मंगलवार, 2 अक्टूबर 2007

कौन करता है यकीं इस गांधी के उपदेश में ?



विश्व अहिंसा दिवस पर विशेष -

मसलों से ग्रस्त है जब आदमी इस देश में ,
किस
बात की चर्चा करें आज के परिवेश में ?

कल तक जो पोषक थे, आज शोषक बन गए-
कौन करता है यकीं इस गांधी के उपदेश में ?

माहौल को अशांत कर शांति का उपदेश दे,
घूमते हैं चोर - डाकू साधुओं के वेश में ।

कोशिशें कर ऎसी जिससे शांति का उद्घोष हो ,
हर तरफ अमनों-अमां हो गांधी के इस देश में ।

है कोई वक्तव्य जो पैगाम दे सद्भावना का ,
बस यही है हठ छिपा '' प्रभात'' के संदेश में ।

() रवीन्द्र प्रभात

6 comments:

  1. कल तक जो पोषक थे, आज शोषक बन गए-
    कौन करता है यकीं इस गांधी के उपदेश में ?
    ---------------------
    शायद बापू इस यकीन न कर सकने के अन्धेरे के कारण और भी प्रासंगिक हैं.

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  2. सही कह रहे हैं. आईये हम ही याद करें:

    बापू को शत शत नमन.

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  3. कल तक जो पोषक थे, आज शोषक बन गए-
    कौन करता है यकीं इस गांधी के उपदेश में ?
    -----------------

    सत्य को उद्घाटित करती पंक्तियां
    दीपक भारतदीप

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  4. प्रिय रवीन्द्र जी,
    आपकी कविता प्रासंगिक हैं, अच्छी लगी.

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  5. बिल्कुल सही रचना है रविंदर भाई ,कौन यकीन कर्ता है गांधी के उपदेश में ...अच्छी रचना है ...

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  6. रवीन्द्र जी अब तो ये हाल है कि हर जगह गान्धी की तस्वीर दीवाल पर टंगी हुई है और हम सबने उनकी तरफ़ पीढ कर ली है.
    तो भला कौन करे गांधी की बातो पर यकीन.
    बहुत खूब.
    गांधी बाबा खुश हो‍गे या नाराज आपका ये पोस्ट पढ कर अब तो ये भी कहना मुश्किल है.

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