सोमवार, 30 मई 2011

हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम -ए- गुलिस्तां क्या होगा

 चौबे जी की चौपाल
हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम -ए- गुलिस्तां क्या होगा ?

गुलटेनवा हांफता हुआ आया और चौबे जी से लिपट कर लगा चिल्लाने, महाराज गजब होई गवा !
का हुआ रे काहे हांफ रहा है ?
अरे का बताएं महाराज, रामभरोसे की मेहरारू के भाई की साली गुजर गयी, इतना सुनत पूरी चौपाल ठहाकों में तब्दील हो गयी, कईसे मारी ? पान की थूक पिच से फेंकते हुए पूछा बटेसर..
नकली दबाई से, इतना सुनते ही चौबे जी से रहा नहीं गया, बोले -
देख मनमोहनी खीस  मत निपोरो तुम लोग, चिरई के जान जाए लड़िका के खिलौना...तुम दब मरोगे एक दिन, कोई नहीं बचेगा !
तभी बोला असेसर, कि चौबे बाबा ! वैसे जब काफी संख्या में लोग मरेंगे , तो नरक हाउस फूल होना लाजमी है , ऐसे में यमराज की ये मजबूरी होगी कि सभी के लिए नरक में जगह की व्यवस्था होने तक स्वर्ग में ही रखा जाये । तो चलिए स्वर्ग में चलने की तैयारी करते हैं ।

संभव है आप सभी हमारी मूर्खता पर हँसेंगे , मुस्कुरायेंगे , ठहाका लगायेंगे और हम बिना यमराज की प्रतीक्षा किये खुद अपनी मृत्यु का टिकट कराएँगे । 

जी हाँ , हमने मरने की पूरी तैयारी कर ली है गुरुदेव , शायद आप भी कर रहे होंगे , आपके  रिश्तेदार भी ? यानी कि पूरा समाज ? अन्य किसी मुद्दे पर हम एक हों या ना हों मगर वसुधैव कुटुम्बकम की बात पर एक हो सकते हैं , मध्यम होगा न चाहते हुये भी मरने के लिए एक साथ तैयार होना ।

तो तैयार हो जाएँ मरने के लिए , मगर एक बार में नहीं , किश्तों में । आप तैयार हैं तो ठीक , नहीं तैयार हैं तो ठीक , मरना तो है हीं , क्योंकि पक्ष- प्रतिपक्ष तो अमूर्त है , वह आपको क्या मारेगी , आपको मारने की व्यवस्था में आपके अपने हीं जुटे हुये हैं।

यह मौत दीर्घकालिक है , अल्पकालिक नहीं । चावल में कंकर की मिलावट , लाल मिर्च में ईंट - गारे का चूरन, दूध में यूरिया , खोया में सिंथेटिक सामग्रियाँ , सब्जियों में विषैले रसायन की मिलावट और तो और देशी घी में चर्वी, मानव खोपडी, हड्डियों की मिलावट क्या आपकी किश्तों में खुदकुशी के लिए काफी नहीं ?भाई साहब, क्या मुल्ला क्या पंडित इस मिलावट ने सबको मांसाहारी बना दिया , अब अपने देश में कोई शाकाहारी नहीं , यानी कि मिलावट खोरो ने समाजवाद ला दिया हमारे देश में , जो काम सरकार साठ वर्षों में नहीं कर पाई वह व्यापारियों ने चुटकी बजाकर कर दिया , जय बोलो बईमान की ।

चौबे जी ने चुप्पी तोड़ी और कहा, सही कह रहे हो असेसर, अगर तुम जीवट वाले निकले और मिलावट ने तुम्हारा कुछ भी नही बिगारा तो नकली दवाएं तुमको मार डालेगी बचवा । यानी कि मरना है , मगर तय तुमको करना है कि तुम कैसे मरना चाहते हो एकवार में या किश्तों में? भूखो मरना चाहते हो या या फिर विषाक्त और मिलावटी खाद्य खाकर? बीमारी से मरना चाहते हो या नकली दवाओं से ? आतंकवादियों के हाथों मरना चाहते हो या अपनी हीं देशभक्त जनसेवक पुलिस कि लाठियों , गोलियों से ?

इस मुगालते में मत रहना बचवा कि पुलिस तुम्हारी दोस्त है। नकली इनकाउंटर कर दिए जाओगे , टी आर पी बढाने के लिए मीडियाकर्मी कुछ ऐसे शव्द जाल बुनेंगे कि मरने के बाद भी तुम्हारी आत्मा को शांति न मिले ।

मगर नेताओं का क्या होगा महाराज ? बोला बटेसर

होगा क्या नेता और आदमी में अंतर है बचवा , तुम ही बताओ कि एक नेता ने रबड़ी में चारा मिलाया, खाया कुछ हुआ, नही ना ? एक नेताईन ने साडी में बांधकर ईलेक्त्रोनिक सामानों को गले के नीचे उतारा , कुछ हुआ नही ना ? एक ने पूरे प्रदेश की राशन को डकार गया कुछ हुआ नही ना ? एक ने कई लाख वर्ग किलो मीटर धरती मईया को चट कर गया कुछ हुआ नही ना ? और तो और अलकतरा यानी तारकोल पीने वाले एक नेता जीं आज भी वैसे ही मुस्करा रहे हैं जैसे सुहागरात में मुस्कुराये थे ।

तभी बीच में टोकते हुए बोला गुलातें वा, कि -भैया जब उन्हें कुछ नही हुआ तो छोटे - मोटे गोरखधंधे से हमारा क्या होगा? कुछ नही होगा टेंसन - वेंसन नही लेने का । चलने दो जैसे चल रही है दुनिया ।

इसपर नहीं रहा गया बटेसर को, बोला ,भाई कैसे चलने दें , अब तो यह भी नही कह सकते के अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता । क्योंकि मिलावट खोरो ने कुछ भी ऐसा संकेत नही छोड़ रखा है जिससे पहचान की जा सके की कौन असली है और कौन नकली ?

जिन लोगों से ये आशा की जाती थी की वे अच्छे होंगे , उनके भी कारनामे आजकल कभी ऑपरेशन तहलका में, ऑपरेशन दुर्योधन में, ऑपरेशन चक्रव्यूह में , आदि- आदि में उजागर होते रहते हैं । अब तो देशभक्त और गद्दार में कोई अंतर ही नही रहा। हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम - गुलिश्ता क्या होगा ?

यह सब सुनकर मायूस हो गए चौबे जी और अगली तिथि तक के लिए चौपाल को स्थगित कर दिया !

() रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स/२९.०५.२०११ )

शनिवार, 28 मई 2011

उपनिषद् की तरह है यह...



18 दिन शेष 

और प्राप्त हो चुकी है अबतक 204  रचनाएँ 

शामिल हो चुके हैं 92 रचनाकार  

प्राप्त हो चुके हैं हर क्षेत्रों के 18 विशिष्ट व्यक्तियों के साक्षात्कार

और अनेकानेक शुभकामनाएं ....अनेकानेक प्यार

हमारा लक्ष्य है !

शामिल हो हर चिट्ठाकार...सबको मिले मान-सम्मान-आत्मसम्मान

और बने ब्लॉगिंग के इतिहास में एक नया कीर्तिमान !

क्या आप अभी तक शामिल नहीं हुए ?
देर किस बात की
भेज दीजिए- 
अपनी-अपनी विशिष्टता के अनुसार !
कुछ नया इस बार ! !

हमारा पता है :

( कम से कम दो रचनाएँ या किसी विशिष्ट व्यक्ति का साक्षात्कार अपने एक पासपोर्ट साईज के फोटोग्राफ के साथ संक्षिप्त परिचय भेजना न भूलें )

यहाँ किलिक करके देखिये परिकल्पना ब्लॉगोत्सव  का मंच सजाया जा रहा है ब्लॉग प्रहरी के द्वारा,उन्हें सहयोग और समर्थन मिल रहा है हमारीवाणी से और शुभकामनाएं प्राप्त हो रही है आप सबकी .....

इस बार ब्लॉगोत्सव के इस मंच पर होगा ऐसा धमाल
की आप कहने पर हो जायेंगे मजबूर की यार !
सचमुच हो गया कमाल !

संपादक मंडल का गठन हो गया है
निर्णायक मंडल का गठन प्रक्रिया में है
मगर अभी हम नहीं बताएँगे
क्योंकि ०१ जून के बाद आप स्वयं जान जायेंगे

खैर छोडिए.... अब ये पढ़िए
किसके मुख से फूटे हैं ये शब्द :

रविवार, 22 मई 2011

गंदा है पर धंधा है ।

चौबे जी की चौपाल

गंदा है पर धंधा है ।

चौपाल आज चटकी हुई है । चुहुल भी खुबई है । फुलि के कुप्पा हैं चौबे जी, जबसे सुने हैं कि दिग्गी राजा के ओसामा जी को ओबामा के कारिंदों ने मार गिराया है। मनमोहनी मुस्कान बिखेरते हुए कह रहे हैं कि " बकरे को एक न एक दिन तो जबह होना ही था, मगर ससुरी साईत नहीं बन पा रही थी ।"

"ऊ कईसे चौबे जी ?" पूछा राम भरोसे ।

ऊ अईसे बचवा कि देखो रावण को मारा राम ने ....दोनों के नाम का पहिला अक्षर र था, कृष्ण ने मारा कंश को......दोनों के नाम का पहिला अक्षर क था, गोडसे ने मारा गांधी को, दोनों के टाईटल का पहिला अक्षर जी था, प्रेमदासा ने मारा प्रभाकरण को,दोनों के टाईटल का पहिला अक्षर प्र था....यही कारण था कि ओसामा को मारने में बुश फुस्स हो गए और ओबामा रियल गुड फील हो गए यानी कि साईत के मुताबिक़ ओसामा को मारने में ओबामा की भूमिका तो होनी ही थी ....इसी को कहते हैं बचवा साईत, का समझे ?

"समझ गया महाराज, मगर एक बात को लेकर हमको अनकुस हो रहा है ।" मायूस होके बोला राम भरोसे ।

"कईसा अनकुस राम भरोसे ? खुलके बताओ न ss"

बात ई है महाराज कि " सांप को मारो और मकान न बदलो तो का फरक पडेगा ?"

तोहरी बात मा पूरा दम्म है राम भरोसे भईया, विल्कुल पते की बात कहे हो जवन देश मा अलग-अलग नाम से न जाने कितने ओसामा जी फन उठाये घूम रहे हैं ऊ देश मां एक ओसामा के मर जाने से यानी कि झींगा का एगो गोर टूट जाने से का फरक पडेगा ? अब देखो न s s ...सबसे बड़ा आतंकवादी तो पाकिस्तान के हुक्मरान है, ससुरा जहां चाहत है आतंकवादी भेज देत हैं , जिसे चाहत हैं लूट लेत हैं,जेकरा चाहत हैं क़त्ल करा देत हैं अऊर तो अऊर अमेरिका से आतंकवादी के खात्मा खातिर पईसा लेत हैं अऊर ऊ पईसा के इस्तेमाल ससुर आतंकवादियों की ट्रेनिंग में खर्च करत हैं, उन्हें संरक्षण देत हैं अऊर बेशरम जईसन दांत निपोर के कहत हैं कि हम्म स्थायी शान्ति की ओर बढ़ रहे हैं । एक तो दोगला चरित्र यानी करेला अऊर ऊपर से वेशर्मी का नीम चढ़ा हुआ......बोला गुलटेनवा ।

तुम्हारे कहने का आशय हम्म भी समझ गए बरखुरदार, कि तुम लक्षमण सिल्वेनिया के विज्ञापन की तरह पूरे घर को यानी कि पूरे पाकिस्तान को बदलना चाहते हो ? अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए पूछा रमजानी मियाँ ।

"रहमान मल्लिक हो या युशुफ राजा गिलानी सब हैं एक ही थैले के चाटते-बट्टे । सबसे बड़ा बेशर्म तो शुजा पाशा और उसके चमचे हैं ससुर, सात साल से ओसामा जीजा जी को अपने घर में बिठाए थे, काजू भुन भुन के खिलाये जा रहे थे, जाम से जाम टकराए जा रहे थे और उसी को पकड़ने के लिए ससुर अपने अमेरिकी बाबूजी के बटुआ में हाथ डाल रहे थे, यानी कि मूंछ भले उखड जाए , ऐंठ न जाए .....।" यह कहकर गजोधर धीरे से फुसफुसाया ।

चौबे जी को रहा नहीं गया, बोले " देख गजोधर, ई हाई लेवल की राजनीति है, तुम नाही समझोगे, मगर जब बात छिड़ ही गयी है तो बचवा बतायी देते हैं कि विज्ञापन में गन्दी कमीज को उजला करने का रास्ता बताया जाता है और राजनीति में साफ़ कमीज को गंदा करने के रास्ते तलाशे जाते हैं । बड़ी गन्दी चीज है ई ससुरी राजनीति । भारत हो या पाकिस्तान दोनों देश के नेता हो गए हैं ससुर बईमान । राजनीति में अब साफ़ कमीज दो-चार ही बची है पर जो है भी सबकी आँखों में खटकती है । खासकर उनकी गजोधर जो पैर के नाखून से सर के बाल तक गन्दगी में सराबोर हैं । वे कोई मौक़ा नहीं चुकते, वे गंदा सोचते हैं,गंदा बोलते हैं, गंदा करते हैं .....मगर का करोगे बचवा गंदा है पर धंधा है ....का धनेसर गलत कहत हईं का ?"

"अरे नाही चौबे बाबा आप अऊर गलत, ई नाही हो सकत....हम्म त s s बस एतना जानत हईं कि देश की राजनीति हो चाहे विदेश की सब हैं ससुर बाबन गज के.......।" बोला धनेसर ।

मगर एक बात तो मानही के परी चौबे जी कि अपने देश की राजनीति से बहुत दबंग है ससुरी पाकिस्तान की राजनीति, काहे कि हमरे देश मा आतंकवादी, गुंडे, बदमाश जेल में जाकर अपने को सुरक्षित करते हैं, गुलगुली खाते हैं अफजल गुरु अऊर कसाब की तरह ...... मगर पाकिस्तान में जेल-वेळ कुछ नहीं होता, जो होता है मंजूरे हुक्मरान होता है । जिसको संरक्षण दे दिया फिर उसे न तो इनकम टेक्स वाले परेशान करेंगे और न हाऊस टेक्स वाले ,सरकारी अधिकारी, अफसरशाह, निजी क्षेत्र के कर्मचारी, सिविल सोसाइटी और मीडिया किसकी कूबत जो झाँक ले संरक्षण प्राप्त घरों के भीतर ... ऐसा दुनिया में पाकिस्तान के अलावा कहां संभव है ?"

"सही कह रहे हो बचवा,वह पाकिस्तान में ही संभव है तो जेल के भीतर मलाई काटने की सुविधा हिन्दुस्तान के अलावा कहाँ संभव है ? जेल में आराम फरमाओ और पूरी दुनिया में आतंक का गैंग चलाओ । मोबाइल सुविधा इतनी आसानी से उपलब्ध हो जायेगी कि आराम से भारतीय जेल में बैठकर पूरी दुनिया में ऑपरेशन संचालित कराते जाओ ....करवाते जाओ और राजनेताओं के गुण गाते जाओ ......अब देखो न हमारे कसाब भाई कितने आराम से जीवनयापन कर रहे हैं ? हमरे देश मां जेल जाने वाला दामाद से जादा इज्जत पाता है,जेल में रहकर आराम से पूरी दुनिया में आतंक का गैंग चलाता है । मोबाइल सुविधा इतनी आसानी से उपलब्ध हो जाती है कि वह आराम से भारतीय जेल में बैठकर पूरी दुनिया में ऑपरेशन संचालित कर सकता है । हम्म तो इतना ही जानते हैं कि हिन्दुस्तान हो या पाकिस्तान दोनों जगह के नेता हैं ससुर बईमान ...कोई सीधे-सीधे नाक पकड़ता है तो कोई घुमा के बचवा ।"

इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले इतबार तक के लिए स्थगित कर दिया ।

रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक  जनसंदेश  टाइम्स/२२.५.२०११ )

गुरुवार, 19 मई 2011

परिकल्पना ब्लॉग उत्सव-2011 हेतु रचनाएँ आमंत्रित

ब्लॉगोत्सव और परिकल्पना सम्मान को जारी रखने और न रखने को लेकर कतिपय चिट्ठाकारों/साहित्यकारों की ई-मेल और टिपण्णी के माध्यम से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई, सभी टिप्पणीकारों के प्राप्त विचारों के अवलोकनोपरांत मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि ब्लॉगोत्सव को इसवर्ष जारी ही न रखा जाए, वल्कि इसे और सहज बनाते हुए संपूर्ण पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक किया जाए ! साथ ही मैं इस निष्कर्ष पर भी पहुंचा हूँ कि परिकल्पना सम्मान-२०११ के लिए पूर्व की भांति उन्ही रचनाकारों में से ५१ सर्जकों का चयन किया जाए जो ब्लॉगोत्सव-२०११ में हिस्सा लेंगे , यानी ब्लॉगोत्सव में हिस्सा न लेने वाले रचनाकार इस बार भी इस सम्मान से वंचित रहेंगे !
इस बार कुछ नया करने की सोच के अंतर्गत ब्लॉगोत्सव-२०११ हेतु निर्णायक मंडल का गठन किया जा रहा है, शीघ्र ही इसकी सूचना संप्रेषित की जायेगी .
 
 मेरा मानना है कि सद्भाव ही वह शक्ति है जिसके बल पर यह हिन्दी ब्लॉग जगत सबल होगा ।इन्हीं उद्देश्यों के दृष्टिगत हम १५ जून-२०११ से परिकल्पना .कॉम पर मनाने जा रहे हैं "परिकल्पना ब्लॉग उत्सव-2011"

•इस बार भी इस उत्सव का नारा होगा- "अनेक ब्लॉग नेक ह्रदय"

 
•इस उत्सव में हम प्रस्तुत करेंगे कुछ कालजयी रचनाएँ , विगत दो वर्षों में प्रकाशित कुछ महत्वपूर्ण ब्लॉग पोस्ट , ब्लॉग लेखन से जुड़े अनुभवों पर वरिष्ठ चिट्ठाकारों की टिप्पणियाँ ,साक्षात्कार , मंतव्य आदि ।


•विगत वर्ष-२०१०  में ब्लॉग पर प्रकाशित कुछ महत्वपूर्ण कवितायें, गज़लें , गीत, लघुकथाएं , व्यंग्य , रिपोर्ताज, कार्टून आदि का चयन करते हुए उन्हें प्रमुखता के साथ हम ब्लॉग उत्सव के दौरान प्रकाशित भी करेंगे ।


•कुछ महत्वपूर्ण चिट्ठाकारों की रचनाओं को स्वर देने वाले पुरुष या महिला ब्लॉगर के द्वारा प्रेषित ऑडियो/वीडियो भी प्रसारित करेंगे ।


•उत्सव के दौरान प्रकाशित हर विधा से एक-एक ब्लॉगर का चयन कर , गायन प्रस्तुत करने वाले एक गायक अथवा गायिका का चयन कर तथा उत्सव के दौरान सकारात्मक सुझाव /टिपण्णी देने वाले श्रेष्ठ टिप्पणीकार का चयन कर उन्हें सम्मानित किया जाएगा ।


•साथ ही हिन्दी की सेवा करने वाले कुछ वरिष्ठ चिट्ठाकारों को विशेष रूप से सम्मानित किये जाने की योजना है ।


•यह उत्सव दो महीने तक परिकल्पना.कॉम पर चलेगा ।

एक निवेदन :  महत्वपूर्ण  संस्कृतिकर्मियों/समाजसेवियों/साहित्यकारों /चिट्ठाकारों का साक्षात्कार भेजकर इस उत्सव को गरिमा प्रदान करें

इस उत्सव में शामिल होने के इच्छुक चिट्ठाकारों/रचनाकारों से निवेदन है क़ि वे अपनी कम से कम दो रचनाएँ ( यथा साक्षात्कार,कविता, कहानी, लघुकथा, व्यंग्य,संस्मरण,आलेख,विमर्श आदि ) एक ताज़ा फोटोग्राफ और अपने बारे में संक्षिप्त परिचय के साथ निम्न ई-मेल आई डी पर प्रेषित करें :
parikalpanaa@gmail.com
 
ब्लॉगोंत्सव से संवंधित हर प्रकार की जानकारी अथवा सुझाव हेतु उपरोक्त ई-मेल आई डी का ही प्रयोग करें .... 
 
रचनाएँ भेजने की अंतिम तिथि : ०१ जून २०११

सोमवार, 16 मई 2011

क्या परिकल्पना सम्मान को बंद कर दिया जाए ?

जैसा कि आप सभी को विदित है कि विगत वर्ष परिकल्पना पर ब्लॉगोंत्सव के नाम से एक सार्वजनिक उत्सव मनाया गया, जिसमें ३०० से ४०० के बीच हिंदी चिट्ठाकार शामिल हुए, उनमें से ५१ चिट्ठाकारों का चयन करते हुए सम्मानित करने का निर्णय लिया गया.....यह मेरी प्रतिबद्धता थी कि प्रत्येक वर्ग से मैं उन्हीं चिट्ठाकारों का चयन करूँ जो ब्लॉगोंत्सव में शामिल हुए हों, वही हुआ भी और चयनित ५१ चिट्ठाकारों को एक सार्वजनिक मंच से सारस्वत सम्मान किया गया, जो कहते हैं कि पारदर्शिता नहीं बरती गयी उन्हें निम्नलिखित लिंक पर गौर कर लेना चाहिए :




शुक्रवार, १२ मार्च २०१०                                 
ब्लॉग उत्सव-2010 की परिकल्पना

बृहस्पतिवार, २५ मार्च २०१०
परिकल्पना ब्लॉग उत्सव-2010 की उद्घोषणा


शनिवार, ३ अप्रैल २०१०
परिकल्पना ब्लॉग उत्सव का आगाज १५ अप्रैल से             (ये हैं वरिष्ठ लेखिका निर्मला कपिला जी)

बृहस्पतिवार, १५ अप्रैल २०१०

शुक्रवार, ९ जुलाई २०१०
परिकल्पना सम्मान की उद्घोषणा १२ जुलाई से




(ये हैं अंतरजाल की मशहूर कवियित्री रश्मि प्रभा जी )
 
 

(ये हैं चर्चित लेखक प्रमोद ताम्बट )   








(ये  हैं गीतों  की समर्पित साधिका संगीता स्वरुप ) 

( ये हैं देश की चर्चित चित्रकार अल्पना देशपांडे,
 जिनका नाम लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकोर्ड में दर्ज है )












( ये हैं वरिष्ठ संस्मरण लेखिका शमा कश्यप )  
                 ( ये हैं हिंदी के चर्चित बाल साहित्यकार जाकिर अली  )









( ये हैं छातिसगढ़ी लोक साहित्यकार संजीव तिवारी )       
 ( ये हैं वरिष्ठ साहित्यकार डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक )









(ये है हास्य-व्यंग्यकार राजिव तनेजा ) 
 (ये हैं वरिष्ठ चिट्ठाकार जी के अवधिया )









(ये हैं चर्चित चिट्ठाकार ललित शर्मा )  ( ये हैं व्यंग्यकार अविनाश वाचस्पति, जो स्वयं अपना और डा. सुभाष राय जी का सम्मान ग्रहण कर रहे हैं )










(ये हैं एडवोकेट रंधीर सिंह सुमन )          
   ( ये हैं धनवाद निवासी चर्चित महिला चिट्ठाकारा संगीता पुरी )










(ये हैं हर दिल अजीज चिट्ठाकार खुशदीप )
       ( ये हैं गिरीश बिल्लोरे मुकुल समीर लाल जी का सम्मान ग्रहण करते हुए )

ऐसे महत्वपूर्ण लेखकों व चिट्ठाकारों की सूची लंबी है जिसे आप निम्नलिखित लिंक पर जाकर देख -पढ़ सकते हैं, साथ ही मेरे, गिरिराज शरण अग्रवाल जी  और अविनाश वाचस्पति जी की संयुक्त मंत्रणा के पश्चात १३ और चिट्ठाकारों के साम्मान की सहमति बनी जिन्हीनें  हिंदी चिट्ठाकारी में बिभिन्न विषयों में विशेषज्ञता हासिल की है, यथा :








( ई-पंडित श्रीश शर्मा )    
(ब्लॉग प्रहरी के संचालक कनिष्क कश्यप )







(हमारी  वाणी  के  तकनीकी  संपादक शाहनवाज़ ) 
( सामाजिक जनचेतना को ब्लॉगिंग से जोड़ने वाले जय कुमार झा )










(मीडिया सलाहकार अजय कुमार झा )
   (तकनीकी विशेषज्ञ रविन्द्र पुंज )









(रतन सिंह शेखावत ) 
  (गिरीश बिल्लोरे मुकुल )








(पद्म सिंह )

(ब्लॉग संरक्षक बी.एस. पावला )









(मीडिया में ब्लॉग की समीक्षा करने वाले ब्लॉगर अरविन्द श्रीवास्तव )

परिकल्पना सम्मान पाने वालों में और भी कई महत्वपूर्ण नाम है, जैसे रवि रतलामी, समीर लाल समीर, सरस्वती प्रसाद ,डा. सुभाष राय , शिखा वार्ष्णेय,राम त्यागी, दिगंबर नासवा,दीपक मशाल,सुमन सिन्हा,शास्त्री जे. सी. फिलिप, ज्ञान दत्त पाण्डेय, सिद्दार्थ शंकर त्रिपाठी, डा. अरविन्द मिश्र, मनोज  कुमार,काव्य मजुषा अदा,प्रीति मेहता,रवि कान्त पाण्डेय, ओम आर्य    आदि ....!

अब आप खुलकर बताएं कि क्या इनलोगों का हिंदी चिट्ठाकारी में कोई योगदान नहीं है ?
क्या ये सभी सम्मान के हक़दार नहीं हैं ?
सम्मान ही तो किया है, अपमान नहीं किया, फिर भी आपको ऐसा लगता है कि मैंने या फिर अविनाश जी ने कुछ गलत कर दिया......तो बताएं कि क्या ब्लॉगोंत्सव या परिकल्पना/नुक्कड़  सम्मान को बंद कर दिया जाए ?
यदि हाँ तो क्यों ?
यदि नहीं तो क्यों ?

रविवार, 15 मई 2011

बाबा रामदेव की जादुई छडी





चौबे जी की चौपाल

बाबा रामदेव की जादुई छडी

आज अपने चौपाल में चौबे जी  नंगे बदन लुंगी लपेटे बैठे हैं । प्लेट में चाय उड़ेल कर सुड़प रहे हैं । तोंद कसाब  मामले  की  तरह आगे निकली हुई है । सफाचट सर, मूंछ  में चाय की बूँदें अटकी हुई मनमोहनी मुस्कान बिखरते हुए  मुँह ही मुँह बुदबुदा रहे हैं  - " इधर राजा ने बजा दिया बाजा और उधर लंगोट कस के फागुन खेलने की तैयारी में है रामदेव ...!
गुलटेनवा से रहा नहीं गया, बोला बाबा !


कतरी हुई सुपारी के दो लच्छे मुँह में झोंक कर बोले -चुप कर ससुर, बाबा मत कह , ई बाबागिरी के नाम से हमको उबकाई आती है, अब देखो क़ल अख्तरवा की दस साल की बच्ची ने टी वी पर  जब बाबा को   देखा और सवाल किया "पापा यह बाबा रामदेव कौन है ?  अख्तरवा ने  कहा के ऊ  एकसरसाइज़ से लोगों  का इलाज करते हैं...... बच्ची ने कहा कि मेरी फ्रेंड के पापा तो कह रहे थे ये दवा भी बेचते हैं ..... बच्ची का  दूसरा  सवाल था के "पापा बाबा रामदेव जब दवा बेचते हैं तो फिर एकसरसाइज़ क्यूँ करवाते हैं  और जब यह दोनों काम करते हैं  तो फिर नेतागिरी की बात टीवी पर क्यूँ करते हैं ?
है कोई जबाब तोहरे पास, बता .....!

नहीं है न कोई जबाब ?

अख्तरवा ने जब मुझसे पूछा था, तो हम भी जबाब नहीं दे पाए थे ....इतना सुनते ही राम भरोसे उठ खडा हुआ और भीगी हुई सुपारी की तरह मुरझाकर बोला-
 बाबा रामदेव देश के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने की बात करते हैं लेकिन खुद उनके पास कितनी सम्पत्ति ,कितनी दवा फेक्ट्रियां ,कितनी भूमि,कितने वाहन ,कितने रूपये हैं  उनका रुपया कहां से आता है और कहां जाता है  ,.....कोई बताएगा ?

तभी चुटकी लेते हुए चौबे जी  ने कहा, हमारे पास है जबाब !
चौंक गए सब, बोले बताईये महाराज-
" चौबे जी ने कहा पहिले सब कोई ५०-५० के हरिहर नोट दक्षिणा में निकालो फिर बताएँगे, बाबा चरित्रं मुफ्त में थोड़े न सुनायेंगे !"

सब ने ५०-५० के नोट निकाले, और चौबे जी को थमाया, कड़े-कड़े नोट देख चौबे जी का मन ललचाया और बाबा  बनने के नुस्खे उसने कुछ इसकदर फरमाया !"
भावना में मत बहो, जो भी कहो सच न कहो, ईश्वर का खौफ दिखाकर लूटो, क्योंकि हर लूटने वाला या तो अपराधी होता है या बाबा.....जिस दिन बाबा बन के दिखाओगे, सब जान जाओगे !"
बाकी क़ल बताएँगे जब आप लोग दक्षिणा में फिर कुछ लेकर आयेंगे !
महाराज ये तो ठगी है ....!

नहीं बच्चा यही तो बाबा की जादूई छडी है !

इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल को अगली तिथि तक के लिए स्थगित कर दिया !
() रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स/ १५ मई २०११ )

गुरुवार, 12 मई 2011

ब्लॉगोत्सव के दूसरे भाग का शुभारंभ नए अंदाज़ में .....


इसमें कोई संदेह नहीं कि विविधता से परिपूर्ण हिन्दी ब्लॉग जगत में बहुत कुछ समाहित हो चुका है जो अन्यत्र नहीं दिखाई देता । हिन्दी के चिट्ठों पर अनेक उपासना-पद्धतियों, पंथों , दर्शनों, लोक भाषाओं , साहित्य और कला के विकास ने हमारी वैचारिक समृद्धि और सम्पन्नता को सुदृढ़ किया है । वैसे तो हम टिप्पणियों के माध्यम से जुड़े हैं एक दूसरे ब्लॉगर  के साथ, किन्तु समयाभाव के कारण हम सारे अच्छे ब्लॉग पोस्ट नहीं पढ़ पाते । एक-दूसरे के विचारों को आत्मसात नहीं कर पाते । ऐसे में जरूरी है कि हम उत्सव का माहौल बनाए रखें, पारस्परिक सद्भाव का माहौल बनाए रखें और यदि आपस में मत भिन्नता की स्थिति है भी तो हम मन भिन्नता की स्थिति न आने दें ।
इसी को ध्यान में रखते हुए हिंदी चिट्ठाकारिता के इतिहास में पहली बार विगत वर्ष २०१० में अंतरजाल पर उत्सव की परिकल्पना की गयी, जसकी सफलता और सुखद एहसास से पूरा ब्लॉग जगत वाकिफ है ।

आइये इस वर्ष भी करते हैं कुछ इसी तरह की एक और नायाब पहल यानी ब्लॉगोत्सव-२०११ के दूसरे भाग का शुभारंभ एक नए अंदाज़ में ..... हम सभी को मिलकर प्रेम से लबालब उत्सव मनाना है, क्योंकि आज के भौतिकवादी युग में हमारी पूर्व निश्चित धारणाएं और मान्यताएं हमारी आँखों पर रंगीन चश्मों की मानिंद चढी रहती है और हमें वास्तविक सत्य को अपने ही रंग में देखने के लिए वाध्य करती है । प्रेम के नाम पर हमने इन बेड़ियों को सुन्दर आभूषण की तरह पहन रखा है , जबकि सच्ची मुक्ति के लिए इन बेड़ियों का टूटना नितांत आवश्यक है। यानी हमारा उत्तम मंगल इसी बात में है कि हम समय-समय पर अपने-अपने वाद-विवाद को दरकिनार करते हुए उत्सव मनाएं । यही कारण है इस उत्सव की उद्घोषणा का ...! इस उत्सव में हमारी कोशिश होगी कि हर  ब्लॉगर शामिल हो । हम आपके पोस्ट को प्रकाशित ही नहीं करेंगे अपितु विशेषज्ञों से प्राप्त मंतव्य के आधार पर प्रशंसित और पुरस्कृत भी करेंगे ।

 
इस उत्सव के नियम और शर्तें हम शीघ्र जारी करेंगे, किन्तु उससे पहले हम जानना चाहते हैं आपकी राय, कि कैसे किया जाए ब्लॉगोंत्सव२०११ का शुभारंभ नए अंदाज़ में, टिपण्णी बॉक्स खुला है जी भरके कहिये और दीजिये अपने अमूल्य सुझाव ....!

बुधवार, 11 मई 2011

यह दिल की बात है, दिल तक उतर जाएगी

कल  दस दिनों बाद कश्मीर की यात्रा से सपरिवार लौटा, सफ़र की थकान थी बस कुछ मेल ही पढ़ पाया , आज ब्लॉग जगत की सैर करने निकला तो विगत ३० अप्रैल को हुए हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान समारोह की क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं से रू-ब-रू हुआ, कईयों ने सुझाव भी दिए, निंदा भी की और कईयों ने आलोचनाएँ भी, किन्तु जिस प्रतिक्रिया से मैं स्तब्ध रह गया वह थी : 

खुशदीप सहगल,देशनामा,भड़ास 4 मिडिया 



खुशदीप भाई, शायद आपकी कुछ मजबूरियाँ रही होगी जो ऐसा कहा आपने, मेरे ख्याल से आपको ही नहीं आमंत्रित हर प्रतिभागी को यह मालूम था , क्योंकि आमंत्रण पत्र में स्पष्ट लिखा था क़ि सम्मान प्रथम सत्र में ही प्रदान किये जायेंगे और प्रथम सत्र का उदघाटन मुख्य मंत्री निशंक को ही करना था ....!


सतीश जी....जैसे जैसे मैं कहता जाऊं, तुम्हें बस वैसे करते जाना है...बस एक बात का ध्यान रखना, अपना दिमाग़ कहीं नहीं लगाना है...मैंने कहा... भाई जी मुझे करना क्या है, पहले ये बताओगे या भूमिका ही बांधे जाओगे...सतीश जी को लगा कि मैं कहीं हत्थे से न उखड़ जाऊं, सीधा काम की बात पर आ गए...मुझे हिदायत देते हुए कहा...आज तुम समारोह में सम्मान नहीं लोगे और साथ ही हिंदी ब्लॉगिंग को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ने का ऐलान करोगे...
खुशदीप सहगल, देशनामा

जनाब, जब आपने राज फाश कर ही दिया तो हम क्या कहें ?



जबकि यशवंत सिंह ने क्रिया और प्रतिक्रिया में संतुलन बनाए रखा, अच्छा लगा पढ़कर :

30 को सम्‍मानित होंगे ब्‍लॉगर, तीन किताबों का लोकार्पण भी
यशवंत सिंह, भड़ास 4 मिडिया
यशवंत सिंह, भड़ास 4 मिडिया

यशवंत सिंह, भड़ास 4 मिडिया





अक्सर देखा गया है कि लोगों की फितरत होती है किसी के लिये भी चाहे-अनचाहे जी हजूरी करने की या कहें कि हीही फीफी करते समय बिताने की । यह फितरत कई बार इतना ज्यादा उनके व्यवहार में घुल मिल जाती है कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि वह कोई ऐसी वैसी हरकत कर रहे हैं जिसे अमूमन जी-हजूरी की संज्ञा दी जाती है। मुसीबत ये कि लोगों की इसी फितरत को पहचान जुगाडु प्रवृत्ति के लोग अपनी सामाजिक पैठ बनाने में उनका इस्तेमाल करना चाहते हैं और बखूबी इस्तेमाल करते भी हैं।
सतीश पंचम, सफ़ेद घर

सतीश पंचम जी,आपकी भाषा शैली निश्चित रूप से आकर्षित करती है, आपको पढ़ना अच्छा   लगता है  मगर शब्द के टकराव में आग्रह कम दुराग्रह ज्यादा दीखता है...... इस अवसर पर एक शेर अर्ज़ है : "चलो अच्छा  हुआ तुमने बहारों को नहीं समझा,नहीं तो इस कदर पतझार से नफ़रत नहीं करता !"



हालांकि कोई भी काम संपन्न करवाना मुश्किल है और उसकी आलोचना करना आसान. ... पर इस निमित कुछ सुंझाव मांगे जा सकते थे..... आर्थिक सरोकार भी देखे जा सकते थे.... यानि जहाँ चाह - वहां राह निकल ही आती है. अपना अलग प्लेटफोर्म होता....... तो ब्लॉगजगत में इसकी भव्यता कुछ और होती.
कौशल किशोर मिश्र, पूरबिया


अब आपसे मैं क्या कहूं मिसिर जी,वैसे आपके विचारों पर दी गयी यह टिपण्णी मुझे ज्यादा प्रासंगिक लग रही है

प्रतिउत्तर : राजीव तनेजा said...
उम्मीद पे दुनिया को कायम रखिये..ऐसा दिन ज़रूर आएगा :-)

और अब उन मित्रों का आभार जिन्होनें कार्यक्रम पर अपनी संतुलित टिपण्णी दी है :


अब तक कल के आयोजन पर इतना कुछ कहा सुना पढा जा चुका है कि कोई गुंजाईश बची नहीं है , लेकिन फ़िर भी एक ब्लॉगर होने के नाते , उस कार्यक्रम मे शिरकत करने के नाते और अब तक उस आयोजन में मुझे दिखी सकारात्मक बातों को ( हां बहुत ही अफ़सोस के साथ लिखना पड रहा है कि हिंदी ब्लॉगिंग में नकारात्मकता को जितनी तेज़ी से लोकप्रियता हासिल हो जाती है उसकी आधी गति से भी सकारात्मकता को प्रोत्साहन नहीं मिल पाता ) इस पोस्ट के जरिए यहां रख सकूं ।
अजय झा,कुछ भी कभी भी


सतीश जी की यह धमकी सुनकर अविनाश जी डर गए, यहाँ तक कि अपना झोला भी लेकर नहीं आये. फिर क्या था, यह सूचना मिलते ही सतीश सक्सेना ने भी समारोह में आने का फैसला बदल डाला. शायद उन्हें लगा होगा कि अविनाश वाचस्पति ने धमकी से डर कर न्यू मीडिया के बीच जाने का फैसला ना कर लिया हो, उन्हें क्या पता कि अविनाश जी ने तो डर के मारे यह बात रवीन्द्र  प्रभात को भी नहीं बताई थी.

शाहनवाज़ सिद्दीकी. प्रेम रस.कॉम

 

हिन्‍दी भाषा का हो रहा अपमान : निशंक
लोकसत्य हिंदी दैनिक, ०२ मई २०११

समाचार 4 मीडिया

दैनिक भास्कर, ०३ मई





हिंदी भाषा चाहूं और थपेड़े खा रही
हरिभूमि,०२ मई २०११




हां, सोचती हैं उंगलियां : रामदरश मिश्र
स्वाभिमान टाइम्स, ०२ मई २०११






ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम : निशंक 
पंजाब केसरी,०३ मई  












यमुना नगर के ब्लॉगर्स छाये रहे समाचार पत्रों में






मीडिया खबर से :




 
 
 
 
 
 












छत्तीसगढ़ के ब्लोगर्स को समाचार पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया












                   

पत्रिका छत्तीसगढ़ में












दैनिक छत्तीसढ़ में

और  अब:



उद्यमी ठाला नहीं बैठता

My Photoजैसे ही मंच से बोलने वाले वक्ता ने अपना वक्तव्य पूरा किया, मुझे बुलाया गया। मैं ने मंच पर पहुँच कर इतना ही बोला कि "समाज में बोलने और लिखने के कानून हैं। यदि उन को हम तोड़ते हैं तो अपराध होता है, जिस के लिए सजा हो सकती है, दीवानी दायित्व भी आ सकता है। वे सभी कानून ब्लागरी पर भी लागू होते हैं, कोई अलग से कानून नहीं है। इसलिए ब्लागरों को चाहिए कि वे सभी सावधानियाँ जो समाज में उन्हें बरतनी चाहिए ब्लागरी में भी बरतें।"  
दिनेश राय द्विवेदी, अनवरत

दिनेश जी, लोकसंघर्ष अंतरजाल पर मनाये गए कार्यक्रम का प्रायोजक था और हिंदी साहित्य निकेतन मंच पर किये गए कार्यक्रम का प्रायोजक मात्र था, नेता किसी भी दल का हो उसके आ जाने से व्यक्ति या समूह की विचारधारा नहीं बदल जाती ये शायद आप भी भलीभांति जानते हैं .....रही मतभेद की बात तो सुमन जी या खुशदीप जी से मेरे कोई मतभेद नहीं है ....दोनों मेरे अन्तरंग मित्र  हैं .....कार्यक्रम की विस्तृत रिपोर्ट हेतु  आपका आभार, आपने कार्यक्रम के दौरान मंच से अत्यंत सारगर्भित विचार प्रस्तुत किये , अच्छा लगा सुनकर 


आइये कुछ और मित्रों की रिपोर्ताज से रूबरू   होते हैं :

इस कार्यक्रम के लिए परिकल्पना और ब्लागोत्सव जैसी कल्पनाओं को मूर्त रूप देकर 'अनेक ब्लॉग नेक हृदय' की बात कहने वाले लखनऊ शहर के ब्लागर रवीन्द्र प्रभात और नुक्कड़ सहित तमाम ब्लॉगों के कर्ता-धर्ता अविनाश वाचस्पति और हिंदी साहित्य निकेतन के मालिक और 'शोध-दिशा' पत्रिका के संपादक डा. गिरिजा शरण अग्रवाल सहित उनकी पूरी टीम को साधुवाद ! आशा की जानी चाहिए कि इस तरह के कार्यक्रम/सम्मलेन भविष्य में भी होते रहेंगें और हिंदी ब्लागिंग को नए आयामों के साथ नई दिशा भी दिखाएंगें !!
आकांक्षा यादव, शब्द शिखर

लुप्त प्रायः हिंदी साहित्य में प्राण संचार करते हुए परिकल्पना समूह के महारथियों ने 30 अप्रैल 2011 को दिगम्बर मार्ग स्थित हिंदी भवन में एक इतिहास रचा . पुरस्कार समारोह का संचालन करती हुई डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल की बड़ी सुपुत्री गीतिका गोयल ने एक सम्मोहन बिखेरा अपनी प्रस्तुति का .... रश्मि प्रभा, वटवृक्ष

संजीव तिवारी, आरंभ
गिरीश बिल्लोरे मुकुल,मिसफिट सीधी बात
 
 
 
 
 
तो, यदि आप हिंदी ब्लॉगिंग में हैं, तो इस किताब को बाई, बोरो ऑर स्टील के तर्ज पर कहीं से भी हासिल कर पढ़ना ही चाहिए, और न सिर्फ पढ़ना चाहिए, एक अदद किताब रेफरेंस मटेरियल के तौर पर रखना चाहिए. कौन जाने कब किस संदर्भ सामग्री की जरूरत पड़ जाए!



चलिए कुछ और मित्रों की राय जानते हैं :
 
 
 
 
 
 
 
 इस वृहद् विवेचन हेतु आभार व्यक्त करता हूँ दैनिक जनसंदेश टाइम्स के मुख्य संपादक डा. सुभाष राय जी, फीचर संपादक श्री हरे प्रकाश उपाध्याय और रिपोर्टर सुषमा जी का ....! 


 
 
 
 
 
और भी कुछ मित्रों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पक्ष या विपक्ष में चर्चा अवश्य की होगी,उन सभी को मेरा विनम्र आभार !



और अंत में :
कार्यक्रम विलंब से शुरू होने के कारण पुण्य प्रसून जी को हुई असुविधा के लिए मुझे खेद है !

वैसे इस सन्दर्भ में अविनाश जी की भी टिपण्णी आ चुकी है और अजय झा ने भी विस्तार से लिखा है :

चलते-चलते : एक पत्र



रवीन्द्र भाई ,
ब्लोगरों के हित में आपका प्रयास स्तुत्य है..आपने ब्लोगरों को एक मंच दिया, पहचान दी..अच्छे कार्यो की आलोचना भी होती है.. आप विचलित नहीं हो ...आपने जो किया वह ब्लोगिंग इतिहास में मील का पत्थर है, इसकी अनुगूँज वर्षों तक सुनाई देगी...

भाई, आपके सद्कार्यों को पुन: नमन है ! दैनिक हिन्दुस्तान एवं प्रभात खबर में प्रकाशित खबर संलग्न कर रहा हूँ ..

आपका भाई ,
अरविन्द श्रीवास्तव




काजल जी, आभार ........आपका जबाब नहीं

 
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