मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

अपने ख़ास अंदाज़ और स्पस्टवादिता को छोड़ गया अलवेला

एक अरसा बीत गया शोमैन राजकपूर साहब का इंतकाल हुये,  किन्तु  ''मेरा नाम जोकर ''  में  फिल्माया  गया यह अमर वाक्य तब भी उतना ही प्रासंगिक था, जितना आज है। उन्होने कहा था कि - '' दुनिया एक रंगमंच है और हम उसके किरदार।''

रंगमंच का जोकर हो या काव्यमंच का हास्यकवि या फिर लाफ़्टर शो का हास्य अभिनेता, हँसना-हँसाना उसका काम, उसकी हुनर और उसकी फितरत होती है, मगर अपने अंतर में तमाम दर्द और तकलीफ़ों को समेटे जब वह विदा होता है तब महसूस होती है हास्य के भीतर छुपी व्यथा। फिर तो शेष रह जाती हैं दर्द की, व्यथा की, पीड़ा की और संवेदना की स्मृतियाँ ...।
कौन जानता था कि चिट्ठाकारी में अपने ख़ास अंदाज़ और स्पस्टवादिता के लिए मशहूर हास्य कवि अलवेला खत्री अपने फक्कड़ और अलवेले अंदाज़ में हमसबको इतना जल्दी अलविदा कह जाएँगे मुसकुराते हुये, कभी सोचा नहीं था ।

विचारधारा में टकराहट से कोसों दूर अलवेला जबभी मेरे आसपास होते तो  केवल  मेरे  मित्र की भूमिका में होते थे। जबभी  पास होते पूरी अंतरंगता के साथ बात करते हुये बीता देते  पूरा का पूरा दिन, पूरी की पूरी रात। कानपुर, कोलकाता और मुंबई जैसे लगभग आधे दर्जन शहरों में अलवेला के साथ बिताए कवि सम्मेलनों और मुशायरों की रातें  और रह-रहकर गुदगुदाती  हुई उनकी बातें आज भी स्मृतियों में ताज़ा है। उनका अंदाज़ इतना अलवेला था कि जब भी लखनऊ आते मेरे बच्चों के लिए पूरे महीने भर की हास्य सामग्रियाँ उड़ेल कर चले जाते।

4 मई 2010 को जब वे लखनऊ आए तो मैंने लखनऊ ब्लॉगर असोसियेशन के तत्वावधान में उनके सम्मान का कार्यक्रम रखा था, उस कार्यक्रम में श्रीमती सुशीला पुरी, श्रीमती उषा राय, श्रीमती अनीता श्रीवास्तव,श्री मती अलका सर्बत मिश्रा,श्री अमित कुमार ओम, श्रीमती मीनू खरे, श्री मो० शुएब, श्री हेमंत, श्री विनय प्रजापति और श्री जाकिर अली रजनीश आदि उपस्थित थे। इस अवसर पर उन्होने कहा था, कि "साहित्य अकादमी की तरह ब्लोंगिंग अकादमियां भी बननी चाहियें , जिस प्रकार देहात तथा अहिन्दी भाषी क्षेत्रों से प्रकाशित होने वाले हिन्दी प्रकाशनों को विशेष मदद मिलती है उसी तर्ज़ पर दूर दराज़ तथा अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के ब्लॉगर्स को विशेष सहायता मिलनी ही चाहिए।"

हिंदी ब्लॉगिंग में कूड़े-कचरे को लेकर भी वे हमेशा आश्वस्त दिखते थे। ठहाका लगाते हुये कहते थे कि बाढ़ के पानी के साथ कचरा अपने आप बाहर निकल जाएगा। अलवेला कहते थे कि "मैंने जब ब्लॉग लिखना शुरू किया उस समय परिस्थितियाँ अच्छी थीं और आज की परिस्थितियाँ उससे भी अच्छी है और आगे बहुत अच्छी होगी यह मेरा विश्वास है।"

अपने सम्मान समारोह में खुलकर बोले थे वे ".......खूब लिखें, खूब पढ़ें , खूब विचारों का आदान-प्रदान करें . टिप्पणियों पर ज्यादा ध्यान न दें क्योंकि टिप्पणियाँ सफलता अथवा असफलता की कसौटी नहीं होती . केवल सृजन पर ध्यान दें. वरिष्ठ चिट्ठाकारों का सम्मान करें . उनके विचारों और अनुभवों को आत्मसात करें ......हिंदी के उन्नयन की दिशा में कार्य करें और किसी के लिए भी मन में दुर्भावना न पालें . यानी किसी से भी आपकी मतभिन्नता हो सकती है किन्तु कभी भी मन भिन्नता की स्थिति न आने दें ...मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं !....आदि, आदि।

जाते-जाते उन्होने भाव विभोर मुद्रा में सिर्फ इतना कहा कि शायद ऐसा वृहद सम्मान मुझे शायद ही मिले, जब भी मौका मिलेगा लखनऊ आना नहीं भूलूँगा। कौन जानता था कि वे फिर लखनऊ नहीं आने वाले। परिकल्पना समूह  की ओर से मैं उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।  
 
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