शनिवार, 30 जून 2012

शिकायत

    बड़ी बड़ी दावतों में जाना
और जम कर पीना,खाना
तरह तरह के पकवानों का,
लेते लेते स्वाद
आदमी इतना डट कर खा लेता है,
कि खाने पीने के बाद
डकारें लेता है,पेट सहलाता है
घर आते ही बिस्तर पर,
गिरता ,सो जाता  है
ये सच है,दावत खाने के बाद,
आदमी किसी भी काम का नहीं रह जाता है

मदन मोहन बहेती'घोटू'

इतिहास दुहरा रहा है

   

केकैयी ने,
अपने बेटे भरत को,
राजगद्दी दिलवाने के लिए,
राम को रास्ते से हटाया
चौदह वर्षों का वनवास दिलवाया
ताकि बारात के राज्याभिषेक में,
कोई आड़े ना आ पाये
सोनिया जी ने,
अपने बेटे राहुल को,
प्रधानमंत्री बनवाने को,
प्रणव को रास्ते से हटाया
उन्हें राष्ट्रपति बनवाया
ताकि राहुल के राज्याभिषेक में,
कोई आड़े ना आ पाये
क्योंकि अगली बार जब भी मौका आता
प्रणव दादा जैसा कद्दावर व्यक्तित्व,
राहुल के रास्ते में आ जाता
वैसे तो और भी कई नेता है
पर कोई कमाई में लगा है
कोई चाटुकार है,
तो कोई आरोपों के दलदल में फंसा है
राहुल को टक्कर देनेवाला कौन बचा है?
प्रणव के राष्ट्रपति बन जाने का रास्ता साफ़ है
देखो दुहरा रहा इतिहास है

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

शुक्रवार, 29 जून 2012

लक्ष्य-लक्ष्मी प्राप्ति का



जो फलों की कामना हो,बीज बोना चाहिये
लक्ष्मी की प्राप्ति का ही,  लक्ष्य होना चाहिये
पीठ कछुवे की तरह से,इस कदर मजबूत हो,
जरुरत पड़ने पे उसको पहाड़ ढोना  चाहिये
लेना पड़ सकती है तुमको,दुश्मनों की भी मदद,
देवता और दानवों सा,  साथ होना  चाहिये
कोई भी जरिया हो चाहे नाग की मथनी बने,
कैसे भी हो ,हमको बस ,सागर बिलौना चाहिये
निकल  सकता है हलाहल,भी सुधा की चाह में
,साथ संकट निवारक  शंकर का होना  चाहिये
उच्च्श्रेवा,एरावत,निकलेगी रम्भा,वारुणी,
छोट मोटे रत्नों का बंटवारा होना चाहिये
लक्ष्मी खुद प्रकट होकर आपको मिल जाएगी,
प्रतीक्षा में धैर्य अपना नहीं खोना  चाहिये
अपने साथी देवताओं को ही अमृत बांटना,
मोहिनी का रूप पर सुन्दर ,सलोना चाहिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 27 जून 2012

पाती-पिता के नाम



आज हम जो कुछ भी हैं,ये मेहरबानी आपकी
हमारा किस्सा नहीं ,ये है कहानी आपकी
जिंदगी के इस सफ़र में ,आई जब भी मुश्किलें,
हम गिरे या लडखडाये,उंगली  थामी आपकी
थपथपा कर पीठ इसी हौसला अफजाई की,
जोश दूना भर गयी  ये कदरदानी  आपकी
इस चमन में खिल रहे है,फूल हम जो महकते,
आपका है खाद पानी, बागवानी   आपकी
आपने डाटा ,दुलारा ,सीख दी ,रस्ता  दिखा,
याद है बचपन की सब ,बातें पुरानी आपकी
आपके कारण ही कायम है हमारा ये वजूद,
आपका ही अक्स हैं,हम है निशानी   आपकी
देर से आये हैं लेकिन आये हैं हम तो दुरुस्त,
आपको पहचान पाए,कदर  जानी आपकी
आपका साया हमारे सर पे  बस कायम रहे,
हे खुदा! हो जाए हम पर मेहरबानी  आपकी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 26 जून 2012

उड़ती धूप -`गॅ पार्टी ।` लघु वार्ता(वि)लाप..!!







उड़ती  धूप -`गॅ पार्टी ।`
लघु  वार्ता(वि)लाप..!!


"उम्र की उड़ती  धूप, तुम्हें  छू कर निकल  गई  क्या?
 अब सुखाते  रहना तुम, ओस की गीली आवाज़  को..!!


* उम्र के  सारे  पड़ाव, इन्सान  को  जब  उड़ती  धूप  के समान लगने लगते  हैं तब, उसे यह  बात  समझ  में  आती  है  कि, ज़िंदगी  में  अनुभव की  कमी  की  वजह  से, नादान  ओस  की  मासूम  नमी  भरे  तानें (कटाक्ष)  सुखाते  समय, कभी कभार  ऐसी  आवाज़ें, इन्सान  को  विनाश  की  राह  पर  भी  ले  जा  सकती  हैं । (बच  के  रहना, रे...बा..बा..!!)  

=======

" माँ, यह  उड़ती  हुई  धूप  मुझे  तो  बहुत  अच्छी लगती है..!! देखो..ना..!! सुबह  यहाँ, दोपहर  मेरे सिर पर और  शाम  को? शाम  को  इस  तरफ..!! माँ, आख़िर  यह  धूप  कैसे  उड़ती  होगी..!!

" क्या बात है  बेटे..!! मेरा बेटा बड़ा हो कर, बहुत बड़ा साहित्यकार बनेगा क्या, अभी से इतनी बड़ी-बड़ी बातें सोचने लगा है?"

" नहीं माँ, मैं तो बड़ा हो कर हैं..ना..!! ह...अ..म्‍....बता दूँ..!! मैं तो है ना...!! मैं  पुलिसवाला बनुंगा और फिर जो कोई भी इस उड़ती धूप के साथ नहीं भागेगा उनको,  पकड़-पकड़ कर  मैं,  जेलख़ाने  में  बंद  कर  दूँगा..!! बहुत मज़ा आयेगा ।"

=====

" सर, आज  कोई  नया  कैदी  आया  है, कहाँ  डालूँ?"

"कित्ते  साल  का  है? क्या  चार्ज  लगाया  है?"

" साहब, किसी फार्म हाउस पर, गॅ पार्टी  में  हाथापाई  का  कुछ  लफ़ड़ा  कियेला  है  और  उम्र तो  सिर्फ  अट्ठारह साल  की  लगती है..!!"

"ठीक  है, डाल  दे  उसे  चार नंबर में, उन  दो  बुड्ढों  के  साथ ..?"

" सा`ब, चार नंबर में? वह   मासूम  लड़की  पर बलात्कार  करने  वाले, दो  बदमाश  बुड्ढों  के  साथ?"

" अरे, हाँ..हाँ  वही..!! सा...ले, इसे  देख कर  जलते रहेंगे  और  हाँ  जल्दी  करना, अदालत  का  वक़्त  हो गया  है, वहाँ  भी  तो  टाईम  पर  पहूँचना  है..!!"

"ठीक  है  सा`ब । अभी  आया  मैं..!! चल  अबे, यहाँ-वहाँ  क्या  देखता है, अपने  अब्बु  की  बारात  में  आया  है  क्या?" 

=======

" अरे  या..र, तु  दिखता  तो  है  सिर्फ  इतना  सा..!! अब  बता, बाहर  क्या  गुल  खिला  कर  अंदर आ..या..है..इ..इ..!!"

" क..अ..क..अ..क..अ..कुछ  न..हीं..!!"

" अ..बे, सीधी  तरह  बताता है  कि, दूँ  एक  उल्टे  हाथ  की..!! ब..ता  सा..ले? बोलता  है  की  नहीं..बता?"

" मैंने  कुछ  नहीं  किया..!! मैं तो पहली बार गॅ पार्टी में गया और सब मेरे से  ज़बरदस्ती करने  लगे  तो,  मेरा  हाथ  उठ  गया, मैं बिलकुल  निर्दोष  हूँ..!!"

" क्या..बे..हमको ऐड़ा समझता है क्या? अच्छा, तु  तो  गॅ पार्टी वाला है ना? अरे यार..!! ये तो वही च ना, जिस में एक मर्द..दूसरे मर्द के सा..थ..? आ..ई..ला, ही...ही..ही..ही..आ..ई..ला, ही...ही..ही..!! चल, हम  भी आज तेरे साथ, गॅ पार्टी-गॅ पार्टी  खेलेंगे ।"

"क्या..आ..आ? न..हीं..ई..ई..ई..!!"

" चल बे मजनू,  देख  क्या  रहा  है? कस  के  पकड़  साले  को, आज मासूम  लड़की  नहीं  तो, लड़का ही  स..ही..!!"

========

" माँ तुम कहाँ हो? देख, तुम मेरी फ़िक्र  मत करना..!! उड़ती धूप का साया, अब ढलने को है और अब तो मुझे कोई दर्द भी महसूस नहीं होता..!!"
====

प्यारे दोस्तों, क्या आप को दर्द महसूस  हो   रहा  है?

मार्कण्ड दवे । दिनांक-१५-१२-२०११.

परायों के घर

कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;
सपनो की आंखो से देखा तो,
तुम थी .....!!!

मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था,
मैंने तुम्हारे लिये ;
एक उम्र भर के लिये ...!

आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ;
शायद उन्ही रास्तों में ;
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो .......!!

लेकिन ;
क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;
कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........!!!
http://poemsofvijay.blogspot.in/2012/06/blog-post_26.html  

परायों के घर

कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;
सपनो की आंखो से देखा तो,
तुम थी .....!!!

मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था,
मैंने तुम्हारे लिये ;
एक उम्र भर के लिये ...!

आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ;
शायद उन्ही रास्तों में ;
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो .......!!

लेकिन ;
क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;
कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........!!!
http://poemsofvijay.blogspot.in/2012/06/blog-post_26.html  

सोमवार, 25 जून 2012

कौन कहता है?, आग पानी का साथ नहीं हो सकता


कौन कहता है ?
आग पानी का साथ
नहीं हो सकता
मैं सबूत हूँ
नफरत भरे रिश्तों की
आग में भी जीवित रहा
समस्याओं की कसौटी पर
खरा उतरता रहा
स्वाभिमान की आंच में
झुलसा अवश्य
पर सहन शीलता से
उस पर पार पाता रहा
नफरत के गर्म सूरज पर
सब्र की ठंडक से
विजय पाता रहा
भावनाओं की आग को
भभकने नहीं दिया
हिम्मत के पानी से
उसे बुझाता रहा
कौन कहता है ?
आग पानी का साथ
नहीं हो सकता
25-06-2012
593-43-06-12
(डा.राजेंद्र तेला"निरंतर")

शनिवार, 23 जून 2012

भगवान तू बनिया है



इस धरा पर इतने
अवतार लिए  तूने
बनिये के घर अभी तक,
अवतार ना लिया है
भगवान तू बनिया है
जब काम से थके तो
घर पर ना रह सके तो
ये आजकल का फेशन
जाते है हिलस्टेशन
कर पार लम्बी दूरी
शिमला कभी मसूरी
तो ठीक इस तरह से
तंग आके गृह कलह से
ऊबा जो उधारी से
तकड़ी से ,तगारी से
तो हार करके आया
अवतार धर के आया
सच कहा है किसीने
औरों की थालियों में
दिखता अधिक ही घी है
ये बात भी सही है
बनिया तो रह चुका था
उस काम से थका था
बनिया नहीं बना तू
छोड़ी बही,तराजू
और धनुष बाण धारा
या फरसा फिर संभाला
क्षत्रिय बना, ब्रह्मण
बलराम और वामन
था मच्छ कच्छ जलचर
बन कर वाराह थलचर
नरसिंह भी बना पर
तू बन न पाया नभचर
डरता है उल्लूओं से
पत्नी के वाहनों से
कितने ही रूप धारे
पर बनिया  ना बना रे
बदला है रूप केवल,
बनने से होता क्या है
भगवान तू  बनिया है
सच  कह् दूं इस बहाने
जो तू बुरा न माने
चोला भले था झूंठा
बनिया पना ना छूटा
मछली से तेज चंचल
बनिये का गुण ये अव्वल
कछुवे सी पीठ करले
बनिया पहाड़ धरले
थोडा भी ना हिले वो
पर  रत्न जब मिले तो
एक बात तो बता तू
वाराह क्यों बना  बना तू
भू पर न कर लगाया
दांतों से क्यों उठाया
ये ही दिखने केवल
दांतों में है कितना बल
जो चाहे वो चबाले
बनिये सा सब पचा ले
वामन बना तू छोटा
बनिये सरीखा खोटा
क्या कहूं में छली को
ठग ही लिया बली को
छोटा सा पग बढाया
धरती को नाप आया
बनिया उधार  कर दे
दस के हज़ार कर दे
जो धन मिले तो नर है
साक्षात् ईश्वर है
पैसा जो कम जरा रे
तू सिंह सा दहाड़े
नरसिंह स्वरुप है तू
बनिये का रूप है तू
तू कृष्ण बना राजा
तू राम बना राजा
सोने के मृग पे दौड़ा
बनिया पना न छोड़ा
पूँजी पति है बनिये
लक्ष्मी पति है बनिये
ये बात भी सही है
तू लक्ष्मी पति है
मतलब की तू है बनिया
मै झूंठ कह रहा क्या
हर रूप तेरा भगवन,
बनिये के गुण लिया है
भगवान तू बनिया  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 21 जून 2012

नींद

   

बिन बुलाये चली आती,नींद ऐसी मेहमां

किन्तु ये होती नहीं है,हर किसी पे मेहरबां
नरम बिस्तर रेशमी,आना नहीं,ना आयेगी
भरी बस या ट्रेन में भी,आना है,आ जायेगी
जब किसी से प्यार होता,और दिल जाता है जुड़
बड़े लम्बे पंख फैला,नींद फिर जाती है उड़
देखने जिसकी झलक को,तरसते है ये नयन
उन्हें आँखों में बसाती,नींद ला सुन्दर  सपन
बहुत जब बेचैन होता,मन किसी की याद में
नींद भी आती नहीं है,उस विरह की रात में
और मिलन की रात में भी,नींद उड़ जाती कहीं
हो मिलन दो प्रेमियों का,बीच में आती नहीं
उठ  रहा हो ज्वार दिल में,और प्रीतम संग  है
प्रीत के उन मधु क्षणों में,नहीं करती तंग  है
ये थकन की प्रेमिका है,बंद होते ही पलक
एक मुग्धा नायिका सी,चली आती बेझिझक
है बडी बहुमूल्य निद्रा,स्वर्ण के भण्डार  से
आती है तो कहते सोना आ गया है प्यार से
गरीबों की दोस्त,खुशकिस्मत बहुत होते है वो
चैन सोने की नहीं ,पर चैन से   सोते है   वो
अमीरों से मगर इसका बैर है दिन रैन का
पास में सोना  बहुत  पर नहीं सोना चैन का
नींद है चाहत सभी की,दोस्त के मानिंद है
नींद क्या है,क्या बताएं,नींद तो बस  नींद है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 20 जून 2012

सज,संवर मत जाओ छत पर



इस तरह तुम सज संवर कर,नहीं जाया करो छत पर
मुग्ध ना हो जाए चंदा ,   देख कर ये  रूप      सुन्दर
है बड़ा आशिक  तबियत,दिखा कर सोलह कलायें
लगे ना कोशिश करने , किस तरह् तुमको रिझाये
और ये सारे सितारे, टिमटिमा  ना आँख   मारे
छेड़खानी लगे करने ,पवन छूकर  अंग सारे
है बहुत बदमाश ये तम,पा तुम्हे छत पर अकेला
लाभ अनुचित ना उठाले  ,और करदे कुछ  झमेला
देख कर कुंतल तुम्हारे,कुढ़े ना दल बादलों के
लाख गुलाबी लब,भ्रमर, गुंजन करें ना पागलों से
समंदर मारे उंछालें ,रात पूनम की समझ कर
इसलिए जाओ न छत पर,रात में तुम सज संवर कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 18 जून 2012

वेश्या उद्धारक । (`मैं और मेरी कहानियाँ`कहानी संग्रह से । )

 

शक्ल जानी पहचानी क्यों लगती है ? 
दूर है  तो  पास इतनी क्यों लगती है?
लिख  चुके  हैं  कई, इसे पढ़ चुके कई, 
हर गज़ल, मेरी कहानी क्यों लगती है ?
 

===========
 
" मैं  तुमसे एक बिनती करना चाहता हूँ ।" तनय ने अपना बाईक, चौराहे के पास स्थित, चाय की एक छोटी सी दुकान के नज़दीक खड़ा करते हुए, मनोज से कहा ।
 
कॉलेज के दिनों से, तनय और मनोज, दोनों जिगरी दोस्त थे । कॉलेज में, दोनों दोस्त, अगर दिन में एक बार भी, एक दूसरे से न मिल पाएँ, तो दोनों के बीच लड़ाई छिड़ जाती थीं । पर, कॉलेज के दिन तो, जैसे," ते ही दिनों गतः ।" तनय और मनोज, अब तो शायद ही कभी मिल पाते थे ।  

दोनों मित्र,  चाय की दुकान  के पास फूटपाथ पर, एक बेंच पर यंत्रवत बैठ गए । चायवाला लड़का छोटू, बगैर माँगे दोनों को, दो कटींग चाय दे गया ।
 
तनय ने फिर से वही बात, मनोज से कही," मैं  तुमसे एक बिनती करना चाहता हूँ , तु  एक बार `उसे` मिल तो सही..!! वह भी, तेरी ही जाति की है । देख मलय, मेरी बात समझने की कोशिश कर । मेरी इच्छा है की, तुम `उसे` अपनी `बहन` मान लो..!! उसका अपना, इस दुनिया में कोई नहीं है..!!"
 
तनय की यह बात सुनकर भी, मनोज ने तनय को कुछ जवाब नहीं दिया । वह जैसे कुछ ग़हरी सोच में पड गया था..!! मनोज को विचारमग्न देखकर तनय भी मौन होकर चुपचाप चाय पीने लगा ।
 
कॉलेज की पढ़ाई खत्म होते  ही, जब दोनों दोस्त आर्थिक उपार्जन के बारे में सोच रहे थे कि, क्या काम किया जाए? उसी समय तनय को एक पार्टनर मिल गया,जो की पहले से ही गृह निर्माण (बिल्डिंग कन्स्ट्रकशन) के बिज़नेस में अपने पाँव जमा चुका था । उसी पार्टनर के साथ कंपनी के कामकाज में, तनय व्यस्त हो गया । 

इधर मनोज को भी एक प्रख्यात प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई और दिनभर के अति व्यस्त कार्यक्रम के चलते, अपने दोस्त तनय से मिलना करीब-करीब बंद ही हो गया ।
 
दोनों दोस्त को अपने-अपने जीवन में व्यस्त हुए, एक-डेढ़ साल हुआ होगा की, मनोज को किसी दूसरे मित्र द्वारा पता चला, तनय ने किसी बाँसुरी नाम की लड़की से प्रेम विवाह कर लिया है ।
 
हालाँकि मनोज,तनय की शादी में न जा सका था पर, तनय के घर जब बेटा पैदा हुआ तब उसके बेटे को आशीर्वाद देने के बहाने मनोज, तनय-बाँसुरी  को मिलने चला गया ।
 
कॉलेज से अलग होने के बाद, दोनों दोस्त करीब दो साल के पश्चात मिल पाए थे,अतः दोनों ने बीते दिनों को खूब याद किया, पर पता नहीं क्यों, मनोज को ऐसा महसूस हुआ की, तनय और उसकी पत्नी बाँसुरी के प्रेम विवाह होने के बावजूद,  उन दोनों पति-पत्नी के संबंध में, मानो  बहुत बड़ी सी कोई दीवार खड़ी हो गई हो?
 
मनोज को ऐसा भी महसूस हुआ जैसे, बाँसुरी भाभी, मनोज को अपने मन में दबी हुई, कोई बात कहना चाहती थीं, पर कह न पायी हो..!! वैसे भी,  कहते हैं ना, कोई भी समझदार इन्सान किसी भी पति-पत्नी के निजी मामलों में बिना पूछे अपनी राय नहीं देता..!! मनोज ने भी यही किया ।
 
तनय और उसकी पत्नी बाँसुरी के निजी मामले में बिना पूछे कुछ बोलना उचित न समझकर मनोज ने, तनय से इधर-उधर की कुछ गपशप करने के बाद, फिर से मिलने का वायदा करके विदा ली ।
 
तनय और मनोज, दोनों दोस्तों को, एक दूसरे से मिले, करीब एक साल के बाद आज मनोज की ऑफ़िस में, तनय ने फोन करके उसे तुरंत मिलने के लिए आग्रह किया ।  शाम को ऑफ़िस से छूटते ही, वही चाय की छोटी सी दुकान पर,तनय से मिलने का वायदा किया और मनोज ने फोन रख दिया ।
 
हालांकि, आज तनय से मिलने के बाद, उसने अपनी जो दास्तान, मनोज को सुनाई, उसे सुनकर मनोज को बहुत हैरानी हुई..!! तनय की बात सुनकर मनोज का मन जड़ सा,मानो विचार शून्य  हो गया..!!
 
तनय की उटपटांग हरकतों के बारे में, मनोज अक्सर सुनता रहता था, पर तनय के जीवन में इतनी बड़ी गंभीर समस्या पैदा हुई होगी, इस बात का मनोज को ज़रा सा भी अंदाज़ा न था ।

तनय ने मनोज को बताया की, पिछले साल, वह दोनों आखिरी बार जब मिले थे, उससे पहले से, तनय और बाँसुरी के बीच ,अपने-अपने व्यक्तिगत अहंकार को लेकर, बहुत ग़हरा मनमोटाव हो गया था । 

एक दिन दोनों पति-पत्नी के बीच झगड़ा सीमा पार कर जाने पर, तनय, नाराज़ होकर, बाँसुरी और अपने  एक साल के बेटे को, उसी बंगले पर छोड़कर, अपनी नयी स्किम के अपार्टमेन्ट में, अकेला रहने चला गया । ना कभी तनय ने अपनी पत्नी बाँसुरी का हालचाल पूछा, ना कभी  बाँसुरी  ने तनय के साथ सुलह करने का इरादा जताया । वैसे भी, वह बंगला, बाँसुरी के नाम पर था और तनय हर महिना एक बड़ी सी रकम ,अपनी पत्नी बाँसुरी  को निर्वाह के लिए, पहुँचा दिया करता था ।
 
तनय और बाँसुरी, दोनों के परिवारने उन दोनों में सुलह कराने की कोशिश करके देख ली,पर परिणाम शून्य..!! 

दोनों में से कोई भी अपनी जिद्द और अहंकार छोड़कर, थोडा सा भी  झूकने को तैयार ही न था..!! और फिर दोनों के परिवार,इस रिश्ते को लेकर पहले ही नाखुश थे,इसलिए उन्होंने दोनों को समझाने का प्रयत्न करना ही छोड़ दिया ।
 
तनय के कुछ व्यावसायिक मित्रों ने भी, पति-पत्नी, दोनों के बीच सुलह कराई, पर दो-तीन दिन साथ रहने के पश्चात, फिरसे वही झगड़े के चलते, तनय और बाँसुरी, दोनों फिर से अलग हो गए ।
 
हमारे शास्त्र में जैसे लिखा है," अकेला मन शैतान का बसेरा होता है..!!" इसी न्याय अनुसार, अब तनय के अपार्टमेन्ट पर, कुछ अय्याश बिल्डर दोस्तों के साथ खाने-पीने की महफिल रोज़ सजने लगी । सिर्फ ३५ साल की तनय की अनियंत्रित जवानी को, एक दिन ३२ साल की एक देहविक्रय करने वाली वेश्या का साथ भी अनायास ही मिल गया..!! तनय का एक अय्याश दोस्त उस वेश्यासे अपना पीछा छुड़ाना चाहता था, ऐसे में तनय नामक अकेला बकरा, उसी अय्याश दोस्त (?) के जाल में बुरी तरह फँस गया ..!!
 
तनय के जीवन में ये सारी घटनाएँ,इतनी जल्दी हो गई की उसे कुछ सोचने-सँभलने का मौका तक न मिला, जब तनय को ज़रा सा होश आया तब तक तनय उस वेश्या के मोहपाश में बंध चुका था और उसका मानो ग़ुलाम सा हो चुका था ।
 
तनय की इन अय्याश हरकतों के बारे में उसकी पत्नी बाँसुरी को जब पता चला,तब अपने सत्यवान पति को, सावित्रि बनकर, उस वेश्या से पीछा छुड़ाने में सहायता करने के बजाय बाँसुरी, तनय के उस अपार्टमेन्ट पर, वक़्त बेवक़्त जाकर, अपना और अपने बेटे का भविष्य सुरक्षित करने के बहाने, तनय से ढेर सारा रुपया ऐंठने लगीं, इतना ही नहीं तनय के रिश्तेदार,संबंधी,मित्र जो भी मिले उनके पास अपनी हालत का रोना बढ़ा चढ़ा कर बयान करके, तनय को बहुत बदनाम करने लगीं..!!
 
तनय दुःखी मन से बोला,"मनोज, तुम ही बताओ, अब मैं क्या करूँ?"
 
मनोज ने देखा, दुकान के अंदर से, छोटू ने कप रकाबी धोये और वही गंदा-मैला पानी,चाय की दुकान के बाहर, फूटपाथ पर बहता हुआ, कोने में टूटी हुई जाली से, गंदी नाली में बहने लगा, काश, तनय भी, वही गंदे-मैले पानी समान इस समस्या को इसी प्रकार धो कर खुद निर्मल हो पाता..!!
 
मनोज ने बड़े सोच विचार के बाद, तनय को अपनी राय दी,"  हमारे समाज का नज़रिया ऐसा होता है की, पति/पत्नी को छोड़कर अगर कोई पराए मर्द/औरत से,नाजायझ संबंध बनाता है तो लोग,उसी को कोस ने लगते है।"
 
पर, मनोज की बात, तनय ने अनसुनी सी कर दी और उसने फिर से, मनोज पर दबाव डाला,"मैं  तुमसे एक बार फिर, बिनती करता हूँ , एक बार `उसे` मिल तो सही..!! तुम दोनों एक ही धर्म- जाति के हो । देख मनोज, मेरी बात समझने की कोशिश कर । मेरी इच्छा है की, तुम `उसे` अपनी बहन मान लो..!!

मनोज ने, तनय की गंभीर समस्या को, बड़े ध्यान से सुनी थीं, मगर समस्या इतनी गंभीर थी कि अब वह चाह कर भी, उसे सुलझा नहीं सकता था । 

" ये बात कैसे संभव है? एक वेश्या और अपनी बहन?  तनय के कहने पर, एक वेश्या को अपनी बहन मान लेने से क्या, तनय की समस्या का समाधान हो जाएगा? उसे भी तो यही समाज में रहना है,उस वेश्या की पहचान अपने रिश्तेदार, दोस्तों से वह कैसे करा पाएगा?  क्या लोग  उन दोनों के, भाई-बहन के संबंध को मान्यता देंगे? या फिर तनय  के साथ-साथ, मनोज के चरित्र पर भी शक करेंगे कि, दोनों दोस्त एक ही औरत के साथ अय्याशी कर रहे हैं? इतनी सरल बात, तनय क्यों नहीं समझ पाता?" 

ज्यादा सोचने से, मनोज का सिर अब चकराने लगा ।

 " ज्यादा सोचता क्या है? चल, तेरी बहन से, मैं तेरा परिचय कराता हूँ..!!" इतना कह कर, तनयने मनोज का हाथ थामकर, उसे अपने बाईक पर बिठा दिया और मनोज कुछ कह पाये, उससे पहले ही तनय ने बाईक भगाकर, अपने अपार्टमेन्ट के नीचे लाकर बाईक खड़ा कर दिया । मनोज अब क्या कर सकता था?  प्यारे दोस्त को नाराज़ करना भी तो ठीक न था..!!
 
तनय ने अपने अपार्टमेन्ट की डॉर बेल बजाई और किसी  निस्तेज, रसहीन औरत ने दरवाज़ा खोला । तनय और मनोज अंदर दाखिल हुए, वह औरत, दोनों के लिए पानी लेने भीतर चली गई । उसके वापस आने पर, मनोज ने देखा, ये औरत करीब  ३२ साल की थीं, मगर ४०-४५ की लग रही थी, मानो काल के ज़ोरदार थपेड़ों ने, उसे अकाल ही  वृद्धावस्था की ओर धकेल दिया हो..!!
 
अपने परम मित्र तनय की अमीरी के भव्य नुमाइश जैसे, कीमती साजो सामान से लदे, अपार्टमेन्ट में, मनोज को  बेचैनी महसूस होने लगी । वैसे भी, वह अपनी मर्ज़ी से यहाँ आया नहीं था..!! चाहे वजह कोई भी हो, पर उसके सामने, देहविक्रय करनेवाली एक औरत खड़ी थी, जिसे तनय,  मनोज की बहन का  सामाजिक दर्जा देने के लिए, उसकी मर्जी जाने बिना ही, मनोज पर,  तनय दबाव डाल रहा था ।
 
मनोज और उसकी होनेवाली `बहन` आराम से कुछ बात कर सके इसलिए," मैं  फ्रेश हो कर अभी  वापस आया..!!" इतना कह कर तनय, उस औरत और मनोज को अकेला छोड़कर, भीतर के कमरे में चला गया..!!

मनोज के लिए ये स्थिति, "न निगलते बने, न उगलते बने" जैसी निर्माण हो गई थीं ।

अचानक, वह औरत मनोज के सामने वाली कुर्सी पर आकर बैठ गई और जैसे ही, उसने मनोज से कुछ कहने के लिए, उसने अपने बंद होठ खोले..!!

बिना कुछ सोचे समझे, 
बिना पीछे मुड़े, बिना वह औरत से नज़र मिलाए, बिना तनय की राह देखे, मनोज झट से खड़ा हुआ और अपार्टमेन्ट का दरवाज़ा स्फूर्ति से खोलकर, भागता-दौडता हुआ, बिल्डिंग की सीढ़ियां उतर गया..!! 

मानो उसने कोई भूत देखा हो?
 
दोस्तों, कहानी तो यहीं खत्म होती है । 

पर क्या कहानी का अंत यही होना चाहिए था? 

क्या मनोज ने जो किया सही किया था? 

क्या मनोज ने अपने मित्र की छोटी सी बिनती को न मानकर मित्रद्रोह किया था? 

मेरे मन में, अनगिनत सवाल उठ रहे हैं और शायद मनोज के मन में भी?

अगर, आप मनोज की जगह पर होते तो क्या यही करते, जो अंत में मनोज ने किया?

सवाल ज़रा टेढ़ा ज़रूर है पर, आप तो विद्वान हैं, आप सरल जवाब दे सकते हैं..!! 

हैं ना?
 
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कहानी-मर्म ।
 
" अगर कोई व्यक्ति स्वयं को कीड़ा बना लें तो, रोंदे जाने पर उसे शिकायत नहीं करनी चाहिए ।" --- कांत
 
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मार्कण्ड दवे । दिनांक- १४-०४-२०११.

शुक्रवार, 15 जून 2012

कार्ड का रिकार्ड



मेरा परिचय
मेरा आधार कार्ड
मेरी पहचान
मेरा वोटर कार्ड
मेरा धन
मेरा क्रेडिट कार्ड
मेरा ऋण
मेरा डेबिट कार्ड
मेरी पूँजी
मेरा ए टी एम कार्ड
मेरा कम्युनिकेशन
मेरा सिम कार्ड
मेरा जीवन
कार्डों का एक रिकार्ड
प्लेयिंग कार्ड याने ताश के पत्तों का,
बना हुआ एक महल है,
कब तक टिक पायेगा
क्षण भंगुर है,
जाने कब डिस्कार्ड कर दिया जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 13 जून 2012

सास का अहसास



मर्दों  के लिए सास का अहसास
होता है बड़ा खास
सास की बोली का मिठास
और उमड़ता प्यार और विश्वास
अपने दामाद
को सास सदा देती है आशीर्वाद
मन में रख कर ये आस
वो जितना सुखी रहेगा
उसकी बेटी को भी उतना ही सुख देगा
और लड़कियों के लिए वो ही सास
बन जाती है गले की फांस
वो कहते है ना,
सास शक्कर की
तो भी टक्कर की
ये कैसा चलन  है
औरत को औरत से ही होती जलन है
और जाने अनजाने
वो बहू को सुनती रहती है ताने
बहू का जादू उसके बेटे पर चल गया है
और उसका बेटा,
उसके हाथ से निकल गया है
एक मुहावरा है,
सास नहीं ना ननदी
बहू फिरे  आनंदी
क्या ये एकल परिवार का चलन
का कारण है,सास बहू की आपसी जलन
माइके का और  ससुराल का ,
अपना अपना ,अलग अलग कल्चर होता है
आपस में एडजस्ट करने पर ,
परिवार सुखी रहता है,वरना रोता है
इसमें क्या शक है
अपने अपने ढंग से जीने का,
हर एक को हक है
सबको थोडा थोडा  एडजस्टमेंट जरूरी है
तभी मिटती दूरी है
माइके और ससुराल की संस्कृतियों में,
होना चाहिए मेल
तभी हंसी ख़ुशी चलती है,
गृहस्थी की  रेल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

बुढ़ापे में



बताएं आपको क्या बात है बुढ़ापे में
बिगड़ जाते बहुत हालात है बुढ़ापे में
    नींद आती ही नहीं,आई,उचट   जाती है
    पुरानी बातें कई दिल में उभर  आती है
बड़ी रुक रुक के ,बड़ी देर तलक आती है,
पुरानी यादें और पेशाब है  बुढ़ापे में
    मिनिट मिनिट में सारी ताज़ी बात भूलें  है
    जरा भी चल लो तो जल्दी से सांस फूले  है
कभी घुटनों में दरद ,कभी कमर दुखती है,
होती हालत बड़ी खराब है     बुढ़ापे में
    खाने पीने के हम शौक़ीन तबियत वाले
    जी तो करता है बहुत,खा लें ये या वो खालें
बहुत पाबंदियां है डाक्टर की खाने पर,
पेट भी देता नहीं साथ है  बुढ़ापे में
    दिल तो ये दिल है यूं ही मचल मचल जाता है
    आशिकाना मिजाज़,छूट  कहाँ  पाता   है
मन तो करता है बहुत कूदने उछलने को,
हो नहीं पाते ये उत्पात  हैं बुढ़ापे   में
      देखिये टी वी या फिर चाटिये अखबार सभी
       भूले भटके से बच्चे पूछतें  है  हाल कभी
कभी देखे थे जवानी में ले के बच्चों को,
टूट जाते सभी वो ख्वाब है   बुढ़ापे में
बताएं आपको क्या बात है बुढ़ापे में
बिगड़ जाते बहुत हालात है  बुढ़ापे में

मदन मोहन बहेती 'घोटू'
      
 
   

मंगलवार, 12 जून 2012

कलयुग का भविष्य-महर्षि वेदव्यास ।


कलयुग का भविष्य-महर्षि वेदव्यास ।
(courtesy-Google images)

http://mktvfilms.blogspot.in/2011/03/blog-post_19.html

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प्रिय मित्रों,

उत्तर महाभारत महाग्रंथ में कलयुग के भविष्य के बारे में महर्षि वेदव्यास ने कुछ त्रुटिरहित कथन किए हैं ।

 आइएँ, आज के संदर्भ में, महर्षि वेदव्यास के उन सारे कथन की  यथार्थता जाँचने का प्रयास करें..!!

आप को सिर्फ इतना बताना है, आज के घोर कलयुग के  इस माहौल में, कौन सा  कथन सही-कौन सा ग़लत है ।

(तभी तो हम कलयुग के बारे में कितना जानते है, यह परखा जा सकता है..!!)

मिसाल के तौर पर यहाँ एक कथन का सही उत्तर दे दिया है ।

उदाहरण-

कलयुग के राजा सिर्फ अपनी ही रक्षा करेंगे, प्रजाजन की नहीं । (सही - ग़लत )

उत्तर - सही है ।

प्रजाजनों की रक्षा की जीन लोगों (राजा) पर ज़िम्मेदारी है वह सब खुद ब्लैक केट कमान्डॉ की सुरक्षा के बीच  सुरक्षित  हैं । जनता आतंकवाद का शिकार हो कर रोज़ मरती रहे, उनको कोई परवाह नहीं ।
 
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भविष्य कथन ।

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१. सभी धर्म के लोग एक साथ, एक जगह बैठ कर भोजन करेंगे । ( सही - ग़लत )

(हॉटेल्स-रेस्टोरन्ट्स का बढ़ता चलन?)

२. लोग बात-बात पर असत्य का सहारा लेंगे । ( सही - ग़लत )

(धोखा -मक्कारी के बढ़ते कोर्ट केस?)

३. स्त्री को बदइरादे से मित्र बनाकर उनका कहा मानेंगे । ( सही - ग़लत )

( वॅलेन्टाईन डे जैसे सिलिब्रेशन?)

४. राजा, प्रजा का धन लूटकर चोर कहलायेंगे । ( सही - ग़लत )

( परदेश की बैंकों में जमा काला धन?)

५. सग़ीर कन्या सोलह साल से पहले संतति प्राप्त करेंगी ।
धर्मगुरु धर्म विरुद्ध आचरण करके विधवा मिथुन द्वारा गुप्त संतति पैदा करेंगे ।  ( सही - ग़लत )

 (ढेर सारी ऍबॉर्शन क्लिनिक?)

६. ब्राह्मण यज्ञ और तप के फल बचेंगे । ( सही -ग़लत )

( बनावटी धर्म स्थान- आश्रम और शिक्षा का व्यापार?)

७. गायों को क़त्ल किया जाएगा । हिंसा बढ़ेगी । ( सही - ग़लत )

( गौरक्षा कानून का प्रावधान? )

८. लोग सात्विक, स्वास्थ्यवर्धक भोजन के स्थान पर तामसी-राजसी भोजन पसंद करेंगे । (सही - ग़लत )

( स्पाईसी वॅज-नॉन वॅज फास्टफूड का बढ़ता चलन?)

९. वर्षाॠतु में कभी बारिश कभी अकाल की स्थिति होगी  ।
लोग नदी-तालाब के पानी से खेती करेंगे । (सही - ग़लत )

( जंगलों का नाश, छोटे-बड़े  चेक डेम  का  निर्माण?)

१०. दरिद्र प्रजा भी, अल्प  धन जुटा कर धनवान होने का दिखावा करेगी । ( सही -ग़लत )

( औक़ात से ज्यादा, बैंक लोन पाकर समृद्ध होने का दिखावा?)

११. स्त्री-पुरुष, सच्चे सौंदर्य की जगह कृत्रिम रूप का गुणगान करेंगे । (सही - ग़लत )

( लॅडिज़ -जेन्ट्स के ब्यूटी पार्लर्स की भरमार?)

१२. लोग उधारी मांगने में शर्म महसूस नहीं करेंगे ।  सही जरुरत वाले को धुत्कारेंगे । ( सही - ग़लत )

(क्रेडिट कार्ड -डेबिट कार्ड का बढ़ता चलन?)

१३. खेत में बोये हुए बीज उगेंगे नहीं । खेत पैदावार कम होगी । (सही - ग़लत )

( महँगाई और किसानों की आत्महत्या के बढ़ते क़िस्से?)

१४. अग्नि-चोर और राजाओं के दंड से लोग पीड़ित होंगे । ( सही -ग़लत )

( जापान न्यू क्लियर जैसी आगजनी, चोरी - लूट और हत्या की बढती वारदातें, सरकारी  भ्रष्टाचार?)

१५.  परलोक, स्वर्ग-नरक, पुनर्जन्म के विषय में शंका कुशंका होंगी । (सही - ग़लत )

( ढोंगी धर्मगुरु , नकली तांत्रिक बाबाओं का प्रभाव?)

१६. हर एक इन्सान कवि बनकर कविता करने लगेगा । (सही - ग़लत )

(ब्लॉग जगत से कविता की चोरी -कॉपी-पेस्ट प्रवृत्ति?)

१७. युवा  पुत्र - पुत्रवधु  और  संतान, अपने बुज़ुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं करेंगे । (सही - ग़लत )

( ऑल्ड एज होम्स- वृद्धाश्रम की बढ़ती संख्या?)

१८. पति-पत्नी एक दूसरे के संबंध में बंधे होने के बावजूद अन्य के साथ व्यभिचार करेंगे । (सही -ग़लत )

( थ्री-फोर-फ़ाइव स्टार  आलीशान हॉटेल्स में पनपता नकली प्यार?)

१९. करीब-करीब सारे लोग किसी न किसी बीमारी से पीड़ित होंगे । कोई निरोगी नहीं रहेगा । (सही - ग़लत )

( एईड्स जैसे नये-नये असाध्य रोग, अद्यतन हॉस्पिटल्स की भरमार?)

२०. कलयुग के लोग धर्मशील कम, मगर विचारशील ज्यादा होंगे । ( सही - ग़लत )

( विचार वायु-टेन्शन अति बढ़ने से ब्लडप्रेशर-हार्ट ऍटेक में बढ़ोतरी ?)

२१. हर कोई अपने आप को सर्वज्ञ पंडित मान कर, सिर्फ प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानेंगे । (सही - ग़लत)

( हर क्षेत्र में वाद-विवाद का बढ़ता चलन?)

२२. शिक्षा जगत में व्याप्त मलिनता के कारण, ज्ञान और विद्या का नाश होगा । ( सही - ग़लत )

( पढ़ने-पढ़ाने वालों की पढ़ाई के क्षेत्र में उदासीनता और सच्चे ज्ञान का ह्रास ?)

२३. महायुद्ध, घोंघाट, भूकंप, अतिवृष्टि जैसे महा भय पैदा होंगे । (सही - ग़लत )

( पृथ्वी का विनाश होने का मंडराता ख़तरा?)

२४. राजा अपने कागभगोड़ा बुद्धिवालों का कहा मानेगा,राक्षस साधु होने का दंभ करेंगे । (सही - ग़लत)

( सरकार में सताधारीओं की चाँपलुसी और चमचागीरी?)

२५. छल-कपट, अपहरण की वारदातें बढ़ेगी । ( सही - ग़लत )

(कुछ कहने की जरुरत है?)

२६. भाई-भाई में एकता का भाव कम हो जाएगा ।( सही - ग़लत )

(भाई-भाई की जान का दुश्मन?)

२७. लोग निर्धनता से परेशान हो कर देश छोड़कर पर-देश जा बसें ।( सही - ग़लत )

(ऑस्ट्रेलिया में अपनी पिटाई करवाने को?)

२८. हिमालय, समुद्र के किनारे और जंगलों में हिंसक म्लेच्छ, आम अहिंसक प्रजा के साथ बसेंगें ।( सही - ग़लत )

(समुद्री लूटेरे-आतंकी-नक्सलवादी?)

२९. पके-पकाए अन्न का व्यापार होगा ।( सही - ग़लत )

(फूड पाउच-फास्टफूड-होम डिलीवरी सुविधा?)

३०. रजोगुण से  विषय-वासना भोग कर लोग आयु का क्षय करेंगे ।( सही - ग़लत )

( देशी-विदेशी वायग्रा ओर सेक्स क्लिनिक में बढ़ौतरी?)

३१. शिष्य गुरु को अपमानित करेंगे ।( सही - ग़लत )

( पाठशाला एवं कॉलेज में प्राध्यापकों साथ बदसलूकी?)

३२. लोग उपकार का बदला अपकार से देंगे ।( सही - ग़लत )

(एक दूसरे से दगा-बेवफ़ाई?)

३३. लोग शरीर में रोग की पीड़ा सहन न क पाने की वजह से वैराग्य धारण करेंगे ।( सही - ग़लत )

( घर त्याग-आत्महत्या और मर्सी किलिंग की वारदातें?)

३४. राज्यों का कार्यभार अति बढ़ेगा ।( सही - ग़लत )

(जम्बो मंत्री मंडल का गठन ?)

३५. लोग अपना ऋण अदा करने में आनाकानी करेंगें ।( सही - ग़लत )

(बैंक स्केम और डिफोल्टर्स?)

३६. लोग शुद्ध दूध के लिए इधर उधर वृथा भटकेंगे ।( सही - ग़लत )

( मिलावटी  हानिकारक  दूध  और  दूध की बनावट?)

३७. शिल्प,हुनर,कला का व्याप बढ़ेगा ।( सही - ग़लत )

(टी.वी.चैनल्स - मल्टिप्लेक्स थिएटर और फ़िल्मो की भरमार?)

३८. लक्ष्मी का वर्चस्व बढ़ेगा-सज्जन की जगह दुर्जन की पूजा होगी ।( सही - ग़लत )

( भ्रष्ट और बेईमान धनवानों की बोलबाला ?)

३९. धर्म भ्रष्ट-आचार भ्रष्ट- और धर्म परिवर्तन करानेवालों की तादाद बढ़ेगी ।( सही - ग़लत )

( लोभ-लालच और प्रलोभन दे कर, या फिर ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन?)

 ४०. लोगों का आयु अल्प होगा और तन दुर्बल ।( सही - ग़लत )

( अनेक रोगों से ग्रस्त शरीर और आयु काल में कटौती ।)


प्रिय मित्रों, जिस तरह, चंद्र एक ही होने के बावजूद उसकी कला कम-ज्यादा होती है , उसी तरह, काल खंड एक ही होने के बावजूद, उसके गुण-दोष कम-ज्यादा होने पर उसे सत्य-त्रेता-द्वापर और कलयुग जैसे अलग-अलग नाम से पहचाना जाता है । हर एक युग में सब कुछ परिवर्तनशील होता है । यह संसार भी नाश और उत्पत्ति द्वारा बार-बार परिवर्तन होने के कारण किसी एक स्थिति में स्थिर नहीं हो सकता ।

हम तो बस ईश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं की, हे प्रभु अब सतयुग आने में कितने दिन (!!) बाकी है?

मार्कण्ड दवे. दिनांक - १९-०३-२०११.

रविवार, 10 जून 2012

ये नींद उचट जब जाती है


सर्दी की हो गर्मी की,
ये रातें बहुत सताती है
ये नींद  उचट जब जाती है
मन के कोने में सिमटी सी
दुबकी,सुख दुःख से लिपटी सी
चुपके चुपके,हलके हलके
आ जाती खोल,द्वार दिल के
कुछ खट्टी कुछ मीठी  यादें
चुभने वाली कडवी यादें
कुछ अपनों की,बेगानों की
गुजरे दिन के अफ्सानो की
कुछ बीती हुई  जवानी की
परियों की मधुर कहानी सी
कुछ कई पुराने बरसों की
कुछ  ताज़ी कल या परसों की
कुछ हमें गुदगुदाती है आकर,
कुछ आंसू  कई रुलाती है
ये नींद उचट जब जाती है
मन करवट करवट लेता है
तन करवट करवट लेता है
सुन तेरे साँसों की सरगम
छूकर रेशम सा तेरा  तन
ये हाथ फिसलने लगते है
 अरमान मचलने लगते है
आ जाते याद पुराने दिन
कटती थी रात नहीं तुम बिन
हम जगते थे,सो जाने को
हम थकते थे ,सो  जाने को
मन अब भी करता है लेकिन
देता है टाल यूं ही ये  तन
मन को मसोस कर रह जाते,
और हिम्मत ना हो पाती है
ये नींद उचट जब जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

शनिवार, 9 जून 2012

आप क्या कर रहे है...


हजार पे सिर्फ आठ सौ छियासठ लडकियां... ये आंकड़े है हमारे देश की राजधानी के... वैसे इसके कई कारण हो सकते है... पर सबसे बड़ा कारण है भ्रूण हत्या.... अब आप लोग ये मत सोंचने लगना कि मैं भ्रूण-हत्या जैसे गंभीर विषय पर अब कोई आलेख-वालेख लिखूंगा. भाई अपना ऐसा कोई इरादा नहीं है. वैसे भी अपना स्टायल अलग है. सीरिअस बातें अपने पल्ले नहीं पड़ती. सीधी बात को सीधे तरीके देखता हूँ...


हजार पे सिर्फ आठ सौ छियासठ लडकियां.... मतलब एक सौ चौतीस लड़के बेचारे अकेले... (भाई मैं तो इसमें आने से बच गया और भला हो मेरे माँ-पापा का जिन्होंने मेरे लिए इतने कम संख्या में बची लड़कियों में से एक ठीक-ठाक सी लड़की ढूंढ़ दी, सगाई भी हो गयी है और शादी भी हो ही जाएगी)... भाई चिंता तो मुझे इन बचे एक सौ चौतीस लड़कों की है... इन के लिए मेरे पास कुछ आप्शन है... (कॉपीराईट नहीं है, आपलोग इस्तेमाल कर सकते है)
१. आप लोग आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन शुरू कर दें, और देश के प्रति अपना योगदान दे.
२.  ब्रह्मचर्यता अपनाना अगर आसान नहीं हो तो आप लोग समलैंगिक बन सकते है.
३. गे बनकर अगर सामाजिक और पारिवारिक समस्या आ रही है तो फिर कोई आप्शन नहीं सिवाय अकेले जीवन जीने के.

मुझे कुछ बातें समझ में नहीं आती. लोग बेटी के पैदा होने के पहले ही उन्हें मार देते है. क्या उन्हें ये नहीं लगता कि अगर लड़की न होती तो वो कहाँ से आते? किसी टेस्ट-ट्यूब से हो सकते थे... इस में जिम्मेदार सिर्फ पुरुष ही है ऐसा नहीं है, पुरुषों से ज्यादा जिम्मेदार और कसूरवार महिलाएं है. बहु को बेटा ही हो इसके लिए रोज-रोज उनको याद दिलाया जाता है जैसे बेचारी बहु कोई बच्चा पैदा नहीं कर रही बल्कि रोटी बना रही हो कि खुद से डिसाइड कर ले... अच्छा ऐसी सासों का भी अच्छा झमेला है, बहु अगर बेटी जन्म दे दे तो फिर लग गए बहु के.. पर इन्ही के बेटी को अगर बेटी हो जाये तो ख़ुशी परवान चढ़ने से खुद को रोक नहीं पाती... इनकी बेटी की सास अगर इनकी बेटी को बेटी होने के लिए कोसे तो बस इनकी बेटी की सास हो गयी इस दुनिया की सबसे दकियानुस और बुरी औरत. भले ये खुद अपनी बहु का जीना हराम कर दें...

खैर किसे समझाए और कैसे समझाए... कसूर सिर्फ ऐसे माँ-बाप का नहीं है जो अपने ही हिस्से को जन्म से पहले ही काट के फ़ेंक देते है. इन सबसे बड़ा कसूर हमारे समाज का है. लड़की के पैदा होते ही माँ-बाप के मन में सिवाय डर के और कुछ आता भी नहीं होगा. समाज की जो हालात है हर माँ-बाप अपनी बेटी को घर से बाहर भेजने से डरता है. जब तक वो घर से बाहर रहती है तब तक न जाने कितने ही भगवानों को धर्म-निरपेक्ष बन के याद कर लेता है. किसी तरह डर-डर के समाज के बुरी नजर से बचा कर बड़ा कर लेता है तो समस्या आती उसे किसी और को सौंपने की. एक और डर के साथ कि वो इंसान उनकी बेटी को खुश रखेगा या नहीं. और वो इंसान उनकी बेटी को अपनाने भर के लिए लाखों की डिमांड कर लेता है और मजबूर माँ-बाप अपने औकात से बाहर जा के उसकी हर डिमांड इस उम्मीद पे पूरा करते है कि उनकी बेटी खुश रहेगी.

पर वो माँ-बाप ये कैसे भूल जाते है कि उनकी बेटी उनके साथ ज्यादा खुश रह सकती है. किसी लोभी व्यक्ति के हाथ अपने टुकड़े को सौपने से बेहतर तो मेरे ख्याल से उसे अपने दायरे में रखना ज्यादा उचित है. पर यहाँ भी समाज चीखें मार-मार के लड़की को घर से जल्दी से जल्दी निकाल देने के लिए उलाहने देने लगेगा. मुझे ये समझ में नहीं आता है कि बेटी किसी की, खिलायेगा उसका बाप फिर ये साले समाज को क्या तकलीफ होती है.... उस वक़्त ये समाज क्यों सामने नहीं आता जब दहेज़ के कारण लडकियां घर बैठने को या फिर मजबूरी में किसी का भी हाथ थामने को मजबूर रहती है? उस वक़्त क्यों नहीं आता जब लड़कियों की हालात उन्ही के ससुराल में खराब कर दी जाती है? उस वक़्त समाज क्यों नहीं आता सामने जब लड़की को या तो दहेज़ के नाम पे मार दिया जाता है या वो खुद को मार देती है? समाज देख नहीं सकता अगर कोई लड़की अपने पिता के साए में अपनी माँ की ममता के साथ अपने भाई-बहनों के प्यार के साथ अपने घर में खुशियों से जिए... भले वो अपने ससुराल में सास-ससुर की गालियाँ, ननद-देवर के ताने और अपने ही पति की हर रात ज्यादतियां सहे...

अगर ऐसे डर के साथ कोई भी माँ-बाप पैदा होने से पहले अपनी बेटी को मार देना चाहता है तो कोई गुनाह नहीं करता है वो... मैं तो कहता हूँ समाज जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है वहां हर माँ-बाप को किसी को भी पैदा करने से पहले सौ बार अच्छी तरह से सोंच विचार लेना चाहिए...

मैं तो जल्द ही दुनिया का विनाश देख रहा हूँ पता नहीं आप सब क्या कर रहे है...

कभी नारी बेचारी तो कभी अबला !


(फोटो गूगल से साभार )
वो स्त्री ! अरे हाँ ! वही जो आज के समय में पुरुषों के कंधें से कन्धा मिला कर चलने वाली ! अरे ! हाँ वही! जो आज किसी भी मायने में पुरुषों से काम नही ! अब कोई ज्ञान-विज्ञान या यूँ कहूँ कुछ भी अछूता नही रहा जहाँ तक स्त्री का वर्चस्व ना हो ! परन्तु हमारा समाज , हमारे संस्कार हमारे रीति-रिवाज उन्हें बार बार आभास करते है कि वह एक स्त्री है ! मतलब हमारी सीमाएं ! वो कंधें से कन्धा तो मिलाकर चलती तो है पर यहाँ भी उनकी सीमाएं ! जिनका उल्लंघन करे तो वह असभ्य , लज्जाहीन और ना जाने क्या क्या ! वो ज्यादा बोले तो चंचल ! चुप रहकर सब सहे तो अबला बेचारी वह नारी ! अलग अलग समाज में अलग अलग नज़रिए से देखी जाने वाली या यूँ कहूँ कि उनके लिए कोई वस्तु ! कभी नारी बेचारी तो कभी वो अबला ! कभी मोहनी तो कभी कपिला ! कभी सावित्री तो कभी सीता ! कभी झाँसी कि रानी तो कभी दुर्गा भवानी ! अब किया क्या जाये जैसी नीयत वैसी सोच ! इसलिए जो जिस नज़रिए से देखता है उसमे उसका वही रूप नज़र आने लगता है !


वो एक बेटी है जो अपने ही माँ-बाप का अपना नही पराया धन, उनकी इज्ज़त उनका सम्मान ! बचपन से ही ये नसीहत दे दी जाती है , कि उन्हें  एक दायरे में ही रहना है ! कुछ यूँ कहते है अक्सर हर माँ-बाप अपनी बेटिओं से !
तू बेटी मेरे आँगन की तू एक पराया धन है, कल होके विदा जाना किसी और के घर है ! 
अक्सर ये बातें चुभती है पर करे क्या आज समाज बेटा-बेटी में फर्क नही करता तो क्यों बचपन से जिस घर पर पली वो एक पल में ही पराया हो जाता है ! क्यूँ समाज में ऐसी रीति बेटों के लिए नही बनायीं !

वो एक बहू है जिसको उसके सांस ससुर ने उसके ही माँ-बाप पर एहसान करके अपने बेटे के मोल से लाये है ! फिर चाहे वो कितनी ही मूल्यवान हो ! बार बार उनके माँ-बाप पर बेटी पैदा करने का मोल लिया जाता है ! परन्तु जो मोल उनके माँ-बाप द्वारा लगाया गया उसका कोई भी मोल नही ! डर है कहीं यह मोल उनकी चिता का कारण ना बन जाये ! पर हमारा समाज तब इसे परंपरा का रूप कह देती है ! इसलिए परम्परा का निर्वाह भी तो स्त्रियों को करना है ना पुरुषों को ! 

आज स्वतंत्र ऊँचे आसमा को छूती ! परन्तु उससे शायद ही अधिकार मिला हो कि वह स्वयं अपना जीवन साथी चुन सके ! उसे किसी से प्रेम करने  का भी अधिकार नही ! समझ नही आता हमारा यह समाज तब कहाँ चला जाता है जब किसी स्त्री का पति रात को शराब के नशे में उसको मरता पिटता है ! कहाँ रहता है हमारा समाज? जब एक बहू दहेज़ के लिए जला दी जाती है ! या फंसी से लटका दी जाती है !  कहाँ रहता है तब यह समाज? जब सरेआम उसको कोई गुंडा मवाली छेड़ता है ! वह शक्ति स्वरूप परन्तु लाचार बेबस तब जब किसी दरिय्न्दे के हाथों कुचली जाती है ! कहाँ रहता है तब हमारा समाज ? अगर ऐसा नही ! तो क्यूँ अख़बार में आये दिन ऐसी घटनाओं का जिक्र मिल जाता है ! एक तरफ महिला सशक्तिकरण की बात करते है तो दूसरी और उसकी शक्तियों को एक सीमा में बांध देता है हमारा यह समाज !

विधू यादव 

मै विधू यादव , लखनऊ के एक कस्बे अर्जुनगंज में रहती हूँ ! मै लखनऊ यूनिवर्सिटी से  जनसंचार एवं पत्रकारिता से M.Sc.कर रही हूँ ! साथ ही आंचलिक विज्ञान नगरी में science communicator हूँ ! मेरा ब्लॉग है http://haoslonkiudaan.blogspot.in/
इसके अलावा लेखन में मेरी काफी रूचि है ! इसलिए script writing  भी करती हूँ !

गुरुवार, 7 जून 2012

परिकल्पना सम्मान हेतु नामांकित ब्लोगर्स की सूची




    स्नेही साथियों,
यह शाश्वत सत्य है कि दो व्यक्ति एक ही चीज को देखता हैं, परन्तु कुछ भिन्न आकर्षण उस वस्तु में दोनों को दिखाई देता है


कोई जरूरी नहीं कि जिन व्यक्तियों के कुछ विशेष गुण मुझे आकर्षित करते हों आपको भी करे। 


जब मैंने वर्ष-2010 में परिकल्पना ब्लोगोत्सव की घोषणा की तो मुझे नहीं पता था कि यह उत्सव इतिहास का एक अहम् हिस्सा बन जाएगा और परिकल्पना सम्मान को इतनी लोकप्रियता मिलेगी


ब्लोगोत्सव-2010 के पश्चात विगत वर्ष 30 अप्रैल को 51 हिंदी ब्लोगरों का सारस्वत सम्मान हिंदी भवन दिल्ली में किया गया । इस वर्ष 10 सम्मान दशक के ब्लॉग और दशक के ब्लोगर हेतु सुरक्षित रख लिया गया और शेष 41 सम्मान वर्ष के ब्लोगरों हेतु 


इसके अतिरिक्त इस वर्ष से एक अतिरिक्त विशेष सम्मान की भी परिकल्पना विशेष ब्लॉग प्रतिभा सम्मान के नाम से उद्घोषणा की जा रही है। 


प्राप्त वोट के आधार पर जो आखिरी स्थिति बनी है, वह इसप्रकार है -

दशक के पांच ब्लॉगर : 
(१) पूर्णिमा वर्मन 
(२) समीर लाल समीर 
(३) रवि रतलामी 
(४) रश्मि प्रभा 
(५) अविनाश वाचस्पति 

 दशक के पांच ब्लॉग : 
(१) उड़न तश्तरी
(२) ब्लोग्स इन मिडिया 
(३) नारी 
(४) साई ब्लॉग 
(५) साइंस ब्लोगर असोसिएशन




परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2011 मे शामिल ब्लॉगरों की रचनाओं का आंकलन करते हुये कुछ लोगों ने परिकल्पना सम्मान हेतु जिन ब्लॉगरों को नामित किया है वह इसप्रकार है -

·         वर्ष के श्रेष्ठ कवि का सम्मान :1
(1) अविनाश चंद्र ( रश्मिप्रभा का प्रस्ताव ) ।
(2) अरविंद श्रीवास्तव (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(3) राजेन्द्र तेला निरंतर (डॉ दिव्या का प्रस्ताव )

·         वर्ष के श्रेष्ठ युवा कवि का सम्मान :2
(1) मुकेश कुमार सिन्हा ( रश्मिप्रभा का प्रस्ताव )
(2) निखिल आनंद गिरि 
(रश्मिप्रभा और अरुण चन्द्र राय का प्रस्ताव )
(3) चंडी दत्त शुक्ल 
( अविनाश वाचस्पति और मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
·         वर्ष की श्रेष्ठ कवयित्री का सम्मान :3
(1) बाबूशा कोहली (रश्मिप्रभा का प्रस्ताव )
(2) वंदना गुप्ता (डॉ दिव्या, अंतर सोहील, मनोज पाण्डेय और अरुण चन्द्र राय का प्रस्ताव )
(3) हरकिरत हीर (वंदना गुप्ता और प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
·         वर्ष की श्रेष्ठ युवा कवयित्री का सम्मान :4
(1) अपराजिता कल्याणी (रश्मिप्रभा का प्रस्ताव )
(2) अनुपमा त्रिपाठी (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(3) अंजू (अनु) चौधरी ( वंदना गुप्ता और मुकेश कुमार सिन्हा का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (कथा-कहानी) का सम्मान :5
(1) विजय कुमार सपत्ति (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव)
(2) अरुण साथी (डॉ दिव्या का प्रस्ताव )
(3) चंडी दत्त शुक्ल (अविनाश वाचस्पति का प्रस्ताव )
·         वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका (कथा-कहानी) का सम्मान :6
(1) रश्मि रविजा (रश्मिप्रभा, अरुण चन्द्र राय,मुकेश कुमार सिन्हा,डॉ दिव्या,अंतर सोहील,
               वंदना गुप्ता और मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(2) सोनल रस्तोगी (अंतर सोहील का प्रस्ताव )
(3) अल्का सैनी ( दिनेशकुमार माली का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (संस्मरण ) का सम्मान : 7
(1) मनोज कुमार (वंदना गुप्ता,अरुणचन्द्र राय और मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(2) संजय अनेजा (स्वप्न मंजूषा अदा,सवाई सिंह राजपूत और प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
(3) दिनेश कुमार माली ( बृजेश सिन्हा का प्रस्ताव )
·         वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका (संस्मरण ) का सम्मान :8
(1) शिखा वार्ष्णेय (रश्मिप्रभा और मुकेश कुमार सिन्हा का प्रस्ताव )
(2) अजित गुप्ता ( अरुण चन्द्र राय का प्रस्ताव )
(3) डॉ. दिव्या श्रीवास्तव [जील] (वंदना गुप्ता और मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (यात्रा वृतांत) का सम्मान :9
(1) नीरज जाट ( शिखा वार्ष्णेय, अंतर सोहील और मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(2) मनीष कुमार (अंतर सोहील का प्रस्ताव )
(3) संजय अनेजा (प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
·         वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका (यात्रा वृतांत) का सम्मान :10
(1) डॉ अजित गुप्ता ( प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
(2) शिखा वार्ष्णेय (वंदना गुप्ता और मुकेश कुमार सिन्हा का प्रस्ताव )
(3) राजेश कुमारी ( सवाई सिंह राज पूरोहित का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (चर्चा-परिचर्चा) का सम्मान :11
(1) हंसराज 'सुज्ञ'  ( मनोज पाण्डेय, वंदना गुप्ता और प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
(2) प्रवीण शाह (अंतर सोहील का प्रस्ताव )
(3) श्याम कोरी उदय ( रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
·         वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका (चर्चा-परिचर्चा) का सम्मान :12
(1) रचना, नारी ( प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
(2) डॉ दिव्या श्रीवास्तव (अंतर सोहील का प्रस्ताव )
(3) सुधा भार्गव (रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (सकारात्मक पोस्ट) का सम्मान :13
(1) प्रवीण पाण्डेय ( मनोज पांडे का प्रस्ताव )
(2) डॉ टी एस दराल (शिखा वार्ष्णेय का प्रस्ताव )
(3) कुमार राधारमन (प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
·         वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका (सकारात्मक पोस्ट) का सम्मान :14
(1) पल्लवी सक्सेना (रश्मिप्रभा का प्रस्ताव )
(2) रेखा श्रीवास्तव (मुकेश कुमार सिन्हा का प्रस्ताव )
(3) डॉ अजित गुप्ता (प्रतुल वशिष्ठ और मनोज पांडे का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (विषय प्रधान) का सम्मान :15
(1) दिनेश राय द्विवेदी, कानूनी सलाह ( रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
(2) मनोज,विचार ब्लॉग पर गाँधी जी से जुडी उत्कृष्ट सामग्री के लिए(अरुण चन्द्र राय का प्रस्ताव)
(3) कुमार राधारमन, स्वस्थ सलाह (प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
·         वर्ष के तकनीकी ब्लॉगर का सम्मान :16
(1) शैलेश भारतवासी ( मुकेश कुमार सिन्हा और नीलम का प्रस्ताव )
(2) रतन सिंह शेखावत (अंतर सोहील का प्रस्ताव )
(3) श्रीश शर्मा (अविनाश वाचस्पति का प्रस्ताव )
·         वर्ष के युवा तकनीकी ब्लॉगर का सम्मान:17
(1) नवीन प्रकाश (डॉ दिव्या और मनोज पांडे का प्रस्ताव )
(2) योगेंद्र पाल (डॉ दिव्या का प्रस्ताव )
(3) अंकुर गुप्ता (अंतर सोहील का प्रस्ताव )
·         वर्ष के नवोदित ब्लॉगर का सम्मान :18
(1) कौशलेन्द्र [बस्तर की अभ्व्यक्ति जैसे कोई झरना] (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(2) रवीद्र पुंज (अविनाश वाचस्पति का प्रस्ताव )
(3) पूजा उपाध्याय ( वंदना गुप्ता का प्रस्ताव )
·         वर्ष के उदीयमान ब्लॉगर का सम्मान :19
(1) कौशलेन्द्र [बस्तर की अभ्व्यक्ति जैसे कोई झरना] (प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
(2) संतोष त्रिवेदी (अविनाश वाचस्पति का प्रस्ताव )
(3) सञ्जय अनेजा [मो सम कौन] (स्वप्न मंजूषा अदा,मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
·         वर्ष के यशस्वी ब्लॉगर का सम्मान: 20
(1) डॉ रूप चंद शास्त्री मयंक (वंदना गुप्ता का प्रस्ताव )
(2) जय प्रकाश तिवारी (रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
(3) सुरेश चिपलूनकर ( प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
·         वर्ष के आदर्श ब्लॉगर का सम्मान : 21
(1) सलिल वर्मा ( रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
(2) प्रवीण पाण्डेय (शिखा वार्ष्णेय का प्रस्ताव )
(3) कृष्ण कुमार यादव (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ ग़ज़लकर का सम्मान :22
(1) इस्मत ज़ैदी ( रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
(2) कुँवर कुशुमेश (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(3) एस एम हबीब (ललित शर्मा का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार का सम्मान :23
(1) सतीश सक्सेना (अरुण चन्द्र राय और अंतर सोहील का प्रस्ताव )
(2) डॉ रूप चंद शास्त्री मयंक (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(3) राजेन्द्र स्वर्णकार (वंदना गुप्ता का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग खबरी का सम्मान :24
(1) अजय कुमार झा (डॉ दिव्या का प्रस्ताव )
(2) डॉ अनवर जमाल खान (डॉ दिव्या का प्रस्ताव )
(3) शिवम मिश्रा (अरुण चंद राय का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग समीक्षक का सम्मान :25
(1) अरविंद श्रीवास्तव ( मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(2) केवल राम ( बृजेश सिन्हा का प्रस्ताव )
(3) हरीश कुमार गुप्त [मनोज ब्लॉग पर : 'आँच' ](प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग विचारक का सम्मान :26
(1) मनोज : विचार ब्लॉग पर गाँधी जी से जुडी उत्कृष्ट सामग्री के लिए
(अरुण चंद राय का प्रस्ताव )
(2) टी एस दराल (शिखा वार्ष्णेय का प्रस्ताव )
(3) राहुल सिंह [सिंहावलोकन] (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ व्यंग्यकार का सम्मान : 27
(1) प्रेम जनमेजय ( अविनाश वाचस्पति का प्रस्ताव )
(2) शेफाली पाण्डेय ( रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
(3) राजीव तनेजा (मुकेश कुमार सिन्हा और वंदना गुप्ता का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ युवा व्यंग्यकार का सम्मान : 28
(1) सुमित प्रताप सिंह (रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
(2) निर्मल गुप्त (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(3) अरुणेश दवे (डॉ दिव्या श्रीवास्तव का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ बाल रचनाओं के लेखक का सम्मान : 29
(1) कैलाश शर्मा,बच्चों का कोना (प्रभा तिवारी का प्रस्ताव )
(2) रावेन्द्र कुमार 'रवि' [सरस पायस] (डॉ दिव्या और प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
(3) डॉ रूप चंद शास्त्री मयंक (वंदना गुप्ता का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ वॉयस ब्लॉगर का सम्मान: 30
(1) अर्चना चाव जी (रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
(2) गिरीश बिल्लोरे मुकुल ( अविनाश वाचस्पति का प्रस्ताव )
(3) सजीव सारथी ( मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ कार्टूनिस्ट का सम्मान: 31
(1) काजल कुमार ( रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
(2) इरफान (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(3) कृतिश भट्ट ( प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ विज्ञान कथा लेखक का सम्मान : 32
(1) दर्शन बाबेजा ( मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(2) जाकिर अली रजनीश (अंतर सोहील का प्रस्ताव )
(3) डॉ॰ प्रवीण चोपड़ा,स्वास्थ्य एवं चिकित्सा (ईपंडित का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ टिप्पणीकार (पुरुष) का सम्मान :33
(1) धीरेन्द्र सिंह ( रश्मि प्रभा का प्रस्ताव)
(2) रविकर फैजाबादी (प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
(3) डा॰ अमर कुमार,मरणोपरांत (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
·         वर्ष की श्रेष्ठ टिप्पणीकार (महिला) का सम्मान : 34
(1) सीमा सिंघल, सदा (रश्मि प्रभा,वंदना गुप्ता और मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव)
(2) रचना (प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
(3) डॉ अरुणा कपूर ( डॉ दिव्या श्रीवास्तव का प्रस्ताव )
·         वर्ष का श्रेष्ठ ब्लॉगर मीट आयोजन : 35
(1) खटीमा ब्लॉगर मीट/ आयोजक डॉ रूप चंद शास्त्री मयंक(मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(2) कल्याण (मुंबई) ब्लॉगर सेमिनार/ आयोजक डॉ मनीष मिश्र (शैलेश भारतवासी का प्रस्ताव )
(3) समीर लाल जी के भारत प्रवास पर आयोजित दिल्ली ब्लॉगर मीट
आयोजक:सर्जना शर्मा (रसबतिया) और गीताश्री (नुक्क़ड़) (अविनाश वाचस्पति का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ पत्रकार का सम्मान : 36
(1) रजनीश के झा/आर्यावर्त  (डॉ दिव्या का प्रस्ताव )
(2) रणधीर सिंह सुमन/लोकसंघर्ष  (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(3) अमलेंदु उपाध्याय/हस्तक्षेप ( बृजेश सिन्हा का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ युवा पत्रकार का सम्मान : 37
(1) हरे प्रकाश उपाध्याय, फीचर संपादक डेली न्यूज एक्टिविस्ट (डॉ सुभाष राय का प्रस्ताव )
(2) चंडी दत्त शुक्ल, फीचर संपादक आहा ज़िंदगी (अविनाश वाचस्पति का प्रस्ताव )
(3) मुकेश चन्द्र ,संवाददाता पंजाब केशरी, दिल्ली (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ अनुवादक का सम्मान : 38
(1) सिद्धेश्वर सिंह ( बृजेश सिन्हा का प्रस्ताव )
(2) दिनेश कुमार माली (रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
(3) डॉ रूप चंद शास्त्री मयंक (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
·         वर्ष के चर्चित ब्लॉगर (पुरुष) का सम्मान : 39
(1) रतन सिंह शेखावत / ब्लॉग : ज्ञान दर्पण (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव)
(2) शाहनवाज़ / ब्लॉग : प्रेम रस (ज़ाकिर अली रजनीश का प्रस्ताव )
(3) ताऊ रामपुरिया / ब्लॉग : ताऊ डॉट इन (बृजेश सिन्हा का प्रस्ताव )
·         वर्ष की चर्चित ब्लॉगर (महिला) का सम्मान : 40
(1) रंजना (रंजू) भाटिया/कुछ मेरे कलम से (रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
(2) डॉ. दिव्या श्रीवास्तव [जील] (प्रतुल वशिष्ठ का प्रस्ताव )
(3) वंदना गुप्ता (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
·         वर्ष के श्रेष्ठ एग्रीगेटर का सम्मान : 41
(1) हमारी वाणी (अविनाश वाचस्पति का प्रस्ताव )
(2) ब्लॉग प्रहरी (मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(3) ब्लॉग मंडली (बृजेश सिन्हा का प्रस्ताव )

·         परिकल्पना विशेष ब्लॉग प्रतिभा सम्मान-2011
(1) किशोर चौधरी, कहानियाँ ( स्वप्न मंजूषा अदा का प्रस्ताव )
(2) संजय अनेजा, [मो सम कौन] (स्वप्न मंजूषा अदा,मनोज पाण्डेय का प्रस्ताव )
(3) सुनीता सानू , मन पखेरू फिर उड़ गया (रश्मि प्रभा का प्रस्ताव )
(4) आकांक्षा यादव,शब्द शिखर (ब्रिजेश सिन्हा का प्रस्ताव )


नोट : उपरोक्त उल्लिखित प्रत्येक वर्ग से निर्णायक मंडल के द्वारा केवल एक-एक ब्लोगर का चयन किया जाना है, जिन्हें विजेता घोषित किया जाएगा.....जो भी ब्लोगर यह महसूस कर रहे हैं कि नामांकित चयन के अनुरूप उनकी पात्रता नहीं है अथवा जिनकी इस सम्मान में दिलचस्पी न हो वे 24 घंटे के भीतर नीचे टिपण्णी बॉक्स में जाकर अपने नाम को वापस लेने की घोषणा कर सकते हैं, क्योंकि उपरोक्त सूची को 24 घंटे के बाद निर्णायक मंडल को सौंप दिया जाएगा ।


चलिए अब ज़फर इकबाल की इन पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त कर रहा हूँ कि  " सूरज हूँ ज़िन्दगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा, मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा।" 
 
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