मंगलवार, 25 नवंबर 2014

भारत, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया और भूटान के 50 से ज्यादा ब्लॉगर्स को परिकल्पना सम्मान


'परिकल्पना सार्क सम्मान चयन समिति' द्वारा यात्रा वृतांत के लिए दक्षिण भारत से श्रीमती संपत देवी मुरारका (हैदराबाद, तेलंगाना), पुरातत्व विषयक लेखन के लिए मध्य भारत से  श्री ललित शर्मा  (रायपुर, छतीसगढ़), ब्लॉग पर संस्मरणात्मक सृजन के लिए उत्तर भारत से श्री कृष्ण कुमार यादव (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश) और साहित्यिक ब्लॉग पत्रकारिता के लिए नेपाल से श्री कुमुद अधिकारी  को "परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान" प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। इस सम्मान के अंतर्गत सभी सम्मान धारकों को आगामी 15 से 18 जनवरी 2015 तक भूटान की राजधानी थिम्पू में आयोजित चतुर्थ "अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन सह परिकल्पना सम्मान समारोह" के दौरान रु॰ 25000/- की धनराशि, सम्मान-पत्र, प्रतीक चिन्ह, श्री फल और अंगवस्त्र प्रदान किए जाएंगे।



साथ ही थिम्पू, भूटान से श्री लिंगचेन दोरजी को अँग्रेजी भाषा में उनकी चर्चित उपन्यासिक कृति "होम संगरिला" के लिए,  सिडनी, ऑस्ट्रेलिया से सुश्री रेखा राजवंशी को पश्चिमी देशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु  तथा औरंगाबाद, महाराष्ट्र, भारत से सुश्री सुनीता प्रेम यादव को अन्य भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद-कर्म को बढ़ावा देने हेतु "परिकल्पना सार्क सम्मान" प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। इस सम्मान के अंतर्गत सम्मान धारक को रु॰ 5000/- की धनराशि, सम्मान-पत्र, प्रतीक चिन्ह, श्री फल और अंगवस्त्र प्रदान किए जाएंगे।

दक्षिण एशिया में ब्लॉग पर साहित्य के विकास हेतु पृष्ठभूमि तैयार करने के साथ-साथ हिंदी भाषा व संस्कृति के प्रचार-प्रसार और भाषायी सौहार्द्रता एवं सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लखनऊ की साहित्यिक संस्था "परिकल्पना" तथा लखनऊ से प्रकाशित होने वाली हिन्दी मासिक पत्रिका "परिकल्पना समय" द्वारा संयुक्त रूप से प्रत्येक वर्ष दक्षिण एशिया के किसी देश में विगत चार वर्षों से "अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन सह परिकल्पना सम्मान समारोह" आयोजित करती आ रही है, जिसमें ब्लॉग और साहित्य जगत की हस्तियों को अलंकृत किया जाता रहा है। विगत तीन समारोह क्रमश: 30 अप्रैल 2011 में भारत की राजधानी दिल्ली, 27 अगस्त 2012 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तथा 13-14-15 सितंबर 2013 में नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित हो चुके हैं तथा इसबार यह समारोह भूटान की राजधानी थिम्फू एवं सांस्कृतिक राजधानी पारो में आगामी 15-16-17-18 जनवरी 2015 को आयोजित हो रहे हैं।

अब तक इस सम्मान से देश-विदेश के 150 से ज्यादा ब्लॉगर्स सम्मानित हो चुके हैं।

इस बार भूटान में आयोजित समारोह में भी दक्षिण एशिया के लगभग 50 ब्लॉगर्स को "परिकल्पना सम्मान" प्रदान किए जाएंगे, जिनमें प्रमुख हैं असम के गुवाहाटी से श्री नीलेश माथुर, सिल्चर से श्रीमती शुभदा पाण्डेय, उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से श्री रणधीर सिंह सुमन और डॉ विनय दास, लखनऊ से श्री राम बहादुर मिश्रा, राजस्थान के श्रीगंगानगर से श्री सुरजीत सिंह बरवाल, जयपुर से सुश्री सरस्वती माथुर,  छतीसगढ़ के रायपुर से श्री गगन शर्मा, नवी मुंबई से श्रीमती तारा सिंह और मुंबई से आलोक भारद्वाज आदि। 

सोमवार, 10 नवंबर 2014

बीमारी के दौरे पर हूं मैं -अविनाश वाचस्‍पति

जकल मैं इतने अधिक सरकारी चिकित्‍सा दौरों पर रहने लगा हूं कि सब मेरा जिक्र करने में फख्र महसूस करने लग गए हैं। वी आर एस लेने के बाद मेरी बढ़ी सक्रियता देखकर सब ओम हरिओम गुंजायमान करने को तत्‍पर हैं। स्‍वाहा की पूर्णाहति अब ओम ने हथिया ली है। मेरे सभी दौरे किसी एक विशेष अस्‍पताल की सीमा में बंधकर हेपिटाइटिस सी की सक्रियता की कहानी कह रहे हैं और कितने ही लोग इसमें कविता की विशेष विन्‍यास की उत्‍पत्ति माने बैठे चर्चाओं में मशगूल हैं। माना कि मानव जीवन का यह लीवर रोग प्राणघातक रोग बनकर कब्‍जा जमाए बैठा था पर एक के बाद एक चार बार लगाकर अपने लीवर से संघर्ष में विजयी मैं कितने ही साथियों की ईषर्या का कारण बन कर विराजमान हूं।

 वह रोग ही क्‍या, जो अपने चरम पर स्‍थापित होने के लिए किसी का अवलंबन न ले पर मेरे शरीर पर और न लीवर पर किसी का काबू चल सका है और नतीजा आपके सामने है कि मैं पूरे जोशो खरोश के साथ फिर से अपने जयघोष पर निकल पड़ा हूं। जिसमें सारा सोशल मीडिया मेरा साथ दे रहा है। मुझे कुछ माह में हेपिटाइटिस सी घसीट कर कोमा में ले जाता है जिसके परिणामस्‍वरूप मैं न बाथरूम से बाहर निकल पाता हूं क्‍योंकि मैं भीतर से न तो दरवाजा खोल पाता हूं । कारण संज्ञाशून्‍य होकर मैं पानी के नलके पर से तो काबू खो देता हूं तो फिर बाथरूम के दरवाजे पर काबू कैसे भला कर पाऊं। जबकि अब तलक मैं तकनीक के हर वार का पुरजोर आवाज के साथ मुकाबला कर रहा था। अब मैं तकनीक के सामने खुद को लाचार पाता हूं और चाहता हूं कि लोटा लेकर दिशा भर्मण में संलग्‍न हो जाऊं। दिशा मैदान भी इसी को कहा जाता है पर क्‍या करूं कि मजबूर हूं जबकि मैं जानता हूं कि आज जंगल शहरों में कहां रह गए है और न उनमें भेडि़ए, भालू, चीते, शेर का आतंक है पर तकनीक का आतंक इन सबसे उपर है और मेरे तकनीक के महारथी के सिर पर चढ़कर भौंक रहा है। 

हेपिटाइटिस सी का यह आतंक अभी कोमा तक ही सिमटा हुआ है और उससे आगे बढ़कर अर्द्धविराम या पूर्णविराम तक नहीं पहुच पाया है, तो इसलिए मैं आतंकित नहीं हूं। और आतंक से मैं घबराने वाला इसलिए नहीं हूं क्‍योंकि तकनीक का जादू जिस दिन मेरे सिर पर सवार हो जाएगा, उस दिन मैं अपने सगे संबंधियों, फेसबुक मित्रो, सोशल मीडिया एक्टिविस्‍ट साथियों के कंधे पर बैठकर अपनी अंतिम सफर की तैयारियों में जुटा हुआ होऊंगा। इसलिए भय मुझे लगता नहीं है और जिस पर मेरा वश नहीं है, उससे क्‍यों डरूं मैं। श्‍मशान घाट पर जीवन का अंतिम संस्‍कार होता है और यही वह स्‍टेशन है जहां पर मरने के बाद टिकट कटा है। जिसका टिकट कट चुका है वह भला गर्दन कटने से क्‍यों डरे। इससे आगे का रास्‍ता हरिद्वार के गंगाजल, इलाहाबाद या गया के जल में प्रवाहित होकर शरीर आत्‍मा के साथ मुक्ति को प्राप्‍त होता है। जहां पर चिरस्‍थायी शांति मौजूद है और मेरा मन और शरीर मुझे शोरगुल में साथ रखना अधिक पसंद करता है। मेरे पसंदीदा स्‍थान रेलमार्ग, वायुमार्ग, बस टर्मिनस, चौराहे हैं और मेरी किस्‍मत में अभी और बहुत से दुख प्रकाशित हो रखे हैं, उन सबका मैं सम्‍मान करता हूं। सिर्फ देखने भर से दुख कहां मोरा मन चैन पावै, उसे तो उन्‍हें उनके अन्‍यतम स्‍वरूप में सहना है। मेरे जीवन का यह गहना है। 

दुख और गहना एक साथ सुनकर हैरान मत होइए, मेरा जीवट बहुत मजबूत है और उन्‍हीं पक्‍के इरादों के बूते मैं आप सबको सावधान कर रहा हूं। वैसे भी मैं मरने से तो रहा क्‍योंकि मेरे कई अग्रज, समकालीन, छोटे आयुवर्ग के इन रास्‍तों पर ढोल बजाते हुए चले जा रहे हैं और मैं इन सबका साक्षी रहे वर्तमान हूं। वैसे भी मैं मरने से डरता नहीं हूं। जीवन की अदम्‍य लालसा या जीवन की अभिलाषा मेरे भीतर अपनी पूरी शक्ति से धधक रही है। बस सिर्फ उसकी नीली लौ बाहर दिखाई नहीं पड़ती है जिसके कारण सब मुझे हिम्‍मती मान बैठे हैं। एक ऐसा हिम्‍मती जो मरने से कभी नहीं डरता है। मेरी एक कविता में मैंने लिखा है कि

डर डर कर नहीं मरूंगा मैं
मर मरकर नहीं मरूंगा मैं
उस जीवन पथ का अजेय सिपाही हूं मैं
मरना है सिर्फ एक बार
बार बार नहीं मरूंगा मैं।

है किसमें इतना दम कि मेरी इच्‍छा के विरुद्ध मुझे मुझसे ही छीनकर ले जा सके। इसलिए हर बार मैं मृत्‍यु से भिड़ने के लिए अपनी चौखट से बाहर निकल आता हूं। मानो अमरबेल हाथ में पकड़े मृत्‍यु की वैतरणी पार कर रहा हूं। जहां से एक बार डूबने पर तैर कर आना कठिन जरूर है पर असंभव नहीं। इसलिए हर बार बच जाता हूं मैं, भय मुझे नहीं लगता। डरती है स्‍वयं मौत मुझसे जो बैलों पर सवार होकर आई है। सबके साथ गतिशील हूं मैं।
- अविनाश वाचस्‍पति

-साहित्‍यकार सदन, 195 पहली मंजिल, सन्‍त नगर, ईस्‍ट ऑफ कैलाश के पास, नई दिल्‍ली 110065 फोन 01141707686/08750321868 ई मेल nukkadh@gmail.com
 
Top