सोमवार, 30 जनवरी 2012

परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण-2011 (भाग-6 )

सिनेमा पर केन्द्रित ब्लॉग की दृष्टि से दरिद्र और
राजनीति पर केन्द्रित ब्लॉग की दृष्टि से औसत रहा वर्ष-2011

...........गतांक से आगे 

भारतीय सिनेमा इस समय संसार का, फिल्‍मों की संख्‍या के मान से, सबसे बड़ा सिनेमा है। लेकिन सिनेमा पर आधारित ब्लॉग की दृष्टि से हम अभी भी काफी दरिद्र हैं । इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि वर्ष-2011  में एक मात्र प्रयोगधर्मी अभिनेता मनोज बाजपेयी ने अपने ब्लॉग के जरिए अनुभवों को बाँटते नज़र आये । अपने व्यस्त दिनचर्या के वाबजूद इन्होनें अपने ब्लॉग पर इस वर्ष 9  संस्मरणात्मक पोस्ट प्रकाशित किये हैं ।

वहीँ अजय ब्रह्मात्मज के चवन्नी चैप पर इस वर्ष फिल्म से संवंधित कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गयी । यह ब्लॉग सिनेमा पर आधारित ब्लॉग की श्रेणी में सर्वाधिक सक्रिय रहा इस वर्ष । इस ब्लॉग पर इस वर्ष 200 से ज्यादा पोस्ट प्रकाशित हुए । फिल्म की समीक्षा के क्षेत्र में इधर रश्मि रविजा का नाम तेजी से लोकप्रिय हुआ है ।रश्मि रविजा, वरिष्ठ साहित्यकार और वेब पत्रकार हैं और इनकी गतिविधियाँ इनके स्वयं के ब्लॉग के अलावा विभिन्न महत्वपूर्ण वेब पत्रिकाओं पर भी देखी जा सकती है  

सिनेमा पर आधारित  सक्रिय ब्लॉग हालांकि हिंदी में बहुत कम दिखते हैं।  प्रमोद सिंह के ब्लॉग सिनेमा सिलेमा पर पूरे वर्ष मात्र एक दर्जन पोस्ट पढ़ने को मिले हैं वहीं दिनेश श्रीनेत ने इंडियन बाइस्कोप पर इस वर्ष  केवल छ: पोस्ट प्रकाशित किये,जो निजी कोनों से और भावपूर्ण अंदाज में सिनेमा को देखने की एक कोशिश मात्र कही जा सकती है ।वहीँ अंकुर जैन का ब्लॉग साला सब फ़िल्मी है पर  17  पोस्ट प्रकाशित हुए इस वर्ष ।महेन के चित्रपट ब्लॉग तथा राजेश त्रिपाठी का सिनेमा जगत ब्लॉग पर इस वर्ष पूरी तरह खामोशी छायी रही ।  हालांकि 15  जून 2011 को खुले पन्ने ब्लॉग पर प्रकाशित क्या है हिंदी सिनेमा का यथार्थवाद काफी पसंद किया गया । वैसे विस्फोट डोट कॉम पर भी सिनेमा पर आधारित कुछ वेहतर सामग्री प्रकाशित हुई है इस वर्ष।


जहां तक फिल्म समीक्षा का प्रश्न है हिंदी में अच्छी फिल्म समीक्षाएँ कम पढ़ऩे को मिलती हैं। खासकर ब्लॉग पर तो बहुत ही कम। कभी-कभार रवीश कुमार का ब्लॉग कस्बा, अविनाश का ब्लॉग मोहल्ला, अनुराग वत्स का ब्लॉग सबदउन्मुक्त के साथ-साथ वेबदुनिया,फिल्म कहानी, तरकश,ख़ास खबर,  पर फिल्म संबंधी लेख और समीक्षाएँ पढ़ने को मिले हैं इस वर्ष। ब्लॉग की दुनिया ने तमाम लोगों को आकर्षित किया है।


इस वर्ष तीन अच्छे फ़िल्मी ब्लॉग क्रमश: सिंगल थिएटर ,नवपथ और लेटेस्ट बोलीवुड न्यूज इन हिंदी अस्तित्व में आये हैं । फिर भी हिंदी सिनेमा के विस्तृत आकास के दृष्टिगत यह नाकाफी है । विनोद अनुपम ने सिंगल थिएटर पर इस दिशा में बहुत अच्छा काम किया है। विनोद की सबसे बड़ी खासियत है कि ये फिल्म की संश्लिष्ट समीक्षाओं के बजाय फिल्म की कुछ खूबियों और कमजोरियों का जिक्र करते हैं

वैसे तो काफी सारे ब्लॉग्स हैं जहां सभी तरह की हिंदी फिल्म  मुफ्त में देखे जा सकते हैं, इसमे न सिर्फ सभी वर्गों की फिल्मे है, साथ ही इसमे आपको डब फिल्मे, टीवी सीरिअल और शो, लाइव टीवी, लाइव रेडियो और साथ ही काफी सारे वृतचित्र (Documentaries) भी देखने को मिलेंगे वो भी मुफ्त, साईट का नाम है:- hindilinks-4-u और लिंक यह है

 इसी तरह की कुछ और मुफ़्त साइटें 

साथ ही अगर आपको कुछ पैसे देकर फिल्म देखने का शौक है तो दो बेहतरीन वेबसाइट है जो कुछ पैसे लेकर आपको दुनिया भर की फिल्मे दिखाती है इसमे पहली है-
1. http://dingora.com/ ....इसमे आपको कुछ ऐसी फिल्मे भी देखने को मिलेंगे जो की सिर्फ समीक्षकों के किये ही बनी थी और दूसरी साईट है....
2. http://www.utvworldmovies.com/...इसमे आपको कई तरह की सुविधाएँ मिलेंगी जिसमे खास है अलग अलग देशों के अनुसार अलग अलग फिल्मे चुनने के लिए गूगल मेप जैसे सुविधा और भी कई तरह की सुविधाएँ है 

इसीप्रकार जहाँ तक राजनीति को लेकर ब्लॉग का सवाल है तो वर्ष 2011 भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार की लगातार उधडती परतों के बाद ए. राजा जैसे मंत्रियों और कुछ कारपोरेट कंपनी के दिग्गज शाहिद बलवा, विनोद गोयेनका और संजय चंद्रा जैसे लोगो के तिहाड़ पहुँचने के साथ अन्ना के भ्रष्टाचार के विरोध और मजबूत लोकपाल के लिए हुए आन्दोलन और उसे मिले जनसमर्थन के लिए जाना जाएगा भ्रष्टाचार के इन आरोपों ने उत्तराखंड से निशंक और कर्नाटक से येदुरप्पा को गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर किया इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों जैसे संसद की सर्वोच्चता पर प्रश्न उठाने के लिए भी जाना जाएगा महिला आरक्षण बिल इस वर्ष भी लटका रहा और वर्ष के अंत में राजनैतिक षड्यंत्र के बीच इसमे लोकपाल बिल का नाम भी जुड़ गया। ऐसा कहना है आशीष तिवारी का दखलंदाजी पर 

करीब 15 साल तक हिंदी के तमाम राष्ट्रीय समाचार पत्रों में काम करने करने के बाद अब दिल्ली में अपना बसेरा बनाने वाले महेंद्र श्रीवास्तव के ब्लॉग आधा सच का नाम मैं प्रमुखता के साथ लेना चाहूंगा, क्योंकि यह ब्लॉग 2011  में अस्तित्व में आया है और छ: दर्जन के आसपास पोस्ट प्रकाशित कर समसामयिक राजनीति और समाज की गहन पड़ताल करने की सफल कोशिश की है 

दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि चाहे किसी भी भाषा का ब्लॉग हो अमूमन महिलाओं की राजनैतिक टिप्पणियाँ कम ही देखी जाती है, किन्तु हिंदी में एक ब्लॉग mangopeople  लेकर आई अंशुमाला ने वर्ष-2010 के जनवरी महीने में जो वर्ष-2011  आते-आते आक्रामक दिखने लगा  । सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर इस ब्लॉग में इस वर्ष कभी विरोध के स्वर देखे गए तो कहीं विचारों का द्वंद्व । कुल मिलाकर यह ब्लॉग राजनीति के वेहद सक्रीय चिट्ठों में से एक रहा इस वर्ष ।

अनियमितता के वाबजूद  इस वर्ष जनोक्ति और  विचार मीमांशा भी औसत रूप से मुखर रहा ।अफलातून के ब्लॉग समाजवादी जनपरिषद और प्रमोदसिंह के अजदक तथा हाशिया का जिक्र किया जाना चाहिए। इन  सभी ब्लॉग्स पर पोस्ट की संख्या ज्यादा तो नहीं देखि गयी इस वर्ष,किन्तु विमर्श के माध्यम से ये सभी इस वर्ष अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हुए हैं । रविकांत प्रसाद का ब्लॉग बेवाक टिपण्णी पर इस वर्ष केवल तीन पोस्ट आये, वहीँ इस वर्ष नसीरुद्दीन के ढाई आखर पर सन्नाटा पसरा रहा  जबकि उद्भावना पर सात पोस्ट और अनिल रघुराज के एक हिन्दुस्तानी की डायरी पर केवल एक पोस्ट आया इस वर्ष । भारतीय ब्लॉग लेखक संघ  और महाराज सिंह परिहार के ब्लॉग विचार बिगुल पर भी इस वर्ष कुछ बेहतर राजनैतिक आलेख पढ़े गए ।


पुण्य प्रसून बाजपेयी ब्लॉग भी है और ब्लॉगर भी,जिसपर वर्ष-2011 में कूल 71 पोस्ट प्रकाशित हुए और सभी गंभीर राजनीतिक विमर्श से ओतप्रोत। पुण्य प्रसून बाजपेयी न्यूज़ (भारत का पहला समाचार और समसामयिक चैनल) में प्राइम टाइम एंकर और सम्पादक हैं। पुण्य प्रसून बाजपेयी के पास प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 20 साल से ज़्यादा का अनुभव है। प्रसून देश के इकलौते ऐसे पत्रकार हैं, जिन्हें टीवी पत्रकारिता में बेहतरीन कार्य के लिए वर्ष 2005 का ‘इंडियन एक्सप्रेस गोयनका अवार्ड फ़ॉर एक्सिलेंस’ और प्रिंट मीडिया में बेहतरीन रिपोर्ट के लिए 2007 का रामनाथ गोयनका अवॉर्ड मिला। इस श्रेणी के ब्लॉग में रजनीश के. झा का ब्लॉग आर्यावर्त भी काफी मुखर दिखा इस वर्ष। आलोचना के कॉमनसेंस के प्रतिवाद में इस वर्ष जगदीश्वर चतुर्वेदी का ब्लॉग नया ज़माना  और रणधीर सिंह सुमन का ब्लॉग  लोकसंघर्ष कुछ ज्यादा आक्रामक दिखा है । राजनीति पर कटाक्ष करते इस वर्ष इरफ़ान, काजल कुमार और चन्द्र प्रकाश हुडा के कार्टून पाठकों के द्वारा काफी पसंद किये गए ।
चन्द्र्शेखर के सुभाष

डा. सुभाष राय का बात बेबात ब्लॉग इस वर्ष अनियमितता के बावजूद भी कुछ वेहतर पोस्ट प्रस्तुत करने में सफल रहा है जैसे सरकार और सरोकार नहीं बाज़ार बदल रहा है स्त्री को, मैं नाच्यो बहुत गोपाल आदि।उल्लेखनीय है कि डा. सुभाष राय हिन्दी दैनिक जनसंदेश टाइम्स का संपादक बनकर लखनऊ आये  आठ फरवरी 2011  से इसका विधिवत प्रकाशन शुरू हुआ इन्हें  पता है कि एक स्वस्थ और सकारात्मक समाज के लिए जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में घटने वाली मानवीय घटनाओं का कितना महत्त्व है मनुष्य और उसके जीवन का परिष्कार करने वाले अनुशासनों की ओर लोगों को मोड़ने का इनका संकल्प है साहित्य, कला, संस्कृति और विचार मनुष्य को मानवीय और मददगार बनाये रखने में सहायता करते हैं, इसलिए इन क्षेत्रों की गतिविधियों के लिए इनके ह्रदय में भरपूर जगह है एक संस्कार संपन्न, सभ्य और परहितकातर समाज बनाने में ये आजकल रचनात्मक रूप से पूर्णत: जुटे हुए हैं । इनके द्वारा लिखे गए संपादकीय को आप इस ब्लॉग जनसंदेश टाइम्स पर क्रमवार पढ़ सकते हैं ।

इस वर्ष जून में शिवम् मिश्रा द्वारा संचालित अपने आप में एक अनोखा ब्लॉग आया नाम है  पोलिटिकल जोक्स - Political Jokes । इस ब्लॉग की सबसे बड़ी विशेषता है राजनितिक और समसामयिक विषयों पर चुटीली वो  मारक टिपण्णी । एक बानगी देखिए "ये मनमोहन भी ले लो;  ये दिग्विजय भी ले लो;  भले छीन लो हमसे सोनिया गांधी !  मगर हमको लौटा दो, वो कीमतें पुरानी;  वो आटा, वो गैस, वो बिजली, वो पानी !  बड़ी मेहरबानी, बड़ी मेहरबानी !! "

पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणामों से इस बार नेता से लेकर टीवी चैनल्स तक सब सकते में हैं। जिस को सबसे ज्यादा सीटें हासिल हुई हैं वह खुश तो है लेकिन उसे भी यकीन नहीं था कि वह इतनी सीटें जीत लेंगी।कामरेड मुँह छिपाते फिर रहे हैं। उनका सुर्ख रंग बदरंग हो चुका है। चुनाव परिणामों, सत्ता की लालसा, विश्लेषण को लेकर ब्लॉग दुनिया ने खुलकर इस वर्ष अपनी प्रतिक्रिया दी है।राज्य से लेकर राष्ट्रीय राजनीति के कुछ बिंदुओं पर बात की गई है। कहीं गुस्सा है, कहीं खुशी है, कहीं विश्लेषण है तो कहीं व्यंग्य भी है और कहीं-कहीं काव्यमय प्रतिक्रिया भी दी गई हैं। आइए,एक नजर कुछ चुनिंदा ब्लॉग प्रतिक्रियाओं पर डाली जाए।

मेरी खबर डोट कॉम ने कहा बिखराव के कगार पर वाम मोर्चा, जबकि हस्तक्षेप डोट कॉम ने पूछा कि पश्चिम बंगाल के आम चुनावों में अमेरिकी दखलंदाजी पर भारतीय मीडिया चुप क्यों? पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के चुनाव नतीजों ने दो महिलाओं के नेतृत्व में दो बड़ी राजनैतिक क्रांतियों को अंजाम दिया है। दो ऐसे दिग्गजों को हाशिये से परे धकेल दिया गया, जिन्हें चुनौती देना कल तक असंभव सा था। ऐसा कहा है राजनितिक मंथन पर बालेन्दु शर्मा दाधीच ने । वहीँ मुहल्ला लाईव पर विश्वजीत सेन का कहना था कि अब बंगाल में जनता के साथ जो होगा, वह अकल्‍पनीय है! लोकजतन पर प्रकाश कारत का कहना था आगे कड़ी और लंबी लड़ाई है । हिमालय गौरव ने जहां पश्चिम बंगाल में जनता द्वारा लिखी गई इबारत के मायने पूछे वहीँ प्रवक्ता में जगदीश्वर चतुर्वेदी ने  पश्चिम बंगाल में ‘स्वशासन’ बनाम ‘सुशासन’ की जंग पर खुलकर चर्चा की है 


ब्लॉग को  न्यू मीडिया का स्वरुप दिलाने में कुछ ब्लॉग्स की अहम् भूमिका रही है, जिसमें से एक है भड़ास 4मीडिया   । चाहे सामजिक अतिक्रमण हो या  राजनीति का अपराधीकरण, चाहे विकास की कहर हो या विनास की लहर, चाहे भ्रष्टाचार का मुद्दा हो या विकृतियों के खिलाफ आन्दोलन, हर विषय पर इस वर्ष यह ब्लॉग सर्वाधिक मुखर रहा । जागरण जंक्सन के पोलिटिकल एक्सप्रेस और सोशल इश्यू स्तंभ पर इस वर्ष अनेकानेक महत्वपूर्ण राजनितिक सामग्रियां दखी गयी ।

इसके अलावा कबाडखाना, मुहल्ला लाईव , भड़ास, भड़ास blogनुक्कड़, सीधी खरी बात, न दैन्यं न पलायनम, डंके की चोट पर , रोज़ की रोटी, रोजनामचा, किश्तियाँ, आवाज़, पुरबिया, मीडिया केयर ग्रुप, खरी खरी, आज का मुद्दा, देश्नामा, इंद्रधनुष,कुछ परेशां सा करते सवाल, है कोई जवाब ?पंकज के कुछ 'पंकिल शब्द' , अंतर्मंथन, देश वन्धुआर्यावर्त..,सुनिए मेरी भी , उलटा पुल्टा, कलम का सिपाही, नेटवर्क ६,  आधारशिला, कडुवा सच ... , बुरा भला , कुछ बातें अनकही, अख्तर खान अकेला, जनशब्द, बिखरे आखर, ज़िन्दगी एक खामोश शहर, जागो भारत,माली गाँव, युवा मन,ZEAL ,पढ़ते पढ़ते, लोकसंघर्ष, ललित डोट कॉम, बोल पहाडी  ,जनपक्ष ,अंदाज़े मेरा , लोक वेब मीडिया, दीपक बाबा की बकबक , जो मेरा मन कहे , मेरा सरोकार , कलम , आनंद जोशी  , जुगाली , जीवन की आपाधापी , अंधड़    , आवाज़ इंडिया , मुझे कुछ कहना है  , गिरीश पंकज  , सर रतन, ढिबरी, कोशी खबर , कुछ अलग सा, परिकल्पना ब्लॉगोंत्सव  , प्रतिभा की दुनिया  ,  भारतीय नारी बैसवारी baiswari  Hindi Bloggers Forum International (HBFI) , धान के देश में! , यदुकुल प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ ,इयत्ता  ,  मनोज  आदत...मुस्कुराने की  जिज्ञासा ,   स्वप्नदर्शी ,  हिन्दुस्तान का दर्द ,  मुकुल का मीडिया , अमीर धरती गरीब लोग  आदि ब्लॉग पर भी इस वर्ष राजनीति और समाज से संवंधित अत्यंत सार्थक और सकारात्मक पोस्ट पढ़ने को मिले हैं ।

........विश्लेषण अभी जारी है,फिर मिलते हैं लेकर वर्ष-2011 की कुछ और झलकियाँ 

रविवार, 29 जनवरी 2012

ई चुनावी माया महाठगनी हम जानी


चौबे जी की चौपाल 

आज चौबे जी की चौपाल लगी है बरहम बाबा के चबूतरा पर । चुनावी हलचलों से भरा-पूरा है चौपाल । खुसुर-फुसुर के बीच चौबे जी ने कहा कि "जब से बजा है चुनावी बाजा,हर केहू इहे गावत हैं- वोटर राजा....आजा मेरी गाडी में आजा। होई गए ससुरी झूठ मा सच की मायावी मिलावट, न सुस्ती न थकावट। अजब-गज़ब प्रत्याशियों की भरमार,कहीं बाघ की खाल में रंगे सियार तो कहीं चतुर नार बड़ी होशियार। जनता हटत जात,ससुरी सटत जात। उधर वालीवुड की हुस्नपरी  अमरप्रेम में पगलायके अज़मवा के खुबई कोस रही है, इधर यू.पी.वाला ठुमका  लगाएँ, कईसे नाच के दिखाएँ, एम.पी. वाली उमा सोच रही है। हाथी पर पर्दा परि गए, युवराज फुलि के कुप्पा होई गए । छोटे मियाँ की दूकान क्या चटकी,साईकिल की रफ़्तार बढाए दिए हैं और बड़े मियाँ के  आराम खातिर झाड पर चढ़ाए दिए हैं ।बडबोले दिग्गी का मन आजकल रीता-रीता है और विधायक जी के पास एक से एक परिणीता है। केहू आपन चिर परिचित चाल मा मस्त है तs केहू वोटरन  के रिझावे खातिर अद्धा-पौआ पियावे में व्यस्त है । पहिले मजदूर-किसान चिल्लात रहें हसिया और बाली,अब चिल्लात हैं घरवाली-बाहरवाली। प्रदेश  मा सब कुछ होई गए उल्टा-पुल्टा,क्या शरीफ-क्या कुल्टा ? दुश्मन के चूमे,दोस्तन के कोसे....ई चुनावी माया महाठगनी है राम भरोसे।"  

"सही कहत हौ चौबे जी। चुनाव का मौसम का आये गए हंस की चाल मा कौआ चलने लगा,उल्लू अंग्रेजी बोलने लगा,कगवा पुराण बांचने लगा। और तो और भावी विधायक सटहे-सटहे परधानन के द्वार पूजा करने लगे। खुसुर-फुसुर बढ़ी गए हैं महाराज, सब केहू इहे पूछत हैं कि इस बार कवन करवट बैठेगा मुसलमान? रघुपति राघव राजा राम वाला धुन बाजी कि ना ? सवर्ण अईहें कि ना पहाड़ के नीचे ? बैकवार्ड साईलेंट मोड मा रहिहें कि कुछ बोलिहें भी ? नौ मन तेल ना होई तs का हथनी ना नाची? अंतत: नेतवन के ई भी गुमान है चौबे बाबा कि समीकरण जैसे बदलिहें जनता पर सम्मोहनी डालिके लूट लेंगे वोट,आखिर हमरे रहमोकरम पर पले पोसाए वाले वाहुवाली कवन दिन काम अयिहें ? छुरी तरबूज पर गिरे चाहे तरबूज छुरी पे आखिर हलाल तs तरबूजे होई नs?बोला राम भरोसे  

"एकदम्म सहीविल्कुल सोलह आने सच।छंटे हुए प्रत्याशियों की छंटी हुई वयानवाजी सुन-सुनके अब उबकाई आबत है हमके   दिन-रात अपराध,भ्रष्टाचार,घोटाला मा लिप्त रहे वाला के मन में कईसे जनता खातिर इतना प्यार उमड़ी जात हैं अचानक, हमके समझ मा नाही आवत। ई ससुरी राजनीति अब राजनीति नाही रही तबायफ का गज़रा होई गयी है, नेता लोग रात मा पहनत हैं सुबह मा उतारि देत हैं।" बोला गजोधर

यह सब सुनकर रमजानी मियाँ की दाढ़ी में खुजली होने लगी।पान की पिक पिच्च से फेंककर अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए फरमाया कि "बरखुरदार, इस भीड़तंत्र में सब हैं बाबन गज के, केहू इक्यावन गज के नाही है। ऊ गंदा बोलत हैं। गंदा करत हैं  जेकरा जब,जहां,जैसे,जे मर्जी आवत है ऊ गन्दगी पर गन्दगी उड़ेलत जात है। आये दिन बेहिसाब फेंकी जा रही इस गन्दगी से उजली कमीजों की तादाद लगातार कम होई गए जे गंदा रहलें ऊ और गंदा होई गए । नैतिकता दम तोड़ गयी। मर्यादा सीमा लांघ गयी । माहौल में जहर घुली गए। नेता लोग अब चुनाव नाही लड़त जश्न मनावत हैं। न कोई उनके टोके वाला न कोई रोके वाला। खैर छोडो मियाँ एक शेर सुन लेयो इसी मौजू पर दुष्यंत साहब का, अर्ज़ किया है - तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुनकर तो लगता है, कि इंसानों के जंगल में कोई हांका हुआ होगा।"

"बाह-बाह क्या शेर पटका है रामाजानी भईया। इसी मौजू पर एक रुबाई हमरी भी सुन लेयो- कुछ टैक्स हमसे ले लो शिक्षा के नाम पर, कुछ रक्त हमसे ले लो रक्षा के नाम पर,पहले तो बहुत ले चुके घोटाले की आड़ में, बाकी जो बचा ले लो चुनावी भिक्षा के नाम पर" गुलटेनवा बोला

इतना सुनकर तिरजुगिया की माई चिल्लाई "अब ऊ ज़माना गए गुलटेनवा, यू. पी. की जनता मूरख नाही है। जईसे -जईसे चुनावी पारा चढीहें, विरोध के स्वर तेज होई जाई। छोटी सी चीज से बड़े-बड़े किस्से हवाओं में तैरे लगिहें। पता नाही केतना लोगन की इज्जत नीलाम होई जाई। कहाँ-कहाँ कईसन-कईसन लोग चटकारे ले-लेके सुनईहें और सुनिहें। देख बबुआ आगे-आगे होत है का ? ईमानदारन के मिली जीत की ख़ुशी और बईमानन के ऊपर बरसिहें हार का सोंटा....तैयार रहs लोगन।"

"खिसियाके खंबा नोचले से काम ना चली चाची, हमन के मिलके कुछ करै के पडी।" पान की गुलगुली दबाये रमजानी मियाँ ने चुटकी लेते हुए कहा।

इतना सुनके चौबे जी सीरियस हो गए और कहा क़ि "ई पब्लिक है सब जानत हैं,अगर ई सच है तो फिर नकारा,भ्रष्ट और अपराधी नेतवन के बाहर का रास्ता काहे नाही दिखा देत हैं हमरे प्रदेश की जनता? राजनीति से अपराधीकरण काहे नाही मिटाए देत हैं? वास्तव में जनसेवक बने लायक लोगन के हम आपन रहनुमा काहे नाही बनावत हईं ? अईसन नेता हार जयिहें तs का बिगारिहें हमार ? गरियायवे ना करिहें और का करिहें ? तs चलs हमनी के मिलके आज ई संकल्प लेत हईं कि ईमानदारों को जिताएंगे,बईमानों को बाहर का रास्ता दिखाएँगे" सबकी सहमति के बाद चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया। 

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण-2011 (भाग-5 )


ब्लॉग पर सृजन-कर्म और विमर्श को
नया आकाश मिला वर्ष-2011 में.....

"अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का माध्यम है ब्लॉग,वास्तविक, त्वरित, और कम खर्चीली स्वतंत्रता जैसी एक ब्लॉग दे सकता है, वह किसी अन्य माध्यम में उपलब्ध नहीं है। मैं हिन्दी ब्लॉगिंग के भविष्य को लेकर आशान्वित हूँ और उत्साहित भी। हिन्दी ब्लॉगिंग का भविष्य उज्जवल है और इसमें अनेक संभावनाएं है।"
समीर लाल "समीर", वरिष्ठ ब्लॉगर
गतांक से आगे......


हिन्दीभाषी किसी मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त करने, भड़ास निकालने, दैनिक डायरी लिखने, खेती-किसानी की बात करने से लेकर तमाम तरह के विषयों पर लिख रहे हैं। अपनी इसी खूबी के कारण इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का माध्यम कहा जाता है क्योंकि यहाँ पर आप कुछ भी और कितना भी लिखिए, कोई रोकने वाला नहीं है। विगत भाग में मैंने साहित्यिक गतिविधियों पर खुलकर बातें की, किन्तु कुछ और कहना शेष रह गया था, चलिए आगे बढ़ते हैं ........

हाइकु गतिविधियाँसाहित्य की बात चल रही है तो आईए सबसे पहले आज हम चलते हैं एक ऐसे ब्लॉग पर जो समग्र साहित्य का त्रैमासिक संकलन है, नाम है अविराम अविराम का प्रकाशन सामान्यतः आवरण सहित 52 पृष्ठों में प्रकाशित होता है। यह ब्लॉग जुलाई-2011  से अस्तित्व में आया है । हिंदी में हाईकू लेखन से संवंधित गतिविधियों पर भी ब्लॉग उपलब्ध है, जिसका नाम है हाईकू दर्पण 

आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि, विभिन्न साहित्य रूपों में, अभिव्यक्त हुई। वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की किन्तु प्रमुख रूप से वह कथाकार हैं। 27 फरवरी 2011 को अवनीश सिंह  के द्वारा संचालित  प्रेमचंद के पाठकों को समर्पित एक ब्लॉग आया । इनके और भी कई ब्लॉग है जैसे विमर्श, अनकही बातें आदि । 
साहित्य की बात हो और मुहल्ला लाईव की चर्चा न हो तो सबकुछ अधूरा-अधूरा सा लगता है । वर्ष-2011 में इस ब्लॉग पर साहित्यिक गतिविधियों से संवंधित अनेकानेक रिपोर्ताज और अन्य सामग्रियां प्रकाशित हुई । अविनाश दास ने इस ब्लॉग की शुरुआत वर्ष-2006 में ब्लॉग स्पॉट  पर की थी,  जिसे बाद में उन्होंने इसे सामूहिक ब्लॉग में परिवर्तित कर दिया   


जहां तक व्यक्तिगत ब्लॉग पर साहित्य संचयन का प्रश्न है मनोज भारती के दो ब्लॉग प्रशंसनीय है,पहला गूँज अनुगूंज जो अध्यातिम विषयों पर केन्द्रित है और दूसरा बूँद बूँद इतिहास । इसमें पायेंगे आप हिंदी साहित्य के इतिहास की रूपरेखा और एक ही स्थान पर हिंदी की रचनाओं, लेखकों और उसकी विभिन्न धाराओं की प्रवृतियों सारगर्भित निचोड़  नवीन सी. चतुर्वेदी का ब्लॉग ठाले बैठे हिंदी का एक ऐसा अनोखा ब्लॉग है,जहां छंद को जीवंत बनाए रखा गया है    इस ब्लॉग पर अनुष्टुप छंद,अमृत ध्वनि छंद,उल्लाला छंद,ककुभ छंद,कर्ण छंद,कुण्डलिया छंद,गीतिका छंद,घनाक्षरी छंद,चवपैया छंद,चौपाई छंद,छप्पय छंद,ताटंक छंद,दुर्मिल सवैया,दोहा छंद,नव-कुण्डलिया छंद,पञ्चचामर छन्द,बरवै छंद,भुजंग प्रयात छंद,मत्तगयन्द सवैया,मानव छंद,मालिनी सवैया,रुचिरा छंद,रोला छंद,विधाता छंद,शोकहर छंद,सरसी छंद,सांगोपांग सिंहावलोकन छंद,सार / ललित छंद,सुन्दरी सवैया,सोरठा छंद,हरिगीतिका छंद आदि छन्द अनुसार पढ़ सकते हैं   हिंदी में प्रकाशित साहित्यिक पत्रिकाओं की संक्षिप्त समीक्षा उससे संबंधित जानकारियों का विस्तृत आकाश है एक ब्लॉग पर नाम है कथा चक्र। इस ब्लॉग के संचालक हैं अखिलेश शुक्ल।


एक ऐसा ब्लॉगर जिसने ब्लॉग पर वर्ष-2009  - 2010  में सर्वाधिक पोस्ट लिखने की उपलब्धि हासिल की,किन्तु वर्ष-2011  में ये पिछड़ गए और यह श्रेय गया डा. राजेन्द्र तेला निरंतर के हिस्से  ने इस वर्ष अपने व्यक्तिगत ब्लॉग निरंतर की कलम से पर एक वर्ष में सर्वाधिक पोस्ट (1669 )लिखने का कीर्तिमान बनाया है ।
उच्चारण
उल्लेखनीय है कि हिंदी ब्लॉगिंग को साहित्य के सन्निकट लाने वालों में एक महत्वपूर्ण नाम है डा. रूप चंद शास्त्री मयंक का, जिन्होनें 21 जनवरी, 2009 को हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में अपना कदम बढ़ाया था। उस समय उन्होंने अपना ब्लॉग उच्चारणके नाम से बनाया था, जिस पर अबतक 2000 से ज्यादा रचनाएँ पोस्ट की जा चुकी है और इस ब्लॉग के लगभग 400 से ज्यादा समर्थक हैं। उसी वर्ष 19 फरवरी को इन्होनें “अमर भारती” के नाम से एक और ब्लॉग बनाया,जिस पर 200  से ज्यादा पोस्ट अस्तित्व में है ।इसके बाद इन्होनें 30 अप्रैल, 2009 में “शब्दों के दंगल” के नाम से गद्य का एक ब्लॉग बनाया। जिस पर अब तक 190 पोस्ट लग चुकी हैं और समर्थकों की संख्या 150  से   ज्यादा  हो गई है।इसके बाद इन्होनें “मयंक की डायरी के नाम से एक और ब्लॉग बनाया। 4 नवम्बर, 2009 को एक ब्लॉग इन्होनें ब्लॉगर मित्रों के नाम पते सहेजने के लिए डायरेक्ट्री के नाम से बनाया। लेकिन उस पर 100 से अधिक नाम-पते नहीं मिल सके और इसका नाम बाल चर्चा मंच रख दिया। लेकिन बाल साहित्य के बहुत ही थोड़े सले ब्लॉग थे और उनमें से अधिकांश पर नियमित पोस्टें लहीं लगती थीं। इस लिए इन्होनें अब इसका नाम “धरा के रंग” रख दिया है।इसके बाद इन्होनें चर्चाकार के रूप में ब्लॉगिंग की दुनिया में पदार्पण किया और चर्चा मंच पर "दिल है कि मानता नही" के नाम से पहली चर्चा 18 दिसम्बर, 2009 को लगाई। चर्चा मंच के आज की तारीख में 750 समर्थक है और चर्चाओं का आँकड़ा 760 को पार कर गया है। 9 मई, 2010 को इन्होनें बालसाहित्य का एक ब्लॉग बनाया और इसको नाम दिया नन्हे सुमन। जिस पर 150  से ज्यादा पोस्ट और समर्थकों की संख्या 85  से ज्यादा  है।

विशुद्ध साहित्यिक रचनाओं के सरोवर में गहरे उतरने को विवश करता एक ब्लॉग है कर्मनाशा । पूरे वर्ष सिद्धेश्वर ने कुछ अच्छी कविताओं के हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किए  जिसमें प्रमुख है पोलिश कविता की समृद्ध और गौरवमयी परम्परा  की एक महत्वपूर्ण कड़ी  के रूप में विद्यमान  हालीना पोस्वियातोव्सका ,  पीटर ओड्स   , कैरोलिन कीज़र  , वेरा पावलोवा, निज़ार क़ब्बानी,बेतुके वक्त, ममांग दाई,ग्राज़्यना क्रोस्तोवस्का, टॉमस ट्रांसट्रोमर,रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि की कविताओं के अनुवाद । इसके अलावा इस वर्ष  सिद्धेश्वर की लिखी कुछ वेहतरीन कवितायें पढ़ने को मिली है 


इसके अलावा  सतीश सक्सेना (मेरे गीत),राज भाटिया (पराया देश, छोटी छोटी बातें), इंदु पुरी (उद्धवजी), अंजु चौधरी (अपनों का साथ), वंदना गुप्ता (जख्म…जो फूलों ने दिये, एक प्रयास), महफूज अली (लेखनी…, Glimpse of Soul), यौगेन्द्र मौदगिल (हरियाणा एक्सप्रैस), अलबेला खत्री (हास्य व्यंग्य, भजन वन्दन, मुक्तक दोहे), संजय अनेजा (मो सम कौन कुटिल खल…?), राजीव तनेजा (हँसते रहो, जरा हट के-लाफ्टर के फटके), जाट देवता (संदीप पवाँर) (जाट देवता का सफर), संजय भास्कर (आदत…मुस्कुराने की), कौशल मिश्रा (जय बाबा बनारस), दीपक डुडेजा (दीपक बाबा की बक बक, मेरी नजर से…), आशुतोष तिवारी (आशुतोष की कलम से), मुकेश कुमार सिन्हा (मेरी कविताओं का संग्रह, जिन्दगी की राहें), पद्मसिंह (पद्मावली), सुशील गुप्ता (मेरे विचार मेरे ख्याल), राकेश कुमार (मनसा वाचा कर्मणा), सर्जना शर्मा (रसबतिया), शाहनवाज़ (प्रेम रस), अजय कुमार झा (झा जी कहिन),कनिष्क कश्यप (ब्लॉग प्रहरी), केवल राम (चलते-चलते, धर्म और दर्शन), ताऊ रामपुरिया (ताऊ डोट इन) और राहुल सिंह ( सिंहावलोकन ) ने भी इस वर्ष कतिपय साहित्यिक रचनाओं से पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है 


इसके अलावा सुबीर संवाद सेवा ,कवि कुमार अम्बुज, अपर्णा मनोज, मृत्युबोध, नई बात ,मेरी लेखनी मेरे विचार , अजित गुप्ता का कोना, मन का पाखी, कलम,अंदाज़े मेरा , मो सम कौन कुटिल खल, काव्यांजलि, फुहार   आदि पर भी उत्कृष्ट साहित्यिक सामग्री प्रस्तुत की गई है इस वर्ष

चलते-चलते एक और महत्वपूर्ण ब्लॉग का जिक्र करना चाहूंगा। ब्लॉग पर ब्लॉगरों का परिचय देने के उद्देश्य से राजीव कुलश्रेष्ठ ने वर्ष-2010 में " ब्लॉग वर्ल्ड.कॉम " ब्लॉग की शुरुआत की,किन्तु इस वर्ष यह ब्लॉग कुछ ज्यादा मुखर रहा  इसपर वे लगभग 100 से अधिक ब्लॉगर्स का परिचय पोस्ट के रूप में प्रकशित कर चुके हैं। .उनके द्वारा करवाए जाने वाले परिचय की ख़ास बात यह है कि वह ब्लॉगर द्वारा ब्लॉग पर की गयी पोस्ट पर आधारित होता है और वहां संवंधित ब्लॉगर के सभी ब्लॉगों का जिक्र भी होता है  साथ ही संकलित लेकिन बहुत ही अर्थपूर्ण और सार्थक टिप्पणी भी ब्लॉगर्स के लेखन और व्यक्तित्व पर भी की जाती है इस ब्लॉग पर उनके अपने परिचय के बाद पहला परिचय के रूप में दर्शन कौर धानोए का परिचयात्मक पोस्ट होता है।इस ब्लॉग पर अनेकानेक ब्लॉग के लिंक भी दिए गए हैं । कुलमिलाकर राजीव कुलश्रेष्ठ का यह प्रयास सराहनीय है 
                      ........विश्लेषण अभी जारी है,फिर मिलते हैं लेकर वर्ष-२०११ की कुछ और झलकियाँ
 
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