एक अरसा बीत गया शोमैन राजकपूर साहब का इंतकाल हुये, किन्तु ''मेरा नाम जोकर '' में फिल्माया गया यह अमर वाक्य तब भी उतना ही प्रासंगिक था, जितना आज है। उन्होने कहा था कि - '' दुनिया एक रंगमंच है और हम उसके किरदार।''
रंगमंच का जोकर हो या काव्यमंच का हास्यकवि या फिर लाफ़्टर शो का हास्य अभिनेता, हँसना-हँसाना उसका काम, उसकी हुनर और उसकी फितरत होती है, मगर अपने अंतर में तमाम दर्द और तकलीफ़ों को समेटे जब वह विदा होता है तब महसूस होती है हास्य के भीतर छुपी व्यथा। फिर तो शेष रह जाती हैं दर्द की, व्यथा की, पीड़ा की और संवेदना की स्मृतियाँ ...।
कौन जानता था कि चिट्ठाकारी में अपने ख़ास अंदाज़ और स्पस्टवादिता के लिए मशहूर हास्य कवि अलवेला खत्री अपने फक्कड़ और अलवेले अंदाज़ में हमसबको इतना जल्दी अलविदा कह जाएँगे मुसकुराते हुये, कभी सोचा नहीं था ।
अपने सम्मान समारोह में खुलकर बोले थे वे ".......खूब लिखें, खूब पढ़ें , खूब विचारों का आदान-प्रदान करें . टिप्पणियों पर ज्यादा ध्यान न दें क्योंकि टिप्पणियाँ सफलता अथवा असफलता की कसौटी नहीं होती . केवल सृजन पर ध्यान दें. वरिष्ठ चिट्ठाकारों का सम्मान करें . उनके विचारों और अनुभवों को आत्मसात करें ......हिंदी के उन्नयन की दिशा में कार्य करें और किसी के लिए भी मन में दुर्भावना न पालें . यानी किसी से भी आपकी मतभिन्नता हो सकती है किन्तु कभी भी मन भिन्नता की स्थिति न आने दें ...मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं !....आदि, आदि।
जाते-जाते उन्होने भाव विभोर मुद्रा में सिर्फ इतना कहा कि शायद ऐसा वृहद सम्मान मुझे शायद ही मिले, जब भी मौका मिलेगा लखनऊ आना नहीं भूलूँगा। कौन जानता था कि वे फिर लखनऊ नहीं आने वाले। परिकल्पना समूह की ओर से मैं उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।