जैसा कि आप सभी को विदित है कि विगत दस वर्षों मे परिकल्पना परिवार ने अपने दो महत्वपूर्ण साथियों को खोया है। एक डॉ अमर कुमार और दूसरे अविनाश वाचस्पति
। इन दोनों शख़्सियतों का जाना किसी करिश्मे का ख़त्म होने जैसा रहा है।
उन दोनों विभूतियों के अचानक अलविदा कह देने से केवल हिन्दी ब्लॉगिंग को
ही नहीं बल्कि इंसानियत को बहुत बड़ा नुकसान हुआ । डॉ अमर कुमार ने जहां
अपनी चुटीली टिप्पणियों से ब्लॉग पर नए-नए मुहबरे गढ़कर अपनी स्वतंत्र छवि
विकसित की थी वहीं अविनाश वाचस्पति ने ब्लॉग पर नए-नए प्रयोगों को
प्रतिष्ठापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
परिकल्पना द्वारा इन दोनों विभूतियों की स्मृति में ग्यारह हजार रुपये के दो पुरस्कार क्रमश: "अमर कुमार स्मृति परिकल्पना दशक सम्मान" हैदराबाद, तेलांगना से सम्पत देवी मुरारका को तथा "अविनाश वाचस्पति स्मृति परिकल्पना दशक सम्मान"
रायपुर, छतीसगढ़ की डॉ. उर्मिला शुक्ल को देने का निर्णय लिया गया है। आज
उसकी सूची निर्णायकों ने सौंप दी है। दोनों महत्वपूर्ण सम्मान महिला
ब्लॉगर के हिस्से में गया है, जिन्हें आगामी क्रमश: 25 दिसंबर 2016 को
न्यूजीलैंड की आर्थिक राजधानी ऑकलैंड और 31 दिसंबर 2016 को न्यूजीलैंड की
सांस्कृतिक राजधानी हेमिल्टन में सम्मानित होने का सौभाग्य प्राप्त होगा।
एक ब्लॉगर उत्तर भारत से और एक दक्षिण भारत से हैं।
हिंदी में यात्रा वृतांत की सुपरिचित हस्ताक्षर हैदराबाद (तेलंगाना) निवासी श्रीमती सम्पत देवी मुरारका, जिन्होने 2011 में बहुवचन नामक ब्लॉग प्रारम्भ किया जिसमें नेपाल, थाईलैंड, हांगकांग, सिंगापुर, लन्दन, बेल्जियम, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इटली, फ्रांस, न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, बफलो, फिलाडेल्फिया, वाशिंगटन डी.सी., वर्जीनीया, लॉस एन्जलस, लॉस वेगास, नेवेडा ग्रेंड केनन, सोलावेंग, हर्ष कैशल, सेन फ्रांसिस्, बर्सटोव, थौस्मिट नैशनल पार्क, लन्दन ब्रीज, सेंडीगो, 9सी वर्ल्ड), बाल्टीमोर, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन दुबई,आबूधाबी और युएई आदि देशों की यात्रा कर उन्होने वहाँ के सुखद संस्मरणों को अंकित करते हुये सृजन को नया आयाम देने की कोशिश की। वे एकसाथ कई विधाओं में सार्थक हस्तक्षेप रखती हैं। उन्हें 15 से 18 जनवरी 2015 के दौरान भूटान में आयोजित चतुर्थ अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान से अलंकृत और विभूषित किया गया था। इसके अलावा वे पूर्व में भारतीय संस्कृति निर्माण परिषद्, हैदराबाद का महारानी झांसी पुरस्कार, भारतीय वांगमय पीठ, कोलकाता का सारस्वत सम्मान, जैमनी अकादमी पानीपत, हरियाणा का रामधारी सिंह दिनकर सम्मान, भारतीय संस्कृति निर्माण परिषद्, हैदराबाद का जन जागृति सद्भावना पुरस्कार, तमिलनाडू हिंदी साहित्य अकादमी, चेन्नई का साहित्य सेवी सम्मान आदि से अलंकृत और समादृत हो चुकी है।
हिंदी कहानी और कविता की सुपरिचित हस्ताक्षर रायपुर (छतीसगढ़) निवासी डॉ उर्मिला शुक्ल ने 2011 में मनस्वी नामक ब्लॉग प्रारम्भ किया जिसमें स्त्री शक्ति और लोकरंग को उन्होने प्रमुखता के साथ उठाते हुये सृजन को नया आयाम देने की कोशिश की। वे एकसाथ कई विधाओं यथा कहानी ,कविता , समीक्षा , शोध पत्र , यात्रा संसमरण आदि पर सार्थक हस्तक्षेप रखती हैं। उनकी पुस्तक ‘हिंदी अपने अपने मोर्चे पर‘ म. प्र. साहित्य परिषद द्वारा 1995 में पाण्डुलिपि प्रकाशन योजना के तहत पुरष्कृत एवं प्रकाशित हुयी है। उनकी प्रकाशित कृतियों में हिंदी अपने अपने मोर्चे पर, फूलमती तुम जागती रहना आदि प्रमुख है। उन्हें विगत 25 मई 2015 को कोलंबो (श्रीलंका) में आयोजित पंचम अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में परिकल्पना सार्क सम्मान से अलंकृत और विभूषित किया गया था। अभी हाल ही में कलमकार फाउंडेशन नई दिल्ली की ओर से आयोजित अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में उनकी कहानी ‘सलफी का पेड़ नहीं औरत‘ को पुरस्कार के लिए चुना गया था। छत्तीसगढ़ से चुनी जाने वाली ये एकमात्र कहानी है। बस्तर पर आधारित ये कहानी-कहानी जगत में छत्तीसगढ़ को रेखांकित करती है।
हिंदी कहानी और कविता की सुपरिचित हस्ताक्षर रायपुर (छतीसगढ़) निवासी डॉ उर्मिला शुक्ल ने 2011 में मनस्वी नामक ब्लॉग प्रारम्भ किया जिसमें स्त्री शक्ति और लोकरंग को उन्होने प्रमुखता के साथ उठाते हुये सृजन को नया आयाम देने की कोशिश की। वे एकसाथ कई विधाओं यथा कहानी ,कविता , समीक्षा , शोध पत्र , यात्रा संसमरण आदि पर सार्थक हस्तक्षेप रखती हैं। उनकी पुस्तक ‘हिंदी अपने अपने मोर्चे पर‘ म. प्र. साहित्य परिषद द्वारा 1995 में पाण्डुलिपि प्रकाशन योजना के तहत पुरष्कृत एवं प्रकाशित हुयी है। उनकी प्रकाशित कृतियों में हिंदी अपने अपने मोर्चे पर, फूलमती तुम जागती रहना आदि प्रमुख है। उन्हें विगत 25 मई 2015 को कोलंबो (श्रीलंका) में आयोजित पंचम अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में परिकल्पना सार्क सम्मान से अलंकृत और विभूषित किया गया था। अभी हाल ही में कलमकार फाउंडेशन नई दिल्ली की ओर से आयोजित अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में उनकी कहानी ‘सलफी का पेड़ नहीं औरत‘ को पुरस्कार के लिए चुना गया था। छत्तीसगढ़ से चुनी जाने वाली ये एकमात्र कहानी है। बस्तर पर आधारित ये कहानी-कहानी जगत में छत्तीसगढ़ को रेखांकित करती है।