्लॉग कई महत्वपूर्ण जानकारियों का पिटारा है । प्रस्तुतीकरण अपने आप में अनोखा , अंदाज़ ज़रा हट के इस ब्लॉग की विशेषता है ।इस चिट्ठे की सबसे ख़ास बात जो समझ में आयी वह है ब्लोगर के विचारों की दृढ़ता और पूरी साफगोई के साथ अपनी बात रखने की कला ।
तीसरा आलेख जो हमें चौंकता है , वह है- रवि रतलामी का हिन्दी ब्लॉग पर ०६ अप्रैल को प्रकाशित पोस्ट चेतावनी: ऐडसेंस विज्ञापन कहीं आपको जेल की हवा न खिला दे । इसमे बताया गया है कि- ०५ अप्रैल को यानि कल इसी ब्लॉग में भारतीय समयानुसार शाम पांच से नौ बजे के बीच एक अश्लील विज्ञापन प्रकाशित होता रहा। विज्ञापन एडसेंस की तरफ से स्वचालित आ रहा था और उसमें रोमन हिन्दी में पुरुष जननांगों के लिए आमतौर पर अश्लील भाषा में इस्तेमाल किए जाने वाले की-वर्ड्स (जिसे संभवत गूगल सर्च में ज्यादा खोजा जाता है) का प्रयोग किया गया था ।
चौथा आलेख जो हमें चौंकता है वह है- अगड़म-बगड़म शैली के विचारक अलोक पुराणिक अपने ब्लॉग के दिनांक २६.०६.२००९ के एक पोस्ट के माध्यम से इस चौंकाने वाले शब्द का प्रयोग करते हैं कि -आतंकवादी आलू, कातिल कटहल…. । है न चौंकाने वाले शब्द ? उस देश में जहाँ पग-पग पर आतंकियों का खतरा महसूस किया जाता हो हम दैनिक उपयोग से संवंधित बस्तुओं को आतंकवादी कहें तो अतिश्योक्ति होगी हीं ।
लेकिन लेखक के कहने का अभिप्राय यह है कि -महंगाई जब बढ़ती है, तो टीवी पर न्यूज वगैरह में थोड़ी वैराइटी आ जाती है। वैसे तो टीवी चैनल थ्रिल मचाने के लिए कातिल कब्रिस्तान, चौकन्नी चुड़ैल टाइप सीरयल दिखाते हैं। पर तेज होती महंगाई के दिनों में हर शुक्रवार को महंगाई के आंकड़े दिखाना भर काफी होता है।
आतंकवादी आलू, कातिल कटहल, खौफनाक खरबूज, तूफानी तोरई जैसे प्रोग्राम अब रोज दिखते हैं। मतलब टीवी चैनलों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ रही है, वो सिर्फ आलू, तोरई के भाव भर दिखा रहे हैं। हम भी पुराने टाइप के हारर प्रोग्रामों से बच रहे हैं। अन्य शब्दों में कहें, तो कातिल कब्रिस्तान टाइप प्रोग्राम तो काल्पनिक हुआ करते थे, आतंकवादी आलू और कातिल कटहल के भाव हारर का रीयलटी शो हैं।

इसीप्रकार वर्ष-२००९ में मेरी दृष्टि कई अजीबो-गरीब पोस्ट पर गई । मसलन -एक हिंदुस्तानी की डायरी में १० फरबरी को प्रकाशित पोस्ट -हिंदी में साहित्यकार बनते नहीं, बनाए जाते हैं ..........प्रत्यक्षा पर २६ मार्च को प्रकाशित पोस्ट -तैमूर तुम्हारा घोड़ा किधर है ? .........विनय पत्रिका में २७ मार्च को प्रकाशित बहुत कठिन है अकेले रहना ..... निर्मल आनंद पर ०५ फरवरी को प्रकाशित आदमी के पास आँत नहीं है क्या? .........छुट-पुट पर ०२ जुलाई को प्रकाशित पोस्ट -इंटरनेट (अन्तरजाल) का प्रयोग – मौलिक अधिकार है" .........सामयिकी पर ०९ जनवरी को प्रकाशित आलेख -ज़माना स्ट्राइसैंड प्रभाव का..........आदि ।
ये सभी पोस्ट शीर्षक की दृष्टि से ही केवल अचंभित नही करते वल्कि विचारों की गहराई में डूबने को विवश भी करते है । कई आलेख तो ऐसे हैं जो गंभीर विमर्श को जन्म देने की गुंजायश रखते है ।

वर्ष -२००९ में मेरे द्वारा उन चिट्ठों का भी विश्लेषण किया गया है जो विगत वर्ष परिकल्पना के विश्लेषण में शीर्ष पर थे । उनके नाम है- ज्ञान दत्त पांडे का मानसिक हलचल /उड़न तस्तरी /सारथी /रवि रतलामी का ब्लॉग/दीपक भारतदीप की हिन्दी /तीसरा खंभा /आवाज़ /गत्यात्मक ज्योतिष /चक्रधर का चकल्लस /अनंत शब्द योग /शब्दों का सफर /भडास /रचनाकार/मोहल्ला /समय चक्र/ साईं ब्लॉग .आदि.....विश्लेषण का आधार था- -(1) बेहतर प्रस्तुतीकरण (2) ब्लॉग लेखन का उद्देश्य (3) विश्व बंधुत्व की भावना (4) भाषा का अनुशासन (5) चिंतन में शिष्टाचार (6) रचनात्मकता (7) सक्रियता (8)जागरूकता (9) आशावादिता (10) विचारों की प्रासंगिकता आदि !


उन्ही तथ्यों के आधार पर आगे क्रम में ५० चिट्ठों की चर्चा होगी और मैं विश्लेषण की पोटली लेकर पुन: आऊँगा आपके बीच...! मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद .....!

मंगलवार, 10 नवंबर 2009

वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-9)

...... पिछले क्रम से आगे बढ़ते हुए आज हम चर्चा करेंगे वर्ष -२००९ के उन महत्वपूर्ण आलेखों , व्यंग्यों , लघुकथाओं , कविताओं और ग़ज़लों पर ,जो विगत लोकसभा चुनाव पर केंद्रित रहते हुए गंभीर विमर्श को जन्म देने की गुंजायश छोड़ गए ....!



आईये शुरुआत करते हैं व्यंग्य से , क्योंकि व्यंग्य ही वह माध्यम है जिससे सामने वाला आहत नहीं होता और कहने वाला अपना काम कर जाता है ऐसा ही एक ब्लॉग पोस्ट है जिसपर सबसे पहले मेरी नज़र जाकर ठहरती है ....१५ अप्रैल को सुदर्शन पर प्रकाशित इस ब्लॉग पोस्ट का शीर्षक है - आम चुनाव का पितृपक्ष ......व्यंग्यकार का कहना है कि -"साधो, इस साल दो पितृ पक्ष पड़ रहे हैं दूसरा पितृ पक्ष पण्डितों के पत्रा में नहीं है लेकिन वह चुनाव आयोग के कलेण्डर में दर्ज है इस आम चुनाव में तुम्हारे स्वर्गवासी माता पिता धरती पर आयेंगे, वे मतदान केन्द्रों पर अपना वोट देंग और स्वर्ग लौट जायेंगे "


इस व्यंग्य में नरेश मिश्र ने चुटकी लेते हुए कहा है कि -" अब मृत कलेक्ट्रेट कर्मी श्रीमती किशोरी त्रिपाठी को अगर मतदाता पहचान पत्र हासिल हो जाता है और उसमें महिला की जगह पुरूष की फोटो चस्पा है तो इस पर भी आला हाकिमों और चुनाव आयोग को अचरज नहीं होना चाहिए अपनी धरती पर लिंग परिवर्तन हो रहा है तो स्वर्ग में भी क्यों नहीं हो सकता स्वर्ग का वैज्ञानिक विकास धरती के मुकाबले बेहतर ही होना चाहिए "

गद्य व्यंग्य के बाद आईये एक ऐसी व्यंग्य कविता पर दृष्टि डालते हैं जिसमें उस अस्त्र का उल्लेख किया गया है जिसे गाहे-बगाहे जनता द्बारा विबसता में इस्तेमाल किया जाता हैजी हाँ शायद आप समझ गए होंगे कि मैं किस अस्त्र कि बात कर रहा हूँ ?जूता ही वह अस्त्र है जिसे जॉर्ज बुश और पी चिदंबरम के ऊपर भी इस्तेमाल किया जा चुका हैमनोरमा के ०९ अप्रैल के पोस्ट जूता-पुराण में श्यामल सुमन का कहना है कि -"जूता की महिमा बढ़ी जूता का गुणगान।चूक निशाने की भले चर्चित हैं श्रीमान।।निकला जूता पाँव से बना वही हथियार।बहरी सत्ता जग सके ऐसा हो व्यवहार।।भला चीखते लोग क्यों क्यों करते हड़ताल।बना शस्त्र जूता जहाँ करता बहुत कमाल।।"

इस चुनावी बयार में कविता की बात हो और ग़ज़ल की बात हो तो शायद बेमानी होगी वह भी उस ब्लॉग पर जिसके ब्लोगर ख़ुद गज़लकार हो०९ अप्रैल को अनायास हीं मेरी नज़र एक ऐसी ग़ज़ल पर पड़ी जिसे देखकर -पढ़कर मेरे होठों से फ़ुट पड़े ये शब्द - क्या बात है...! चुनावी बयार पर ग़ज़ल के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति को धर देने की यह विनम्र कोशिश कही जा सकती हैपाल ले इक रोग नादां... पर पढिये आप भी गौतम राजरिशी की इस ग़ज़ल कोग़ज़ल के चंद अशआर देखिये-न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों सेकरे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में.......बहुत मग़रूर कर देता है शोहरत का नशा अक्सरफिसलते देखे हैं हमने कई किरदार चुटकी मेंखयालो-सोच की ज़द में तेरा इक नाम क्या आयामुकम्मिल हो गये मेरे कई अश`आर चुटकी में......!


मैत्री में २४ मई के अपने पोस्ट आम चुनाव से मिले संकेत के मध्यम से अतुल कहते हैं कि "लोकसभा चुनाव के परिणाम में कांग्रेस को 205 सीटें मिलने के बाद पार्टी की चापलूसी परंपरा का निर्वाह करते हुए राहुल गांधी और सोनिया गांधी की जो जयकार हो रही है, वह तो संभावित ही थी, लेकिन इस बार आश्चर्यचकित कर देनेवाली बात यह है कि देश का पूरा मीडिया भी इस झूठी जय-जयकार में शामिल हो गया है। इस मामले में मीडिया ने अपने वाम-दक्षिण होने के सारे भेद को खत्म कर लिया है।"



दरवार के १६ मार्च के पोस्ट जल्लाद नेता बनकर गए में धीरू सिंह ने नेताओं के फितरत पर चार पंक्तियाँ कुछ इसप्रकार कही है -" नफरत फैलाने गए, आग लगाने गए, चुनाव क्या होने को हुए-जल्लाद चहेरे बदल नेता बनकर गए "


प्राइमरी का मास्टर के १३ मार्च के पोस्ट में श्री प्रवीण त्रिवेदी कहते हैं पालीथिन के उपयोग करने पर प्रत्याशी मुसीबत में फंस सकते हैं जी हाँ अपने आलेख में यह रहस्योद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा है की "पर्यावरण संरक्षण एवं संतुलन समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। बिगड़ते पर्यावरण के इसी पहलू को ध्यान में रखते हुए निर्वाचन आयोग ने चुनावी समर में पालीथिन को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।इसके तहत पालीथिन, पेंट और प्लास्टिक के प्रयोग को भी वर्जित कर दिया गया है।मालूम हो कि चुनाव प्रचार के दौरान पालीथिन का इस्तेमाल बैनर, पंपलेट तथा स्लोगन लिखने के रूप में किया जाता है। बाद में एकत्र हजारों टन कचरे का निपटारा बहुत बड़ी चुनौती होती है। लेकिन इस बार यह सब नहीं चल पाएगा।"

कस्‍बा के ०९ अप्रैल के पोस्ट लालू इज़ लॉस्ट के माध्यम से श्री रविश कुमार ने बिहार के तीन प्रमुख राजनीतिक स्तंभ लालू-पासवान और नीतिश के बाहाने पूरे चुनावी माहौल का रेखांकन किया हैश्री रविश कुमार कहते है कि -"बिहार में जिससे भी बात करता हूं,यही जवाब मिलता है कि इस बार दिल और दिमाग की लड़ाई है। जो लोग बिहार के लोगों की जातीय पराकाष्ठा में यकीन रखते हैं उनका कहना है कि लालू पासवान कंबाइन टरबाइन की तरह काम करेगा। लेकिन बिहार के अक्तूबर २००५ के नतीजों को देखें तो जातीय समीकरणों से ऊपर उठ कर बड़ी संख्या में वोट इधर से उधर हुए थे। यादवों का भी एक हिस्सा लालू के खिलाफ गया था। मुसलमानों का भी एक हिस्सा लालू के खिलाफ गया था। पासवान को कई जगहों पर इसलिए वोट मिला था क्योंकि वहां के लोग लालू के उम्मीदवार को हराने के लिए पासवान के उम्मीदवार को वोट दे दिया। अब उस वोट को भी लालू और पासवान अपना अपना मान रहे हैं। "

अनसुनी आवाज के २८ मार्च के एक पोस्ट चुनावों में हुई भूखों की चिंता में अन्नू आनंद ने कहा है की- "कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में सबके लिए अनाज का कानून देने का वादा किया है। घोषणा पत्र में सभी लोगों को खासकर समाज के कमजोर तबके को पर्याप्त भोजन देने देने का वादा किया गया है। पार्टी ने गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले हर परिवार को कानूनन हर महीने 25 किलो गेंहू या चावल तीन रुपए में मुहैया कराने का वादा किया है। पार्टी की घोषणा लुभावनी लगने के साथ हैरत भी पैदा करती है कि अचानक कांग्रेस को देश के भूखों की चिंता कैसे हो गई।" वहीं अपने २९ मई के पोस्ट में बर्बरता के विरुद्ध बोलते हुए चिट्ठाकार का कहना है -चुनावों में कांग्रेस की जीत से फासीवाद का खतरा कम नहीं होगा।

चुनाव के बाद के परिदृश्य पर अपनी सार्थक सोच को प्रस्थापित करते हुए रमेश उपाध्याय का कहना है की -"भारतीय जनतंत्र में--एक आदर्श जनतंत्र की दृष्टि से--चाहे जितने दोष हों, चुनावों में जनता के विवेक और राजनीतिक समझदारी का परिचय हर बार मिलता है। पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव में भी उसकी यह समझदारी प्रकट हुई।" यह ब्लॉग पोस्ट ०२ जून को लोकसभा चुनावों में जनता की राजनीतिक समझदारी शीर्षक से प्रकाशित है


१९ मई को भारत का लोकतंत्र पर प्रकाशित ब्लॉग पोस्ट पर अचानक नज़र ठहर जाती है जिसमें १५वि लोकसभा चुनावों की पहली और बाद की दलगतस्थिति पर व्यापक चर्चा हुयी हैवहीं ३० अप्रैल को अबयज़ ख़ान के द्वारा अर्ज है - उन चुनावों का मज़ा अब कहां ? जबकि २७ अप्रैल को कुलदीप अंजुम अपने ब्लॉग पोस्ट के मध्यम से अपपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहते हैं-" सुबह को कहते हैं कुछ शाम को कुछ और होता ,क्या अजब बहरूपिये हैं, हाय ! भारत तेरे नेता !! २५ अप्रैल को हिन्दी युग्म पर सजीव सारथी का कहना है की - "आम चुनावों में आम आदमी विकल्पहीन है ....!"कविता की कुछ पंक्तियाँ देखिये- "चुनाव आयोग में सभी प्रतिभागी उम्मीदवार जमा हैं,आयु सीमा निर्धारित है तभी तो कुछ सठियाये धुरंधरदांत पीस रहे हैं बाहर खड़े, प्रत्यक्ष न सही परोक्ष ही सही,भेजे है अपने नाती रिश्तेदार अन्दर,जो आयुक्त को समझा रहे हैं या धमका रहे हैं,"जानता है मेरा....कौन है" की तर्ज पर...बाप, चाचा, ताया, मामा, जीजा आप खुद जोड़ लें...!"

राजनीति और नेता ऐसी चीज है जिसपर जितना लिखो कम है , इसलिए आज की इस चर्चा को विराम देने के लिए मैंने एक अति महत्वपूर्ण आलेख को चुना हैयह आलेख श्री रवि रतलामी जी के द्बारा दिनांक 14-4-2009 को Global Voices हिन्दी पर प्रस्तुत किया गया है जो मूल लेखिका रिजवान के आलेख का अनुवाद हैआलेख का शीर्षक है- आम चुनावों में लगी जनता की पैनी नज़रइन पंक्तियों से इस आलेख की शुरुआत हुयी है -"हम जिस युग में रह रहे हैं वहाँ जानकारियों का अतिभार है। ज्यों ज्यों नवीन मीडिया औजार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बना रहे हैं, साधारण लोग भी अपना रुख और अपने इलाके की मौलिक खबरें मीडिया तक पहुंचा रहे हैं। ट्विटर और अन्य सिटिज़न मीडिया औजारों की बदौलत ढेरों जानकारी आजकल तुरत फुरत साझा कर दी जाती है। मुम्बई आतंकी हमलों के दौरान ट्विटर के द्वारा जिस तरह की रियल टाईम यानी ताज़ातरीन जानकारियाँ तुरत-फुरत मिलीं उनका भले ही कोई लेखागार न हो पर यह जानकारियाँ घटनाक्रम के समय सबके काम आईं।"

इस आलेख में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गई है , इसे जरूर पढ़ें तब तक हम लेते हैं एक छोटा सा विराम !
 
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