tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post8132170031889425829..comments2024-03-27T23:49:38.899+05:30Comments on परिकल्पना: आदाब से अदब तक, यही है लखनऊ मेरी जान !रवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-44000409817774141602007-12-16T12:25:00.000+05:302007-12-16T12:25:00.000+05:30रविन्द्र जी मुझे लखनऊ छोड़े करीब ३८ वषॅ हो चुके है...रविन्द्र जी मुझे लखनऊ छोड़े करीब ३८ वषॅ हो चुके है, लखनऊ में हाई स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला मुझे, अमौसी हवाई अड्डे की कालोनी में बीता बचपन हर दिन याद आता है। शायद यही कारण है कि लखनऊ की तहज़ीब मेरे रोम रोम में आज भी बसी है। पता नही लोग कैसे एक दूसरे से बदतमीज़ी से बात करते है। आप वंहा कब से है? हो सके तो मुझे मेरे ramnaniramesh@yahoo.com पर कुछ बताईयेगा। मेरे स्कूल का नाम स्वतंत्र हाई स्कूल था। अगर हो सके तो वंहा पर कैलाश तिवारी को मेरा ये आई-डी पास आन कर दीजियेगा। आपको बहुत बहुत शुक्रिया दूंगा।<BR/><BR/>रमेश रामनानीRamesh Ramnanihttps://www.blogger.com/profile/11152557937984321752noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-22036967203694045712007-12-16T12:21:00.000+05:302007-12-16T12:21:00.000+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Ramesh Ramnanihttps://www.blogger.com/profile/11152557937984321752noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-53792726827580811592007-12-06T16:04:00.000+05:302007-12-06T16:04:00.000+05:30वाकई रवीन्द्रजी, आपके तह्ज़ीब के बयान में भी एक तहज़...वाकई रवीन्द्रजी, <BR/>आपके तह्ज़ीब के बयान में भी एक तहज़ीब है , काबिलेतारीफ़ !डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-73648788212537544722007-12-04T17:16:00.000+05:302007-12-04T17:16:00.000+05:30सरकार ये कौन था आपकी कार मे. बिल्कुल बेकार आदमी था...सरकार ये कौन था आपकी कार मे. बिल्कुल बेकार आदमी था. जी मे तो आया आपसे नाम पूछ कर उसे मुम्बई से हकाल ही दे. फिर सोंचा अभी हममे लखनवी तहजीब सांस ले रही है. चलिए आपने अच्छा काम किया आपने.बसंत आर्यhttps://www.blogger.com/profile/15804411384177085225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-87198146760015660292007-12-02T23:40:00.000+05:302007-12-02T23:40:00.000+05:30लखनवी की तहज़ीब का सिक्का तो भारतीयों ने ही नहीं,...लखनवी की तहज़ीब का सिक्का तो भारतीयों ने ही नहीं, आतताई अंगरेज़ों ने भी माना है। कितनी ही फ़िल्में बनी हैं जिन्हें कुछ लोग लखनवी की तहज़ीब <BR/>और नायाब लहजा देखने के लिए जाते थे। अजीब बात है कि आपके मित्र को लखनऊ की फ़िज़ा और वातावरण तक इससे अनभिज्ञ रहे। <BR/>आपने ठीक कहा कि व्यक्ति का नेचर और सिग्नेचर कभी नहीं बदलता, यह आपके मित्र पर भी लागू होता है - मुम्बई की तहज़ीब!महावीरhttps://www.blogger.com/profile/00859697755955147456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-33560990884886564902007-12-01T16:57:00.000+05:302007-12-01T16:57:00.000+05:30रविन्द्र जी आपकी इस पोस्ट देखकर मैं सोचता हूँ कि व...रविन्द्र जी <BR/>आपकी इस पोस्ट देखकर मैं सोचता हूँ कि वाकई लखनऊ की तहजीब बहुत प्रशंसनीय है, वर्ना तो कई जगह तो इस तरह की टक्कर पर झगडे होते हैं. कहीं तो गलती करने वाले ही झगडे पर आमादा हो जाते हैं. <BR/>दीपक भारतदीपदीपक भारतदीपhttps://www.blogger.com/profile/09317489506375497214noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-38536942125489610932007-12-01T01:06:00.000+05:302007-12-01T01:06:00.000+05:30मुझे भी करीब एक वषॅ तक लखनऊ में रहने का सौभाग्य मि...मुझे भी करीब एक वषॅ तक लखनऊ में रहने का सौभाग्य मिला, लेकिन उन बारह महीनों के दौरान बिताए गए एक-एक पल आज बारह वषॅ बाद भी मेरे मनोमस्तिष्क पर अंकित हैं और ताउम्र अंकित रहेंगे। इच्छा तो बड़ी होती है दुबारा आने की लेकिन दूरियां-मजबूरियां-जरूरियां---इजाजत नहीं देते। आपने पुनः एक बार लखनऊ की सैर करा दी, बहुत-बहुत शुक्रिया।manglamhttps://www.blogger.com/profile/09256454129822743663noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-34388209829191022832007-11-30T22:02:00.000+05:302007-11-30T22:02:00.000+05:30वास्तव में तहजीब जिन्दा है लखनऊ में। और अगर बदतमीज...वास्तव में तहजीब जिन्दा है लखनऊ में। और अगर बदतमीजी करने वाले भी होंगे तो बाहर से आने वाले होंगे। आखिर बहुत से लोग बाहर से आ ही रहे होंगे रोजी-रोटी की तलाश में, जो इतने रिफाइण्ड नहीं होते। <BR/>यह तहजीब बनी रहे।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-35212641496933629662007-11-30T20:52:00.000+05:302007-11-30T20:52:00.000+05:30बहुत सही!!!लख़नऊ की बात ही क्या इतिहास से तहजीब तक ...बहुत सही!!!<BR/>लख़नऊ की बात ही क्या इतिहास से तहजीब तक सबकुछ जिसके गर्भ में ही है… क्या कहने इसके… उस मोटरसाइकिल वाली दी गई दृष्टांत ने तो सच में मुझे वह सहजता याद दिला दी जो शायद कुछ-2 भुलने लगा था मुम्बई शहर में आकर… पर मेरा मन आज भी वही है बस करवटे बदल गई हैं…<BR/>शानदार सर,शानदार!!!Divine Indiahttps://www.blogger.com/profile/14469712797997282405noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-19123396653228744972007-11-30T16:45:00.000+05:302007-11-30T16:45:00.000+05:30लखनऊ की तहजीब के बारे में खूब सुना और पढ़ा था...आज...लखनऊ की तहजीब के बारे में खूब सुना और पढ़ा था...आज आपने भी पढ़ा कर दिल जीत लिया..मैं मुम्बई में रहता हूँ...आपने अपने दोस्त की भी सही तस्वीर पेश की हैं...मुम्बईकर ऐसे ही होते हैं..खैर मैं बनारस का हूँ. <BR/><BR/><BR/>http://bolhalla.blogspot.comAshish Maharishihttps://www.blogger.com/profile/04428886830356538829noreply@blogger.com