शनिवार, 21 जून 2014

ब्लॉगोत्सव-२०१४, अठारहवाँ दिन, बात अपने देश की


देश हमारा धरती अपनी 
सपने कभी रुकते नहीं 
जूनून कभी थमता नहीं  … 

          रश्मि प्रभा 

यह धरती मेरे देश की 

यह धरती मेरे देश की 
यह माटी मेरे देश की 
      फूलों की फ़सल उगायेगी 
      क्यारी क्यारी महकायेगी 
      यह धरती मेरे देश की ।
जिस का कण कण है कुन्दन सा 
जिस की रज चन्दन सी पावन 
उस का ही आँचल फटा हुआ 
उस की ही आँखों में सावन ।
     लेकिन जब कोटि कोटि माथों से बही पसीने की धारा 
     तो उजड़़े चमन खिलायेगी 
     हर मरुथल को हरियायेगी 
      यह धरती मेरे देश की ।
अब खेतों में कुछ हलचल है 
अब लोहे में कुछ धड़कन है 
सीने में जलते अंगारे 
अब बाहों में कुछ तड़पन है ।
      है जाग उठी करवट लेकर अब आज़ादी की देवी 
      सपनों के महल उठायेगी 
      हर घर को स्वर्ग बनायेगी 
     यह धरती मेरे देश की ।
कुछ रूप निखरता दिन पर दिन 
चेहरों पर कुछ अरुणाई है 
कण कण सूरज के दर्पण सा 
माटी ने ली अँगड़ाई है ।
      अब तो रोके से नहीं रुकेगी जनगंगा की धारा 
       चट्टानों से टकरायेगी 
      शोषण के दुर्ग ढहाएगी 
      यह धरती मेरे देश की ।  यह धरती मेरे देश की  ।

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 सुधेश 

अब समय है एक विराम का, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद......

3 comments:

  1. उस का ही आँचल फटा हुआ
    उस की ही आँखों में सावन ।
    यह धरती मेरे देश की । यह धरती मेरे देश की ।

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  2. ब्लॉगोत्सव के माधयम से सुधेश जी को पढ़ना बहुत अच्छा लगा.

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