गुरुवार, 10 जून 2010

समय विदा लेने को आतुर है एक नई सुबह के निनाद के लिए ....


समय विदा लेने को आतुर है एक नई सुबह के निनाद के लिए .... फिर होगा एक मंच, मिलेंगे हम , होगा एक उत्सव हमारी कृतियों का ,जुड़ेंगे नए कदम हमारे साथ और कहेंगे ...
मकसदों की आग तेज हो
मनोबल की हवाएं हो
तो वह आग बुझती नहीं है
मंजिल पाकर ही दम लेती है
आंधियां तो नन्हे दीपक से हार जाती है
सच है - क्षमताओं को बढाने के लिए
आंधी-तूफ़ान का होना जरूरी होता है
प्रतिभाएं तभी स्वरुप लेती हैं
जब बक्त की ललकार होती है
जो जमीन बंजर दिखाई देती है
उससे उदासीन मत हो
ज़रा नमीं तो दो
फिर देखो वह क्या देती है?
हाथ-दिल-मस्तिस्क-दृष्टि लिए प्रभु तुम्हारे संग है
सपनों की बारीकियां देखो
फिर हकीक़त बनाओ
तुम्हारे ऊपर है-
हाथ को खाली देखते हो या सामर्थ्य को
मन अशांत हो तो घबड़ाओ मत
याद रखो समुद्र मंथन के बाद ही
अमृत निकलता है ....!





ये दिन फिर आये या न आये, ये मौसम फिर आये या न आये मगर ब्लोगोत्सव की ये यादें कभी भुलाई नहीं जा सकेगी ...एक अमिट छाप बनकर छाती रहेगी मौसम की आती-जाती रफ़्तार पर .....यह मेरा विश्वास है .....कहिये आप क्या कहते हैं इस बारे में ? आज का यह सांस्कृतिक उत्सव कैसा लगा अवश्य अवगत कराबें !

8 comments:

  1. bahut sundar prastuti..
    aapki aawaz mein sunana bahut hi accha laga..
    aapka aabhaar..

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  2. बहुत सुंदर.... आपकी अवाज़ में सुनना बहुत अच्छा लगा....

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  3. आपकी आवाज़ से कविता और भी असरदार हो जाती है......
    प्रणाम के साथ शुभकामनाएं..

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  4. तुम्हारे ऊपर है-
    हाथ को खाली देखते हो या सामर्थ्य को
    मन अशांत हो तो घबड़ाओ मत
    याद रखो समुद्र मंथन के बाद ही
    अमृत निकलता है ....!

    kya kahu Maa... mann bhatak raha tha, asamanjas main tha aur aaj yeh padha...aur ek nayi taazgi mil gayi...ILu..!

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  5. What a material of un-ambiguity and preserveness of valuable knowledge
    regarding unexpected emotions.

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  6. बेहद शानदार प्रस्तुति ,सुन्दर शब्द नियोजन ,सुन्दर स्वर ,बहुत शुभ कामनाएं .मंजुल भटनागर

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  7. मकसदों की आग तेज हो
    मनोबल की हवाएं हो
    तो वह आग बुझती नहीं है
    मंजिल पाकर ही दम लेती है-----अति कर्णप्रिय स्वर ,सुन्दर भाव लिए रचना .आत्म मंथन ही समुंद्र मंथन है .
    बहुत बधाई रश्मि जी

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