शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

किसी उपनिषद की तरह है यह परिकल्पना : इमरोज़



आशीर्वचन के दो शब्द 

अपने आप को गीत गाने दो
अपने आप को सुनने दो
हम काफी हैं
अपना आप गाने के लिए
और अपना आप सुनने के लिए
किसी उपनिषद की तरह है यह परिकल्पना
हर दिन सुनता हूँ इसके बारे में
हो सकता है
सागर की गहराई को किसी दिन नाप लिया जाये
पर इस परिकल्पना की गहराई
कभी नहीं नापी जा सकेगी ...
बस यूँ समझो
परिकल्पना के बीच
सबकी नज़र खूबसूरत हो गई है
एक दूजे को सभी नज़्म नज़र आ रहे हैं
दुआ है परिकल्पना
तुम नदी की तरह बहो
मैं सागर तक तेरा किनारा हूँ

शुभकामनाओं के साथ,


इमरोज़

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................श्रेष्ठ पोस्ट श्रृंखला के अंतर्गत आज प्रस्तुत है सारथी पर दिनांक २७.०२.२००९ को प्रकाशित यह आलेख :नॉल: आईये हिन्दी के लिये कुछ करें — 01

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..... अब हम मिलवाने जा रहे हैं आपको विदेशों में बसे हिंदी के उन्नयन की दिशा में सर्वाधिक सक्रिय हिंदी के प्रहरियों से .....यहाँ किलिक करें
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और अब -


एक रहस्य से पर्दा उठाने के साथ संपन्न आज का कार्यक्रम........

..........सोमरस यानि सोम नामक जड़ी बूटी से प्राप्त होने वाला देवताओं का प्रिय पेय, किन्तु अब अलभ्य। ऋग्वेद में विस्तार से वर्णित चमत्कारिक पादप-लता या जड़ी बूटी ‘सोम’ का अब अता पता ही नहीं है जिससे कथित ‘सोमरस’ प्राप्त होता था। ऋग्वेद में ऋचाओं का एक पूरा ‘मण्डल’ (नवम मण्डल) ही सोम को समर्पित है- जहा सोम को ‘देवत्व’ प्रदान किया गया है। सोम के एक नही अनेक चमत्कारिक गुणों का वर्णन ऋग्वेद में हुआ है- "यह बल और ओज वर्धक है, घावों को तुरत फुरत ठीक करने की क्षमता से युक्त है, इसके नियमित सेवन से चिर युवा बना रहा जा सकता है और यह अनेक रोग व्याधियों से मुक्ति दिलाने की अद्भुत क्षमता युक्त है।"


कथा- कहानी की बात हो और विज्ञान कथा न हो तो सब कुछ सुना-सुना लगता है, इसी उद्देश्य से आज के इस कथा कार्यक्रम को एक विज्ञान कथा से संपन्न किया जा रहा है . इस कथा के अंतर्गत डा0 अरविन्द मिश्र पर्दा उठा रहे हैं सोमरस के रहस्यों से ......यहाँ किलिक करें 



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इसी के साथ आज आठवें दिन का कार्यक्रम संपन्न, कल यानी शनिवार और रविबार को उत्सव के लिए अवकाश का दिन है, मिलते हैं पुन: दिनांक ०३.०५.२०१० को प्रात: ११ बजे परिकल्पना पर ...तबतक के लिए शुभ विदा ! 
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ब्लोगोत्सव-२०१० : बच्चे भी तो बेरौनक जगह जाना नही चाहते ना अब

भई, अबके गर्मियों की छुट्टियों मे हिंदुस्तान मे ही कहीं चलेंगे। परदेस चलने का कुछ मूड नहीं बन रहा!"
सुबह बाथरूम मे खड़ा विपुल शेव करते करते अपनी पत्नी नीरा से बतियाने लगा। कुछ देर उसकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर फिर आगे बोल पडा ,"सोंचता हूँ,पहले तो शिमला चल पड़ें ,फिर आगे की देखी जायेगी। वैसे तो घिसी पिटी जगह है, गर्मियों मे भीड़ भी रहेगी ,लेकिन बच्चे भी तो बेरौनक जगह जाना नही चाहते ना अब!"





ये अंश शमा की कहानी नीले-पीले फूल के हैं .....शमा एक वेहद संवेदनशील कथाकारा हैं , आज श्रेष्ठ कहानियों की श्रृंखला में इनकी कहानी को शामिल करते हुए मुझे वेहद ख़ुशी हो रही है ....विस्तार से कहानी पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें



जारी है उत्सव, मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद 

ब्लोगोत्सव-२०१० : ग्यारह बजे भी बिस्तर छोडे तो क्या फर्क पड़ जायेगा?

आँखें खुलीं तो पाया आँगन में चटकीली धुप फैली है.हडबडाकर खाट से तकरीबन कूद ही पड़ा.लेकिन दुसरे ही क्षण लस्त हो फिर बैठ गया.कहाँ जाना है उसे?,किस चीज़ की जल्दबाजी है भला? आठ के बदले ग्यारह बजे भी बिस्तर छोडे तो क्या फर्क पड़ जायेगा? पूरे तीन वर्षों से बेकार बैठा आदमी. अपने प्रति मन वितृष्णा से भर उठा.डर कर माँ की ओर देखा,शायद कुछ कहें, लेकिन माँ पूर्ववत चूल्हे में फूँक मारती जा रहीं थीं और आंसू तथा पसीने से तरबतर चेहरा पोंछती जा रहीं थीं .यही पहले वाली माँ होती तो उसे उठाने की हरचंद कोशिश कर गयीं होतीं और वह अनसुना कर करवटें बदलता रहता.लेकिन अब माँ भी जानती है कौन सी पढाई करनी है उसे और पढ़कर ही कौन सा तीर मार लिया उसने? शायद इसीलिए छोटे भाइयों को डांटती तो जरूर हैं पर वैसी बेचैनी नहीं रहती उनके शब्दों में. ......!



ये अंश हिंदी की सर्वाधिक सक्रिय चिट्ठाकारा रश्मि रवीजा की कहानी कशमकश के हैं ...इनकी इस कहानी को ब्लोगोत्सव-२०१० में आज श्रीमती सरस्वती प्रसाद, निर्मला कपिला, रवि रतलामी के बाद प्रमुखता के साथ शामिल किया जा रहा है, क्योंकि हम आज लेकर उपस्थित हैं श्रेष्ठ चिट्ठाकारों की श्रेष्ठ कहानियां . रश्मि जी की इस कहानी को पढ़ने के लिए........... यहाँ किलिक करें




उत्सव जारी है, मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद

ब्लोगोत्सव-२०१० : ये बेचारा हृदय की जन्मजात् बीमारी की वज़ह से नीला पड़ चुका है

“तुम्हारे रतलाम के डॉक्टर डॉक्टर हैं या घसियारे?” एमवाय हॉस्पिटल इन्दौर के हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल भराणी ने मरीज को पहली ही नज़र में देखते हुए गुस्से से कहा. इकोकॉर्डियोग्राफ़ी तथा कलर डॉपलर स्टडी के ऊपरांत डॉ. भराणी का गुस्सा और उबाल पर था - “ये बेचारा हृदय की जन्मजात् बीमारी की वज़ह से नीला पड़ चुका है और वहाँ के डाक्टर इसे केजुअली लेते रहे. कंजनाइटल डिसीज़ में जितनी जल्दी इलाज हो, खासकर हृदय के मामले में, उतना ही अच्छा होता है.”. उसने मरीज की ओर उंगली उठाकर मरीज के परिजनों पर अपना गुस्सा जारी रखा – “अब तो इसकी उम्र पैंतीस वर्ष हो चुकी है, सर्जिकल करेक्शन का केस था, अब समस्या तो काफी गंभीर हो चुकी है. मगर फिर भी मैं इसे अपोलो हॉस्पिटल चेन्नई रेफर कर देता हूँ. लेट्स होप फॉर सम मिरेकल.”
ये अंश है हिंदी चिट्ठाकारी के एक प्रमुख स्तंभ श्री रतलामी की कहानी आशा ही जीवन है के . इस कहानी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सत्य घटनाओं पर आधारित है ....इस कहानी को पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें

जारी है उत्सव, मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

ब्लोगोत्सव-२०१० : क्या वह भौतिक पदार्थों के मोह से ऊपर उठ चुका है ?

बस से उतर कर शिवदास को समझ नहीं आ रहा था कि उसके गांव को कौन सा रास्ता मुड़ता है । पच्चीस वर्ष बाद वह अपने गाँव आ रहा था । जीवन के इतने वर्ष उसने जीवन को जानने के लिए लगा दिए, प्रभु को पाने के लिए लगा दिए । क्या जान पाया वह ? वह सोच रहा था कि अगर कोई उससे पूछे कि इतने समय में तुमने क्या पाया तो शायद उसके पास कोई जवाब नही । यूँ तो वह संत बन गया है, लोगों में उसका मान सम्मान भी है, उसके हजारों शिष्य भी है फिर भी वह जीवन से संतुष्ट नहीं है । क्या वह भौतिक पदार्थों के मोह से ऊपर उठ चुका है ? शायद नही ...... आश्रम में उसका वातानुकूल कमरा, हर सुख सुविधा से परिपूर्ण था । क्या काम, कोध्र, लोभ, मोह व अहंकार से ऊपर उठ चुका है ? ... नहीं...नहीं...अगर ऐसा होता तो आज घर आने की लालसा क्यों होती ? आज गांव क्यों आया है ? उसे अपना आकार बौना सा प्रतीत होने लगा । पच्चीस वर्ष पहले जहां से चला गया था वहीं तो खड़ा है । अपना घर, परिवार ..... गांव.... एक नज़र देखने का मोह नही छोड़ पाया है..........!



ये अंश हिंदी चिट्ठाकारिता के प्रमुख स्तंभ श्रीमती निर्मला कपिला की कहानी सच्ची साधना के हैं . आज हम लेकर आएं हैं श्रेष्ठ कहानियों की श्रेष्ठ श्रृंखला आपके लिए तो आईये श्रीमती सरस्वती प्रसाद  की कहानी के बाद चलते हैं निर्मला जी की कहानी सच्ची साधना की ओर .....यहाँ किलिक करें



उत्सव जारी है, मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद

ब्लोगोत्सव-२०१० : आपको इंतज़ार था, लीजिये हम आ गए .........!

गर्म हवा के झोंके उदंडता पर उतारू होकर खिड़की किवाड़ पीट रहे थे ! पिघलती धूप में प्यासे कौवे की काँव  काँव  में घिघिआहट भरा विलाप शामिल था . मैं घर के काम-धाम से निबटकर हवा की झाँय-झाँय , सांय- सांय को अन्दर तक महसूसती अपने कमरे में लेटने की सोच ही रही थी कि गेट खुलने की आवाज़ आई .

उफ़ ! कौन होगा अभी ... सोच ही रही थी कि एक परिचित हांक कानों में आई- मूढ़ी है . आवाज़ ऐसी जैसे कह रही हो - आपको इंतज़ार था, लीजिये हम आ गए .........!




ये अंश कविवर पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की कहानी मुढीवाला के हैं, विस्तार से पढ़ने के लिए.............. यहाँ किलिक करें


उत्सव जारी है, मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद 

ब्लोगोत्सव-२०१० : आज का दिन कुछ ख़ास है


मैं समय हूँ !

आज फिर उपस्थित हूँ ब्लोगोत्सव-२०१० में, क्योंकि आज का दिन कुछ ख़ास है .

पारस्परिक सद्भावना को प्रश्रय देने वाले इस उत्सव में आज शामिल हो रहे हैं भारतीय साहित्य के एक ऐसे स्तंभ जिनकी आभा से ददीव्यमान है हमारी शाश्वत संस्कृति ...!

आज मैं हतप्रभ हूँ !

अपने समक्ष पाकर एक ऐसे मनीषी को, जिनकी साहित्य साधना विगत छ: सात दशक से हिंदी साहित्य के प्रकाश-पथ पर आगे-आगे चल रही है और सारे स्वर-व्यंजन के साथ समय पीछे-पीछे चल रहा है ...!

तस्वीर से शायद आप समझ गए होंगे कि -

मैं आपको सांस्कृतिक शहर कोलकाता ले जा रहा हूँ जहां हिन्दी के श्रेष्ठ गद्यशिल्पी पं० हजारी प्रसाद द्विवेदी के एक साधक शिष्य लीन है वर्षों से साहित्य साधना में ....नाम है कृष्ण बिहारी मिश्र

यह उत्सव के लिए गर्व का विषय है कि -

आज उनसे हमारा साक्षात्कार हो रहा है, चलिए चलते हैं कार्यक्रम स्थल पर
....यहाँ किलिक करें


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अपरिहार्य कारणों से आज हम डा0 दिविक रमेश का साक्षात्कार प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं, यह साक्षात्कार  अब हम दिनांक ०३.०४.२०१० को प्रकाशित करेंगे ....इससे होने वाली असुविधा के लिए हमें खेद है !
()ब्लोगोत्सव-२०१० टीम
                                                                                                         
उत्सव जारी है, मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

बुधवार, 28 अप्रैल 2010

ब्लोगोत्सव-२०१० : बहुत कठिन है डगर पनघट की.....

कुछ ही दिन पूर्व एक विद्वान् लेखक का शोधपूर्ण तकनीकी लेख पढ़ा. “बहुत कठिन है डगर पनघट की”. इस लेख में पाँच तकनीकी बाधाओं का उल्लेख करते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया था कि इन समस्याओं का हल निकाले बिना हिंदी को इंटरनेट पर लाने के अब तक के तमाम प्रयासों समेत भविष्य के भी प्रयास प्रभावकारी नहीं हो   सकेंगे . निश्चय ही यह स्थिति कुछ वर्ष पूर्व सही थी, लेकिन अब कंप्यूटर, इंटरनेट और ई-मेल के क्षेत्र में होने वाली नित नई खोज से ऐसा लगने लगा है कि अब कठिन नहीं रही डगर हिंदी इंटरनेट की........

() यह जानकारी दे रहे हैं श्री विजय के मह्लोत्रा ......यहाँ किलिक करें


आज सातवें दिन की संपन्नता की ओर बढ़ते हुए आज हम अमर शहीद  भगत सिंह की सहादत के ७५ वर्ष पूरे होने पर एक दस्तावेज प्रकाशित कर रहे हैं......यहाँ किलिक करें

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इसी के साथ आज का कर्यक्रम संपन्न, कल उत्सव के लिए अवकाश का दिन है ...इसलिए हम अब दिनांक ३०.०४.२०१० को पुन: उपस्थित होंगे प्रात: ११ बजे परिकल्पना पर ....लेकर 20 वीं शताब्दी के आठवें दशक में अपने पहले ही कविता संग्रह 'रास्ते के बीच' से चर्चित हो जाने वाले आज के सुपरिचित हिंदी कवि दिविक रमेश का साक्षात्कार . साथ ही श्रीमती सरस्वती प्रसाद,रवि रतलामी, निर्मला कपिला, रश्मि रविजा आदि की कहानियाँ .....इसके अतिरिक्त और भी बहुत कुछ !
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ब्लोगोत्सव में आज श्रेष्ठ पोस्ट के अंतर्गत माँ की डिग्रियां और शारदा अरोरा की कविता

श्रेष्ठ पोस्ट श्रृंखला के अंतर्गत आज  हम प्रस्तुत कर रहे हैं   "असुविधा"  में दिनांक ०३.०३.२००९ को प्रकाशित श्री अशोक कुमार पाण्डेय की कविता ....माँ की    डिग्रियां

घर के सबसे उपेक्षित कोने में
बरसों पुराना जंग खाया बक्सा है एक
जिसमें तमाम इतिहास बन चुकी चीजों के साथ
मथढक्की की साड़ी के नीचे
पैंतीस सालों से दबा पड़ा है
माँ की डिग्रियों का एक पुलिन्दा

बचपन में अक्सर देखा है माँ को
दोपहर के दुर्लभ एकांत में
बतियाते बक्से से
किसी पुरानी सखी की तरह
मरे हुए चूहे सी एक ओर कर देतीं
वह चटख पीली लेकिन उदास साड़ी
और फिर हमारे ज्वरग्रस्त माथों सा
देर तक सहलाती रहतीं वह पुलिंदा.......!
 
पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें
 
 
........... और अब एक ऐसी माँ की कविता से आप सभी को मैं रूबरू कराने जा रहा हूँ जो एक चार्टर्ड एकाउंटेंट बैंक एक्जीक्यूटिव की पत्नी हैं , साथ ही एक कुशल गृहिणी भी हैं कॉलेज की पढ़ाई के लिए बच्चों के घर छोड़ते ही , एकाकी होते हुए मन ने कलम उठा ली.....जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ नैनीताल निवासी शारदा अरोरा जी की ....आईये उनकी कविता :इश्क वफ़ा की सीढियाँ चढ़ कर....पढ़ते हैं और उनकी गहरी सवेदानात्मक अभिव्यक्तियों को आत्मसात करते हैं ........यहाँ किलिक करें
 
उत्सव जारी है मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

ब्लोगोत्सव में आज हम लेकर आये हैं संजीव वर्मा सलिल, ललित शर्मा और रवि कान्त पांडे के गीत

हमारे देश में गीत की काफी प्राचीन परम्परा रही है. अनुप्रास और उत्प्रेक्षा गीत के सौंदर्य को प्रकाशित करते रहे हैं. आधुनिक हिंदी के जन्मदाता भारतेंदु हरिश्चंद्र और प्रताप नारायण मिश्र सरीखे साहित्यकारों का गीत को एक लालित्यपूर्ण साहित्यिक विधा के रूप में स्थापित करने में अनुपम योगदान रहा है . गीत को न केवल साहित्यिक स्वरुप और वैशिष्ट्य प्राप्त है, अपितु अनेक गीतकारों ने अनेक साहित्यिक विद्वानों तथा अच्छे-अच्छे समालोचकों का मार्गदर्शन किया है .

जहां तक हिंदी चिट्ठाकारी में गीत की सहभागिता का प्रश्न है तो श्री पंकज सुबीर, संजीव वर्मा 'सलिल' , शास्त्री मयंक, ललित शर्मा आदि चिट्ठाकारों ने इसे प्रतिष्ठापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं .

आज हम लेकर आये हैं श्री संजीव वर्मा सलिल, ललित शर्मा और रवि कान्त पांडे के गीत .

() श्री संजीव वर्मा 'सलिल' के गीत को बांचने के लिए........... यहाँ किलिक करें

() श्री ललित शर्मा के गीत को बांचने के लिए .......................यहाँ किलिक करें

() श्री रवि कान्त पांडे के गीत को बांचने के लिए................. यहाँ किलिक करें



जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

ब्लोगोत्सव-२०१० : आज हम लेकर आये हैं श्यामल सुमन की ग़ज़ल

कहा गया है कि ग़ज़ल की असली कसौटी प्रभावोत्पादकता है . ग़ज़ल वही अच्छी होगी जिसमें असर और मौलिकता हो, जिससे पढ़ने वाले समझे कि यह उन्ही की दिली बातों का वर्णन है.  हिन्दी वालों ने ग़ज़ल को सिर्फ स्वीकार हीं नही किया है , वल्कि उसका नया सौन्दर्य शास्त्र भी गढा है. परिणामत: आज ग़ज़ल उर्दू ही नही हिन्दी की भी चर्चित विधा है ।

ब्लोगोत्सव के छठे दिन कई ग़ज़लकारों की ग़ज़लों को प्रस्तुत किया गया था, किन्तु एक महत्वपूर्ण गज़लकार जो हिंदी चिट्ठाकारी में अपना अलग मुकाम रखता है उनकी गज़लें उस दिन प्रस्तुत नहीं की जा सकी थी . उसी अनुक्रम में आज प्रस्तुत है श्री श्यामल सुमन की ग़ज़ल- अच्छा लगा .....यहाँ किलिक करें 







जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद

रहस्य: हम किसी चीज़ को किसी जगह पर देखते हैं तो वह वास्तव में ‘उस जगह’ पर नहीं होती

बीसवीं सदी की शुरुआत में महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने एक थ्योरी पेश की जिसका नाम था, ‘सापेक्षता का सिद्धान्त (Theory of relativity)। इस थ्योरी के अनुसार ब्रह्माण्ड में कुछ भी रुका हुआ नहीं है। सभी एक दूसरे के सापेक्ष (Relative) चल रहे हैं। इसका मतलब ये है कि जब हम किसी चीज़ को किसी जगह पर देखते हैं तो वह वास्तव में ‘उस जगह’ पर नहीं होती। मिसाल के तौर पर हम आसमान में एक तारा देखते हैं। वह तारा वास्तव में करोड़ों प्रकाश वर्ष (Light Year) दूर होता है। यानि उस तारे से हमारी आँखों तक रौशनी आने में करोड़ों साल लगे। स्पष्ट है कि हम उस तारे की करोड़ों साल पहले की पोजीशन देख रहे हैं।





उत्सव जारी है मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

ब्लोगोत्सव-२०१० :दर्पण का कार्य तो वस्तु का बिम्ब प्रदर्शित करना है

श्री के० के० यादव का कहना है कि साहित्य के सरोकारों को लेकर आज समाज में एक बहस छिड़ी हुई है।

        इस संक्रमण काल में कोई भी विधा मानवीय सरोकारों के बिना अधूरी है, सो साहित्य उससे अछूता कैसे रह सकता है। रीतिकालीन साहित्य से परे अब साहित्य में तमाम विचारधाराएं सर उठाने लगी हैं या दूसरे “शब्दों में समाज का हर वर्ग साहित्य में अपना स्थान सुनिश्चित करना चाहता है।
      
            यही कारण है कि नव-लेखन से लेकर दलित विमर्श , नारी विमर्श , बाल विमर्श जैसे तमाम आयाम साहित्य को प्रभावित कर रहे हैं। कभी साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता था, पर अब साहित्य की इस भूमिका पर ही प्रश्नचिन्ह लगने लगे हैं।

             दर्पण का कार्य तो मात्र अपने सामने पड़ने वाली वस्तु का बिम्ब प्रदर्शित .............विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें


उत्सव जारी है मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

ब्लोगोत्सव-२०१० : ऑनलाइन विश्व की आजाद अभिव्यक्ति है ब्लोगिंग

श्री बालेन्दु शर्मा दाधीच का कहना है कि " ब्लोगिंग ऑनलाईन विश्व की आज़ाद अभिव्यक्ति है "

             इस विषय पर उनकी राय है कि -ब्लॉगिंग शब्द अंग्रेजी के 'वेब लॉग' (इंटरनेट आधारित टिप्पणियां) से बना है, जिसका तात्पर्य ऐसी डायरी से है जो किसी नोटबुक में नहीं बल्कि इंटरनेट पर रखी जाती है। पारंपरिक डायरी के विपरीत वेब आधारित ये डायरियां (ब्लॉग) सिर्फ अपने तक सीमित रखने के लिए नहीं हैं बल्कि सार्वजनिक पठन-पाठन के लिए उपलब्ध हैं। चूंकि आपकी इस डायरी को विश्व भर में कोई भी पढ़ सकता है इसलिए यह आपको अपने विचारों, अनुभवों या रचनात्मकता को दूसरों तक पहुंचाने का जरिया प्रदान करती है और सबकी सामूहिक डायरियों (ब्लॉगमंडल) को मिलाकर देखें तो यह निर्विवाद रूप से विश्व का सबसे बड़ा जनसंचार तंत्र बन चुका है। उसने कहीं पत्रिका का रूप ले लिया है, कहीं अखबार का, कहीं पोर्टल का तो कहीं ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा के मंच का.............।
 विस्तार से पढ़ने  के लिए यहाँ किलिक करें...

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देखना न भूलें
चले आओ चक्रधर चमन में
28 अप्रैल 2010, बुधवार, शाम 7.15 बजे


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जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

ब्लोगोत्सव-२०१० : आज का कार्यक्रम उत्सवी स्वर के साथ संपन्न

विविधता में एकता को प्रतिष्ठापित करने के उद्देश्य से इस उत्सव की परिकल्पना की गयी थी. आशाओं के अनुरूप हिंदी चिट्ठाकारों ने इसका समर्थन ही नहीं किया, अपितु इसकी सफलता की कामना भी की. परिणाम आपके सामने है . प्रत्येक ने एकरूपता की नहीं , अपितु एकता की कामना की है . यही कारण है कि इस दिशा में हमारी प्रतिबद्धता एक नए मुकाम की ओर अग्रसर है . छठे दिन की संपन्नता की ओर बढ़ते हुए हम दो महत्वपूर्ण स्वर प्रस्फुटित करने जा रहे हैं . पहला स्वर है डा0 अरविन्द मिश्र का जिनका एक महत्वपूर्ण आलेख आज राष्ट्रीय सहारा के लखनऊ संस्करण में प्रकाशित हुआ है ...शीर्षक है बुद्धिजीवी दिखना भी एक चस्का ...अपने इस आलेख में श्री मिश्र कहते हैं कि " बुद्धिजीवी दिखना भी एक शौक है. यह कोई नया नहीं, बल्कि पुराना शौक है या यूं कहिये कि अब आउट डेटेड हो चला है, कारण कि अब कथित बुद्धिजीवियों की कोई शाख नहीं रही ." राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित इस आलेख को पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें


दूसरा स्वर है सुप्रसिद्ध कवियित्री रश्मि प्रभा का . ये आज उपस्थित हैं उत्सवी स्वर के साथ . वह स्वर जो हमारी अनेक उपासना पद्धतियों, पंथों, दर्शनों, भाषाओं, बोलियों,साहित्य और कला के वावजूद एक हृदय का शंखनाद है . रश्मि जी इस स्वर के माध्यम से हमें हमारी वास्तविकता से परिचय करा रही हैं .....आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल पर उत्सव के इस स्वर में स्वर मिलाने के लिए .....यहाँ किलिक करें

और अब -

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आज की महत्वपूर्ण चिट्ठी

आदरणीय रवीन्द्र जी,
नमस्कार,
परिकल्पना ब्लॉग-उत्सव की परिकल्पना स्वयं में एक अभिनव-प्रयास है ! ब्लॉग-जगत में अनगिन उत्तरदायित्वहीनताओं और निष्क्रियताओं के मध्य ऐसा मौलिक उत्तरदायी प्रयास सराहनीय है ! मैं इस पहल से एक नयी आशा का स्वर सुन पा रहा हूँ ! अनोखा कदम है यह जिसके माध्यम से हम क्रमशः अभिव्यक्त ही नहीं हो रहे, अपितु एकात्म की ओर अग्रसर हो रहे हैं...एक का हृदय दूसरे के समीपतर होते जाना संभव हुआ इस उत्सव की परिकल्पना से ! आपको बधाई व इसकी सफलता के लिए शुभकामनाएं !

आपका -
हिमांशु कुमार पाण्डेय

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सी के साथ आज छठे दिन का कार्यक्रम संपन्न . कल अवकाश का दिन है,    मिलते
हैं पुन:दिनांक २८.०४.२०१० को प्रात: ११ बजे परिकल्पना पर, तबतक के लिए शुभ विदा

ब्लोगोत्सव-२०१०: श्रेष्ठ पोस्ट और बच्चों का कोना

क्या आप हिन्दी ब्लॉगिंग करते है?
क्या आप नियमित/अनियमित रुप से हिन्दी ब्लॉग पढते है?
क्या आप इंटरनैट पर हिन्दी के बढते कदमों से प्रभावित है?
यदि इन सवालों के जवाब हाँ है तो आगे पढिए।
आज श्रेष्ठ पोस्ट श्रृंखला के अंतर्गत हम प्रस्तुत कर रहे हैं जीतू चौधरी के मेरा पन्ना से यह पोस्ट ......यहाँ किलिक करें
 
 
 
 
 
बच्चों का कोना में आज प्रस्तुत है एक नन्हे कथाकार शुभम सचदेव की तीन बाल कहानियां....यहाँ किलिक करें




जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद

ब्लोगोत्सव-२०१० : नीरज गोस्वामी,गौतम राजरिशी और अर्श की गज़लें

निर्मला जी की ग़ज़लों को आत्मसात करने के बाद आईये अब ग़ज़ल के इस कारवाँ को आगे बढाते है .....



() सबसे पहले आईये नीरज गोस्वामी की दो ग़ज़लों को अपने जेहन में उतारते हुए महसूस करते हैं सृजन के इस अनोखे सुख को .....यहाँ किलिक करें



() देश के लिए मर-मिटने के संकल्प के साथ जीवन और जीविका में सामंजस्य बिठाने वाले एक मेजर यानी गौतम राजरिशी की दो ग़ज़लों को आज हम इस श्रृंखला में लेकर आये हैं .....यहाँ किलिक करें



() और अब एक ऐसे नौजवान शायर की शायरी से आपको रूबरू कराते हैं जिसकी शायरी को बांचने के बाद आपके होठों से बरबस निकालेंगे ये शब्द क्या बात है नाम है अर्श .....यहाँ किलिक करें 



जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

हम लेकर आये हैं आज निर्मला जी की कुछ और गज़लें

ग़ज़ल अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है जो बाद में फ़ारसी, उर्दू, और हिंदी साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुइ। संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए इरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई। हिंदी के अनेक रचनाकारों ने इस विधा को अपनाया। जिनमें निराला, शमशेर, बलबीर सिंह रंग, भवानीशंकर, जानकी वल्लभ शास्त्री, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, त्रिलोचन आदि प्रमुख हैं। किंतु इस क्षेत्र में सर्वाधिक प्रसिद्धि दुष्यंत कुमार को मिली।



हिंदी ब्लॉगजगत में वैसे तो अनेक गज़लकार हिंदी में ग़ज़ल कह रहे हैं जिसमें प्रमुख हैं निर्मला कपिला, नीरज गोस्वामी, सर्बत एम् जमाल, गौतम राजरिशी, श्यामल सुमन, अर्श आदि . आज का उत्सव  पूरी तरह  ग़ज़ल पर केन्द्रित है ....

अभी आप ने ग़ज़ल की विकास यात्रा पर एक मुकम्मल आलेख पढ़ा और अब हम आपको मिलबा रहे हैं हिंदी चिट्ठाकारी में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराने वाले प्रमुख गज़लकार श्रीमती निर्मला कपिला, नीरज गोस्वामी, गौतम राजरिशी, श्यामल सुमन और अर्श से, लेकिन उससे पहले आईये आज के इस ग़ज़ल उत्सव का आगाज़ करते हैं निर्मला जी की एक ग़ज़ल से जिसे स्वर दिया है सुनील सिंह डोगरा ने-



इसके अतिरिक्त हम लेकर आये हैं-
 इस उत्सव में निर्मला जी की कुछ और गज़लें ......यहाँ किलिक करें


उत्सव जारी है मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद

आईये हिंदी ग़ज़ल की विकास यात्रा पर एक नजर डालते हैं..


मैं समय हूँ !



मैंने इसी गली में  ग़ज़ल कहते  सुना है ग़ालिब को....मीर को ....दुष्यंत की गज़लें भी इन्हीं गलियों से गुजरती हुई परवान चढ़ी थी  .....अब तो हमारे देश में हर कोई ग़ज़ल कहता है ....आप भी,हम भी और ये भी ....!



हिंदी ब्लॉग पर मैंने देखे है -

गजलों मुक्तकों और कविताओं का नायाब गुलदश्ता महक की......ग़ज़लों का गुलदश्ता अर्श की.....युगविमर्श की......महाकाव्य की......कोलकाता के मीत की...... "डॉ. चन्द्रकुमार जैन " की....दिल्ली के मीत की......"दिशाएँ "की......पंकज सुबीर  के सुबीर संवाद सेवा की.....वरिष्ठ चिट्ठाकार और सृजन शिल्पी  रवि रतलामी  का ब्लॉग “ रचनाकार “ की......वृहद् व्यक्तित्व के मालिक और सुप्रसिद्ध चिट्ठाकार  समीर  के ब्लॉग “ उड़न तश्तरी “ की....... " महावीर" " नीरज " "विचारों की जमीं" "सफर " " इक शायर अंजाना सा…" "भावनायें... " गौतम राजरिशी, निर्मला कपिला  आदि की.....।
 
आज हम हिंदी ब्लॉगजगत के कुछ चुनिन्दा ग़ज़लकारों से आपको मिलवाने जा रहे हैं , किन्तु उससे पहले आईये हिंदी ग़ज़ल की विकास यात्रा पर एक नजर डालते हैं.....यहाँ किलिक करें






जारी है उत्सव मिलते हैं एक विराम के बाद

चिट्ठाकारिता ने हमें एक नया सामाजिक आस्वादन दिया है


"चिट्ठाकारिता ने हमें एक नया सामाजिक आस्वादन दिया. अगर यही रफ़्तार रही तो आने वाले समय में अच्छे लेखको को समाज में आदर भी मिलेगा और इनके कारण नए ब्लागरों में भी रचनात्मकता का नूतन भावोदय होगा. यह अच्छे संकेत है कि हमारे ही बीच के कुछ लोग चिट्ठाकारिता की दिशा और दशा पर विमर्श कर रहे है. इन चर्चाओं के माध्यम से ही ब्लागिंग की खराब-सी होती दशा को सुधारा जा सकता है. इन सारे प्रयासों से कुछ बेहतर दिशा मिल सकेगी........!"
ये मैं नहीं कह रहा हूँ ...ये कहना है सद्भावना पत्रिका के संपादक गिरीश पंकज का ....हिंदी चिट्ठाकारिता के संबंध में खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं आज सुप्रसिद्ध रचनाकार/चिट्ठाकार गिरीश पंकज ....विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें 

जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद

ब्लोगोत्सव-२०१० : हम व्यस्क कब होंगे ?



यह है शांत जलराशि
इसमें आप कंकड़ी फेंकोगे तो -
केंद्र विन्दु से वर्तुलाकार अनेक तरंगे उत्पन्न होने लगेगी ....और ये तरंगें ही बता पाएंगी कि जलराशि को उद्वेलित करने वाली , उस कंकड़ी की गति और उसका घनत्व कितना तीब्र और सघन है !
यही हिंदी चिट्ठाकारी के साथ भी है -
आप जब रचनात्मक पहल करने के उद्देश्य से आगे बढ़ेंगे तो खुद-ब-खुद समझ जायेंगे कि आपमें रागात्मक बोध कितना है और आप अपनी रचनाओं से पाठक को कितना बांधते हैं यानी कि आपकी वैचारिक उष्मा का स्तर क्या  है ?

बस यही समझना है और अन्य सभी चिट्ठाकारों को यही समझाना है , हम खुद अंग्रेजी चिट्ठों कि तरह संपन्नता की श्रेणी में आ जायेंगे यानी व्यस्क हो जायेंगे ...!



प्रमुख चिट्ठाकार अविनाश वाचस्पति का कहना है कि हिंदी चिट्ठाकारी की ताकत को कम करके आंकना गलत है .....विगत दिनों लोकसंघर्ष पत्रिका के दिल्ली स्थित व्यूरो चीफ ने उनसे परिकल्पना ब्लॉग उत्सव के परिप्रेक्ष्य में हिंदी चिट्ठाकारी की दिशा-दशा पर खुलकर बातचीत की ........आईये चलते हैं कार्यक्रम्स्थल पर इस साक्षात्कार के अंश को आत्मसात करने के लिए.....यहाँ किलिक करें



जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

ब्लोगोत्सव-२०१०: आज इरफ़ान का कार्टून और श्रेष्ठ पोस्ट





यह हमारे लिए अत्यंत गर्व की बात है कि इरफ़ान जैसे चर्चित कार्टूनिस्ट हमारे हिंदी ब्लॉगजगत का हिस्सा हैं दिल्ली निवासी इरफ़ान देश के प्रतिष्ठित कार्टूनिष्ट हैं ये नव भारत टाईम्स, इकोनोमिक्स टाईम्स, फायिनेंसिअल एक्सप्रेस आदि अनेक समाचार पत्रों के संपादकीय कार्टूनिस्ट रह चुके हैं देश-विदेश के सभी प्रमुख समाचार पत्रों के अतिरिक्त बहुचर्चित टाईम्स मैगजीन की शोभा भी इनके कार्टून से बढ़ चुकी है परिकल्पना ब्लॉग उत्सव हेतु इन्होने विशेष रूप से कुछ कार्टून भेजे हैं ...इनमें से एक कार्टून  , जिसका विषय विगत दिनों हिंदी ब्लॉगजगत में सबसे ज्यादा छाया रहा  प्रस्तुत है






.....जैसा कि ब्लोगोत्सव की परंपरा है कि प्रत्येक दिन हम हिंदी ब्लॉगजगत से एक पोस्ट का चयन कर यहाँ प्रस्तुत करते हैं , उसी के अंतर्गत आज के श्रेष्ठ पोस्ट का लिंक इसप्रकार है -



आश्चर्य होता है कि आज हिंदी के निरंतर विकृत होते रूप के प्रति बौद्धिकों में कोई चिंता नहीं है । कुछ मुट्ठीभर लोग अपवाद हो सकते हैं , किन्तु जो शक्तियां आज भी हिंदी को उसकी संबैधानिक हैसियत दिए जाने के खिलाफ हैं , उनके लिए तो शायद यह बेहतर ही है कि भाषिक अपसंस्कृति का कारोबार फूले-फले और उन्हें यह कहने का अवसर मिले कि सौ साल में हिंदी फिर अंग्रेजी की शरणागत हो चली हैउसका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं हैजहां तक हिंदी के लिए लेखकीय स्वाभिमान की बात है ऐसे लोगों का निरंतर अभाव होता जा रहा हैकुछ गिने-चुने साहित्यकारों के लिए भले ही यह जीवन-मरण का प्रश्न हो बहुतेरे कथित हिंदी सेवियों के लिए हिंदी सेवा एक प्रदर्शन भर है आज माला जी लेकर उपस्थित हैं इसी से संदर्भित एक आलेख- मैं हिंदी हूँ !.......यहाँ किलिक करें

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आज की महत्वपूर्ण चिट्ठी

आदरणीय रवीन्द्र जी,
लखनऊ नजाकत , नफासत से भरा शहर तो है ही, इसकी मिट्टी में एक खासियत यह भी है कि सम्मान की फसल से आबाद है.........

एक नई परिकल्पना के सूत्रपात के साथ आपने अपनी कलम को विभिन्न रंगों से पूर्णता दी है... समय के लिबास में

आपके विचारों की उन्मुक्त उड़ान अकल्पनीय है, अद्भुत है...

चयनित सामग्रियां एक ख़ास दिशा देती है साहित्य को . छायावाद, रहस्यवाद, सौन्दर्य , प्रगतिवाद ....... विभिन्न विधाओं का संकलन याद रहेगा.

शुभकामनायें ,
रश्मि प्रभा
 
(आपकी भावनाएं हमारे भीतर सात्विक ऊर्जा का संचार कर रही है और निरंतर बेहतर करने की प्रेरणा भी ....आपका आभार रश्मि जी )
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इसी  के साथ आज का कार्यक्रम संपन्न ....दो दिन यानी शनिवार और रविवार के अवकाश के पश्चात पुन: मिलते हैं दिनांक २६.०४.२०१० को प्रात: ११ बजे परिकल्पना पर ...तबतक के लिए शुभ विदा !

ब्लोगोत्सव-२०१० : आज सुनिए अदा जी के स्वर में उनकी एक प्यारी सी कविता

स्वप्न मंजूषा 'अदा' जी ने ख़ास तौर पर परिकल्पना ब्लॉग उत्सव-२०१० हेतु अपनी कविता के वीडियो भेजे हैं , कविता का शीर्षक है - "ऐसा हो नहीं सकता "




इस विडिओ में आप ऐसा हो नहीं सकता विषय से संबंधित अन्य कविताएँ अथवा हिंदी फिल्म गीत भी सुन सकते हैं ...आपके लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है .


...........उत्सव जारी है, मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद
 
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