गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

परिकल्पना सम्मान की दूसरी सूची जारी.....

क्षिण एशिया में ब्लॉग पर साहित्य के विकास हेतु पृष्ठभूमि तैयार करने के साथ-साथ हिंदी भाषा व संस्कृति के प्रचार-प्रसार और भाषायी सौहार्द्रता एवं सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लखनऊ की साहित्यिक संस्था "परिकल्पना" तथा लखनऊ से प्रकाशित होने वाली हिन्दी मासिक पत्रिका "परिकल्पना समय" द्वारा संयुक्त रूप से प्रत्येक वर्ष दक्षिण एशिया के किसी देश में विगत चार वर्षों से "अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन सह परिकल्पना सम्मान समारोह" आयोजित करती आ रही है, जिसमें ब्लॉग और साहित्य जगत की हस्तियों को अलंकृत किया जाता रहा है। विगत तीन समारोह क्रमश: 30 अप्रैल 2011 में भारत की राजधानी दिल्ली, 27 अगस्त 2012 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तथा 13-14-15 सितंबर 2013 में नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित हो चुके हैं तथा इसबार यह समारोह भूटान की राजधानी थिम्फू एवं सांस्कृतिक राजधानी पारो में आगामी 15-16-17-18 जनवरी 2015 को आयोजित हो रहे हैं।

इस बार भूटान में आयोजित समारोह में भी दक्षिण एशिया के लगभग 50 ब्लॉगर्स को "परिकल्पना सम्मान" प्रदान किए जाएंगे,  पहली सूची 25 नवंबर को जारी की गयी थी तथा दूसरी सूची आज जारी करते हुये हमें अपार खुशी की अनुभूति हो रही है। इस सूची पहली सूची के भी सम्मान धारकों को शामिल किया गया है ।

अबतक की उद्घोषणा इस प्रकार है- 


परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान

  1. यात्रा वृतांत के लिए दक्षिण भारत से श्रीमती संपत देवी मुरारका (हैदराबाद, तेलंगाना), 
  2. पुरातत्व विषयक लेखन के लिए मध्य भारत से  श्री ललित शर्मा  (रायपुर, छतीसगढ़)
  3. ब्लॉग पर संस्मरणात्मक सृजन हेतु उत्तर भारत से श्री कृष्ण कुमार यादव (इलाहाबाद, यूपी) 
  4. साहित्यिक ब्लॉग पत्रकारिता के लिए नेपाल से श्री कुमुद अधिकारी 
परिकल्पना सार्क सम्मान

  1. श्री लिंगचेन दोरजी (थिम्पू, भूटान) अँग्रेजी  में चर्चित उपन्यासिक कृति "होम संगरिला" हेतु 
  2. सुश्री रेखा राजवंशी  (सिडनी, ऑस्ट्रेलिया)  पश्चिमी देशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु 
  3. श्रीमती सुनीता प्रेम यादव (औरंगाबाद, महाराष्ट्र, भारत) हिन्दी में अनुवाद-कर्म को बढ़ावा देने हेतु
  4. श्रीमती सुमन कपूर, (न्यूजीलैंड) विदेशों में हिन्दी का संगठनात्मक ढांचा विकसित करने हेतु 
परिकल्पना  सम्मान
  1. परिकल्पना स्वतंत्र पत्रकारिता सम्मान: श्री गिरीश पंकज, रायपुर, छतीसगढ़ 
  2. परिकल्पना व्यंग्य भूषण सम्मान:         श्री अविनाश वाचस्पति, दिल्ली 
  3. परिकल्पना  अभिव्यक्ति सम्मान:         श्री प्रकाश हिन्दुस्तानी, इंदौर (मध्य प्रदेश)
  4. परिकल्पना सृजन सम्मान :                   डॉ शुभदा पाण्डेय, सिल्चर, असम 
  5. परिकल्पना साहित्य भूषण सम्मान:       डॉ राम बहादुर मिश्र, हैदरगढ़, उत्तर प्रदेश 
  6. परिकल्पना सोशल मीडिया सम्मान:      एडवोकेट रणधीर सिंह सुमन, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश 
  7. परिकल्पना कथा सम्मान:                     डॉ विनय दास, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश 
  8. परिकल्पना लोक-संस्कृति सम्मान:       श्रीमती कुसुम वर्मा, लखनऊ, उत्तर प्रदेश 
  9. परिकल्पना साहित्य श्री सम्मान:          श्री ओम प्रकाश जयंत, लखनऊ, उत्तर प्रदेश 
  10. परिकल्पना सृजन श्री सम्मान:             श्री विष्णु कुमार, लखनऊ, उत्तर प्रदेश 
  11. परिकल्पना साहित्य सम्मान:               श्री सूर्य प्रसाद, लखनऊ, उत्तर प्रदेश 
  12. परिकल्पना हिन्दी गौरव सम्मान:         श्री अशोक कुमार पाण्डेय,  हैदरगढ़, उत्तर प्रदेश 
  13. परिकल्पना साहित्य गौरव सम्मान:      डॉ सुरेश प्रकाश शुक्ल, लखनऊ, उत्तर प्रदेश 
  14. परिकल्पना कला सम्मान:                   श्री मती अल्पना देश पाण्डेय, रायपुर, छतीसगढ़ 
  15. परिकल्पना काव्य सम्मान:                  श्री मती सरस्वती माथुर, जयपुर, राजस्थान 
  16. परिकल्पना ब्लॉग गौरव सम्मान:         श्री गगन शर्मा, रायपुर, छतीसगढ़ 
  17. परिकल्पना तकनीकी सम्मान:            श्री कनिष्क कश्यप, दिल्ली 
  18. परिकल्पना प्रतिभा सम्मान:                श्रीमती निशा सिंह, शोध छात्रा, जे एन यू, दिल्ली  
  19. परिकल्पना शोध सम्मान:                   श्री सुरजीत सिंह बरवार, श्री गंगानगर, राजस्थान 
  20. परिकल्पना नागरिक सम्मान:              श्री विश्वंभरनाथ अवस्थी, हैदरगढ़, उत्तर प्रदेश 
  21. परिकल्पना संस्कृति सम्मान :             सुश्री अदिति देशपांडे, रायपुर, छतीसगढ़ 
  22. परिकल्पना अभिनय सम्मान:             श्री आलोक भारद्वाज, मुंबई, महाराष्ट्र
  23. परिकल्पना ब्लॉग भूषण सम्मान:        सुश्री  सर्जना शर्मा, दिल्ली
उपरोक्त सभी सम्मान धारकों को आगामी 15 से 18 जनवरी 2015 तक भूटान की राजधानी थिम्पू में आयोजित चतुर्थ "अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन सह परिकल्पना सम्मान समारोह" के दौरान सम्मान स्वरूप निश्चित धनराशि, सम्मान-पत्र, प्रतीक चिन्ह, श्री फल और अंगवस्त्र प्रदान किए जाएंगे।

मंगलवार, 25 नवंबर 2014

भारत, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया और भूटान के 50 से ज्यादा ब्लॉगर्स को परिकल्पना सम्मान


'परिकल्पना सार्क सम्मान चयन समिति' द्वारा यात्रा वृतांत के लिए दक्षिण भारत से श्रीमती संपत देवी मुरारका (हैदराबाद, तेलंगाना), पुरातत्व विषयक लेखन के लिए मध्य भारत से  श्री ललित शर्मा  (रायपुर, छतीसगढ़), ब्लॉग पर संस्मरणात्मक सृजन के लिए उत्तर भारत से श्री कृष्ण कुमार यादव (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश) और साहित्यिक ब्लॉग पत्रकारिता के लिए नेपाल से श्री कुमुद अधिकारी  को "परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान" प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। इस सम्मान के अंतर्गत सभी सम्मान धारकों को आगामी 15 से 18 जनवरी 2015 तक भूटान की राजधानी थिम्पू में आयोजित चतुर्थ "अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन सह परिकल्पना सम्मान समारोह" के दौरान रु॰ 25000/- की धनराशि, सम्मान-पत्र, प्रतीक चिन्ह, श्री फल और अंगवस्त्र प्रदान किए जाएंगे।



साथ ही थिम्पू, भूटान से श्री लिंगचेन दोरजी को अँग्रेजी भाषा में उनकी चर्चित उपन्यासिक कृति "होम संगरिला" के लिए,  सिडनी, ऑस्ट्रेलिया से सुश्री रेखा राजवंशी को पश्चिमी देशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु  तथा औरंगाबाद, महाराष्ट्र, भारत से सुश्री सुनीता प्रेम यादव को अन्य भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद-कर्म को बढ़ावा देने हेतु "परिकल्पना सार्क सम्मान" प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। इस सम्मान के अंतर्गत सम्मान धारक को रु॰ 5000/- की धनराशि, सम्मान-पत्र, प्रतीक चिन्ह, श्री फल और अंगवस्त्र प्रदान किए जाएंगे।

दक्षिण एशिया में ब्लॉग पर साहित्य के विकास हेतु पृष्ठभूमि तैयार करने के साथ-साथ हिंदी भाषा व संस्कृति के प्रचार-प्रसार और भाषायी सौहार्द्रता एवं सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लखनऊ की साहित्यिक संस्था "परिकल्पना" तथा लखनऊ से प्रकाशित होने वाली हिन्दी मासिक पत्रिका "परिकल्पना समय" द्वारा संयुक्त रूप से प्रत्येक वर्ष दक्षिण एशिया के किसी देश में विगत चार वर्षों से "अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन सह परिकल्पना सम्मान समारोह" आयोजित करती आ रही है, जिसमें ब्लॉग और साहित्य जगत की हस्तियों को अलंकृत किया जाता रहा है। विगत तीन समारोह क्रमश: 30 अप्रैल 2011 में भारत की राजधानी दिल्ली, 27 अगस्त 2012 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तथा 13-14-15 सितंबर 2013 में नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित हो चुके हैं तथा इसबार यह समारोह भूटान की राजधानी थिम्फू एवं सांस्कृतिक राजधानी पारो में आगामी 15-16-17-18 जनवरी 2015 को आयोजित हो रहे हैं।

अब तक इस सम्मान से देश-विदेश के 150 से ज्यादा ब्लॉगर्स सम्मानित हो चुके हैं।

इस बार भूटान में आयोजित समारोह में भी दक्षिण एशिया के लगभग 50 ब्लॉगर्स को "परिकल्पना सम्मान" प्रदान किए जाएंगे, जिनमें प्रमुख हैं असम के गुवाहाटी से श्री नीलेश माथुर, सिल्चर से श्रीमती शुभदा पाण्डेय, उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से श्री रणधीर सिंह सुमन और डॉ विनय दास, लखनऊ से श्री राम बहादुर मिश्रा, राजस्थान के श्रीगंगानगर से श्री सुरजीत सिंह बरवाल, जयपुर से सुश्री सरस्वती माथुर,  छतीसगढ़ के रायपुर से श्री गगन शर्मा, नवी मुंबई से श्रीमती तारा सिंह और मुंबई से आलोक भारद्वाज आदि। 

सोमवार, 10 नवंबर 2014

बीमारी के दौरे पर हूं मैं -अविनाश वाचस्‍पति

जकल मैं इतने अधिक सरकारी चिकित्‍सा दौरों पर रहने लगा हूं कि सब मेरा जिक्र करने में फख्र महसूस करने लग गए हैं। वी आर एस लेने के बाद मेरी बढ़ी सक्रियता देखकर सब ओम हरिओम गुंजायमान करने को तत्‍पर हैं। स्‍वाहा की पूर्णाहति अब ओम ने हथिया ली है। मेरे सभी दौरे किसी एक विशेष अस्‍पताल की सीमा में बंधकर हेपिटाइटिस सी की सक्रियता की कहानी कह रहे हैं और कितने ही लोग इसमें कविता की विशेष विन्‍यास की उत्‍पत्ति माने बैठे चर्चाओं में मशगूल हैं। माना कि मानव जीवन का यह लीवर रोग प्राणघातक रोग बनकर कब्‍जा जमाए बैठा था पर एक के बाद एक चार बार लगाकर अपने लीवर से संघर्ष में विजयी मैं कितने ही साथियों की ईषर्या का कारण बन कर विराजमान हूं।

 वह रोग ही क्‍या, जो अपने चरम पर स्‍थापित होने के लिए किसी का अवलंबन न ले पर मेरे शरीर पर और न लीवर पर किसी का काबू चल सका है और नतीजा आपके सामने है कि मैं पूरे जोशो खरोश के साथ फिर से अपने जयघोष पर निकल पड़ा हूं। जिसमें सारा सोशल मीडिया मेरा साथ दे रहा है। मुझे कुछ माह में हेपिटाइटिस सी घसीट कर कोमा में ले जाता है जिसके परिणामस्‍वरूप मैं न बाथरूम से बाहर निकल पाता हूं क्‍योंकि मैं भीतर से न तो दरवाजा खोल पाता हूं । कारण संज्ञाशून्‍य होकर मैं पानी के नलके पर से तो काबू खो देता हूं तो फिर बाथरूम के दरवाजे पर काबू कैसे भला कर पाऊं। जबकि अब तलक मैं तकनीक के हर वार का पुरजोर आवाज के साथ मुकाबला कर रहा था। अब मैं तकनीक के सामने खुद को लाचार पाता हूं और चाहता हूं कि लोटा लेकर दिशा भर्मण में संलग्‍न हो जाऊं। दिशा मैदान भी इसी को कहा जाता है पर क्‍या करूं कि मजबूर हूं जबकि मैं जानता हूं कि आज जंगल शहरों में कहां रह गए है और न उनमें भेडि़ए, भालू, चीते, शेर का आतंक है पर तकनीक का आतंक इन सबसे उपर है और मेरे तकनीक के महारथी के सिर पर चढ़कर भौंक रहा है। 

हेपिटाइटिस सी का यह आतंक अभी कोमा तक ही सिमटा हुआ है और उससे आगे बढ़कर अर्द्धविराम या पूर्णविराम तक नहीं पहुच पाया है, तो इसलिए मैं आतंकित नहीं हूं। और आतंक से मैं घबराने वाला इसलिए नहीं हूं क्‍योंकि तकनीक का जादू जिस दिन मेरे सिर पर सवार हो जाएगा, उस दिन मैं अपने सगे संबंधियों, फेसबुक मित्रो, सोशल मीडिया एक्टिविस्‍ट साथियों के कंधे पर बैठकर अपनी अंतिम सफर की तैयारियों में जुटा हुआ होऊंगा। इसलिए भय मुझे लगता नहीं है और जिस पर मेरा वश नहीं है, उससे क्‍यों डरूं मैं। श्‍मशान घाट पर जीवन का अंतिम संस्‍कार होता है और यही वह स्‍टेशन है जहां पर मरने के बाद टिकट कटा है। जिसका टिकट कट चुका है वह भला गर्दन कटने से क्‍यों डरे। इससे आगे का रास्‍ता हरिद्वार के गंगाजल, इलाहाबाद या गया के जल में प्रवाहित होकर शरीर आत्‍मा के साथ मुक्ति को प्राप्‍त होता है। जहां पर चिरस्‍थायी शांति मौजूद है और मेरा मन और शरीर मुझे शोरगुल में साथ रखना अधिक पसंद करता है। मेरे पसंदीदा स्‍थान रेलमार्ग, वायुमार्ग, बस टर्मिनस, चौराहे हैं और मेरी किस्‍मत में अभी और बहुत से दुख प्रकाशित हो रखे हैं, उन सबका मैं सम्‍मान करता हूं। सिर्फ देखने भर से दुख कहां मोरा मन चैन पावै, उसे तो उन्‍हें उनके अन्‍यतम स्‍वरूप में सहना है। मेरे जीवन का यह गहना है। 

दुख और गहना एक साथ सुनकर हैरान मत होइए, मेरा जीवट बहुत मजबूत है और उन्‍हीं पक्‍के इरादों के बूते मैं आप सबको सावधान कर रहा हूं। वैसे भी मैं मरने से तो रहा क्‍योंकि मेरे कई अग्रज, समकालीन, छोटे आयुवर्ग के इन रास्‍तों पर ढोल बजाते हुए चले जा रहे हैं और मैं इन सबका साक्षी रहे वर्तमान हूं। वैसे भी मैं मरने से डरता नहीं हूं। जीवन की अदम्‍य लालसा या जीवन की अभिलाषा मेरे भीतर अपनी पूरी शक्ति से धधक रही है। बस सिर्फ उसकी नीली लौ बाहर दिखाई नहीं पड़ती है जिसके कारण सब मुझे हिम्‍मती मान बैठे हैं। एक ऐसा हिम्‍मती जो मरने से कभी नहीं डरता है। मेरी एक कविता में मैंने लिखा है कि

डर डर कर नहीं मरूंगा मैं
मर मरकर नहीं मरूंगा मैं
उस जीवन पथ का अजेय सिपाही हूं मैं
मरना है सिर्फ एक बार
बार बार नहीं मरूंगा मैं।

है किसमें इतना दम कि मेरी इच्‍छा के विरुद्ध मुझे मुझसे ही छीनकर ले जा सके। इसलिए हर बार मैं मृत्‍यु से भिड़ने के लिए अपनी चौखट से बाहर निकल आता हूं। मानो अमरबेल हाथ में पकड़े मृत्‍यु की वैतरणी पार कर रहा हूं। जहां से एक बार डूबने पर तैर कर आना कठिन जरूर है पर असंभव नहीं। इसलिए हर बार बच जाता हूं मैं, भय मुझे नहीं लगता। डरती है स्‍वयं मौत मुझसे जो बैलों पर सवार होकर आई है। सबके साथ गतिशील हूं मैं।
- अविनाश वाचस्‍पति

-साहित्‍यकार सदन, 195 पहली मंजिल, सन्‍त नगर, ईस्‍ट ऑफ कैलाश के पास, नई दिल्‍ली 110065 फोन 01141707686/08750321868 ई मेल nukkadh@gmail.com

बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

अविस्मरणीय होगा भूटान का ब्लॉगर सम्मेलन


जैसा कि आप सभी को विदित है, कि लखनऊ से प्रकाशित "परिकल्पना समय" (हिन्दी मासिक पत्रिका) और "परिकल्पना" (सामाजिक संस्था) के संयुक्त तत्वावधान में प्रकृति की अनुपम छटा से ओतप्रोत दक्षिण एशिया का एक महत्वपूर्ण देश भूटान की राजधानी और सांस्कृतिक राजधानी क्रमश: थिम्पू और पारो में दिनांक 15 से 18 जनवरी 2015 तक चार दिवसीय "चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन सह परिकल्पना सम्मान समारोह" का आयोजन किया जा रहा है।

इस समारोह में शामिल होने हेतु अंतिम तिथि 15 नवंबर 2014 निर्धारित है, किन्तु इस सम्मेलन में शामिल होने हेतु प्रतिभागियों का उत्साह देखकर ऐसा प्रतीत होता है, कि अंतिम तिथि से पूर्व ही प्रतिभागियों की अनुमानित संख्या पूरी हो जाएगी।

सबसे चौंकाने  वाली बात तो यह है, कि इस सम्मेलन में शामिल होने हेतु नेपाल और भूटान से लगभग 20 ब्लॉगर्स की संस्तुति आ चुकी है, जिसमें से अनेक साहित्यकार,चिट्ठाकार,पत्रकार,अध्यापक और संस्कृतिकर्मी हैं। यह सर्वविदित है कि भूटान नई और पुरानी परंपराओं का अनूठा मिश्रण है।  भूटान धीरे-धीरे आधुनिक दुनिया के लिए अपनी प्राचीन परंपराओं के साथ एक अच्छा संतुलन बनाए हुए है।  

पहली बार किसी दक्षिण एशियाई देश में आयोजित सम्मेलन में 51 ब्लोगर्स को 5000/- रुपये का "परिकल्पना  सम्मान" और चार साहित्यकार को 25000/- रुपये का "परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान" प्रदान किया जा रहा है। 

ध्यान दें: इसमें शामिल होने के लिए पासपोर्ट की अनिवार्यता नही है। 

जो प्रतिभागी इस आयोजन में शामिल होने के इच्छुक हो वे 
अन्य जानकारी के लिए लिखें: parikalpnaa00@gmail.com

गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित


जैसा कि आप सभी को विदित है, कि विगत चार वर्षों से परिकल्पना (संस्था) और परिकल्पना समय (मासिक पत्रिका) के संयुक्त तत्वावधान में प्रत्येक वर्ष 51 ब्लॉगर्स को परिकल्पना सम्मान प्रदान किया जाता रहा है, इस वर्ष से इस सम्मान प्रक्रिया में आंशिक संशोधन किया जा रहा है। संशोधन के उपरांत ब्लॉगोत्सव में शामिल प्रतिभागियों में से विषयानुसार चयनित सभी सम्मानधारक  कों  "परिकल्पना सम्मान" के अंतर्गत 5000/- की धनराशि प्रदान की जाएगी। 

उल्लेखनीय है, कि इस वर्ष से एक नई पुरस्कार योजना की शुरुआत की जा रही है, जिसके अंतर्गत सार्क  देशों में से चयनित किसी भी देश के चार ब्लॉगर अथवा साहित्यकार को  "परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान" प्रदान किया जाएगा, जिसके अंतर्गत  प्रत्येक प्रतिभागियों को 25000/- की धनराशि प्रदान की जाएगी। 

"परिकल्पना सार्क  शिखर सम्मान" हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित:

नियम एवं शर्तें: 

* सम्मानधारक के लिए ब्लॉगर, पत्रकार  अथवा साहित्यकार  होना अनिवार्य है। 

* विगत एक दशक में ब्लॉग, सामाजिक मीडिया, जन संचार, यात्रा वृतांत, कविता, कहानी अथवा उपन्यास से      संबंधित सम्मानधारकों की  न्यूनतम एक पुस्तक अवश्य प्रकाशित हो। 

* सम्मानधारक के लिए दक्षिण एशिया के किसी भी देश का नागरिक होना अनिवार्य है। 

* सम्मानधारक की आयु 30 वर्ष से कम न हो। 

* सम्मान हेतु किसी दो उल्लेखनीय तथा विशिष्ट व्यक्तियों की अनुशंसा प्राप्त हो। यदि सम्मान धारक स्वयं      में अत्यंत विशिष्ट और उल्लेखनीय व्यक्तियों में से एक है, तो अनुशंसा की आवश्यकता नही है। 

प्रक्रिया: इस सम्मान हेतु इच्छुक प्रतिभागी स्वयं अपना आवेदन दे सकते हैं, किन्तु आवश्यक समझे जाने पर दो उल्लेखनीय तथा विशिष्ट व्यक्तियों की अनुशंसा आवश्यक होगी। 

प्रतिभागी कृपया निम्न जनकारियों के साथ विषय में "परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान हेतु प्रविष्टि" लिखते हुये निम्न विवरण के साथ parikalpnaa00@gmail.com पर मेल करें। 

*नाम:
*पिता/पति का नाम 
*पता: 
* जन्म तिथि: 
*प्रकाशित पुस्तकें: 
*प्राप्त सम्मान: 
*ब्लॉग अथवा जालस्थल का पता: 
* ई मेल आई डी :
* आपको यह सम्मान क्यों दिया जाये? 
(कम से कम 100 शब्दों में अपनी बात रखें) 


अंतिम तिथि: 31 अक्तूबर 2014

ध्यान दें: समस्त सम्मानधारकों को आगामी 15 से 18 जनवरी 2015 में थिम्फू (भूटान) में आयोजित "चतुर्थ अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन सह परिकल्पना सम्मान समारोह" में ये विशिष्ट सम्मान प्रदान किए जाएंगे। 

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय परिकल्पना ब्लॉगोत्सव भूटान में 15 से 18 जनवरी 2015 तक

खनऊ से प्रकाशित "परिकल्पना समय" (हिन्दी मासिक पत्रिका) और "परिकल्पना" (सामाजिक संस्था) के संयुक्त तत्वावधान में प्रकृति की अनुपम छटा से ओतप्रोत दक्षिण एशिया का एक महत्वपूर्ण देश भूटान  की राजधानी और सांस्कृतिक राजधानी क्रमश: थिम्पू और पारो  में दिनांक 15  से 18  जनवरी 2015 तक चार दिवसीय "चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन सह परिकल्पना सम्मान समारोह" का आयोजन किया जा रहा है।
इस अवसर पर आयोजित सम्मान समारोह, आलेख वाचन,चर्चा -परिचर्चा में देश विदेश के अनेक साहित्यकार,चिट्ठाकार,पत्रकार,अध्यापक,संस्कृतिकर्मी,हिंदी प्रचारकों और समीक्षकों की उपस्थिति रहेगी। उल्लेखनीय है, कि  ब्लॉग, साहित्य, संस्कृति और भाषा के लिए प्रतिबद्ध संस्था "परिकल्पना" पिछले चार वर्षों से ऐसी युवा विभूतियों को सम्मानित कर रही है जो ब्लॉग लेखन को बढ़ावा देने के साथ-साथ कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं। इसके अलावा वह तीन अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलनों का संयोजन भी कर चुकी है जिसका पिछला आयोजन नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में किया गया था ।

सम्मेलन का मूल उद्देश्य स्वंयसेवी आधार पर दक्षिण एशिया में ब्लॉग के विकास हेतु पृष्ठभूमि तैयार करना, हिंदी-संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना, भाषायी सौहार्द्रता एवं सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन का अवसर उपलब्ध कराना आदि है।

इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी का विषय है –"ब्लॉग के माध्यम से दक्षिण एशिया में शांति-सद्भावना की तलाश"। इसके अलावा सुर-सरस्वती और संस्कृति की त्रिवेणी प्रवाहित करती काव्य संध्या भी आयोजित होगी। समस्त प्रतिभागियों को- थिम्पू के उत्तरी किनारे पर स्थित एक महत्वपूर्ण बौद्ध मठ सह गढ़- तशीछों दजोंग के साथ-साथ थिम्फू स्थित फ़ौक हेरिटेज मियूजियम, नेशनल टेकस्टाईल मियूजियम, नेशनल मेमोरियल चोरटेन। दोचूला स्थित कुएंसेल फोड्रंग, मोतीहंग ताकिन प्रिसर्व, चंगङ्घा ल्हाखंग, विकेंड मार्केट तथा पारो स्थित टकटसँग मोनेस्ट्री, रिमपंग द्ज़ोंग, क्यीचू ल्हाखंग आदि स्थलों के अवलोकन का अवसर भी प्राप्त होगा। इस अवसर पर भारतीय संस्कृति को आयामीट करने वाली चित्र प्रदर्शनी भी आम लोगों के लिए उपलब्ध रहेगी। इस यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता रहेगी भूटानी व्यंजन के साथ-साथ भारतीय व्यंजन का  भरपूर लुत्फ़।

इस आयोजन को भूटान में आयोजित करने के मूल उद्देश्य यह है कि सांस्कृतिक दृष्टि से भारत और भूटान में कई समानताएं हैं । भारत से निकल कर बौद्ध धर्म जहां भूटानी  संस्कृति में विलीन हो गया वहीं भारतीय नृत्य शैलियों का यहाँ व्यापक प्रसार हुआ । बौद्ध यहां का मुख्य धर्म है। गेरुए वस्त्र पहने बौद्ध भिक्षु और सोने, संगमरमर व पत्थर से बने बुद्ध यहां आमतौर पर देखे जा सकते हैं। यहां मंदिर में जाने से पहले अपने कपड़ों का विशेष ध्यान रखा जाता है । इन जगहों पर छोटे कपड़े पहन कर आना मना है। भूटान  के शास्त्रीय संगीत चीनी, जापानी, भारतीय ओर इंडोनेशिया के संगीत के बहुत समीप जान पड़ता है। यहां अनेकानेक  नृत्य शैलियां हैं जो नाटक से जुड़ी हुई हैं। इनमें रामायण का महत्वपूर्ण स्थान है। इन कार्यक्रमों में भारी परिधानों और मुखोटों का प्रयोग किया जाता है। यहाँ अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉग सम्मलेन आयोजित करने के पीछे पवित्र उद्देश्य  है  हिंदी संस्कृति को भूटानी संस्कृति के करीब लाना और हिंदी भाषा को यहाँ के वैश्विक वातावरण में प्रतिष्ठापित करना ।

ध्यान दें: इसमें शामिल होने के लिए पासपोर्ट की अनिवार्यता नही है। 

जो प्रतिभागी इस आयोजन में शामिल होने के इच्छुक हो वे 
अन्य जानकारी के लिए लिखें: parikalpnaa00@gmail.com

सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

चौथा अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन भूटान में.....

विगत वर्ष हिमालय पर बसे दक्षिण एशिया के एक बेहद खूबसूरत देश नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित 'परिकल्पना ब्लॉग उत्सव' में हम सभी शामिल हुये। इस महोत्सव में भारत सहित दक्षिण एशिया के लगभग 50 ब्लॉगर्स की उपस्थिती रही। नेपाल की साहित्य अकादमी कहे जाने वाली प्रमुख राजकीय संस्था 'नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान' ने भारतीय ब्लॉगरो के सम्मान में एक दिन का कार्यक्रम भी रखा और उन्हें सिर-आँखों पर बिठाया।

इस बार 'परिकल्पना ब्लॉग उत्सव सह अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन' का आयोजन भूटान की राजधानी थिम्पू में होने जा रहा है, जो चार दिवसीय होगा। इस सम्मेलन में भारत के प्रमुख ब्लॉगर, साहित्यकार और पत्रकारों के अलावा नेपाल के वरिष्ठ लेखक कुमुद अधिकारी, भूटान की वरिष्ठ लेखिका कुंजंग चोदेन और भूटान के प्रधानमंत्री की कैबिनेट के लिए बौद्ध धर्म से संबंधित विशेषज्ञ, प्रचारक और सलाहकार द्ज़ोक त्रुन त्रुन तथा बांग्लादेश के पत्रकार मोहम्मद हरिसूर रहमान आदि प्रमुख गणमान्य व्यक्तियों के शामिल होने की संभावना है।


जैसा कि आप सभी को विदित है, कि भूटान हिमालय पर बसा दक्षिण एशिया का एक छोटा और महत्वपूर्ण देश है, जो सांस्कृतिक और धार्मिक तौर से तिब्बत से जुड़ा है, लेकिन भौगोलिक और राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर वर्तमान में यह देश भारत के बेहद करीब है।

यदि आप ब्लॉगर हैं और सोशल मीडिया पर एक सुंदर और खुशहाल सह-अस्तित्व के निर्माण हेतु नि:स्वार्थ रूप से सक्रिय हैं तो आप शामिल हो सकते हैं इस अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में और साक्षी बन सकते हैं एक अविस्मरणीय क्षण का।  

इस अवसर पर 51 ब्लोगर्स को विषयानुसार 'परिकल्पना सम्मान' से सम्मानित किए जाने और सभी को स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्र के साथ-साथ 5000/- की धनराशि प्रदान किए जाने की योजना है। 

इस चार दिवसीय सम्मेलन में भाग लेने हेतु इच्छुक प्रतिभागी के पास पासपोर्ट होना अनिवार्य नही है,  उनके पास वॉटर आईडी कार्ड, पैन कार्ड, आधार कार्ड या ड्राइविंग लाइसेन्स में से केवल किसी एक का होना अनिवार्य है। 

आयोजन तिथि की घोषणा शीघ्र की जाएगी। 
अन्य जानकारी के लिए लिखें: parikalpnaa00@gmail.com

सोमवार, 22 सितंबर 2014

सभ्य समाज के विकास में फलित ज्‍योतिष कितना सच कितना झूठ...

पड़ताल एक पुस्तक के माध्यम से : 
falit jyotish

हर घर में रखी और पढी जाने लायक इस पुस्‍तक ‘फलित ज्‍योतिष कितना सच कितना झूठ’ के लेखक श्री विद्या सागर महथा जी हैं। ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष’ को स्‍थापित करने का पूरा श्रेय अपने माता पिता को देते हुए ये लिखते हैं कि‘‘मेरी माताजी सदैव भाग्य और भगवान पर भरोसा करती थी। मेरे पिताजी निडर और न्यायप्रिय थे। दोनों के व्यक्तित्व का संयुक्त प्रभाव मुझपर पड़ा।’’ज्‍योतिष के प्रति पूर्ण विश्‍वास रखते हुए भी इन्‍होने प्रस्‍तावना या भूमिका लिखने के क्रम में उन सैकडों कमजोर मुद्दों को एक साथ उठाया है, जो विवादास्‍पद हैं , जैसे ‘‘शुभ मुहूर्त और यात्रा निकालने के बाद भी किए गए बहुत सारे कार्य अधूरे पड़े रहते हैं या कार्यों की समाप्ति के बाद परिणाम नुकसानप्रद सिद्ध होते हैं।’’ इस पूरी किताब में इस तरह के प्रश्‍नों के जबाब देने की कोशिश की है। इस पुस्‍तक के लिए परम दार्शनिक गोंडलगच्‍छ शिरोमणी श्री श्री जयंत मुनिजी महाराज के मंगल संदेश ‘‘यह महाग्रंथ व्यापक होकर विश्व को एक सही संदेश दे सके ऐसा ईश्वर के चरणों में प्रार्थना करके हम पुनः आशीर्वाद प्रदान कर रहे है।’’ को प्रकाशित करने के साथ साथ ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष’ के कुछ प्रेमियों के आर्शीवचन, प्रोत्‍साहन और प्रशंसा के पत्रों को भी ससम्‍मान स्‍थान दिया गया है।

चाहे समाज में प्रचलित ‘वार’ से फलित कथन हो या यात्रा करने का योग, शकुन, मुहूर्त्‍त हो या नजर का असर जैसे अंधविश्‍वास हो, इस पुस्‍तक में इन्‍होने जमकर चोट की है, इन पंक्तियों को देखें ...

‘‘जैसे जैसे आत्मविश्वास में कमी होती जा रही है, मुहूर्त, यात्रा आदि संदर्भों की ओर लोगों का झुकाव बढ़ता जा रहा है।’’

‘‘यदि नजरों से ही बिगड़ने की बात होती, तो देश-रक्षा के लिए सीमा में सैनिको की जगह डायनों की नियुक्ति न की जाती।’’

हां, हस्‍तरेखा, हस्‍ताक्षर विज्ञान, न्‍यूमरोलोजी आदि से चारित्रिक विशेषताएं या अन्‍य कुछ जानकारियां मिल सकती हैं, वास्‍तुशास्‍त्र भवन निर्माण की तकनीक हो सकती है, प्रश्‍नकुंडली में कुछ वास्‍तविकता हो सकती हैं, पर ज्‍योतिषियों को अपनी सीमा में ही भविष्‍यवाणी करनी चाहिए, ये विधाएं ज्‍योतिष के समानांतर नहीं हो सकती। इनकी पंक्तियां देखिए........

‘‘तारीखों सहित भूत और वर्तमान की चर्चा किसी व्यक्ति को हिप्नोटाइज करके बतायी जा सकती है, किन्तु हिप्नोटिज्म विद्या के जानकार को ज्योतिषी कदापि नहीं कहा जा सकता, क्योंकि भविष्य की जानकारी भूत विद्या या हिप्नोटिज्म से कदापि संभव नहीं है।’’

इस पुस्‍तक के माध्‍यम से उन्‍होने अपनी चिंता जतायी है कि ज्‍योतिष में भी तो कई अवैज्ञानिक तथ्‍य भी इसी प्रकार शामिल हो गए हैं कि सही और गलत में अंतर करना भी मुश्किल हो गया है। राहु, केतु, कुंडली मेलापक, राजयोग और विंशोत्‍तरी पद्धति जैसे सभी अवैज्ञानिक तथ्‍यों का इस पुस्‍तक में विरोध किया गया है। इन पंक्तियों को देखें ....

‘‘विंशोत्तरी पद्धति की बहुत सारी त्रुटियों को समझने के बाद भी विद्वान वर्ग दशाकाल निर्धारण में इस पद्धति का सहारा लेता ही रहा, क्योंकि उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था।’’

‘‘यदि कोई ज्योतिषी इसका अर्थ सुखी दाम्पत्य जीवन से लगाता है, तो ब्राह्मणों या ज्योतिषियों के यहाँ दुःख दारिद्ऱ्य या वैधब्य क्यों है ?’’

पर साथ ही साथ भविष्‍य को देखने की एक संपूर्ण विधा के तौर पर ज्‍योतिष में बहुत बडी संभावना से भी इंकार नहीं करते, पर ज्‍योतिष के प्रति समाज की भी जबाबदेही होती है। इस पुस्‍तक में रिसर्च से जुडे सामाजिक कल्‍याण की चाहत रखनेवाले एक सच्‍चे ज्‍योतिषी को महत्‍व के साथ साथ साधन दिए जाने की बात भी कही गई है, इनका मानना है कि ऐसा नहीं होने से ज्‍योतिषी ठगी का सहारा लेते हैं।ज्‍योतिष की सभी त्रुटियों को मानते हुए भी इसकी सत्‍यता से इन्‍होने इंकार नहीं किया है। ....

‘‘सारे नियमों को असली समझकर ही हम उसके विकास के लिए प्रयत्नशील हैं, किन्तु भगीरथ प्रयत्न के बाद भी समस्याएं सुलझने की बजाय उलझती ही जा रही है और संपूर्ण फलित ज्योतिष विराट दलदल में फँस चुका है, जिससे इसे निकाल पाना निस्संदेह कठिन कार्य है।’’

इन्‍होने अपने द्वारा प्रतिपादित ग्रहशक्ति के ‘गत्‍यात्‍मक और स्‍थैतिक शक्ति’ के रहस्‍य को भी समझाया है। ग्रहों की शक्ति के निर्धारण के लिए उसकी गति को ज्‍योतिषियों को आवश्‍यक मानते हुए ये लिखते हैं ...

‘‘मुझे यह सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि ग्रहबल को समझने की इस वैज्ञानिक विधि की सूझ अकस्मात् कुछ घटनाओं के अवलोकन के पश्चात् सन् 1981 में मेरे मस्तिष्क में कौंधी और सन् 1987 तक विभिन्न ग्रहों के विभिन्न प्रकार की शक्तियों को समझने की चेष्टा करता रहा।’’

ग्रहों की शक्ति के रहस्‍य की जानकारी के बाद विंशोत्‍तरी दशा पद्धति से भिन्‍न इन्‍होने अपने द्वारा स्‍थापित ‘गत्‍यात्‍मक दशा पद्धति’ की चर्चा की है, ज्‍योतिष का सहसंबंध हर विज्ञान से बनाने की आवश्‍यकता है, तभी इसका विकास होगा। इन्‍होने इस पुस्‍तक में अपनी खोज ‘गत्‍यात्‍मक दशा पद्धति’ का परिचय आसमान की विभिन्‍न स्थिति के ग्रहों के सापेक्ष चित्र बनाकर समझाया है। इनकी पंक्तियां देखिए ....

‘‘हर व्यक्ति के जन्मकाल से ही चंद्रमा के काल का आरंभ हो जाता है, इसके बाद बुध, फिर मंगल, शुक्र, सूर्य, बृहस्पति और शनि का काल आता है। प्रत्येक का काल 12 वर्षों का होता है। प्रत्येक ग्रह अपनी शक्ति के अनुसार ही अपने काल में फल प्रदान करता है।’’

वास्‍तव में, बुरे ग्रहों का प्रभाव क्‍या है, कैसे पडता है हमपर और इसका इलाज है या घडी की तरह समय की जानकारी पहले से मिल जाए तो खतरे के पूर्व जानकारी का लाभ हमें मिल जाता है, ज्‍योतिष के महत्‍व की चर्चा करते हुए ये लिखते हैं ....

‘‘प्रकृति के नियमों के अनुसार ही हमारे शरीर, मन और मस्तिष्क में विद्युत तरंगें बदलती रहती है और इसी के अनुरुप परिवेश में सुख-दुःख, संयोग-वियोग सब होता रहता है।‘’

अंत में ज्‍योतिष का आध्‍यात्‍म से क्‍या संबंध है , इसकी विवेचना की गयी है ....

‘‘परम शक्ति का बोध ही परमानंद है। जो लोग बुरे समय की महज अग्रिम जानकारी को आत्मविश्वास की हानि के रुप में लेते हैं, वे अप्रत्याशित रुप से प्रतिकूल घटना के उपस्थित हो जाने पर अपना संतुलन कैसे बना पाते होंगे ? यह सोचनेवाली बात है।’’

बिल्‍कुल अंतिम पाठ में उन ज्‍योतिषियों से माफी मांगी गई है , जिनकी भावनाओं को इस पुस्‍तक से ठेस पहुंच सकती है ...

‘‘सभ्य सुशिक्षित समाज के विकास क्रम में पहले अंधविश्वास, फिर आस्था और अंत में विज्ञान आता है। जबतक व्यक्ति वैज्ञानिक सोच विचार का अध्ययन मनन नहीं करेगा, अंधविश्वास को दूर नहीं भगा सकता।’’

ऐसा इसलिए क्‍योंकि भारतवर्ष में ज्‍योतिष के क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कम लोग हैं, अधिकांश का आस्‍थावान चिंतन है , वे हमारे ऋषि महर्षियों को भगवान और ज्‍योतिष को धर्मशास्‍त्र समझती है, जबकि श्री विद्या सागर महथा जी ऋषिमुनियों को वैज्ञानिक तथा ज्‍योतिष शास्‍त्र को विज्ञान मानते हैं, जिसमें समयानुकूल बदलाव की आवश्‍यकता है।

My Photoइस प्रकार ज्‍योतिष विशेषज्ञों के साथ ही साथ आम पाठकों के लिए भी पठनीय श्री विद्या सागर महथा जी की यह पुस्‍तक ‘फलित ज्‍योतिष सच या झूठ’ आस्‍थावान लोगों के लिए आस्‍था से विज्ञान तक का सफल तय करवाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोणवालों के लिए तो इसके हर पाठ में विज्ञान ही है। समाज में मौजूद हर तरह के भ्रमों और तथ्‍यों की चर्चा करते हुए इन्‍हें 31 शीर्षकों के अंतर्गत 208 पन्‍नों और 72228 शब्‍दों में बिल्‍कुल सरल भाषा में लखा गया है। राहु और केतु को ग्रह न मानते हुए चंद्र से शनि तक के आसमान के 7 ग्रहों के 21 प्रकार की स्थिति और उसके फलाफल को चित्र द्वारा समझाया गया है, ताकि इस पुस्‍तक को समझने के लिए ज्‍योतिषीय ज्ञान की आवश्‍यकता न पडे।


संगीता पुरी
ब्लॉग: http://jyotishsachyajhuth.blogspot.in/

शनिवार, 2 अगस्त 2014

स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता के यशस्वी हस्ताक्षर कवि महेंद्रभटनागर

आलेख: डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
हिंदी साहित्येतिहास में कवि महेंद्रभटनागर की पहचान प्रगतिशील काव्य-धारा और गीति-रचना के अन्तर्गत स्पष्ट बन चुकी है। वे एक स्थापित कवि हैं स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता के यशस्वी हस्ताक्षर। उन्हें प्रगतिवादी काव्य-धारा के द्वितीय उत्थान का केन्द्रीय कवि माना जाता है। सन् 1946 के आसपास उन्होंने हंसमें लिखना प्रारम्भ किया। हंससे उन्हें प्रगतिशील कविता की पहचान मिली। हंसएवं अन्य तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में वे प्रमुखता से प्रकाशित हुए। यथा —‘जनवाणी’, ‘रक्ताभ’, ‘नया साहित्य’, ‘नया पथ’, ‘जनयुगआदि तमाम पत्र-पत्रिकाओं में। महेंद्रभटनागर की प्रांजल काव्य-सृष्टि ने तत्कालीन लब्ध-प्रतिष्ठ कवियों और समालोचकों का ध्यान आकृष्ट किया। उनकी काव्य-सृष्टि के विविध पक्षों पर पर्याप्त विमर्श हुआ है; जो अनेक सम्पादित आलोचना-कृतियों में उपलब्ध है। हिंदी के कवि और आलोचकों ने महेंद्रभटनागर की कविता पर जो विचार व मन्तव्य प्रकट किये वे विचारोत्तेजक हैं। इनसे उनकी लोकप्रियता का बोध ही नहीं होता; वे गहन व विस्तृत परीक्षण के लिए भी अन्वेषकों और प्रबुद्ध पाठकों को उकसाते हैं। कतिपय कवियों-आलोचकों की धारणाओं को यहाँ उद्धृत करना आवश्यक है।

          महेंद्रभटनागर की प्रथम काव्य-कृति टूटती शृंखलाएँसन् 1949 में प्रकाशित हुई। इस कृति पर यशस्वी कवि डा. शिवमंगल सिंह सुमनका कथन महत्त्व रखता है। सुमनजी ने लिखा:

          ‘‘युग की अस्त-व्यस्त मानसिक दशा तथा अप्रतिहत संघर्ष की जागरूक वाणी के उन्मेषशील स्वर इसकी झंकार में समाहित हैं। महेंद्रभटनागर की आतुर निर्भीक व्यंजना तथा कलात्मक गढ़न, प्रगतिशील काव्य के स्वर्णिम भविष्य की ओर संकेत करती है। कवि में जन-संस्कृति के नव-निर्माण की जो अदम्य आस्था है, वह उसके स्वर को और सबल तथा साधनापरक बनाती है। हिंदी के वर्तमान कवियों में उसने सहज ही गौरवपूर्ण स्थान बना लिया है। युग की वाणी उसके कंठ में ढलकर जन-जीवन के अश्रु-हास की सजीव गाथा बन गयी है। टूटती शृंखलाएँसंक्रमण-युग के युगान्तरकारी काव्य की भूमिका बनकर आयी है और निःसंदेह भावी समाज के अधिकांश भावात्मक उपकरण उसमें अंकुर रूप में देखे जा सकते हैं।’’

          ‘टूटती शृंखलाएँपर लिखित श्री. गजानन माधव मुक्तिबोध की समीक्षा भी अपने में विशिष्ट है; जिसमें उनके कविता-कर्म को सप्तक-कवियों के समकक्ष रखने की ध्वनि निहित है:

          ‘‘तरुण कवि वर्तमान युग के कष्ट, अंधकार, बाधाएँ, संघर्ष, प्रेरणा और विश्वास लेकर जन्मा है। उसके अनुरूप उसकी काव्य-शैली भी आधुनिक है। इस तरह वह तार-सप्तकके कवियों की परम्परा में आता हैजिन्होंने सर्वप्रथम हिन्दी-काव्य की छायावादी प्रणाली को त्याग कर नवीन भावधारा के साथ-साथ नवीन अभिव्यक्ति शैली को स्वीकृत किया है। इस शैली की यह विशेषता है कि नवीन विषयों को लेने के साथ-साथ नवीन उपकरणों को और नवीन उपमाओं को भी लिया जाता है तथा काव्य को हमारे यथार्थ जीवन से संबंधित कर दिया जाता है। इसे हम वस्तुवादी मनोवैज्ञानिक काव्य कह सकते हैं। इस अत्याधुनिक के समीप और उसका भाग बनकर रहते हुए भी कवि की अभिव्यक्ति शैली में दुरूहता नहीं आ पायी। भाषा में रवानी, मुक्त छंदों का गीतात्मक वेग और अभिव्यक्ति की सरलता, काव्य-शास्त्रीय शब्दावली में कहा जाय तो माधुर्य और प्रसाद गुण महेन्द्रभटनागर की उत्तरकालीन कविताओं की विशेषता है। किन्तु सबसे बड़ी बात यह है, जो उन्हें पिटे-पिटाये रोमाण्टिक काव्य-पथ से अलग करती है और तार-सप्तकके कवियों से जा मिलाती है वह यह है कि अत्याधुनिक भावधारा के साथ टेकनीक और अभिव्यक्ति की दृष्टि से उनका उत्तरकालीन काव्य Modernistic या अत्याधुनिकतावादी हो जाता है। उसका प्रभाव हृदय पर स्थायी रूप से पड़ जाता है। श्री महेन्द्र भटनागर वर्तमान युग-चेतना की उपज हैं।’’

          सन् 1953 में महेंद्रभटनागर की अन्य काव्य-कृति बदलता युगप्रकाश में आयी; जिसकी भूमिका प्रोफ़ेसर प्रकाशचंद्र गुप्त ने लिखी। इस कृति को लक्ष्य करते हुए डा. रामविलास शर्मा ने अपना अति महत्त्वपूर्ण अभिमत अंकित किया:
          कवि महेन्द्रभटनागर की सरल, सीधी ईमानदारी और सचाई पाठक को बरबस अपनी तरफ़ खींच लेती है। प्रयोग के लिए प्रयोग न करके, अपने को धोखा न देकर और संसार से उदासीन होकर संसार को ठगने की कोशिश न करके इस तरुण कवि ने अपनी समूची पीढ़ी को ललकारा है कि जनता के साथ खड़े होकर नयी ज़िन्दगी के लिए अपनी आवाज़ बुलन्द करे।

          महेन्द्रभटनागर की रचनाओं में तरुण और उत्साही युवकों का आशावाद है, उनमें नौजवानों का असमंजस और परिस्थितियों से कुचले हुए हृदय का अवसाद भी है। इसी लिए कविताओं की सचाई इतनी आकर्षक है। यह कवि एक समूची पीढ़ी का प्रतिनिधि है जो बाधाओं और विपत्तियों से लड़कर भविष्य की ओर जाने वाले राजमार्ग का निर्माण कर रहा है।

          महेन्द्रभटनागर की कविता सामयिकता में डूबी हुई है। वह एक ऐसी जागरूक सहृदयता का परिचय देते हैं जो अशिव और असुन्दर के दर्शन से सिहर उठती है तो जीवन की नयी कोंपलें फूटते देख कर उल्लसित भी हो उठती है।
          कवि के पास अपने भावों के लिये शब्द हैं, छंद हैं, अलंकार हैं। उसके विकास की दिशा यथार्थ जीवन का चितेरा बनने की ओर है। साम्प्रदायिक द्वेष, शासक वर्ग के दमन, जनता के शोक और क्षोभ के बीच सुन पड़ने वाली कवि की इस वाणी का स्वागत
            ‘जो गिरती दीवारों पर नूतन जग का सृजन करे
                       वह जनवाणी  है !
                       वह युगवाणी है !
          ‘नयी चेतना’ (प्रकाशन सन् 1956) और जिजीविषा’ (प्रकाशन सन् 1960) महेंद्रभटनागर की प्रमुख प्रगतिवादी काव्य-रचनाएँ हैं। प्रगतिशील कविता का अध्ययन इन कृतियों के विवेचन बिना अपूर्ण है।

          आधुनिक साहित्य के विशिष्ट अध्येता विद्वान प्रो. सुरेंद्र चौधरी ने महेंद्रभटनागर की कविता के प्रति जिस तुलनात्मक दृष्टि को उजागर किया; वह विशेष रूप से द्रष्टव्य है:

          ‘‘वर्त्तवाल और महेंद्रभटनागर एक ही दशक के दो महत्त्वपूर्ण कवि हुए। इसी समय उर्दू में प्रसिद्ध प्रोग्रेसिव शायर साहिर भी उभरे। इनका मिला-जुला अध्ययन काफ़ी रोचक रहेगा। यह लोक-व्यापी आन्दोलन, अपने समय का सबसे गतिशील अभिव्यक्ति था।’’

          खेद है, सुरेंद्र चौधरी जी के निधन के कारण, महेंद्रभटनागर की कविता पर  जो वे लिखना चाहते थे; वह पूर्ण नहीं कर सके। उनके विचार प्रकाश में नहीं आ सके। लेकिन वे महेंद्रभटनागर की कविता के अध्ययन व मूल्यांकन के प्रति एक विशेष दृष्टि ज़रूर दे गये; जिस पर समुचित अन्वेषण अपेक्षित है।

          महेंद्रभटनागर ने अंगरेज़ी में जो काव्य-रचना की है (उनकी पर्याप्त कविताएँ अंगरेज़ी में अनूदित भी हैं।); उस पर भी बहुत-कुछ लिखा गया है; जो कई ज़िल्दों में प्रकाशित है। डा. विद्यानिवास मिश्र ने उनकी कृति ‘Forty Poems’ (प्रकाशन सन् 1968) की भूमिका में जो लिखा वह यहाँ अविकल रूप में उद्धृत है:

"The thing which strikes foremost is the note of blazing optimism coming out of these poems, be they songs of love, songs of future of man or songs of the advent of a new era ushered in by the common man all over the world. Though unfortunately I cannot share this optimism, I am deeply moved by the vigour with which it has been projected by the poet. Mahendra Bhatnagar is Browning, Shelley and Maykovsky welded into one, he is a visionary, he is a comrade-in-arms and he is an architect. His ‘Man fired with faith divine moves on’ because he is firm in his conviction that ‘one day the heart-rose shall bloom in the midst of impediments galore.’ He seeks strength from ‘the firmament’ which ‘has changed its colour’ and from the wind’ which is always ‘humming a tune’, from the ‘gracious mother earth’ which is blessing man with a life - ‘long and happy’.
     He sings of youth in a new vein, youth for him is not a passing phase, it is something ‘which endures’. To him woman no more bears ‘frailty’ as her other name, she is no longer ‘a source of pleasure and pastime’. In this emancipated woman he has found a companion. He is ‘never alone’, ‘the resurgent age is with him’, the future is driving him on. These are a few pieces which reflect the inner struggle between this optimism and disillusionment, but they are subdued by the dominating voice of hope. Such a sincere optimism is a rare quality and deserves full applause; more so, when we have the perspective of a sad and sick man of today.
             The poet has a very sensitive ear for cadences and knows how to use them. His diction is chaste though racy, transparent and yet colourful, his imagery drawn partly from common-place of life and partly from poetic conventions, is simple and effective, it is not pretentious, as the so called modern imagery is and is the most suited instrument for the content.
            I envy the impetuosity of Mahendra Bhatnagar and at the same time I admire his patience (‘the wall won’t collapse’) and his courage. If at times he is carried away by his creed, it only shows his zeal and not his weakness. If at times, he looks utterly lost in 'the masses idea', it only shows his devotion to the cause and not his lack of  personality. If at times he turns a romantic visionary, it is an indicator of his fiery youth and not of his blindness to reality."
                   कहना न होगा, महेंद्रभटनागर की कविता ने काव्य-मर्मज्ञों का ध्यान निरन्तर आकर्षित किया है।
          लब्ध-प्रतिष्ठ जनवादी आलोचक डा. शिवकुमार मिश्र ने अपना मत इन शब्दों में अंकित किया:

          ‘‘महेंद्रभटनागर की कविता की, शुरूआती दौर से ही, यह विशेषता रही है कि कविताओं में भोगे और अर्जित किये हुए अनुभव-संवेदनों को ही उन्होंने तरज़ीह दी है। किताबी, आयातित या उधार लिया हुआ, उसमें लगभग कुछ भी नहीं है, न रहा है। इसी नाते उनकी अभिव्यक्ति विश्वसनीय भी है और सहज तथा प्रकृत भी। प्रगतिशील आन्दोलन के शुरूआती दौर में जो उफ़ान और आवेग, जो Loudness कविता में थी, उनकी कविता में उसकी अनुगूँजें नहीं आयीं। न तो वे  पहले Loud थे और न ही आज हैं। रचनाधर्मी प्रयोग  भी उसमें नहीं हैं। वह सीधी और सहज कविता है, फिर भी सपाट और सतही नहीं। चूँकि वह अनुभव-प्रसूत है अतएव उसमें शिल्प के बजाय बात बोली है सारगर्भित बात, जिसे किसी भंगिमा की दरकार नहीं, जो अपने कथ्य और उससे जुड़ी संवेदना के बल पर पढ़ने वाले के दिल-दिमाग़ में उतर जाती है। उसकी विशेषता उसकी प्रशांति तथा प्रांजलता है। कुल मिलाकर, महेंद्रभटनागर की कविता धरती और जीवन के प्रति अकुंठ राग की कविता है। वह मानव-जिजीविषा की कविता है, जो मरना नहीं जानती।’’ 

          जब कि डा. रवि रंजन (केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद) ने रेखांकित किया:

          महेंद्रभटनागर लगभग बीसवीं सदी के मध्य से ही हिंदी काव्य-परिदृश्य पर अपनी रचनात्मक शक्ति एवं सीमा के साथ कमोबेश चर्चा में रहे हैं। ... अन्तर्वस्तु की दृष्टि से महेंद्रभटनागर की कविताएँ वैविध्य पूर्ण हैं। उनमें यथास्थिति के विरुद्ध गहरा आक्रोश मौजूद है। तटस्थता की ऐयाशी के बजाय वहाँ एक ख़ास क़िस्म की रचनात्मक बेचैनी मिलती है, जिसके तहत कवि अपने समय और सामाजिक जीवन की वास्तविकताओं को उसके दिनानुदिन तीव्रतर होते जा रहे अन्तर्विरोधों एवं संघर्ष को वाणी देता रहा है। इस दरमयान हर कविता का अपने परिवेश के तमाम अन्तर्विरोधों एवं संघर्षों से पूर्ण सामंजस्य स्थापित हो गया हो, यह ज़रूरी नहीं है, पर महेंद्रभटनागर के रचना-संसार पर मुकम्मल तौर से नज़र दौड़ाने पर उनके अन्तःकरण के व्यापक आयतन का पता चलता है, जिसे कतई भुलाया या झुठलाया नहीं जा सकता। ... जहाँ तक उनकी काव्य-भाषा का ताल्लुक है, हम पाते हैं कि कवि ने संस्कृत और अंगरेज़ी के तमाम आरोपित प्रभावों से मुक्त करके उसके सरल और देसी रूप को ही अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है। दूसरे शब्दों में कहें तो बोलचाल का लहज़ा एवं व्यवहार ही वस्तुतः उनकी कविताओं की भाषिक संरचना का एकमात्र आधार है। इसके चलते यदि उनकी काव्य-भाषा तत्सम से तद्भव की ओर उन्मुख हुई है, तो यह स्वाभाविक ही है। कारण यह है कि तद्भवीकरण हिंदी के मिज़ाज में है, जो इसके जनभाषा होने का सबूत भी है। सच तो यह है कि  उनकी  कविता में  रचना-विशेष की  नैसर्गिक आकांक्षा  के अनुरूप विविध भाषिक प्रयोगों के नमूने मिलते हैं और यह एक कवि की अनुभूति की व्यापकता एवं गहराई का परिचायक है। ... समग्रतः यह कहा सकता है कि महेंद्रभटनागर की कविता बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध की तमाम प्रगतिशील सांस्कृतिक चिंतन सरणियों एवं कलात्मक तकनीकों का वरण करने के बावज़ूद आदि से अंत तक कविता बनी रहती है, कोरा भावोच्छ्वास या नारा नहीं। ... उसकी कविता में एक संवेदनशील कवि की वैचारिकता एवं  विचारक की संवेदनशीलता के बीच उत्पन्न सर्जनात्मक तनाव विद्यमान है। .. विष्णु नागर की एक काव्य-पंक्ति उधार लेकर कहें तो कवि महेंद्रभटनागर की कविता ऐसी अच्छी कविताहै, जो न केवल सबसे अच्छे दिनों में याद आएगी’, बल्कि वह सबसे बुरे दिनों में भी पहचानी जाएगी।

          डा. देवराज (मणिपुर विश्वविद्यालय) ने महेंद्रभटनागर की कविता के मर्म को समझा है और उनकी विचार-धारा का सही विश्लेषण किया है:

          ‘‘प्रगतिवादी-जनवादी कविता के यशस्वी हस्ताक्षर हैं महेंद्रभटनागर। उनका काव्य-रचना-कर्म सन् 1941 से प्रारम्भ हुआ; जो अनवरत रूप से गतिमान है। महेंद्रभटनागर ने कम लिखा; किन्तु जितना लिखा विशिष्ट व उत्कृष्ट लिखा। परिमाण में उनकी कविताएँ लगभग एक-हज़ार होंगी; जो उनके बीस काव्य-संकलनों में समाविष्ट हैं।

          महेंद्रभटनागर की विचारधारा वाम है; किन्तु वह आरोपित नहीं। वह जीवन-अनुभवों की उपज है। समाजार्थिक यथार्थ उनका प्रमुख सरोकार है; किन्तु व्यक्ति-यथार्थ की अभिव्यक्ति भी उन्होंने निःसंकोच की है; जिसमें उल्लास है तो दर्द भी। गहन वेदना के नीले तन्तु से उनके काव्य के आवेष्टित होने के फलस्वरूप उन्हें जीवन-त्रासदी का कवि भी घोषित किया गया है।

          महेंद्रभटनागर व्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रबल पक्षधर हैं। नये इंसान की अवतारणा के लिए सतत प्रयत्नरत। उत्कृष्ट मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए प्रतिबद्ध। यही कारण है, गौतम बुद्ध, महात्मा गांधी और विवेकानन्द के वैयक्तिक आचरण से वे अत्यधिक प्रभावित हैं। स्वतंत्र चिन्तन उन्हें किसी वादमें बँधने नहीं देता।

          महेंद्र जी की काव्य-कला-सौष्ठव संबंधी विशेषताएँ हैं: प्रसन्न-प्रांजल अभिव्यक्ति, सहज भाषा-प्रवाह, अभिनव मात्रिक छंदों व प्रचलित चिर-पहचानी तुकों (आन्तरिक भी) से सज्ज, लय व संगीति धर्मी प्रभावी गूँजों-अनुगूँजों से परिपूर्ण।’’

           द्वि-भाषिक कवि ( हिन्दी और अंग्रेज़ी) महेंद्रभटनागर की काव्य-विशेषताएँ सूत्र रूप में प्रस्तुत हैं:
‘‘सन् 1941 के लगभग अंत से काव्य-रचना आरम्भ। तब कवि (पन्द्रह-वर्षीय ) विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियरमें इंटरमीडिएट (प्रथम वर्ष) का छात्र था। सम्भवतः प्रथम कविता सुख-दुखहै; जो वार्षिक पत्रिका विक्टोरिया कॉलेज मेगज़ीनके किसी अंक में छपी थी। वस्तुतः प्रथम प्रकाशित कविता हुंकारहै; जो विशाल भारत’ (कलकत्ता) के मार्च 1944 के अंक में प्रकाशित हुई।

लगभग छह-वर्ष की काव्य-रचना का परिप्रेक्ष्य स्वतंत्राता-पूर्व भारत; शेष स्वातंत्रयोत्तर।

हिन्दी की तत्कालीन तीनों काव्य-धाराओं से सम्पृक्त राष्ट्रीय काव्य-धारा, उत्तर छायावादी गीति-काव्य, प्रगतिवादी कविता।

समाजार्थिक-राजनीतिक-राष्ट्रीय चेतना-सम्पन्न रचनाकार।

सन् 1946 से प्रगतिवादी काव्यान्दोलन से सक्रिय रूप से सम्बद्ध । हंस’ (बनारस / इलाहाबाद) में कविताओं का प्रकाशन। तदुपरांत अन्य जनवादी-वाम पत्रिकाओं में भी। प्रगतिशील हिन्दी कविता के द्वितीय उत्थान के चर्चित हस्ताक्षर।

सन् 1949 से काव्य-कृतियों का क्रमशः प्रकाशन।

प्रगतिशील मानवतावादी कवि के रूप में प्रतिष्ठित।

समाजार्थिक यथार्थ के अतिरिक्त अन्य प्रमुख काव्य-विषय –— प्रेम, प्रकृति, जीवन-दर्शन।

दर्द की गहन अनुभूतियों के समान्तर जीवन और जगत के प्रति आस्थावान कवि। अदम्य जिजीविषा एवं आशा-विश्वास के अद्भुत-अकम्प स्वरों के सर्जक।

काव्य-शिल्प के प्रति विशेष रूप से जागरूक।

छंदबद्ध और मुक्त-छंद दोनों में काव्य-सृष्टि। छंद-मुक्त गद्यात्मक कविता अत्यल्प। मुक्त-छंद की रचनाएँ भी मात्रिक छंदों से अनुशासित।

काव्य-भाषा में तत्सम शब्दों के अतिरिक्त तद्भव व देशज शब्दों एवं अरबी-फ़ारसी (उर्दू), अंग्रेज़ी आदि के प्रचलित शब्दों का प्रचुर प्रयोग।

सर्वत्र प्रांजल अभिव्यक्ति। लक्षणा-व्यंजना भी दुरूह नहीं। सहज काव्य के पुरस्कर्ता। सीमित प्रसंग-गर्भत्व।
विचारों-भावों को प्रधानता।

कविता की अन्तर्वस्तु के प्रति सजग।’’


           महेंद्रभटनागर-विरचित  समाजार्थिक यथार्थ की कविताओं से उनके सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों को समझा जा सकता है। आशा है, सुधी समीक्षक महेंद्रभटनागर की कविता का मूल्यांकन  कवि-विकास  और ऐतिहासिक  परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर करेंगे।

  • रीडर : हिंदी-विभागडॉ. शकुन्तला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय, लखनऊ (उ. प्र.)
 
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