रविवार, 27 मार्च 2011

....न रन, न बिकेट......इंडिया हिट विकेट !





चौबे जी की चौपाल
(दैनिक जनसंदेश टाईम्स/२७ मार्च २०११ ) 
....न रन, न बिकेट......इंडिया हिट विकेट !
आज चौपाल में काफी गहमागहमी है,वर्ल्ड कप के  उत्तेजक क्रिकेट मैच की चर्चा जो हो रही है, दालान के बाहर पाकड़ के पेंड के निचवे दरी बिछाके बईठे हैं चौबे जी महाराज और कह रहे हैं कि बटेसर ! आजकल माहौल में इत्ती गर्मी और देशभक्ति की मात्रा इत्ती ज्यादा हो गयी है कि क्रिकेटमय  हो गया है हमरा  देश  .... मैच देखने के चक्कर में हमरी  लोकल पुलिस  हफ्ता वसूली छोड़कर जेब कतरों के साथ टी वी पर अंखिया गराई  दिए  हैं , बस सारा फोकस हमरे धोनी भईया के ऊपर है, हार गए तो धोनी भईया जिम्मेदार और जीत गए तो कहेंगे अमा यार तक़दीर अच्छी थी उसकी ! जैसे हमरे देश में क्रिकेट क्रिकेट न शिला की जबानी हो गयी है, जिधर से गुजरो सारी टी वी कवरेज उसी पर फोकस हो जाती है और मुन्नी की तरह खामखा बदनाम हो जाता है बेचारा धोनी भईया !
एकदम सही कह रहे हैं चौबे जी आप, हम आपकी बात का समर्थन करते हैं, इतना कहकर बटेसर ने अपनी भड़ास निकालते हुए कहा, कि  ... हमरे इंडिया के कई प्लेयर तो एकदम्मै सठिया गए है ससुर, खेलने से ज्यादा विज्ञापनी भौजी के बालों में लगा गजरा महकते रहते हैं आजकल ! अब कोई भी कायदे से नहीं खेल पा रहा है तो जिम्मेदारी किसकी ?
धोनी भैया की और किसकी ? तपाक से बोला राम भरोसे !
चुप कर, ई का कह रहे हो राम भरोसे ? अगर सारी जिम्मेदारी धोनी भईया की है तो ई बताओ कि अपने जो सोते टाईप इन्डियन प्लेयर हैं जिनकी फील्डिंग करते हुए कभी पैंट गीली हो जाती है तो कभी ढीली और राखी सावंत टाईप जो बॉलर हैं , फिल्ड में बेहूदा हरकतें करेंगे मगर बिकेट लेने के नाम पर पंचर हो जाती है इनकी टायर ...हवा निकल जाती है फुस्स से फुलौना  की तरह, अब इसकी जिम्मेदारी किसको दोगे राम भरोसे ?
धोनी को और किसको ? तपाक से बोला राम भरोसे
इसबार रहा नहीं गया गुलटेनवा को, बोला कि ई बताओ राम भरोसे भईया,  राजा ने करपसन  का इत्ता बड़ा बाजा बजाया , किसी ने जिम्मेदारी ली , नहीं न ?......कलमाडी ने कॉमन वेल्थ की आग में भ्रष्टाचार की हांडी चढ़ाई , किसी को बदबू आई, नहीं न ?  निरा राडिया की खटिया में बरहन- बरहन लोग  अंडस गए, किसी ने अंडसने की जिम्मेदारी ली, नहीं न ? हमरे देश के नेताओं ने  अमरीकी पाखण्ड को  अपने बिस्तर पर सुलाकर खुबई रासलीला रचाई , सही-सही बताओ कितने लोगों को शरम आई ? लगातार मोनमोहनी मुस्कान छाई रही दूरदर्शन पर और सोनिया मैडम अंचरवा दांत में दबा के देहरी के  भीतर से देखती रही विष कन्याओं के पतीत खेल .....और तुम सबको केवल धोनी ही सुझा है खेलने के लिए अटखेल ?  हर तरफ लूटी जा रही है विश्वास और आस्था की अभिव्यक्ति, यहाँ क्यूँ नहीं दिखती तुम्हारी देशभक्ति ?
गुलटेनवा की बतकही से पूरा चौपाल रह गया स्तब्ध, चटख गयी उनकी देशभक्ति की भावनाएं और बोलती हो गयी बंद ....सबने महसूस किया कि यदि विपक्ष नदारत रहे तो सचमुच सत्ता निरंकुश हो जाती है , आजकल देश में चारो तरफ यही हाल है, जनता बेहाल है   और  नेता काट रहे हैं चांदी  .. आम जनता क्रिकेट जैसे खेल में देशभक्ति तलाश रही है और देश के नेता सविश बैंक में भेज कर माल ,हो रहे मालामाल !
चौबे जी ने भी गुलटेनवा की बातों से सहमति जताई और कहा कि हम फिजूल की बातों को हवा देकर गुड़गुड़ा रहे हैं हैं हुक्का और उधर नेतवन सब हमरी मुर्खता पर फूली के कुप्पा ! आज हम उस खेल के पीछे बेसुध हैं जो हमारी भावी पीढ़ी को कलम की जगह बल्ला थमाकर उन अंधेरी गलियों में ले जा रहा है जहां कोई कैरियर ही नहीं है ! हम उस खेल के पीछे दीवाने हैं जिसकी अंधी कमाई की एक चवन्नी इस देश के विकास पर खर्च नहीं होती ! हम उस खेल के लिए इज्जत दाव पर लगा देते हैं कायदे-क़ानून से भारत का नाम भी उपयोग में नहीं लाया जा सकता !
आपकी चिंता जायज है चौबे बाबा ! बहुत देर से खामोश गजोधर ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा .....!
ई का कहत हौ गजोधर, हमरे समझ से ई चिंता केवल चौबे जी की नहीं पूरे देश की है ...अब तुम्ही बताओ कि जिस देश की जनता के लिए रोटी-कपड़ा और मकान से बढ़कर रन, विकेट तथा छक्के हो जाएँ तो इसे किसका दुर्भाग्य कहा जाएगा, इस देश की जनता का या इस देश का ? इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा इस देश की मीडिया को, जनता को, सरकार को या फिर धोनी भईया को ?
कहते-कहते काफी उग्र हो गया बटेसर, बोला कि अंग्रेज चले गए ससुर और  छोड़ गए दो चीज भारत में एक अंग्रेजी और दूसरी क्रिकेट !
एक दम सही कह रहे हो बटेसर, चौबे जी ने कहा एक से फ़ायदा तो दूसरी से कहीं ज्यादा नुकसान ....न रन, न बिकेट......इंडिया हिट विकेट ! मुझे तो उस वैद्य की विधा पर तरस आती है, भूखे-नंगों को जो सेहत की दवा देता है !
बाह...बाह...बाह, सुभान अल्लाह  ! क्या बात है चौबे जी .....आपकी शायरी में वज़न है ! रमजानी मियाँ ने अपनी दाढ़ी को सहलाते हुए कहा ! लो मियाँ एक शायरी इस बूढ़े रमजानी की भी सुन लो , अर्ज किया है - " इस क्रिकेट भूत को किसने किया इजाद था, वह आदमी था या किसी शैतान का औलाद था ? "
बहुत बढ़िया शेर पटका रमजानी चाचा, क्या खूब कहा है ! गजोधर ने कहा
शुक्रिया, शुक्रिया, शुक्रिया !
रमजानी चाचा के इस शेर के साथ आज की चौपाल स्थगित हुयी  इस संकल्प के साथ कि आज से हम निरर्थक बातों को हवा नहीं देंगे और बच्चों को क्रिकेट बुखार से दूर रखकर अच्छी तालीम देंगे ....ताकि हमारा राजा बेटा सचमुच राजा बेटा बनकर दिखाए !
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मंगलवार, 22 मार्च 2011

आज चौपाल में जश्न का माहौल है।

दैनिक जनसंदेश टाईम्स / २० मार्च २०११ / रविवार

चौबे जी की चौपाल में आज :

जोगीरा सर र S  र S  र S  र S........

आज चौपाल में जश्न का माहौल है। होरी का त्यौहार जो है। कहीं पुआ-पुड़ी की तो कहीं गुझिए की महक। कोई महुए के शुरूर में तो कोई ठंडई के गुरूर में। कोई गटक रहा ठर्रा तो कोई बुदका। कोई गा रहा, कोई बजा रहा, तो कोई लगा रहा ठुमका अलमस्ती की हद तक।


अपने दालान में साथियों के साथ पालथी मारकर बैठे चौबे के सिर पर फगुनाहट की आहट का अंदाजा साफ लगाया जा सकता है। रंग से सराबोर, कपड़े फटे हुए और आँखे मदहोशी में। सुबह से ही भाँग खाके भकुआए हैं चौबे जी , फगुनाहट सिर चढ़के बोल रही है। कहते हैं कि -

ई बताओ राम भरोसे ! बियाह के बाद का पहिला फगुआ तुम अइसे ही जाने दोगे का ?

अरे नाहीं महाराज ! ई दिन कवनो बार-बार थोरे नऽ आता है जो गंवाई देंगे हम ।

बीच में टपक पड़ा बटेसर , बोला-राम भरोसे भइया आज मत जइयो घर छोड़कर। खूब खेलियो होरी, खूब करियो बरजोरी भऊजाई के साथ।

अरे हाँ , इ हुई न लाख टके की बात।राम भरोसे ने चिहुँकते हुए कहा।

अचानक नेता जी को देखकर स्तब्ध हो गया चौपाल, नेता जी दोउ कर जोरे, दांत निपोरे मचरे माचर करै जूता उतारी के बईठ गए चौपाल में और पान की गुलौरी मुंह में दबाये बोलै जय राम जी की चौबे जी, आज हमहू आ गए तोहरे चौपाल मा होरी की शुभकामनाएं देने ....!

बहुत अच्छा किये नेता जी, मगर यहाँ तो आदमी की चौपाल लगी है ?

क्यों हम आदमी नहीं है का ?

नहीं आप तो नेता जी हैं .......चुटकी लेते हुए बोला बटेसर

नेता जी खिश निपोर कर बोले क्यों नेता आदमी नहीं होता है का ?

हमारे समझ से तो नहीं होता है, मुस्कुराते हुए बोला बटेसर .....! पूरा चौपाल सन्नाटे में चला गया, चौबे जी ने पूछा ई का कह रहे हो बटेसर, नेता आदमी नहीं होता है , ऊ कईसे ?

अरे हम का बतायीं महाराज, साल भर पहिले इहे होरी में जईसे हीं ठंडई हलक के नीचे गया, वईसे हीं हमको भी नेता बनने की इच्छा हुई

हम जब बताएं अपनी धर्मपत्नी जी से कि " भाग्यवान हम भी नेता बनकर दिखाएँगे"

हमरी धर्म पत्नी ने हमसे कहा - " पहिले हम १५ दिनों तक लतियांगे "

"उसके बाद अगले १५ दिनों तक हम गंदी हवाओं की चाशनी पिलायेंगे, हवा और लात खाकर भी जब तुम मुस्कुराओगे, आदमी से नेता बन जाओगे !"

मतलब समझाईये बटेसर भईया ?

ऊ बात ई है कि "आदमी लात खाने के डर से गलत बातों को हवा नहीं देता , किन्तु नेता का हवा लात से गहरा रिश्ता होता है ....!"

का गलत कहते हैं नेता जी ?

न...न.....न....न....!

तभी टोका-टोकी के बीच पान की पीक पिच्चई से मारते हुए गुलटेनवा ने इशारा किया-

अरे छोडो बटेसर, रंग में भंग हो जाए , फिर नेता और आदमी दोनों मिलकर गाये

जोगीरा सरऽ रऽ रऽ......।

हाँ, काहे नाहीं गुलटेन ! मगर पहिले ठंडई फेर जोगीरा...।

इतना कहकर चौबे जी ने आवाज़ दी !

चौबे जी की आवाज सुनकर पंडिताईन बटलोही में भरकर दे गयी है ठंडई और लोटा में पानी, ई कहते हुए कि - जेतना पचे ओतने पी आ ऽऽ लोगन, होरी में बखेरा करे के कवनो जरूरत नाहीं।

ठीक बा पंडिताईन! जइसन तोहार हुकुम, लेकिन नाराज मत होअ आज के दिन। चौबे जी ने कहा दाँत निपोरते हुए। चौबे जी के कत्थाई दाँतों की मोटी मुस्कान और बेतरतीब मूछों कि थिरकन देख पंडिताईन साड़ी के पल्लु को मुँह में दबाये घूँघट की ओट से मुसकाके देहरी के भीतर भागी। सभी ने एक-एक करके ठंडई गटकते हुए पान का बीड़ा दबाया मुँह में और ताल ठोककर शुरू-

जोगीरा झूम-झूम के आयो फागुन गाँव, चलऽ सन महुए बाली छाँव, कि भइया होश में खेलऽ होरी

करऽ जिन केहु से बरजोरी

देखऽ फिसल न जाए पाँव..... जोगी जी धीरे-धीरे

जतन से धीरे-धीरे, मगन से धीरे-धीरे

कि डारो रंग-अबीरा, अवध में है रघुबीरा

कहीं पे धूप तो छाया है......

जोगी जी फागुन आया है-

जोगीरा सरऽ रऽ रऽ....।

() रवीन्द्र प्रभात

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

महुआ पीकर मस्त है, रंग भरी मुस्कान .....


कहा गया है, कि मन और बुद्धि के समर्पण की दिशा में एकता का रंग भरते हुए जीवन रूपी प्रवृतियों के कलश में संस्कार की मर्यादा को उतारना और आपसी प्यार व विश्वास के पवित्र पलों की अनुभूति कराते हुए एक-दूसरे के साथ मिलकर सादगीपूर्ण जीवन को रंगमय कर देना ही होली है ......फागुनी वयार बहने लगी है और वातावरण धीरे-धीरे होलीमय होता जा रहा है , तो आईये परिकल्पना के संग महसूस कीजिये फागुन को -

तन पे सांकल फागुनी, नेह लुटाये मीत !
पके आम सा मन हुआ , रची पान सी प्रीत !!

महुआ पीकर मस्त है, रंग भरी मुस्कान !
झूम रहे हैं आँगने, बूढे और जवान !!

धुप चढी आकाश में , मन में ले उपहास !
पानी-पानी कर गयी , बासंती एहसास !!

चूनर- चूनर टांकती , हिला-हिला के पाँव !
शहर से चलकर आया, जबसे साजन गाँव !!

मंगलमय हो आपको , होली का त्यौहार !
रसभीनी शुभकामना, मेरी बारम्बार !!
() रवीन्द्र प्रभात

रविवार, 13 मार्च 2011

विज्ञापन में अपनापन नहीं है का ?


दैनिक जनसंदेश टाईम्स/१३ मार्च २०११ 


चौबे जी की चौपाल : 

आज चौपाल  में  चौबे जी ने विज्ञापन बाबा से मिलवाया और फरमाया कि  औरत हो या मर्द, गर्मी हो या सर्द,जो भी अपने चहरे पर देश-विदेश के सारे ब्रांड की क्रीम आजमा चुके हों ,उन्हें ये  सात दिनों  में गोरा बना देंगे, इनका पक्का वादा है राम भरोसे !"  

अरे सत्यानाश होकैसे बाबा हैं ये .....हर रोज टेलीविजन पर झूठे-झूठे वायदे करके हम मिडिल क्लास वालों को लूटते हैं  और बेहयाई के साथ कहते हैं सात दिनों में गोरा बनने के नुस्खे है इनके  पास ! रहने दो महाराज ! हमको तो सांवली-सलोनी मेहरारू ही पसंद है !" राम भरोसे ने कहा !

विज्ञापन बाबा ने कहा अरे मूर्ख , नादान........अपनी भोली भाली पत्नी की आशा रुपी बतासा पर निराशा रुपी पानी फेरने वाले बेईमानतुम्हारे सोचने न सोचने से क्या फर्क पड़ता हैहमरे चौबे जी महाराज  भी यही सोचते थे पहिले कि विज्ञापन में अपनापन नहीं होतामगर  पंडिताईन  को देखो , गोरी मेम बनने के फिराक में सिनेमा के हिरोईनों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तमाम साबुनों को एक-एक करके बेदर्दी से चेहरे पर २० वर्षों से रगड़ती जा रही है.....रगड़ती जा रही है,बस रगड़ती ही जा रही है ! का गलत कहत हईं चौबे जी महाराज ! 

हाँ ठीक कहत हौ बाबाअब जल में रहकर मगर से बैर नहीं  कर सकते न  ..... कौन समझाये तोहरी भाभी को कि गोरा रंग अगर सुंदरता का मापदंड है तो वर्ल्ड ब्यूटी कॉंटेस्ट में अफ्रीकन सुंदरियां क्यों भाग लेती है ?

कहते- कहते भावनाओं के प्रवाह में बहने लगे चौबे जीकहने लगे कि  हमके बहुत डर लागत है बाबा,कि कहीं कौनों  दिन ऐसन अनहोनी न हो कि हमरी पंडिताईन की बाहर की चमड़ी  साबुन में  धुल जाए और भीतर की चमड़ी का गोरा रंग बाहरी सतह पर आ जाए ....!

तब तो रंग भेद ही मिट जाएगा बाबा ई दुनिया सेचुटकी लेते हुए बोला गुलटेनवा !

हो सकता है क्यों नहीं होगाजब हमरे प्रोडक्ट में दम होगा ....गर्व के साथ मूछें फरफरा के बोले विज्ञापन बाबा !

हाँहाँ प्रोडक्टवा में केतना दम है हम नहीं समझते का अभी तीन हफ्ता हुआ शक्तिमान बनने के चक्कर में बिस्किट खा के राम खेलावन का पांच साल का बेटा  गोलू बालकानी से छलांग लगा दियाऔर हाँथ पैर तुड़वा लिए  ....अब ई बताओ बाबा कि बिस्किट खाने से यदि कोई शक्तिमान बन जाए तो हमरे पहलवान ओलंपिक से खाली हाँथ कईसे लौट आते हैंउन्हें क्यों नहीं बिस्किट खिला-खिला के लड़वाती ई ससुरी केंद्र सरकार ! हमारा बस चले तो हम सारे विज्ञापनों का एक साथ नारको टेस्ट करबा देंन रहे बांस न बाजे बांसुरी ! गुस्से में लाल होकर बोला बटेसर !

ठीक कहत हौ बटेसरहमार पूर्ण सहमति है तुम्हारे साथ.....ई कलमुंहे विज्ञापनों के भ्रमजाल  में उलझे हुए हम बेचारे  मिडिल क्लास वालों को तो यह भी समझ में ही नहीं आता कि काले घने वालों का राज केश तेल है या शेंपू ?  विज्ञापन में दिखाए जाने वाले साबुन-शेंपू जब औषधीय गुणों से लबरेज है तो लगने के बाद ससुर फोड़े क्यों निकल जाते टेलीविजन मईया के गोदी में बईठके बड़ी -बड़ी डींगे हांकते हैं कि इसमें विटामिन से लेकर सारे पौष्टिक तत्त्व हैतो इसका काढा बना के क्यों नहीं खिला देते बच्चों कोदेश में कुपोषण की समस्या ही नहीं रहेगी .....प्रेशर कूकर और मसाले दोनों आजकल खाने के स्वादिष्ट बनाने की होड़ में लगे है जैसे तीसरे विश्व युद्ध की तईयारी चल रही हो और हिन्दुस्तान-पाकिस्तान मुकाबले में आगे हो गए हों......हवाई चप्पलें तो ऐसी हो गयी हैं जैसे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को भी चकमा दे जाए और पहनते ही लोग हवा में बातें करने लगे......टूथ पेस्ट और ब्रश के क्या कहनेदांतों से सडन और कीटाणु दूर हो न हो दांत जरूर दूर हो जायेंगे......वो तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का  जो  गुटका पर पाबंदी लगा दिया,नहीं तो हमारे बच्चे झाड-झाड केपाऊच फाड़-फाड़ के ऐसे खाए जा रहे थेमानो राजदरबारी होकर महल में पञ्चपकवान खा रहे हों ....ठंडा-ठंडा कूल-कूल कहा जाने वाला कोल्ड ड्रिंक शरीर को ठंडा करने के बजाये उटपटांग  जोश पैदा करता है और पीने वाला बन्दर की तरह उछल-कूद करने लगता है ....ये कलमुंहे विज्ञापन है या जेबकतरेलुभावने वादे करके पहिले तो दिल कतराते हैं फिर जेब...इनका बस चले तो जादू की छडी घुमाके पल में सेव को बनादे अमरूद और अमरूद को बनादे सेब....हम आम उपभोक्ता की हालत उन आशिकों की तरह हो गयी है जो  प्यार में लूटने के बाद भी शिकायत का साहस नहीं बटोर पाते....हम तो यही कहेंगे कि पहिले इनपर हो आचार संहिता तय तभी हम कहेंगे विज्ञापन बाबा की जय ....! 

विज्ञापन बाबा को जोर का झटका धीरे  से लगा ........वेचारे परिस्थितियों की नज़ाकत देख धीरे  से  खिसक लिए और संसद के शीत- कालीन  सत्र की तरह बिना किसी निर्णय के चौबे जी की चौपाल स्थगित हो गयी अगली तिथि तक के लिए ! 
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बुधवार, 9 मार्च 2011

हिन्‍दी ब्‍लॉगरों, प्रेमियों, साहित्‍यकारों : 30 अप्रैल 2011 को दिल्‍ली के हिन्‍दी भवन में मिल रहे हैं

सहर्ष सूचित किया जा रहा है कि देश का विशिष्ट प्रकाशन संस्थान हिन्दी साहित्य निकेतन 50 वर्षों की अपनी विकास-यात्रा और गतिविधियों को आपके समक्ष प्रस्तुत करने के लिए 30 अप्रैल २०११ दिन शनिवार   को दिल्ली के हिंदी भवन में एक दिवसीय भव्य आयोजन कर रहा है। इस अवसर पर देश और विदेश में रहने वाले लगभग 400 ब्लॉगरों का सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है, जिसमें परिकल्‍पना समूह के तत्‍वावधान में इतिहास में पहली बार आयोजित ब्लॉगोत्‍सव 2010 के अंतर्गत चयनित 51 ब्लॉगरों का ‘सारस्‍वत सम्मान’ भी किया जाएगा।

इस अवसर पर लगभग 400 पृष्ठों की पुस्तक ( हिंदी ब्लॉगिंग : अभिव्यक्ति की नई क्रान्ति), हिंदी साहित्य निकेतन की द्विमासिक पत्रिका  ‘शोध दिशा’ का विशेष अंक ( इसमें ब्लॉगोत्सव -२०१० में प्रकाशित सभी प्रमुख  रचनाओं को शामिल किया गया है) मेरा हिंदी उपन्यास (ताकि बचा रहे गणतंत्र ), रश्मि प्रभा के संपादन में प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका (वटवृक्ष ) के प्रवेशांक के साथ-साथ और कई महत्वपूर्ण किताबों का लोकार्पण होना है !इस कार्यक्रम में विमर्श,परिचर्चाएँ एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र होंगे। पूरे कार्यक्रम का जीवंत प्रसारण इंटरनेट के माध्यम से पूरे विश्व में किया जाएगा। आप इस कार्यक्रम का आनंद अपने इंटरनेट भी उस दिन ले पायेंगे। जिसकी रिकार्डिंग बाद में भी नेट पर ही मौजूद रहेगी। इंटरनेट पर उपस्थिति को भी आपकी मौजूदगी माना जायेगा। पर यह गिनती दिल्‍ली-एनसीआर और देश से बाहर वालों के लिए ही लागू होगी।  कार्यक्रम का विवरण निम्नवत हैः
दिन व समयः शनिवार 30 अप्रैल 2011, दोपहर 3 बजे से रात्रि‍ 8.30 बजे तक।
रात्रि‍ 8 .30 बजे भोजन।
स्थानः हिंदी भवन , विष्‍णु दिगम्‍बर मार्ग, नई दिल्ली-110002

हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान-२०१०


उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर हिन्दी ब्लॉगिंग के उत्‍थान में अविस्मरणीय योगदान हेतु उपस्थित 51 ब्लॉगरों को मोमेंटो, सम्मान पत्र, पुस्तकें, शॉल और एक निश्चित धनराशि के साथ सम्मानित करने की योजना है।

सम्मानित किये जाने वाले ब्लॉगरों का विवरण -

1.         वर्ष का श्रेष्ठ नन्हा ब्लॉगर - अक्षिता पाखी, पोर्टब्लेयर
2.         वर्ष के श्रेष्ठ कार्टूनिस्ट - श्री काजल कुमार, दिल्ली
3.         वर्ष की श्रेष्ठ कथा लेखिका - श्रीमती निर्मला कपिला, नांगल (पंजाब)
4.         वर्ष के श्रेष्ठ विज्ञान कथा लेखक - डॉ. अरविन्द मिश्र, वाराणसी
5.         वर्ष की श्रेष्ठ संस्मरण लेखिका - श्रीमती सरस्वती प्रसाद, पुणे
6.         वर्ष के श्रेष्ठ लेखक - श्री रवि रतलामी, भोपाल
7.         वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका (यात्रा वृतान्त) - श्रीमती शिखा वार्ष्णेय, लंदन
8.         वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (यात्रा वृतान्त) - श्री मनोज कुमार, कोलकाता
9.         वर्ष के श्रेष्ठ चित्रकार - श्रीमती अल्पना देशपांडे, रायपुर
10.       वर्ष के श्रेष्ठ हिन्दी प्रचारक - श्री शास्त्री जे.सी. फिलिप, कोच्ची, केरल
11.       वर्ष की श्रेष्ठ कवयित्री - श्रीमती रश्मि प्रभा, पुणे
12.       वर्ष के श्रेष्ठ कवि - श्री दिवि‍क रमेश, दिल्ली
13.       वर्ष की श्रेष्ठ सह लेखिका - सुश्री शमा कश्यप, पुणे
14.       वर्ष के श्रेष्ठ व्यंग्यकार - श्री अविनाश वाचस्पति, दिल्ली
15.       वर्ष की श्रेष्ठ युवा गायिका - सुश्री मालविका, बैंगलोर
16.       वर्ष के श्रेष्ठ क्षेत्रीय लेखक - श्री संजीव तिवारी, दुर्ग (म. प्र. )
17.       वर्ष के श्रेष्ठ क्षेत्रीय कवि - श्री एम. वर्मा, वाराणसी
18.       वर्ष के श्रेष्ठ गजलकार - श्री दिगम्बर नासवा, दुबई
19.       वर्ष के श्रेष्ठ कवि (वाचन) - श्री अनुराग शर्मा, पिट्सबर्ग अमेरिका
20.       वर्ष की श्रेष्ठ परिचर्चा लेखिका - श्रीमती प्रीति मेहता, सूरत
21.       वर्ष के श्रेष्ठ परिचर्चा लेखक - श्री दीपक मशाल, लंदन
22.       वर्ष की श्रेष्ठ महिला टिप्पणीकार - श्रीमती संगीता स्वरूप, दिल्ली
23.       वर्ष के श्रेष्ठ टिप्पणीकार - श्री हिमांशु पाण्डेय, सकलडीहा (यू.पी.)
24-25-26.  वर्ष की श्रेष्ठ उदीयमान गायिका – खुशबू/अपराजिता/इशिता, पटना (संयुक्त रूप से)
27.       वर्ष के श्रेष्ठ बाल साहित्यकार - श्री जाकिर अली 'रजनीश', लखनऊ
28.       वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार  (आंचलिक) - श्री ललित शर्मा, रायपुर
29.       वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार (गायन) - श्री राजेन्द्र स्वर्णकार, बीकानेर, राजस्थान
30-31.  वर्ष के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार - डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक', खटीमा एवं आचार्य संजीव वर्मा सलिल,       भोपाल (संयुक्त रूप से)
32.       वर्ष की श्रेष्ठ देशभक्ति पोस्ट - कारगिल के शहीदों के प्रति ( श्री पवन चंदन)
33.       वर्ष की श्रेष्ठ व्यंग्य पोस्ट - झोलाछाप डॉक्टर (श्री राजीव तनेजा)
34.       वर्ष के श्रेष्ठ युवा कवि - श्री ओम आर्य, सीतामढ़ी बिहार
35.       वर्ष के श्रेष्ठ विचारक - श्री जी.के. अवधिया, रायपुर
36.       वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग विचारक - श्री गिरीश पंकज, रायपुर
37.       वर्ष की श्रेष्ठ महिला चिन्तक - श्रीमती नीलम प्रभा, पटना
38.       वर्ष के श्रेष्ठ सहयोगी - श्री रणधीर सिंह सुमन, बाराबंकी
39.       वर्ष के श्रेष्ठ सकारात्मक ब्लॉगर (पुरूष) – डॉ. सुभाष राय, लखनऊ  (उ0प्र0)
40.       वर्ष की श्रेष्ठ सकारात्मक ब्लॉगर (महिला) - श्रीमती संगीता पुरी, धनबाद
41.       वर्ष के श्रेष्ठ तकनीकी ब्लॉगर - श्री विनय प्रजापति, अहमदाबाद
42.       वर्ष के चर्चित उदीयमान ब्लॉगर - श्री खुशदीप सहगल, दिल्ली
43.       वर्ष के श्रेष्ठ नवोदित ब्लॉगर - श्री राम त्यागी, शिकागो अमेरिका
44.       वर्ष के श्रेष्ठ युवा पत्रकार - श्री मुकेश चन्द्र, दिल्ली
45.       वर्ष के श्रेष्ठ आदर्श ब्लॉगर - श्री ज्ञानदत्त पांडेय, इलाहाबाद
46.       वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग शुभचिंतक - श्री सुमन सिन्हा, पटना
47.       वर्ष की श्रेष्ठ महिला ब्लॉगर - श्रीमती स्वप्न मंजूषा 'अदा', अटोरियो कनाडा
48.       वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉगर - श्री समीर लाल 'समीर', टोरंटो कनाडा
49.       वर्ष की श्रेष्ठ विज्ञान पोस्ट - भविष्य का यथार्थ (लेखक - जिशान हैदर जैदी)
50.       वर्ष की श्रेष्ठ प्रस्तुति - कैप्टन मृगांक नंदन एण्ड टीम, पुणे
51.       वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (हिन्दी चिट्ठाकारी विषयक पोस्ट) - श्री प्रमोद ताम्बट, भोपाल 


हिन्‍दी ब्‍लॉग प्रतिभा सम्‍मान-२०११

इसके अंतर्गत ग्यारह ब्लॉगरों के नाम तय किये गए हैं , जिन्हें हिंदी ब्लॉगिंग में
दिए जा रहे विशेष योगदान के लिए हिन्‍दी ब्‍लॉग प्रतिभा सम्‍मान प्रदान किया जायेगा : -

(१)     श्री श्रीश शर्मा (ई-पंडित), तकनीकी विशेषज्ञ, यमुनानगर  (हरियाणा)
(२)   श्री कनिष्क कश्यप, संचालक ब्लॉगप्रहरी, दिल्ली
(३)   श्री शाहनवाज़ सिद्दिकी, तकनीकी संपादक, हमारीवाणी, दिल्ली
(४)   श्री जय कुमार झा, सामाजिक जन चेतना को ब्लॉगिंग से जोड़ने वाले ब्लॉगर, दिल्ली
(५)   श्री सिद्दार्थ शंकर त्रिपाठी, महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
(६)   श्री अजय कुमार झा, मीडिया चर्चा से रूबरू कराने वाले ब्लॉगर, दिल्ली
(७)   श्री रविन्द्र पुंज, तकनीकी विशेषज्ञ, यमुनानगर (हरियाणा)
(८)   श्री रतन सिंह शेखावत, तकनीकी विशेषज्ञ, फरीदाबाद (हरियाणा )
(९)   श्री गिरीश बिल्लौरे 'मुकुल', वेबकास्ट एवं पॉडकास्‍ट विशेषज्ञ, जबलपुर
(१०) श्री पद्म सिंह, तकनीकी विशेषज्ञ, दिल्ली
(११) सुश्री गीताश्री, नारी विषयक लेखिका, दि‍ल्ली

हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में इनके योगदान को चिन्हित करने के लिए हिन्‍दी साहित्‍य निकेतन और नुक्‍कड़ डॉट कॉम की ओर से हिन्‍दी ब्‍लॉग प्रतिभा सम्‍मान आरंभ किया गया है।
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  • डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल, सचिव, हिंदी साहित्य निकेतन, बिजनौर 


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सोमवार, 7 मार्च 2011

दैनिक जनसंदेश टाईम्स में उमेश चतुर्वेदी,शिरीष खरे, डा. मोनिका शर्मा और गौतम राजरिशी

डा. सुभाष राय के मुख्य संपादन में प्रकाशित दैनिक जनसंदेश टाईम्स हिंदी ब्लॉगिंग के प्रति अपनी कटिबद्धता को बनाए रखते हुए इस रविवार को भी अर्थात दिनांक ०६.०३.२०११ को ब्लॉग कोना  स्तंभ के अंतर्गत हिंदी के तीन महत्वपूर्ण ब्लॉगर  क्रमश: उमेश चतुर्वेदी,शिरीष  खरे , डा. मोनिका शर्मा और गौतम राजरिशी के ब्लॉग पर प्रकाशित पोस्ट को स्थान दिया है !

इसबार उमेश चतुर्वेदी के ब्लॉग मीडिया मीमांसा से "कथा-कहानी क्यों लिख देते हैं गाली " / शिरीष खरे के ब्लॉग दोस्त से "गुरु जी मारे धम्म-धम्म, विद्या आये छम्म-छम्म " / डा. मोनिका शर्मा के ब्लॉग परवाज़ ...शब्दों के पंख  से " बरात में गोली क्यों चलाते हैं लोग" और गौतम राजरिशी के ब्लॉग " पाल ले एक रोग नादाँ " से तीन ख़्वाब, दो फोन कॉल्स और एक रुकी हुयी घड़ी"  की  चर्चा हुयी है , लीजिये आप भी पढ़िए और बताईये कि दैनिक जनसंदेश की ये पहल कैसी है ?


रविवार, 6 मार्च 2011

धत , जिगर से कहीं बीडी जलिहें ?


जैसा की आप सभी को विदित है कि " दैनिक जनसंदेश टाईम्स" में प्रत्येक रविवार को मेरा नियमित व्यंग्य कोना " चौबे की चौपाल " प्रकाशित होता है , पिछले  रविवार को आप सभी ने पढ़ा "मौसम में भी मिलावट" .....और- 




चौबे जी की चौपाल में आज : 

 धत , जिगर से कहीं बीडी जलिहें ?
आज लखनऊ से लौटे हैं चौबे जी और हाथ-मुह धोके बईठ गए अपने चबूतरा पर कहें कि आज की चौपाल के का मुद्दा है राम भरोसे ? राम भरोसे के जब कुछ ना समझ मा आया तो बोला मुद्दा का है महाराज, कुछो मुद्दा  नाही है आज आपो थके हैं चौबे बाबा, कुछ बतकही सुनाईये लखनऊ की !
का बताएं गुलटेन वा, क़ल शनिश्चर   का दिन था, जनाबे करते हो हाफ टाईम के बाद कहीं कुछ भी काम नहीं होता , सोचा कि कोई मित्र मिल जाये तो सिनेमा देखने चलें, पर शाम तक कोई मित्र ऐसा नही मिला जिसके साथ जाया जा सके. थक-हार कर शाम विताने के उद्देश्य से चला गया अपने एक करीबी मित्र प्रदुमन तिवारी के यहाँ, ई  सोचकर कि कुछ मित्र एक साथ बैठकर जब विचारों का आदान- प्रदान करेंगे तो शाम खुश्ग्बार गुजर जायेगी . मैं प्रदुमन के घर के बाहर लॉबी में कुछ मित्रों के साथ बैठा गप्पे मार रहा था कि अचानक एक ऐसी घटना घटी कि मैं सोचने पर मजबूर हो गया. आप भी सुनेंगे तो नि: संदेह मजबूर हो जायेंगे सोचने पर. हुआ यह कि उसके यहाँ एक कामवाली आयी थी जो एक कोने में बैठकर बीडी पी रही थी और प्रदुमन का सबसे छोटा बेटा जो महज सात साल का है , उससे गपिया रहा था , उसे हिदायतें दे रहा था कि- " ये चाची! अपनी बीडी को जिगर से क्यों नहीं जलाती हो, माचिस के पैसे बचेंगे ?"यह सुनकर वह कामवाली पहले तो शरमाई फिर अपने कथई दातों को निपोरती हुई बोली- " धत्त , कइसन बात करत हौ बबुआ! जिगर से कहीं बीडी जलिहें ?" वह बालक इसप्रकार बातें कर रहा था जैसे आत्म विश्वास से लबरेज हो. उसने मासूमियत भरी निगाह डालते हुए कहा कि- " जलेगी न चाची , कोशिश तो करो !"
 वहाँ बैठे सभी लोग यह दृश्य देख अपनी हंसी को रोक नही पाए और खिलखिलाकर हंसने लगे, ठहाका लगाने लगे. वह बालक शायद यह सोचकर वहाँ से भागा कि लोग उसका मजाक उडाने लगेंगे. हमरी हंसी की गूँज से ऊ  कामवाली भी शर्मा गयी.
लोगों ने उस मासूम की बातें भले ही उस समय गंभीरता से न लिए हों लेकिन यह सच है कि दृश्य - मीडिया जो किसी भी समाज की सु संस्कारिता का आईना होता है, वही जब द्वि अर्थी संवादों के माध्यम से समाज को गंदा करने की कोशिश करे तो अन्य से क्या अपेक्षा की जा सकती है . आज यह हमारे समाज के लिए वेहद विचारणीय विषय है. ऐसे समय में जब फैला हो हमारे इर्द- गिर्द वीभत्स प्रभाव सिनेमा का , हम कैसे एक सुन्दर और खुशहाल सह- अस्तित्व के साथ- साथ सांस्कारिक समाज की परिकल्पना कर पायेंगे?
का रे बटेसर गलत कहत हईं का ?
नाही महाराज आप और गलत ?
तो ठीक है इसी बतकही के साथ आज की चौपाल स्थगित, गाओ सब मिलकर बीडी जलाईले जिगर से पीया , जिगर मा .........!

() रवीन्द्र प्रभात

 
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