tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post5536538925950796007..comments2024-03-27T23:49:38.899+05:30Comments on परिकल्पना: सतयुग से कलयुगरवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-38504130742574526472012-12-27T08:54:04.217+05:302012-12-27T08:54:04.217+05:30अंजू जी ने नारी के सम्मान पर अपनी बात बहुत सशक्त त...अंजू जी ने नारी के सम्मान पर अपनी बात बहुत सशक्त तरीके से रखी है , लेकिन उस लेख की शुरुआत में उनहोंने लिखा है कि नारी का जीवन कठिन था , है और रहेगा <br />मैं पूरी तरह सहमत हूँ कि नारी का जीवन कठिन था , मैं ये भी मानता हूँ कि उनका जीवन कठिन है लेकिन साथ ही मुझे इस बात पर पूरा विश्वास है कि ये जीवन कठिन रहेगा नहीं | मुझे नहीं मालूम कब सतयुग था कब कलयुग , या कि सतयुग श्रेष्ठ है या कलयुग लेकिन मुझे इतना मालूम है कि विश्वास बड़ी चीज है | अगर आप कुछ परिवर्तन लाना चाहते हैं तो सबसे पहले ये अटल विश्वास बहुत जरूरी है कि परिवर्तन होगा |<br />अंजू जी पूरी विनम्रता के साथ मेरा आपसे अनुरोध है भूत और वर्तमान तो लगभग बीत चुके लेकिन भविष्य को लेकर जरूर आशान्वित रहें | (ये सिर्फ मेरी निजी राय है)<br /><br />सादरAkash Mishrahttps://www.blogger.com/profile/00550689302666626580noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-10219713624621819702012-12-15T20:43:45.507+05:302012-12-15T20:43:45.507+05:30बहुत बढ़िया आलेख..आभार रश्मि जी..बहुत बढ़िया आलेख..आभार रश्मि जी..Maheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-71549269931284514402012-12-15T18:29:15.560+05:302012-12-15T18:29:15.560+05:30वो कागज़ कि कश्ती ...वो बारिश का पानी ...कितन अच्छ...वो कागज़ कि कश्ती ...वो बारिश का पानी ...कितन अच्छा तो वो बच्चपन काखेलना ...मस्ती भरे दिन थे ..मौजो की थी रातेविभा रानी श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-28680370585929507382012-12-15T18:18:09.013+05:302012-12-15T18:18:09.013+05:30आलेख की शुरुआत बहुत अच्छी ......स्त्री विमर्श को क...आलेख की शुरुआत बहुत अच्छी ......स्त्री विमर्श को केन्द्र में रखा गया है .....जो की आज की हर रचना में उठ रहा है ....पर इमानदारी से कहें .....तो सिर्फ लेखन अभिव्यक्ति हेतु .....अन्यथा कहीं भी तो कुछ नया नही ...सटीक उदाहरणों को लिया है अंजू जी ने ....जो बदलाव को प्रेरित सोच का अंजाम है ...आभार रश्मि जी ...रविंदर जी ....बहुत अच्छा लग रहा है इस उत्सव में शामिल होकर ....Anjuhttps://www.blogger.com/profile/11739644950456859545noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-24586396506587633652012-12-15T17:51:39.562+05:302012-12-15T17:51:39.562+05:30SUNDAR AALEKH SUNDAR AALEKH Nirantarhttps://www.blogger.com/profile/02201853226412496906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-80016716310500976692012-12-15T17:36:36.514+05:302012-12-15T17:36:36.514+05:30अंजू जी का सुन्दर लेख पढवाने के लिए आप दोनों का आभ...अंजू जी का सुन्दर लेख पढवाने के लिए आप दोनों का आभार कालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.com