मंगलवार, 28 जुलाई 2009

शर्मा जी के घर आने वाली है मूंछों वाली वहू ...बहूभोज में आप भी आमंत्रित हैं .



हमारे पड़ोस में हैं एक शर्मा जी , पेशे से अध्यापक और वेहद सांस्कारिक व्यक्तित्व । पिछले रविबार को उन्होंने मुझे सपरिवार चाय पर बुलाया । मेरी श्रीमती जी ने कहा मैं तो नही जाऊंगी । मैंने पूछा आख़िर न जाने का क्या कारण है ? उन्होंने कहा हम जब भी उनके यहाँ जाते हैं बिना मतलब की परेशानियों में घिर जाते हैं । उनकी वेबजह परेशानियों में उलझो और आंखों में आंसू लिए घर लौट आओ , मेरी मानिये तो आप भी मत जाईये वहां । मैंने कहा भाग्यवान मैं तो जाऊंगा जरूर , क्योंकि किसी अनुरोध को टालना मेरे संस्कार का हिस्सा नही है । सो मैं अकेले ही चला आया शर्मा जी के पास । मेरे पहुंचते हीं शर्मा जी ने अभिवादन करते हुए कहा जी अहोभाग्य मेरा जो आप मेरे घर पधारे मगर भाभी जी दिखाई नहीं दे रहीं ? मैंने कहा जी वो कुछ अच्छा महसूस नहीं कर रही थी इसलिए नही आ सकीं ......!

कोई बात नही भाई साहब ! अच्छी हवा आ रही है , आईये बरामदे में बैठते हैं । फ़िर चाय की चुस्कियों के साथ शुरू हुयी बातचीत का सिलसिला और जैसे -जैसे यह सिलसिला परवान चढ़ता गया , मुझे मेरी श्रीमती जी की कही बातें आंखों के सामने तैरने लगी । हमलोग बातचीत में मशगूल थे कि अचानक उनका बड़ा सुपुत्र सिद्धार्थ अपने एक दोस्त के साथ घर में प्रविष्ट हुआ .....मैंने पूछा कैसे हो ? अच्छा हूँ अंकल ...!संक्षिप्त सा उत्तर देते हुए वह अपने कमरे में चला गया । उसके कमरे में जाते हीं फूट पड़े शर्मा जी , क्या बोलेगा ये ,कुछ भी अच्छा नही है भाई साहब । पहले तो बच्चों को बिगर कर रख दिया अभिषेक बच्चन और जौन इब्राहम ने दोस्ताना फ़िल्म बनाकर , फ़िर रही सही कसार निकल दी अदालत ने इस दोस्ती यारी को कानूनी जमा पहनाकर .....इतना सुनते ही मिसेज शर्मा आपे से बाहर हो गयीं और कहने लगीं - भाई साहब ! कैसा जमाना आ गया संस्कार भी तो कोई चीज होती है ....!

अब आप ही बताओ .....लड़के को लड़की न खोजनी पड़ेगी और न लड़की को लड़का,कैसा जमाना आ गया राम-राम !कोई भी मिल जाये चलेगा ...अगर भीड़ जाए प्रेम का टांका ....बताओ भैया क्या अब घर मेंमूंछों वाली बहुएं आएँगी ?कन्या क्या कन्या को जीजू जीजू बुलाएंगी? उन्मुक्त गगन के नीचे क्या अब लड़का लड़का को पटायेगा और लड़की लड़की को ? राम-राम कीडे पड़े उस जज के मुंह में जिसने यह फैसला दिया है .....तभी शर्मा जी ने कहा अजी शुभ -शुभ बोलो ....मैं तो उस दिन कि कल्पना करके कांप जाता हूँ जिस दिन परिवार का पूरा स्वरूप ही उलटा-पुल्टा हो जायेगा ......!

मैंने कहा शर्मा जी !हर सिक्के के दो पहलू होते हैं ...कुछ तो सुधार आयेंगे,ये नए बदलाव देश कोजनसँख्या विस्फोट से बचायेंगेशर्मा जी ने कहा- क्या खाक बचायेंगे ...अगली पीढी को मुंह दिखने लायक रहेंगे तब न बचायेंगे जनसंख्या विष्फोट से ।

हँसी-मजाक का यह माहौल अचानक गंभीर हो गया और मैंने एक अध्यापक की आँखों से भारतीय सभ्यता-संस्कृति में चरित्र के गिरते हुए ग्राफ को महसूस कर अन्दर ही अन्दर फूटता चला गया और टूटता चला गया थाप-दर-थाप अनहद ढोल की तरह ....!जब समलैंगिगता का क़ानून आया था तब शायद मैंने इन सब बातों पर गौर नही किया था मगर आज शर्मा जी की बातों से मुझे यह महसूस हुआ कि सचमुच हम दुश्चरित्र के गहरे कोहरे में प्रवेश कर गए हैं । यह दर्द अकेले शर्मा जी का नहीं हम सभी का है । शर्मा जी के यहाँ से लौटने के बाद रात में जैसे ही सोया और आँख लगी , मेरी आँखों के सामने प्रतिविंबितहुआ एक सपना ....उस सपने में एक अखबार ....उस अखबार में एक विज्ञापन और उस विज्ञापन में यह मजमून की शर्मा जी के यहाँ आनेवाली है मूंछों वाली बहू और बहूभोज में आमंत्रित है ....आप-हम और पूरा शहर !

वह सपना मन में उठे आवेग को बार-बार सुलाने का प्रयत्न करता रहा , पर दुर्भाग्य की न वह आवेग ही सो पाया रात भर और न मैं....!

गुरुवार, 2 जुलाई 2009

बक्त आएंगे जिसके वो मर जायेंगे



हर्फ़ में जब तसब्बुर उतर जायेंगे ।

गीत तेरे उसी दिन संवर जायेंगे ।।



अपने दामन में भरने समंदर चलो -

वक़्त साहिल पे सारे गुजर जायेंगे ।।



मन से कोई तरन्नुम अगर छेड़ दो -

ज्वारभाटे दिलों में उत र जायेंगे ।।


खुलकर अकेले में जब भी हंसोगे -

अश्क सारे ग़मों के बिखर जायेंगे !!



अंग में अंग भर के कोई चूम ले -

जिस्म के पोर सारे सिहर जायेंगे ।।



लाख करले हिफाजत मगर ये "प्रभात" -

बक्त आएंगे जिसके वो मर जायेंगे ।।



यह ग़ज़ल माइकल जैक्सन की यादों को समर्पित है ......

() रवीन्द्र प्रभात
 
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