मंगलवार, 29 जनवरी 2008

दुनिया का सबसे खूबसूरत उपहार ......!


जिस दिन सेंसेक्स औंधे मुंह गिरा था और शेयर बाज़ार में हरकंप मच गया था अनायास हीं , उसी दिन सुबह-सुबह मैंने अपनी श्री मती जी को उनके जन्म दिन की बधाई देते हुए पूछा कि यह बताओ आज तुम्हे क्या चाहिए? उन्होने कहा कुछ भी जो आपको अच्छा लगे . मैंने कहा मुझे तो तुमसे अच्छा कुछ भी नही लगता , देखो मुझे धर्म संकट में न डालो , सीधे-सीधे बताओ कि आज के दिन मैं तुम्हे कौन सा उपहार दूं ? उन्होने कहा- वैसे तो ऊपर वाले ने मुझे सबकुछ दिया है , मगर एक चीज है जो अमूल्य है , शाम को दफ्तर से लौटते हुए लेते आईयेगा! मुझे मेरी श्री मती जी की बातें कुछ समझ में नहीं आयी तो मैंने फिर मुखातिव होते हुए पूछा कि कुछ क्लू दो तो समझ में आये . उन्होने कहा कि यह वह चीज है जिसका कोई संबंध नही होता बाज़ार के उतार-चढाव से, देने वाले के ऊपर क़र्ज़ का बोझ नही होता और पाने वाले को असीम शांति, सुख,संतुष्टि की प्राप्ति होती है ।
मैं सोचते हुए तैयार हुआ दफ्तर जाने के लिए और सोचते हुए निकल भी गया , पर मेरे भेजे में नही घुसी कि आख़िर वह कौन सी बस्तु है, जिसका संबंध बाज़ार के उतार-चढाव से नही होता ? मैंने सोचा कि इस दुनिया में तो दो ही चीजें खास मानी गयी है और वह है कामिनी और कंचन . हर देश काल में यह सत्य है . मगर दोनो का प्रभाव बाज़ार के उतार-चढाव पर पङता है , फिर वह कौन सी वस्तु है जिसकी चर्चा मेरी श्री मती जी ने की है .मैं परेशान हाल दफ्तर में पहुंचा मगर किसी निष्कर्ष पर नही पहुंच सका . मेरे जेहन में बार-बार यही बातें आ रही थी कि मनुष्य के लिए यदि देखा जाये तो पद, प्रतिष्ठा, प्रसन्शा, पैसा और प्रसिद्धि से ज्यादा महत्वपूर्ण और कुछ हो ही नही सकता , लेकिन बाज़ार के उतार-चढाव का इसपर प्रभाव अवश्य पङता है ।
मैंने कई दृष्टिकोण से स्वयं को समझाने की कोशिश की , पर सही निष्कर्ष पर नही पहुंच सका . तभी मेरे साथ कार्य करने वाली एक महिला सहकर्मी मुझसे मुखातिव हुई और मेरी परेशानी का सबब जानना चाहा . मैंने भी अपनी सारी परेशानी अक्षरस: उसके सामने रख दी , उसने मुस्कुराते हुए कहा - सर! बस इतनी सी बात और इतनी बड़ी परेशानी ? मेरे समझ से सबसे खूबसूरत उपहार पुष्पहार है . दिमाग पर थोडा जोर डालिए सब समझ में आ जाएगा . सचमुच इससे खूबसूरत उपहार और क्या हो सकता है ?
क्योंकि फूल जन्म से लेकर मृत्यु तक कार्य करता है. एक बच्चे को उसके जन्म दिन के अवसर पर उसे फूलों से सजाते हैं, भगवान की पूजा करते हैं तो फूल ही चढाते हैं , एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को मनाने के लिए फूल ही देता है, वे दोनों विवाह के पवित्र बन्धन में फूलों की बनी बरमाला द्वारा ही बंधाते हैं और यदि प्रेमिका की मृत्यु हो जाये तो प्रेमी दु:खी होकर फूलों की बनी माला ही उसके शव पर चढाता है , कभी याद आती है तो वह उसके कब्र पर फूल ही चढाता है , अंतत: वह भी मृत्यु को प्राप्त होता है और कोई शुभचिंतक आकर उसके शव पर फूल चढा जाता है .इसप्रकार मनुष्य का जीवन फूलों की माला की तरह हीं श्रृंखला बद्ध है !
अब आप कहेंगे कि ऐसे ख़ुशी के मौक़े पर मृत्यु की बात क्यों की जा रही है , जहाँ तक मैं समझता हूँ कि जीवन की बात मृत्यु से शुरू की जानी चाहिए , जहाँ समाप्ति की नियति है, वहाँ हर कर्म क्षणिक और अपने लिए गढा गया हर अभिप्राय भ्रम है. बगैर भ्रम को पाले हुए हुए यदि जीना हो तो जीवन को एक छोटा सा सफर समझना चाहिए . सफर में चलते हुए मन में यदि यह विश्वास उग सके कि देर-सवेर हर किसी को उतर जाना है, तो फिर यही रह जाता है जितनी देर बैठें , दूसरों का दु:ख- दर्द बाँटते रहें , उन्हें स्नेह देते रहें.....!अर्थात हम स्वयं को दूसरों पर उत्सर्ग कर दें या ऐसी यातना से गुजारें जो हमारी नजरों में हमारे अस्तित्व को शुन्यवत कर के रख दे , प्रेम में ये दोनों ही निहित है , यद्यपि फूल प्रेम का प्रतीक है, इसलिए फूल से बेहतर उपहार और क्या हो सकता है ?
मैं जब शाम को दफ्तर से घर लौटा तो मेरे हाथ में गुलाब के ताज़े फूल थे , यह फूल देखकर मेरी श्री मतीजी बहुत खुश हुई और फूल थामते हुए पूछा - आपने बड़ी आसानी से इस पहेली की गुत्थी सुलझा ली . मैं अपनी किस्मत पर ऐसा इतराया कि मुझे बोध ही नही रहा कि मुझे क्या कहना चाहिए और क्या नही कहना चाहिए ? मेरे मुंह से अचानक निकल गया कि वो पहेली मैंने नही सुलझाई मेरे दफ्तर की एक महिला सहकर्मी ने सुलझाई है ......! फिर क्या था औरत अपने सबसे कमजोर रुप में आ गयी ! उसके तेवर उग्र हो गए ......और माहौल ....शेयर बाज़ार की तरह फिर से करवट ले लिया ......! मेरी पत्नी शेयर बाज़ार के प्रतीक की तरह खूंखार दिखने लगी .....यानी मेरी एक भूल से मेरे घर का शुचकांक और पड़ोस की निफ्टी दोनो औंधे मुंह ऐसे गिरा कि कई दिनों तक थमने का नाम ही नही लिया . फिर मैंने कसम खाई कि अब ख़ुशी के मौक़े पर सच न बोला जाये ।
पूरी घटना से मैंने यही सिखा कि कोई वस्तु अपने आकार और सौन्दर्य के कारण नही, अपने गुण के कारण महत्त्व रखती है . कोई व्यक्ति किसी वस्तु को उसमें व्याप्त गुणों के कारण ही अपनाता या महत्त्व देता है . अपनी उपयोगिता के कारण ही देखने में असुंदर वस्तुएं भी लोगों को आकृष्ट करती है . वस्तु की उपयोगिता से व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति होती है. आवश्यकता की पूर्ति से उसे संतुष्टि मिलती है, संतुष्टि के कारण ही व्यक्ति उसकी और आकृष्ट होता है, उसे अपना बनाने की चेष्टा करता है ।
आनंद की प्राप्ति मानव जीवन की सर्वोपरि आवश्यकता है . इसकी पूर्ति के लिए मानव बिभिन्न भौतिक सुखों के पीछे भटकता रहता है, किन्तु उसे संतोष नही मिलता . भौतिक सुख बस्तुत: आनंद रहित है, आनंद शाश्वत और स्थाई होता है , आनंद में भटकाव की स्थिति नही होती , ऐसा महापुरषों के द्वारा कहा गया है , काश यह बात सबके समझ में आ जाती .....!

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