कल मैंने राज ठाकरे को पानी पूरी खाते देखा ,जी हाँ वही पानी-पूरी जिसे कहीं गुपचुप , कहीं गोलगप्पे तो कहीं पानी बताशे कहे जाते हैं , यानी कि जैसा देश वैसा वेश । स्थान था मुम्बई स्थित चर्च गेट की खाव गली, जी हाँ वही खाव गली जो चर्च गेट में एक कर्वे रोड के पास है । खिलाने वाला वेशक बिहार का था और साफ -सफाई के कार्यों में जुटे थे पूर्वांचल के लोग । मैंने आश्चर्य भरी निगाहें डालते हुए पूछा - " राज भाई, यह क्या , बिहारियों के हाथ से पानी पूरी खा रहे हो ? " उन्होने मुस्कुराते हुए कहा कि अब सारे ठेले वाले बिहार और यू पी के हैं, तो कहाँ-कहाँ न खाया जाये । " हां आपकी बात एकदम सही है राज भाई , मगर सच तो यह है कि मुम्बई की पहचान इन्ही ठेलों से है । उन्होने चौंकते हुए कहा कि "यह कैसे ?" मैंने कहा कि भाई साहब शायद जेनरल नॉलेज में कमजोर हैं आप, नही तो ऐसी बातें कभी नही करते . राज ठाकरे ने झेंपते हुए कहा कि -" तुम पूर्वांचल वालों की जेनरल नॉलेज बहुत अच्छी है तो बताओ कि कैसे इन्ही ठेलों से बनी है पहचान मुम्बई की ?"
राज ठाकरे के द्वारा मेरे जेनरल नॉलेज की तारीफ सुनकर दूर खडा मोगैम्बो मन ही मन खुश हो रहा था . मैंने सोचा कि यदि राज भाई को ऐसे सीधे-सीधे कुछ भी कहा जाये तो ये समझेंगे नही, क्योंकि भैंस के आगे बीन बजाने से कम कठिन न होगा इन्हें समझाना . सो मैंने तथ्य आंकडों को जुटाया और राज भाई को समझाया - " देखो राज भाई , मुम्बई ही विश्व का एक ऐसा एकलौता शहर है जहाँ खुले आसमान के निचे बनी सबसे अधिक रसोइयाँ हैं. मुम्बई की गलियों में ये पटरी दूकानदार अनन्नास, बड़ा पावतक वह सब कुछ बेचते हैं जो रोज एक करोड़ अस्सी लाख लोगों की भूख शांत करता है , इन लाखों लोगों में से अधिकांश वे हैं जो भारतीय उप महाद्वीप के बिभिन्न भागों से आये हैं।
राज भाई चौंक गए एकबारगी और मेरी ओर मुखातिव होते हुए पूछा - " अरे इतने काम की चीज हैं ये बिहार- यूपी वाले ? मैंने कहा - " वेशक!"
हुआ यों कि राज ठाकरे के विवादास्पद वयान के बाद , पूरी मीडिया में यही चर्चा रही कि मुम्बई में ये हो रहा है , मुम्बई में वो हो रहा है . जब भी टी वी खोले हर चैनल पर वही ढाक के तीन पात ......सुनते- सुनते मेरे मानस- पटल पर राज ठाकरे की तस्वीर बनती चली गयी और पूर्वांचल की संस्कृति पर उनके द्वारा की गयी टिप्पणी मेरे मन मस्तिस्क में लगातार उमड़ते-घुमड़ते रहे और इसी बीच मुझे नींद आ गयी . और ये सारी घटनाएँ नींद में ही घटती चली गयी .
वो तो सपने की बात थी , मगर सच भी यही है कि मुम्बई को विश्व - पटल पर प्रतिष्ठापित करने में जितनी मराठियों की भूमिकाएं हैं उससे कम ग़ैर मराठियों की नही है । आज विश्व - पटल पर आमची मुम्बई शक्ति- सम्पन्न माहानगरों में शुमार होती है , तो उसके पीछे छुपा है राज, राज ठाकरे नही एक ऐसा राज जिसमें समाहित है पूरे भारतीयों की निष्ठा , जी हाँ एक ऐसी व्यावसायिक और सामाजिक-सांस्कृतिक निष्ठा जिसे प्राप्त किया है मिल-जुल कर मुम्बई के निवासियों ने , न कि केवल मराठियों ने . वह निष्ठा है लगातार कार्य करने की क्षमता विकसित कर मुम्बई को सबसे ज्यादा रेवनयु देने वाले शहर के रुप में पहचान दिलाने की . राज ठाकरे के वयान को सुनकर टी वी सेट के पास बैठी मेरी विटिया के मुँह से अचानक फूट पड़े ये शब्द - " पापा! बन्दर क्या जाने अदरख का स्वाद ? "
एक वार महाराष्ट्र के संदर्भ में व्याख्यान देते हुए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि - " सभ्यता क्या होती है? संगठन क्या होता है? और समृद्धि क्या होती है? जानना हो तो हमारे महाराष्ट्र में आ जाओ .....! " आज जो कुछ भी घटित हो रहा है उसे देखकर क्या हम दाबे के साथ कह सकते हैं कि यही है बाल गंगाधर तिलक का महाराष्ट्र ?
जी हाँ ! इतिहास के पन्नों में इस क्षेत्र को जिस रुप में महसूस किया जाता है वह इसप्रकार है -
एक ऐसा प्रदेश, जहाँ की मिट्टी में-
घुली-मिली है साहसिकता, व्यवहार में भाषा की मिठास, सादगी , संकल्प और ज्ञान , जिसके बारे में कहा जाता है , कि इस मिट्टी में वह शक्ति है जिसमें प्रतिभाएं बगैर सहारे के भी अपना विस्तार कर लेती हैं. नक्शे पर कहीं भी छूपा दीजिए अपनी महक और धड़कन से अपना पता अवश्य बता देती है ।
मैं तो यही कहूंगा कि राज भाई , मुम्बई की पहचान खट्टी-मीठी भेल पूरी से होती है , उस खट्टे-मीठे प्यार को बचाकर रखो , ऐसे उल्टे-सीधे वयानो से किसी का कुछ भी भला नही होने वाला .क्योंकि आमची मुम्बई के हैं अलग-अलग स्वाद ! भेल-पूरी, सेव-पूरी, पानी-पूरी, दही-पूरी, पाव-भाजी , बड़ा-पाव, उसल-पाव,मिसाल-पाव के साथ-साथ बडे मियाँ की मुगलई डिश, पारसी खाना, अन्ना का इडली दोशा और कोंकणी मछली फ्राई की खुशबू बची रहने दो राज भाई , सबका भला होगा तुम्हारा भी, हमारा भी ......और मुम्बई का भी !
मुस्कुराइये कि आप मुम्बई में हैं ......! एक ऐसे शहर में जो देता है भारतीय अर्थ व्यवस्था को सबसे ज्यादा रेवन्यू और इस उपलब्धि में मराठियों के साथ-साथ सहभागी है ग़ैर मराठी भी , इस सच्चाई को आप कभी भी नजर अंदाज नही कर सकते । इसलिए आईये प्यार का तड़का लगाते हैं और सारे गिले-शिकवे भूल कर कहते हैं - "आमची मुम्बई " ।