शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

उसी बापू को मेरा फ़िर नमन आज श्रद्धा का यारों ।

(शहीद दिवस पर विशेष )

जहाँ पे खुशनुमा गुल से सजा हो गुलिस्तां यारों
समझ लेना वही है गांधी का हिन्दुस्तां यारों ।

हमेशा अम्न के ही वास्ते जीने की चाहत में -

बड़े बेचैन दिखते हैं हमारे नौजवां यारों ।

कहीं हिन्दू कहीं मुस्लिम कहीं सिक्खों-इसाई हैं -
गले मिलते हुए गुजरे हमेशा कारवां यारों ।

अदब से सर झुकाकर मिलने की तहजीब हमारी -
जिसे झुककर करे सलाम धरती-आसमां यारों ।

शराफत से रहे दुश्मन बहुत सम्मान देते हम-
संभल जाते अगर हो जाए दुश्मन मेहरबां यारों ।

हम शायरी से दर्दमंदों की दवा करते हैं यार -
हमारे गीत-ग़ज़लों के बहुत हैं कद्र दां यारों ।

चमन को सींचने में जिसने जीवन होम कर डाला -
उसी बापू को मेरा फ़िर नमन आज श्रद्धा का  यारों ।
() रवीन्द्र प्रभात

12 comments:

  1. साबरमती के संत को

    महात्‍मा गांधी बापू को
    शत शत श्रदधेय नमन

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  2. हमारे बापू समूचे ब्रह्माण्ड के लिए अनुकरणीय हैं , हमें गर्व है की हम गांधी के इस देश में निवास करते हैं . शहीद दिवस पर मेरी भी विनम्र श्रद्धांजली बापू को फ़िर एक बार ........!
    आपकी ग़ज़ल का हर शेर बार-बार पढ़ने को मजबूर करती है , आपका आभार !

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  3. कहीं हिन्दू कहीं मुस्लिम कहीं सिक्खों-इसाई हैं -
    गले मिलते हुए गुजरे हमेशा कारवां यारों । "

    आमीन! बहुत ही सुन्दर रचना .

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  4. ग़ज़ल का हर शेर दिल में उतर गया .....बधाईयाँ !

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  5. वाह.. अच्छी ग़ज़ल है.. प्रभात जी, बधाई...

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  6. अदब से सर झुकाकर मिलने की तहजीव मेरी है-
    जिसे झुककर करे सलाम धरती-आसमां यारों ।

    बहुत खूब लिखा है आपने ..

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  7. एक सार्थक रचना बापू के बहाने , आभार !

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  8. बापू पर लौटना चाहिये भारत को।

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  9. बापू को हमारी भी श्रधांजलि...........
    आपकी ग़ज़ल का हर शेर बोलता हुवा है........तराशा हुवा हीरा है

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