बुधवार, 26 मई 2010

हल्ला हुआ गली दर गल्ली। तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।


पुन: स्वागत है
आपका परिकल्पना पर
मैं यद्यपि बाल कविताएँ और कहानियां लिखता हूँ
ऐसे में मेरे आज के उद्बोधन में
बाल कविताएँ न हो तो शायद बेमानी होगी
इसलिए आज उत्सव के इस
चरण में मैं आपको
राम नरेश त्रिपाठी की एक बाल कविता सुना रहा हूँ-

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हल्ला हुआ गली दर गल्ली। तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।

-रामनरेश त्रिपाठी-


पहने धोती कुरता झिल्ली।
गमछे से लटकाये किल्ली।।

कस कर अपनी घोड़ी लिल्ली।
तिल्ली सिंह जा पहुँचे दिल्ली।।

पहले मिले शेख जी चिल्ली।
उनकी बहुत उड़ाई खिल्ली।।

चिल्ली ने पाली थी बिल्ली।
बिल्ली थी दुमकटी चिबिल्ली।।

उसने धर दबोच दी बिल्ली।
मरी देख कर अपनी बिल्ली।।

गुस्से से झुँझलाया चिल्ली।
लेकर लाठी एक गठिल्ली।।

उसे मारने दौड़ा चिल्ली।
लाठी देख डर गया तिल्ली।।

तुरत हो गयी धोती ढिल्ली।
कस कर झटपट घोड़ी लिल्ली।।

तिल्ली सिंह ने छोड़ी दिल्ली।
हल्ला हुआ गली दर गल्ली।
तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।
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इस बाल कविता के बाद आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां कविता रावत जी उपस्थित हैं अपनी दो कविताओं के साथ .....यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

4 comments:

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