सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

कुछ पल का ही शेष है, वासंती त्यौहार

वसंतोत्सव में हम आज लेकर आये हैं श्री पाल भसीन के दोहे !गुड़गांव के जाने माने साहित्यकार पाल भसीन के लिए लेखन अभिव्यक्ति का माध्यम है। वह लेखन को बेचने में विश्वास नहीं रखते। वह कहते हैं कि उन्होंने अपने सुकून तथा शौक के लिए लेखन का काम शुरू किया था। उनके समकालीन दोहों की रचना के मूल में कवि की जीवन के प्रति गंभीरता, जीवन-परिवेश-सम्बद्धता, व्यापकता-भाव तथा कलात्मक सौंदर्य-दृष्टि को देखा जा सकता है।  जीवन के द्वंद्व,  मानसिक उथल-पुथल, परिवेश का प्रभाव,  सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मूल्यपरक चिंताओं, राजनैतिक दुरावस्था, नैतिक मूल्यों के प्रति  उदासीनता, आस्था तथा जीवन-विश्वास के संकट, संवेदनशीलता के क्षरण और जीवनशैली तथा मनुष्य की मानसिकता पर पडने वाले प्रभाव की समग्रता की परख स्पष्ट परिलक्षित होती है पाल भसीन के दोहे में . आईये उनके कुछ वासंती दोहे पर नज़र डालते हैं -

और सुमन कुछ बीन लिए, और निखार सिंगार !
कुछ पल का ही शेष है,           वासंती त्यौहार !!



अधरों पर तो वर्जना, चितवन में स्वीकार!
तालमेल का खेल है, यह अनबूझा प्यार !!



रूप-गंध बिखरा दिए, मुझको देख उदास !
रजनीगन्धा ने किये, संभव सभी प्रयास !!



सुबह गुलाबी दोपहर,       सूर्यमुखी सी शाम !
हुयी कमलिनी रात है, चम्पक सी अभिराम !!



रात धुली सी चांदनी, भोर सुनहरी धुप !
हो जाए यह जिन्दगी, इनके ही अनुरूप !!



कही हवा ने कान में,     अनहोनी कुछ बात!
उस कदली के गाछ के, तभी लरजते पात !!



'अजी छोडिये ज्ञात है,        क्यों उम्दा अनुराग !'
कहा मृगी ने और फिर, गयी छिटक कर भाग !!



दोहे 'पाल भसीन' के, है विदग्ध उच्छवास !
और बढाते बेकली,       और जगाते प्यास !!
() () ()
 
अपनी बात-
इस बार वसंत का कुछ अलग रूप देखने को मिला है .कोहरे के चादर में लिपटा हुआ शीत के आलिंगन में कई दिनों तक आवद्ध रहा वसंत . मौसम का गेरुआ बाना पहने वसंत कभी सारंगी बजाता दिखाई दिया तो कभी सुनहरी धूप  में कोहरे को चूमता हुआ . इस बार के  अनोखे दृश्य को मैंने भी छंद में उतारने का प्रयास किया है जो कुछ इस तरह है -


कंपकपाती शीत संग मधुमास, अच्छा लगा !
सुबह के चाँद का एहसास ,    अच्छा लगा !!


मन-प्राण-कंठों में उतरकर व्यंजनायें-
स्वर को दे गयी सांस,     अच्छा लगा !!


स्पर्श लेकर पोर भर का खो गयी है -
सर्द कोहरे के बिछौने घास,  अच्छा लगा !!


हो गयी  गलबाहियां भ्रमरों का पीले पुष्प से-
साथ में था  दिक् और कंपास, अच्छा लगा !!


बह गयी  है भावनाएं मृदु-सुरभि-समीर में-
मुठ्ठियों में उनके है आकाश, अच्छा लगा !!
() रवीन्द्र प्रभात

10 comments:

  1. और सुमन कुछ बीन लिए, और निखार सिंगार !
    कुछ पल का ही शेष है, वासंती त्यौहार !!nice

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  2. पाल भसीन जी की बसंती रचना प्रस्तुति के लिए आभार .

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  3. गज़ब के दोहे.........

    अभिनव दोहे.......

    मान प्रसन्न हो गया .......

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  4. आह प्रेम के अहसास से लबालब खुबसूरत रचनाएं

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  5. अधरों पर तो वर्जना, चितवन में स्वीकार!
    तालमेल का खेल है, यह अनबूझा प्यार !!प्रेम के एहसास से लबालब ....!

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