मंगलवार, 10 मार्च 2009

जो बांहों में भर ले पगले उसका ही मधुमास ....!

व्यस्तताओं के कारण कई दिनों के बाद आज लौटा हूँ परिकल्पना पर । इस बार मैंने फागुन पर कुछ भी नही लिखा ...न कोई कविता ...न कोई गीत ....न कोई ग़ज़ल .....! अब चूँकि फागुन जाने को है और परिकल्पना पर फागुन की चर्चा न हो तो बेमानी होगी, इसलिए मैंने सोचा कि आज अतीत के आईनों में झाँक कर फागुन को देखने की कोशिश की जाए ।
आईये देखते हैं हिन्दी साहित्य में फागुन की गंध - शुरुआत करते हैं फणीश्वर नाथ रेणु से , हिन्दी साहित्य को अमर उपन्यास देने वाले फणीश्वर नाथ रेणु के बहुचर्चित आंचलिक उपन्यास "मैला आँचल " में फाग गीत अथवा ऋतुगीत के नाम से गाये जाने वाले लोक गीतों का बड़ा ही मार्मिक व् सटीक उपयोग हुआ है, जिसमें से एक है कान्हा के रंगीले मोहक मिजाज का मोहमय वर्णन , जो इस प्रकार है -
"अरे बहियाँ पकडि झकझोरे श्याम रे
फूटल रेसम जोड़ी चूडी
मसुकी गयी चोली भिंगावल साडी
आँचल उडि जाए हो
ऐसी होरी मचायो श्याम रे ....!"

मैला आँचल में एक पात्र है फुलिया जिसने रमजू की स्त्री के आँगन में खलासी जी से भेंट करके कहा था कि "इस साल होली नैहर में ही मनाने दो " मन की मस्ती भरी इस इच्छा को गीत के रूप में इस प्रकार उडेला गया है -
"नयना मिलानी करी ले रे सईयाँ
नयना मिलानी करी ले
अब की बेर हम नैहर रहिबो
जो दिल चाहे सो करी ले ......!"

आईये एक ऐसे कवि की चर्चा करते हैं जिन्होंने हिन्दी साहित्य को गीत विधा का नया रूप ही नही दिया अपितु गीत के माध्यम से हिन्दी साहित्य को नया आयाम भी दिया , नाम है गोपाल सिंह नेपाली जिन्होंने होली पर अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार दी है -
" बरस-बरस पर आती होली,
रंगों का त्यौहार अनूठा
चुनरी इधर, उधर पिचकारी,
गाल-भाल पर कुमकुम फूटा
लाल-लाल बन जाते काले ,
गोरी सूरत पीली-नीली ,
मेरा देश बड़ा गर्वीला,
रीति-रसम-ऋतु रंग-रगीली ,
नीले नभ पर बादल काले ,
हरियाली में सरसों पीली !"

यह गीत उन्होंने वर्ष १९५७ में लिखी , जो आज भी प्रासंगिक है । कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने फागुन का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है -
"सखि, बसंत आया ।
भरा हर्ष बन के मन ,नवोत्कर्ष छाया ।
किसलय-वसना नव-वय लतिका
मिली मधुर प्रिय -उर तरु पतिका ,
मधुप -वृन्द वंदी पिक-स्वर नभ सरसाया ।
सखि,बसंत आया । "

वहीं डा० हरिवंश राय बच्चन की नज़रों में होली ऐसी है-
"एक बरस में एक बार ही
जगती होली की ज्वाला ,
एक बार ही लगती बाजी,
जलती दीपो की माला,
दुनिया वालों ,किंतु किसी दिन
आ मदिरालय में देखो ,
दिन को होली , रात दिवाली ,
रोज मनाती मधुशाला !"

प्रखर गीतकार गोपाल दास नीरज की नज़रों में बसंत कुछ ऐसा है-
"आज वसंत की रात ,
गमन की बात न करना ।
धूल बिछाए फूल-खिलौना,
बगिया पहने चांदी-सोना,
कलियाँ फेंके जादू-टोना,
महक उठे सब पात,
हवन की बात न करना । "

जबकि इससे अलग हटकर मेरे एक वरिष्ठ मित्र श्री राम दुबे का कहना है , कि-

"अपने हाथों ख़ुद ही लेना , मुट्ठी भर आकाश ,

जो बाहों में भर ले पगले , उसका ही मधुमास ...!"

इस सन्दर्भ में मेरा मानना है, कि -" जीवन रुपी प्रवृतियों के कलश में सामूहिकता का रंग भरना ही होली है ........रंगों का यह निश्छल त्यौहार आप और आपके परिवारजन के स्वस्थ प्रवृतियों का श्रृंगार करे ....आत्मिक शक्तियों का विकास करे .....रखे उल्लासित,उत्साहित और प्रसन्नचित हमेशा .....संचारित करे चेतना में सदिच्छा -सदभाव-सदाचार .....आप सभी के लिए होली मंगलमय हो .....!"

17 comments:

  1. साहित्य की अच्छी खोज की है आपने......होली को ले कर
    शुक्रिया इस जानकारी का
    आपको और आपके परिवार को होली मुबारक

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  2. सर्वप्रथम आपको व परिवार को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाओ..

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  3. वाह रविन्द्र जी वाह...होली पर दिग्गज कवियों की रचनाएँ पढ़वा कर धन्य कर दिया आपने...
    आप को होली की शुभकामनाएं .
    नीरज

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  4. होली की ढेर सारी शुभकामनायें....

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  5. आपको व आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं .

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  6. रविन्द्र जी,आप को होली की शुभकामनाएं .

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  7. sahitya se moti chunke laaye hai aap... bahot khub... aapko tatha aapke pure parivaar ko holi ki dhero badhaaeeyaan aur shubhkaamanaayen...


    arsh

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  8. हिन्दी के मधुर गीतों के सर्जकों का उल्लेख और उनके गीतों की बानगी ने मन मोह लिया । धन्यवाद और होली की शुभकामनायें ।

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  9. आपकी ये पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी । हिन्दी साहित्य की रचनाओं का समागम बहुत ही सराहनीय है। होली की शुभ कामना

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  10. Waah ! Bahut sundar baat kahi aapne...

    Guni jano ka likha padhwane ka aabhaar.

    Aapko sapariwaar holee ki hardik shubhkaamnaye.

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  11. "जो बांहों में भर ले पगले उसका ही मधुमास ....!" सुन्दर!

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  12. बहुत खूब होली की बहुत बहुत बधाई

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  13. आपने लिखा की फाल्गुन जा रहा है, किन्तु जिन महान रचनाकारों की कवितायेँ आपने अपने लेख में परोसी, लगा फाल्गुन जा नाहे रहा बल्कि अपने में हमें भी समां रहा है.

    उत्तम प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

    होली पर हार्दिक शुभकामनाएं.

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