रविवार, 30 अक्तूबर 2011

तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय जय।


चौबे जी की चौपाल 

आज चौबे की चौपाल लगी है बरहम बाबा के चबूतरा पर । दीपावली के बाद कुछ सूना-सूना सा है चौपाल । खुसुर-फुसुर के बीच चौबे जी ने कहा कि "आजकल अपने देश मा भ्रष्टाचार के गरमागरम मुद्दे के साथ ससुरा चुनाव सुधारों का मुद्दा भी गरमाने लगा है राम भरोसे  कभी राइट टू रीकाल और कभी राइट टू रिजेक्ट की बात होने लगी है। अपने खुरपेंचिया जी कह रहे थे कि काहे का रिकॉल आऊर काहे का रिजेक्टजब ८० प्रतिशत जनता के पास  नाही है कवनो पावर.......अऊर २० प्रतिशत हम नेताओं के पास  है सुपर पावर । तअईसे में ई सौभाग्य हम सस्ते में कईसे गँवा सकत हईं हम्म तो यही कहेंगे कि अईसन-वैसन बात करेवाला मेंटली डिफेकटेड  लोगों को पागलखाने भेज दिया जाए ।दिल खोलकर चांदी के जूते खाया जाए और चोर-चोर मौसेरे भाई एक बनके रहा जाए, अगर  अन्ना-वन्ना टाईप के समाजसेवियों के चेला-चपाटी आँख तरेरे के हिमाकत करे तो उसके ऊपर भी  चप्पल-जूत्ते चलवा के डराया जाए  ना डरे तो साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाया जाए । गुड़ से परहेज रखा जाए और गुलगुले खूब खाया जाए । यानी कि तुम्हारी भी जय-जय,हमारी भी जय-जय । कभी तुम हार जाओ कभी हम्म जीत जाएँ,जईसे भी हो दिवाला हमारा नही,जनता का निकले और हम जनसेवकगण हचक के दिवाली मनाए।" 

"सही कहत हौ चौबे जी। आज से 44 साल पहिले फिल्म दीवाना के ई गीत जब मुकेश गईले रहलें तब उनके स्वप्न में भी ई उम्मीद ना रहल होई कि भविष्य मा भारत जईसन लोकतांत्रिक देश खातिर ई केतना मौजू होई  बात-बात मा देश मा राजनितिक दखलंदाजी कवनो अच्छी बात नाही।आंधी कआम जईसन बार-बार टपक जात हैं अन्ना नेताओं की राह में । अन्ना बुढऊ को देर-सवेर तो यह स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि राजनीति मा भ्रष्टाचार के कई रास्ते हैं। जबतक बकरी दूध देत हैं तबतक राजनीति मा बकरी क दूध से ही काम चल जात हैं और जब बकरिया दूध देना बंद कर देत हैं नालियों में और गंदगी के ढेरों पर मटरगश्ती करत सूआरियां काम आई जात हैं। हमको तो लगता है कि हमरे नेताओं की बढ़ती हुई तंदरुस्ती से वे जलने लगे हैं इसीलिए उनका अगेंस्ट करने लगे हैं। का गलत कहत हईं गजोधर भैया ?" बोला राम भरोसे 

"एकदम्म सही राम भरोसे विल्कुल सोलह आने सच। अब देखो नपप्पू ने एक सत्ताधारी दल के विरोध मा एगो उपचुनाव में प्रचार कईलें और ऊ पार्टी जे कवहूँ उहाँ से नाही जीती थी इसबार भी हार गई। अब ऊ मुगालते में हैं कि पांच राज्यों में होने वाले अगले विधान सभा चुनाव में हम्म व्यवस्था बदल देंगे। अरे व्यवस्था कवनो तबायफ का गज़रा है काजे रात में पहनेंगे और सुबह में बदल देंगे। उनके इतना भी नाही मालूम का कि पहिले जनसेवा से नेता बनत रहे अब धन सेवा से बनत हैं। पर बनत हैं जनता के कोर्ट से ही । ऊ कोर्ट जे कवनो ऐब नाही देखत-ऊ कोर्ट जे अच्छे-बुरे में फर्क नाही करत। नतीजा सबके सामने है। जनता उनपर मेहरवान। टिकट बांटे वाला आपन चमचा पर मेहरवान । चमचा पर लक्ष्मी मेहरवान। अभी टिकट पर कुश्ती लड़त हैं-कल जनता के अखाड़े मा लडिहें। हराम की कमाई पानी की तरह बहईहें। हलाल की कमाई गाँठ मा दबाये रहिहें। विरोधियों के सफ़ेद पानी पी-पी के कोसिहें आ इलेक्सन के बाद उहे ढ़ाक के तीन पात यानी चोर-चोर मौसेरे भाई ।" बोला गजोधर 

यह सब सुनकर रमजानी मियाँ की दाढ़ी में खुजली होने लगी।पान की पिक पिच्च से फेंक के अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए फरमाया कि "बरखुरदार,क्या पते की बात कही है हैरत तो इस बात की है गजोधर कि हम्म ऐसे नेताओं पर भरोसा करते हैं जो किसी पर भरोसा नही करते। हर पल झूठ बोलना जिनकी फितरत मा शामिल है । हर पल धोखा देना जिसकी आदत है । उनपर हमारी मेहरवानी क्यों ? क्यों ऐसे नेताओं को हम आगे बढ़ा रहे हैं ? क्यों उनका महिमा मंडन कर रहे हैं ? क्यों हम सुधर नही रहे हैं ? हम्म तो बस दुष्यंत साहब के तेवर में यही कहेंगे कि - आप बचकर चल सकें,ऐसी कोई सूरत नही। रहगुजर घेरे हुए,मुर्दे खड़ें हैं बेशुमार।।" 

"बाह-बाह क्या शेर पटका है मियाँइस शेर पर एक सबाशेर मेरी ओर से भीअर्ज़ किया है कि- आज मेरा साथ दो,वैसे मुझे मालूम है।पत्थरों में चीख हरगिज कारगर होती नही।" गुलटेन कहलें।

इतना सुन के तिरजुगिया की माई चिल्लाई कि "चौबे जी ई अन्ना और केजरीवाल लाख चिल्लाए, हमको नही लगता कि वास्तव में बदलेंगे सारे सपने ?"

सही कहत हौ। हम्म तोहरी बात कs समर्थन करत हईं,लेकिन जेके दर्द होत है,उहे रोवत हैं तिरजुगिया की माई। इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।

रवीन्द्र प्रभात 

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

दिवाली मा ना लड्डू ना भगवान की,जय बोलो बईमान की ।


चौबे जी की चौपाल



आज चौबे जी की चौपाल लगी है राम भरोसे की मडई में  चटकी हुई है चौपाल । चुहुल भी खुबई है । घर के उहार की ओर खुले बरामदे में पालथी मार के बैठे हैं चौबे जी महाराज और सुना रहे हैं खिस्सा,कि कैसे भारत मा दिवाली पोपुलर हुई । कह रहे हैं क़ि "एकबार की बात है,स्वर्ग मा इन्द्र के निरंकुश शासन से उबके देवता लोग इन्द्र की जगहिया पर दोसर देवराज बनाबे के सोचत रहलें । मगर देवता लोग देवराज खातिर एगो कवनो देवता के नाम पर सहमत ना भईलें । काहे कि सब देवता के मन में देवराज बने के लालसा दबल रहे । ई समस्या से बाहर निकाले की जिम्मेदारी दिहल गईल नारद के । नारद कहलें कि अब समय आ गया है कि स्वर्ग में भी प्रजातंत्र की नींब डाल दी जाए और निष्पक्ष चुनाव खातिर पार्यवेक्षक विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र से लाया जाए । सारे देवता सहमत हो गए । नारद जी के पहल पर रातो-रात भारत से एक सत्ताधारी नेता को  उठाके स्वर्ग में मांगा लिया गया और उन्हें यह फरमान सुनाया गया कि पृथ्वी के जईसा यहाँ भी प्रजातंत्र लागू कराया जाए । चुनाव की प्रक्रिया शुरू भईल । शुरुआत में दुई गो पार्टी बनल एक 'स्वर्ग देवबादी पार्टीऔर दोसर  'स्वर्ग कल्याण परिषद्' ।  जब दूनू पार्टी के अध्यक्ष बने के बारी आईल तदेवता लोग आपन-आपन उपहार लेके नेता जी के पास पहुँचलें । उपहार प्राप्त कईला के बाद नेता जी स्वर्ग देवबादी पार्टी के अध्यक्ष वरुण के तथा स्वर्ग कल्याण परिषद् के अध्यक्ष कुबेर के बनवा दिहलें । काहे कि देवता सब के उपहार में वरुण तथा कुबेर के उपहार ज्यादा कीमती रहे । देवता सब के चुनाव प्रचार में भिडाके नेता जी पहुंचे क्षीर सागर  जहां लक्ष्मी जी विष्णु को पाँव दबाती मिल गई । नेता जी दु;ख भरे स्वर में बोले कि हे मातेयह कैसा स्वर्ग है जहां नारी का सम्मान नही ।  नेता जी की बात से लक्ष्मी प्रभावित हुई और बोली हे पुत्र तुम्हीं बताओ कि स्वर्ग के देवता से हम अपना अधिकार कैसे प्राप्त करें नेता जी कहलें कि माता पहिले हवाला फिर निबाला । लक्ष्मी जी पूछीं कि ये हवाला क्या होता है बच्चा । नेता जी ने कहा हवाला का मतलब है कृपा द्रष्टि का बायपास यानी फर्जी नाम से स्विस बैंक मा पईसा के स्थानान्तरण । लक्ष्मी जी ने कहा एवमस्तु ...अब बताओ उपाय । नेता जी ने मुस्कुराके लक्ष्मी को सलाह दी कि हे माते हमारे देश में लोकतंत्र का एक नज़ारा आजकल खुबई सफल है कि पार्टी का अध्यक्ष बन जाया जाए और प्रधान मंत्री की कुर्सी किसी विश्वासपात्र उल्लू को दे दिया जाए । ताकि भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्ति भी मिलती रहेगी और जब भी इच्छा होगी उसके स्थान पर किसी और उल्लू को बैठा दिया जाएगा ।लक्ष्मी जी को खुश करने के बाद नेता जी पहुंचे सरस्वती के शरण में कहलें क़ि हे मातेआपको कछु मालूम है क़ि नाही सरस्वती जी ने अनभिज्ञता जाहिर की तो नेता जी ने कहा क़ि आपके लिए बहुत ही मनहूस खबर है ...बात ई है क़ि लक्ष्मी जी औरतन पर श्रेष्ठता हासिल करे के खातिर एगो पार्टी बनायी है । इतना सुनत सरस्वती जी आपनी वीणा पटकी और गुस्सा से लाल-पियर होके स्वर्ग की तरफ भागी । एकरा बाद नेता जी कैलाश पर्वत पहुचलें जहां भोला बाबा चिलम मा गांजा भरके सुरकत रहलें  । नेता जी भोला बाबा के प्रणाम करके कहलें क़ि ओ बौरहवा बाबा आप  यहाँ गांजा-भांग पी के मस्त हैं और उधर आपके परम भक्त इंद्र को स्वर्ग से हटाने की तैयारी चल रही है । स्वर्ग मा प्रजातंत्र लागू हो जाई तआपके इज्जत का रही इतना सुनते ही भोला बाबा ने त्रिशूल उठा लिया । थोड़ी देर में स्वर्ग के दृश्य बदल गए । सब देवता एक-दूसरा से लड़े लागल । सुनहरा मौक़ा देख के नेता जी कुबेर के खजाना पर हाथ साफ़ करके नौ दो ग्यारह हो गए ।इसप्रकार स्वर्ग मा प्रजातंत्र का प्रयोग असफल हुआ और इस ख़ुशी में नेता,अफसर,व्यापारी मिलके मिलावट के बल पे रिकॉर्ड तोड़ दिवाली मनाई। स्वर्ग के देवताओं को भी उल्लू बनाने वाले उल्लू जी के स्वागत खातिर ऐसी दिवाली मनी भारत मा कि मोस्ट पोपुलर हो गई। तभी तो दिवाली में अच्छे-अच्छों का दिवाला निकल जाता है और उल्लूओं की बल्ले-बल्ले हो जाती है । का समझे ?

हम्म तो समझ ही गए महाराज लेकिन स्वर्ग के देवता लोग भी भारत के उल्लूओं से खार खा गए होंगे । इसी लिए तो हमरे देश मा ई परिपाटी चल रही है क़ि नेता करे न चाकरीअफसर करे ना काम ...जुआ खेलके मस्त है बाबू राजा राम । बोला राम भरोसे  

तभी बीच में टपक पडा गजोधर और बोला "महंगाई से त्रस्त हमनी आम जनता खातिर  दिवाली 'कंगाली में आटा गीलाकरने जैसी है राम भरोसे  महंगाई की वजह से त्योहारों की खुशी कहीं खो गई है ससुरी । सभी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। घर का बजट गडबडाने लगा है।खो गई है गरीबों की मनमोहनी मुस्कान। करें भी तो क्या करें। बढ़ती मंहगाई ने अमीर व गरीब के बीच की खाई को और गहरा कर दिया है। आज अमीर और अमीर हो रहा हैऐसे में वो तो महंगी से महंगी चीज बड़ी आसानी से खरीद सकते हैं लेकिन इस महंगाई के दौर में गरीब आदमी की तो मन गई दिवालीवो तो सिर पकड़कर बैठ जाता है कि दिवाली कैसे मनाए और अगर किसी तरह गरीब इंसान मंहगाई से बच भी जाये तो नकली मिठाईनकली पटाखे आदि आपका दीवाला निकाल देंगे और रही-सही कसर प्रदूषण और शराबी लोग पूरी कर देंगे।"

एकदम्म सही कहत हौ गजोधर भैयाहम्म तोहरे बात कसमर्थन करत हईं चावल में कंकर की मिलावट लाल मिर्च में ईंट - गारे का चूरनदूध में यूरिया खोया में सिंथेटिक सामग्रियाँ सब्जियों में विषैले रसायन की मिलावट और तो और देशी घी में चर्वीमानव खोपडीहड्डियों की मिलावट क्या आपकी किश्तों में खुदकुशी के लिए काफी नहीं ?भाई साहबक्या मुल्ला क्या पंडित इस मिलावट ने सबको मांसाहारी बना दिया अब अपने देश में कोई शाकाहारी नहीं यानी कि मिलावट खोरो ने समाजवाद ला दिया हमारे देश में जो काम सरकार चौंसठ वर्षों में नहीं कर पाई वह व्यापारियों ने चुटकी बजाकर कर दिया ,यानी कि हम रहे निठल्ले के निठल्ले और हो गयी ऊल्लूँ की बल्ले-बल्ले  दिवाली मा ना लड्डू ना भगवान की,जय बोलो बईमान की।बोली तिरजुगिया की माई  

इतना सुनकर रमजानी मियाँ ने पान की गुलेली मुह मा डालते हुए अपने कत्थई दांतों पर चुना मार के कहा कि " बरखुरदार एक शेर फेंक रहा हूँ विल्कुल मौजू है कि जाने कैसे कैसे लोग ऐसे वैसे हो गये जाने ऐसे वैसे लोग कैसे कैसे हो गये। चौबे  साहबआपने तो मुद्दे उठा दिए मगर समाधान नहीं बतायाचलिए समधान मैं बता दे रहा हूं । वाणी माधुर होविचार हों शुद्ध,सबके हो मन में ईशाराम ,बुद्ध,न मिलावाट हो और न बनावट हो,हर कोई मुस्कुराए बच्चे या वृद्ध ।इस दिवाली मा अनैतिकता को ढिबरी में जलाके एक नयी परंपरा बनाते हैं और  बोलते हैं ज़ोर सेचक दे इंडिया ।"

 विल्कुल सही फरमाए हो रमजानी मियाँ...एक तो गरीबी की मार ऊपर से मिलावट का तांडव । मिलावट खोरो ने कुछ भी ऐसा संकेत नही छोड़ रखा है जिससे पहचान की जा सके की कौन असली है और कौन नकली ऐसे में  किसकी दिवालीकैसी दिवाली ? इतना कहकर  चौबे जी ने चौपाल को अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।
  • रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसन्देश टाइम्स/२३.१०.२०११)

सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

जनता काल्हो तमाशबीन थी, आजो तमाशबीन हैं और कल भी रहेगी ।

चौबे जी की चौपाल 

आज चौबे जी कुछ शायराना मूड में हैं। उत्तरप्रदेश के आगामी चुनाव पर अपनी चुटीली टिप्पणी से गुदगुदाते हुए कह रहे है कि "घोषणा हो चुकी है रामभरोसे, कि मेला लगेगा यहाँ पर,काहे कि बड़कऊ,मंगरुआ,ढोरयीं के साथ-साथ अपना लाल बिहारी लाल भी कपडे बदलकर रथ पर सवार हो गया है। गरम है अनुमान की आंच, देखे के खुबई मिलिहें अबकी बार भी जमपुरिया के नाच। जनता खातिर चार दिन की चाँदनी और फिर अँधेरी रात के ई पांच साला मेले में कवन बनेगा राजा और कवन बनेगी रानी ? कवन खायेगा मथुरा का पेंडा और कवन भरेगा काशी मा पानी ? ई तS बाद में पता चली ,मगर इतना तय बाटे कि अबकियो बार खुलिहें जरूर खजाना कS मुंह। गरीब जनता, गरीब राज्य मा चंद दिन खुबई चलिहें शो अमीरी के। जे जितिहें ऊ नए जोश मा होली खेलिहें। राज करिहें । जे हारिहें ऊ जहर बुझल तीर चलईहें। बारी-बारी से गरिईहें सबके। जनता काल्हो तमाशबीन रहली, आजो तमाशबीन हैं और कल भी रहेगी ।"

"बाह-बाह चौबे जी महाराज,एकदम्म सटीक सुनाये हैं आप मौसम कs आँखों देखा हाल। एक साथ रहते हुए भी न इनके ताल मिलत है,न मेल होत है। पांच साल तक ससुरा यही खेल होत है।एक दल से बन जात हैं अनेक और चुनाव के बखत एकता की बात करके तालमेल होई जात हैं। आजकल हर कोई जोड़-तोड़ में जुटा है। चाहे वो धन का हो या वोट का। कोट का हो या लंगोट का। देश जाए भांड में आपन काम चकाचक ।इसीको कहते हैं वोट का कमाल,लाल की बदली चाल।" कहलें राम भरोसे ।

तभी चहकते हुए गुलटेनवा ने कहा कि "अपने खुरपेंचिया जी उन नेताओं के विरुद्ध कम्पैन चलाने जा रहे हैं जो भ्रष्टाचार में विश्वास नही रखते। कितना महान सोच है अपने खुरपेंचिया जी की ।उनका मानना है कि धनसंग्रहों के टुटपुंजिया तरीकों का स्थान योजनाबद्ध तरीकों से सरकारी सौदों की दलाली से पैसा बनाना कोई आसान काम थोड़े न है ? ऐसे राजनेता को समाज में श्रेष्ठ नैतिक आचरण के लिए आदर्श माना जाना चाहिए । विकास का मतलब हर तरफ विकास दिखाई दे, न कि केवल बायपास दिखाई दे । विकास हर मरद में,हर लुगाई में होना चाहिए । विकास भ्रष्टाचार में,मंहगाई में होना चाहिए। राजनीति को राजनेताओं के सदाचार से छुटकारा दिलाना है। तभी सरकार के मंत्री और अफसर समाज के लोगो को गोलमाल करके नही बहलाएँगे,वल्कि सीधे-सीधे कहेंगे इतना दो और इतना ले लो । सब्जियों की तरह हमारी गृहणियां घूस में भी तोलमोल कर सकेंगी ।सबका भला होगा,सबका विकास होगा। फिर न आंकड़े उदास रहेंगे और न भ्रष्टाचार की करतूतें बायपास रहेंगी। चुनाव के समय नेताओं को यह हिसाब देना होगा कि कवन पार्टी भ्रष्टाचार और सदाचार में संतुलन बनाने में सफल रही है, उसी को वोट दिया जाए।"

इतना सुन के रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाया और फरमाया,कि "बरखुरदार लकीर मत पीट,जो घट गया सो घट गया। वो घोटाला कहाँ रहा जो आपस में बँट गया ? बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि भ्रष्टाचार से नफ़रत करो भ्रष्टाचारियों से नही । इसीलिए हमारे मजबूर मंत्री जी कोर्ट की लक्षमण रेखा को नही मानते और कहते हैं कि अदालत का तो काम ही है बिना वजह ऊंगली करना । ज़रा सोचिये कि जब हम लक्ष्मण रेखा पर निगाह रखेंगे तो विकास कैसे करेंगे ? इसपर एक शेर फेंक रहा हूँ लपक सकते हो तो लपक लो मियाँ, अर्ज़ किया है - रहनुमाओं की अदाओं पर फ़िदा है दुनिया, इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों ।"

"बाह-बाह-बाह, शुभानाल्लाह मियाँ क्या शेर फेंका है ? हमरे देश की ई सबसे बड़ी बिडंबना है कि सबसे कम योग्यता पर आप विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनाव लड़ सकते हैं । विधायक बनाने की परीक्षा में बैठ सकते हैं ।जनता की कोर्ट में जा सकते हैं । हमरे देश की जनता वेचारी इतनी सीधी है कि वह प्रत्याशी की कोई योग्यता नही देखती । वह प्रत्याशी का कोई ऐब नही देखती । वह कभी भी अपने निवर्तमान विधायक से यह नही पूछती कि उसने पांच साल में क्या-क्या कारनामे किये ? कौन-कौन से गुल खिलाये ? पांच साल में करोड़ों रुपये कहाँ-कहाँ, कैसे-कैसे ठिकाने लगाए ? वह पूछती नही और वे बताते नही । सबसे अहम् मुद्दा सबसे गौण हो जाता है । अगर वह पूछे तो उसे पता चले कि किसी वर्तमान विधायक ने विकास कोष से मिलने वाली धनराशी का ७० फीसदी से ज्यादा खर्च नही किया । ये पब्लिक है सब जानती है, अगर ये सच है तो फिर नकारा,भ्रष्ट और अपराधी नेताओं को वो बाहर का राश्ता क्यों नही दिखाती ? राजनीति से अपराधीकरण का खात्मा क्यों नही करती ? वास्तव में जनसेवक बनने लायक लोगों को अपना रहनुमा क्यों नही बनाती ? है किसी के पास जबाब ?" पूछा गजोधर ।

इतना सुन के तिरजुगिया के माई के ना रहल गईल, कहली कि "जे नेता न काम के न काज के हैं, मगर दुश्मन अनाज के हैं ...अईसन नेता के बाहर का रास्ता दिखा दS लोगन । ना रही भ्रष्टाचारी बांस, ना बाजी फटही बांसुरी ।"

इतना सुनके चौबे जी सेंटीमेंटल हो गए और कहने लगे कि " नैतिकता का तकाजा तो यही है कि खुद सभी राजनितिक दल ऐसी नियमावली बनाए जिससे जनसेवा करने वाले असली चहरे हीं आगे आयें पर सवाल यह उठता है कि जब अपने साथ रहने वाले सभी बदमाश शरीफ नज़र आते हों तो ऐसे में पहल करेगा कौन ?इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।

रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स/१६.१०.२०११ )

रविवार, 9 अक्तूबर 2011

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो......


चौबे जी की चौपाल 

आज चौबे जी कुछ शायराना मूड में हैं। देश के घटनाक्रम पर अपनी चुटीली टिप्पणी से गुदगुदाते हुए चौबे जी ने कहा कि " राजनैतिक निजाम भी ससुरा मौसम की तरह तिरछा हो गया है आजकल । कभी उपवास का मौसम तो कभी यात्राओं का । शुरू हो गया झांसी से रामलीला पार्ट टू  मीडिया भी चना जोर गरम बाबू मैं लायी मजेदार कह-कहके जनता जनार्दन को जीभ लपलपाने के लिए विवश कर रही है  अन्ना बुढऊ और सलवार वाले बाबा ने उपवास का अईसा चस्का लगायाकि बरकऊ,मंगरुआ,ढोरयीं सब ससुरा बात-बात में उपवास रखने की धमकी देने लगे है। नेता परेशान कि आखिर माल कहाँ रखे और खाल कहाँ रखे । अब हर किसी के पास मोदी जईसन रुतवा तो है नाही कि एयरकंडीशंड कक्ष मा एकादशी ब्रत का उपवास ठोक दे और जब प्रतिक्रिया की बात आये तो अपने लालू भाई की तरह बिन मौसम बरसात हो जाए। गुड़गुडाने लगे हुक्का बिलावजह  ज़माना बदल गया है रामभरोसेनेताओं की तरह रागदरबारी लेखक भी हाई टेक होने लगे हैं  एयरकंडीशंड कक्ष मा बैठके मेघ का वर्णन करने लगे हैं और बाबा लोगों की बात मत पूछो एक्सरसाईज के बदले रथ की साईज ठीक करवाने में लगे हैं । हम तो कहेंगे कि बाबाजी को रथयात्रा का पेटेंट करा ही लेना चाहिए । एक-दो और ट्रस्ट बन जायेंगेएक-दो और बाल-गोपाल पैदा हो जायेंगे ।"

"एकदम्म सही कहत हौ महाराज अपने खुरपेचिया जी जब से सुने हैं कि देश मा यात्राओं का मौसम आ गया है तो वे भी "पराजय रथ" निकालने की तैयारी मा हैं। कह रहे हैं कि हम्म शायर,सिंह,सपूत थोड़े न हैं कि लिक से हटकर चलेंगे । अपनी खटारा एम्बेसडर को अर्जुन के रथ की भाँती सजाने में मशगूल हैं आजकल। थोड़ा भी मलाल नाही है खुरपेचिया जी को कि काहे किसी ने अपनी यात्रा कनाम स्वाभिमान यात्राक्रान्ति यात्रासेवा यात्रा रखी है। जब कुछ बढ़िया नाम नाही बचा तखुरपेचिया जी ने पराजय यात्रा शुरू करने की सोची है । उनका मानना है कि इस नए नामाकरण की स्पष्टवादिता से प्रभावित होकर सहस्त्रो बुद्धिमानों का उन्हें  समर्थन मिलेगा ।वे गाँव-गाँव जाकर धुआंधार भाषण देंगे कि हम्म भी हैं पाईपलाईन में उन नेताओं की तरह जो भूख,बेरोजगारी,भ्रष्टाचार ,जातिवाद और धार्मिक संकीर्णता जैसे असुरों को पराजित करने का वचन देते हैं मगर पराजित करने के चक्कर में खुद पराजित हो जाते हैं । हम्म भी लगवाएंगे जेवें अपनी लंगोट में ताकि भावी पीढ़ी के लिए कुछ बचा सके । घूस का पटेंट करवाएंगे ताकि फिर कोई अन्ना टाईप बुढऊ उपवास रखने की हिमाकत ना कर सके । ज़रा सोचिये महाराज कितने उच्च विचार है हमरे खुरपेचिया जी के । आखिर इंसान घूस नाही खायेगा तो क्या घास-फूस खायेगा ?" बोला राम भरोसे। 

इतना सुनकर रमजानी मियाँ से रहा नही गयाअपनी लंबी दाढ़ी सहलाया और मुंह के पान पर हल्का सा चुना तेज़ करके फरमाया " बरखुरदारदेश गरीबी की कैद मा है । गरीबी फाईलों की कैद मा है । फाईलें अफसरशाही की कैद मा है । अफसरशाही नेताओं की कैद मा है और नेता न कबो केहू की कैद में रहे हैं और ना रहेंगे  इत्ती सी बात नही समझ मा आती है हमरी देश की जनता को । बात-बात मा उपवास करे के धमकी और उसके पीछे भेंड चाल की भीड़ । अन्ना बाबा के उपवास का का हुआ परिणाम...ईमान पहिले जैसा अभी भी सलामत है और बईमानी की छौंक थोड़ा संभालकर तड़का मार रही है ।  जवन काम पहिले दुई सौ मा होई जात रहे ऊ काम बच-बचाके चार सौ मा होत है । पहिले भी ईमान के समोसे के साथ चाय ठोकने की परंपरा थी अब समोसे की जगह पेस्टिज ने ले लिया है और चाय की जगह कॉफ़ी ने ।  यानी भ्रष्टाचार का प्रमोशन हो गया है। रिश्वत भी सही,अन्ना भी सही ताकि ईमान सलामत रहे । का गलत कहत हईं गजोधर ?"

"अरे नाही रमजानी भैयातू और गलत कबो नाही हो सकत" बोला गजोधर  

मगर तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल  कहली कि "रामाजानी मियाँ ई बताओकि जब उपवास और यात्रा की बदबू से ना भागी भ्रष्टाचार रुपी चुड़ैल तो फिर कैसे भागी ई हमरे देश से ?"

हम्म तोके बतावत हईं चाचीइतना कहके बीच में कूद पडा गुलटेनवा । बोला "हमरे देश मा भ्रष्टाचार कS आलम ई हS कि बिना पैसे सरकारी दफ्तरों में फाईल नाही खिसकत। बाबू निगाह नाही उठावत। अफसर बात नाही सुनत। लक्ष्मी मईया कS दीदार होत चट मंगनी पट वियाह होई जात हैं। गरीब और गरीब होई जात हैं और अमीर और अमीर होई जात हैं,फिर भी नेतवन के कहना बा कि हमरे देश मा जनता के राज हS। थाने में चले जाइए- गरीब की पीड़ा कोई नाही सुनत और मालदार मनई के देख के कुर्सी छोड़ के उठ जात हैं थानेदार साहेब ।अपराधी के शरीफ और शरीफ के .मुजरीम सिद्ध करे में इनके मिनटों नाही लगत। गरीब किसानन खातिर तमाम सरकारी या गैर सरकारी योजनाए हैं मगर पहिले कमीशन फिर लाभ । बैंक मा बिना व्यवहार बढाए कर्जा नाही मिलत। अगर वास्तव में हमरे देश मा जनता का राज होत तS हर हाथ के काम होत  हर पेट के रोटी मिलत  हर सिर पर छत होत । ई देश मा कवनो काम खातिर घूस नाही देवे के पडत । घूस की इतनी बड़ी कौम पैदा नाही होत । राजनीति मा भ्रष्ट लोगन के बोलबाला नाही होत । कुल मिलाके हम ईहे कहब कि उपवास और यात्रा से कुछ फरक नाही पडी रमजानी भैया कुछ हमही लोगन के करे के पडी । तभी ई देश मा भ्रष्टाचार की जगह विकास की गंगोत्री बही   

एकदम्म ठीक कहत हौ गुलटेन, सुभानाल्लाह ! का हमरे मन की बात ठोकी है हमरे ऊपर भैया गुलटेन । ईहे मौजू पर दुष्यंत साहेब का एक शेर अर्ज है कि " अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,ये कमल के फूल कुम्हलाने लगे हैं ...!" रमजानी मियाँ ने फरमाया 

बाह-बाह क्या बात है रमजानी मियाँ ! एकदम्म सही कहे हो यानी सोलह आने सच बचवा । अब हमनी के एगो संकल्प लेबे के पडी कि जईसे चुनावजीतला कबाद सरकार निरंकुश हो जाला,वैसहीं निरंकुश हो जायब सहमनी के भी चुनाव के बखतईंट कजबाब पत्थर से देबे खातिर । सबकी सहमति के साथ इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया 

रवीन्द्र प्रभात 
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स/०९.१०.२०११)

सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

दिल्ली में ही होगा ब्लॉग अकादमी का कार्यालय

२७ सितंबर को ऑनलाईन वार्ता के क्रम में "जनशब्द" वाले भाई अरविन्द श्रीवास्तव ने मुझसे पूछा की, भाई साहित्य अकेदमी की तर्ज पर दिल्ली में ’ब्लॉग अकादमी’ की संभावना है क्या..?
मैंने कहा क्यों नहीं ?
कुछ मित्रों से इस सन्दर्भ में मैं बात करता हूँ .
कुछ ब्लॉगर मित्रों के अतिरिक्त इस विषय पर मैंने कुछ अन्य हिंदी प्रेमियों तथा 
शासन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रतिनिधियों  से भी बात की 
और संभावनाओं को टटोला ...
उन सभी के द्वारा सुझाए गए सुझावों के आधार पर 
एक प्रारूप डा. अरविन्द श्रीवास्तव के द्वारा तैयार किया जा रहा है 
इस दिशा में अपने कुछ निकटतम साहित्यिक मित्रों के साथ 
मैंने पहला कदम बढाया है .......
संभव है अगले परिकल्पना ब्लॉगोत्सव-२०११ के आयोजन से पूर्व 
हम किसी निष्कर्ष पर 
अवश्य पहुँच जायेंगे.....
इस महत्वपूर्ण कार्य से संवंधित आपके सुझाव अपेक्षित है 
यदि आपको ऐसा महसूस होता है कि आपका अनुभव इस महत्वपूर्ण कार्य में संजीवनी का 
कार्य कर सकता है तो 
आपका स्वागत है !

परिकल्पना हिंदी ब्लॉग सर्वेक्षण-२०११


और हाँ यदि आपने अभीतक परिकल्पना ब्लॉग सर्वेक्षण-२०११ में हिस्सा नहीं लिया है तो इस लिंक पर जाकर अपने ब्लॉग की इंट्री अवश्य करें :

परिकल्पना हिंदी ब्लॉग सर्वेक्षण-२०११

 
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