बुधवार, 7 नवंबर 2007

दीपावली, जुआ, संस्कार और सरोकार !


हमारे एक मित्र हैं रामाकांत पांडे , दिल्ली में रहते हैं , पेशे से पुरोहित हैं . धोती -कुर्ता और ललाट पर त्रिपुंड चंदन . बातें करेंगे तो विल्कुल अध्यात्मिक . हाव -भाव पूरी तरह संस्कारिता से ओतप्रोत , हम उन्हें चलता - फिरता आस्था चैनल कह कर पुकारते हैं ! पिछले दीपावली में आये थे लखनऊ , संस्कार पर लंबा -चौडा देकर हमारे मन को पवित्र कर गए . संस्कार पर उनके प्रवचन कुछ इसप्रकार थे -
मनुष्य का जीवन संस्कारों पर चलता है . जीवन में जो कुछ भी किया जाता है , वह आदत बन जाती है और यही आदत चित्त -पटल पर आकर संस्कार का रुप लेती है ।

संस्कार प्रेरित करता है , कि कैसे आकांक्षाओं को मूर्त रुप दिया जाये . अच्छे संस्कार मनुष्य को मान- सम्मान के साथ -साथ शांति, सुख संतुस्ती का बोध कराते हुए समृधि की और ले जाते हैं , वहीं बुरे संस्कार विनाश की ओर .
अगर हमारे पूर्वजों में संस्कार प्रबल नही होता , तो सभ्यता का विकास असंभव था .इसके बिना हम आज जानवरों की तरह रह रहे होते .
संस्कार में चार शब्द सन्निहित है -

सं - संवेदना
स - स्वयं भय
का -कार्यानुभुति

र - रचनात्मकता

() संवेदना हमारे मन के उदगार को व्यक्त करती है तथा दूसरे की भावनाओं और इच्छाओं का ध्यान रखती है .
() स्वयं भय मनुष्य को सम्पूर्ण इमानदारी के गुण से परिपूर्ण कर देता है .
() कार्यानुभुती कार्य के प्रति स्वामित्व का बोध कराती है तथा सच्चे मन से कर्तव्यों के निर्वहन हेतु प्रेरित करती है .
() रचनात्मकता उद्देश्यों के प्रति जागरूकता का भाव उत्पन्न करती है ।


इसप्रकार -
जिस व्यक्ति के भीतर संवेदना , स्वयं भय , कार्यानुभुती तथा रचनात्मकता का भाव होता है , उसका जीवन उद्देश्यपरक होता है और उद्देश्यपरक जीवन जीने वाला मनुष्य ही सफलता को वरन करता है .
संस्कार तीन प्रकार के होते हैं -
() जन्म जात संस्कार () रोपित संस्कार () कर्मगत संस्कार


() जन्मजात संस्कार - संवेदना और स्वयं भय के साथ सुन्दर अनुभूतियों को स्वभाव में ढालते हुए प्रगति की लालसा रखने वाले को जन्मजात संस्कार के तहत माना जाता है .
() रोपित संस्कार - शिक्षा , समाज , वातावरण , अध्यन-अध्यापन , अभ्यास , विचार -विमर्श से सिख कर , उसी को सत्य मानकर उसी में रुचि रखने वाले को रोपित संस्कार के तहत माना जाता है .
() कर्मगत संस्कार - कार्यानुभुती के साथ अच्छे -बुरे अनुभवों से शिक्षा लेकर अपना मार्ग स्वयं तय करते हुए रचनात्मक बने रहने वाला व्यक्तिकर्मगत संस्कार के तहत आता है ।


सोच सकते हैं कि इतना सब कुछ सुन लेने के बाद उस व्यक्ति के प्रति श्रद्धा काभाव कितना बढ़ जाएगा ? मैं उस संस्कार रूपी सत्य वचन में अपने सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों को धुन्धने लगा . मगर जब मुझे ज्ञात हुआ कि दीपावली में हमारे सांस्कारिक मित्र ने जुए में बीस हजार रुपये हार गए ,तो मुझे बहुत बुरा लगा मैंने फोन पर ही उन्हें उलटा -सीधा कह दिया कि -क्या यही तुम्हारे संस्कार हैं मित्र ? इसपर जो उनकी प्रतिक्रिया थी वह भी कम आश्चर्यजनक नही थी . उन्होने हंसते हुए कहा कि - मित्र ! जुआ खेलना भी संस्कारों की श्रेणी में ही आता है . मैं देर तक रिसीवर हाथ में उठाये यही सोचता रहा कि कैसे जुआ खेलना हमारे संस्कार का एक हिस्सा है ? अगर ऐसा है तो हमारे सामाजिक सरोकारों का क्या होगा ? मैं सोच रहा हूँ कि अगली वार जब मैं अपने इस अनोखे मित्र से मिलूंगा तो अपनी यहजिज्ञासा शांत करूंगा और जब मेरी जिज्ञासा शांत हो जायेगी तो आप सभी को जरूर बताऊंगा , तबतक के लिए - शुभ दीपावली !

7 comments:

  1. आप और आपके परिवार को भी शुभ दीपावली.

    जिज्ञासा तो हमें भी बहुत हो रही है, जैसे ही उनका जबाब मिले, बताईयेगा जरुर.

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  2. रवीन्द्र जी, समीर जी,
    मैं उस व्यक्ति का पक्षधर नहीं। शायद विरोध ही करूँगा। किंतु फिर भी सच है कि वे सही कह रहे हैं। समझा पाना कुछ मुश्किल होगा।

    संजय गुलाटी मुसाफिर

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  3. उनसे क्या पूछेंगे! महाभारत खोल लें, धर्मराज युधिष्ठिर से पूछें - जो पांचाली तक को हार गये और महायुद्ध करा बैठे!
    वह महायुद्ध अप्रतिम घटना है।

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  4. चलिये हँसने-हँसाने और रोने रुलाने के बीच दीवाली की शुभकामनायें।

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  5. रविद्र प्रभात जी
    इस जुए के तथाकथित संस्कार ने बाकी संस्कारों की लुटिया डुबो दी है. अन्य व्यसनों से मुक्ति संभव है पर इससे नहीं. दीपावली के पावन पर्व पर आपको हार्दिक बधाई.
    दीपक भारतदीप

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  6. रविन्द्र जी दिवाली कि ढेरों सारी बधाई और शुभ कामना !

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  7. " मनुष्य का जीवन संस्कारों पर चलता है . जीवन में जो कुछ भी किया जाता है , वह आदत बन जाती है और यही आदत चित्त -पटल पर आकर संस्कार का रुप लेती है"

    गजब! यदि यह सत्य हम सब समझ लें, एवं यदि हम में से हरेक अपनी भावी पीढी को इस कारण संस्कारों से भरपूर कर दें तो दुनियां बदलने में देर न लगे -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    इस काम के लिये मेरा और आपका योगदान कितना है?

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