शनिवार, 8 नवंबर 2008

लौटा है शीत जब से गाँव

प्रीति भई बावरी ,


देख घटा सांवरी ,


है धरती पे उसके न पाँव ,


लौटा है शीत जब से गाँव ।




सुरमई उजालों में चुम्बन ले घासों को ,


बेंध रही हौले से गर्म-गर्म साँसों को ,


बहकी है पुरवाई, ले-ले के अंगडाई -


गेहूं की बालियों से छुए कुहासों को ,




चाँद की चांदनी ,


खो गयी रागिनी ,


आयी प्राची से सिंदूरी छाँव ,


लौटा है शीत जबसे गाँव ।




बांसों के झुरमुट से किरणें सजी-संवरी ,


निकली है स्वागत में गाती हुयी ठुमरी,


देहरी के भीतर से झाँक रही दुल्हनियां -


साजन की यादों में खोयी हुयी गहरी ,




शीत की भोर से,


धुप की डोर से ,


सात फेरे लिए हैं अलाव ,


लौटा है शीत जबसे गाँव ।




मौसम की आँखों में महुए सी ताजगी ,


दिखती है खुल करके धुप की नाराजगी ,


गुड की डाली खाके सोया है देर तक -


मतवाला सूरज है अलसाया आज भी ,




गा रही गीत री ,


बांटती प्रीत री ,


बंजारन गली-गली-ठांव ,


लौटा है शीत जबसे गाँव ।

() रवीन्द्र प्रभात


(सर्वाधिकार सुरक्षित )

8 comments:

  1. bahut khubsurat shabdon aur ehsaas sundar badhai

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  2. nazakat nfasaton ke shahar ke logon me itni nazakat hoti hai lekhan me muje to pata na tha.
    bahot hi umda lekhan maza aagaya ...

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  3. aap jaise guni logon ka hausala-afjai to preran ke kabil hai .. meri nai ghazal pe aapki upasthi chahta hun agar sambhav ho to...

    जवाब देंहटाएं
  4. मौसम की आँखों में महुए सी ताजगी ,



    दिखती है खुल करके धुप की नाराजगी ,



    गुड की डाली खाके सोया है देर तक -



    मतवाला सूरज है अलसाया आज भी ,

    ..................
    Waah ! kya kahun..... adbhud !Adwiteey !

    shbdon me prakriti kee anupan sundarta ko baandhkar, aapne aur bhi adbhut, manohari banakar nayanabhiraam kar diya.
    Sadhuwaad.

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  5. बहुत ही सुन्दर भाई. बेहतरीन. जल्दी ही मुलाकात होने वाली है.

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  6. सुंदर रचना के लिये बधाई स्वीकारें

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  7. कविता अच्छी लगी. कम शब्द.. सुंदर भाव..

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