tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post1165881766448904695..comments2024-03-27T23:49:38.899+05:30Comments on परिकल्पना: उसीप्रकार जैसे-ख़त्म हो गयी समाज से सादगीआदमी भी ख़त्म हो गयाऔर आदमीअत भी.....!रवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-27099822510694576972007-10-20T16:48:00.000+05:302007-10-20T16:48:00.000+05:30आपने कम शव्दो मे अधिक बात की है. आपका प्रयास सराहन...आपने कम शव्दो मे अधिक बात की है. आपका प्रयास सराहनीय है. मेरी तरफ़ से शुभकामनायेबसंत आर्यhttps://www.blogger.com/profile/15804411384177085225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-56436009307968000712007-09-18T18:20:00.000+05:302007-09-18T18:20:00.000+05:30विश्लेषन = विश्लेषणविश्लेषन = विश्लेषणShastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-17762959404660878662007-09-18T18:19:00.000+05:302007-09-18T18:19:00.000+05:30प्रिय रवीन्द्र, यदा कदा ही इस प्रकार का काव्यत्मक ...प्रिय रवीन्द्र, यदा कदा ही इस प्रकार का काव्यत्मक विश्लेषन दिख पाता है -- कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ !!<BR/><BR/><BR/><BR/> -- शास्त्री जे सी फिलिप<BR/><BR/><BR/><BR/>प्रोत्साहन की जरूरत हरेक् को होती है. ऐसा कोई आभूषण<BR/>नहीं है जिसे चमकाने पर शोभा न बढे. चिट्ठाकार भी<BR/>ऐसे ही है. आपका एक वाक्य, एक टिप्पणी, एक छोटा<BR/>सा प्रोत्साहन, उसके चिट्ठाजीवन की एक बहुत बडी कडी<BR/>बन सकती है.<BR/><BR/>आप ने आज कम से कम दस हिन्दी चिट्ठाकरों को<BR/>प्रोत्साहित किया क्या ? यदि नहीं तो क्यो नहीं ??Shastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-22780768990733548762007-09-18T16:13:00.000+05:302007-09-18T16:13:00.000+05:30पढ़कर अच्छा लगा,पढ़कर अच्छा लगा,Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-62210850062424585332007-09-17T21:35:00.000+05:302007-09-17T21:35:00.000+05:30दरअसल आदमीनहीं रह गया है आदमी अबउसीप्रकार जैसे-ख़त...दरअसल आदमी<BR/>नहीं रह गया है आदमी अब<BR/>उसीप्रकार जैसे-<BR/>ख़त्म हो गयी समाज से सादगी<BR/>आदमी भी ख़त्म हो गया<BR/>और आदमीअत भी.....!<BR/><BR/>सत्य को कहने का एक सराहनीय प्रयास है आपका<BR/>...Reetesh Guptahttps://www.blogger.com/profile/12515570085939529378noreply@blogger.com