शुक्रवार, 4 अप्रैल 2008

तंग चादर है जिसकी वही , सो रहा तानकर रात में ....!

फोटो : दैनिक भाष्कर से साभार

हादसे दर -ब - दर रात में ,

आप हैं बेखबर रात में ।

दिन में रिश्वत निगल जो गया -

बन गया नामवर रात में ।

तंग चादर है जिसकी वही-

सो रहा तानकर रात में ।

दूर जाना जरूरी है जा -

हाथ को थामकर रात में ।

हर कदम को उठाना यहाँ -

जानकर-सोचकर रात में।

दिन में नेता बने देवता -

बन गए जानवर रात में ?

घूमती है बला हर जगह -

लौट जा अपने घर रात में ।

राम-रावण में है दोस्ती -

राहजन-राहबर रात में !

बेच करके ईमान-व-धरम -

टूटते जाम पर रात में !

छोड़ करके रूमानी ग़ज़ल-

कुछ कहो देश पर रात में ।

बढ़ना खामोश होकर प्रभात -

रास्ता पुर खतर रात में !

() रवीन्द्र प्रभात



10 comments:

  1. निसंदेह देशबंधु जमीन से जुड़ा अखबार रहा है पहले कभी इस अखबार का परचम मध्यप्रदेश मे लहराया करता था . यह अखबार कभी जबलपुर शहर मे काफी लोकप्रिय था बदलते समय केसाथ इसकी लोकप्रियता मे कमी आई है . साथ ही माननीय कलाम के विचारो से सहमत हूँ कि पाठक की पसंद के अनुसार मैटर प्रकाशित हो साथ ही एक बात कहना चाहता हूँ कि आजकल मीडिया द्वारा हिंसा,अपराध,अंधविश्वास, आदि के समाचार जबरन प्रकाशित किए जा रहे है जो सभी पाठक गण पसंद नही करते है . बहुत सुंदर आलेख के लिए धन्यवाद

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  2. kshama chahata hun galati se apke yahan post ho gaya hai .kripya deshabandhu vala metar apse sambandhit nahi hai ,sanjeet ji ko bhejana tha . apki kavita achchi lagi abhaar

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  3. बहुत दिनो के बात आपके पास आये. फ़िर से आप मन को भाये.अच्छी गजल के लिए बधाई.

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  4. तेज़ और सटीक - यह दो ख़ास अच्छे लगे - "घूमती है बला हर जगह / लौट जा अपने घर रात में" और "राम-रावण में है दोस्ती/ राहजन-राहबर रात में"

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  5. जिसे देखो वही ड्युअल पर्सनालिटी का है। क्या करेंगे आप?!

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  6. बहुत सही है. बिल्कुल निशाने पर.

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  7. बिल्कुल सटीक रचना!!

    १० और ११ को लखनऊ में हूँ यदि बात हो पाये तो अच्छा रहेगा...मेरा नम्बर ९८ २६१ २१४३१

    आपका नम्बर ईमेल करें.

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  8. मानव प्रवृति का बारीकी से चित्रण ...
    वास्तविकता यह है कि मानव में ही दानव भी है.

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