कल मेरे एक कवि मित्र मुझसे मिलने मेरे गरीबखाने में तशरीफ लाये. नाम का उल्लेख करना मैं मुनासिब नहीं समझ रहा हूँ, हो सकता है उन्हें बुरा लगे. जब मैंने लखनऊ आने का प्रायोजन पूछा तो उन्होने कहा " लखनऊ महोत्सव देखने आया था सोचा आप से मिलता चलूँ." ये जनाब हैं तो उत्तरप्रदेश के मगर अपना आशियाना बना लिया है मुम्बई में. मैंने पूछा-" क्या देखा लखनऊ महोत्सव में ?"
उन्होने कहा-" भाई ! देखना क्या है, एक विशालकाय गेट है इमामबाडे सरीखा . सफ़ेद रंग से दमकते इस गेट पर लखनवी गुम्बदों की दीदार कराती हुई मीनारें हैं . कंगूरों से उसकी सजावट की गयी है . मेन बैक गेट को आलमबाग गेट की तर्ज़ पर डिजाइन किया गया है. बिस्कुटी रंग के मेन गेट पर शाही निशान के तौर पर दो मछलियाँ बनी है. मेन गेट के सीध में मुख्य स्टेज है. पार्किंग में झांसी की रानी की झांकी. फिजाओं में स्थानीय कलाकारों के द्वारा तैयार किये गए जोशीले तराने .....और कुछ तो बस वही जो अन्य मेले में देखने को मिलता है...!"
मैंने कौतुहल वश पूछा कि " क्या महोत्सव सुरों सा धड़कता हुआ महसूस नहीं हुआ ?"
उन्होने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया- " भाई! लोग कहते हैं कि इस शहर की जुवान सुरीली है... फिर भला ये सुर महोत्सव में क्यों नहीं गूंजेंगे...!" इतना कहकर उन्होंने ठहाका लगाया और पलटकर उछाल दिया एक प्रश्न कि-"भाई ! यह बताओ बिगत दस-बीस वर्षों में लखनऊ काफी बदल गया है, क्या अभी भी यहाँ के लोगों में वही तहजीब ज़िंदा है ?" मैंने कहा -" क्यों नही , यार मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि व्यक्ति का नेचर और सिग्नेचर कभी नहीं बदलता, वैसे भी इस शहर ने अपने नेचर से हीं पूरी दुनिया में अपना मुकाम बनाया है ....!"
मैंने कौतुहल वश पूछा कि " क्या महोत्सव सुरों सा धड़कता हुआ महसूस नहीं हुआ ?"
उन्होने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया- " भाई! लोग कहते हैं कि इस शहर की जुवान सुरीली है... फिर भला ये सुर महोत्सव में क्यों नहीं गूंजेंगे...!" इतना कहकर उन्होंने ठहाका लगाया और पलटकर उछाल दिया एक प्रश्न कि-"भाई ! यह बताओ बिगत दस-बीस वर्षों में लखनऊ काफी बदल गया है, क्या अभी भी यहाँ के लोगों में वही तहजीब ज़िंदा है ?" मैंने कहा -" क्यों नही , यार मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि व्यक्ति का नेचर और सिग्नेचर कभी नहीं बदलता, वैसे भी इस शहर ने अपने नेचर से हीं पूरी दुनिया में अपना मुकाम बनाया है ....!"
उन्होने कहा कि " भाई ! मैं आपकी बातों से इत्तेफाक नही रखता , कोई और तर्क दो तो बात बने ....!"
मैंने कहा - " हाँथ कंगन को आरसी क्या....चलिए चलते हैं आपके साथ घुमते हैंलखनऊ ....!" तत्क्षण उन्होने अपनी सहमति दे दी और हम निकल पड़े आदाब से अदब की ओर...!लखनऊ घुमने के क्रम में मैं स्वयं अपनी मारुति कार ड्राइव कर रहा था और मेरे बगल में बैठे थे मेरे मुम्बईया मित्र . उन्होने कहा - भाई साहब! जब हम लखनऊ शहर की सैर पर निकल हीं चुके हैं तो अपने सी डी प्लेयर में उमराँव जान का गाना लगाईये ....!" मैंने पूछा -" नई या पुरानी ?" उन्होने कहा - " रेखा वाली...!" मैंने कहा- " क्यों एश्वर्या वाली क्यों नहीं ....!" जनाब झेंप गए एकवारगी .
नोंक-झोंक के क्रम में हीं हम पहुंचे पुराने लखनऊ का नक्खास मोहल्ला . बेहद शांत और तहजीब से लबरेज़ . गाड़ और चूने की पुरानी इमारतें, लखनवी शानो-शौकत की याद ताज़ा कराती गौरवशाली अतीत की जीती- जागती तस्वीर . संगमरमरी दीवार , नक्काशीदार दरवाज़े , संकरी और घुमावदार गलियाँ नजाकत और नफासत का एहसास कराती हुई . धीमी चलती हुई कार के भीतर सांय-सांय करती हवाओं में घुली फिश फ्राई और चिकन करी की महक जैसे हीं मेरे मित्र की नाक को स्पर्श करती हुई निकली, चौंक गया वह एकवारागी और झटके से कार रोकने हेतु इशारा करते हुए कहा कि -" भाई ! गाडी रोको , पहले मैं विरयानी खाऊंगा फिर आगे बढूँगा ....!"
मैंने कहा - " हाँथ कंगन को आरसी क्या....चलिए चलते हैं आपके साथ घुमते हैंलखनऊ ....!" तत्क्षण उन्होने अपनी सहमति दे दी और हम निकल पड़े आदाब से अदब की ओर...!लखनऊ घुमने के क्रम में मैं स्वयं अपनी मारुति कार ड्राइव कर रहा था और मेरे बगल में बैठे थे मेरे मुम्बईया मित्र . उन्होने कहा - भाई साहब! जब हम लखनऊ शहर की सैर पर निकल हीं चुके हैं तो अपने सी डी प्लेयर में उमराँव जान का गाना लगाईये ....!" मैंने पूछा -" नई या पुरानी ?" उन्होने कहा - " रेखा वाली...!" मैंने कहा- " क्यों एश्वर्या वाली क्यों नहीं ....!" जनाब झेंप गए एकवारगी .
नोंक-झोंक के क्रम में हीं हम पहुंचे पुराने लखनऊ का नक्खास मोहल्ला . बेहद शांत और तहजीब से लबरेज़ . गाड़ और चूने की पुरानी इमारतें, लखनवी शानो-शौकत की याद ताज़ा कराती गौरवशाली अतीत की जीती- जागती तस्वीर . संगमरमरी दीवार , नक्काशीदार दरवाज़े , संकरी और घुमावदार गलियाँ नजाकत और नफासत का एहसास कराती हुई . धीमी चलती हुई कार के भीतर सांय-सांय करती हवाओं में घुली फिश फ्राई और चिकन करी की महक जैसे हीं मेरे मित्र की नाक को स्पर्श करती हुई निकली, चौंक गया वह एकवारागी और झटके से कार रोकने हेतु इशारा करते हुए कहा कि -" भाई ! गाडी रोको , पहले मैं विरयानी खाऊंगा फिर आगे बढूँगा ....!"
जैसे हीं मैंने ब्रेक लगाई , अनायाश हीं ओवरटेक करता हुआ एक मोटर साइकिल सवार मेरी कार से टकराते हुए बाल - बाल बचा . वह तो संभलकर सीधा हो गया, किन्तु मेरे मित्र को यह दृश्य देखकर बहुत गुस्सा आया और अकड़ते हुए कहा कि- " अभी मैं मुम्बई में होता , तो जड़ देता थप्पड़ उसके मुँह पे, कोई ट्रैफिक सेंस है हीं नहीं यहाँ...जिधर से मन करता है मुड़ जाते हैं लोग, जैसे बाप की सड़क हो ....!"
मैंने अपने उस मित्र की बातों को अनमने ढंग से सुनते हुए दरवाजे का शीशा गिराया और उस नव युवक से मुखातिब होते हुए कहा- " ठीक से चलाया करो....ऐसे चलाओगे तो कोई न कोई अनहोनी हो जायेगी ....!"
उसने दोनों हाँथ जोड़ते हुए कहा -" भाई जान ! मेडिकल कॉलेज के ट्रामा सेंटर में मेरी पत्नी एडमीट है ...जल्दबाजी में था इसलिए ऐसा हो गया ...माफी चाहता हूँ ....!" मैंने कहा - " कोई बात नहीं , आप जाइये !"
उसने मुस्कुराते हुए कहा- " नही , गलती बार-बार नहीं होती ....पहले आप जाइये जनाब !"
मैंने अपने उस मित्र की बातों को अनमने ढंग से सुनते हुए दरवाजे का शीशा गिराया और उस नव युवक से मुखातिब होते हुए कहा- " ठीक से चलाया करो....ऐसे चलाओगे तो कोई न कोई अनहोनी हो जायेगी ....!"
उसने दोनों हाँथ जोड़ते हुए कहा -" भाई जान ! मेडिकल कॉलेज के ट्रामा सेंटर में मेरी पत्नी एडमीट है ...जल्दबाजी में था इसलिए ऐसा हो गया ...माफी चाहता हूँ ....!" मैंने कहा - " कोई बात नहीं , आप जाइये !"
उसने मुस्कुराते हुए कहा- " नही , गलती बार-बार नहीं होती ....पहले आप जाइये जनाब !"
मेरा मित्र यह दृश्य देखकर हतप्रभ रह गया , मैंने मुस्कुराते हुए गाडी आगे बढ़ा दी और कहा कि-" मित्र ! यही है लखनवी तहजीब ....!" वह अपनी शर्मिन्दगी छुपाता हुआ झेंप गया .
गाडी ड्राइव करते हुए जब मैंने पुन: बातचीत का सिलसिला आगे बढाया तो उन्होंने कहा- " आपने मुझे सचमुच एहसास करा ही दिया मित्र कि ज़िंदा है अभी भी लखनवी तहजीव ....कुछ तो है इस शहर में खास जो परत-दर-परत खोलती है तहजीब-ए-अवध का राज़....शुक्रिया मेरे दोस्त....शुक्रिया लखनऊ....!"
गाडी पार्क करते हुए मैंने पूछा -" मित्र ! अब आगे क्या इरादा है?"
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा -" चलिए विरयानी के साथ शाम-ए-अवध का लुत्फ़ लिया जाये....!"मैंने कहा ठीक है चलिए जनाब अब आपको लखनवी मेहमान नवाजी से रूबरू कराते हैं हम ..... फ़िर तो ठहाकों का दौर ऐसा चला कि घर आने के बाद ही थमा....! उसदिन मेरे मित्र को वाकई महसूस हो हीं गया कि --
आदाब से अदब तक यही है लखनऊ मेरी जान !
गाडी ड्राइव करते हुए जब मैंने पुन: बातचीत का सिलसिला आगे बढाया तो उन्होंने कहा- " आपने मुझे सचमुच एहसास करा ही दिया मित्र कि ज़िंदा है अभी भी लखनवी तहजीव ....कुछ तो है इस शहर में खास जो परत-दर-परत खोलती है तहजीब-ए-अवध का राज़....शुक्रिया मेरे दोस्त....शुक्रिया लखनऊ....!"
गाडी पार्क करते हुए मैंने पूछा -" मित्र ! अब आगे क्या इरादा है?"
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा -" चलिए विरयानी के साथ शाम-ए-अवध का लुत्फ़ लिया जाये....!"मैंने कहा ठीक है चलिए जनाब अब आपको लखनवी मेहमान नवाजी से रूबरू कराते हैं हम ..... फ़िर तो ठहाकों का दौर ऐसा चला कि घर आने के बाद ही थमा....! उसदिन मेरे मित्र को वाकई महसूस हो हीं गया कि --
आदाब से अदब तक यही है लखनऊ मेरी जान !