डायबिटिज के रोगी अविनाश वाचस्पति को जबर्दस्ती मिठाई खिलाते हुए |
अविनाश जी को मनाना मुश्किल है क्योंकि जहां तक मैंने उन्हें समझा है, वह कभी भी अपने स्वार्थ के लिए कोई कार्य नहीं करते हैं इसलिए अड़ जाते हैं। उन्होंने कितने ही लेखकों को अखबार के रास्ते पर लगाया है। जो उनके ब्लॉगर साथी सिर्फ ब्लॉग पर ही खुश रहते थे। उन्हें वह अपने नियमित कालमों के ई मेल तक मुहैया कराते हैं। मुझे तो महसूस हो रहा है कि इसी वजह से ब्लॉगिंग में गिरावट आई है पर यह बात आप अविनाश जी को मत बताना। नहीं तो नुक्कड़ दोबारा बंद हो गया तो जिम्मेदार होगा बताने वाला।
भाई संतोष त्रिवेदी और मुझ सहित कई साथीयिों ने उनसे ब्लॉग खोलने के लिए फोन पर कहा और उन्होंने मना कर दिया। जिससे मेरा लगभग तीन हजार का नुकसान हो गया। पर ब्लॉग खुल गया इसलिए मुझ कोई गम नहीं है।
जब उन्होंने हिन्दी ब्लॉगिंग में प्रवेश किया था तो ........... अरे मैं भी कहां का इतिहास ले बैठा। आप सब यह जानते हैं और इसे दोहराने का कोई अर्थ नहीं है। उन्होंने पिछले दिनों एक घोषणा करके अपने सभी ब्लॉग बंद कर दिए थे। जबकि हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास साक्षी है कि ऐसे कई मौके आए हैं जब ब्लॉगर साथियों ने अपने ब्लॉग बंद करने की घोषणाएं की, सुर्खियां बटोरीं और वापिस आकर ब्लॉग पर पोस्ट लगाने लगे।
जब एक अच्छे काम को शुरू किया जाता है तो उसे बंद नहीं किया जाना चाहिए। अविनाश जी ने बातचीत में कहा है कि हिन्दी ब्लॉगिंग को और उपर ले जाने के लिए अभी और कोशिशें की जानी चाहिएं। अब तो अखबारों ने भी अपने वेबसाइटों पर हिंदी ब्लॉग बनाने की सुविधा दे दी है। उन्होंने माना कि वे तकनीक के साथ चलना पसंद करते हैं। जब लैंडलाइन फोन से मोबाइल फोन पर आ सकते हैं तो ब्लॉग से फेसबुक, ट्विटर सरीखे मंचों पर आने पर क्या बुराई है जबकि इसमें सहूलियत है। वह किसी लीक को पकड़कर बैठने के लिए बिल्कुल हिमायती नहीं हैं।
न जाने कितने पाठक होंगे जो उनके व्यंगों की आलोचना करते हैं और कहते हैं कि वे बकवास लिखते हैं किन्तु इसके बिपरित काफी पाठक हैं जो उनके व्यंगों के काफी मुरीद हैं , जिससे उनकी लोकप्रियता में भरपूर इजाफा हुआ है, फिर भी उन्हें इस बात का कोई अहंकार नहीं है। क्या यह कम संतोष की बात है ?
अब सिर्फ काम की बात, समय भी अधिक नहीं है। एकाएक दिल्ली आना पड़ा क्योंकि नुक्कड़ जैसे चर्चित ब्लॉग को अविनाश जी के द्वारा अचानक बंद कर दिया जाना सबको परेशानी में डाल गया। मैंने भी उन्हें तानाशाह तक कह डाला पर लगता है कि उन्हें इस बात से कोई दुख नहीं हुआ है। जब मैं उनाके आवास पर पहुंचा और कहा कि मैंने प्राण किया है कि आपका अन्न-जल ग्रहण करके नुक्कड़ खुलने तक आपके आवास पर धारणा दूंगा और आपके खिलाफ भूखरहित हड़ताल करूंगा तो वे हंसने लगे । सबसे आश्चर्य की बात है कि तानाशाह कहने के बावजूद वे मुझसे अधिक प्रेम से मिले। प्रेमपूर्वक बातें की और सबसे बड़ी बात कि फोन पर उन्होंने जितनी ना-नुकुर ब्लॉग को खोलने को लेकर की थी, उसे उन्होने मान भी लिया। मुझे लग रहा है कि तानाशाह कहकर मैंने गलती की और अविनाश जी के अनुसार इंसान बने रहने के लिए गलतीयां करना बहुत जरूरी है।
मैं हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से अविनाश जी का बहुत आभारी हूं। उनका यह फैसला निश्चय ही ब्लॉगजगत के और प्रसार में सहयोगी बनेगा। मेरे लखनऊ जाने का समय हो रहा है, अधिक बातें बाद में लखनऊ पहुंचकर फुर्सत से लिखूंगा। तब तक आप नुक्कड़ का मजा लीजिए और पहले की तरह कमेंट करते रहिए। कमेंट ब्लॉग पर एक आशा की तरह हैं क्योंकि यहां पर पसंद या लाइक जैसा कोई बटन नहीं है।
जय हिन्दी ब्लॉगिंग।
और हां परिकल्पना सम्मान समारोह इस वर्ष काठमांडू (नेपाल की राजधानी) में आयोजित किया जा रहा है। आप सब चलने के लिए अपना बोरिया बिस्तर बांध लें। कई पुस्तकों के लोकार्पण की योजना चालू है। आप भी अगर पुस्तक प्रकाशित कर रहे हैं तो काठमांडू में परिकल्पना के मंच से लोकार्पण के लिए मुझसे संपर्क कर सकते हैं। टिप्पणियों में अपनी राय अवश्य दीजिएगा।