मंगलवार, 25 जून 2013

रुठे रब को मनाना आसान है : अविनाश वाचस्‍पति को मनाना मुश्किल है - रवीन्‍द्र प्रभात

डायबिटिज के रोगी अविनाश वाचस्‍पति को जबर्दस्‍ती मिठाई खिलाते हुए 

अविनाश जी को मनाना मुश्किल है क्‍योंकि जहां तक मैंने उन्‍हें समझा है, वह कभी भी अपने स्‍वार्थ के लिए कोई कार्य नहीं करते हैं इसलिए अड़ जाते हैं। उन्‍होंने कितने ही लेखकों को अखबार के रास्‍ते पर लगाया है। जो उनके ब्‍लॉगर साथी सिर्फ ब्‍लॉग पर ही खुश रहते थे। उन्‍हें वह अपने नियमित कालमों के ई मेल तक मुहैया कराते हैं। मुझे तो महसूस हो रहा है कि इसी वजह से ब्‍लॉगिंग में गिरावट आई है पर यह बात आप अविनाश जी को मत  बताना। नहीं तो नुक्‍कड़ दोबारा बंद हो गया तो जिम्‍मेदार होगा बताने वाला। 

भाई संतोष त्रिवेदी और मुझ सहित कई साथीयिों ने उनसे ब्‍लॉग खोलने के लिए फोन पर कहा और उन्‍होंने मना कर दिया। जिससे मेरा लगभग तीन हजार का नुकसान हो गया। पर ब्‍लॉग खुल गया इसलिए मुझ कोई गम नहीं है।

जब उन्‍होंने हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में प्रवेश किया था तो ........... अरे मैं भी कहां का इतिहास ले बैठा। आप सब यह जानते हैं और इसे दोहराने का कोई अर्थ नहीं है।  उन्‍होंने पिछले दिनों एक घोषणा करके अपने सभी ब्‍लॉग बंद कर दिए थे। जबकि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग का इतिहास साक्षी है कि ऐसे कई मौके आए हैं जब ब्‍लॉगर साथियों ने अपने ब्‍लॉग बंद करने की घोषणाएं की, सुर्खियां बटोरीं और वापिस आकर ब्‍लॉग पर पोस्‍ट लगाने लगे।

जब एक अच्‍छे काम को शुरू किया जाता है तो उसे बंद नहीं किया जाना चाहिए। अविनाश जी ने बातचीत में कहा है कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को और उपर ले जाने के लिए अभी और कोशिशें की जानी चाहिएं। अब तो अखबारों ने भी अपने वेबसाइटों पर हिंदी ब्‍लॉग बनाने की सुविधा दे दी है। उन्‍होंने माना कि वे तकनीक के साथ चलना पसंद करते हैं। जब लैंडलाइन फोन से मोबाइल फोन पर आ सकते हैं तो ब्‍लॉग से फेसबुक, ट्विटर सरीखे मंचों पर आने पर क्‍या बुराई है जबकि इसमें सहूलियत है। वह किसी लीक को पकड़कर बैठने के लिए बिल्‍कुल हिमायती नहीं हैं।

न जाने कितने पाठक होंगे जो उनके व्‍यंगों की आलोचना करते हैं और कहते हैं कि वे बकवास लिखते हैं किन्तु इसके बिपरित काफी पाठक हैं  जो उनके व्‍यंगों के काफी मुरीद हैं , जिससे उनकी लोकप्रियता में भरपूर इजाफा हुआ  है, फिर भी उन्‍हें इस बात का कोई अहंकार नहीं है। क्या यह कम संतोष की बात है ? 

अब सिर्फ काम की बात, समय भी अधिक नहीं है। एकाएक दिल्‍ली आना पड़ा क्‍योंकि नुक्‍कड़ जैसे चर्चित ब्‍लॉग को अविनाश जी के द्वारा अचानक बंद कर दिया जाना  सबको परेशानी में डाल गया। मैंने भी उन्‍हें तानाशाह तक कह डाला पर लगता है कि उन्‍हें इस बात से कोई दुख नहीं हुआ है। जब मैं उनाके आवास पर पहुंचा और कहा कि मैंने प्राण किया है कि आपका अन्न-जल ग्रहण करके नुक्कड़ खुलने तक आपके आवास  पर धारणा दूंगा और आपके खिलाफ भूखरहित हड़ताल करूंगा तो वे हंसने लगे । सबसे आश्चर्य की बात है कि तानाशाह कहने के बावजूद वे मुझसे अधिक प्रेम से मिले। प्रेमपूर्वक बातें की और सबसे बड़ी बात कि फोन पर उन्‍होंने जितनी ना-नुकुर ब्‍लॉग को खोलने को लेकर की थी, उसे उन्होने मान भी लिया। मुझे लग रहा है कि तानाशाह कहकर मैंने गलती की और अविनाश जी के अनुसार इंसान बने रहने के लिए गलतीयां करना बहुत जरूरी है।

मैं हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत की ओर से अविनाश जी का बहुत आभारी हूं। उनका यह फैसला निश्‍चय ही ब्‍लॉगजगत के और प्रसार में सहयोगी बनेगा। मेरे लखनऊ जाने का समय हो रहा है, अधिक बातें बाद में लखनऊ पहुंचकर फुर्सत से लिखूंगा। तब तक आप नुक्‍कड़ का मजा लीजिए और पहले की तरह कमेंट करते रहिए। कमेंट ब्‍लॉग पर एक आशा की तरह हैं क्‍योंकि यहां पर पसंद या लाइक जैसा कोई बटन नहीं  है।

जय हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग।
और हां परिकल्‍पना सम्‍मान समारोह इस वर्ष काठमांडू (नेपाल की राजधानी) में आयोजित किया जा रहा है। आप सब चलने के लिए अपना बोरिया बिस्‍तर बांध लें। कई पुस्‍तकों के लोकार्पण की योजना चालू है। आप भी अगर पुस्‍तक प्रकाशित कर रहे हैं तो काठमांडू में परिकल्‍पना के मंच से लोकार्पण के लिए मुझसे संपर्क कर सकते हैं। टिप्‍पणियों में अपनी राय अवश्‍य दीजिएगा। 

रविवार, 23 जून 2013

दुर्भाग्यपूर्ण है एक ब्लॉगर का तानाशाह बन जाना !

internet-underseizeतानाशाही (डिक्टेटरशिप) अमूमन उस शासन-प्रणाली को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति विद्यमान नियमों की अनदेखी करते हुए डंडे के बल से शासन करता है। पर जब शासन-प्रशासन से अलग तानाशाही की बात चलती है तो एक ऐसे व्यक्ति का चेहरा हमारी आँखों के आगे प्रतिबिंबित होने लगता है, जिसे ठेठ देसी भाषा मे खुड़श कहते हैं कुछ लोग घनचक्कर भी कहते हैं, जिसे न संस्कृति के सामान्य नियम से मतलब होता है और न सामाजिकता से और वह व्‍यक्ति अगर कलम का प्रयोग करता हो, तब इस पर विचार करना और भी अधिक जरूरी हो गया है। 

ऐसी कोई मिसाल मुझे पूरे साहित्यिक-सामाजिक इतिहास में खोजने से भी नहीं मिली है। कभी ऐसा रहा हो, जिससे प्रेरित होकर एक कलमकार तानाशाह बन गया हो। कलम का उपयोग करने वाला शाह अवश्‍य होता है। इसे तो आप भी मानेंगे। सामाजिकता से मतलब न रखने वाला यदि कोई ब्लॉगर सामुदायिक ब्लॉग को अपनी संपत्ति मानकर बंद कर दे और सोशल मीडिया नेटवर्क फेसबुक पर विचारों का फेस चमकाने की बात करे तो यह सामाजिकता, साहित्यिक, संस्‍कृति और नैतिकता के लिहाज से दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।

जी हाँ, आप बिल्‍कुल सही समझे हैं, मैं बात कर रहा हूँ सामुदायिक ब्लॉग नुक्कड़ के मॉडरेटर श्री श्री 108 श्री अविनाश वाचस्पति की। जिन्होने नुक्‍कड़ को बिना लेखकों/उससे जुड़े असंख्‍या पाठकों की राय लिए बंद कर दिया और मनमाना आचरण करते हुए सीधे फेसबुक पर छलांग मारी। यह भी कह रहे हैं कि वे ट्विटर,  लिंकेदिन, पिन्‍टरेस्‍ट और ऐसी ही जगहों पर डांस करेंगे। आप लिंक खोलकर देख सकते हैं। यह हरकत सिर्फ शाही नहीं हो सकती, इसे मजबूरन तानाशाही, नादिरशाही, हिटलरशाही कहने को मजबूर होना पड़ रहा है। यह भी हो सकता है कि उन्‍हें इस समय जो साथी मिले हैं, उन्‍होंने उनकी गति भ्रष्‍ट कर दी हो क्‍योंकि संगति ही व्‍यक्ति के उच्‍च और निम्‍न कर्मों के लिए उत्‍तरदायी ठहरती है।

श्री श्री 108 श्री अविनाश वाचस्‍पति को मैं उनसे अधिक जानता हूं इसीलिए उन पर भरोसा था और आजतक इस भरोसे में रंचमात्र भी दरार नहीं आई है। पर इस बार उन्‍होंने अपना निर्णय बदलने से साफ इंकार कर दिया है। ऐसे में हम हिन्‍दी ब्‍लॉगर साथियों के लिए यह और भी जरूरी हो जाता है क्‍योंकि यह वही ब्लॉगर हैं जिन्‍होंने मेरे साथ मिलकर  हिन्‍दी ब्लॉगिंग को अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति का उद्घोष कहा। ‘अनेक ब्‍लॉग नेक हृदय’ जैसी सारगर्भित पहचान का उपयोगी नारा दिया, एक क्रांतिकारी दिशा दिखलाई। फिर हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में पहली पुस्‍तक को मेरे साथ मिलकर अमली जामा पहनाया और आज भी उनके ब्‍लॉगिंग के स्‍तंभ कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं। कितने ही ब्‍लॉगर सम्‍मेलनों को उन्‍होंने अपने और मेरे साथ मिलकर अंजाम तक पहुंचाया। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को शिखर पर लाने की उनकी भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती।

आज भी उनके साथ मिलकर हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग विधा के उन्‍नयन के लिए कई प्रकाशनों की आयोजना की जा रही है। और आज वह कह रहे हैं कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग से उनका मोह भंग हो गया। मेरे लिए इस पर भरोसा करना मुश्किल हो रहा है। मैं स्‍तब्‍ध हूं पर मैं एक जोरदार कोशिश जरूर करूंगा कि वे अपने फैसले पर विचार कर हम सबके द्वारा सुझाया गया निर्णय स्‍वीकार करें। 

श्री श्री 108 श्री अविनाश वाचस्पति जी  ने इतना तक न सोचा कि उनके साथ जुड़े लेखकों ने उनका क्या बिगाड़ा है। जिन्‍होंने उन्‍हें नुक्कड़ पर लिखने-घूमने तक से महरूम कर दिया है। मैं इन फेमस पंक्तियों का जिक्र जरूर करूंगा कि लमहों ने खाता की और सदियों ने सजा पायी ।

ऐसा नहीं हो सकता, हम ऐसा नहीं होने देंगे। हम उनके अपने हैं कोई पड़ोसी देश के बाशिन्‍दे नहीं हैं। फिर सामूहिक ब्लॉग को बंद करने का अधिकार केवल एक लेखक को कैसे हो सकता है ?

श्री श्री 108 श्री अविनाश वाचस्पति जी की इस तानाशाही का हम पुरजोर विरोध करते हैं और उनसे निवेदन करते हैं कि वे अपने फैसले पर पुनर्विचार करते हुये अविलंब नुक्कड़ को उससे जुड़े लेखकों व अनुयायियों और ब्‍लॉगिहित मे खोलें, अन्यथा हम 25 जून से उनके दिल्ली स्थित आश्रम में घुसकर उनका अन्न-पानी ग्रहण करते हुये अनिश्चितकालीन हड़ताल करेंगे । 

 जो हिन्‍दी ब्लॉगर मेरे इस फैसले से सहमत हैं वे भी श्री श्री 108 श्री अविनाश वाचस्पति जी के दिल्ली स्थित आश्रम सह आवास पर इकट्ठा हों 25जून को सुबह 8 बजे। जो साथी किन्‍हीं भी कारणों से व्‍यस्‍त हों या न आ पा रहे हों, वे अपनी आवाज अपने – अपने ब्‍लॉगों, अखबारों और टिप्‍पणी में अवश्‍य जाहिर करें।

 जय हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग 
जय जय हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग

मंगलवार, 18 जून 2013

कई मायनों में विशिष्ट होगा अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन !

जैसा कि आप सभी को विदित है कि “न्यू मीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य” विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन 13-14 सितंबर 2013 को काठमाण्डू में परिकल्पना समय के द्वारा किया जा रहा है । 

यह परिसंवाद चार सत्रों में सम्पन्न होगा, जिसमें मुख्य प्रतिपाद्य विषय “न्यू मीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य” पर तथा कुछ उप विषयों पर वैचारिक मंथन सत्रों के साथ ही दो सत्र उल्लेखनीय ब्लॉगरों के सम्मान और सम्मिलन का भी होगा ।

विगत दो समारोह-सम्मिलन पर नज़र डालें तो परिकल्पना समूह के संस्थापक -संयोजक रवीन्द्र प्रभात जी के द्वारा उद्घोषित 51 ब्लॉगर्स को दिनांक 30 अप्रैल-2011 को हिंदी भवन दिल्ली में परिकल्पना सम्मान देश के एक बड़े प्रकाशन संस्थान हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर ने प्रदान किया। इसी प्रकार परिकल्पना समूह द्वारा उद्घोषित 51 ब्लॉगर्स को दिनांक 27 अगस्त-2012 को राय उमनाथ वली प्रेक्षागृह, लखनऊ में परिकल्पना सम्मान प्रदान किया सामाजिक सांस्कृतिक संस्था तस्लीम ने । इस बार यह समारोह कई मायनों में विशिष्ट है, क्योंकि यह त्रिदिवसीय आयोजन देश से बाहर नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में होने जा रहा है । 

यद्यपि समय कम है और आयोजन को एक नया आयाम भी देना है, इसलिए आवश्यक हो गया है कि तीसरे परिकल्पना सम्मान की उद्घोषणा कर ही दी जाये । इसके लिए लगातार चयन समिति की बैठक हो रही है एक सप्ताह के भीतर सूची फाइनल होने की संभावना है । ज्ञातव्य हो कि इस बार परिकल्पना सम्मान के अंतर्गत कुछ नए नियम-निर्देश के साथ -साथ नए सिरे से सम्मान राशि का भी निर्धारण किया जाना है, ताकि परिकल्पना सम्मान को एक नया स्वरूप प्रदान किया जा सके । साथ ही इसबार इस सम्मान के अंतर्गत एक विषय मर्मज्ञ  लेखक और एक चर्चित ब्लॉगर को शिखर सम्मान प्रदान किया जाना है । इस बार कुछ क्षेत्रीय भाषा यथा नेपाली, भोजपुरी, मैथिली, अवधि आदि के ब्लॉगर को भी स्थान दिया जाना है । 

इसलिए परिकल्पना सम्मान समिति द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि परिकल्पना सम्मान हेतु चयनित धारकों के जीवन वृत्त के साथ नाम उद्घोषित किए जाएँ और नेपाल की राजधानी काठमाण्डू मे सभी सम्मान धारकों को नेपाल में भारत के राजदूत की उपस्थिती में नेपाल के किसी विशिष्ट व्यक्ति के कर-कमलों से प्रदान कराया जाए । इस प्रक्रिया को अंतिम रूप देने का कार्य प्रगति पर है । 20 जुलाई 2013 को इसकी विधिवत घोषणा परिकल्पना सम्मान समिति के संयोजक रवीन्द्र प्रभात जी के द्वारा परिकल्पना पर की जाएगी । 

नोट : इस सममारोह में उपस्थित होने हेतु सूचना देने वाले सभी सम्मानित सदस्यगण से अनुरोध है वे कृपया  अपना रजिस्ट्रेशन शुल्क चेक या ड्राफ्ट से "परिकल्पना समय" के नाम "पएबूल एट लखनऊ" बनबाते हुये निम्न पते पर भेजें : "परिकल्पना समय (हिन्दी मासिक), एस एस -107, सेक्टर-एन, संगम होटल के पीछे, अलीगंज, लखनऊ (ऊ.प्र.)-226024"

या "परिकल्पना समय" के विजया बैंक विकासनगर, लखनऊ  के खाता संख्या : 716600301000214 में सीधे जमा कराते हुये सूचना "parikalpana.samay@gmail.com" पर शीघ्र देवे । आपकी सूचना के आधार पर ही काठमाण्डू में उक्त तिथि को आपके आवास-भोजन और ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी । 

विशेष जानकारी के लिए यह लिंक देखें : 


अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉग सम्मेलन काठमाण्डू में होना तय

निवेदक : 
मनोज पाण्डेय 
संपादक : परिकल्पना समय एवं
प्रयोजक : अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर  सम्मेलन , काठमाण्डू 

रविवार, 2 जून 2013

अंतर्जालवासियों के लिए लिखी गई कविता - कविता में कैरियर

कविता लिखना यूं तो
कवि के लिए आसान होता है
पर जो नहीं होते हैं कवि
वे भी लिख लेते हैं कविता
अच्छी  खासी बे-तराशी
सुनने वाले खासी को
पढ़ते हैं खांसी
और खो खो करके
खी खी करके लगते हैं हंसने
जैसे हंस रहे हैं आप।

बे-तराशी उन्‍हें याद दिला देती है बरबस
जेबतराशी की
जेबतराशी का जिक्र सुनकर
जेबतराश सहम जाते हैं
जैसे सहम गए हैं आप
पर दर्जी खूब खिलखिलाते हैं
उनकी जेबतराशी अपराध नहीं है
और वे नहीं हैं अपराधी
जबकि वे रोज तराशते हैं
अनेक जेब, जेबें और
गले भी साथ में
पर धारदार कैंची से।

खूब नाम हो जाता है कवि का
तब वह सोचता है रोजाना एक बार
कि उस कविता को भी लूं तराश
पर आ जाती है तभी खराश
क्‍योंकि गले में उठ आती है प्‍यास
फिर टल जाता है उसका
कविता तराश कार्यक्रम
और वे नए शब्‍दों के साथ
टहलने लगते हैं
जैसे फेसबुक पर
टहल बहल रहे हैं आप।

पुराने प्रयोग किए गए शब्‍द
अपने प्राण बचने पर
मनाने लगते हैं जश्‍न
जैसे मना रहे हैं आप
कविता पढ़कर जश्‍न।

जिनका नाम हो जाता है उनकी
कविता बे-तराशी दौड़ने लगती है
मुझे लगता है कि कवि नहीं
पर कविता कर रही थी

इसी दिन का इंतजार। 
 
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