शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

हर तरफ़ संत्रास अब मैं क्या करूं आशा ?

छल रहा विश्वास अब मैं क्या करूं आशा ?
हर तरफ़ संत्रास अब मैं क्या करूं आशा ?
दर्द का है साज, कोई अब तरन्नुम दे-
कह रहा मधुमास अब मैं क्या करूं आशा ?

जिस्म के सौदे में हैं मशगूल पंडित जी -

छोड़कर संन्यास , अब मैं क्या करूं आशा ?

तिनका-तिनका जोड़कर मैंने इमारत है गढी-

पर मिला बनवास, अब मैं क्या करूं आशा ?

आम-जन के बीच देकर क्षेत्रवादी टिप्पणी वह -

बन गया है ख़ास , अब मैं क्या करूं आशा ?

काव्य में खण्डित हुई है छंद की गरिमा -

गीत का उपहास , अब मैं क्या करूं आशा ?

()रवीन्द्र प्रभात

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2008

अनुप्रास हुआ मन-मन्दिर , जीवन मधुमास हुआ !



अनुप्रास हुआ मन-मन्दिर , जीवन मधुमास हुआ !

भ्रमरों के ओठों पे वासंती गीत , मनमीत हुए सरसों में -

मादक एहसास हुआ .......अनुप्रास हुआ ...!!

प्रीति की ये डोर बांधे , पोर-पोर साँसों को ,

सुबह में शीत जैसे चुम्बन ले घासों को ,

आम्र की लताओं पे बैठी-बैठी कोयलिया -

गीत बांचे गोविन्दम , ओढ़ के कुहासों को ।

नगमों की वारिश में भीगा है बदन -

मन हुआ कबीर तन औचक बिंदास हुआ .....अनुप्रास हुआ ......!!

झूम करके साँवरी घटा चली है रातों में ,

चूम करके चाँद को रिझा रही है बातों में,

सुरमई सी आंखों में श्याम की छवि आयी -

बावरी हुयी मीरा, खो गयी है यादों में ।

बांसों की झुरमुट से निकला है स्वर -

डर गयी है सुर-पंचम कैसा उपहास हुआ ......अनुप्रास हुआ ...!!

झमक - झिमिर , तिपिर -तिपिर होने लगा छप्पर से ,

धमक-धिमिर , धिपिर-धिपिर बजने लगा अम्बर से ,

देहरी के भीतर से झाँक रही दुल्हनियाँ -

साजन की यादों में खोई हुई अन्दर से ।

आंखों में सपने हैं, ह्रदय में हहास-

साँसों में अनायास बृज का मधुर वास हुआ .....अनुप्रास हुआ ....!!

() रवीन्द्र प्रभात

(कॉपी राइट सुरक्षित )

यही वह मौसम रहा होगा जब विश्वामित्र का आसन डोला होगा !

रामभरोसे की कल की बतकही से नाराज गजोधर ने आज चौपाल में घोषणा की कि कोई भी व्यक्ति विवाद वाला विषय नही उठाएगा , धरीछान ने अपनी सहमति जतायी और बारी-बारी से बटेसर,असेसर और बालेसर ने भी हाँ में हाँ मिला दिया ।

सर्दी ज्यादा है , इसलिए चौपाल लगी है राम भरोसे की मरई में, चुहुल भी खूबी है आज . चौबे जी को दिल्लगी सूझी, मचरै मचर करे जुतवा उतारिके बैठ गए दरी बिछाके और कहैं कि- इसबार सर्दी में बसंत की मिलावट हो गयी है. रात में खुबई सर्दी और दिन में बासंती बयार. अब रसे-रसे चुअत महुआ मुंह के लगाबे , राज ठाकरे के जैसन कहीं बीमार पड़ गए तब ? गजोधर ने अपनी चुप्पी तोडी और लगाया ठहाका......ई का कहत हौ चौबे जी , अब मौसम में भी मिलावट होई जात है, तब त मान ही के पडी कि घोर कलियुग आयी गबा है महाराज !

लेकिन ई बसंत है बड़ी काम की चीज , इधर ठाकरे बीमार पड़ी गए और उधर चिदंबरम ब्याज घटाके करने की तैयारी में है मायाबी मिलाबट बजट के माध्यम से । कैसन मिलावट ? अरे झूठ में सच की , इतना भी नही समझते ?

बोले चौबे जी - देख गोविंदा जैसन दांत मत निपोड़ , हंस मत .....हम सच बोल रहे हैं, झूठ नाही बोल रहे ।

अचानक टपक पड़े बीच बहस में अपने इंटरनेट बाबा , चार-चार सुंदरियों के मध्य बैठकर सुखों का परित्याग करने और शांति से रहने की सीख देने वाले इंटरनेट बाबा गुस्से में हैं आज. कह रहे हैं कि बहुत बाबा लोग पैदा हो गए हैं लोकल में. रेट बिगाड़ के रख दिए हैं पट्ठे ने . पब्लिक से पैसा ऐसा झड़बा लेता है कि हमरे प्रवचन के लिए कुछ भी नही बचता . एकदम ड्राई हो गया है , पिछले एक महीने से सरवर भी परेशान करके रखा है, ऐसे में का करें चले आए ब्लोगर के चौपाल में अपनी व्यथा-कथा लेकर ।

गजोधर ने कहा कि ठीक किए बाबा चले आए , यहाँ भी आप ही के टेस्ट की बात चल रही है . चलो तब तो ठीक समय पर आयें हैं हम। इतना सुनके फ़िर मुखर हो गए इंटरनेट बाबा , कहने लगे -समय बहुत ख़राब चल रहा है बचवा , हर जगह मिलावट का बोलबाला है। धरम-करम में भी आज़कल खुबई मिलावट हो रहा है।
उ कैसे बाबा ?
अब देखो मुम्बई की नाचने वाली कोलकाता के कीर्तन वालों के साथ हो जाती है, कहानी के बीच-बीच में सिचुएसन क्रिएट करके पैसा ऐंठ ती है . सत्यवान- सावित्री प्रसंग में यमराज को खुश करने के नाम पर पाँच सौ इक्यावन तक रखवा लेती है.....घोर कलियुग आ गया है धरिछन , घोर कलियुग आ गया है ।
इतना सुनते ही गर्व से सीना फुलाके बोला गुलतेनवा , कि बाबा ! सबसे टाईट पोजीसन हमरे उत्तर प्रदेश माँ है, माया बहन खूब विकास कर रही है... बाबा बोले कि- अपना कि प्रदेश का ?
अपना भी और प्रदेश का भी , यानी " सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया "


हाँ , ठीक कह रहे हो गुलतेनवा ! सबका विकास हो रहा है तुम्हारे प्रदेश में ....देखो एक बिजली के बल्ब बदलने के लिए तुम्हारे प्रदेश में बाईस लोगों की जरूरत पड़ती है , पूछो कैसे ?
कैसे बाबा ?
उ ऐसे कि दस की कमेटी बनती है, पाँच की सब कमेटी, तीन की सुपरवैजरी टीम, दो सीढी पकड़ते हैं , एक बल्ब पकड़ता है और एक रिपोर्ट लिखता है....हुए न बाईस सरकारी कर्मचारी ....इसको कहते हैं विकास । अपने साथ-साथ सबका भला , सबका विकास एक साथ । का समझे धरिछान ? समझ गया बाबा , सब समझ गया , विकास का मतलब भी समझ गया ......!
विषय से हटकर बात करते देख गजोधर झुंझलाया , बोला , कि आए हरी भजन को ओटन लगे कपास .....अरे इस मौसम पर आपकी क्या टिप्पणी है बाबा ?
देखो गजोधर इस मौसम में बहुत कशिश है , अगर कशिश नही होती तो "उड़न तस्तरी" फ़िर से तरोताजा होकर अपने ब्लॉग पर कैसे लौटता ?
कुछ और बताईये बाबा इस मौसम के बारे में ....!
देखो गजोधर , जब भी इस मौसम की चर्चा होती है शाहरूख की तरह मुझे भी कुछ कुछ होने लगता है....!
क्या होने लगता है बाबा ?
" ॐ शांति ॐ " होने लगता है .
ॐ शांति ॐ का क्या मतलब है बाबा?


देखो जब बसंत का आगमन होता है तो ठूंठ बरगद भी हरिया जाता है , चम्पा,टेशू और अमलतास के चहरे पर लालिमा चढ़ जाती है....और तुमको एक राज की बात बताएं ?
हाँ-हाँ बताइये बाबा !
मेरे समझ से यही वह मौसम रहा होगा जब मेनका को देखकर विश्वामित्र का आसन डोला होगा ....! यही है परम सुख यानी " ॐ शांति ॐ " !
इंटरनेट बाबा की जय जयकार के साथ चौपाल अगली तिथि तक के लिए स्थगित कर दी गयी , इस सूचना के साथ कि " परिकल्पना" पर कल एक बसंत गीत पोस्ट किए जायेंगे !

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2008

वो शख्स बहुत पिछडे हुए गाँव का होगा , इस दौर में देखिए सच बोल रहा है !

"सारथी " ने हिन्दी के ब्लोग का मूल्यांकन करने की एक नई परम्परा की शुरुआत करने की घोषणा पिछले दिनों की और इसी कड़ी में उन्होने हिन्दी के श्रेष्ठ चिट्ठे का चुनाव भी कर डाला , प्रस्तुत है उनके इस श्रेष्ठ मूल्यांकन की व्यंग्य परक समीक्षा -

कल कुछ ब्लोगर भाइयों की चौपाल लगी थी , गजोधर ने तफरी लेते हुए कहा कि - हमरे एक ब्लोगर मित्र फोनवा पर अइसन बतकही किये कि पूछो मत धरीछन भाई, उ कहै कि ई पूरी दुनिया में अपने गुरु जी को एकै ब्लोगरवा दिखाई दिया का ? कवन गुरु जी गजोधर ? अरे वही " जे सी फीलिप शास्त्री " कहत रहें कि " ज्ञान दत्त पांडे " से बढिया ब्लोगर कोई है हीं नहीं !

त एह में तोहके का बात का कष्ट है गजोधर ? बहुत बड़ा कष्ट है , नाही समझोगे ! फिर भी बताओ तो ? देखो, जब सच बोलना ही था , तो घुमा-फिराके बोलते, सीधे-सीधे सच बोलने की का जरूरत थी ? धरिछन थोडा सकपकाया और इस शेर के साथ गजोधर की बोलती बंद करने की कोशिश की,कि-
" वो शख्स बहुत पिछडे हुए गाँव का होगा, इस दौर में देखिए सच बोल रहा है !"

सबकी अपनी-अपनी समस्या है , अपने दु:ख से व्यक्ति दु:खी नही है, वल्कि दूसरों के सुख से दु:खी है ! तभी कूद पडा दोनो की बतकही में अपना राम भरोसे , कहने लगा- जानते हो गजोधर भैया ! इस संदर्भ में अकवर और बीरबल का एक किस्सा बहुत मशहूर है ।
गजोधर सकपकाया और टेढीया के बोला कि कवन किस्सा के बात करत हाउ राम भरोसे , ज़रा हमके भी सुनाओ तो जाने ! राम भरोसे पालथी मारके बैठा और लगा अकवर बीरबल का किस्सा सुनाने ।

अकवर से एक दिन बिरबल बोले कि साहब हम आपको अल्लाह मियाँ से मिलावायेंगे ! अकवर खुश हुए उसीप्रकार जैसे शान फिलिम में मोगैम्बो खुश हुआ था ! तभी गजोधर उसे बोलने से रोका, ई बताओ राम भरोसे कि तुम अकवर की तुलना मोगैम्बो से क्यों करते हो ? इसीलिए गजोधर भाई कि तुम ज्ञानदत्त जी की तुलना अन्यछुटभैये ब्लोगर से करते हो ! बेचारे गजोधर की बोलती बंद हो गयी । झुंझलाते हुए कहा- ठीक है किस्सा आगे बढाओ ! राम भरोसे ने किस्सा आगे बढाया -

अकवर मियाँ लगे अगोरने - कब दिन आयेगा ! छटपटाके छुछमाछर हो रहे थे . एक दिन बिरबल एक मोची से एक पैर का नया जूता मांगकर ले आये कि दो-तीन दिन में लौटादेंगे. मोची ने सोचा कि ठीक है जब ग्राहक आयेगा तो माँग लायेंगे। उधर बिरबल रात में खाना-पीना खाके सो गया और जूता को विस्तार के पास रख लिया सबैरबैं उठिके घर में सीकड़-धड़ के दरवाजा बंद कर लिए और घरवा में भोंकर-भोंकरके रोने लगे ! घर वाले दरवाजा खोलने को कहते तो वे और जोर से रोने लगते ! बहुत समय बीत गया । उधर जब अकवर का दरवार लगा तो बिरबल गायब । खोजहरिया हुई तो असली किस्सा पता लगा !

अकवर गए और दरवाजा खोलवाने लगे ! कैसों-कैसों दरवाजा खुला , अकवर ने देखा कि
बिरबल एक पैर का जूता सीने से लगाए रो रहे हैं! अकवर ने पूछा- कि क्या माजरा है जनाब ? नाक सुनकते बिरबल बोले- रात अल्लाह मियाँ आये थे , हमने कहा बादशाह सलामत को दर्शन दे दीजिए तो लगे भागने ! हम भी कसके पैर छान लिए , उ तडाके भागे ! ओही में उनके एक पैर का जूता हमरे हाँथ में रह गया ! अकवर ने सबके सामने अल्लाह मियाँ का जूता अपने हाँथ में लिया और लगा चूमने ! फिर उस जूते को बादशाह सलामत अपने दरबार में ले गए, पूरी जनता बारी-बारी से आती और जूते को चूमकर चली जाती । जब ग्राहक मोची के पास आया तो वह भागते हुए दरवार में दाखिल हुआ । बिरबल से बात की , बिरबल ने सिंहासन से जूता देने में हीलाहवाली करने लगे! जब अकवर ने पूछा तो बिरबल ने सच्ची कथा बता दी !

बेचारा गजोधर परेशान, कि राम भरोसे ने बिना सिर-पैर की कहानी सुना दी, इस कहानी का " ज्ञानदत्त पांडे के मानसिक हलचल " से क्या लेना-देना ? राम भरोसे को गुस्सा आ गया और कहा, कि- गजोधर भाई, जैसे तुमने इस किस्से को नही समझा उसीप्रकार " सारथी " की समीक्षा को भी नही समझ पाए ! कहने का मतलब यह है कि ज्ञानदत्त जी के पास है बिरबल की तरह ही अनुभवों का पिटारा जो अन्य ब्लोगर के पास नही है और इसी कारण से उन्हें शास्त्री जी ने " श्रेष्ठ ब्लोगर " कहा है , समझे गजोधर भाई ?

यह सुनकर बेचारे गजोधर की बोलती बंद हो गयी ....! चौपाल में बैठे एक ब्लोगर ने कहा कि तुम ठीक कहत हाउ राम खेलावन , हम तोहरे बतकही से संतुष्ट हैं, लेकिन अब जब बसंत का आगमन हो ही गया है तो क्यों न बसंत की चर्चा की जाये ? सबने एक स्वर से कहा - कल होगी परिकल्पना पर बसंत की चर्चा ..........इसप्रकार चौपाल कल तक के लिए स्थगित कर दी गयी ...!

बुधवार, 6 फ़रवरी 2008

कल मैंने राज ठाकरे को पानी पूरी खाते देखा !


कल मैंने राज ठाकरे को पानी पूरी खाते देखा ,जी हाँ वही पानी-पूरी जिसे कहीं गुपचुप , कहीं गोलगप्पे तो कहीं पानी बताशे कहे जाते हैं , यानी कि जैसा देश वैसा वेश । स्थान था मुम्बई स्थित चर्च गेट की खाव गली, जी हाँ वही खाव गली जो चर्च गेट में एक कर्वे रोड के पास है । खिलाने वाला वेशक बिहार का था और साफ -सफाई के कार्यों में जुटे थे पूर्वांचल के लोग । मैंने आश्चर्य भरी निगाहें डालते हुए पूछा - " राज भाई, यह क्या , बिहारियों के हाथ से पानी पूरी खा रहे हो ? " उन्होने मुस्कुराते हुए कहा कि अब सारे ठेले वाले बिहार और यू पी के हैं, तो कहाँ-कहाँ न खाया जाये । " हां आपकी बात एकदम सही है राज भाई , मगर सच तो यह है कि मुम्बई की पहचान इन्ही ठेलों से है । उन्होने चौंकते हुए कहा कि "यह कैसे ?" मैंने कहा कि भाई साहब शायद जेनरल नॉलेज में कमजोर हैं आप, नही तो ऐसी बातें कभी नही करते . राज ठाकरे ने झेंपते हुए कहा कि -" तुम पूर्वांचल वालों की जेनरल नॉलेज बहुत अच्छी है तो बताओ कि कैसे इन्ही ठेलों से बनी है पहचान मुम्बई की ?"
राज ठाकरे के द्वारा मेरे जेनरल नॉलेज की तारीफ सुनकर दूर खडा मोगैम्बो मन ही मन खुश हो रहा था . मैंने सोचा कि यदि राज भाई को ऐसे सीधे-सीधे कुछ भी कहा जाये तो ये समझेंगे नही, क्योंकि भैंस के आगे बीन बजाने से कम कठिन न होगा इन्हें समझाना . सो मैंने तथ्य आंकडों को जुटाया और राज भाई को समझाया - " देखो राज भाई , मुम्बई ही विश्व का एक ऐसा एकलौता शहर है जहाँ खुले आसमान के निचे बनी सबसे अधिक रसोइयाँ हैं. मुम्बई की गलियों में ये पटरी दूकानदार अनन्नास, बड़ा पावतक वह सब कुछ बेचते हैं जो रोज एक करोड़ अस्सी लाख लोगों की भूख शांत करता है , इन लाखों लोगों में से अधिकांश वे हैं जो भारतीय उप महाद्वीप के बिभिन्न भागों से आये हैं।
राज भाई चौंक गए एकबारगी और मेरी ओर मुखातिव होते हुए पूछा - " अरे इतने काम की चीज हैं ये बिहार- यूपी वाले ? मैंने कहा - " वेशक!"
हुआ यों कि राज ठाकरे के विवादास्पद वयान के बाद , पूरी मीडिया में यही चर्चा रही कि मुम्बई में ये हो रहा है , मुम्बई में वो हो रहा है . जब भी टी वी खोले हर चैनल पर वही ढाक के तीन पात ......सुनते- सुनते मेरे मानस- पटल पर राज ठाकरे की तस्वीर बनती चली गयी और पूर्वांचल की संस्कृति पर उनके द्वारा की गयी टिप्पणी मेरे मन मस्तिस्क में लगातार उमड़ते-घुमड़ते रहे और इसी बीच मुझे नींद आ गयी . और ये सारी घटनाएँ नींद में ही घटती चली गयी .


वो तो सपने की बात थी , मगर सच भी यही है कि मुम्बई को विश्व - पटल पर प्रतिष्ठापित करने में जितनी मराठियों की भूमिकाएं हैं उससे कम ग़ैर मराठियों की नही है । आज विश्व - पटल पर आमची मुम्बई शक्ति- सम्पन्न माहानगरों में शुमार होती है , तो उसके पीछे छुपा है राज, राज ठाकरे नही एक ऐसा राज जिसमें समाहित है पूरे भारतीयों की निष्ठा , जी हाँ एक ऐसी व्यावसायिक और सामाजिक-सांस्कृतिक निष्ठा जिसे प्राप्त किया है मिल-जुल कर मुम्बई के निवासियों ने , न कि केवल मराठियों ने . वह निष्ठा है लगातार कार्य करने की क्षमता विकसित कर मुम्बई को सबसे ज्यादा रेवनयु देने वाले शहर के रुप में पहचान दिलाने की . राज ठाकरे के वयान को सुनकर टी वी सेट के पास बैठी मेरी विटिया के मुँह से अचानक फूट पड़े ये शब्द - " पापा! बन्दर क्या जाने अदरख का स्वाद ? "
एक वार महाराष्ट्र के संदर्भ में व्याख्यान देते हुए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि - " सभ्यता क्या होती है? संगठन क्या होता है? और समृद्धि क्या होती है? जानना हो तो हमारे महाराष्ट्र में आ जाओ .....! " आज जो कुछ भी घटित हो रहा है उसे देखकर क्या हम दाबे के साथ कह सकते हैं कि यही है बाल गंगाधर तिलक का महाराष्ट्र ?

जी हाँ ! इतिहास के पन्नों में इस क्षेत्र को जिस रुप में महसूस किया जाता है वह इसप्रकार है -
एक ऐसा प्रदेश, जहाँ की मिट्टी में-
घुली-मिली है साहसिकता, व्यवहार में भाषा की मिठास, सादगी , संकल्प और ज्ञान , जिसके बारे में कहा जाता है , कि इस मिट्टी में वह शक्ति है जिसमें प्रतिभाएं बगैर सहारे के भी अपना विस्तार कर लेती हैं. नक्शे पर कहीं भी छूपा दीजिए अपनी महक और धड़कन से अपना पता अवश्य बता देती है ।
मैं तो यही कहूंगा कि राज भाई , मुम्बई की पहचान खट्टी-मीठी भेल पूरी से होती है , उस खट्टे-मीठे प्यार को बचाकर रखो , ऐसे उल्टे-सीधे वयानो से किसी का कुछ भी भला नही होने वाला .क्योंकि आमची मुम्बई के हैं अलग-अलग स्वाद ! भेल-पूरी, सेव-पूरी, पानी-पूरी, दही-पूरी, पाव-भाजी , बड़ा-पाव, उसल-पाव,मिसाल-पाव के साथ-साथ बडे मियाँ की मुगलई डिश, पारसी खाना, अन्ना का इडली दोशा और कोंकणी मछली फ्राई की खुशबू बची रहने दो राज भाई , सबका भला होगा तुम्हारा भी, हमारा भी ......और मुम्बई का भी !
मुस्कुराइये कि आप मुम्बई में हैं ......! एक ऐसे शहर में जो देता है भारतीय अर्थ व्यवस्था को सबसे ज्यादा रेवन्यू और इस उपलब्धि में मराठियों के साथ-साथ सहभागी है ग़ैर मराठी भी , इस सच्चाई को आप कभी भी नजर अंदाज नही कर सकते । इसलिए आईये प्यार का तड़का लगाते हैं और सारे गिले-शिकवे भूल कर कहते हैं - "आमची मुम्बई "
 
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