सोमवार, 29 अगस्त 2011

क़ानून अपनी जगह है बबुआ बदलाव अपनी जगह।


आज चौबे जी बहुत खुश हैंकह रहे हैं कि "राम भरोसे देखा ....अन्ना ने चूसा दिया नs गन्ना भ्रष्टाचारियों को .... बड़ा हेकड़ी बग्घार रहे थे पहिला दिनकि अनशन के लिए पुलिस के पास जाईयेबाद में खुदै करने लगे खातिरदारी  अब हमरे अन्ना से कोई टेढ़िया के अऊर रेरियाके बतियायेगा तो यही हस्र होगा नs s s .... डरता ऊ है जिसको कुछ खोने का डर होता हैअब अन्ना के पास का है जो ऊ खो देगा ? स्टार टी.वीवाला चौरसिया  कह रहा  था  कि रालेगण सिद्धि में बेचारा मंदिर की एगो कोठारिया में पडा रहता है दिन भर , एक ठे बक्सा है , जिसमें कपड़ा-लात्ता अऊर पीढिया  बगैरह  मडई के किनारे पडा रहता हैकमरा में एक ठे झिलंगा खटिया है और कुछ कसकूट के थरिया .... रतिया को सोने के समय सब खटिया के नीचे अंडसा दिया जाता है ....इसको कहते हैं असली संतका समझे ?"

मगर  महाराज अन्ना जी के  अनशन करत-करत जिनिगिया बीत जाई आउर जबतक जन लोकपाल बिल पारित हो के आई नतबतक खाली हो जाई ससुरी स्विस बैंक के खातन  से हमरे देश कपईसा   फिर कईसे होई जन लोकपाल बिल से क़माल,जब होई जाई मामला ठनठन गोपाल बोला राम भरोसे 

अब इस बात पर हम बिना कवनो लाग लपेट के बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है । मगर का करें हम जनता हैं आऊर ऊ जनार्दन, जब दिल कुहुकेगा तो बोलेंगे ही ...न चाहते हुए भी अपना मुंह खोलेंगे ही ...ज़रा सोचो राम भरोसे  भाईजब जनता के हित की बात आती है, तब सदन में इनके अहं टकरा जाते हैं ,हफ़्तों सदन नही चलते, पर जब खुद जनसेवकों की सुविधाएं बढाने की कोई बारी आती है तो एक मिनट मा प्रस्ताव कईसे पास हो जाता है  ? कईसे सब चोर-चोर मौसेरे भाई एक हो जाते हैं ? यह काम इन सबके लिए बड़े नेक हो जाते हैं ? है कोई उत्तर इनके पास अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए पूछा रमजानी 

एकदम्म सही कहत हौ रमजानी। सरकार सोचत रही कि रामलीला मैदान मा जैसे बाबा बम के डिफ्यूज कर दिहल गईल रहेवैसे ही अन्ना टीम  के रथ के पहिया पंचर कर दिहल जाई । जैसे ही हवा फुस्स से निकली अन्ना बेदम हो जयिहें फिर अन्ना के मुंह में पाँव रोटी ठूंस दिहल जाईन रही अनशन रूपी बांस न बाजी सत्याग्रह रूपी बांसुरी ।मगर सब उल्टा-पुल्टा हो गईल,कहले s अन्ना कि,जान दे देब बाकिर ग्लूकोज ना चढ़वाएब....बोला राम भरोसे। 

बहुत देर से चुप गुलटेनवा से रहा नहीं गयाबोला "ये कोई बात हुई कि लरिका-फरिका जईसन जिद पकड़ लिए तो मानेंगे नहीं और मानेंगे भी तो चांद खिलौना लेकर ही मानेंगेनहीं तो भूखे ही मर जाएंगे। अन्ना के ई तरिका ठीक ना ह। अन्ना समझने का नाम नहीं ले रहेबताओ गजोधर भईया अलग-अलग किस्मों-रंगों में भ्रष्टाचार ऐसे घुसा बैठा है कि सरकार के साथ-साथ हमको भी डर लगता है कि बिना भ्रष्टाचार के हम रह पाएंगे भी या नहीं।"

इतना सुनते ही तिरजुगिया की माई चिल्लाई......"गजोधर का कहिहें पहिले हमार बात सुनs लोगन कि अन्ना के लोकपाल बिल पर आशंका जतावे वाला हर आदमी के सरकार के पिट्ठू अउर देशद्रोही बता के का ऊ असहिष्णु अउर असंवेदनशील नइखन बनत अन्ना अउर उनकर टीम पूरा विश्वास के साथे कइसे ई दावा कर सकत हैं कि ऊ जवन जन लोकपाल बिल देत बाडऩ उहे सही बा अउर केहू एकर आलोचना नइखे कर सकत?  " 

चाची की बात मा दम्म हरमजानी भाईअगर सरकार जनादेश अउर संसद के सर्वोच्चता के आड़ में लुकात बिया तs का अन्ना के टीम देखावटी नैतिकता के आड़ में लुकाए के कोशिश के दोषी नइखे ?  पूछा गजोधर !

इतना सुन के चौबे जी का चेहरा छूछमाछर हो गयालगे घिघियाने और गजोधर की हाँ में हाँ मिलाते हुए बोले "ई सच है बबुआ कि जवन देश ने नाकामी के अनगिनत किस्से रचे,अपराध के सारे रिकॉर्ड तोड़े,भ्रष्टाचार जहां पटवारी से लेकर प्रधान मंत्री के रगों में दौर लगा चुका होवहां अन्ना के जन लोकपाल क़ानून से एकबारगी बंद थोड़े नहो जाएगा। पहिले तजो हुआ वो भी ठीक,जो हो रहा है वो भी ठीक। जो होगा वो भी ठीक होगा। सब ऊपर वाले की माया है। वो जो करेगा अच्छा ही करेगा,ज्यादातर हमारा देश इसी थेयोरी पर चलता है। खासकर बेकाबू हालात में बेबस इंसानों को यह थेयोरी कुछ ज्यादा ही याद आती है ।कर्म के बजाये छोटे-छोटे खानों में बंटना । भाग्य के सहारे जीना । खुद कुछ ना करना । जो करो तो उल्टा-पुल्टा । फिर सबकुछ ऊपर वाले के भरोसे छोड़ देना। चादर लंबी तानकर सो जाना। जो होगा देखा जाएगा वाली सोच बदले के होई यानी कि ई देश से भ्रष्टाचार तभी जाई जब ई देश की जनता अपने आप के बदलीघूस लेबे की प्रवृति से ज्यादा ई देश मा घूस देबे की प्रवृति हैजे के बदले के होई  क़ानून अपनी जगह है बबुआ बदलाव अपनी जगह।

इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया।
रवीन्द्र प्रभात 
(नियमित स्तंभ : चौबे जी की चौपाल के अंतर्गत दैनिक  जनसंदेश  टाइम्स  में दिनांक २८.०८.२०११ को प्रकाशित )  


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गुरुवार, 25 अगस्त 2011

डा. अमर कुमार का जाना .....


डा.अमर कुमार


एक निःशब्द क्रंदन बतर्ज़.. चल उड़ जा रे पंछी



बहुत ज़द्दोज़हद के बाद यह तय पाया गया कि , अब यहाँ से चलना चाहिये । मेरी एक मनपसंद कविता है, " कोशिश करने वालों की हार नहीं होती .. " जब यहाँ पेज़ लेआउट, एलिमेंट एवं सेटिंग, संपादन वगैरह में दख़ल ही ना रहा तो ज़ाहिर है कि  यह देश हुआ बेगाना......चल उड़ जा रे पंछी ऽ
चल उड़ जा रे पंछी - कुछ तो है... जो कि !

वस्तुतः पंछी मुझे बचपन से ही आकर्षित करते रहे हैं, अपने छत पर कहीं छाँव में चारपाई डाल कर उनको खुले आसमान में स्वछंद उड़ते देखने का सुख अवर्णनीय है । हर चिंता फ़िक्र को अपने डैनों से झाड़ते हुये निरद्धंद विचर रहे होते यह पखेरू पता नहीं किस अनारकली का संदेश इधर से उधर कर रहे होते हैं । ऊपर आकाश से नीचे की ज़मीनी हक़ीक़त पर एक विहंगम दृष्टि फेरते हुये, जैसे हम धरती वालों पर मनमर्ज़ी बीट करने को सर्वथा स्वतंत्र , ये पाखी !
चलो फिर से नीड़ बनायें-कुछ तो है इनमें

भला सोचिये आँधी तूफ़ान से उजड़ा इनका बसेरा इनको तनिक भी अवसाद नहीं देता । थोड़ी देर की चमगोईंयाँ, बस ! फिर मौसम खुलते ही अविचल अपने नीड़ का निर्माण फिर से करने में जुट जाना कितना प्रेरणादायक है । चूज़ों को मर खप कर चुगाना और फिर उन्हें अपनी आज़ाद ज़िन्दगी जीने को छोड़ देना, न कि उनसे अपने खिलाये पिलाये का हिसाब माँगना, जैसे वही हम मनुष्यों से ऊपर हों....!

ये बातें  डॉक्टर अमर कुमार ने ०६ मार्च २००८ को कुछ तो है....जो कि ब्लॉग पर कही थी, तब शायद मुझे ये अंदेशा नहीं था कि डाक्टर साहब का साथ अब केवल तीन वर्षों का हीं है डाक्टर साहब से मैं काफी अंतरंगता के साथ जुडा था । बात उन दिनों की है ज़ब हिंदी ब्लॉगिंग में सर्वाधिक सक्रिय ब्लॉगरों की संख्या काफी कम थी, मैं भी नया-नया हिंदी ब्लॉगिंग में आया था । डाक्टर साहब की छवि उस समय भी एक समालोचक की थी । उनकी आलोचना को कोई भी  बुरा नहीं मानता था । उनसे मेरी निकटता २८ अक्तूबर २००७ को बढी, जब उन्होंने मुझे अपने ब्लॉग कुछ तो है.....जो कि पर लिखने हेतु आमंत्रित किया । उनके इस विनम्र आमंत्रण को मैं ठुकरा न सका और उनके साथ पूरी आत्मीयता के साथ जुड़ गया । मुझसे दो दिन पहले यानी २६ अक्तूबर को इस ब्लॉग से सुनीता शानू जी भी जुडी थी । तीन लोगों का यह सामूहिक ब्लॉग रंग लाना शुरू कर दिया था, किन्तु व्यक्तिगत ब्लॉग को ज्यादा समय देने के कारण इस ब्लॉग पर हम तीनों की हलचलें ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकी और इस ब्लॉग पर हम लोगों ने आपसी सहमति से लिखना बंद कर दिया । डाक्टर साहब से हमारी आत्मीयता लगातार बनी रही । एक अभिभावक की तरह वे मुझे हमेशा सुझाव देते रहते थे, किन्तु उन्होंने मुझे एक वचन दिया था कि चाहे जैसी भी बिपरीत परिस्थितियाँ हो हम सार्वजनिक रूप से एक-दुसरे की आलोचना नहीं करेंगे । कुछ कहना होगा तो एक-दूसरे को केवल मेल पर ही कहेंगे । उन्होंने अपने इस वचन का निर्वाह आखिरी समय तक किया 


बात उन दिनों की है जब परिकल्पना सम्मान और ब्लॉगोत्सव को लेकर हिंदी ब्लॉग जगत के कुछ ब्लॉगरों के द्वारा  मुझपर शब्द-प्रहार किये जा रहे थे, उस समय  डाक्टर साहब मुझें बार-बार मेल करके संयम बरतने का आग्रह कर रहे थे । मुझे एक अभिभावक की तरह समझा रहे थे  
उस विवाद के थामने के कुछ दिनों के बाद फिर एक नया विवाद पैदा हुआ.....बात उन दिनों की है जब मेरे द्वारा हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास लिखा जा रहा था, अनेक बाद-विवाद हो रहे थे उस समय डाक्टर साहब ने सार्वजनिक टिपण्णी करके उस वाद-विवाद को विराम देने का महत्वपूर्ण कार्य किया था,इस टिपण्णी के माध्यम से :
डा० अमर कुमार ने कहा…

रवीन्द्र जी, 

हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास को एक समेटने का आपका प्रयास कितना श्रमसाध्य है, यह सोच कर ही झुरझुरी होती है, क्योंकि मैंनें वर्ष 2009 के उत्तरार्ध में इसकी योजना बनायी थी, किन्तु इसके सर्वेक्षण में ही मेरा दम निकल गया.. और फिर मुझे अपने यूँ ही निट्ठल्ला का मान रखना था, अतः मैं चुप हो बैठ गया । अपने सपने को यूँ साकार होते देख मुझे क्या लग रहा है, यह न बता पाऊँगा.. कुछ अच्छा या बहुत अच्छा जैसे शब्द गौण हैं यहाँ ।अपने सर्वेक्षण के दौरान ही मुझे मनीष कुमार और महेद्र वर्मा जी जैसी प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा रही थी, और अभी ऎसे स्वर और भी आने को होंगे । विकल्प के तौर पर आप अपने साइडबार में इस आशय की सूचना चस्पाँ कर र्सकते हैं, कि जिनको भी ऎसा लगे वह अपने ब्लॉग का लिंक , ब्लॉग आरँभ करने की तिथि, ब्लॉग पर लिखे गये पोस्टों की सँख्या का उल्लेख आपको मेल कर सकते हैं । पेज़लोड, पेज़रैंक जैसे तकनीकी टोटके इन दावों को प्रभावित नहीं करते । उस पर प्रकाशित सामग्री के आधार पर ब्लॉग के चुनाव करने आपका अधिकार सुरक्षित रहेगा ।
अहर्निश असीम शुभकामनायें !

अब डॉक्टर साहब हमारे बीच नहीं रहे । कल डा.अमर कुमार के आकस्मिक निधन की हृदय विदारक सूचना मिली। कुछ माह पूर्व कैंसर का पता चलने के बाद हुये इलाज से वे ठीक से हो गये थे। तबियत ठीक होने लगी थी,लेकिन कल अचानक उनका रायबरेली में निधन हो गया। उनके इस आकस्मिक निधन से हम सभी स्तब्ध और दुखी हैं। व्यक्तिगत तौर पर मैंने अपना एक अभिभावक ,एक मार्गदर्शक खो दिया है...!


यह चिरंतन सत्य है कि मृत्यु पर व्यक्ति का एकाधिकार नहीं होता, किन्तु व्यक्तिगत तौर पर मैं यह महसूस कर रहा हूँ कि इस असामयिक निधन से भरपाई न होने वाली अपूरणीय क्षति हुई है !

डॉक्टर साहब को विनम्र श्रद्धांजलि। ईश्वर उनके परिवार को इस असीम दु:ख  को सहन करने के भरपूर शक्ति प्रदान करे।

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

नेता भवन्तु सुखिन: नेता सन्तु महामना....

चौबे जी की चौपाल

भ्रष्टाचार  के मुद्दे पर अपनी बात आगे बढाते हुए चौबे जी बोले, कि कोई माने या ना माने मगर यही सच है राम भरोसे कि जनसेवक खातिर शिखर तक की यात्रा तभी संभव है जब वह भ्रष्टाचारी बाबा को शाष्टांग दंडवत करे । भ्रष्टाचारी बाबा की महिमा अपरंपार है बबुआ,जे इनके श्री चरणों में शीश नवावत हैं,उनके चहूँ ओर डंका बाजत हैं और मिलत हैं आशीर्वाद कि सर्वे भवन्तु सुखी रहs। यानी कि जब चाहे ओढा दs महंगाई की रजाई, रंगदारी करs खुलके क़ानून-व्यवस्था की देके दुहाई । बडफलदायक नाम हs भ्रष्टाचार,बडनसीब-बडभागी आऊर तारणहार हs भ्रष्टाचार। जिनके मिल जात हैं भ्रष्टाचारी बाबा के आशीर्वाद, उनके अन्ना,नन्ना,गन्ना,पन्ना केहू कुछ ना बिगार पावे। काहे कि पुलिस उनके आगे बेजार होई जात है, जनता निरीह आऊर लाचार होई जात है,रिश्ते-नाते सब उनके सामने बेकार होई जात है। दिन-दुनी रात-चौगुनी तरक्की करो,चारा खाके हाजमा बनाओ, कभी नहर-कभी बाँध,कभी तारकोल में डुबोकर सड़के खाओ। जितना पच सके पचाओ,यदि कोई अन्ना-वन्ना टाईप का खुरुश बुढा राह में रोड़ा बने तो साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाओ।ना माने तो तिहाड़ जेल पहुँचाओ, जईसे भी बन पड़े सुखी रहs। इहे समय की मांग है बबुआ,जे समझा ऊ राजा। जे ना समझा ऊ अन्ना।

लेकिन महाराज, परिस्थितियाँ बदल गई है आज। जबसे पहुंचे हैं अन्ना तिहाड़, भ्रष्टाचारी बाबा के ऊपर टूट पडा है दु:खों का पहाड़।हो गई है दिग्गी की घिग्घी बंद,अब नाही रहे कप्पू-पप्पू-सिब्बू भ्रष्टाचारी बाबा खातिर अक्लमंद।हर तरफ का दृश्य है उल्टा-पुल्टा, भूमिगत हो गई ससुरी घोटाली कुल्टा,खो गई बाबा की मनमोहनी मुस्कान, हाय रे हिन्दुस्तान। बोला राम भरोसे।

एकदम्म सच कहत हौ राम भरोसे भैया, भ्रष्टाचारी बाबा की लंगोट में फुलझड़ी खोंसके आजकल अन्ना गा रहे हैं क़ि बहुते मजा फकीरी में और उधर मौनी बाबा बडबडा रहे हैं भैया,क़ि अब नाही रहा कवनो टेस्ट सरकारी पंजीरी में । मगर जिबट वाली है हमरे भ्रष्टाचारी बाबा की सरकारी माई,बार-बार समझा रही है बाबा को क़ि तुम पहली आज़ादी वाले गांधी के अनुयायी हो बेटा,न बोलने और न देखने की बीमारी तो तुममे पहिले से है बस एक आऊर बीमारी डेवलप कर लेयो ना सुनने की,फिर तेरा कुछ भी नाही बिगाड़ पायेगा अन्ना। आज अन्ना मुखर है,कल शांत हो जायेंगे,फिर जनता वही सुनेगी जो हम सुनायेंगे। बोला गजोधर।

बरखुरदार ई का बकबक किये जा रहे हो, अन्ना को व्यायाम कराने वाले बाबा समझ लिए हो। अरे ऊ आंधी है,हमरे देश का नया गांधी है ।बोला रमजानी ।

इतना सुनके तिरजुगिया की माई चिल्लाई क़ि सावन के अंधे को हरतरफ हरिहरी दिखाई देता है, सारे नेता एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं चौबे जी । केकरो भीतर संकल्प नाम की चीज नाही, सबके सब यही सोच रहे हैं क़ि अन्ना के अनशन के ई बम भी डिफ्यूज कर दिहल जाई बाबा बम की तरह । फिर भ्रष्टाचार के बंद मिल खोल दिहल जाई, एतना दिन के घाटा कs भरपाई करे खातिर भ्रष्टाचा कs उत्पादन बढ़ा दिहल जाई । नए सिरे से फिर नया राजा आऊर नया कलमाडी तैयार कयल जाई । मनावल जाई नए रूप में भ्रष्टाचार कs त्यौहार,काहे क़ि बिना पईसा के कईसे होई नेतवन कs उद्धार । हम तs ईहे कहब अपने सर्मिले सरदार से क़ि सरदार धैर्य रखs, सभके एक दिन समय आवेला, तोहरो आई जब अन्ना के फुलझरी मुझाई। फेर हचक के खईहs लोगन, अपने मंत्री लोगन के खिलायिहs,विपक्ष के लॉलीपाप दिखईहs लोगन,जे केहू तोहरे कमाई के नज़रियाई ओकरा जी भरके लतिईहs लोगन। उद्देश्य बस एके रखीयहs नेता भवन्तु सुखिन: नेता सन्तु महामना।

 तिरजुगिया की माई कs बात मा दम्म है , हमके त s तरस आवत है जे मीठा-मीठा बोल के हमरे देश की तस्वीर बदले के सपना देखत हैं । के कहत हैं कि देश मा शान्ति चाही, देश क विकास चाहीं , रोटी -कपड़ा आऊर मकान चाहीं, रोजगार चाहीं ....अरे सत्यानाश हो तेरा गलती खुद करते हो आऊर दोष नेताओं को देते हो, जब तुलसीदास जी तक कह चुके हैं कि समरथ के नाही दोष गोसाईं , तब क्यों आ रही है हमरे देश की जनता को भ्रष्टाचार का नाम सुनकर उबकाई ? बताओ महाराज, अगर जनता को शान्ति की चिंता होती तो क्या वो गुंडे-बदमाशों-कातिलों को नेता बनाती ? यदि उसे रोटी-कपड़ा आऊर मकान की चिंता होती तो तो क्या वो दिन-रात झूठ बोलने वालों को नेता बनाती ? अगर उसे रोजगार की चिंता होती तो क्या वो अपना घर भरने वालों को नेता बनाती ? जैसी जनता-वैसा नेता । जनता अगर इस हाल में खुश है तो फिर वेचारे नेताओं को दोषी ठहराने से क्या फ़ायदा महाराज ? बोला गुलटेनवा ।

देख हमके राजनीति से कोई मतलब नाही आऊर ना ही नेतवन के घोषित-अघोषित दौलत से कुछ लेना-देना । हम्म इहो नाही मानत हईं कि सब नेता खराब है ,मगर सालों से उनके लूटने का क्रम चल रहा है । कोई देखने वाला नाही-कोई सुनने वाला नाही -कोई कुछ करने वाला नाही । खुद खायेंगे भ्रष्टाचार का महँगा पेंडा और हमरे हिस्से छोड़ देंगे खोखले वादे और कागजी योजनाएँ ताकि जिंदगी भर हम सब उसी में उलझे रहें आऊर नेतवन के प्रलोभन रुपी अंचार के चटकारे ले ले के खात रहें । इतना कहके चौबे जी ने अगले शनिवार तक के लिए चौपाल को स्थगित कर दिया ।
 
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