शनिवार, 31 दिसंबर 2011

वर्ष-2011 में प्रगतिशीलता को मिला एक नूतन आयाम ।


स्मृति वर्ष-2011 में
ब्लॉगिंग पर तीन पुस्तकों का प्रकाशन / परिकल्पना और नुक्कड़ के सौजन्य से 63 चिट्ठाकारों का सारस्वत सम्मान /
खटीमा / दिल्ली और कल्याण में राष्ट्रीय -अन्तराष्ट्रीय ब्लॉगर संगोष्ठी / थाईलैंड में आयोजित चतुर्थ अन्तराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन में एक साथ हिंदी के चार चिट्ठाकारों का सम्मान / हिंदी की पहली ब्लॉग पत्रिका वटवृक्ष का प्रकाशन /ब्लॉग जगत के इतिहास लेखन का सूत्रपात ......
आदि के माध्यम से-
तय किये हैं हिंदी चिट्ठाकारों ने  नई उपलब्धियों के नए मुकाम ,
हिंदी ब्लॉग की संख्या हुई 50,000  के पार 
यानी इसवर्ष प्रगतिशीलता को मिला एक नूतन आयाम ।
नव वर्ष -2012 के आगमन पर ,
मेरी शुभकामना है कि -
आप धैर्य रूपी पिता , क्षमा रूपी माता , शांति रूपी गृहिणी ,
सत्य रूपी पुत्र , दया रूपी बहन तथा सयंम रूपी भाई का
सान्निध्य प्राप्त करें ।
स्वावलंबन आपके घर को अपना निवास स्थान बनाए , और -
आईये मिलकर कुछ ऐसा करें की हिंदी ब्लॉग की संख्या  1,00 ,000  पार कर जाए ।
नव वर्ष पर इन्हीं शुभकामनाओं के साथ -
आपका -
रवीन्द्र प्रभात

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

अन्ना का दिल है कि मानता ही नहीं

चौबे जी की चौपाल 
"आज चौबे जी कुछ ज्यादा उदास हैं  बटेसरका बात है रे ?" 
"का बताये भैया सुबहे से खोये खोये से हैं।"
"ठीक है चलो  चौपाल  में ही पूछ लेत हैं उनके  उदासी का कारण ...हाँ हाँ चलो राम  भरोसे" ...... बोला अछैबर  

आज मडई के बाहर  बैठिके में चौपाल लगाए हैं चौबे जीअछैबर के उकसाने पर आखिर चुप्पी तोड़ी के बोले " का बताएं  जब सारी दुनिया इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर मशीनी ज़िंदगी जीने को मज़बूर है तो अन्ना को सतयुग का हरिश्चन्द्र बने रहने की का ज़रूरत ज़माना बदल गया है । हर चीज मशीनी हो गयी है यहाँ तक कि भावनाएं भी ।  भावनाओं की कब्र पर उग आये हैं घास छल- प्रपंच और बईमानी के। ऎसी स्थिति में  बार-बार अनशन की बात करेंगे तो उनको लोग छुटभैया ही समझेंगे नऔर का समझेंगे ?"

"छुटभैया का मतलब का होत है चौबे जी ?" तपाक से पूछा गुलटेनवा 
छुटभैया का मतलब होत है छुटका भैया यानी साधारण हैसियत का आदमी । बोले चौबे जी  

"हाँ अब समझ मा आया इस मंदबुद्धि को कि जब भारत के संसद भवन मा अपाहिज खेलत हैं खेलगूंगे कॉमेंट्री करत हैं,अंधे तमाशबीन होत हैं और संसदीय समिति में होत है हिजडों की टोलीअईसे में  भईया हमरी- तोरी  सच्चाई वैसहीं  जैसे चांदी की थाली में गोबर । अईसे में भईया अन्ना को भी देर-सवेर समझ में आ हीं जाएगा कि  देश आंदोलन से नहींरौब से चलता है। मगर अन्ना का दिल है कि मानता नहीं,कहते हैं अनशन करूंगा तो करूंगा ।" बोला गुलटेनवा 

इतना सुनकर अपने कथ्थई दांतों में चुना मारते हुए रमजानी मियाँ ने फरमाया,कि "बरखुरदार इस देश में है एक नायाब सरदारजिसके खाते तो हैं मगर गाते नहीं ससुरे सिपहसलार  बेचारा सरदार कहता है कि हमारा साथी गबन नहीं लोकतंत्र का हवन कर रहा हैं और विपक्ष शोर मचाकर अपनी मर्यादा का केवल निर्वहन कर रहा है । रही अन्ना की बाततो मियाँ अभी जनलोकपाल से तलाक लेने के मूड में नहीं है अन्ना,क्योंकि सरकारी बहुरिया अपने विदेशी लबों को खोलती नहींकुछ बोलती नहीं मगर फाड़ती जा रही है दनादन जन लोकपाल का पन्ना और नमक का मरहम लगाकर पूछती है क्या हुआ अन्ना खैर छोडो इसी मौजू पर एक शेर फेंक रहा हूँ,लपक सकते हो तो लपक लेयो मियाँ । अर्ज़ किया है कि कभी कश्ती,कभी बतख,कभी जल...सियासत के कई चोले हो गए हैं ।"

इतना सुनकर तिरजुगिया की माई चिल्लाई, "एकदम्म सही कहत हौ रमजानी । मगर सवाल ये है मियाँ कि अगर सचमुच अईसा है तो एके रोकिहें के तूहम्म या नेता लोग ?"

"अईसन हचाची कि ऊ ज़माना गईल जब लोकतंत्र की नीब जनता-जनार्दन होत रही । जनता के वोट से राज पलटत रहे । जनता के वोट से ही ताज मिलत रहे नेता लोगन के । अब तवहुमत मिले चाहे ना मिले,राज मिलके कर लिहें भाई लोग  ईहे कारण है कि देश के रोम-रोम कर्ज में डूब गईल और धरती के दस सबसे बड़े कर्जखोर देशों में शामिल हो गईल हमार देश । हर साल राजस्व की कमाई का दो तिहाई हिस्सा ससुरी कर्ज चुकाने और ब्याज भरे में ख़त्म होई जात हैं । जे बचत हैं ससुरी मंहगाई दायाँ खाए जात है । एकर खामियाजा के भोगत हैं चाची,सरकार या जनता ?" भारी मन से पूछा गजोधर। 

"हमरे समझ से जनता भोगत हैं खामियाजा और नेता खात हैं मनेर के खाजा।" बोली तिरजुगिया की माई 

"एकदम्म सही चाचीहर साल दस हजार से ज्यादा लोग भूख से दम तोड़ देत हैं,फिर भी हम गर्व से कहत हईं कि भारतीय हैं । देश भर में छ: करोड़ से ज्यादा लोग भीख मांगत हैं। देश की चालीस प्रतिशत जनता अंगूठा छाप हैं। उन्नीस करोड़ से ज्यादा लईकन स्कूल के मुंह नाही देखत। अठ्ठारह करोड़ से ज्यादा बेरोजगारों की फौज रोड पर धक्के खात हैं। बिना सिफारिश और घूस के नौकरी नाही मिलत। राजनीति मा अपराधियों का बोलबाला है और अपराध की कमान संभालत हैं हमरे नेता लोग। हर साल सरकारी दफ्तर मा बीस हजार करोड़ से ज्यादा घूस ली जाती है। हर साल पचास हजार से ज्यादा लोगन की ह्त्या होई जात है। हर साल सत्तर हजार से ज्यादा औरतन की इज्जत लूटी जात है। चालीस हजार से ज्यादा औरत दहेज़ की बलि चढ़ जात हैं,फिर भी हम गर्व से कहत हईं कि भारतीय हैं । अईसे में कईसन गर्व चाची ?" बोला राम भरोसे 

"बाह-बाह क्या बात है राम भरोसे,तुम्हारी बतकही पर एक शेर अर्ज़ कर रहा हूँ कि जो आदमी मर चुके थेमौजूद है इस सभा में....हर एक सच कल्पना से आगे निकलने लगा है ।" रमजानी मियाँ ने कहा 

चौपाल की बतकही से चौबे जी सीरियस हो गए और बोले कि अन्ना को समझना चाहिए कि यह सतयुग नाही है भईया कलयुग है कलियुग और कलियुग मा सच बोलना पाप है पाप। ज़रा सोचो ,ज़रा समझो । दुनिया को जानो,लोगों को पहचानो। तुम्हारे अनशन से राजनीति सुधरेगीइस भ्रम में न रहो और हो सके तो आगे से जन लोकपाल लाने की बात न कहोक्योंकि नक्कटों के बीच नाक वालों की क्या हैसियत इसी के साथ आज की चौपाल स्थगित करने की घोषणा की चौबे जी ने यह कहते हुए कि सच का मुह कालाझूठ का बोलबाला !

रवीन्द्र प्रभात 

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

बैंकॉक में सम्मानित हुए हिन्दी ब्लॉगर

आज मैं एक सप्ताह बाद थाईलैंड की यात्रा से लौटा हूँ  । यह यात्रा निश्चित रूप से सुखद और रोमांचक रही । पहली बार देश से बाहर थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में आयोजित किसी अन्तराष्ट्रीय सम्मलेन में हिन्दी के चार ब्लॉगर एकसाथ सम्मानित हुए, जिसमें इस नाचीज , नुक्कड़ ब्लॉग की मॉडरेटर गीता श्री, कथा लेखिका अलका सैनी और उडिया भाषा के अनुवादक ब्लॉगर दिनेश कुमार माली प्रमुख थे । 

(वटवृक्ष के तृतीय अंक का लोकार्पण :वाएं से गीता श्री,रविन्द्र प्रभात,भास्कर भारत के संपादक 
संदीप तिवारी,सुधीर सक्सेना,प्रमोद शर्मा,संतोष श्रीवास्तव और डा. प्रेम दुबे )
इस अवसर पर हिन्दी साहित्य को ब्लॉगिंग से जोड़ने वाली पत्रिका वटवृक्ष के तृतीय अंक का लोकार्पण भी हुआ,जिसमें मंचासीन रहे पत्रकार वो कवि सुधीर सक्सेना,आउट लुक पत्रिका की सह संपादक गीता श्री,नागपुर विवि के विभागाध्यक्ष, हिन्दी प्रमोद शर्मा, जनवादी आलोचक डॉ. प्रेम दुबे, पत्रकार संदीप शर्मा, कथाकार संतोष श्रीवास्तव,रवीन्द्र प्रभात आदि ।इसके बाद दिनेश कुमार माली की पुस्तक बंद दरवाजा (साहित्य अकादमी से सम्मानित ओडिया लेखिका सरोजिनी साहू के कथा संग्रह का हिन्दी अनुवाद) का भी विमोचन हुआ जिसमें मंचासीन रहे लेखिका गीताश्री, पत्रकार और कवि सुधीर सक्सेना, नागपुर विवि के विभागाध्यक्ष, हिन्दी प्रमोद शर्मा, जनवादी आलोचक डॉ. प्रेम दुबे, पत्रकार संदीप शर्मा, कथाकार संतोष श्रीवास्तव आदि ।

(रवीन्द्र प्रभात का सम्मान: वाएं से पत्रकार  संदीप तिवारी,पत्रकार और कवि सुधीर सक्सेना, 
नागपुर विवि के विभागाध्यक्ष, हिन्दी प्रमोद शर्मा,
जनवादी आलोचक डॉ. प्रेम दुबे, पत्रकार संदीप शर्मा, कथाकार संतोष श्रीवास्तव )

इनके अलावा इस अवसर पर सम्मानित होने वाले साहित्यकार थे वरिष्ठ कवि व 'दुनिया इन दिनों' के प्रधान संपादक डॉ. सुधीर सक्सेना, युवा पत्रकार व् दैनिक भारत भास्कर (रायपुर) के संपादक श्री संदीप तिवारी,मुंबई की कथाकार संतोष श्रीवास्तव, संस्कृति कर्मी सुमीता केशवा,आधारशिला के संपादक दिवाकर भट्ट (देहरादून),नागपुर विवि के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार शर्मा आदि 
 दिनेश माली की पुस्तक बंद दरवाजा (साहित्य अकादमी से सम्मानित ओडिया लेखिका सरोजिनी साहू के कथा संग्रह का हिन्दी अनुवाद)  का विमोचन करते हुए लेखिका गीताश्री, पत्रकार और कवि सुधीर सक्सेना, नागपुर विवि के विभागाध्यक्ष, हिन्दी प्रमोद शर्मा, जनवादी आलोचक डॉ. प्रेम दुबे, पत्रकार संदीप शर्मा, कथाकार संतोष श्रीवास्तव । 

उल्लेखनीय है कि साहित्य, संस्कृति और भाषा के लिए प्रतिबद्ध साहित्यिक संस्था (वेब पोर्टल )सृजन गाथा डॉट कॉम पिछले पाँच वर्षों से ऐसी युवा विभूतियों को सम्मानित कर रही है जो कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं । इसके अलावा वह तीन अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलनों का संयोजन भी कर चुकी है जिसका पिछला आयोजन मॉरीशस में किया गया था । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी और हिंदी-संस्कृति को प्रतिष्ठित करने के लिए संस्था द्वारा, किये जा रहे प्रयासों और पहलों के अनुक्रम में इस बार 15 से 21 दिसंबर तक थाईलैंड में चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में हिंदी के आधिकारिक विद्वान, अध्यापक, लेखक, भाषाविद्, पत्रकार, टेक्नोक्रेट एवं अनेक हिंदी प्रचारकों ने भाग लिया । इस बार यह सम्मलेन सृजन सम्मान और वैभव प्रकाशन के बैनर तले संपन्न हुआ 
(चर्चा सत्र के दौरान संस्कृतिकर्मी  सुमीता केशवा ,दिनेश कुमार माली,
रवीन्द्र प्रभात,गीता श्री,अलका सैनीऔर संतोष श्रीवास्तव)


 इस सम्मलेन के प्रमुख आकर्षण रहे छत्तीसगढ़ के सुपरिचित चित्रकार और कवि डॉ. जे.एस.बी.नायडू, जिनके चित्रों की प्रदर्शनी बैंकाक के कला प्रेमियों के लिए 16 दिसंबर से 20 दिसंबर तक लगी । यह प्रदर्शनी सृजनगाथा डॉट कॉम द्वारा आयोजित चतुर्थ अंतराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के तत्वाधान में लगायी गयी। बैंकाक के प्रसिद्ध होटल फुरामा सिलोम में यह प्रदर्शनी आम लोगों के लिए उपलब्ध रही। प्रदर्शनी का उद्घाटन  16 दिसंबर को हुआ । उक्त अवसर पर उन्हें उनकी रचनात्मकता के लिए संस्था द्वारा सम्मानित भी किया गया । इससे पहले श्री नायडू की कई प्रदर्शनियाँ लग चुकी है।


(काव्य पाठ करते रवीन्द्र प्रभात,साथ में जय प्रकाश मानस,
सुधीर सक्सेना,दीवाकर भट्ट और संतोष श्रीवास्तव )
साथ ही सम्मलेन में आलेख वाचन, काव्य पाठ और हिन्दी के व्यापक प्रसार पर जहां खुलकर चर्चा हुई वहीँ  बैंकाक, पटाया, कोहलर्न आईलैंड थाई कल्चरल शो, गोल्डन बुद्ध मंदिर, विश्व की सबसे बड़ी जैम गैलरी, सफारी वर्ल्ड आदि स्थलों का सांस्कृतिक पर्यटन का अवसर भी उपलब्ध हुआ । इस पूरी यात्रा के सूत्रधार रहे जय प्रकाश मानस जी और वैभव प्रकाशन वाले सुधीर शर्मा जी !


इस यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता रही भारतीय व्यंजनों को प्राथमिकता देना । आयोजक गण इसके लिए बधाई के पात्र हैं 


पूरी यात्रा से संवंधित विवरण शीघ्र ही आपको परिकल्पना ब्लॉगोत्सव पर पढ़ने को मिलेगा ....आज बस इतना हीं 


(थाईलैंड से लौटकर रवीन्द्र प्रभात )

सोमवार, 12 दिसंबर 2011

आए हैं ठगहार घाट पर निर्वाचन के ।


चौबे जी की चौपाल 


आज चौबे जी कुछ दिलफेंक मूड में हैं। देश के घटनाक्रम पर अपनी चुटीली टिप्पणी से गुदगुदाते हुए कह रहे हैं कि " का बताएं राम भरोसे,ससुरे गदहे तो गदहे गदहिया भी गाने लगी है राग भैरवी। उमगने लगी है राजपथ पर, करने लगी है टिकट खातिर पैरबी। कवनो कहत हैं कि फलाना पार्टी के वोट मत दिह भईया, काहे कि ऊ फूंक डलिहें इंडिया (F.D.I.) त केहू कहत हैं कि लोक के जोंक बनके चाट जयिहें, मगर लोकपाल ना लईहें केहू ऐतराज करत हैं हांथी के खुराक पर, त केहू साईकिल में लागल टायर-ट्यूब  के सुराख पर। केहू कहत हैं कि आपसी कलह से फूल मा अब पहिले वाली खुशबू नाही रही, त केहू कहत हैं कि बंगाल मा मुंह के बल गिरला से हंसुआ-हथौड़ा में भी पहिले वाली धार नाही रही। केहू लंगोट लगाके शीर्षासन, केहू पद्मासन त केहू गुड़गुडासन करत हएं, एकाराके नए जमाने का नया निर्वाचन कहत हैं यानी कि पांच बारिस तक चोंचले खूब लडौलें चोंच, ढूँढत हउहें आजकल एक-दूसरा में खोंच"

"बाह-बाह चौबे जी महाराज वाह,एकदम्म सटीक बाटे ई चुनावी मौसम कआँखों देखा हाल। वैसे ई देश का इतिहास रहा है चौबे जी कि, जब भी वोट देके जेकरा के प्रतिनिधि के रूप में चुनल गईल, ओकरे खातिर बार-बार आपन सिर धुनल गईल। दलित उत्थान,महिला उत्थान की बात करके जे खुबई उत्पात कईलें ऊ  एक-दुई पोर्टफोलियो इनाम मा पा गईलें।" कहलें राम भरोसे 

चुनाव कबात सुनि के उबियाइल गुलटेनवा के चुप ना रहल गईलकहलें कि "ये बाबा !  अबकी सोचि-समझ के अस बनाबह सरकार,डूबन चाहत हिंद को जो भी लेय उबारजो भी लेय उबार,वही सरकार बनाओ.....उनके पगलाए दो,खुद मत पगलाओ ।"

भारतीय राजनीति का इतिहास उठाके देख लेयो,कबो अईसन हवा नाही बही ई देश मा जवना से ई बात की उम्मीद बंधे कि जनसेवक जनता की किस्मत बदलने में दुबले हो गए,ससुरे जनहित के मुद्दे पहिले भी गौण थे,आज भी गौण है और क़ल भी रहेंगे भावनात्मक मुद्दे उठायेके गंगा नहाए की परंपरा रही है हमरे देश मा। जब भी कवनो जनहित के मुद्दे और घोटाले से जनता का ध्यान उठाना हो, एफ डी आई जईसन तुक्का फेंक देयो, विपक्ष के आत्मकेंद्रित करके हो-हल्ला के बाद ठन्डे बस्ते में डाल देयो न रहेगा कमबख्त बांस ना बाजेगी ससुरी बांसुरी ....... कहलें गजोधर 

इतना सुन के रमजानी मियाँ से नहीं रहा गया । अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए कहा कि " मैंने चाहा था और मैं अब भी चाहता हूँ कि चुप रहूँ , न बोलूँ ....एक मोटा सा पर्दा पडा है, उसे रहने दूं ,खिड़की न खोलूँ । लेकिन क्या करूँ यार जिसे दर्द होता है वही कराहता है न ? अमां यार, इस देश की जनता का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि गोरों की गुलामी से तो उसने खून बहाकर छुटकारा पा लिया पर कालों की धन की भूख ने जनता के शरीर को इस कदर खोखला कर दिया है कि इस भ्रष्टाचार रुपी गुलामी से लड़ने की कमबख्त उसमें ताक़त ही नहीं बची

इतना कहके रमजानी मियाँ कुछ ज्यादा सीरियस हो गया और बोला कि "आज़ादी के बाद अफसरशाही ने नेताओं के खाने-कमाने के रास्ते दिखाए। नेताओं ने भ्रष्ट नौकरशाहों पर हाथ रखे । देखते ही देखते ससुरी ऐसी बहार बही कि जिसमें आज़ादी दिलाने वालों के सारे ख़्वाब ही बह गए । हर कदम पर घूस। हर योजना में लूट। हर जगह भाई-भतीजावाद। सही तरीके से काम करने और कराने के सारे रास्ते इस कदर संकरे होते चले गए कि उनपर आगे बढ़ने की अब आसानी से कोई हिम्मत नहीं जुटाता ससुरा। जो जुटाता है वो चक्रव्यूह में अभिमन्यु की तरह घिर जाता है। दस बईमान मिलकर एक इमानदार को मिनट भर में भ्रष्ट साबित कर देते हैं मियाँ,चुना लगाके। हैरत तो इसी बात की है कि हर सरकार ससुरी इसे ख़त्म करने के दाबे तो करती है पर वो भाषणों और फाईलों से बाहर नहीं निकलती । लूटने वाले नेता,अफसर और बाबू बेख़ौफ़ तिजोरी भरते रहते हैं ।खुदा जाने कब ख़त्म होगा दोनों हाथों से लूट का यह दौर ? ख़त्म होगा भी या नहीं ? भ्रष्टाचार का ये भस्मासुर कम से कम इंसानों के बस में तो नहीं रहा। हमें तो लगता है कि अब वह दौर आ गया है कि घूस को कानूनन अमली जामा पहना ही दिया जाए...... क्या ख्याल हैराम अंजोर ?"

नाही रमजानी भईया तू कबो गलत ना कह सकत हौ । हमरे समझ से भी घूस को कानूनन अमली जामा पहना ही दिया जाए। काहे कि राजनीति मा घूस और घोटाला हाई प्रोफाईल खेल का नाम है। इस खेल को संवैधानिक दर्जा मिल जाने से ट्रांसफर, पोस्टिंग, प्रमोशन, सेवावृद्धि, प्लॉट आबंटन, भान्जों-भतीजों की नौकरी, एजेंसी आबंटन जईसन काम मा कवनो रिस्क नाही रहेगा । जे बरियार पडेगा ऊ ले-दे के करबा लेगा और जे कमजोर पडेगा ससुरा घास-फूस खाय के सो जाएगा  .....कहलें राम अंजोर 

इतना सुनि के तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल,कहली कि पहिले जनसेवा से नेता बनत रहलें ह अब धनसेवा से नेता बनत हैं। यानी जनसेवा आज  सेकेंडरी हो गया है। अईसे में हमरे समझ से धनसेवा के महत्व जादा है जनसेवा से। यानी ठगहार तो सब हैं फिर ठगी को,घूस को और घोटाले को  क़ानून का रूप देने में आपत्ति केकरा होई राम अंजोर ? थोड़ा बहुत अन्ना के ऐतराज होई त किरण दीदी से कहवाके मना लिहल जाई । लोकतंत्र मा रूठल -मनावल के खेल त होते रहेला । का गलत कहत हईं चौबे जी ?

इतना सुनके चौबे जी रोमांचित हो उठे और कहे कि चलो मिलकर गाते हैं ....
"बात करे बडबोले, काम करे अपनापन के, 
आए हैं ठगहार घाट पर निर्वाचन के। 
घाट पर निर्वाचन के, लोक का सिर कतरेंगे- 
टुकडे-टुकडे करके बैलेट बॉक्स भरेंगे  
चौबे जी कबिराय कहे छोडो कुम्भकर्णी झपकी 
खंडित होगा जनादेश न संभले यारो अबकी ।" 
इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया

रवीन्द्र प्रभात 

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

हर कुकुर का एक दिन होता है ...

चौबे जी की चौपाल

हर कुकुर के दिन बहुरेला 

उत्तरप्रदेश के गरमागरम चुनावी माहौल पर चुटकी लेते हुए चौबे जी ने चौपाल में कहा कि "चहूँ ओर चुनाव के ढोल बजने लगे हैं। जंग के मैदान सजने लगे हैं। झंडे-बैनर बनने लगे हैं। मंगरुआ के साथ-साथ ढोरयीं के भी सुर बदलने लगे हैं । बड़े मियाँ के साथ-साथ छोटे मियाँ भी देखने लगे हैं सत्ता के ख़्वाब। अपना के बढ़िया और दोसरा के कह रहे हैं खराब। चतुरी,फतुरी, पोंगा पंडित से लेकर मुन्ना फकीर, सब के सब उत्तरप्रदेश को समझने लगे हैं आपन जागीर। केहू सांठगाँठ पर मटकने लगा है तs केहू टिकट खातिर खुरपेंचिया जी जईसन नेतवन के द्वारे-द्वारे भटकने लगा है। टिकट ना मिलाने की सूरत मा कहीं केहू भड़कने लगा है,केहू बिदकने लगा है,केहू अंगूर खट्टा कहके खिसकने लगा है, तs केहू दोसरा की थाली मा खीर देखके लपकने लगा है । सब के सब मजबूत पार्टी मा एंट्री खातिर हर तरिका अख्तियार करने लगे हैं। जरूरत पड़ने पर गदहों को बाप कहने लगे हैं। सच कहूं तो राम भरोसे, सारे के सारे सियार रंगे हैं, क्योंकि हमाम में सब के सब नंगे हैं।"

इतना कहकर चौबे जी सीरियस हो गए और कहा कि " ई सब तो ठीक है मगर राहुल ने ई का कह दिया रामभरोसे, कि केंद्र का पईसा लखनऊ में बईठा हाथी खा जाता है ? उनके एतना भी नाही मालूम का कि ससुरी योजनायें बनती हीं हैं खाने के लिए। काहे कि योजना होत हैं अनार, जेकर सौ वीमार होत हैं । अब ई बताओ भईया,कि जब प्रदेश के नेता हाथी है, शासक हाथी है, सरकारी मशीनरी हाथी है, तो खुराक भी हाथी वाली ही होगी नs ?"

"एकदम्म सही कहत हौ चौबे जी। पईसा मा गर्मी बहुत जादा होत हैं, इहे कारण है कि ससुरी पार्टी चाहे जो हो, नेता की खुराक बस नोट ही होत है और कुछ नाही। जहां तक पंजा का सवाल है कमबख्त शनीचर गली,फटीचर मुहल्ला,भोंपू चौराहा से लेकर संसद के रजवाड़े तक, जो भी मिला पंजे से उठाकर खादी मा डालते रहे ।आजादी के बाद से आज तक बेचारी भूख से जार-जार जनता को रोटी की जगह मंहगाई की सुंघनी सुंघाते रहे । जुम्मा-जुम्मा आठ दिन का हाथी और कहाँ उनके चौंसठ साला अनुभवी हाथ। रही कमल के फूल की बात तो इस पर ना माया बैठ सकी, ना राम, मगर रामदेव जरूर बईठ गए लंगोट पहिन के । बाक़ियों का क्या है, उनका तो काम ही है भौकते रहना। प्रदेश अपनी चाल बदल दे क्या ?" बोला राम भरोसे।

इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि "बरखुरदार, पईसा खुदा नही है मगर खुदा से कम नही है। हम्म तो बस इतना जानते हैं कि सच्चा नेता वही होता है जो नोट से कुल्ला करता है । नोट की गिल्लौरी बनाके पान के बदले मुंह मा दबा लेता हैं। भैंस की तरह पांच साल तक पगुराता-पगुराता कुछ थूक गटक लेता हैं और कुछ श्रद्धालू जनता-जनार्दन पर चुनाव के बखत थूक देता हैं, उनकी सहृदय संवेदनशीलता और ग्रहणशीलता को अपना निजी पीकदान समझ के। हमरे इन महान और जनप्रिय नेता लोगन खातिर सत्ता की सवारी का मतलब है नोट फॉर वोट, ताकि पहनने का मौक़ा मिलता रहे बार-बार लोकतंत्र में विश्वास रुपी कोट। किसी शायर ने कहा है कि खुदा नही,न सही,आदमी का ख़्वाब सही,कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए ।"

वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, का बतकही किए हो मियाँ ! एकदम्म सोलह आने सच बातें कही है तुमने। काहे कि जनता बना है 'व्यक्ति' से आऊर नेता 'समाज' से। जनता के पास पईसा होए के मतलब देश मा 'व्यक्तिवाद' आऊर नेता के पास पईसा का मतलब होत है देश मा 'समाजवाद'। 'व्यक्तिवाद' गोबर है, 'समाजवाद' गुड़। अगर हमरे नेता 'व्यक्तिवाद' का गोबर त्याग के 'समाजवाद' के गुड़ ना खईहें तs देश के गुड़-गोबर होए से कईसे बचईहें ?" कहलें गजोधर ।

इतना सुनके तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल,कहली कि -"भईया तू लोग ज्ञानी हौअs और हम्म हईं जाहिल गंवार,मगर इतना जरूर कहब कि इसबार चुनाव मा दूध का दूध और पानी का पानी जरूर होई। कॉंग्रेसी लोगन से निवेदन बा कि क्रेन के व्यवस्था कs लिहs लोगन, हाथी से हजार हाथ दूर रहियहs। देखियह कहीं फेर केहू पंजा से पंजा लडावे में गाल पर थप्पड़ ना जड़ दे। बी.जे.पी. के नेता लोगन के हमार इहे सुझाव बा कि ब्रह्म से माया की मिलाबट ना होने पाए, नही तो न आम मिलेगा ना गुठली कs दाम। बी.एस.पी. के नेता लोगन से निवेदन हs कि दांत निपोरल कम कर दs लोगन,जहां लायिनिये नईखे,ओईजा दांत निपोरल के देखी।समाजवादी पार्टी के नेता लोगन से इहे निवेदन हs कि खिसिया के खंबा मत नोचs लोगन। खिसिया के खंबा नोचले से का हासिल होई ? अईसन कुछ काम करs कि रियल गुड फिल हो जाए । बाकी पार्टी के लोगन से का कहीं ? मगर इतना जरूर कहब कि हर कुकुर के दिन बहुरेला,धैर्य बनाए रखs।"

"तोहरी बात मा दम्म है चाची,मगर ई बात की गारंटी कवन लेगा कि बिना बुलेट के बैलेट पडिहें।"बोला गुलटेनवा।

गुलटेनवा की बतकही सुनके चौबे जी गंभीर हो गए और इतना कहके चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया कि "कहीं सरकारी मशीनरी खराब,कहीं सुरक्षा प्रबंध खराब,कहीं वोटिंग मशीन खराब,कहीं माहौल खराब,कहीं प्रत्याशी खराब-इस खराबी के दौर में अच्छाई की गूँज होगी भी तो कैसे ? जनता की पसंद की सरकार बनेगी इस पर विश्वास हो भी तो कैसे? खैर हम्म तो आशावादी हैं गुलटेन, अभी चुनाव मा कई महीने हैं, चलो मिलकर दुआ करते हैं कि सिस्टम सही हो जाए।"

रवीन्द्र प्रभात

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

हिंदी त्रैमासिक वटवृक्ष के तृतीय अंक का लोकार्पण

बाराबंकी ! अधिवक्ता दिवस के अवसर पर आज दिनांक ०३.१२.२०११ को बाराबंकी स्थित जिला बार असोसिएशन के सभागार में पूर्व एम. एल.सी. एवं उत्तरप्रदेश अल्प संख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष गयासुद्दीन किदवई की अध्यक्षता में लखनऊ से प्रकाशित हिंदी की त्रैमासिक पत्रिका वटवृक्ष के तीसरे अंक का लोकार्पण समारोह संपन्न हुआ . इस अवसर पर बाराबंकी जिला बार असोसिएशन के अध्यक्ष ब्रिजेश कुमार दीक्षित,वटवृक्ष पत्रिका के प्रधान संपादक रवीन्द्र प्रभात, लोकसंघर्ष पत्रिका और वटवृक्ष के प्रबंध संपादक एडवोकेट रंधीर सिंह सुमन, पुष्पेन्द्र कुमार सिंह और अनेकानेक गणमान्य व्यक्ति की उपस्थिति रही.

वटवृक्ष के तीसरे अंक का लोकार्पण करते हुए पूर्व एम.एल.सी. गयासुद्दीन किदबई ने कहा कि वटवृक्ष एक ऐसी पत्रिका है जो हिंदी ब्लॉगिंग को साहित्य से जोड़ती है. हिंदी में ऐसा प्रयोग पहली बार हुआ है और मुझे ख़ुशी है कि यह प्रयोग तहजीब की नगरी लखनऊ से हुई है. रवीन्द्र प्रभात जी के बारे में बहुत सुन रखा था , आज मुलाक़ात भी हो गई. आज ऐसे उत्साही साहित्यकार की जरूरत है हिंदी को . मेरी शुभकामना है कि यह पत्रिका अन्तराष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रभाषा हिंदी को आयामित ही न करे, अपितु उसे एक नयी ऊँचाई प्रदान करे .

 बाराबंकी जिला बार असोसिएशन के अध्यक्ष ब्रिजेश कुमार दीक्षित ने कहा कि वटवृक्ष वाकई बहुत सुन्दर और स्तरीय पत्रिका है. ब्लॉग लेखकों को प्रिंट में प्रतिष्ठापित करने की यह पहल सराहनीय ही नही प्रशंसनीय भी है.

 वटवृक्ष पत्रिका के प्रधान संपादक रवीन्द्र प्रभात ने इस अवसर पर कहा कि वटवृक्ष पत्रिका के प्रकाशन का उद्देश्य है अंतरजाल पर सक्रीय लेखकों को प्रिंट की मुख्यधारा में लाने का . हमारी पूरी टीम पत्रिका की गुणवत्ता को बनाए रखने में तत्पर है. यही कारण है कि यह पत्रिका अपने कलेवर और रचनाओं के उत्कृष्ट चयन के कारण पाठकों का ध्यान बरबस खीँच लेती है. सच कहूं तो यह पत्रिका नही आन्दोलन है विचारों का, अभियान है प्रतिबद्धताओं का और पहल है एक सुखद और सांस्कारिक सह अस्तित्व के निर्माण की . पत्रिका के प्रबंध संपादक एडवोकेट रणधीर सिंह सुमन ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा की वटवृक्ष हमारी प्रतिबद्धता से जुड़ा हुआ है और हम उन सभी का धन्यवाद ज्ञापन करते हैं जो हमारी प्रतिबद्धता से गहरे जुड़े हैं .इस अवसर पर वटवृक्ष की संपादक रश्मि प्रभा के सन्देश को भी सभा पटल पर रखा गया जिसमें उन्होंने कहा है की वटवृक्ष पत्रिका नहीं साहित्यकारों की आत्मा है .

 
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