मंगलवार, 31 जुलाई 2012

मेरी मिल्कियत । (गीत)


मेरी मिल्कियत । (गीत)




(सौजन्य-गूगल)


है  तड़पना मेरी मिल्कियत, तुझे छोड़ना है शराफ़त ।

चाहता  था  की  बनी  रहे, दरमियाँ  हमारी ये उलफ़त ।

(उलफ़त = पारस्परिक संबंध ।) 

अंतरा-१

वादा - ए - वफ़ा और कसमें वो, लबरेज़ निगाहें प्यार से..!

मिले आंसू-आंहें,टूटा दिल, लिखी नसीब में  ये विरासत..!

है  तड़पना  मेरी  मिल्कियत, तुझे  छोड़ना है शराफ़त ।

(लबरेज़=लबालब)

अंतरा-२

लिखे  जायेंगे,  अफ़साने    कई,   होंगे  हमारे  चर्चे   भी..!

सब बातें थीं, बातों का क्या? करे कौन हम पर शफ़क़त..! 

है  तड़पना  मेरी  मिल्कियत, तुझे  छोड़ना  है शराफ़त ।

(शफ़क़त =पीड़ित व्यक्ति के साथ दया भाव । )

अंतरा-३

ढूंढता  हूँ   अपने  वारिस  को, पूछता  रहा  मैं अपनों  से ।

चलो, आप से भी पूछता हूँ, क्या है आप का भी अभिमत ?

है  तड़पना  मेरी  मिल्कियत, तुझे  छोड़ना है शराफ़त ।

(अभिमत = विचार,राय )

अंतरा-४.

कुछ  कर  सको  तो अब  यही, दुआ करना तुम  मेरे  यार ।

मिले ना मुझे,प्यार फिर कभी, न हो ज़िंदगी में ये अज़मत ।

है   तड़पना  मेरी  मिल्कियत, तुझे  छोड़ना  है  शराफ़त ।

(अज़मत = चमत्कार ।)

मार्कण्ड दवे । दिनांक-२९-७-२०१२.

सोमवार, 30 जुलाई 2012

आंसूओं से पूछा ,तुम बहते क्यूं हो



आंसूओं से पूछा
तुम बहते क्यूं हो
दिल से पूछा
तुम बेचैन क्यूं हो
मन से पूछा
तुम अनमने क्यूं हो
चेहरे से पूछा
तुम उदास क्यूं हो
चेहरा बोला
दिल बेचैन जो है
दिल बोला
मन अनमना जो है
मन बोला
आँखें नम जो हैं
चारों से एक साथ पूछा
सच बताओ वजह क्या है
चारों एक साथ बोले
तुम प्रियतम से दूर
अकेले जो हो
30-07-2012
634-31-07-12
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

कॉपी राइट एक्ट - (HELPFUL HAND BOOK)


(प्रतिलिपि अधिकार अधिनियम)
 (HELPFUL HAND BOOK)
 
भड़कीला सवाल- " डॉमेस्टिक वायॉलन्स एक्ट २००५ भी, एक तरह से कॉपी राइट भंग का कानून है क्या?"

चटकीला जवाब-"शायद, मगर अच्छा है कि,किसी के सास-ससुर, अपने मौलिक सृजन,(बेटी) का विवाह करने के पश्चात उसे, अपनी कॉपी राइट प्रोटेक्टेड मिल्कियत मान कर, बेटी में देखे गए, शारीरिक,मानसिक,आर्थिक और सामाजिक स्तर के बदलाव का हिसाब माँगकर, कॉपी राइट एक्ट उल्लंघन का नोटिस नहीं भेजते हैं वर्ना, कोई भी दामाद का बच्चा, सास-ससुर के इस अनमोल मौलिक सृजन को, शादी के दिन जैसा, तरोताज़ा कहाँ रख पाता है?"

=======

एक स्पष्टता- 
 
१. यह पूरा आलेख मैंने, केवल शिष्य भाव धारण कर लिखा है, लेख में कोई तथ्यात्मक गलती या त्रुटि  हो तो,कृपया मेरे ध्यान पर ज़रूर लाएं ।
 
२. सभी मौलिक सृजन कर्ता, ब्लॉगर,अगर चाहें तो, यह पूरा आलेख,यहाँ से लिंक के साथ, अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर सकते हैं,इसमें मेरी पूर्व सहमति की आवश्यकता नहीं है ।
 
=======
 
प्यारे दोस्तों,
 
दुनिया के किसी भी प्रदेश में,किसी भी भाषा में,पढ़े-लिखे या अन-पढ़ इन्सान द्वारा, निर्माण किया गया, कोई भी मौलिक सृजन, उस इन्सान की अपनी संपत्ति मानी जाती है। उपरान्त ऐसा मौलिक सृजन, संबंधित देश की संस्कृति की धरोहर मानी जाती है । इसीलिए, प्रत्येक सर्जक, अपने मौलिक सृजन को,अपने प्राणों से प्यारे संतान की भाँति ही  प्यार करता है ।
 
आप एक कल्पना कीजिए कि, आपके संतान को कोई बुरा इन्सान खिलाने-पिलाने  के बहाने, उसका अपहरण करके, उसके सारे अंगों को (रचना को) विकृत करके, उसे अपना ही संतान बता कर, उससे भीख मँगवाए, तब आपके दिल पर क्या बीते..!!
 
ठीक उसी तरह, किसी के मौलिक सृजन को, मूल सर्जक की पूर्व सहमति प्राप्त किए बिना ही, बदनियत से, उसे अपने ब्लॉग, वेबसाइट, या फिर प्रिंट/सेटेलाइट जैसे किसी माध्यम में, प्रकाशित करके,`वाह-वाह`की, टिप्पणी की भीख मँगवाने के धंधे पर लगाए..!! तब, पता चलने पर मूल सर्जक के दिल को कैसी ठेस पहुँचती होगी? ऐसी पीड़ा जिसने भुगती हो वही उसका दर्द जानते होंगे..!!
 
वास्तव में,पूरे विश्व में, साहित्यिक चोरी-Plagiarism, कॉपी पेस्ट-Copy-Paste, भड़ौआ -Parody, जैसी मलिन प्रवृत्ति, कॉपी राइट एक्ट का उल्लंघन मानी जाती है ।
 
हालाँकि, कॉपी राइट एक्ट की, कई कानूनी धाराओं से,कुछ मौलिक सर्जक अनभिज्ञ होने के कारण, किसी नकली सर्जक-दुःशासन के हाथों,अपनी अनमोल रचना का चीरहरण होता देख, दुःखी मन से, निःसहाय होकर, बेबसी से, ऐसी मलिन प्रवृत्ति को, ताक़ते रहते हैं ।
 
कई बार यह अहसास होता है कि, ऐसे दुःशासन-नकली सर्जक, किसी और सर्जक की रचना का चीरहरण करने में, जितनी मात्रा में अपना कौशल खर्च करते हैं, उससे भी आधा कौशल अगर, अपना मौलिक सृजन अभ्यास करने में लगाए तो, ऐसे कड़े आरोपों से मुक्त होकर,एक दिन अपना नाम-सम्मान खुद कमा सकते हैं..!!
 
वास्तव में,ऐसे दुःशासन-नकली सर्जक को समझना चाहिए कि, जिंदगी उधार के माल से, हमेशा  व्यतीत नही हो सकती..!! अगर स्वतंत्र सर्जक के तौर पर, कला जगत में नाम कमाना है तो उन्हें, मौलिक सर्जक बनने का परिश्रम करना ही पड़ेगा ।
 
आइए, आज हम, कॉपीराइट एक्ट को सरल भाषा में समझने का एक प्रयास करें ।
 
कॉपी राइट एक्ट की (प्रतिलिपि अधिकार अधिनियम की) परिभाषा ।
 
" किसी भी कला से संबंधित, साहित्य से संबंधित, या तो संगीत से संबंधित कार्य, जिसका, उस सर्जक के मौलिक विचार (ख़याल) के आधार  पर सृजन हुआ हो, उन सभी परिणामी फल का मालिक, संबंधित सर्जक को माना जाता है । इसीलिए, ऐसे मौलिक सृजन को, संबंधित सर्जक की मिल्कियत मान कर, उस संपत्ति के हितों की रक्षा करने के लिए बनाये गए, कानूनी प्रावधान को,`प्रतिलिपि अधिकार अधिनियम`(कॉपी राइट एक्ट)कहते हैं ।"
 
कॉपी राइट एक्ट में, मौलिक सर्जक को, कॉपीराइट मटिरियल्स (सृजन) की कॉपी करने का, सार्वजनिक रूप से वितरित करने का,उसे आंशिक या पूर्ण रूप से नया स्वरूप प्रदान करने का, प्रकाशित करने का, अमल में लाने का, प्रतिनिधित्व करने का, ऐसे विविध कार्य-अधिकार शामिल किए गए हैं ।
 
साहित्य रचेता के कॉपी राइट के बारे में ध्यान देने योग्य बात यह है कि, मूल सर्जक के सृजन के साथ, उपर दर्शाए  हुए किसी भी अधिकार का उल्लंघन का मामला ध्यान पर आते ही, ये मामला सार्वजनिक हित के साथ जुड़ा होने के कारण, ऐसी मलिन प्रवृत्ति का विरोध कोई भी साहित्य प्रेमी कर सकता है । यहाँ इतना स्पष्ट करना ज़रूरी है कि, ऐसी मलिन प्रवृत्ति करने वाले के खिलाफ़, कॉपी राइट एक्ट के तहत कानूनी कार्यवाही, रचना का मूल रचेता या तो कानूनी प्रक्रिया के तहत आंशिक या पूर्ण रूप से, रचेता ने, जिसे अपना मालिकाना हक़ तब्दील किया हो ऐसा व्यक्ति-संस्था ही, कर सकते है । ऐसी कानूनी कार्यवाही में अवमानना और/या तो आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए, दीवानी/फौजदारी अदालत  में कानूनी दावा/शिकायत कर सकते है ।
 
कॉपी राइट एक्ट का महत्व ।
 
कॉपी राइट एक्ट किस प्रकार उपयोगी है? 

कॉपी राइट एक्ट मूल सर्जक के अधिकारों की रक्षा करता है । इस कानून के कारण, मूल रचेता को अपना मौलिक सृजन किसी को भी वितरित करने या बेचने का अबाधित अधिकार प्राप्त होता है ।
 
मौलिक सृजन किसे कहते हैं?
 
मौलिक सृजन यानि कि, सर्जक के मस्तिष्क में से उत्पन्न हुए विचार या तो आंतरिक अलौकिक कल्पनाशक्ति के द्वारा, डिस्क,कागज़,पत्थर पर अंकित किया,तराशा हुआ, मौलिक सृजन जैसे कि,साहित्य (नवल,नाटक, वगैरह), टीवी प्रोग्राम, फ़िल्म्स, संगीत, फॉटोग्राफ्स, ऑडियो-वीडियो CD-ROMs, वीडियो गेम, सॉफ़्टवेयर कोड, चित्र कला, हस्तकला, शिल्पकला वगैरह जैसे, निश्चित परिणामी फल देने वाले, उपयोगी सृजनात्मक प्रयत्न द्वारा निर्माण किया गया सृजन ।
 
एक प्रकार से मौलिक सृजन में ऐसी पूर्व धारणा समाविष्ट है कि, एक ही विषय पर, एक जैसा, स्वैच्छिक, स्वतंत्र सृजन, कदापि सटीक एक समान नहीं हो सकता । अगर कोई ऐसा दावा करता भी है तो, ये बात नामुमकिन और अविश्वसनीय मानी जाती है ।
 
इस परिभाषा के अनुसार देखें तो `USENET`,(कम्प्यूटर) पर प्रदर्शित, अन्य किसी भी सर्जक की रचना से, प्रेरित हो कर, नये सिरे से टाइप किया हुआ, समग्र कल्पनाशील सृजन, ज्यादातर सृजनात्मक कार्य माना जाना चाहिए, पर कॉपीराइट अधिनियम के अनुसार उसे सुरक्षित नहीं किया जा सकता । 
 
अब ये बात स्पष्ट हो गई कि,साहित्यिक चोरी-Plagiarism, कॉपी पेस्ट-Copy-Paste, भड़ौआ -Parody जैसी मलिन प्रवृत्ति को, कॉपी राइट एक्ट का उल्लंघन मानकर, ऐसी प्रवृत्ति के विरूद्ध अदालत में दावा किया जा सकता है ।
 
अंतरराष्ट्रीय कॉपी राइट एक्ट की आवश्यकता और ख़याल ।
 
विश्व में सबसे पहले,सन-१७०९ में, यूनाइटेड किंग्डमकी रानी ऍन्ने के नाम से (Queen Anne-UK) द्वारा,`Copyright Act 1709 8 Anne c.19` के नाम से, वहाँ के सर्जक के, हितों की रक्षा के लिए बनाया गया और उसे सन-१९१० में लागू  किया गया ।
 
सन-१९६८ में भारत में, प्रिंटीग टैकनॉलॉजी में ज्यादातर,`XEROX` जैसे आसान पूनःमुद्रण  उपकरण का चलन बढ़ने के कारण, आदि सर्जक की पूर्वानुमति प्राप्त किए बिना ही उनकी रचनाओं का ग़ैरक़ानूनी पूनःमुद्रण, बड़े पैमाने पर होने लगा, ऐसी ग़ैरक़ानूनी प्रवृत्ति पर लगाम कस ने के लिए, अंतरराष्ट्रीय कॉपी राइट एक्ट की आवश्यकता का ख़याल उद्धव हुआ ।
 
अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट एक्ट,`Under the Berne copyright convention` में भारत सहित विश्वके करीब सभी देशोंने दस्तख़त किए हैं ।`
 
Under the Berne copyright convention`की परिभाषा के अनुसार,
 
"प्रत्येक सृजन कार्य,जिस क्षण से स्पष्ट रूप में अभिव्यक्त हो जाए,उसी क्षण से,यह सृजन अपने आप ही,कॉपी राइट एक्टसे बाध्य माना जाता है ।"
 
कॉपी राइट एक्ट का उल्लंघन होने पर, सृजन की अभिव्यक्ति के स्थान पर (किताब, ब्लॉग  इत्यादि), "कॉपी राइट संरक्षित सामग्री" की चेतावनी प्रकट न की गई हो, फिर भी, उस सृजन का कॉपी राइट भंग करनेवाले, किसी भी देश के, किसी भी व्यक्ति-संस्था पर, अंतरराष्ट्रीय कॉपी राइट एक्ट के तहत, कानूनी कार्यवाही कि जा सकती है ।  ऐसी कानूनी कार्यवाही के लिए, मूल सर्जक, अदालती दावा करने से पहले, कभी भी, अपने सृजन के कॉपी राइट पंजीकृत करवा सकता है ।
 

दावा करनेके लिए,मूल सृजनकी कॉपीका,पंजीकृत करवाना आवश्यक है । 
 
अंतरराष्ट्रीय कॉपी राइट संगठन के करार के मुताबिक, मूल सर्जक के निधन के पश्चात भी,सत्तर (७०) साल तक उस सृजन पर,कॉपी राइट लागू रहता है ।
 
हालाँकि, कुछ सनातन सत्य और सनातन विचार का कॉपीराइट पंजीकृत नहीं किया जा सकता । सिर्फ सृजनात्मक कार्य अभिव्यक्ति पर ही कॉपीराइट लागू होता है ।
 
`BERNE CONVENTION`की विस्तृत जानकारी ।
 
कॉपी राइट संरक्षण हेतु, भारत सहित, अलग-अलग देशों के बीच हुए, एक समान कॉपीराइट करार को,`The Berne Convention- बर्न समझौता` कहते हैं । इस करार से बाध्य सभी देश, दूसरे सभ्य देश के, किसी भी सर्जक के कॉपी राइट भंग होने की शिकायत पर, संबंधित देश के कॉपी राइट कानून के तहत, कानूनी कार्यवाही करने के लिए बाध्य होते हैं ।
 
अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट पंजीकरण की विधि ।
 
विश्व के विविध देशों में, कॉपी राइट एक्ट की धारा-रचना में एकसमानता नहीं है, फिर भी कोई सर्जक अगर अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट पंजीकृत कराना चाहे तो, वह `Berne Convention` करार के तहत, इस संगठन के सदस्य 
देश में, कॉपीराइट पंजीकृत करवा सकता है । इसके अलावा, कोई भी सर्जक, किसी दूसरे देश में, वहाँ के मौजूदा कानून के अनुसार कॉपीराइट पंजीकृत करवा सकता है । किसी दूसरे देश में, किसी सर्जक के सृजन का कॉपी राइट भंग होने की घटना ध्यान आने पर वह सर्जक, उस देश के सक्षम सत्ताधिकारी सम्मुख शिकायत दर्ज कराके,अपना नुक़सान-खर्च समेत, मांग सकता है ।
 
कॉपीराइट का मालिकाना हक़ ।
 
अन्य भौतिक-प्राकृतिक,स्थाई-चल संपत्ति की तरह, कॉपीराइट प्राप्त  ख़याल, संशोधन अथवा सृजन को, आंशिक या तो पूर्ण स्वरूप में, ख़रीदा जा सकता है, बेचा जा सकता है, विरासत में दिया जा सकता है या फिर उसके हक़ अन्य के नाम तबदील किए जा सकते हैं ।
 
कॉपी राइट एक्ट में विविध प्रकार के कार्य का समावेश ।
 
कॉपी राइट में साहित्य सृजन, नाट्य सृजन, संगीत सृजन, सभी तरह के कला सृजन, साउंड ट्रैक, वीडियो रूपांतर सहित चलचित्र(फ़िल्म्स), सभी प्रकार के कम्प्यूटर प्रोग्राम और सॉफ्टवेयर, जैसे विविध प्रकार के, सृजन कार्य का समावेश किया गया है ।
 
कॉपी राइट धारक के हक़ ।
 
कॉपीराइट धारक को किसी भी माध्यम में अपना सृजन पेश करने का, उसमें सुधार करने का, उस सृजन की अनेक प्रतिलिपी (Copy) करने का, सार्वजनिक तौर पर वितरण करने का, भाषांतर करने का, किराये पर देने का और बेंचने का अधिकार प्राप्त है ।
 
कॉपी राइट संपादन विधि ।
 
कोई भी मौलिक सृजन, सृजन होने के बाद, जिस क्षण से सृजन  अभिव्यक्त होता है,उसी समय उसके सर्जक को, संबंधित सृजन का कॉपी राइट अपने आप प्राप्त हो जाता है ।
 
कॉपीराइट अधिकार प्राप्ति की शर्तें । 
 
भारत में कॉपीराइट एक्ट की प्रमुख शर्त है, संबंधित सर्जक के सृजन अधिकार की अवधि के बारे में । ये अवधि, सर्जक का, जीवनकाल+निधन के पश्चात साठ साल (60 Years) तक की होती है । फिल्में, रेकार्ड्स (ग्रामोफ़ोन बाजे का तवा), फोटोग्राफ्स, सर्जक के मरणोपरांत प्रकाशन, सरकारी और अंतरराष्ट्रीय कार्य वगैरह के लिए, सृजन अभिव्यक्त होने के दिन से लेकर साठ साल तक कॉपीराइट से सुरक्षित रहता है ।
 
उपरांत, किसी भी स्वरूप में अभिव्यक्त या प्रसारित हो चुके सृजन, प्रसारित होने के दिन से लेकर, पच्चीस (२५) साल तक कॉपीराइट से सुरक्षित रहता है ।
 
हालांकि सर्जक को उसका सृजन अभिव्यक्त करने के साथ ही कॉपीराइट प्राप्त होते हैं, पर हमारे देश के कॉपीराइट एक्ट के प्रावधान अनुसार, अपने सृजन के साथ हुए कॉपीराइट उल्लंघन की स्थिति में, अदालत में  दावा करने के लिए, मूल सृजन की कॉपी का, पंजीकृत करवाना आवश्यक है । (हालाँकि, दावा करने से एक दिन पहले भी, ऐसा पंजीकरण करवाया जा सकता है ।)
 
कॉपीराइट धारण करने की योग्यता ।(Competency)
 
भारत में, कॉपीराइट एक्ट के तहत, मूल सर्जक को, कॉपीराइट का प्रथम हक़दार (दावेदार) माना गया है । जहाँ कोई स्पष्ट लिखित करार किया गया न हो, ऐसी स्थिति में, नौकरी करनेवाले कर्मचारी (सर्जक) द्वारा किए गए नव सृजन पर कर्मचारी सर्जक का कॉपीराइट माना जाता है । जहाँ एक से अधिक सर्जक (कर्मचारी) द्वारा नव सर्जन किया गया हो, ऐसे में कॉपीराइट, सामूहिक  माना जाता है ।
 
कॉपी राइट हस्तांतरण की सरल पद्धति ।
 
कॉपीराइट का मौखिक हस्तांतरण या तबदीली कानून के तहत अमान्य है । सृजन का ऐसा हस्तांतरण करते समय, सृजन की पूर्ण विगत, जैसे कि, सृजन का प्रकार, तबदीली आंशिक है या पूर्ण रूप, करार की समयावधि, पारिश्रमिक राशि वगैरह,स्पष्ट और लिखित रूप में होना चाहिए ।उपरांत ऐसे करार में कॉपीराइट धारक खुद या तो उनके द्वारा जिसे अधिकार तबदील किए गए हो, वह मुख़त्यार के दस्तख़त करना अनिवार्य है । हालाँकि, ऐसे तबदीली करार को पंजीकृत करवाना अनिवार्य नहीं है ।
 
कॉपीराइट रक्षा हेतु,संबंधित स्थान पर नोटिस का विवरण । (प्रदर्शन) 
 
जब कोई भी सृजन, किसी स्थान  पर अभिव्यक्त होता है,तब ` Berne Convention for protection of  any  copyright protected works` के अंतरराष्ट्रीय करार के तहत, संबंधित स्थान पर` सृजन कॉपीराइट से आरक्षित है ।` चेतावनी अवश्य प्रदर्शित करनी चाहिए ।
 
आप अपने सृजन के कॉपीराइट चिन्ह (लोगो-©) अपने ब्लॉग या पोस्ट पर दर्शाने के लिए इतना कीजिए..,
 
* अपने  Windows,`PC keyboard` पर," Hold down Alt and type 0169 on the number pad (right hand side of your keyboard)   Alt+0169 "
 
* आप अगर `Mac computer` पर कॉपीराइट © चिन्ह चिपकाना चाहें तो, " Hold down Option at the same time and press 'g'  to get the copyright symbol.( Option+g ) "
 
 वेबसाइट या ब्लॉग पर, अपने सृजन की रक्षा के,कुछ सरल विकल्प ।
 
१.किसी भी रचना का सृजन करने के बाद, उसे प्रदर्शित करने के साथ ही, उसी स्थान पर, उस सृजन-श्रेय के बारे में (Credit-Rights), स्पष्ट करके,उसे कानूनी प्रक्रिया अनुसार आरक्षित करें ।
 
२. अगर ऐसी रचना का सृजन, एकाधिक सर्जक द्वारा किया गया हो तो हरेक के हिस्से के श्रेय का,(Credit-Rights) उल्लेख अवश्य करें । (जैसे,गीतकार+गायक+संगीतकार=गीत ।)
 
३. जब साझा सृजन हो तब, प्रत्येक हयात (जीवित)या फिर मृत, सभी सर्जक के नामोल्लेख स्पष्ट रूप से करना चाहिए ।
 
४. प्रकाशक,साहित्य लेखन और संगीत अधिकार रक्षा के लिए,गठित की गई सरकार मान्य सोसायटी (संगठन) में, अपनी रचना का पंजीकरण करवाए ।
 
५. आपके सृजन कार्य के अधिकार, अन्य को तबदील करते समय करार में, कॉपीराइट (हक़) का उल्लेख स्पष्ट रूप से करें, ताकि, बाद में कोई व्यर्थ विवाद न हो ।
 
६. अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट संगठन के समझौते के अनुसार, आपके मौलिक सृजन के कॉपीराइट किसी भी स्वरूप में, सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त हो उसी वक़्त, उस सृजन के अधिकार आपको अपने आप प्राप्त हो जाते हैं, चाहे आपने उसे पंजीकृत कराया हो या नहीं ।
 
७. आपकी मौलिक सृजन क्षमता दर्शाने के लिए, अत्यंत उत्साहित हो कर, अपने ताज़ा मौलिक सृजन को, आपकी साइट या ब्लॉग पर, तुरंत प्रदर्शित करने की ग़लती, हरगिज न करें, उसका ग़लत इस्तेमाल होने की संभावना है । 

अगर हो सके तो, आपके मौलिक सृजन का, पूर्ण रूप से व्यावसायिक उपयोग हो जाने के पश्चात, पुराना होने पर ही, साइट या ब्लॉग पर उसे, आंशिक रूप में प्रदर्शित (अपलॉड) करना चाहिए ।
 
इसके उपरांत नयी तकनीक आज़माकर, जहाँ ज़रूरत लगे वहाँ, `साइट कॉपी लॉक`, या सरलता से मिटा न पाए ऐसे `वॉटर मार्क`, या तो `इ-सिग्नेचर` जैसी, आपकी पहचान को, आप पृष्ठभूमि में (Background) लगा सकते हैं ।
 
कॉपीराइट प्राप्त करने की कार्यवाही की समझ । 
 
हमने यहाँ देखा कि, सृजन सार्वजनिक किया गया हो या न किया गया हो, पर सभी मौलिक सृजन को अभिव्यक्त होते ही कॉपीराइट अपने आप लागू हो जाता है ।
 
अपने मौलिक सृजन-रक्षा के लिए, उसे कॉपीराइट ऑफ़िस या पंजीयक अधिकारी सम्मुख पंजीकृत कराना अनिवार्य नहीं है । हालांकि,अदालत में दावा करने के लिए,पंजीयक अधिकारी सम्मुख,एक सील बंद कवर में, मूल सृजन की तमाम जानकारी (विगत) के मूल सृजन के दस्तावेज़ को, अदालत प्रथमदर्शी सबूत मानती है, इसी वजह से दावा करने से पहले,सृजन का पंजीकरण कराना उचित है ।
 
कानून अनुसार,कॉपीराइट उल्लंघन के प्रकार । 
 
* मूल सर्जक की पूर्वानुमति के बिना या,
 
*कॉपीराइट पंजीयक अधिकारी की पूर्व अनुमति बिना,
 
*या पूर्वानुमति जिस शर्त पर मिली हो उसके भंग करने की स्थिति में,
 
* या कॉपीराइट एक्ट ऑफ़िस के सक्षम अधिकारी के दिए हुए किसी दिशा निर्देश का भंग करने पर, जिसके कारण कॉपीराइट धारक के विशिष्ट अधिकार पर विपरीत असर हो या फिर उसके मुनाफ़े पर असर पड़ता हो,
 
* उपरांत, मूल सर्जक की पूर्वानुमति बिना, उसके सृजन को बेचना या किराये पर देना या दोनों कार्य का प्रस्ताव रखना,
 
*  सृजन को किराये पर देने के कार्य में विध्न पैदा करना,
 
* मूल सर्जक की पूर्वानुमति बिना,उसे सार्वजनिक प्रदर्शित करना,
 
* किसी के सृजन की असंख्य प्रतिलिपि, गैरकानूनी रूप से तैयार करना,
 
* मूल सृजन को हूबहू- अक्षरशः  कॉपी करने के बजाए, उसका अधिकांश हिस्सा दिखाई दे, ऐसी नकल करना, वगैरह जैसे ग़ैरक़ानूनी कार्य-प्रकार को, कानून अनुसार, कॉपीराइट उल्लंघन माना जाता है ।
 
कॉपी- राइट उल्लंघन की सारी जानकारी होते हुए भी बदइरादे से, मूल सर्जक के सृजन का दुरुपयोग करने की स्थिति को, कानूनन अपराध माना जाता है ।
 
कॉपीराइट उल्लंघन के कृत्य को साबित करने की ज़िम्मेदारी ।
 
कॉपीराइट उल्लंघन के मामले में, इस ग़ैरक़ानूनी कृत्य को साबित करने के लिए, मूल सर्जक को,सर्जन पर खुद का हक़ सिद्ध करना पड़ता है । उपरांत, उस सृजन का आंशिक या पूर्ण रूप से,प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से,कॉपीराइट उल्लंघन के कृत्य को,पर्याप्त सबूत जुटा कर,अपराध सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी भी सर्जक की होती है ।  पर्याप्त सबूत के आधार पर ही न्यायालय `कॉपीराइट उल्लंघन हुआ है कि नहीं`,ये बात तय करता है ।
 
कॉपीराइट प्रदर्शित करना और उल्लंघन होने पर कानूनी नोटिस कार्यवाही की समझ ।
 
कॉपीराइट नोटिस में © चिन्ह कॉपीराइट दर्शाता है । नोटिस में मूल सर्जक का नाम, 

उदाहरण; © २०११.(नाम)XYZ. स्पष्ट दिखे,इस प्रकार से, नोटिस प्रदर्शित करनी चाहिए ।
 
अपने `ब्लॉग`-`वेबसाइट`-`इ-किताब` या अन्य किसी अभिव्यक्ति के माध्यम से, आपके सृजन के कॉपीराइट भंग होने की जानकारी प्राप्त होने के तुरंत बाद, आपको निम्नलिखित कार्यवाही करनी चाहिए ।
 
१. आपको, `To Whom It May Concern` को `Notice of Copyright Infringement` भेजना चाहिए ।
 
आपको इस नोटिस का तैयार स्वरूप (Format) पाने के लिए लिंक हैः-
 
२. इसी के साथ, ऐसी ही एक नोटिस,`Notice to Search Engine` को भेजनी चाहिए ।
 
इस नोटिस का तैयार स्वरूप (Format) के लिए लिंक हैः-
 
ऐसी नोटिस भेजने के लिए पता हैः-
 
१. गुगल-Google, Inc.
Attn: Google Legal Support, DMCA Complaints
1600, Amphitheatre Parkway
Mountain View, CA 94043
 
Fax: (650) 618-2680, Attn: DMCA Complaints
 
Google DMCA:
 
२.याहू-For Yahoo! Inc:
Daniel Dougherty
c/o Yahoo! Inc.
701 First Avenue
Sunnyvale, CA 94089
 
FX: (408) 349-7821
 
Sent via: Mail
 
Yahoo Copyright Page:
 
३. एम.एम.एन.Windows Live Search (Formerly MSN)
c/o J.K. Weston
One Microsoft Way, Redmond, WA 98052
PH: (425) 703-5529
 
FX: (425) 936-7329
 
Send via: Email
 
कॉपीराइट की नोटिस में,तीन बातों का संदर्भ अगर न हो तो,ठोस विवरण के अभाव में, यह नोटिस अमान्य मानी जाती है ।
 
१. नोटिस में, कॉपीराइट चिन्ह © या "copyright" शब्द का होना अनिवार्य है । 
 
२. नोटिस में,जिस तिथि-मास-वर्ष में सृजन प्रकाशित -सार्वजनिक किया हो,उसे स्पष्ट रूप से दर्शाना चाहिए । सृजन प्रकाशित -सार्वजनिक करने के पश्चात अगर,उस में कोई सुधार करके,दोबारा प्रकाशित हुआ हो तब ऐसे में इस बात की संसूचना भी देनी चाहिए ।
 
३. नोटिस में,मूल सर्जक के नाम(एकाधिक सर्जक सहित),उपनाम समेत दर्शाने चाहिए । (अर्थात-मूल सर्जक की पहचान साबित होना अनिवार्य है ।)
 
कॉपीराइट उल्लंघन अपराध विरूद्ध, कानून के अनुसार,कुछ त्वरित उपाय किए जाते है । जैसे कि, नोटिस भेजने के पश्चात,निश्चित समय मर्यादा में, संतोषप्रद प्रत्युत्तर न मिलने पर, कॉपीराइट उल्लंघन करनेवाले की वेबसाइट या ब्लॉग, उपरांत अन्य तमाम सोशियल साइट, मेल एड्रेस को,`Website Copyright Cease  and Desist Order` भेजकर, शीघ्र प्रतिबंध (बंद) किया जाता है ।
 

भारत में कॉपीराइट पंजीकरण ऑफिस की जानकारी ।
 
(Copyright Registration Bureau)
 
१.COPYRIGHT - New Delhi 
Registrar of Copyrights, Copyright Office,
Ministry of Human Resource Development,
Kasturba Gandhi Marg, New Delhi - 110 011
 
* Tel. : 011 - 338 24 58
 
* E-Mail : zt.edu@sb.nic.in  * Website : www.education.nic.in
 
२. COPYRIGHT - New Delhi :
Okhla Indl.Estate, New Delhi-110020
 
* Tel. : 011-6310184 / 2045 * Fax : 011-6310184
 
३.COPYRIGHT - Mumbai
Old Central Building, 101, M. K. Road, Mumbai - 400 020
 
* Tel. : 22017368 / 22039050
 Fax : 22013694 / 22053372 *
 
* Web : www.tmrindia.com 
 
४.COPYRIGHT - Kolkata :
1st Floor, 15/1, Chowringhee Square, Kolkata-700069
 
* Tel. : 033-2482738 / 2840 * Fax : 033-2482738
 

५.COPYRIGHT - Chennai :
Rajaji Bhavan, 2nd Floor, D Wing, Besant Nagar, Chennai-600090
 
* Tel. : 044-4902791 / 2789 * Fax : 044-4902787
 
* Email : tmrchebr@tn.nic.in/tmrchebr@md3.vsnl.net..in
 
६.COPYRIGHT -Gujarat, Ahmedabad - Head Office
A-3, Trade Center,
Stadium Circle, C. G. Road,
Ahmedabad - 380 009.
Gujarat-INDIA.
 
Phone: 91-79-2640 4153
Fax:    91-79-2640 4154
 
E-mail: info@parkerip.com
 
Web: www.parkerip.com Office of Parker & Parker Company
 
७.COPYRIGHT - Ahmedabad :Branch
National Chambers, 15/27, 1st Floor, Ashram Road, Ahmedabad-380009
 
* Tel. : 079-6580567 / 7193 * Fax : 079-6586763
 
कॉपीराइट एक्ट के बारे में फैली हुई, कुछ ग़लतफहमी और भ्रांति का सरल समाधान ।
 
दोस्तों, अभी-अभी श्रीअमिताभजी ने अपने आवाज़ की ग़ैरक़ानूनी कॉपी Copy,चोरी-Plagiarism,भड़ौआ-Parody,मज़ाक(spoof),उपहास (satire) करनेवालों के ख़िलाफ, अपने आवाज़ का कॉपीराइट प्राप्त किया है ।
इसके बारे में, नेट जगत में कुछ ग़लतफहमी, भ्रांति फैली हुई है, जिसके कारण ग़ैरक़ानूनी कॉपी, चोरी, पैरॉडी, मज़ाक, उपहास शैली करनेवाले जानबूझकर  या अनजाने  में कानून का उल्लंघन कर रहे हैं । 
ऐसे में आइए, कॉपीराइट एक्ट के बारे में फैली हुई, कुछ ग़लतफहमी, भ्रांति का सरल समाधान ढूंढने का प्रयास करें ।
* कॉपीराइट का समस्त ख़याल ही निरर्थक और बंधन-युक्त है ? यह समस्त सृजन जन कल्याण हेतु के लिए होता है, ऐसे में, इसे आरक्षित करने के लिए बनाया गया `कॉपीराइट एक्ट` खुद एक आपराधिक क़दम है?
 
+ प्यारे दोस्तों,दुनिया के तमाम सर्जक  का,सिर्फ सामाजिक जन-कल्याण हित के संदर्भ में मूल्यांकन करने के बदले, उसे सिर्फ और सिर्फ कानून की नज़र से देखना चाहिए ।
 
कोई भी सृजन, एक दिन या रात में अभिव्यक्त नहीं हो पाता, इसके लिए सर्जक, अपनी खुद की परम बुद्धिमत्ता द्वारा प्राप्त कुशलता का श्रेष्ठ उपयोग करके, कई सफल-विफल प्रयत्न की यातना भुगतने के बाद, अपना आखिरी मौलिक सृजन कर पाता है । इसीलिए, ऐसा मौलिक सृजन, सही अर्थ में सर्जक की संपत्ति मानी जाती है । सर्जक को ऐसी संपत्ति के कॉपीराइट प्राप्त हो,ये बात कानूनी उपरांत सामाजिक न्याय के तौर पर भी योग्य मानी जाती है । इसलिए कॉपीराइट का समस्त ख़याल,कदापि निरर्थक और बंधन-युक्त नहीं हो सकता ।
 

अब जब कि, ये संपत्ति सर्जक की है तो फिर, उसकी पूर्वानुमति के बिना उसका पुनःउपयोग करने के सिद्धांत को बंधन नहीं कहा जा सकता । किसी के सृजन की, ग़ैरक़ानूनी तरीके से कॉपी-पेस्ट, चोरी, पैरॉडी, मज़ाक, उपहास शैली करनेवाले अपराधी-अकेले को, जन-कल्याण का ठेका, किसी ने, कभी नहीं दिया है ।
 
किसी दूसरे सर्जक की जानकारी (ज्ञान) का दुरुपयोग करने का ख़याल मन में पैदा हो कर, मन में ही समा जाए,वहाँ तक  बात ठीक है, क्योंकि उस विचार को मूल सर्जक की अनुमति के बिना अगर अमल में लाया जाए तो, दीवानी-आपराधिक मामला बन जाता है । कई सर्जक के मन, धन का महत्व नहीं होता, जितना कि, उनके मौलिक सृजन का महत्व होता है । ऐसे में ज्यादा धनराशि का प्रस्ताव मिलने पर भी, सर्जक को अपने सृजन के, पुनः उपयोग की मंजूरी देना-न देना, जैसी पसंद का अबाधित अधिकार संपन्न है ।
 
* राष्ट्र भाषा के उत्कर्ष के नाम पर, किसी सर्जक के सृजन को, सार्वजनिक पूनःप्रदर्शित करने का विवाद ।
 
+ ` राष्ट्र भाषा का उत्कर्ष` शब्द, खुद एक छलावा है..!! अपने सृजन को,किसी भी माध्यम से, पुनःप्रदर्शित करने का अधिकार,सिर्फ सर्जक का होता है । अब यह स्पष्ट है कि, `राष्ट्र भाषा के उत्कर्ष` के बहाने, कोई भी व्यक्ति या संस्था, सर्जक की  पूर्वानुमति  प्राप्त  किए  बिना, उनकी रचना सुधारने, विकृत करने, या किसी माध्यम में प्रदर्शित करने जैसा, ग़ैरकानूनी कार्य नहीं कर सकता । याद रहे,ऐसा अनैतिक कार्य,कॉपीराइट का सरे-आम उल्लंघन माना जाता है ।
 
+ ध्यान रहें - 
 
सिर्फ अपवाद रूप से, पत्रकारत्व-संदर्भ, तथ्य समीक्षा और शिक्षा-ज्ञान बर्धन के गैर लाभदायक,उम्दा हेतु के लिए,किसी भी सर्जक के नामोल्लेख के साथ, संबंधित सृजन का संक्षिप्त मात्रा में, पुनः उपयोग क्षम्य है ।
 

मगर, कोई पत्रकार उसे विज्ञापन के रूप में पेश करें, या किसी शिक्षा संस्थान के कर्मचारी-अध्यापक,  छात्र-अभिभावकों को, सृजन की अधिक मात्रा में प्रतिलिपि बेचकर आर्थिक लाभ पाए, तब ऐसे कृत्य को, कॉपीराइट का उल्लंघन माना जाता है ।
 
* पसंदीदा सर्जक की रचना को, सर्जक के कॉपीराइट होने के उल्लेख के साथ, सृजन की प्रतिलिपियाँ (CD-DVD-ROM) निकाल कर, सिर्फ अपने और अपने दोस्तों के बीच मुफ़्त वितरीत करने का विवाद । 
 
+ पसंदीदा सर्जक की रचना को, सर्जक के कॉपीराइट होने के उल्लेख के साथ, सृजन की प्रतिलिपि (CD-DVD-ROM) निकाल कर, सिर्फ अपने और अपने दोस्तों के बीच मुफ़्त वितरीत करने के लिए भी, मूल सर्जक की पूर्वानुमति प्राप्त करना अनिवार्य है । हालाँकि, ऐसा कृत्य किसी आर्थिक लाभ उठाने के इरादे से, आप न करते हो,पर कानून की नज़र में, सर्जक के सर्जन को पुनः प्रकाशित करने के अबाधित अधिकार,`कॉपीराइट` का, आप उल्लंघन कर रहे हैं ।
 
कानून यहाँ तक कहता है कि, किसी ने आपको मेल(Mail) द्वारा फारवर्ड किया गया सृजन अगर, आप के ब्लॉग-साझा ब्लॉग पर प्रदर्शित किया जाए तो,उस सर्जक की शिकायत पर, आपका ब्लॉग,साझा ब्लॉग, हमेशा के लिए प्रतिबंधित (Ban) हो सकता है ।
 
ऐसे समय पर, मूल सर्जक के नामोल्लेख किए बगैर प्राप्त हुए किसी भी वृत्तांत (आलेख-चित्र) इत्यादि को, पुनः प्रदर्शित करने का मोह त्यागना चाहिए, उपरांत ऐसा मेल फारवर्ड करनेवाले के पास बिना विलंब, मूल सर्जक का विवरण मांगना चाहिए । अन्यथा अनचाही न्यायिक प्रक्रिया का सामना करने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।
 
* साझा सृजन के कॉपीराइट मामले में, कोई एक सर्जक अकेले ही, साझा सृजन को प्रदर्शित करने,किराये पर देने, या बेचने जैसे महत्व के निर्णय कर सकता है?
 
+ जन कल्याण के लिए, विज्ञान संशोधन, इंजीनियरिंग कार्य, भारी राशि का  पूँजी निवेश  करके निर्माण की गई फिल्में, जैसे मामलों में,कुछ अदालती आदेश हुए हैं कि, जिसमें कोई साझा सर्जक के विरोध (मनाही), करने पर भी, कुछ शर्तों के आधिन, बाकी सर्जक, साझा सृजन को किराये पर देने, या बेचने जैसे महत्व के निर्णय कर सकते है । 

हालाँकि, ऐसे निर्णय करते वक़्त, सभी सर्जक को  साझा क्रेडिट और मुनाफ़े में पर्याप्त हिस्सा देना जरूरी होता है, अन्यथा कॉपीराइट एक्ट का भंग माना जाता है । हक़ीकत तो यह है कि, बाद में ऐसे विवाद को टालने के लिए,साझा सृजन कार्य शुरू करने से पहले ही, लिखित करार में सभी बातों का, स्पष्टीकरण करना ज्यादा उचित है ।   
 
* साझा सृजन के मामले में, बाकी सभी सर्जक के कॉपीराइट, कोई एक सर्जक प्राप्त करें,ऐसे हालात में,नये सिरे से कॉपीराइट एक के नाम पंजीकृत करने की विधि ।
 
+ कॉपीराइट पंजीकरण ऑफ़िस के सक्षम अधिकारी को, मूल सर्जक के सृजन (content) और उसके निर्माण की तिथि-मास-वर्ष के साथ ही लेना देना होता है । ऐसे सृजन के मालिकी हस्तांतरण का मामला,`ट्रान्सफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट`,माना जाता है, अतः पर्याप्त  क़ानूनन `स्टैम्प ड्यूटी` चुका कर,नये सिरे से किए गए लिखित करार द्वारा मालिकी हक़ में तबदीली कि जा सकती है ।
 
* किसी सर्जक के सृजन में, ढ़ेर सारे परिवर्तन करके, नये सिरे से सुगठित सृजन के कॉपीराइट संपादन का विवाद । 
 
+ किसी सर्जक के सृजन में, ढेर सारे परिवर्तन करके, नये सिरे से सुगठित सृजन के कॉपीराइट मूल सर्जक के ही माने जाते है क्योंकि, नये सिरे से सुगठित सृजन का मूल आधार (स्रोत), मूल सर्जक का सृजन है । इसीलिए, ये स्पष्ट होता है कि, नये सुगठित सृजन का बुनियादी वृत्तांत, मूल सृजन है, अतः मूल सर्जक की पूर्वानुमति प्राप्त किए बिना किया गया, नया सुगठित (विकृत?) सृजन कॉपीराइट भंग का मामला है ।
 
* नेट जगत में पोस्ट-अपलॉड किए गये मौलिक सृजन के दूषित परिणाम और उसे रोकने के उपाय ।
 
+ इंटरनेट का व्याप्त बढ़ते ही, किसी सर्जक के मौलिक सृजन को अभिब्यक्त करने के नये-नये तरीके प्रख्यात होने लगे है और पुरानी प्रिंटिंग पद्धति का चलन धीरे-धीरे कम हो रहा है । अपने सृजन को नेट पर पोस्ट करके नाम कमाने का रास्ता सबसे सरल है ये बात सर्व स्वीकृत है,पर  ये भी सच है कि, कॉपीराइट उल्लंघन के सबसे ज्यादा मामले, नेट जगत पर देखने को मिल रहे हैं ।
 
कोई सर्जक अपना तमाम सृजन नेट पर पूर्णरूप में प्रदर्शित करें, ऐसी परिस्थिति में, अपने सृजन के कॉपीराइट उल्लंघन के मामले में, सर्जक विवश हो कर, ऐसी ग़ैरक़ानूनी गति विधि को, देखता रहता है,या फिर उसके पिछे, अपना वक़्त बर्बाद न करते हुए, नये सृजन कार्य में जुट जाता है ।
 
ऐसे हालात में, अपने सृजन के साथ ग़ैरक़ानूनी गति विधि को रोकने के लिए, सर्जक को, पूरा सृजन पोस्ट करने के बजाय, मूल सृजन के कुछ अंश ही पोस्ट करने चाहिए । बाद में, केवल लिखित करार करने के पश्चात ही किसी को, मूल सृजन के उपयोग की सहमति देनी चाहिए ।
 
* किसी वेबसाइट-ब्लॉग पर, मूल सर्जक को क्रेडिट दिए बगैर, उसकी पुर्वमंजूरी के बिना ही सृजन को प्रकाशित करने के बारे में विरोध दर्ज कराने का विवाद ।
 
+ किसी वेबसाइट-ब्लॉग पर, मूल सर्जक को क्रेडिट दिए बगैर,मूल सर्जक की पुर्वमंजूरी के बिना ही सृजन को प्रकाशित करने के बारे में, मूल सर्जक के अलावा और कोई विरोध दर्ज करा सकता है या नहीं? इसके बारे में अक्सर विवाद होता रहता है ।
 
अगर कानून की नज़र से देखा जाए तो, कोई भी ग़ैरक़ानूनी गति विधि होती देखकर उसका विरोध करना, प्रत्येक अच्छे नागरिक का धर्म है, ऐसे में अपने पसंदीदा सर्जक और उसके  मूल साहित्य के साथ, ग़ैरक़ानूनी गति विधि, सार्वजनिक हित का मामला होने की वजह से, सर्जक के अलावा कोई भी साहित्य प्रेमी पाठक, ऐसी गति विधि को रोकने के लिए,अपना विरोध दर्ज करा सकता है । हालांकि, दीवानी-आपराधिक मामला दर्ज करने का हक़, सिर्फ  मूल सर्जक या उनके अधिकृत कॉपीराइट धारक का (power of attorney) होता है ।   
 
* मूल सर्जक की रचना का दुरुपयोग और कॉपीराइट उल्लंघन,जैसे हालात में कानूनी कार्यवाही की समझ ।
 
+ सब से पहले ऐसे तत्व को पहचान कर,उनसे संपर्क स्थापित करके,उन्होंने जाने-अनजाने में, आपकी रचना का कॉपीराइट भंग किया है, ये बात उन्हें ज्ञात कराके,उसे आपका मौलिक सृजन प्रदर्शित करने से रोकना चाहिए,फिर भी अगर वह ऐसी ग़ैरक़ानूनी गतिविधि करना बंद न करें तो, अपने लॉयर (एडवोकेट) के माध्यम से. उनको नोटिस भेज कर, उन पर दीवानी-आपराधिक मामला दर्ज कराने की चेतावनी देनी चाहिए । जरूरत पड़ने पर ऐसी गतिविधि करनेवालों पर अदालती  मामला भी दर्ज करवाना चाहिए ।
 
* अगर मैं अपने असली नाम के बदले, उप-नाम (तख़ल्लुस) से मेरी रचना प्रकाशित करूँ तो, मुझे कॉपीराइट प्राप्त हो सकता है?
 
+ ज्यादातर, उप-नाम के साथ असली नाम का उल्लेख करना ज़रूरी है । सिर्फ उप-नाम लिखने से कॉपीराइट उल्लंघन की अदालती कार्यवाही में, आपकी पहचान साबित करने में मुश्किलें आ सकती है ।
 
* कॉपीराइट आरक्षण के अपरिभाषित  विषय ।
 
+ वास्तविक - स्पष्ट समझ में न आएं ऐसे, कुछ  ख़याल-विचार-संशोधन-सर्जन, जो अंतर मन में (दिमाग में) हो परंतु, लिखित रूप में रूपांतरित न किए गए हो..!! अर्थात अप्रकट शीर्षक, नाम, स्लॉगन्स, कार्यप्रणाली, संशोधन की पद्धति, कल्पना, बुनियादी सिद्धांत, उपरांत तिथि-वार-वर्ष-छुट्टी जैसा विवरण दर्शाता, जन कल्याण हेतु तैयार किए गए, आदर्श एवं सर्वत्र प्रचलित कैलेंडर और सरकारी-अर्धसरकारी सूचना स्रोत के कॉपीराइट पंजीकृत नहीं हो सकते । 
 
* कॉपीराइट एक्ट भंग, दीवानी मामला है कि आपराधिक मामला? 
 
+ कॉपीराइट  हमेशा दीवानी मामला होता है,परंतु इस एक्ट का कितनी गंभीर मात्रा में भंग हुआ है, जानबुझ कर, बदइरादे से, आर्थिक लाभ उठाने के उद्देश्य से उसका उल्लंघन किया जाए, तब ये आपराधिक मामला बन जाता है । 

याद रहे, कानून की भाषा में, कॉपीराइट एक्ट उल्लंघन को, साइबर क्राइम जैसा ही महाअपराध और गंभीर दुराचार माना जाता है । 
 
* कॉपीराइट के उल्लंघन को रोकने के उपाय ।
 
+ कॉपीराइट एक्ट के अनुच्छेद ६६ अनुसार अदालत ऐसे कोई भी अपराधी,जिसके पास से सृजन की अनाधिकृत कॉपी का संग्रह जप्त किया हो, उन्हें सक्षम अदालत के आदेशानुसार  कॉपीराइट के ग़ैरक़ानूनी कॉपी के संग्रह का उपयोग करने पर अदालती रोक (स्टे), संग्रहित कॉपी जप्त करके, उसे नष्ट करने का आदेश, कॉपीराइट धारक को, मुनाफ़े में हुए नुक़शान के साथ, वकील फ़ीस, अन्य अदालती कार्यवाही खर्च, उपरांत निश्चित रूप से हुए आर्थिक नुकसान या फिर, अदालत के आदेशानुसार मुआवजा चुकाने का हुक्म अदालत दे सकती है । दीवानी उपरांत फ़ौजदारी धारा के तहत, ऐसा अपराधी ,दुराशय से, जानबूझकर, बार बार कॉपीराइट एक्ट का उल्लंघन करें तो, उसे जेल की सज़ा और भारी दंड, दोनों की सज़ा का कानून में प्रावधान किया गया है ।
 
* कॉपीराइट एक्ट कानून रक्षक अधिकारी को प्राप्त अधिकार (सत्ता) का विवरण ।
 
+ कॉपीराइट एक्ट-१९५७ के अमल के लिए, नियुक्त किए गए, पुलिस सब-इन्स्पेक्टर दर्जे के अधिकारी को, कॉपीराइट एक्ट  के अनुच्छेद ६४ के तहत, शिकायत की शीघ्र छानबीन करने के लिए, अपराध होने के पर्याप्त सबूत मिलने पर, किसी भी प्रकार के वारंट बगैर, अपराध स्थान पर छापा मारकर,  सारे साधन-सामग्री जप्त करके,बिना विलंब, उसे मेजेस्ट्रीट रूबरू पेश करने के विशिष्ट अधिकार प्राप्त है । 
 
* कॉपीराइट भंग - दीवानी - फ़ौजदारी न्यायिक कार्यवाही । 
 
+ पूरे विश्व में, बौद्धिक संपत्ति (The Intellectual Property Rights -IPR) के मौलिक सृजन हक़ रक्षा हेतु कड़े कानून अमल में है , जिस में भारत भी शामिल है । हमारे देश में भी, `Under the provisions of Indian Copyright Act 1957`के मुताबिक कॉपीराइट एक्ट में, कम्प्यूटर सोफ्ट वेयर का भी समावेश किया गया है । जिस में दिनांक- १० मई १९९६ से लागू किए गया संशोधन भी शामिल है । वैसे देखा जाए तो, विश्व में सब से कठोर धारा इस कानून में समाविष्ट कि गई हैं ।  
 
`Indian Copyright Act 1957( ICRA-1957 )`के अनुच्छेद १६ के मुताबिक, कॉपीराइट आरक्षित किसी भी सृजन की नकल करना  (COPY-PASTE), अन्य सर्जक के विचार या आलेख की चोरी करके उसे अपने नाम से प्रकाशित करना ( Plagiarism ), अन्य सर्जक की शैली का हूबहू अनुसरण करना (Parody), जैसे हालात में, The Intellectual Property Rights -IPR में, दीवानी कार्यवाही के साथ अदालत में,पर्याप्त मुआवजा चुकाने के साथ-साथ, फ़ौजदारी कार्यवाही के साथ, भारी दंड और सज़ा का प्रावधान किया गया है ।
 
हालाँकि, किसी सर्जक के मौलिक सृजन को,नुकसान या नष्ट होने की  परिस्थिति में, सिर्फ स्थलांतर के हेतु से, अल्पकालिक कॉपी संग्रह, कम्प्यूटर द्वारा तैयार की गई,`Backup copy` पर, ICRA-1957 लागू नहीं होता है । बाद में अगर, ऐसी `बैक-अप कॉपी` को सर्जक की पूर्वानुमति मांगे बगैर, निजी आर्थिक लाभ के लिए उपयोग किया जाए तो, उसे कॉपीराइट उल्लंघन माना जाता है, जिसे साबित करने की ज़िम्मेदारी, शिकायत कर्ता, मूल सर्जक की होती है ।
 
* `ICRA-1957`के अनुच्छेद -६३ के तहत, कॉपीराइट उल्लंघन के अपराधी को सज़ा का प्रावधान । 
 
+ `ICRA-1957` के अनुच्छेद ६३ ए (section63 A) मुताबिक, दूसरी बार कॉपीराइट भंग करते पकड़े गए, अपराधी को, एक साल की कड़ी क़ैद (जेल) और/या तो रुपया एक लाख की रकम के दंड का प्रावधान है । 
 
`ICRA-1957` के अनुच्छेद ६३ बी मुताबिक, ऐसे प्रत्येक उल्लंघन के साथ.शिकायत कर्ता, अपराधी विरूद्ध, अलग-अलग दीवानी-फ़ौजदारी केस दर्ज करवा सकता है । जिस में, दीवानी केस में मुनाफ़े में हुए नुकशान का मुआवजा, कानूनी खर्च और फ़ौजदारी अदालती कार्यवाही में,`ICRA-1957` के अनुच्छेद ६३ बी मुताबिक, कम से कम सात दिन,ज्यादा से ज्यादा तीन साल और/या तो, कम से कम रुपया पचास हज़ार,ज्यादा से ज्यादा रूपया दो लाख तक के भारी दंड का प्रावधान है । 
 
`ICRA-1957` के अनुच्छेद ६४ के मुताबिक, पुलिस डिपार्टमेन्ट के  सेकंड रॅन्क पुलिस इन्स्पेक्टर दर्जे के अधिकारी को, अनुच्छेद ६४ (१) के मुताबिक, अपराधी की तमाम साधन-सामग्री बिना वारंट जप्त करने की सत्ता प्राप्त है, जिसे वापस पाने के लिए, संबंधित सक्षम मेजेस्ट्रीट समक्ष पंद्रह दिन बाद अर्जी कि जा सकती है । 

हालांकि, पुलिस जाँच में कॉपीराइट एक्ट उल्लंघन साबित हो तो, ऐसी स्थिति में, अपराधी की बिना मंजूरी-सहमति माँगे, मेजेस्ट्रीट ऐसे साधन को नाश करने का आदेश कर सकते हैं ।
 
`ICRA-1957` के अनुच्छेद ६५ के मुताबिक, कॉपीराइट का उल्लंघन का अपराध जानबुझ कर किया जाए और अपराध अदालत में सिद्ध हो जाए तो,ऐसी स्थिति में, अपराधी को भारी दंड और/या  तो, दो साल की कड़ी क़ैद की सज़ा का प्रावधान है ।
 
देश में, मिनिस्ट्री ऑफ ईन्फरमेशन एंड टेक्नोलॉजी, मिनिस्ट्री ऑफ ह्यूमन रिसॉर्स डवलपमेंट डिपार्टमेन्ट, जैसे सरकारी संगठन, कॉपीराइट एक्ट के उल्लंघन की शिकायत को, गंभीरता से लेकर, तुरंत ही दीवानी और फ़ौजदारी कार्यवाही करने में मूल सर्जक को सहायता करते हैं । 
 
The National Association of Software and Services Companies (NASSCOM) के अधिकारी भी, कॉपीराइट एक्ट,`ICRA-1957` का अमल सख़्ती से लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है । यहाँ दर्शाये गए,सभी सरकारी संगठनों को,पुलिस की सहायता से, छापा मारने से लेकर अपराधी को  गिरफ्तार करने तक की सत्ता प्राप्त है ।
 
Intellectual Property Rights ( IPR's ) के  `ICRA-1957` अमल में आए कानून ने, भारत में, Cracking of websites, Copy-Paste, Plagiarism, Parody, Hacking, Piracy, उपरांत साइबर क्राईम से जुडे सभी अनाधिकृत आर्थिक कारोबार के साथ, मानो सचमुच युद्ध  ही छेड़ दिया है ।
 
हमारे `U.N.` की मार्गदर्शिका के मुताबिक, ईलेक्ट्रोनिक्स कॉमर्स के दिनांक- २७ अक्टूबर २००९ में लागू किए गए,`The Information Technology Act 2000` के कानून के कारण, ऐसे अनैतिक पद्धति अपना कर अपना पेट भरने वाले, साइबर लुटेरों के विरूद्ध शिकायत दर्ज होते ही,अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी, साइबर आतंकवाद और डेटा प्रोटेक्शन के मामले में, सख़्त कार्यवाही करना संभव हुआ है ।
 
साइबर क्राइम की व्याख्या - (In Indian Legal Perspective Cyber Crimes means) “An unlawful act where in the computer is either a tool or a target or both” 
 
साइबर क्राइम का अर्थ है, "कम्प्यूटर का हथियार के तौर पर इस्तेमाल करके और/या तो  उसे लक्ष्य बना के, प्रवर्तमान क़ानूनों का उल्लंघन करने की घटना को साइबर क्राईम कहते हैं ।"
 
वर्तमान युग में, इंटरनेट की सहायता से, `Ecommerce` का व्याप अधिकतम हो रहा है, ऐसे में, कम्प्यूटर का दुरुपयोग करके, कॉपीराइट उल्लंघन, साइट हैकिंग,क्रेडिट कार्ड फ्रोड़, अश्लील मैसेज-फ़ोटोग्राफ़ी, सॉफ्टवेयर पायरसी, जैसी आपराधिक गति विधि करने का चलन बढ़ने लगा है । ऐसे अपराध पर लगाम कसने के लिए,` IT Act, 2000.`( The Information Technology Act, 2000) का कानून  लागू किया गया है ।
 
` IT Act, 2000.` में, कम्प्यूटर के मूल जानकारी की चोरी, हैकिंग, अश्लीलता, सक्षम ऑथोरोटी के आदेशों की अवज्ञा, कानून से आरक्षित क्षेत्र में अनधिकृत प्रवेश, प्रायवसी का भंग या विश्वासघात, बदइरादे से नक़ली पहचान या रुतबा  पाने का प्रयास, या फिर  नक़ली पहचान से धोखाधड़ी जैसे अपराध कि स्थिति में, डेप्युटी कमिश्नर ऑफ पुलिस द्वारा पर्याप्त जांच  करने के पश्चात, कथित अपराधी का अपराध सिद्ध होते ही, उसे  जेल की कड़ी सज़ा और/या तो भारी दंड का प्रावधान किया गया है ।  `Section under IT Act` के अनुच्छेद - ६५ से ७४ तक की धारा के मुताबिक, अपराधी को, शिकायत कर्ता को रुपया एक करोड़ जितना भारी मुआवजा देना पड़ सकता है ।
 

दीवानी उपरांत इंडियन पिनल कोड की धारा, ४२५/४२६ (हानीकारक कृत्य), ४४१/४४७ ( क्रिमिनल ट्रेस पास), ४१५/४२०( धोखाधड़ी,मानहानि),३७८/३७९ (चोरी),५०३/५०५/५०६ (आपराधिक इरादे से मेल द्वारा धमकी देना) जैसी फ़ौजदारी धारा लागू होती हैं । 
 
प्यारे दोस्तों, आजकल `सूई की आत्मकथा से लेकर सागर की कविता` जैसे विषय के साहित्य का, कारोबार धड़ल्ले से हो रहा है, ऐसे में कॉपीराइट एक्ट का महत्व और बढ़ जाता है । इस महत्व को समझ कर, अपराध करनेवाले के साथ कड़ी से कड़ी दीवानी और फ़ौजदारी कार्यवाही, मूल सर्जक द्वारा अवश्य करनी चाहिए । किसी से तो शुरूआत करनी ही पड़ेगी,तो फिर आपसे ही क्यों नहीं?
 
यह आलेख पढ़ने के बाद, कम से कम  इतना ज़रूर कीजिएगा, रचनाकार के नामोल्लेख बगैर मिले मेल को, `रचनाकार की जानकारी के साथ ही भेजे` की नोट के साथ उसे वापस भेज दें । 

राष्ट्र-भाषा के प्रेमी होने के नाते, इतना तो आप कर ही सकते हैं । याद रहें, हमें भी एक दिन,ईश्वर,अल्लाह,गॉड को चेहरा दिखाना है और हम चोर बनकर वहाँ खड़े रहना हरगिज न चाहेंगे..!! इन्सानियत का तकाज़ा भी यही है,कि हमारे आसपास राह भूले हुए ऐसे नकली साहित्य सर्जक को सच्ची राह दिखाए ।
 
मुझे लगता है इतनी नैतिकता तो हम सब में आज भी बाकी है, है ना?
 
"सब को सदबुद्धि दे भगवान ।"
 
मार्कण्ड दवे । दिनांक- २७ नवम्बर २०१०.

रविवार, 29 जुलाई 2012

नयी नवेली दुल्हन थी



प्रियतम तडके घर से
काम पर निकल गए
बिना प्रियतम दिन
कैसे कटेगा  ?
रात सुहानी थी
दिन कैसा होगा ?
कब लौटेंगे प्रियतम ?
सोच में डूबी थी
अनमने भाव से काम में
लगी थी
प्रियतम के बिना
मन उदास था
समय काटे नहीं कट
रहा था
सब बोझ लग रहा था,
बिना प्रियतम
बिन पानी के
मछली सी तड़प रही थी
उसका संसार अब
प्रियतम में सिमट
गया था
वही लक्ष्य ,वही सपना
वही अब जीवन उसका
नयी नवेली दुल्हन थी
विवाह के बाद की
दूसरी सुबह थी
29-07-2012
627-24-07-12
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

अगस्त में जुटेंगे ब्लॉगिंग के महारथी

दैनिक हिन्दुस्तान, लखनऊ,27.07.2012
लखनऊ (वरिष्ठ संवाददाता) देश व विदेश के ब्लॉगर अगले महीने लखनऊ मे जुटेंगे । नए मीडिया के सामाजिक सरोकार पर बात करेंगे । इस बहस-मुहाबिसे मे पिछले कुछ दिनों से चर्चा के केंद्र मे रहे इस नए मीडिया पर मंथन होगा। साथ ही सकारात्मक ब्लोगिंग को बढ़ावा देने वाले 51 ब्लॉगरों को 'तस्लीम परिकल्पना सम्मान-2011' से नवाजा जाएगा । साथ ही हिंदी ब्लोगिंग दशक के सर्वाधिक चर्चित पांच ब्लोगर और पांच ब्लॉग के साथ-साथ दशक के चर्चित एक ब्लोगर दंपत्ति को भी परिकल्पना समूह द्वारा सम्मानित किया जाएगा ।  

  यह सम्मान 27 अगस्त को राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह मे आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन मे दिये जाएँगे। इस अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन का आयोजन तस्लीम व परिकल्पना समूह कर रहा है । सम्मेलन मे कई गंभीर विषयों पर चर्चा होगी । जैसे कि ब्लॉग, वेबसाईट, वेब पोर्टल,सोशल नेटवर्किंग साइट के सहारे अभिव्यक्ति की आज़ादी के नए द्वार के रूप मे अवतरित होने वाला मीडिया सामाजिक बंधनों को तोड़ने मे मुख्य भूमिका निभा रहा है। लेकिन अक्सर यह भाषायी मर्यादाओं व निजता के अधिकारों को छिन्न-भिन्न करता प्रतीत होता है ।

कहीं यह मीडिया आज़ादी के नाम पर गलत चीजों को तो बढ़ावा नहीं दे रहा है । यह एक अहम सवाल है जैस्पर मंथन होगा । सम्मेलन मे मीडिया से जुड़े देश-विदेश के अहम हस्ताक्षरों को बुलाया गया है । सकारात्मक ब्लोगिंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस आयोजन को तीन सत्रों मे रखा गया है। पहले सत्र मे 'नए मीडिया की भाषाई चुनौतियाँ' दूसरे सत्र मे 'नए मीडिया के सामाजिक सरोकार' एवं तीसरे सत्र मे 'नया मीडिया दशा-दिशा-दृष्टि' पर विचार रखे जाएँगे ।

(दैनिक हिन्दुस्तान के लखनऊ संस्करण में प्रकाशित समाचार से साभार )

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

स्वयं के साथ आँख मिचौली ।


स्वयं के साथ आँख मिचौली ।
(courtesy-Google images)
 


" खेलें तरंग आँख मिचौली, सागर किनारे..!!
  उठे, गिरे फिर उठे, समीर का हस्त थामे ..!!"  


=========
नोट- यह लेख में दर्शाये गये विचारों का तात्पर्य, कुछ ऐसी समस्याओं के प्रति समाज के सभी व्यक्ति का, ध्यानाकर्षित करना है, जो हमारी भारतीय सभ्यता एवं संस्कार का ह्रास करने पर तूली है । कृपया लेख का आकलन इसी संदर्भ में करें ।
=========

प्रिय दोस्तों,

कितने दुःख की बात है..!! अभी-अभी, अपनी नई फिल्म की पब्लिसिटी के लिए कुछ नामाँकित फिल्मी सितारों ने, आतंकवाद के बारे में पाकिस्तान को क्लिन चीट देने का  सत्कर्म(!!!) किया । उनकी मनसा साफ थीं, पाकिस्तान और विदेश में, अपनी फिल्म  कहीं  बॉक्स ऑफ़िस पर  पीट ना जाएँ?

शायद उन्होंने, यह विचार व्यक्त करने से पहले, अपना स्वयं निरीक्षण (Self  Inspection) नहीं किया होगा ।

हालांकि, हमारे देश में वाणी स्वातंत्र्य है । सबको अपने विचार पेश करने की कानूनी आज़ादी है । सब के विचारों का आदर भी होना चाहिए, मगर मामला जब समाज की संवेदनाओं से जुड़ा हुआ हो, तब अपने विचार पर्याप्त स्वयं निरीक्षण के बाद ही सार्वजनिक रुप से प्रकट करने चाहिए ।

आजकल  हरेक  न्यूज़ चैनल, अपने आप को नंबर -१ सिद्ध करने के लिए, 'BREAKING NEWS`, के नाम पर सनसनी फैलाने के इरादे से,छोटी सी बात को बड़ा न्यूज़ बनाकर,  हम सबको बेख़ौफ परोंस रही है ।

 यह बात तो सब के मन में स्पष्ट है की..!!

* इन्सान बीमार होता है, तब डॉक्टर के पास जाता है ।

*  इन्सान, इन्साफ़ चाहता है तब ऍडवोकेट और अदालत के पास जाता है ।

*  जब इन्सान को मन की शांति चाहिए, वह धर्मगुरु के पास या फिर धर्म स्थान में जाता है ।

अब आप कल्पना कीजिए, बीमार इन्सान डॉक्टर के बजाय, लॉयर के पास जाएँ तब क्या होता? आप के लिए ऐसी कल्पना करना भी बहुत  मुश्किल है, मगर ऐसी कल्पित घटनाएँ  न्यूज़  चैनल के  हिसाब से, `BREAKING NEWS` बन सकती है ।

न्यूज़ चैनल के नंबर-१ की इस लड़ाई में, सच्चे और तटस्थ न्यूज़ न जाने कहाँ खो गये हैं ।  हम सब सत्य समाचारों की आशा में रिमोट लेकर बैठे रहते हैं और हमको ज्यादातर  दिखाए जाते हैं,  बिना सर-पाँव के अर्थहीन ब्रेकिंग न्यूज़ ।

* क्या हम सब उपभोक्ता-ग्राहक पर यह, " ईमोशनल अत्याचार" नहीं  है ?

* खुद को वाल्मीकि ॠषि मानने वाले, यह सभी न्यूज़ चैनलों के सर्वेसर्वा का भूतकाल किसी  डाकू-लूटारें से कम नही, ऐसी कोई प्रमाण-भूत शोध  आजतक  क्या किसीने की  है?

* `बाय हूक या कुक` पूर्व आयोजित स्टोरी को बढ़ा-चढ़ा कर,`BREAKING NEWS` के नाम पर बेचना, व्यावसायिक रूप में क्या सही कर्म  है?

* क्या अपने आप को समाज के प्रहरी के रुप में पेश करनेवाला यह `तथाकथित`(SO CALLED) बुद्धिजीवी वर्ग दूध का धुला होता है?

* या फिर,`बदनाम हुए तो क्या नाम तो हुआ..!!` यह ख़याल मन में लिए, अपने न्यूज़ चैनल की व्यूअरशीप बढ़ाने के चक्कर में, वह सभी अपने नैतिक मानवीय धर्म पालन की सही  दिशा से, रास्ता भटक गये हैं?

* भारतीय संविधान के अनुसार, ऐसी सनसनी मचाने वाले ज्यादातर स्टिंग ऑपरेशन खुद  क्या  एक गुनाह नहीं है?

* अपने व्यूअर्स को क्या देखना है? कितनी मात्रा में देखना है? कितनीबार देखना है? यह सब गंभीर बातों का किसी न्यूज़ चैनल ने कभी गंभीरता से क्या सर्वे करवाया है? अगर हाँ, तो क्या उन निष्कर्ष पर सार्थक अमल किया गया है?

और सबसे चिंतन करने योग्य बात यह है की, खुद को वाल्मीकि ॠषि मानने वाले और अपने आप को समाज के प्रहरी के रुप में पेश करनेवाले यह बुद्धिजीवी वर्ग ने, क्या  कभी  थोड़ा सा  समय  निकालकर, स्वस्थ मन से, स्वयं निरीक्षण (Self  Inspection) किया होगा या  कभी करते होंगें?

मेरा नम्रतापूर्वक मानना है, कीसीभी देश की पहचान, राष्ट्र प्रेमी देशवासी, उच्च संस्कारी समाज से होती है । ऐसे में, समाज को बदनाम करनेवाली, झूठी या बनावटी, मानवता मूल्य विध्वंसक, ऑफ़िस टेबल मेड कहानी निर्माण करने जैसी, किसी भी प्रवृत्ति को कभी उचित नहीं ठहराया जा सकता ।

सवाल यह है की, हम इसमें क्या कर सकते हैं?

ज़रा ठहरिए..!! हम बहुत कुछ कर सकते हैं ।

सन- १९७४ में रिलीज़ की गई, निर्माता-निर्देशक श्री मनमोहन देसाईसाहब की फिल्म, `रोटी` में, गीत-कार श्रीआनंदबक्षीजी का लिखा, श्रीलक्ष्मीकांत-प्यारेलालजी का संगीतबद्ध किया हुआ और सुप्रसिद्ध गायक श्रीकिशोरकुमारजी का गाया हुआ एक गीत है,

"यार हमारी बात सुनो,ऐसा एक इन्सान चुनो, जिसने पाप ना किया हो जो पापी ना हो । इस पापन को आज सजा देंगे, मिलकर हम सारे, लेकिन जो पापी ना हो वह पहला पत्थर मारे । पहले अपना मन साफ़ करो फिर औरोंका इन्साफ़ करो । यार हमारी....!!"

यह सुंदर गीत के बोल में, स्वयं निरीक्षण करने ही बात पर ज़ोर दिया गया है ।

ख्रिस्ती धर्म में इस महान सत्य को सुंदर ढंग से उजागर किया गया है,
"The heart is deceitful above all things, and desperately wicked: who can know it?" (Jeremiah 17:9)

अर्थात - "दुन्यवी बातों की ओर, हृदय  कपटी, धोखेबाज़ और भ्रम पैदा करने वाला
ला-इलाज, पापी और अवगुण से भरा होता है । आजतक उसे कौन जान पाया है?"

समाज को अगर अपनी पहचान विकृत नहीं करनी है तो, अंधकार से भरे इस माहौल में, अपने स्वयं निरीक्षण के द्वारा, स्पष्ट विचारों की रौशनी चारों ओर फैला कर इस अंधकार को दूर करने का, सामूहिक, सफ़ल प्रयास सब को एकजुट होकर करना होगा ।

चाईनिज़ तत्व-चिंतक कॉन्फूसियस (Confucius - around 551 BC – 479 BC) के मतानुसार, मानवी अपने समग्र परिवार के संस्कार-Values, शिक्षा-Education और व्यवस्थापन क्षमता - Management के उत्थान द्वारा ही व्यक्ति-परिवार-समाज और राष्ट्र का विकास कर सकता है ।

स्वस्थ स्वयं निरीक्षण क्या बला है?

समुद्र में उठती-गिरती लहरों की तरह, हमारे जीवन में भी कई ऐसी आकस्मिक घटनाएँ घटती रहती हैं । जीवन काल के लंबे अंतराल के दौरान, भविष्य में सतानेवाली, ऐसी घटनाओं की पहचान के पाठ, सबसे पहले हमारी प्रथम गुरू  माँ (Mother) पढ़ाती है । वह इन्सान बड़ा अभागी होता है जिनके सर से, उसके जन्म के साथ ही माता का साया उठ जाता है ।

संसार की प्रथम गुरु माता, अपनी गोद में लेटे हुए ,अपने बालक को स्तनपान कराते समय, अपनी साड़ी का पल्लु, बालक के चेहरे पर ओढ़ाकर उसे अंधकारमय परिस्थिति से अवगत कराने का प्रयास करती है ।

जब बालक अपनी माता को ढूंढने के प्रयास में गोद में, घबराहट से उछलने लगता है, तुरंत माता प्यार-दुलारभरी आवाज़ देकर बच्चे को अपना ओर संसार के होने का अहसास कराती है ।

बालक को वयस्क होने के बाद पता चलता है की, माता द्वारा खेला गया, यह आँखमिचौली का खेल, अपने बच्चे को यह सिखाने का प्रयास था की,

" बेटे, शायद तुम्हारे वयस्क होने तक अगर मैं रहुं ना रहुं, पर बड़े हो कर तुम्हें इस अंधकारमय दुनिया में, मेरे मार्गदर्शन के बगैर ही, सर्वे आधी-व्याधि-उपाधि का हल खुद, अपने आप ही ढूंढना होगा ।"

स्वयं निरीक्षण का, कितना सुंदर उपदेश है यह..!! तीन या चार माह का बच्चा, समझ सकें, ऐसा आँख़ मिचौली का कितना सरल खेल, शायद सिर्फ माँ-गुरु के दिल में ही आ सकता है ।

वयस्क होने के वाद, हम सब इस खेल के सही मर्म को जाने बीना ही, यही  अद्भुत खेल, हमारे यार-दोस्तों के साथ खेलते रहते हैं ।

अपनी प्यारी माता की गोद में प्राप्त की गई आँख़ मिचौली के खेल से  हमें क्या शिक्षा प्राप्त होती है?

* जीवन में आने वाली हर  मुश्किल का सामना कैसे किया जाए ।

* निष्क्रियता को कैसे मात दी जाए ।

* अपना मार्ग खुद प्रशस्त करके, लीड़रशीप के गुण कैसे  विकसित किए जाएं ।

* अंधकारमय अज्ञान की स्थिति में, अपने अंतर आत्मा की आवाज़ को कैसे पहचाना जाएं ।

* अपने जीवन विकास के लिए, उच्च लक्ष्यांक कैसे कायम किए जाएं।

* अपनी  स्मृति-स्मरण शक्ति की धार को कैसे तेज़ किया जाएं।

* नयी-नयी राह ढूंढने के लिए कल्पना शक्ति को किस तरह बढ़ाया जाए ।

* जीवन की कठिन से कठिन समस्याओं का समाधान कैसे चूटकीयों में ढूंढा जाए ।

*  असंभव से लगते स्वप्नों को मन में कैसे संजोये । (जीवन-विकास के लिए, यह भाव भी जरूरी होता है ।)

* कष्टदायक आकस्मिक हालात में शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक आघात सहने की क्षमता विकसित करना ।

* निराशाजनक स्थितिओं मे हतोत्साह पर कैसे काबू पाया जाए यह सिखना ।

* उपलब्ध  संसाधन  और स्थल का, निजी लाभ के लिए महत्तम उपयोग करना सिखना ।

* खुद की कार्य-क्षमता का समय समय पर आकलन करना ।

* तीव्र गति से, बदलते रहते समय और संयोग में समय रहते, योग्य निर्णयात्मक मानसिकता विकसित करना ।

* पराजय के समय पराजय के कारण रुप ग़लत तरीकों और विजय के समय विजय के कारण रुप सही कार्यप्रणालिको मन में-जीवन में सदा याद रखने की आदत डालना ।

* कल्पना शक्ति-निश्चय शक्ति-विचार शक्ति और कार्यप्रणाली के बीच में तालमेल बनाना सिखना ।

* अपने पराजय को खेलभाव से झेलने की शक्ति प्राप्त करना ।

* पराजय का भय, नकारात्मक विचारों को परे रखकर उनको मन से भगाने की आदत डालना ।

* गतिशील जगत में, हरवक़्त आने-जाने वाली किसी भी मुश्किल का ड़्टकर मुकाबला करने की क्षमता पाना ।

* प्रतिस्पर्धी-विपक्ष का सदैव आदर करना सिखना ।

* खुद को, जित-पराजित प्रति पक्ष के पलडे में रखकर अपने आई.क्यू. के लेवल-अंक को विजयी ऊँचाई पर ले जाना ।

* जय-पराजय को ध्यान में न लेते हुए, कर्म का संतोष पाने की क्षमता हासिल करना ।

*अपनी खुद की आंतरिक क्षमता को सही ढंग से पहचान कर, उसे ताक़तवर बनाना ।

* व्यक्तिगत और सामूहिक रुप से, नये नये प्लानिंग करना और उसे कारगर ढ़ंग से अमल में लाना ।

* जीवन में समृद्धि पाने के नये तरीके खोजना और उस समृद्धि को कायम करने के सही रास्ते खोजना ।

* अमाप धैर्य, विशिष्ट कौशल, ज्ञानसंचय द्वारा अपनी स्वतंत्र सामाजिक पहचान कायम करना ।

* नैतिक, सच्चे और कानूनी रास्ते पर चल कर विजय का मूल्य समझना ।

* कार्य पूर्ण होने तक आंतरिक उर्जा को स्वस्थ और शांत मन से बनाये
रखना ।

* अन्य संबंधित लोगों की ग़लतियों को माफ़ करने की अच्छी आदत ड़ालना ।

* बिगड़े हुए संबंधों को फिर से मधुर बनाना सिखना ।

प्रिय मित्रों, Aristotle (384 BC – 322 BC) महान ग्रीक फिलोसोफर एरिस्टोटल ने  भी` पढ़ाई के साथ ही स्वयं की घड़ाई ।` करने की भारतीय परंपराओं का समर्थन किया है ।

सन-१९७१ में जन्मे अमेरिकन लेखक डोनाल्ड मिलर की बेस्ट सेलर किताब,`A Million Miles in a Thousand Years, (सब टायटल) , What I Learned While Editing My Life.`में भी स्वयं निरीक्षण द्वारा जीवन प्रणाली का सदैव ऍडीटींग करते रहने की बात का उन्होंने भी पुरजोश समर्थन किया है ।

पुरी किताब का केन्द्रवर्ती विचार यही है की," अच्छा जीवन जीने के लिए मानसिक शक्तियों पर, सत्कर्म द्वारा, सहेतु दबाव डालकर, सही ढंग से जीने की, बेहतर जीवन गाथा लिखी जा सकती है ।"

बचपन में करीब सभी विद्वान पाठक मित्रों ने, दला तरवाडी और वशराम भुवा की कहानी पढ़ी ही होगी ।

किसी ओर की मेहनत से उगाये हुए सब्जीओं की बाडी के बैंगन, दला तरवाडी नामक लालची व्यक्ति, अपनी सहुलियत के मुताबिक, बाड़ी के मालिक की अनुपस्थिति में, बाड़ी से ही पूछ कर बैंगन तोड़ लेता हैं ।

इतने मे ही बाड़ी का मालिक वशराम भूवा, यह नायाब चोरी का अजीब नज़ारा देखता है । फिर बाडी का मालिक उस लालची दला तरवाडी  को सज़ा के तौर पर हाथ पैर बाँधकर, एक कुएँ में उल्टा लटकाकर, कुएँ को पूछ कर, उसी लालची इन्सान की  ही स्टाईल में, दो-चार डुबकी लगवाता है।

दोस्तों, हमें स्वयं निरीक्षण की आदत डालकर, हमारे मन के भीतर टटोलना चाहिए, कहीं हम भी हमारे आसपास के लोगों के साथ ऐसा ही तरीका आज़मा कर मनवांच्छित फल तो प्राप्त  नहीं करते हैं ना?

वैसे मुझे पूरा यकीन है, जितने भी विद्वान पाठक मित्र ने यह लेख अंत तक पढने की जहेमत, धीरज के साथ उठाई होगी वह कतई ऐसे ग़लत तरीके जीवन में कभी नही आज़माते होगें ।

मेरा मानना है, हमारे देश में, ग़ुलामी की जंजिरों को तोड़कर, हमें आज़ादी के मनवांच्छित मीठे फल खिलानेवाले, पूज्य महात्मा गांधी बापू से महान, स्वयं निरीक्षण करने वाला लीडर आज के ज़माने में मिलना, घास के ढेर से सुई ढूंढने जैसा मुश्किल सा काम लगता है ।

क्या आप भी ऐसा ही मत रखते हैं?

कृपया मुझे ज़रुर अवगत करना । आपके मत का मुझे इंतजार रहेगा ।

मार्कण्ड दवे । दिनांक-१७-०३-२०११.

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

परिकल्पना ब्लॉग दशक सम्मान-2012 की सूची


परिकल्पना दशक का ब्लॉगर सम्मान 

(1)  पूर्णिमा वर्मन,शरजाह, यू ए ई 

पीलीभीत (उत्तर प्रदेश, भारत) की सुंदर घाटियों में जन्मी पूर्णिमा वर्मन को प्रकृति प्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग रहा। मिर्ज़ापुर और इलाहाबाद में निवास के दौरान इसमें साहित्य और संस्कृति का रंग आ मिला। पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक इनके साथ है। पिछले बीस-पचीस सालों में लेखन, संपादन, स्वतंत्र पत्रकारिता, अध्यापन, कलाकार, ग्राफ़िक डिज़ायनिंग और जाल प्रकाशन के अनेक रास्तों से गुज़रते हुए ये फिलहाल संयुक्त अरब इमारात के शारजाह नगर में साहित्यिक जाल पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' और 'अनुभूति' के संपादन, हिन्दी विकीपीडया में योगदान देने के साथ-साथ कलाकर्म में व्यस्त हैं।

(2) समीर लाल समीर, ओटरियों, कनाडा 

एक ऐसा प्रतिभावान व्यक्तित्व जिसका बचपन बीता जबलपुर में, मुंबई में पूरी की सी ए की पढ़ाई और जीविका के लिए पहुंचे कनाडा, जहां ये एक प्रतिष्ठित चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं । हिन्दी से प्रेम इन्हें ब्लॉग की ओर उन्मुख किया और देखते ही देखते हिन्दी ब्लोगिंग के ये पर्याय बन गए । इन्हें सन 2006 में तरकश सम्मान, सर्वश्रेष्ट उदीयमान ब्लॉगर, इन्डी ब्लॉगर सम्मान, विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दी ब्लॉग, वाशिंगटन हिन्दी समिती द्वारा साहित्य गौरव सम्मान सन 2009,परिकल्पना सम्मान 2010 एवं पुनः परिकल्पना सम्मान 2011 एवं अनेकों सम्मानों से नवाजा जा चुका है। 


(3)  रवि रतलामी,भोपाल, म.प्र. 

एक ऐसा व्यक्तित्व जो मूलत: एक टेक्नोक्रैट हैं, जिनका शगल है हिंदी साहित्य पठन और लेखन। विद्युत यांत्रिकी में स्नातक की डिग्री लेने वाले ये वरिष्ठ ब्लॉगर इन्फार्मेशन टेक्नॉलाजी क्षेत्र के वरिष्ठ तकनीकी लेखक भी हैं। इनके सैंकड़ों तकनीकी लेख भारत की प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी पत्रिका आई.टी. तथा लिनक्स फॉर यू, नई दिल्ली, भारत (इंडिया) से प्रकाशित हो चुके हैं। ये हिन्दी के प्रारंभिक तकनीकी ब्लॉगरों में अग्रणी हैं और इन्हें हिन्दी ब्लोगिंग का क्रान्ति दूत समझा जाता है । नाम है रवि रतलामी जो मध्य प्रदेश के भोपाल के निवासी हैं । (4)

(4)  रश्मि प्रभा,पुणे, महाराष्ट्र  


ये अंतर्जाल पर सक्रिय चर्चित लेखिकाओं मे से एक हैं । इन्हें वर्ष-2010 मे वर्ष की श्रेष्ठ कवयित्रि का परिकल्पना सम्मान प्राप्त हो चुका हैं और इस वर्ष यानि वर्ष-2012 मे दशक के पाँच श्रेष्ठ चिट्ठाकारों मे से ये एक चुनी गईं हैं । सौभाग्य इनका कि ये कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हैं और इनका नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया । इनकी लगभग आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित है । नाम है रश्मि प्रभा। ये मूलत: पटना, बिहार की निवासी हैं, किन्तु आजकल ये महाराष्ट्र के पुणे में रहती हैं । (5)
(5) अविनाश वाचस्पति,नयी दिल्ली 

ये हिन्दी के बेहद हरफनमौला ब्लॉगर हैं । इन्हें देश भर में नेशनल और इंटरनेशनल ब्‍लॉगर सम्‍मेलन आयोजन कराने का श्रेय दिया जाता है। इन्हें वर्ष 2009 के लिए हास्‍य-व्‍यंग्‍य श्रेणी में ‘संवाद सम्‍मान’ भी दिया गया है। ‘लोकसंघर्ष परिकल्‍पना सम्‍मान’ के अंतर्गत 2010 में वर्ष के ‘श्रेष्‍ठ व्‍यंग्‍यकार सम्‍मान’ भी इन्हें प्राप्त है । इनका एक व्यंग्य संग्रह "व्यंग्य का शून्यकाल" हाल ही मे प्रकाशित हुआ है। हिन्दी ब्लोगिंग पर एक और महत्वपूर्ण पुस्तक हिन्दी ब्लागिंग : अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति का इन्होंने रवीद्र प्रभात के साथ मिलकर संपादन भी किया है । नाम है अविनाश वाचस्पति । ये देश की राजधानी दिल्ली में रहते हैं ।

परिकल्पना दशक का ब्लॉग सम्मान (1) 


(1) उड़न तश्तरी (ब्लॉगर :  समीर लाल समीर ) 

एक ऐसा ब्लॉग जो मार्च -2006 में अस्तित्व में आया और लोकप्रियता का सारा पैमाना पार कर गया। इस ब्लॉग पर प्रकाशित पोस्ट पर जो त्वरित टिप्पणिया आती है वह अन्य किसी भी ब्लॉग की तुलना में सर्वाधिक होती है । ब्लोगिंग में स्टार डम पैदा करने का श्रेय इस ब्लॉग को जाता है, जिसके संचालक  हैं ओटरियों कनाडा निवासी श्री समीर लाल समीर । (2) 

(2) ब्लॉगस इन मीडिया (ब्लॉगर : बी. एस. पावला) 

यह ब्लॉग हिन्दी में अपने आप का एकलौता और अनूठा ब्लॉग है । इस ब्लॉग पर पोस्ट प्रकाशित नहीं होते, बल्कि प्रिंट मीडिया में होने वाली ब्लॉग चर्चा की जानकारी देता है । इसके संचालक  हैं भिलाई निवासी श्री बी. एस.पावला । 

 (3) नारी (समूह ब्लॉग, संचालक  : रचना)

 यह हिन्दी ब्लॉग जगत का पहला कम्यूनिटी ब्लॉग है जिसपर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं । महिलाओं की सशक्त आवाज़ का यह एक वृहद मंच है ।  इसकी  संचालक हैं दिल्ली निवासी रचना जिन्होने ये ब्लॉग २००८ में बनाया था।    

(4) साई ब्लॉग (ब्लॉगर: डॉ  अरविंद मिश्र ) 

यह वैज्ञानिक शोध और जिज्ञासाओं को शांत करने वाला हिन्दी का एक बेहद महत्वपूर्ण ब्लॉग है । इस ब्लॉग के संचालक  हैं हिन्दी के बेहद चर्चित विज्ञान कथा लेखक डॉ अरविंद मिश्र  । (5) 

(5) साइंस ब्लॉगर असोसियेशन (समूह ब्लॉग,  संचालक  : डॉ अरविंद मिश्र एवं डॉ ज़ाकिर अली रजनीश)

 यह विज्ञान पर आधारित हिन्दी का पहला सामूहिक ब्लॉग है। यह एक प्रकार से हिन्दी अंतर्जाल पर सक्रिय विज्ञान लेखकों की विश्राम स्थली है । इसे असोसियेशन का रूप दिया गया है, ताकि विज्ञान लेखकों का एक मजबूत संगठन अस्तित्व में बना रह सके । इसके अध्यक्ष हैं डॉ. अरविंद मिश्र और महासचिव हैं डॉ. ज़ाकिर अली रजनीश । 

परिकल्पना दशक के ब्लॉगर दंपति का सम्मान 

 कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव,इलाहाबाद, उ प्र  


एक ने डाकिया डाक लाया ब्लॉग के माध्यम से डाक विभाग के सुखद अनुभूतियों से पाठकों को रूबरू कराने का बीड़ा उठाया तो दूसरे ने साहित्य के विभिन्न आयामों से रूबरू कराने का । एक स्वर है तो दूसरी साधना । हिन्दी ब्लोगजगत में जूनून की हद तक सक्रिय ये ब्लॉगर दंपति हैं कृष्ण और आकांक्षा, जिन्हें दशक के ब्लॉगर दंपति का सम्मान प्रदान किए जाने हेतु परिकल्पना समूह द्वारा चयनित किया गया है ।


उपरोक्त सभी सम्मानधारकों को दिनांक 27.08.2012 को लखनऊ के क़ैसर बाग स्थित राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में परिकल्पना समूह द्वारा सम्मानित किया जाएगा। सभी सम्मान धारकों को परिकल्पना समूह की बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनायें । () () 
() ()()
 
Top