शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

दिवाना दिल ।(गीत)


(GOOGLE IMAGES)


दिवाना   दिल ।(गीत)




दिवाना  दिल  फिर,  मुकम्मल   जगह   ढूंढता   है ।



तुझे    भूलाने    की,   ठोस      वजह    ढूंढता   है ।




(मुकम्मल=  परिपूर्ण, जिसमें कोई कमी न हो)  



(जगह= आसरा;  ठोस= मज़बूत)




अंतरा-१.   




अहदे-वफ़ा  का  तुक, कभी  न  जाना  तुने  फिर  भी..!



मिज़ाज - ए - इश्क   पाया   किस   तरह,  ढूंढता   है..!



दिवाना   दिल    फिर,  मुकम्मल   जगह   ढूंढता   है ।




(अहदे-वफ़ा= वफ़ादारी का वादा;  तुक= मतलब)  



(मिज़ाज-ए-इश्क= प्यार का अहसास;  किसतरह= कैसे )




अंतरा-२.




निगाँहे  करम  के   किस्से,  सुने   जहाँ   ने  शौक़   से ।



ज़माना  रहरह  कर अब ,  नुक्स   बेवजह   ढूंढता   है ।



दिवाना   दिल    फिर,  मुकम्मल   जगह   ढूंढता   है ।




(निगाँहे  करम=प्यार;  नुक़्स=  ग़लती)




अंतरा-३.




बे-रहमतों  का  सबब  अभी तक,  ना  बताया   तुने..!



यहाँ,  ये   दिल  बावरा    बेसबब,  फ़तह    ढूंढता   है ।



दिवाना   दिल   फिर,  मुकम्मल   जगह   ढूंढता   है ।




(बेरहमत=निर्दयता;  सबब= कारण)




अंतरा-४.




महरूम रह जायेगा  दिल, अवन - गुल की  सेज  से..!



सुकूने    दिल    शायद,  नोकीली   सतह   ढूंढता   है ?



दिवाना   दिल   फिर,  मुकम्मल   जगह   ढूंढता   है ।




(महरूम= वंचित; अवन-गुल  की  सेज = प्यार के फूलों से सजी शय्या) 



(सुकूने  दिल= दिल का आराम; नोकीली= चुभती)



मार्कण्ड दवे । दिनांकः ३१-०८-२०१२.

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MARKAND DAVE
http://mktvfilms.blogspot.com   (Hindi Articles)

हे ब्लॉगर, क्या काबुल में गधे नही होते ?

जो गुण विशेष मानव जाति को शेष दुनिया से पृथक करती है, वह है उसका चिंतनशील होना. यह चिंतन प्रायः दो प्रकार का होता है – 'मौन' और 'मुखर'. चिंतन का मुखर होना ही अभिव्यक्ति है. यह अभिव्यक्ति भी दो प्रकार की हो सकती है- ‘स्वान्तः-सुखाय’ या ‘सर्व-सुखाय’. सर्व-सुखाय की बात करनेवाला चिन्तक व्यक्ति, समाज, प्रकृति, सभ्यता, संस्कृति और विभिन्न शोध कार्यों पर पैनी दृष्टि रखता है और अपनी दृष्टि-बोध को समाज के समक्ष रखता है अपने तर्कों और आंकड़ों के साथ. लेकिन उसका उद्देश्य व्यक्तिगत आरोप-लांछन नहीं होना चाहिए, सर्वगत कामना ही उसका उद्देश्य अनिवार्य रूप से होना चाहिये. 

  एक सृजनात्मक – रचनात्मक – परिणामी उद्देश्य के लिए चिन्तक की अभिव्यक्ति का अनुप्रयोग ही, आज ‘मीडिया’ के नाम से जाना-पहचाना जाता है. इस मेदा के कई स्वरुप हैं- प्रिंट मीडिया, दृश्य मीडिया और अंतरजाल (इन्टरनेट). इस इन्टरनेट मीडिया का ही दूसरा नाम ब्लोगिंग है और ब्लॉग लिखनेवाला कहलाता है– ब्लोगर. आज इन्टरनेट के विभिन्न सोशल साइट्स हैं जिनपर विचारों और संवेदनाओं का आदान-प्रदान होता है. मीडिया भी यही कार्य करती है. अब प्रश्न यह है कि इन्टरनेट के विभिन्न ब्लॉग / साइट्स क्या मीडिया की भूमिका निभा सकते हैं? अथवा क्या मीडिया का विकल्प बन सकते हैं. यहाँ ध्यान देने की बात है कि जब हम विकल्प की बात करते हैं तो उसके साथ दो चीजें स्वतः जुड जाती हैं– (१) व्यापकत और (२) सस्ता तथा सरल होना. इस दृष्टि से इन्टरनेट जगत कमजोर पड जाता है. कारण, व्यापकता का अभाव और महंगा संसाधन के साथ-साथ, उपयोग और अनुप्रयोग की जटिलता.

 व्यापकत की दृष्टि से यह शिक्षित तकनिकी परिवार और माध्यम वर्ग के शिक्षित विद्यार्थियों तक ही व्याप्त है, जो आबादी प्रतिशत की दृष्टि से अत्यंत कम है. लेकिन इसका एक दूसरा सार्थक और उत्साहवर्द्धक पक्ष भी है, यह पक्ष है इसका शिक्षित लोगों के पास होना. किसी भी समाज को सही दिशा देने का कार्य यही शिक्षित-चिन्तक वर्ग करता है. शेष सामान्य जनता तो उनका अनुशरण करती है. दूसरे रूप में यदि कहा जाय तो इन्टरनेट मीडिया के रूप में एक ऐसा अस्त्र-शस्त्र है जो समाज के कमांडरों के पास है, सैनिकों के पास नहीं. मोबाईल के साथ इसके गंठजोड से यह अस्त्र जागरूक सैनिकों के पास भी आ गया है. यदि कमांडर उचित दिशा-निर्देश सकारात्मक दृष्टि से अपने सैनिकों को दे पाए तो कोई कारण नहीं कि हम सामाजिक – राष्ट्रीय, सांस्कृतिक जंग नहीं जीत सकते. अनिवार्यता है संविधान की मर्यादा का पालन करते हुये सन्देश और विचारों में सृजनात्मकता की, लोकमंगल की, राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रशक्ति की. एक छोटी सी फ़ौज जीत सकती है यदि कमांडर दृढनिश्चयी, दूरदर्शी और पराक्रमी हो. 

 आइये इस दृष्टि से विचार करें की एक ब्लोगर क्या है आखिर एक  ब्लॉगर  है क्या? प्रश्न है कि आखिर एक  ब्लॉगर  है क्या? एक चिन्तक,? एक रचनाकार? एक रिपोर्टर या एक लेखक? एक कवि, अथवा समालोचक? अथवा सब कुछ एक ही साथ? खींचता है जो अपनी रचनाओं में दृश्य - परिदृश्य, अपनी अनुभूति. उन संवेदनाओं, प्रतिक्रियाओं की, जो एकल हो या सर्वसमाज की और देता है उसे एक सार्थक स्वर. एक आकार, प्रकार और प्रतिकार राष्ट्रहित में? वह जन चेतना की आवाज है या नितांत अपने ही मन के पञ्चकोशों तकसीमित रहनेवाला एक 'कन्दरानुरागी'.एकांतवासी और अरण्य निवासी? अथवा जो बांटता है सर्व समाज से,जनता-जनार्दन से, तत्कालीन ही नहीं, समकालीन,पुरातन, और नवीनतम हलचलों की वर्तुलों के सार्थक स्वर को? वह सहमति है, आलोचना है या विरोध? अथवा है वह, कुछ सक्षम – समर्थ लोगों का एक चारण? एक दूत? और सुविधा भोगी? सत्यता को छिपा, छद्मवेशी एक अग्रदूत? आखिर ऐसा कौन सा क्षेत्र है, या विधा है, कौन सी सत्ता है, लौकिक या पारलौकिक? जहाँ किसी  ब्लॉगर  का हस्तक्षेप नहीं..? 

 मूल्यों की दृष्टि से,विविधता की दृष्टि से, इतना तो स्वीकार करना ही पडेगा कि क्या काबुल में गधे नही होते? लेकिन, इससे घोड़े का मूल्य, कम तो नहीं हो जाता. ऐसा नहीं कि पुरातन में उर्वरता-उपयोगिता नहीं. वैसे ही सभी आधुनिक भी सदुपयोगी नहीं... ब्लोगर निकालता है उससे- 'पराग' और नवनीत'. रचता है वह- गद्य, पद्य, नाटक .और ..नवगीत. अंततः फिर वही प्रश्न, एक ब्लोगर है क्या.? उत्तर में छोटा सा प्रतिप्रश्न पूछना चाहता हूँ - जब समाज का सभी वर्ग जुटा होता है,रोजी-रोटी कमाने में,निन्यानबे के फेर में, ब्लोगर नेट पर आँखे क्यों गडाए रहता है? ढूंढ - ढूंढ कर नई पोस्ट क्यों पढता है? अपनी टिप्पणी उस पर क्यों छोड़ताहै? और अंत में दो टूक प्रश्न; आखिर ब्लोगर यह सब क्यों करता है? किसके लिए करता है, बिल्कुल मुफ्त में? समाज से प्रतिदान में उसे मिलता है क्या? और वह समाज को अंततः देता है क्या..?

 कितने अल्पज्ञं हैं वे जो यह कहते है,  ब्लॉगर  लड़ता है – एक 'नूर कुश्ती', सरकार के संग, सत्ता के संग. करता है दोहन संवेदनाओं का. समझ में नहीं आता,.क्या उन्हें पता भी है कि संवेदना होती है क्या? यह आती कहाँ से? और जाती कहाँ को है? वह करती क्या है? हाँ, ब्लोगर एक रचनाकार है, सर्जक है, संवेदनशील विचारक है - वह करता है विचार, राष्ट्र की समस्याओं पर, समाज की विकृतियों, उसकी समस्याओं पर,शासन-प्रशासन की सुव्यवस्था-कुव्यवस्था पर, प्राकृतिक आपदा, असके कारण - निवारण पर. वह निःशुल्क है, बाजारू या व्यापारी नहीं. कनक और कामिनी उसकी कमजोरी नहीं, इसलिए उसके पास अपनी कोई तिजोरी नहीं.. 

 वह कबीर क़ी प्रज्ज्वलित मशाल का संवाहक, और समाज पथ एक कुशल धावक है, वह समाज को बनाने, पुनः-पुनः सवारने और उसे मिटाने देने क़ी दवा है. वह जहां विज्ञान रूप में 'सिद्धांत है', वहीँ प्रज्ञान रूप में- 'समाधान है', और संत रूप में 'अचूक दुआ है. हाँ, ब्लोगर एक सुकरात है जो गली - चौराहे पर खडा मिलता है, वह हर आने - जाने वाले के तन और सुप्त मन को झकझोरता है. ब्लोगर एक ब्रूनो है जो सत्य बोलता है, जलाये जाने, जहर पीने से कब डरता है? ब्लोगर एक न्यूटन है, वह आइन्स्टीन और हाकिंग है. यदि वैज्ञानिक प्रकृति के रहस्य को परत दर परत खोलता है, यदि अणुओं और परमाणुओं में स्पंदन ढूंढता है, जमीं और आसमा का गति मापता है. तो एक ब्लोगर सामजिक वैज्ञानिक है जो समाज और जनचेतना को गति देता है.

  ब्लॉगर , मीरा के पाँव क़ी घूँघरू है, जो कभी रूठती है, कभी खनकती है. वह जहाँ राधा क़ी 'चहकती कूक' है वहीँ, उर्मिला और यशोधरा क़ी 'गहरी वेदनामयी हूक' है. ब्लोगर एक कुशल आचार्य भी है जो अध्यात्म और प्रज्ञान की गूढता क़ी कठिन गाँठ को सर्व के लिए खोलता है. ब्लोगर, आज बाजारू हो चुके चौथे स्तम्भ का, एक सार्थक विकल्प और युग की मांग है. ब्लोगर लोकतंत्र क़ी ज्वलंत आवाज... है, राष्ट्र क़ी संकृति, संस्कार का ऊर्जस्वी - तेजस्वी ताज है. हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?

 हे  ब्लॉगर ! तुम क्यों सुस्त पड़े? तुम ब्लोगर हो, एक सर्जक हो. तुम इस देश की पीड़ा भंजक हो. यह माना तुमको अधिकार नहीं, पर दायित्व को क्यों तुम भूलते हो? अपनी शक्ति क्यों तुम भूलते हो? क्या इस देश से तुमको प्यार नहीं? हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े? तुम्ही चिकित्सक, तुम सर्जन हो, शिक्षक हो तुम, तुम हो सन्यासी. तुम नदी - सरोवर तट के वासी. रहते हैं जो दूर गाँव में, तुम हो. जो रहते शीत गृहों में,तुम हो. तू विज्ञान रूप प्रयोगशाला में, तुम यति रूप, यज्ञशाला में. क्षमता को अपनी तुम पहचानो, नया दायित्व अपना तुम जानो. तुम को ही,अलख जगाना है, भारत एक नया बनाना है. ऐसा भारत, जो भ्रष्ट न हो, ऐसा भारत, जो त्रस्त न हो. जो मजबूर न हो, किसी कोने से, जो भरपूर हो, चांदी - सोने से.

 हे  ब्लॉगर ! तुम क्यों सुस्त पड़े? एक शंख, जोर से फूंको न. छेड़ो तान, जगें विस्तर से सब, अब रहे न कोई, निद्रा में. अब रहे न कोई, तन्द्रा में.देशभक्ति का पाठ, पढ़े वे फिर से, जो गए भटक, किसी कारण से. हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े? छेड़ो ऐसा तुम, दीपक राग, घर - घर में जलती रहे चिराग. चाहे हो निर्धन या दुखियारा, हो दोनों समय चूल्हे में आग.अपनी रोटी मिल - बाँट के खाएं, मिल- बैठ के बिगड़ी बात बनायें. हे ब्लोगर! तेरे हाथ मशाल, ऐसा प्रस्ताव कोई लाओ न, जनता को तुम समझाओ न. क्यों लूट रहे हो अपना देश? क्यों फूंक रहे हो, घर- दरवेश?लूटकर अपनों को, क्या पाओगे? जब आएगी समझ, सचमुच बहुत पछताओगे. हे ब्लोगर! छेड़ो ऐसी झंकृत तान, गर्जन हो जिसमे, हो स्वाभिमान.. हो देश का जिससे, दुनिया में नाम. हम रहें सतर्क, करें खुद निगरानी, हों विफल शत्रु, उनके अरमान. एक खौफ सा, उनमे छा जाए. फिर दुबारा, आने का लेवें न नाम. 

हे  ब्लॉगर  छेड़ो ऐसी झंकृत तान, एक शंख जोर से फूंको न. गर्जन हो जिसमे, बढे जिससे गौरव और राष्ट्र का स्वाभिमान.. 

 

डॉ. जय प्रकाश तिवारी 
तिवारी सदन ग्राम & पोस्ट- भरसर 
जिला - बलिया (उ. प्र.) संपर्क: ९४५०८०२२४०

गुरुवार, 30 अगस्त 2012

अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन की कुछ झलकियाँ...

विगत दिनांक 27.8.2012 को परिकल्पना समूह और तस्लीम के संयुक्त तत्वावधान मे लखनऊ स्थित बली प्रेक्षागृह मे अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन और परिकल्पना सम्मान समारोह का भारत मे पहली बार आयोजन हुआ, प्रस्तुत है उसकी कुछ झलकियाँ -

 










प्रस्तुति : संतोष त्रिवेदी 
 
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