बुधवार, 26 मई 2010

ब्लोगोत्सव-२०१० की आखिरी शाम हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक यादगार शाम होने जा रही है !



नमस्कार !

मैं जाकिर अली रजनीश

आज  उपस्थित हूँ ब्लोगोत्सव -२०१० के अठारहवें दिन के कार्यक्रम के संचालन-संयोजन-समन्वयन हेतु परिकल्पना पर !

आजकल हर कोई जो ब्लोगोत्सव से जुडा है व्यस्त है इस उत्सव की आखिरी यादगार  शाम की तैयारी में........खासकर रश्मि प्रभा जी जिनके संचालन में गीतों से भरी उत्सवी शाम का आयोजन एक-दो दिन बाद होने वाला है ....
इस शाम के बारे में आज मैं कुछ नहीं बता सकता  क्योंकि इस शाम की परिकल्पना अभी जेहन की कोख में विकसित हो रही है ! बस इतना अवश्य कह सकता  हूँ कि ब्लोगोत्सव-२०१०  की आखिरी शाम हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक यादगार शाम होने जा रही है !

इसकी औपचारिक घोषणा श्री रवीन्द्र प्रभात जी के द्वारा एक-दो दिनों में संभव है , तबतक प्रतीक्षा करें और आज के इस कार्यक्रम में मेरे साथ उत्सव का आनंद लें .....

आज हम परिकल्पना पर उपस्थित हैं शमा जी के संस्मरण के साथ , आईये पढ़ते  है एक माँ के दर्द की कहानी उसी की जुबानी -
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(एक माँ के दर्द की कहानी, उसीकी ज़ुबानी)


हमारा कुछ साल पेहेले जब मुम्बई से पुणे तबादला हुआ तो मेरी बेटी वास्तुशाश्त्र के दूसरे साल मे पढ़ रही थी । सामान ट्रक मे लदवाकर जब हम रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हुए तो उसका मुरझाया हुआ चेहरा मेरे ज़हन मे आज भी ताज़ा है।

हमने उसे मुम्बई मे ही छोड़ने का निर्णय लिया था। पेहेले पी.जी. की हैसियत से और फिर होस्टल मे। उसे मुम्बई मे रेहेना बिलकुल भी अच्छा नही लगता था। वहाँ की भगदड़ ,शोर और मौसम की वजह से उसे होनेवाली अलेर्जी, इन सभी से वो परेशान रहती। पर उस वक़्त हमारे पास दूसरा चाराभी नही था।

जब हमने उस से बिदा ली तो मेरी माँ के अल्फाज़ बिजली की तरह मेरे दिमाग  कौंध गए। सालों पूर्व जब वो मेरी पढ़ाई के लिए होस्टल मे छोड़ने आयी थी ,उन्होने अपनी सहेली से कहा था,"अब तो समझो ये हमसे बिदा हो गयी!जो कुछ दिन छुट्टियों मे हमारे पास आया करेगी,बस उतनाही उसका साथ। पढायी समाप्त होते,होते तो इसकी शादीही हो जायेगी।"

मेरे साथ ठीक ऐसाही हुआ था। मैंने झटके से उस ख़याल को हटाया । "नही अब ऐसा नही होगा। हमारा शायद वापस मुम्बई तबादला हो!शायद क्यों ,वहीँ होगा!"लेकिन ऐसा नही हुआ।

वास्तुशाश्त्रके कोर्स मे उसे छुट्टियाँ ना के बराबर मिलती थी,और उसका पुणे आनाही नही होता......नाही किसी ना किसी कारण वश मैं उस से मिलने जा पाती। देखते ही देखते साल बीत गए। मेरी लाडली वास्तु विशारद की पदवी धर हो गयी।
हमारा पुणे से नासिक तबादला हुआ.......और हमे हमारे बेटे कोभी पढ़ाई के लिए पीछे छोड़ना पडा। इसी दरमियान मेरी बेटी ने आगे की पढ़ाई के लिए, अमरीका जाने का निर्णय ले लिया...... मेरा दिल तो तभी बैठ गया था!मेरी माँ की बिटिया कमसे कम अपने देश मे तो थी!और हमारा कुछ ही महीनोमे और भी दूर.....नागपूर, तबादला हो गया। बेटाभी था उस से भी कहीँ और ज़्यादा दूर रह गया। बिटिया अमेरिका जाने की तैय्यारियोंमे लगी रही........
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यह  संस्मरण जारी रहेगा अगले चरण में भी , उससे पहले  आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां भारतीय नागरिक के नाम से मशहूर एक ब्लोगर उपस्थित हैं अपने सारगर्भित आलेख के साथ.......यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव, मिलता हूँ एक अल्प विराम के बाद

3 comments:

  1. रजनीश जी को मेरी शुभकामनाएं। विस्तृत रिपोर्ट की प्रतीक्षा रहेगी।

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  2. शानदार कहानी, जानदार प्रस्तुति।

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  3. भावपूर्ण और सार्थक सन्दर्भों से युक्त प्रस्तुति।

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