tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post3616750480754649305..comments2024-03-27T23:49:38.899+05:30Comments on परिकल्पना: ब्लॉगोत्सव २०१४, इक्कीसवाँ दिन, किसी और की छानबीन का कोई अर्थ नहीं !!रवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-61929350774102040692014-06-25T22:31:08.264+05:302014-06-25T22:31:08.264+05:30उत्कृष्ट रचनाएँ...उत्कृष्ट रचनाएँ...Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-65420045741691376292014-06-25T18:57:28.185+05:302014-06-25T18:57:28.185+05:30wah..... bahut sunder.wah..... bahut sunder.mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-79484011803765029412014-06-25T16:45:10.785+05:302014-06-25T16:45:10.785+05:30बहुत बढिया प्रस्तुतिबहुत बढिया प्रस्तुतिvandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-50883190080906103252014-06-25T15:59:44.692+05:302014-06-25T15:59:44.692+05:30:): :) :) :):): :) :) :)Anju (Anu) Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/01082866815160186295noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-66209290364261135372014-06-25T15:16:00.595+05:302014-06-25T15:16:00.595+05:30वह मेरे गोरे रंग को लेकर अक्सर हैरतजदा रहता है। हम...वह मेरे गोरे रंग को लेकर अक्सर हैरतजदा रहता है। हम जब मिलते हैं, मेरा मतलब हमारा जब कभी भी बाहर मिलना होता है, कनॉट प्लेस के के एफ सी में, हौज खास के बरिस्ता में, ग्रीन पार्क के कोस्टा कॉफी में मैंनें उसकी आंखों में झांकते हुए कुछ और अनजाने रास्तों की तरफ खुद को ट्रैक से फिसलता पाया है। <br />शायद प्यार को हल्के में लेकर ही जिया जा सकता है।<br />यप। यहीं थी मैं।<br />मुझे ठीक ठीक याद है। <br /> (h) <br />सागर .... यथा नाम तथा कम .....<br />आप को क्या कहना <br />============<br />मैं चाहता हूँ <br />कि निकलूँ जब बाज़ार की तरफ<br />तो चौंधिआया न करें आँखें<br />और बचा रहे<br />दोबारा वहाँ आने का हौसला।<br /><br />सच पूछिए तो अब<br />निकालते निकालते चक्रविधि ब्याज<br />परीकथाएँ लिखने का होता है मन<br />कि कुछ तो ऐसा छोड़ सकूँ<br />जिन्हें बच्चे छोड़ सकें<br />अपने बच्चों के लिए।<br />बेजोड़ अभिव्यक्ति <br /> (h) (h) (h)<br />विभा रानी श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-18159622860012451572014-06-25T15:15:25.029+05:302014-06-25T15:15:25.029+05:30बहुत सुंदर प्रस्तुति.....मैं पढ़ती चली गई....लेख...बहुत सुंदर प्रस्तुति.....मैं पढ़ती चली गई....लेखक को मेरी शुभकामनाएं...रश्मि शर्माhttps://www.blogger.com/profile/04434992559047189301noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-80051532074250596582014-06-25T14:56:01.010+05:302014-06-25T14:56:01.010+05:30बलागोत्सव का एक और खूबसूरत पड़ाव वाह ।बलागोत्सव का एक और खूबसूरत पड़ाव वाह ।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.com