शनिवार, 23 जनवरी 2010

मैंने कभी महाप्राण निराला को नहीं देखा मगर एक व्यक्ति की आँखों में मैंने देखी है निराला की छवि



                                                                                यह छाया चित्र १२ फरवरी १९९४ का है जब मैं पहली बार मिला आचार्य जी से .......




मैंने कभी महाप्राण निराला को नहीं देखा मगर जिस व्यक्ति की आँखों में मैंने देखी  है निराला की छवि . सोचिये जब आप उस व्यक्तित्व से पहली बार मिलेंगे तो आपकी मन:स्थिति क्या होगी ?....और एक ऐसे साहित्यकार के लिए जो संघर्ष कर रहा हो अपनी पहचान बनाने की दिशा में उसके लिए यह अवसर अकल्पनीय नहीं तो और क्या है?

बात उन दिनों की है जब वर्ष-१९९१ में मेरा पहला ग़ज़ल संग्रह "हम सफ़र " प्रकाशित हुआ . नया-नया साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश किया था . लोगों ने काफी सराहा और ग़ज़ल-गीत-कविता लिखने का जूनून बढ़ता गया .मगर मैं तब हतप्रभ रह गया जब वर्ष -१९९३ में हिन्दी साहित्य के शलाका पुरुष आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी ने मेरी चार ग़ज़लों को अपनी मासिक पत्रिका बेला के कवर पृष्ठ पर छापा और ११-१२ फरवरी १९९४ को निराला निकेतन में आयोजित कवि सम्मलेन हेतु आमंत्रित किया  इसी दौरान पहली वार मैं मिला आदरणीय आचार्य जी से और खो गया उनके प्रभामंडल में एकबारगी समारोह के दुसरे दिन आचार्य जी ने अलग से मुझे मिलने हेतु अपने निवास पर बुलाया और अपनी शुभकामनाओं के साथ-साथ अपना आशीर्वचन दिया . उसी समय आचार्य जी का नया-नया खंडकाव्य "राधा" और कौन सुने नगमा ग़ज़ल की किताब आई थी जिसपर विस्तार से चर्चा हुयी . मैंने उन्हें उसी दौरान उन्हें सीतामढ़ी में होने वाले विराट कवि सम्मलेन सह सम्मान समारोह में आने हेतु ससम्मान आमंत्रित किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया ...आदरणीय आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी के उस सान्निध्य को याद करते हुए इस अवसर पर प्रस्तुत है उनकी वसंत पर आधारित उनकी एक अनमोल रचना -   

जब भी वसंत की चर्चा होती है राधा और कृष्ण की चर्चा अवश्य होती है , इस सन्दर्भ में आचार्य जी ने कभी कहा था ,कि - - कृष्ण सबके मन पर चढ़ते हैं। जीवन के यथार्थ में राधा ने कृष्ण को आत्मसात कर लिया। इसीलिए राधा वाले कृष्ण सबको भाते हैं। कृष्ण में तन्मय होने के कारण  राधा ने स्वयं को अलग से जानने की जरूरत ही नहीं समझीं। स्वयं वही हो गयीं, यानी कृष्णमय हो गयी । राजनीति ने कृष्ण को भिन्न-भिन्न रूपों में बांटा, पर एकमात्र प्रणय ने राधा को कृष्णमय बना दिया। प्रेम का यही शाश्वत रूप सही मायनों में वसंत का रूप है ।
                                                    

रंग लगे अंग चम्पई
नई लता के


धड़कन बन तरु को
अपराधिन-सी ताके


फड़क रही थी कोंपल
आँखुओं से ढक के
गुच्छे थे सोए
टहनी से दब, थक के


औचक झकझोर गया
नया था झकोरा,
तन में भी दाग लगे
मन न रहा कोरा


अनचाहा संग शिविर का,
ठंडा पा के
वासन्ती उझक झुकी,
सिमटी सकुचा के !

() () ()
जारी है वसंतोत्सव , मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ...!

12 comments:

  1. आचार्य जी साहित्य के जीवित किवदंती हैं , उनके सान्निध्य का सुख प्राप्त होना बड़ी बात है !

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  2. सचमुच अनमोल है आचार्य जी की रचनाएँ ...आपने तो धीरे-धीरे वसंत की मादकता की ओर हमें मोड़ते जा रहे हैं ...इस वेहतर प्रस्तुति के लिए बधाईयाँ ! आप ऐसे ही लिखते रहें . आपके लेखन में गज़ब का सम्मोहन है ...शुभकामनाएं !

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  3. आदरणीय जानकी वल्लभ शास्त्री जी के बारे में इस पोस्ट के लिए आभार
    वे हिन्दी साहित्यं के एक जीवित किवदंती हैं -
    कला साधना, कुंद छुरी से दिल को रेते जाना
    अटल आंसुओं के सागर में सपने खेते जाना
    जैसी अमर पंक्तियों के प्रणेता ....

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  4. आचार्य जी की चर्चा कर आपने मुझे मेरे शहर की याद दिला दी और याद दिला दी ये पंक्तियां
    ऊपर-ऊपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं
    कहते ऐसे ही जीते हैं जो जीने वाले हैं!

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  5. सचमुच आपका हर कार्य शोधपूर्ण होता ...यह वसंतोत्सव भी शोधपूर्ण ही है ....आचार्य जी की सार्थक चर्चा हेतु आभार !

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  6. आप का शोध प्रणम्य है। लेकिन यहाँ पोस्ट में चित्र पर टेक्स्ट और टेक्स्ट पर टेक्स्ट चढ़ जाता है।

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  7. द्विवेदी जी ने सही कहा ! यह पढ़ने की दिक्कत व्यवधान पैदा करती है ।
    इस महत्वपूर्ण आलेख और संस्मरण को बिना किसी दिक्कत के पढ़ना चाहता हूँ । फीड में भी यही स्थिति है ।

    शास्त्री जी के व्यक्तित्व और कृतित्व दोनॊ की उदात्तता का कायल हूँ । उनकी बहुत-सी कवितायें पढ़ कर मुग्ध होता रहा हूँ, और उनकी प्रतिभा से चमत्कृत ! निराला द्वारा उनको लिखे गये पत्रों का संकलन उनके स्नेह-संबंधों का जीवंत दस्तावेज है, और उस संकलन की भूमिका शायद किसी भी भूमिका से अधिक जीवंत और विद्वतापूर्ण ! राधा खण्डकाव्य के बारे में कुछ कहने की सामर्थ्य नहीं !
    श्रद्धावनत !

    बेला क्या अब भी निकलती है ?

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  8. संस्मरण और कविता दोनों ही बहुत अच्छे लगे.

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  9. आदरणीय आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी को शत शत नमन आप भाग्यवान हैं ऐसे महान लोगों का सानिग्ध्य पा कर शुभकामनायें

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  10. इस संस्मरण और बसंत के रंग में रंगी कविता को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ।

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