यदि इस फ़ॉर्म को देखने या सबमिट करने में आपको समस्या हो रही है, तो आप इसे ऑनलाइन भी भर सकते हैं:https://spreadsheets.google.com/spreadsheet/viewform?formkey=dDNQY2FwTEZiN21VNG5yVHZqTFJnOHc6MQ
सितंबर 2011
मंगलवार, 27 सितंबर 2011
सोमवार, 26 सितंबर 2011
राजनीति के केंद्र से गायब हो रहा आम आदमी
भ्रष्टाचार और मूल्यहीनता की समस्याएं पहले भी थी । पहले भी टूटते थे मिथक और चटखती थी आस्थाएं । यहाँ तक कि मर्यादाएं लांघने की वेशर्मी पहले भी दिखलाई जाती थी, लेकिन जबसे ग्लोबलाईजेशन का दौर चालू हुआ, सत्ता से लेकर समाज तक में लालच की संस्कृति पैदा हो गई है । हर चीज को आनन्-फानन में हासिल करने की सोच का जन्म हुआ है । हम पा रहे हैं कि राजनीति और समाज में स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा की भावना निरंतर कम होती जा रही है । समस्या यह है कि जो अमीर है उसमें एन-केन-प्रकारेण और अमीर बनाने की इच्छा बलबती जा रही है । जो सत्ता में बैठे हैं उन्हें सत्ता जाने का भय इतना सता रहा है कि वे निरंकुश प्रवृति के होते जा रहे हैं । देश के नीति निर्देशकों को जहां पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभानी थी वहीँ वे लोगों को भटकाने के काम में लगे हैं । दरअसल अब राजनीति के केंद्र में आम आदमी है हीं नही । काम उन्हें अमीरों, वहुराश्त्रिय कंपनियों और उनके दलालों के लिए करना है । मार्क्सवाद,समाजवाद जैसी चीजें सोशलिस्ट कैपेटेलिज्म, कम्युनिस्ट कैपेटेलिज्म में बदलती जा रही है ।राजनीति की तब और अब की स्थिति में बहुत फर्क आया है ।
आधुनिक केंद्रित व्यवस्थाओं में ऊँचे ओहदे वाले लोग अपने फैसले से किसी भी व्यक्ति को विशाल धन राशि का लाभ या हानि पहुँचा सकते हैं । लेकिन इन लोगों की अपनी आय अपेक्षतया कम होती है। इस कारण एक ऐसे समाज में जहाँ धन सभी उपलब्धियों का मापदंड मान लिया जाता हो व्यवस्था के शीर्ष स्थानों पर रहने वाले लोगों पर इस बात का भारी दबाव बना रहता है कि वे अपने पद का उपयोग नियमों का उल्लंघन कर नाजायज ढंग से धन अर्जित करने के लिए करें और धन कमाकर समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त प्राप्त करें । यहीं से राजनीति में भ्रष्टाचार शुरु होता है । पहले चरित्र को स्व से बड़ा समझा जाता था, किन्तु अब चरित्र से ऊँचा राजनेताओं के लिए स्व हो गया है । जिस प्रकार जुआरी के अड्डे पर वातावरण की पवित्रता की कल्पना नही की जा सकती उसीप्रकार राजनीति की गलियारों में । आज बिहार का एक व्यक्ति निरीह पशुओं का चारा चट करके भी राजनीति के शीर्ष आसन पर बैठकर वेशर्म जैसी हरकत करता है । झारखंड का एक मामूली मोटर मैकेनिक मुख्यमंत्री बनते ही महज दो-तीन वर्षों में अरबों-खरबों का मालिक बन जाता है । इसे चारित्रिक और मूल्य हीनता की पराकाष्ठा न कही जाए तो क्या कही जाए ?
आधुनिक केंद्रित व्यवस्थाओं में ऊँचे ओहदे वाले लोग अपने फैसले से किसी भी व्यक्ति को विशाल धन राशि का लाभ या हानि पहुँचा सकते हैं । लेकिन इन लोगों की अपनी आय अपेक्षतया कम होती है। इस कारण एक ऐसे समाज में जहाँ धन सभी उपलब्धियों का मापदंड मान लिया जाता हो व्यवस्था के शीर्ष स्थानों पर रहने वाले लोगों पर इस बात का भारी दबाव बना रहता है कि वे अपने पद का उपयोग नियमों का उल्लंघन कर नाजायज ढंग से धन अर्जित करने के लिए करें और धन कमाकर समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त प्राप्त करें । यहीं से राजनीति में भ्रष्टाचार शुरु होता है । पहले चरित्र को स्व से बड़ा समझा जाता था, किन्तु अब चरित्र से ऊँचा राजनेताओं के लिए स्व हो गया है । जिस प्रकार जुआरी के अड्डे पर वातावरण की पवित्रता की कल्पना नही की जा सकती उसीप्रकार राजनीति की गलियारों में । आज बिहार का एक व्यक्ति निरीह पशुओं का चारा चट करके भी राजनीति के शीर्ष आसन पर बैठकर वेशर्म जैसी हरकत करता है । झारखंड का एक मामूली मोटर मैकेनिक मुख्यमंत्री बनते ही महज दो-तीन वर्षों में अरबों-खरबों का मालिक बन जाता है । इसे चारित्रिक और मूल्य हीनता की पराकाष्ठा न कही जाए तो क्या कही जाए ?
जनलोकपाल के मुद्दे पर अन्ना को आड़े हाँथ लेने वाले कॉंग्रेसी नेताओं में से एक की संपति दो वर्षों में २९५ करोड़ तक बढ़ जाती है । एक-एक कर डी. राजा,कलमाडी आदि मंत्री तिहाड़ में पहुँच जाते हैं ।२जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सूत्रधारों में अब एक और नया नाम जुड़ गया चिदंबरम साहब का और कई घटनाक्रमों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रधान मंत्री कार्यालय भी अब इसके शक के दायरे में आ गया है । २जी स्पेक्ट्रम घोटाले में हवालात जाने से पलनिअप्पन चिदंबरम को बचाने के चक्कर में सरकार न्यायालय को लक्षमण रेखा के भीतर रहने की धमकी तक दे डालती है । राजनीति में विशर्मी तो इतना तक बढ़ चुकी है कि कॉन्ग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अपने वरिष्ठ नेताओं और पार्टी प्रवक्ताओं को ताकीद की है कि वे इस मुद्दे पर सरकार की साख बचाने के लिए चिदंबरम का बचाव संयुक्त रूप से करे । इस पूरे घटनाक्रम के बाद कॉंग्रेस की अंदरूनी उठापटक भी जग जाहिर होने लगी है। अंदरूनी मतभेद दूर करने की कवायद भी शीर्ष पदों पर बैठे मौसेरे भाईयों के द्वारा शुरू की जा चुकी है । इस कवायद के तहत प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह से मुलाक़ात करने के लिए बिट मंत्री प्रणब मुखर्जी न्यूयार्क पहुंचे । बिट मंत्री ने स्वीकार किया है कि प्रधानमंत्री के साथ हुयी मुलाक़ात में २ जी घोटाले पर बिट मंत्रालय की और से भेजे गए नोट को लेकर हुए खुलासे पर बात हुयी है ।
अब तो मूल्यहीनता राजनीति का पर्याय लगने लगी है । इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे समाज में जनतांत्रिक राजनीतिक संस्कृति की जड़ें आज़ादी के चौंसठ साल बाद भी दुरुस्त नही हो पाए है । हम सत्ता की राजनीति में प्राय: सामंती मिजाज से काम करते हैं । खासतौर पर अगर किसी को वोट के जरिए बहुमत मिल जाए , तो वे अपने आप को जनसेवक की बजाय जनता के मालिक और माई-बाप की नज़र से सोचने लगते हैं । अपने आप को सर्व शक्तिमान समझने लगते हैं । संसद से सड़क तक गाली-गलौज, गलत और सही आधारों पर हिंसा,धन और बाहुबल का जोर,अपराधियों का महिमा मंडन के साथ-साथ भ्रष्टाचारियों की जय जयकार करने की प्रवृत्ति राजनीति का हिस्सा बनाती जा रही है, जो निश्चित रूप से भारत जैसे विश्व के बड़े लोकतंत्र के लिए अमंगलकारी होने का स्पष्ट संकेत है ।
आज तो स्थिति यह हो गई है, कि एक तिहाड़ जाता है तो दूसरा कहता है तू चल मैं आया । राजनीति में भ्रष्टाचार को उभारा जाने लगा है । जो सांसद और विधायक अपने कार्यकाल में जीतनी मर्यादाएं तोड़ता है, जितना काले धन को स्वुस बैंक तक पहुंचाता है वह उतना ही शक्तिशाली और सम्मानित माना जाता है । ऐसे नेता अपने क्षेत्र का अगुआ बनता है । राजनीति में आये इस संक्रमण का सबसे बड़ा कारण है नेताओं के भीतर से भय का समाप्त होना । सरकार के खिलाफ कोई भी सत्याग्रह अथवा आन्दोलन इनके लिए कोई मायने नही रखते । सरकार के भीतर भय समाप्त होने का एक कारण सशक्त जनांदोलनों का अभाव भी है, क्योंकि नेता को सही मायनों में नेता बनाए रखने के लिए जनांदोलन का डंडा आवश्यक होता है वशर्ते बाबा रामदेव जैसे दिशाहीन आन्दोलन न हो । इसमें कोई संदेह नही कि अन्ना ने सरकार की नकेल कसने का भरपूर प्रयास किया, किन्तु गहराईयों में जाकर झांका जाए तो उनके आन्दोलन में अपार जनसमूह का दिखावा तो जरूर हुआ मगर सफलता के नाम पर वही ढ़ाक के तीन पात । मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार पर रोक लगाना तभी संभव है जब देश को एक नयी दिशा में विकसित करने का कोई व्यापक आंदोलन चले ।
'मूंदहु आँख कछहूँ कछु नाही' वाली मानसिकता में जी रही जनता को हमारी सत्ता मनारेगा जैसी योजनाओं के चक्रव्यूह में फंसाकर खुद घोटालों की जमीन तैयार करने में लगी है । उसे मंहगाई, भूख, अभाव में उलझाकर उसके कीमती वक्त का अतिक्रमण कर रही है ताकि उनके कुकृत्यों की सुध ये भोली-भाली जनता नही ले सके । अन्ना कह रहे हैं कि आज यदि जनलोकपाल क़ानून लागू होता तो चिदंबरम साहब जेल में होते । कुछ हदतक सही भी है । आज इस देश की सबसे बड़ी जरूरत नेताओं के लिए मर्यादाएं बनाने की है । जरूरत है उनके लिए भी लक्षमण रेखा तय हो,ताकि उन्हें जमीर बेचने की नौबत ही ना आये ।
रविवार, 18 सितंबर 2011
हाशिये का समाज केंद्र की ओर
हाशिये का समाज केंद्र की ओर....
बहाना था रवीन्द्र प्रभात की नई पुस्तक "हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास" के लोकार्पण का . इस मौके पर भाषा, बोली, लिपि से लेकर न्यू मीडिया के वर्तमान और भविष्य तक पर गहन चर्चा हुई. लखनऊ के जयशंकर प्रसाद सभागार में विगत ११ सितंबर को एक संगोष्ठी में साहित्य, आलोचना और रंगकर्म के क्षेत्र से जुडी कई बड़ी हस्तियों -डी. के. श्रीवास्तव,मुद्रा राक्षस,सुभाष राय,विरेन्द्र यादव,शकील सिद्दीकी,राकेश के अलावा आसपास के जनपदों से आये भाषा और साहित्य के विद्वानों की मौजूदगी में मीडिया और न्यू मीडिया की भूमिका पर बात हुई.....!
आज दैनिक जनसंदेश टाइम्स ने उक्त कार्यक्रम के विमर्श को सहेजते हुए एक राष्ट्रव्यापी चर्चा को जन्म दे दिया है . पूरा पढ़ने के लिए फोटो पर किलिक करें .
==============================================================आज राम भरोसे की मडई के बाहर दालान में चौपाल लगाए हैं चौबे जी,कुछ खोये-खोये और चुप्पी साधे हुए । राम भरोसे के उकसाने पर आखिर चुप्पी तोड़ी के बोले महाराज, "का बताएं ..हर साल की तरह इसबार भी आके लौट गया हिंदी दिवस । खुबई पार्टी -फंग्सन हुआ सरकारी विभाग मा । मगर कौन समझाये खुरपेंचिया जी को कि, अब ज़माना बदल गया है भइया। हर चीज मशीनी हो गयी है , यहाँ तक कि भावनाएं भी । भावनाओं की कब्र पर उग आये हैं घास छल- प्रपंच और बईमानी के , ऎसी स्थिति में सच से परहेज़ क्यों नहीं करते ? ठीक है हिंदी हमरी माता है मगर आजकल लोग पत्निभक्त ज्यादा हो गए हैं हमरे हिन्दुस्तान मा । बिना लाग-लपेट के सांच बात कहेंगे तो लग जायेगी खुरपेचिया जी को, इसीलिए हमने कुछ नही कहा । ई बताओ राम भरोसे तुमको नही लगता कि पहिले हिंदी हमरी मातृभाषा थी, अब मात्र भाषा हो गई है और यही हाल रहा तो हिंदी को मृत भाषा होने में देर नाही लगेगी । का गलत कहत हईं ? दैनिक जनसंदेश टाइम्स में आज प्रकाशित चाबी जी की चौपाल में आगे पढ़ें >>>>>>
शुक्रवार, 16 सितंबर 2011
सार्थक प्रयास है हिंदी ब्लॉगिंग : अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति
जब हम करते हैं कोई प्रयास
खरीदना चाहें तो ravindra.prabhat@gmail.com पर ई मेल कीजिए। मूल्य सिर्फ 450/- रुपये। इसके साथ आपको हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास पुस्तक भी भेजी जाएगी।
तो नहीं सोचते कि यह
महत्वहीन हो जाएगा क़ल
या फिर सर-आँखों पर बिठाएगा यह समाज
छोटे से इस प्रयास को
दे देगा अचानक आसमान की ऊँचाई
और पहुँचा देगा इसे एक नए आयाम तक
आज से छ: माह पूर्व
मैंने और अविनाश जी ने सजाया था एक गुलदश्ता
रख दिए थे हिंदी साहित्य निकेतन के दरीचे पे
ताकि वहां से साहित्य और चिट्ठाकारिता की खुशबू
फैले पूरे विश्व में
और हम चिट्ठाकारों को भी हो
अपने होने का एहसास
आज हिंदी ब्लॉगिंग पर आ चुकी है
मेरी दो महत्वपूर्ण पुस्तकें
एक "हिंदी ब्लॉगिंग : अभिव्यक्ति की नई क्रान्ति "
और दूसरी "हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास"
कई समाचार पत्रों ने खूब लिखा इन पुस्तकों के बारे में
खूब हुई चर्चा
और चला लगातार समीक्षाओं का दौर
अभी भी -
नहीं लगा है विराम समीक्षाओं पर
दैनिक जनसंदेश टाइम्स ने आज
"हिंदी ब्लॉगिंग: अभिव्यक्ति की नई क्रान्ति" की प्रमुखता के साथ
प्रकाशित की है समीक्षा
आप भी देखिये ......
बुधवार, 14 सितंबर 2011
हिंदी मेरी
दो- तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी -
माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी ।
बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से -
पर भंवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी ।
सुर -तुलसी और मीरा के सगुन में रची हुई -
भारतेंदु-कबीर की फुंकार है हिंदी मेरी ।
फ्रेंच , इन्ग्लीश और जर्मन है भले परवान पर -
आमजन की नाव है, पतवार है हिंदी मेरी ।
चांद भी है , चांदनी भी , गोधुली- प्रभात भी -
हरतरफ बहती हुई जलधार है हिंदी मेरी ।
() रवीन्द्र प्रभात
बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से -
पर भंवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी ।
सुर -तुलसी और मीरा के सगुन में रची हुई -
भारतेंदु-कबीर की फुंकार है हिंदी मेरी ।
फ्रेंच , इन्ग्लीश और जर्मन है भले परवान पर -
आमजन की नाव है, पतवार है हिंदी मेरी ।
चांद भी है , चांदनी भी , गोधुली- प्रभात भी -
हरतरफ बहती हुई जलधार है हिंदी मेरी ।
() रवीन्द्र प्रभात
मंगलवार, 13 सितंबर 2011
यादों के झरोखों में झांकिए एक बार हीं सही
भारतीय जन नाट्य संघ की उत्तर प्रदेश इकाई और लोकसंघर्ष पत्रिका के तत्वावधान में दिनांक ११.०९.२०११ को लखनऊ के कैसरबाग स्थित जयशंकर प्रसाद सभागार में सहारा इंडिया परिवार के अधिशासी निदेशक श्री डी. के. श्रीवास्तव के कर कमलों द्वारा मेरी सद्य: प्रकाशित पुस्तक ‘हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास “ का लोकार्पण हुआ । इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक श्री मुद्रा राक्षस, दैनिक जनसंदेश टाइम्स के मुख्य संपादक डा. सुभाष राय, वरिष्ठ साहित्यकार श्री विरेन्द्र यादव, श्री शकील सिद्दीकी, रंगकर्मी राकेश जी,पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री महेश चन्द्र द्विवेदी, साहित्यकार डा. गिरिराज शरण अग्रवाल आदि उपस्थित थे ।
प्रस्तुत है समारोह की कुछ झलकियाँ :
ब्लॉगर हेमंत,रणधीर सिंह सुमन और पुष्पेन्द्र कुमार सिंह
लोकार्पण से पूर्व अतिथि गृह में वार्ता करते हुए नाट्यकर्मी राकेश जी,
साहित्यकार सुरेन्द्र विक्रम और वरिष्ठ आलोचक विरेन्द्र यादव
सभागार में स्थान ग्रहण करते प्रतिभागीगण
श्री राकेश जी स्मृति चिन्ह से सम्मानित
साहित्यकार सुरेन्द्र विक्रम और वरिष्ठ आलोचक विरेन्द्र यादव
सभागार में स्थान ग्रहण करते प्रतिभागीगण
श्री राकेश जी स्मृति चिन्ह से सम्मानित
श्री मुद्रा राक्षस जी स्मृति चिन्ह से सम्मानित
श्री डी. के. श्रीवास्तव जी स्मृति चिन्ह से सम्मानित
विचार व्यक्त करते हुए श्री डी. के. श्रीवास्तव जी
विचार व्यक्त करते हुए डा. सुभाष राय
डा.अरविन्द मिश्र,हेमंत आदि
सभागार में उपस्थित मीडिया और शहर के गणमान्य व्यक्ति
सभागार में उपस्थित गणमान्य व्यक्ति
संचालन करते हुए डा. विनय दास
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए रवीन्द्र प्रभात
सोमवार, 12 सितंबर 2011
पूरी भव्यता के साथ संपन्न "हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास" पुस्तक का लोकार्पण
दैनिक जनसंदेश टाइम्स /१२.०९.२०११
राष्ट्रीय सहारा/१२.०९.२०११
हिन्दुस्तान (हिंदी दैनिक)/१२.०९.२०११
रविवार, 11 सितंबर 2011
सब तीरथ बार-बार तिहाड़ जेल एक बार ।
चौबे जी की चौपाल
चौपाल आज चटकी हुई है । चुहुल भी खुबई है । पप्पू के पापा के तिहाड़ जाने की जबसे बात सुने हैं चौबे जी, फुलि के कुप्पा हैं । मनमोहनी मुस्कान बिखेरते हुए कह रहे हैं कि "हर पापात्मा को.....अरे राम-राम कीड़े पड़े मेरे मुंह में मेरा मतलब है कि हर भ्रष्ट पुण्यात्मा को एक बार तीर्थ स्थल तिहाड़ की यात्रा कर लेनी चाहिए ।"
"ऊ काहे चौबे जी ?" पूछा राम भरोसे ।
"देख बात ई हs राम भरोसे कि आम जनता खातिर गंगा गंगोत्री से निकलत है.....मैदानी भाग से गुजरत गंगासागर में मिल जात हैं । येही से कहल जाला कि सब तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार । मगर भ्रष्ट पुण्यात्मा खातिर गंगा महत्वाकांक्षाओं के हिमालय से निकलत है बबुआ । अवसरवादिता के मैदानों से झरझरा के बहत-बहत नीचता रूपी समुन्दर में गिर जात हैं आउर स्वार्थ के डेल्टाओं से घिर जात है । जे पुण्यात्मा ई पूरी यात्रा निर्बिघ्न रूप से पूरा कर लेत हैं उनके मिलत हैं मोक्ष यानी तीर्थ स्थल तिहाड़ की गरिमामयी यात्रा कs लाभ .........!" चौबे जी ने कहा।
इतना सुनिके गजोधर से नही रहा गया, बोला " पुण्यात्मा आउर भ्रष्ट पुण्यात्मा में का अंतर होत है महाराज ?"
" पुण्यात्मा संकोची स्वभाव के होत हैं, गलत काम करे से उनके डर लागत हैं....अईसन लोग समाज में हाशिये पर रहत हैं, न खुद आगे बढ़त हैं ना घर-परिवार के आगे बढे देत हैं, उधार-पयिंचा ले-लेके जिंदगी गुजारत हैं, लईकन-फयिकन के रहमो-करम से एकबार गंगा सागर घूम आवत हैं । अईसन लोग समाज मा दोयम दर्जे के होत हैं, उनका के उल्लू के पट्ठा कहल जात हैं । मगर गजोधर जे समाज में एकम दर्जे के होत हैं उनके गुण कुछ विशेष होत हैं । अईसन लोग माननीय, श्रीमान, पूज्यनीय, श्रद्धेय कहल जात हैं । जैसे श्रीमान गुंडा जी, आदरणीय हिष्ट्रीशीटर जी,जिलाबदर महोदय,श्रद्धेय वारंटी जी, दसनंबरी जनाब,माननीय ठग साब,पूज्यनीय आतंकवादी जी । आदि....आदि....।" चौबे जी ने कहा ।
"एकदम्म सही कहत हौ महाराज, हमरे समझ मा आ गया कि भ्रष्ट पुण्यात्मा ऊ होत है जे प्यार के भूखे होत हैं आउर शान्ति के प्यासे होत हैं । यानी कि जईसे मंहगाई डायन खात हैं ससुरी, ये भी प्यार के खाए जात हैं,नफ़रत फैलाए जात हैं और जहां भी जात हैं शान्ति भंग करके शान्ति के साथ-साथ नज़र आवत हैं । आम इंसानों की आत्मा मरते ही ससुरी शरीर मर जाता हैं, मगर नेता रूपी पुण्यात्माओं की केवल आत्मा मरती है शरीर कुर्सी के साथ चिपका रहता है.....!" बोला राम अंजोर ।
इतना सुनके अपनी लंबी दाढ़ी सहलाया और रमजानी मियाँ फरमाया "निरमोहिया होते हैं सब घोटालेवाज़ नेता यानी भ्रष्ट पुण्यात्मा , उसका नस्ल भी दुसरे तरह का होता है...न ऊ आदमी होता है, न कुत्ता, न बन्दर ...वह मस्त कलंदर होता है, जितना जमीन से बाहर होता है उतना ही जमीन के अन्दर होता है, बयान बदलना उसका जन्म सिद्ध अधिकार होता है क्योंकि उनके लिए चरित्र से ऊँचा होता है पईसा..... मज़ा आता है उसे अपने बदले हुये बयान पर और फक्र करता है वह अपने खोखले स्वाभिमान पर......जरूरत पड़ने पर कभी धरती पकड़ तो कभी कुर्सी पकड़ बन जाता है अऊर कभी-कभी ऊ अपनी हीं बातों में जकड जाता है..... और तो और जब ऊ बहुत टेंशन में होता है तों रबड़ी में चारा मिलाता है , खाता है अऊर अकड़ जाता है ....भाई, मानो या न मानो मगर यह सच है ,कि-नेता बनना आसान नहीं है हिंदुस्तान में, क्योंकि उसे एक पैर जमीन पर रखना पड़ता है, तो दूसरा आसमान में....उसके भीतर कला होती है , कि- वह मास्टर को मिनिस्टर बाना दे और कुत्ता को कलक्टर बाना दे......कभी स्वाभिमान के नाम पर, तो कभी राम के नाम पर भीख मांग सके, अऊर जरूरत पड़ने पर हाई स्कूल फेल को वैरिस्टर बाना दे.....और जहां तक तिहाड़ जाने का प्रश्न है तो हम बस इतना जानते हैं कि तिहाड़ जाना तीर्थाटन करने के सामान होता है । तिहाड़ जाने वाला महान होता है,परम सौभाग्यवान होता है । तुम्हरे जानकारी खातिर बता दें कि जेल रूपी तीर्थस्थल ने ही गांधी को महात्मा बनाया....कृष्ण को पैदा करके परमात्मा बनाया...जवाहर,पटेल,लाल बहादुर, जय प्रकाश और अन्ना हजारे जैसे पुण्यात्माओं के चरण स्पर्श कर चुके इस स्थल को कौन चूमना नही चाहेगा ? हमारे आधुनिक भारत के कई बड़े लोग अभी भी तिहाड़ की शोभा बढ़ा रहे हैं ।"
सही कहत हौ रमजानी भैया हम्म तोहरी बात क समर्थन करत हईं कि यह मा कोई शक नाही कि बहुते लोग जेल गईला के बाद पूज्य भईले,महान भईले......चिन्तक,दार्शनिक और भगवान भईले । यानी सब तीरथ बार-बार तिहाड़ जेल एक बार...... कहली तिरजुगिया की माई ।
मगर चाची तिहाड़ में जाने का धंधा तब से जादा चमका है, जब से अपराधियों को राजनेताओं का संरक्षण मिला है ।अपराध से राजनीति के शिखर पर पहुंचने का रास्ता खुला है तब से यह धंधा चमकने लगा है । यही चमक नौजवानों को अपने तरफ खींचने लगी है । लोगों में जीतनी जादा दहशत होगी उतनी जादा कमाई होगी -उतनी ही शानदार गाडी होगी, उतने ही बैंक नोटों से भरे होंगे, उससे ही हम राज करेंगे । यही चार दिन की चकाचौंध इस काली दुनिया की संख्या लगातार बढ़ा रही है । पावरफूल बनने के लिए जिसके पास दो पैसे हैं उसे लूटो या मारो, राजनीति में चमकने के लिए जो सामने आये उसे हटा डालो की जो राह उन्होंने पकड़ी है उसकी वजह से ही हमरे गाँव के कुछ बच्चे भी धरम-करम के नाम पर जबरन वसूली में जुट गए हैं । न दो तो वे भी आँख दिखाने लगे हैं । न बड़ों की शर्म-न छोटों का लिहाज । आखिर ये सब बुरे कामों से क्या साबित करना चाहते हैं हम ? आखिर क्यों अपनी इस धरती को बदनाम करने पर तुले हैं हम ? कहते-कहते घिघी बझ गई बटेसर की । लगा अंगौछा से आंसू पोछने ।
माहौल गमगीन होते देख चौबे जी ने कहा कि " नेता फर्जी, जनता फर्जी, छात्र फर्जी, टीचर फर्जी, स्कूल फर्जी,परिक्षा फर्जी । देश बना खाला का घर जहां सब कर रहे मनमर्जी । आये दिन यह सच्ची फिल्म हमारी आँखों के सामने चलाती रहती है । कभी इस कोने में कभी उस कोने में । हम देखते रहते हैं और खुद को ही समझाकर आँखें फेर लेते हैं कि हमसे क्या मतलब ? हम सोचते रहते हैं और खुद को समझाकर लंबी टान लेते हैं कि हमारे घर से क्या जा रहा है ? हम कोसते रहते हैं और आखिर में खुद को ही यह समझाकर चुप करा देते हैं कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा । पर आखिर कब ? कब आयेगा वो दिन ? क्या देखने,सोचने और कोसने से इस देश में आदर्श स्थिति पैदा हो जायेगी ? क्या इसके लिए कुछ करने की जरूरत नही है ? आखिर हम अपने गौरवशाली इतिहास के खाते से निकलकर कबतक खाते रहेंगे ? कबतक उसकी जय जैकार के नारे लगाकर अपना सीना चौड़ा करते रहेंगे ? ऐसा तो सब जगह होता ही रहता है,अभी हमारा बिगड़ा हीं क्या है ? आखिर कबतक हम इस मुगालते में जीते रहेंगे ? हमें उस खाते में कुछ डालने के लिए क्या किसी शुभ मुहूर्त का इंतज़ार है ? यदि हम चाहते हैं कि तिहाड़ आधुनिक भारत का तीर्थ स्थल न बने तो पहले जनता को बदलना होगा, फिर ऐसे पुण्यात्माएं अपने आप बदल जायेंगी । तो आईये हम सब मिलकर यह संकल्प लेते हैं कि पहले हम बदलेंगे फिर हमारा देश बदलेगा ।
इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।
रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स/११.०९.२०११)
बुधवार, 7 सितंबर 2011
आपको पता है कि हिंदी ब्लॉगिंग में आपकी स्थिति क्या है ?
क्या आपने हिंदी ब्लॉगिंग में कुछ विशेष कार्य किये हैं ?
क्या आपको पता है कि हिंदी ब्लॉगिंग में आपकी स्थिति क्या है ?
आ गयी है एक ऐसी किताब जिसमें वर्ष-2010 तक अस्तित्व में आये 3000 से ज्यादा ब्लॉग्स की चर्चा है
सारे ब्लॉगरों की ख़ास विशेषताओं और उनके योगदान की चर्चा है
देखना नहीं चाहेंगे आप ?
पुस्तक का नाम है : " हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास " जिसकी बेसब्री से प्रतीक्षा थी, प्रकाशित हो गयी है, जिसका लोकार्पण 11सितंबर 2011 को लखनऊ स्थित जय शंकर प्रसाद सभागार में होना सुनिश्चित हुआ है ...अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति की सफलता की कहानी कहती
दो ऐसी किताबें जिसने हिंदी ब्लॉगिंग के साथ-साथ आंदोलित कर दिया हिंदी साहित्य संसार को भी
पहली किताब थी "हिंदी ब्लॉगिंग : अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति"जिसका लोकार्पण विगत 30 अप्रैल 2011 को दिल्ली के हिंदी भवन में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक, सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्यकार श्री अशोक चक्रधर, वरिष्ठ साहित्यकार डा. राम दरस मिश्र.प्रभाकर श्रीत्रिय आदि की गरिमामयी उपस्थिति में संपन्न
और-
दूसरी पुस्तक है" हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास "
यह पुस्तक अविनाश वाचस्पति और रवीन्द्र प्रभात के द्वारा संपादित है
मूल्य : 495/- ( डाक खर्च अलग से )
प्रकाशक : हिंदी साहित्य निकेतन, 16, साहित्य विहार, बिजनौर (ऊ.प्र.) 246701
(२) पुस्तक का नाम : हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास
लेखक का नाम : रवीन्द्र प्रभात
मूल्य : 250 /-( डाक खर्च अलग से)
प्रकाशक : हिंदी साहित्य निकेतन, 16, साहित्य विहार, बिजनौर (ऊ.प्र.) 246701
विशेष ऑफर : 15 सितंबर 2011 तक बुकिंग करवाने वाले ब्लॉगरों को दोनों पुस्तक के लिए ७४५/- रुपये के स्थान पर केवल ४५०/- ही भुगतान करने पड़ेंगे, अलग से डाक खर्च भी वहन नहीं करना होगा .....
रुपये 450/- केवल भेजने के लिए आप अपनी सुविधानुसार निम्नलिखित तीन विकल्पों में किसी एक का चयन कर सकते हैं
1. आप मनीआर्डर से सीधे हिंदी साहित्य निकेतन, 16, साहित्य विहार, बिजनौर (ऊ.प्र.) 246701 के पते पर राशि भेज सकते हैं परंतु मनीआर्डर के पीछे संदेश में अपना पूरा पता, फोन नंबर ई मेल आई डी के साथ अवश्य लिखें।
2. तकनीक का लाभ उठाते हुए आप बैंक ऑफ बड़ौदा, बिजनौर के नाम हिन्दी साहित्य निकेतन के खाता संख्या 27090100001455 में नकद जमा करवा सकते हैं। इस सुविधा का लाभ उठाने के बाद जमा पर्ची का स्कैन चित्र मेल पर अपनी पूरी जानकारी के साथ अवश्य भिजवायें।
3. आप यह राशि हिन्दी साहित्य निकेतन के नाम ड्राफ्ट के द्वारा भी डाक अथवा कूरियर के जरिए भेज सकते हैं। चैक सिर्फ सी बी एस शाखाओं के ही स्वीकार्य होंगे।
आप जिस भी विकल्प का चयन करें, उसका उपयोग करने के बाद इन ई मेल पर सूचना भी अवश्य भेजने का कष्ट कीजिएगा
giriraj3100@gmail.com, ravindra.prabhat@gmail.com & nukkadh@gmail.com पर जरूर भेजिएगा।
ज्ञातव्य हो कि उपरोक्त दोनों पुस्तकों का सम्मिलित मूल्य है रुपये. 745/- किन्तु लोकार्पण से पूर्व यानी दिनांक 15.09.2011 तक संयुक्त रूप से दोनों पुस्तकों की खरीद पर डाक खर्च सहित रू. 450/- ही देने होंगे !
ऑर्डर सीधे प्रकाशक : हिंदी साहित्य निकेतन, 16, साहित्य विहार, बिजनौर (ऊ.प्र.) 246701 के नाम भेजना है !
किसी प्रकार की शंका होने पर ई मेल भेजने अथवा फोन से बात करने पर हिचकिचाएं मत।
नोट: जिन १५० व्यक्तियों ने पूर्व में इन पुस्तकों की बुकिंग करा रखी है उन्हें "हिंदी ब्लॉगिंग : अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति भेजी जा चुकी है और दूसरी पुस्तक" हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास " ११ सितंबर के बाद भेजी जायेगी ....!
इस सूचना को ब्लॉगहित में सबके साथ साझा कीजिए।