गुरुवार, 30 सितंबर 2010

हमारा धर्म बाद में है पहले हम भारतीय हैं ...!

आज जब मैं सुबह-सुबह घर से दफ्तर के लिए निकला, तो मेरी छोटी बिटिया उर्वशी ने कहा -" पापा ! आपका दफ्तर आज बंद नहीं है? " मैंने कहा- "नहीं तो " उसने कहा- " मेरा स्कूल तो बंद है , ठीक से जाईयेगा !" मैंने कहा - क्यों ? उसने तपाक से कहा - " पापा मेरी सहेलियां कह रही थी कि हंगामा होने वाला है शहर में !" मैंने कहा बेटा कुछ भी नहीं होने वाला है , इसे बेबजाह तूल दिया गया है सांप्रदायिक तत्वों द्वारा .....वह कोई और प्रश्न करे इससे पहले मैं दफ्तर के लिए निकल गया !

आपको सच बताऊँ तो सडकों पर मैंने कुछ भी ऐसा नहीं देखा जो अन्य दिनों से भिन्न हो ! सोचता हूँ आज मनुष्य विश्व बंधुत्व की भावना को अपने अंतर से निकालकर सच्ची मानवता के दर्शन को क्यों भुला रहा है इन मंदिर-मस्जिद मुद्दों में उलझकर ?

आज हम भूल गए हैं गुरु नानक के उस अमर उपदेश को, कि-" अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बन्दे, एक नूर तो सब जग उपज्या कौन भले कौन भंदे "

भूल गए हैं हम अलामा इकवाल के उस सन्देश को, कि " मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्ता हमारा "

भूल गए हैं हम गांधी की अमर वाणी को, कि " प्रभु भक्त कहलाने का अधिकारी वही है जो दूसरों के कष्ट को समझे "

भूल गए हैं हम तुलसीदास के धर्म की परिभाषा को, कि " पर हित सरिस धर्म नहीं भाई "

इसप्रकार-

मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारा तो शक्ति का साधन स्थल है ! परस्पर प्रेम, सौहार्य, एकता एवं धार्मिक-सांस्कृतिक सहिष्णुता का पूज्य स्थल है । सर्व धर्म समन्वय ही हमारी सभ्यता और संस्कृति का मूल प्राण है ।

अनेकता में एकता ही हमारी आन-वां और शान है ।

मित्रों !

निष्काम कर्म ही मनुष्य का धर्म है / मानवता का मूल मंत्र है ।

याद करो राष्ट्रीय कवि मैथली शरण गुप्त की वह पंक्तियाँ, कि "यह पशु प्रवृति है कि आप ही आप चारे, मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए मरे "

याद करो रहीम के सत्य के प्रतिपादन को/सच्ची मानवता के दर्शन को -

" यो रहीम सुख होत है उपकारी के संग , बाटन वारे के लगे ज्यों मेंहदी के रंग "

याद करो कि सलीब पर चढाते हुए / अपने हत्यारों के लिए दुआ माँगते हुए इसाईयों के प्रवर्तक ईशा ने क्या कहा था ?

यही न कि " प्रभु इन्हें सुबुद्धि दे, सुख-शान्ति दे, ये नहीं जानते कि क्या करने जा रहे हैं "

याद करो- कर्बला के मैदान में / प्राणों की बलि देने वाले /अंतिम सांस तक मानव कल्याण हेतु दुआएं माँगने वाले मोहम्मद साहब ने क्या कहा था .......

आर्य समाज के प्रबर्तक महर्षि दयानंद ने अभय दान दे दिया क्यों अपने हत्यारों को ? महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म के प्रचार में अन्य धर्मों के विरूद्ध द्वेष का प्रदर्शन क्यों नहीं किया ? स्वामी विवेकानंद , राम तीर्थ, रामकृष्ण परमहंस ने किसी धर्म के लिए अपशब्द क्यों नहीं कहे ?

सूफी संत आमिर खुसरो, हजरत निजामुद्दीन, संत कबीर, नामदेव क्यों सर्वस्व त्याग दिया मजहबी एकता के लिए अर्थात सर्व धर्म समन्वय के लिए ?

इस सबका एक ही उत्तर है कि हमारा धर्म बाद में है पहले हम भारतीय हैं ...!

आईये हम मिलकर शपथ लेते हैं कि ६० साल बाद आज इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के द्वारा दिया जा रहा अयोध्या विवाद का फैसला चाहे जिसके पक्ष में आये हम अमन और भाईचारे पर किसी भी प्रकार की आंच न आने देंगे !

जय हिंद !

बुधवार, 29 सितंबर 2010

जिंदगी के मायने समझ जाओगे ।



हंसोगे, रोओगे, गुनगुनाओगे
जिंदगी के मायने समझ जाओगे ।

मिल जायेगी मोती तुम्हे भी तब-
जब समुद्र में गहरे उतर जाओगे ।

माँ कहती है कि अक्ल आ जायेगी-
जब किसी मोड़ पे ठोकर खाओगे ।

अपना चेहरा पहचानोगे कैसे-
जब दूसरों को आईना दिखाओगे ।

तुम्हे मालूम है कि मासूम है वो--
फिर हक में जुवान तो हिलाओगे ।

उसीदिन मैं उठाऊंगा हाथ जिसदिन -
तुम मेरे होठों पे दुआ बन के आओगे ।

जान जाओगे तुम "प्रभात "का हाल-
जिस दिन उसका चेहरा पढ़ पाओगे ।
() रवीन्द्र प्रभात

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

हम सांप से ज्यादा जहरीले हो गए हैं



स्वार्थ के दांत कितने नुकीले हो गए हैं
हम सांप से ज्यादा जहरीले हो गए हैं ।

हर कोई समझने में करने लगा है भूल-
क्योंकि हमारे आवरण चमकीले हो गए हैं ।

वह तो उगलता है जहर डंसने के बाद -
हम उगल-उगलकर जहर पीले हो गए हैं ।

सुरक्षा की खातिर करता है वह इस्तेमाल-
पर हम लोटाकर जहर में गीले हो गए हैं ।

सांप सांप्रदायिक भी नहीं होता प्रभात-
और हम धर्म के नाम पर नीले हो गए हैं ।
() रवीन्द्र प्रभात

रविवार, 26 सितंबर 2010

राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?


ग़ज़ल :
मच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों ,
राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?

रोज आती है खबर अखवार में ,
लूट, हत्या , ख़ौफ , कत्लेयाम क्यों ?

मन के भीतर ही खुदा है, राम है ,
झाँक लो मिल जायेंगे ,प्रमाण क्यों ?

सभ्यता की भीत को तुम ढाहकर ,
कर रहे पर्यावरण नीलाम क्यों ?

जिनके मत्थे मुल्क के अम्नों - अम्मां,
दे रहे विस्फोट का पैगाम क्यों ?

बोलते हम हो गए होते दफ़न ,
चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ?

कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,
अब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?

जबतलक पहलू में तेरे है प्रभात ,
कर रहे हो ज़िंदगी की शाम क्यों ?
() रवीन्द्र प्रभात

शनिवार, 25 सितंबर 2010

सही तैराक हो तो धार से नफरत नहीं करता.....


ग़ज़ल :
किसी दरिया,किसी मझदार से नफरत नहीं करता
सही तैराक हो तो धार से नफरत नहीं करता ।

यक़ीनन शायरी का इल्म जिसके पास होता वह -
किसी नुक्कड़,किसी किरदार से नफरत नहीं करता।

परिन्दों की तरह जिसने गुजारी जिन्दगी अपनी -
गुलाबों के सफ़र में खार से नफरत नहीं करता ।

चलो अच्छा हुआ तूने बहारों को नहीं समझा -
नहीं तो इस क़दर पतझार से नफरत नहीं करता।

हिम्मत बुलंद अज्म का पैकर जो होता है वही -
किसी के धर्म व त्यौहार से नफ़रत नहीं करता ।

फटे कपड़ों से तेरी आबरू ग़र झांकती होती-
मियाँ "प्रभात" तू बीमार से नफरत नहीं करता ।

* रवीन्द्र प्रभात

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

मंदिर-मस्जिद मुद्दों में बस खो गया है आदमी ।


ग़ज़ल
आज अपने आप में क्या हो गया है आदमी ,
जागने का वक़्त है तो सो गया है आदमी ।

भूख की दहलीज़ पर जगता रहा जो रात- दिन ,
चंद रोटी खोजने में खो गया है आदमी ।

यह हमारा मुल्क है या स्वार्थ का बाज़ार है ,
सेठियों के हाथ गिरवी हो गया है आदमी ।

पेट की थी आग या कि बोझ बस्तों का उसे ,
छोड़ करके पाठशाला जो गया है आदमी ।

झांकता है कौन मन के राम को रहमान को-
मंदिर-मस्जिद मुद्दों में बस खो गया है आदमी ।

कुर्सियों की होड़ में बस दौड़ने के बास्ते ,
नफ़रतों का बीज आकर बो गया है आदमी ।

() रवीन्द्र प्रभात

बुधवार, 22 सितंबर 2010

क्या ठीक हों जाएगा ?



जब -
बीमार अस्पताल की
बीमार खाट पर पडी

मेरी बूढ़ी बीमार माँ
खांस रही थी बेतहाशा

तब महसूस रहा था मैं
कि, कैसे -
मौत से जूझती है एक आम औरत ।


कल की हीं तो बात है
जब लिपटते हुये माँ से
मैंने कहा था , कि -
माँ, घबराओ नही ठीक हो जाएगा ..... ।

सुनकर चौंक गयी माँ एकवारगी
बहने लगे लोर बेतरतीब
सन्न हों गया माथा
और, माँ के थरथराते होंठों से
फूट पडे ये शब्द -
"क्या ठीक हो जाएगा बेटा !
यह अस्पताल ,
यह डॉक्टर ,
या फिर मेरा दर्द ........?
() रवीन्द्र प्रभात

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

तुम्हारी आंखों में ....



















ग़ज़ल
ख़्वाबों की ताबीर तुम्हारी आँखों में है,
शोख़ जवाँ कश्मीर तुम्हारी आँखों में है।

तुझमें है तासीर मोहब्बत की भीतर तक,
शायर गालिब-मीर तुम्हारी आँखों में है।

सुबहे काशी का मंजर ओ' शाम अवध का,
क्या सुन्दर तस्वीर तुम्हारी आँखों में है।

छलकाए रस अंगूरी नेह लुटाए हौले से,
राँझा की वो हीर तुम्हारी आंखों में है।

ताजमहल का अक्स नक्श एलोरा का,
प्यार की हर जागीर तुम्हारी आँखों में है।

भरी उमस में पिघल-पिघल के बरसे जो,
हिमाचल की पीर तुम्हारी आँखों में है।

बूँद-बूँद को तरस उठे जो देखे बरबस,
राजस्थानी नीर तुम्हारी आँखों में है।

गोरी गुज़रती गुड़िया शर्मीली-सी,
सागर-सी गम्भीर तुम्हारी आँखों में है।

चाँद सलोना देख-देख के सागर झूमे,
गोवा की तासीर तुम्हारी आँखों में है।

कान्हा नाचे रास रचाए छलकाए,
रोली-रंग-अबीर तुम्हारी आँखों में है।

तिरुपती की पावन मूरत सूरत-सी,
दक्षिण की प्राचीर तुम्हारी आँखों में है।

तमिल की ख़ुशबू कन्नड़-तेलगू की चेरी,
झाँक रही तदबीर तुम्हारी आँखों में है।

खजुराहो की मूरत जैसी रची-बसी हो,
छवि सुन्दर-गम्भीर तुम्हारी आँखों में है।

गीत बिहारी गए, बजे संगीत रवीन्द्र,
भारत की तकदीर तुम्हारी आँखों में है।

() रवीन्द्र प्रभात
(फोटो साभार :www.facepaintingtips.com/)

रविवार, 19 सितंबर 2010

ज़िंदगी के श्वेत पन्नों को न काला कीजिये


ग़ज़ल

ज़िंदगी के श्वेत पन्नों को न काला कीजिये
आस्तिनों में संभलकर सांप पाला कीजिये।

चंद शोहरत के लिए ईमान अपना बेचकर -
हादसों के साथ खुद को मत उछाला कीजिये।

रोशनी परछाईयों में क़ैद हो जाये अगर -
आत्मा के द्वार से खुद ही उजाला कीजिये।

खोट दिल में हर किसी के यार है थोडी-बहुत
दूसरों के सर नही इल्ज़ाम डाला कीजिये ।

ताकती मासूम आँखें सर्द चूल्हों की तरफ ,
सो न जाये तब तलक पानी उबाला कीजिये।

जब तलक प्रभात जी है घर की कुछ मजबूरियाँ ,
शायरी की बात तब तक आप टाला कीजिये ।

() रवीन्द्र प्रभात

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

आभासी दुनिया की मित्रता कैसी होनी चाहिए ?

जन्म के साथ मनुष्य के संवंधों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है । विभिन्न संवंधों का निर्वाह करता हुआ मनुष्य आजीवन सुख-दु:ख का भोग करता चलता है । कभी आत्मज बनकर, कभी मातृत्व सुख का अनुभव कराकर तो कभी स्नेहिल संवंध जताकर ।


इस सबसे अलग आभासी दुनिया की मित्रता होती है । लोगों का मानना है, कि - आभासी दुनिया की मित्रता ताश के ताजमहल की तरह होती है , जिसे एक हल्की सी हवा भी गिरा सकती है और स्वार्थ के हाथ उसकी चिंदी-चिंदी उड़ा सकते हैं ।


मेरा मानना है कि अगर कुछ हिदायतों पर ध्यान दिया जाए तो यह संवंध अन्य सभी संवंधों की तुलना में ज्यादा स्थायी और मजबूत हो सकता है -


(हिदायत -१ )
यह सत्य है कि कल्पित आदर्श मित्र सदा कसौटी पर खरे नहीं उतरते, मगर उसका उद्देश्य आपके उद्देश्य से मेल खा जाए तो मेरा मानना है कि यह संवंध स्थायी हो जाएगा । इसलिए कोशिश करें कि उन्हीं चिट्ठों पर आपका ज्यादा समय गुजरे जो आपके मन को भाता हो ।


(हिदायत-२)
यह सही है कि विपरीत लिंग व्यक्ति को आकर्षित करता है , किन्तु जरूरी नहीं कि आप उन चिट्ठों पर ज्यादा समय गुजारें । ऐसा करने से आप स्वयं के वजूद को भी नकारने लगेंगे और आपकी योग्यता , प्रतिभा धीरे-धीरे कुंद पड़ने लगेगी । इसलिए विपरीत लिंग को महत्व न देकर उसके गुणों को आत्मसात करें ।


(हिदायत -३ )
टिप्पणियाँ प्रायोजित न करें , यानी जो आपके पोस्ट पर टिप्पणी करें आप केवल उन्हीं ब्लोग्स पर जाकर टिप्पणी न करें, अपितु उन चिट्ठों पर भी जाएँ जहां अच्छी सामग्रियां प्रस्तुत की गयी हो । जब आप अच्छी सामग्रियों की ईमानदारी पूर्वक प्रशंसा करेंगे तो आपको अच्छे और सकारात्मक चिट्ठाकारों का सानिध्य सुख प्राप्त होगा , जिससे आपको आतंरिक शान्ति-सुख-संतुष्टि का एहसास होगा । ऐसे मित्र अवसरवादी नहीं होते जो अच्छे लेखन की प्रशंसा और आलोचना की जगह नेक सलाह देते हैं ।


(हिदायत -४ )
पोस्ट पर आई ऐसी टिप्पणियों जिसमें वाह-वाह, क्या बात है, अति सुन्दर आदि लिखने वाले का सम्मान जरूर करें , मगर टिप्पणी देने वाले उन चिट्ठाकारों जो दृढ़ता के साथ दिशा देने की बात करें उनकी बातों को गंभीरता से महसूस करते हुए उनका आभार अवश्य व्यक्त करें क्योंकि ऐसे मित्र आपको भय-भ्रम-भ्रान्ति से बाहर नकालने में मददगार साबित हो सकते हैं ।


(हिदायत-५)
जाति/धर्म/ क्षेत्र/लिंग भेद से बचें , क्योंकि आप इन मोह से बाहर नहीं निकालेंगे तो न आप ब्लोगिंग के माध्यम से समाज का भला कर पायेंगे और न अपनी मित्रता का व्यापक विस्तार ही । इसलिए अपने दृष्टिकोण को संकुचित होने से बचाएं और ब्लोगिंग के माध्यम से मित्रता का दायरा बढायें ।


(हिदायत-६ )
जिनसे आपकी मित्रता है उसकी केवल टिप्पणियों के माध्यम से प्रशंसा न करें , वल्कि यदि आपको उनसे सच्ची मित्रता है, तो उनके प्रति कर्तव्य निभाने का प्रयास करें । जहां भी अवसर मिलें उन्हें और उनके गुणों को प्रस्तुत करें । ऐसा करने से आप उनके मन में जगह बना लेंगे और यह जगजाहिर है कि जो अपने मित्र का मन जीत ले वही सच्चा मित्र है ।


(हिदायत-७)
जो आपके मित्र ब्लोगर हैं , जाने या अनजाने में भी उनके ब्लॉग पर जाकर ऐसी कोई टिप्पणी न करें जो उसे पीड़ा पहुंचाए , क्योंकि ऐसा करने से आप केवल अपने मित्र को ही तनावग्रस्त नहीं करेंगे वल्कि उसके बारे में बार -बार सोचकर आप स्वयं तनावग्रस्त हो जायेंगे ।


(हिदायत-८ )
सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र की लाभ-हानि को अपनी लाभ-हानि मानें । हर कोई चाहता है कि उसे प्रतिष्ठित, मृदुल व्यवहार, शिष्ट, सचरित्र, उदार, हृदयस्पर्शी, पुरुषार्थी और सत्यनिष्ठ मित्र मिले , इसलिए मित्रता में लाभ-हानि की बातों से बचने का प्रयास करें ।


(हिदायत ९)
यदि आपको महसूस हो कि आपका मित्र बहुत दिनों से आपके चिट्ठे पर नहीं आया है और उससे संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न हो गयी है तो आप भी मुंह फुलाकर बैठ जाएँ ऐसा नहीं होना चाहिए । आप उनके आने का इंतज़ार न करें वल्कि उससे पहले आप पहल करें । आपके मित्र को अच्छा लगेगा ।


(हिदायत १० )
कुछ ब्लोगर मित्र ऐसे होते हैं जो टिप्पणियाँ कम करते हैं मगर अपनी मित्र ब्लोगर के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव ज्यादा रखते हैं । ऐसे ब्लोगर को जब भी अवसर मिलता है अपने मित्र ब्लोगर को कायदे से प्रस्तुत कर देता है । ऐसे मित्र ब्लोगर की पहचान अवश्य करें और उनसे दूरी न बनाएं ।


एक उदाहरण देखें-
एक बार मुझसे तस्लीम वाले जाकिर भाई ने पूछा रवीन्द्र जी, चिट्ठों पर आपकी टिप्पणियाँ कम आती है , क्या मित्रों के ब्लॉग पर भी जाना आपको अच्छा नहीं लगता ?
मैंने कहा जाकिर भाई यदि मैं अपने मित्र ब्लोगर की गतिविधियों पर नज़र नहीं रखता तो उनके ब्लॉग का विहंगम विश्लेषण कैसे करता हूँ ?
दरअसल बात यह है कि मैं जिस चिट्ठे पर जाता हूँ उसे बांचने में ही समय निकल जाता और मैं बिना टिप्पणी किये वापस आ जाता हूँ, लेकिन वर्ष में एक बार ब्लॉग विश्लेषण के जरिये उनके ब्लॉग और पोस्ट की विशेषताओं को उजागर कर मित्र धर्म का पालन कर देता हूँ ........।

आभासी दुनिया में मित्रता निभाने के कई रास्ते हैं , ये आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप कौन सा रास्ता चुनते हैं ?


आज बस इतना हीं फिर कुछ महत्वपूर्ण बातों के साथ हम उपस्थित होंगे .....

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

ब्लोगिंग को बनाएं तनावमुक्त जीवन का एक हिस्सा

हर व्यक्ति जीवन में पद,प्रतिष्ठा, प्रशंसा , पैसा और प्रसिद्धि की उच्चाकांक्षा रखता है । यही पांच "प" व्यक्ति के तनाव का मुख्य कारण बनता है । पूरा न होने की स्थिति में उसके अन्दर झुंझलाहट की प्रवृति विकसित होती चली जाती है । दूसरों के वजूद को नकारना उसकी आदत बनती चली जाती है । वह धीरे-धीरे विध्वंसक होता चला जाता है । इसके बिपरीत जो सृजनात्मकता को जीवन जीने का माध्यम बनाता है उसके लिए ये पाँचों "प" कोई मायने नहीं रखता । वह आशावादी होता है और उसे पता होता है कि वह अपनी योग्यता, प्रतिभा और पुरुषार्थ के बल पर वह सबकुछ प्राप्त कर लेगा जिसकी वह ख्वाहिश रखता है ।
जीवन एक प्रतियोगिता है । इस प्रतियिगिता में तरह-तरह के उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं । इसलिए नए वातावरण में ढलने का प्रयास आपको तनाव से मुक्त रख सकता है ।


ब्लोगिंग में सक्रिय रहकर आप अपनी व्यथा , अपनी बात और अपनी जिज्ञासाओं से अपने मित्रों को रूबरू करा सकते हैं । उनसे राय ले सकते हैं और उनके सकारात्मक सुझाव का सहारा लेकर आगे की योजना को मूर्तरूप दे सकते हैं ।


एक-दूसरे के बारे में जानना, परस्पर एक-दूसरे के साथ संपर्क बनाए रखना मानवीय स्वभाव है । जहां वह अपने बारे में दूसरों को बताना चाहता है वहीं एक-दूसरे की सभी बातों को जानने को इच्छुक रहता है । जानने-बताने के इसी स्वभाव के चलते ब्लोगिंग का विकास हुआ । आज यह समाज का एक सशक्त माध्यम बन गया है । आज के समय में विश्व का कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है । इस विशाल समाज को एक-सूत्र में पिरोये रखने के लिए जरूरी है कि ब्लोगिंग को संवाद के एक वृहद् मंच के रूप में विकसित किया जाए ।


आज त्वरित संवाद के इस माध्यम ने हमें एक ऐसा वृहद् प्रभामंडल दे दिया है कि हम इसके माध्यम से एक सुखद , सुन्दर और खुशहाल सह-अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्तरूप दे सकते हैं । न कि कौन किससे आगे निकल जाए, कौन किसको पछाड़े आदि गलत प्रवृतियों को अपनाकर वातावरण को प्रदूषित किया जाए । प्रतोयोगिता अवश्य हो पर स्वस्थ प्रतियोगिता हो इस बात का ध्यान रखा जाए । किसी के भुलावे में, बहकावे में आकर असंसदीय व्यवहार न किया जाए । यह तो खांडे की वह तीव्र धार है जिसपर सच्चाई और निष्ठा का पालन करने वाले ही चल सकते हैं । लोगों को उनके कर्तव्यों और अधिकारों से अवगत कराना, अपनी-अपनी सृजनात्मकता को धार देना,समाज की बुराईयों, कुरीतियों से लड़ने का साहस देना, स्वयं से जुड़े हुए लोगों को जागरूक रखना , उन्हें सचेत और सचेष्ट बनाए रखना ही ब्लोगिंग का प्रथम कर्त्तव्य होना चाहिए ।


ध्यान दें- ब्लोगिंग वह सूत्र है जो लोगों को लोगों से , देश को देश से, भाषा को भाषा से तथा संसार को आपस में जोड़ती है, यानी वसुधैव कुटुंबकम की भावना को चरितार्थ करती है ब्लोगिंग ।


इसलिए ब्लोगिंग को बनाए तनाव मुक्त जीवन का एक हिस्सा ।

हम शीघ्र लेकर आ रहे हैं परिकल्पना समूह का एक और नया पन्ना जिसके अंतर्गत हम करेंगे बारी-बारी से प्रेरक ब्लोग्स की परिक्रमा और बताएँगे आपको कि क्यों अनुसरण किया जाए उस ब्लॉग का .....हिंदी चिट्ठाजगत की बिलकुल नयी और जिज्ञासापूर्ण परिकल्पना .......यानी ब्लॉग परिक्रमा
आगे चलकर हम इस पन्ने से जोड़ेंगे कुछ प्रेरणास्त्रोत वरिष्ठ चिट्ठाकारों को और उनके माध्यम से होगी ब्लोगिंग से संवंधित शिक्षा-दीक्षा की बात । दी जायेगी महत्वपूर्ण जानकारियाँ और की जायेंगी नए प्रतिभाओं को आगे लाने की प्रक्रिया .....इस नए पन्ने से संवंधित यदि कोई सुझाव देना चाहें तो आपका स्वागत है ।

बुधवार, 15 सितंबर 2010

बेनामी टिप्पणियों की पहचान करें ....

परसों की पोस्ट "अच्छे ब्लॉग लेखन के लिए जरूरी है .....!" से आगे बढ़ते हुए आज प्रस्तुत है - कैसे करें बेनामी टिप्पणियों की पहचान ?

यह प्रकृति का नियम है ,कि - " हर अगला कदम पिछले कदम से खौफ खाता है ...!"
यह खौफ सकारात्मक भी हो सकता है, नकारात्मक भी और विध्वंसात्मक भी । सकारात्मक कदम अपने प्रतिद्वंदी से सर्वथा आगे रहने का प्रयास अपनी योग्यता/प्रतिभा और पुरुषार्थ के बल पर करता है, नकारात्मक कदम सर्वथा अपने प्रतिद्वंदी की आलोचना करता है और विध्वंसात्मक कदम प्रतिद्वंदी को चोट/पीड़ा/दु:ख पहुंचाने की कोशिश करता है ।


बेनामी या छद्म प्रोफाईल से की गयी टिप्पणी विध्वंसात्मक कदम का एक हिस्सा है । यह काम कमोवेश वही ब्लोगर करते हैं, जिन्हें आपके होने से अस्तित्व संकट का खतरा महसूस होता है । इस प्रकार की टिप्पणी आपके मित्र ब्लोगर भी कर सकते हैं और प्रतिद्वंदी भी ।


सच तो ये है कि बेनामी या छद्म प्रोफाईल से की गयी टिप्पणी करना अवगुण ही नहीं एक प्रकार का मानसिक रोग भी है । इसलिए बेनामी टिप्पणियों की पहचान होने पर उसे सार्वजनिक न करें , बल्कि यदि वह मित्र है तो उससे दूरी बनाएं और यदि वह प्रतिद्वंदी है तो मित्र ब्लोगर्स से सलाह-मशविरा के बाद उसका सामाजिक वहिष्कार करें । साफ़-सुथरी ब्लोगिंग के लिए यह आवश्यक है ।


कभी भी बेनामी या छद्म प्रोफाईल से की गयी टिप्पणियों पर उत्तेजित न हो , क्योंकि यदि आप उत्तेजित होकर असंसदीय भाषा में टिप्पणी कर बैठते हैं तो वह (बेनामी ब्लोगर ) अपने उद्देश्य में सफल हो जाएगा । इसलिए विध्वंसक टिप्पणियों की पहचान कर उसकी कॉपी अपने पास सुरक्षित रखते हुए कॉमेंट को मॉडरेट कर दें ।



अब प्रश्न यह उठता है कि कैसे करेंगे बेनामी टिप्पणियों की पहचान ?


यह काम मुश्किल जरूर है , मगर असंभव नहीं है । थोड़े से बौद्धिक व्यायाम के बाद आप बेनामी टिप्पणियों की पहचान कर सकते है । सबसे पहले तो एडवांस ट्रैफिक विश्लेषण से संवंधित इस साईट पर जाएँ और रजिस्ट्रेसन की प्रक्रिया पूर्ण करते हुए इसे अपने ब्लॉग से जोड़ दें । अब यह आपके ब्लॉग पर आने वाले हर आगंतुक/शहर/ब्लॉग/अग्रीगेटर आदि की जानकारी उपलब्ध कराएगा । यह भी बताएगा वह कितनी अवधी तक आपके ब्लॉग पर रहा । इसके अतिरिक्त भी ट्रैफिक से संवंधित कई अनछुई जानकारियाँ भी यह साईट आपको उपलब्ध कराएगा ।
बेनामी टिप्पणी करने वाला यदि मित्र है तो यथासमय वह संभव है अपने ब्लॉग से सीधे आपके ब्लॉग पर पहुंचेगा । यदि वह एग्रीगेटर के माध्यम से आया है तो आप यह मालूम कर सकते हैं कि वह किस शहर से आया है या फिर अग्रीगेटर पर आने से पहले वह किस साईट पर था आदि । फिर आप उस शहर के कुछ चुनिन्दा ब्लोग्स को छांटिए और ब्लोगर की लेखन शैली की पहचान करते हुए टिप्पणी से मिलाईये या फिर उसकी कुछ टिप्पणियों को खंगालिए उसके द्वारा प्रयुक्त शब्दों से आप उस बेनामी ब्लोगर तक पहुँच सकते हैं ।


क्योंकि गलत करने वाला कभी-कभी अनजाने में कुछ साक्ष्य छोड़ जाता है ।


पिछले दिनों मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ, ज्योत्सना के नाम से एक बेनामी टिप्पणी आई । जब मैंने शहर का लोकेशन देखा तो कुछ और ही था, किन्तु उसके फर्जी प्रोफाईल में लोकेशन दिल्ली दिखाया गया था । अब भला एक महिला ९०० कि.मी.की यात्रा करके किसी दूसरे शहर से बेनामी टिप्पणी करने क्यों आयेगी फिर मैंने उस टीप्पणी में चार बार प्रयुक्त एक शब्द को चिन्हित किया और उस ब्लोगर तक पहुँचाने में सफल हो गया जिसका तकिया-कलाम वही शब्द है । आपको जानकर यह सुखद आश्चर्य होगा कि यह वह ब्लोगर निकला जिन्हें मैं सर्वदा श्रद्धा और सम्मान की नज़रों से देखता था .....फिर मैंने सोचा उसका नाम सार्वजनिक कर विवाद को क्यों जन्म दिया जाए ...सो मैंने चुप्प रहना ही वेहतर समझा । इसलिए आपको भी सलाह है कि बेनामी टिप्पणी जाहिर हो जाने पर सार्वजनिक न करें, अपितु उचित समय पर उचित निर्णय लें ......! यदि वह आपको बार-बार परेशान कर रहा हो तो कुछ दिन शांत रहकर धैर्य के साथ उसकी गतिविधियों का अवलोकन करें और पुख्ता साक्ष्य जुटाएं ... जरूरत पड़ने पर साईबर सेल की मदद से उचित कानूनी कार्यवाही हेतु न्यायिक विशेषज्ञों से सलाह लें । सच्ची ब्लोगिंग के लिए यह आवश्यक है ।


आज बस इतना हीं , आगे भी ब्लोगिंग से संवंधित कुछ उपयोगी बातों के साथ हम समय-समय पर उपस्थित होते रहेंगे........ ।

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

हिंदी का मोल

हिंदी दिवस पर विशेष -

दो- तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी -
माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी ।


बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से -
पर भंवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी ।

सुर -तुलसी और मीरा के सगुन में रची हुई -
कविरा और बिहारी की फुंकार है हिंदी मेरी ।

फ्रेंच , इन्ग्लीश और जर्मन है भले परवान पर -
आमजन की नाव है, पतवार है हिंदी मेरी ।

चांद भी है , चांदनी भी , गोधुली- प्रभात भी -
हरतरफ बहती हुई जलधार है हिंदी मेरी ।

() रवीन्द्र प्रभात

सोमवार, 13 सितंबर 2010

अच्छे ब्लॉग लेखन के लिए जरूरी है......

पिछले दो पोस्ट में मैंने ब्लॉग लेखन से संवंधित कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं पर प्रकाश डाला, किन्तु जब अनुशासन की बात आई तो एक ब्लोगर जिनके नाम का उल्लेख उचित नहीं है, ने बेनामी टिपण्णी करके तर्कहीन बातें की . उनसे मैं यही कहना चाहूंगा कि यदि आप अपना नाम देकर टिपण्णी नहीं कर पा रहे हैं तो बेहतर है कि आप टिपण्णी न करें . लोग आपके विचारों को पहचानते हैं, अपनी पहचान को क्षति न पहुंचाएं ! स्वयं के प्रति ईमानदार रहें ।

अपनी राय भी परोसें :कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि लोग अपने ब्लॉग पर समाचार परोसते हैं, किन्तु समाचार के साथ यदि आप अपनी राय भी परोसें तो मेरा मानना है कि आप अपने आकर्षण से ज्यादा पाठक वर्ग हासिल कर सकते हैं ! क्योंकि समाचार लगभग सभी पाठक पहले से ही पढ़ चुके होते हैं ।

हमेशा सकारात्मक बने रहे : अच्छे ब्लॉग लेखन के लिए जरूरी है आप हमेशा सकारात्मक सोचे, सकारात्मक टिप्पणी करें और सकारात्मक पोस्ट लिखें । सारे नकारात्मक भावों को झटके से किनारे कर दें और सकारात्मकता को हमेशा के लिए अंगीकार करें । साथ ही आपसे जुड़े जो भी ब्लोगर हैं उन्हें भी सकारात्मक बने रहने की शिक्षा दें ।

अपनी पसंद के विचारों को महत्व दें : पोस्ट लेखन के दौरान आप वही लिखें जो आपको पसंद हो । यदि आप किसी ऐसे पोस्ट से गुजरते हैं जो आपको नापसंद हो तो कोई जरूरी नहीं कि आप अपनी नकारात्मकता को टिप्पणी के माध्यम से प्रदर्शित करे हीं । आप उस पोस्ट से अपने को अलग करते हुए अगले पोस्ट की ओर बढ़ जाईये , व्यर्थ की विवादों में अपना समय न गवाएं ।

बार -बार आत्मचिंतन करें : जिन चिजों की कमी आपके अन्दर है, आप उन्हें लेकर खुद को कम मत आंकिये । इस कॉम्पलेक्स से बाहर आईये । इसका रास्ता है कि आप केवल अपनी पोजिटिव चिजों पर ही ध्यान दीजिये , बजाय उन चिजों के जो आपके अन्दर नहीं है और दूसरे ब्लोगर के अन्दर है । सोचिये क्या व्यक्ति की पाँचों ऊँगलिया बराबर होती है ?

दूसरों को नीचा मत दिखाएँ : कुछ लोगों को दूसरों को नीचा दिखाने में मजा आता है । ऐसे लोग जानबूझ कर अनाप-सनाप टिप्पणी करते हैं । दूसरों का दिल दुखाते है । उन्हें परेशान करते हैं, ताकि वे खुद को सुपीरियर साबित कर सके । यदि आप ऐसे लोगों से घिरे हैं तो उन्हें महत्व मत दीजिये, किन्तु कोई आपकी सेल्फ स्टीम को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे तो अपने भीतर उनसे सामना करने की ताक़त जरूर विकसित करें ।

अपने गुणों को सामने लायें : हर व्यक्ति में कोई -न-कोई गुण अवश्य होते हैं, जो उन्हें औरों से अलग करते हैं । अपने इन्हीं गुणों को ढूंढिए और ब्लोगिंग के माध्यम से उसका विकास कीजिये । इससे आपकी सेल्फ स्टीम में इजाफा होगा और आप खुद को लेकर अच्छा महसूस करेंगे ।

हमेशा खुश रहना सीखें : आपके पोस्ट पर किसी दिन बहुत टिप्पणी आई और आप खुश हो गए , दूसरे दिन कम टिप्पणी आई आप निराश हो गए और किसी दिन कोई टिप्पणी नहीं आई तो आपके भीतर नकारात्मक पहलू पनपने लगे । ऐसा नहीं होना चाहिए । ध्यान दें : टिप्पणी आपके पोस्ट का मानक नहीं है , बल्कि आपका लेखन आपकी योग्यता का मानक है ।

और बातें फिर कभी , आज बस इतना हीं .....

रविवार, 12 सितंबर 2010

प्रेम तकलीफ है .....पर आदमी बनने के लिए जरुरी है तकलीफ से गुजरना ....!














जहां समाप्ति की नियति है
वहां हर कर्म क्षणिक और
अपने लिए गढ़ा गया हर अभिप्राय भ्रम होता है
इसलिए-
शुरू की जानी चाहिए मृत्यु से
जीवन की बात
समझना चाहिए
ज़िंदगी को एक छोटा सा सफ़र
बगैर भ्रम को पाले हुए जीना हो तो.....


यदि मन में यह विश्वास उग सके कि
हर किसी को उतर जाना है
देर-सवेर
तो फिर यही रह जाता है न कि
जीतनी देर बैठें -
दूसरों के दु:ख -दर्द बांटने का सिलसिला जारी रखें ...
उन्हें स्नेह देते रहें और करते रहें प्यार ....!


यही है जीवन का आधार
कहती थी धनपतिया
जब एकांत क्षणों में होती थी पास मेरे

आज नहीं है मेरे सामने वह , मगर-
साथ है उसके द्वारा दिए गए शब्दों का वह उपहार जो -
आखिरी मुलाक़ात के साथ दे गयी थी मुझे
भावनाओं की पोटली में बांधकर , कि-
" बाबू !
प्रेम तकलीफ है .....पर आदमी बनने के लिए
जरुरी है तकलीफ से गुजरना ....!"

() रवीन्द्र प्रभात

शनिवार, 11 सितंबर 2010

कर लो कबूल मेरा भी सलाम ईद का ...



अमनो-अमां और आपसी भाईचारे का त्यौहार "ईद" एक ओर जहां बफादारी के साथ इताअत यानी अल्लाह के बताये मार्ग पर चलने का सन्देश देता है वहीं दूसरी ओर ताजीम यानी मालिक द्वारा बनाए गए इज्जत, अदब, पेश करने के तरीकों पर अमल करने तथा सबकी सलामती के लिए दुआ करने की सीख देता है । आज ईद का त्यौहार है , ईद के इस पुरमसर्रत मौके ईद मुबारक के साथ प्रस्तुत है श्री लाजपत राय बिकट की एक नज़्म-

!! कर लो कुबूल मेरा भी सलाम ईद का !!


कर लो कुबूल मेरा भी सलाम ईद का
दो मादरे-वतन को तुम पयाम ईद का ।


इस ईद के मिलन पे मुझको यहाँ बुलाया
अपना समझ के आपने मुझको गले लगाया
पाकर ये भाईचारा मुझको लगा यूँ जैसे-
आँधियों में आपने दीपक हो एक जलाया

टूटे को जोड़ना है हसीं काम ईद का
दो मादरे-वतन को तुम पयाम ईद का ।

हुजुर सल्लाहू अले ही वसल्लम
कहते हैं बांटो खुशियाँ औरों का लेके गम
रमजान का महीना ये याद दिलाता है-
इस्लामे-हर सिपाही का ईमान और करम

अश्क लेके ख़ुशी देना हसीं काम ईद का
दो मादरे-वतन को तुम पयाम ईद का ।

मत भूलना हजरत उमर फारुख के उसूल
याद करके साहबा उस्मान के रसूल
हजरत मोहम्मद मुस्तफा करते थे जिसतरह-
एक बार माफ़ करके देखो हर किसी कि भूल

शिकवे-गिले भुलाना सब के काम ईद का
दो मादरे-वतन को तुम पयाम ईद का ।

जरूरत है आज मुल्क को भी ऐसे प्यार की
उजड़े चमन को आज जरूरत बहार की
औरों की गलतियों को देखने से पेशतर
खुद में भी जरूरत है पहले खुद प्यार की

सरजमीं को होगा यह ईनाम ईद का
दो मादरे-वतन को तुम पयाम ईद का ।

() लाजपत राय बिकट
मटकुरिया, कतरास रोड , धनवाद

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

अपाहिजों के खेल में अंधे तमाशबीन


अगली सदी के हैं ये ख़्वाब बेहतरीन
अपाहिजों के खेल में अंधे तमाशबीन

तारीफ़ यूँ करेंगे गूंगे भी बेहिसाब-
संसद करेगा पागलों की बात पर यकीन

भैंस से होगी बड़ी न अक्ल की दौलत-
भटकेंगे हुनर वाले अपनी ही सरजमीन

बनायेंगे यक़ीनन ऊँची ईमारतें पर-
होंगे न पास उनके आकाश या जमीन

इस मुल्क के मजदूर भी बच्चों के बास्ते-
पानी का घूँट पीकर बन जायेंगे मशीन

होंगे वही विधायक मंत्री के दावेदार-
जनता को भैंस मानकर बजायेंगे जो बीन
() रवीन्द्र प्रभात

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

ब्लोगिंग में अनुशासन का महत्व ....

पिछले पोस्ट में मैंने ब्लॉग की व्याख्या प्रस्तुत की थी । उसी क्रम में आज प्रस्तुत है ब्लोगिंग में अनुशासन का महत्व । जैसा कि आप सभी को विदित है कि चाहे जीवन क्षेत्र हो अथवा कर्मक्षेत्र , हर जगह अनुशासन का बहुत महत्व होता है । जहां तक ब्लोगिंग का सवाल है यदि आप अपनी भाषा पर, व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रखेंगे तो धीरे-धीरे आप अलग-थलग पड़ते जायेंगे, क्योंकि अनुशासन किसी आयु विशेष के लिए ही है, ऐसा नहीं है यह आजीवन , निरंतर,अविराम चलने वाली क्रिया है । इसी से मनुष्य जीवन में सफलता और विकास प्राप्त कर सकता है ।

इसलिए मेरा मानना है, कि आज जब हिंदी ब्लोगिंग अत्यंत संवेदनात्मक दौर से गुजर रही है , कोशिश की जाए कि हमारे सभी ब्लोगर साथी नीतिवान, संस्कारवान,सच्चरित्र और अनुशासित हों तभी हम ब्लोगिंग के माध्यम से एक नए सह-अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्त रूप देने में सफल हो सकेंगे ।


अनुशासन अर्थात् DISCIPLINE में अत्यन्त महत्वपूर्ण दस अक्षर समाहित है, जो हिन्दी के पांचों अक्षर के समानधर्मा है और भाव भी हिन्दी के अक्षरों के समान व्यापक और विस्तृत।

उदाहरणार्थ :
D- Devotion -निष्ठा /I- Imagination -कल्पनाशीलता

(निष्ठा और कल्पनाशीलता जिस व्यक्ति में होती है, उसका व्यक्तित्व अतुलनीय होता है।)
अर्थात् - अ : अतुलनीय व्यक्तित्व
=============================
S- Satisfaction - संतुष्टि/C- Co-operation- सहयोग

(जिसकी कार्यप्रणाली संतोषप्रद और अंत:करण में सहयोग की भावना होती है उसके क्रियाकलाप नुकसानरहित होते हैं।)
अर्थात् - नु : नुकसानरहित
============================
I- Inspiration - प्रेरणा /P- Perfection - पूर्णता
(जो दूसरों के सद्प्रयासों से प्रेरणा लेता है तथा स्वयं के सद्प्रयासों से प्रेरक बन जाता है, साथ ही जिसमें पूर्णता का भाव होता है वह शासन का अनुसरण करता है।)
अर्थात् - शा : शासन का अनुसरण
=============================
L- Locution -वाक्शैली/I- Interaction - सम्प्रेषण
(जिसकी वाक्शैली सौम्य और सम्प्रेषण सुन्दर हो वह सभ्य आचरण का होता है।)
अर्थात् - स - सभ्य आचरण
==========================
N- Non-Intervention -दखल न देना/E- Emotion -भावुकता
(जो दूसरों के कार्यो में बेवजह दखल नही देता और स्वभावत: भावुक होता है उसका स्वभाव विनम्र होता है।)
अर्थात् - न : नम्र स्वभाव
==========================
ब्लोगिंग की मर्यादा बनी रहे इसलिए -

१०० प्रतिशत अनुशासान आवश्यक है। यह सुखद संयोग ही है कि DISCIPLINE के दसों अक्षर के क्रम का योग १०० होता है, जैसे -

D - अंग्रेजी अल्फावेट का चौथा क्रम यानी - ०४
I - अंग्रेजी अल्फावेट का नौंवा क्रम यानी - ०९
S - अंग्रेजी अल्फावेट का उन्नीसवां क्रम यानी - १९
C - अंग्रेजी अल्फावेट का तीसरा क्रम यानी - ०३
I - अंग्रेजी अल्फावेट का नौंवा क्रम यानी - ०९
P - अंग्रेजी अल्फावेट का सोलहवां क्रम यानी - १६
L - अंग्रेजी अल्फावेट का बारहवां क्रम यानी - १२
I -अंग्रेजी अल्फावेट का नौवां क्रम यानी - ०९
N - अंग्रेजी अल्फावेट का चौदहवां क्रम यानी - १४
E - अंग्रेजी अल्फावेट का पांचवां क्रम यानी - ०५
=====================================
कुल योग - १००
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DISCIPLINE के समस्त क्रमों का योग १०० आ रहा है, जिससे सौ प्रतिशत का बोध होता है, अर्थात् अन्य क्षेत्रों की तरह ब्लोगिंग के लिये भी १०० फीसदी अनुशासन का अनुसरण आवश्यक है।
यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि उपरोक्त बातें कहीं से संदर्भित नहीं है , मेरे द्वारा स्वयं तैयार की गयी है , इसलिए संभव है किसी अन्य विचारक के विचार इससे अलग हों ...! हम आगे भी ब्लोगिंग के महत्वपूर्ण पहलूओं को लेकर उपस्थित होंगे । आज बस इतना हीं ....!

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

आप ब्लॉग क्यों लिखते हैं ?


राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, नई दिल्ली (भारत सरकार) और तस्लीम, लखनऊ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित, 'ब्लॉग लेखन के द्वारा विज्ञान संचार' विषय ५ दिवसीय कार्यशाला के तीसरे दिन के पहले सत्र में डा.अरविन्द मिश्र जी के अनुरोध पर मैंने ब्लॉग शब्द की व्याख्या प्रस्तुत की थी , किन्तु समयाभाव के कारण पूरी तरह प्रस्तुत नहीं कर पाया था । सुमन जी ने अनुरोध किया है कि उस व्याख्या को विस्तार से प्रस्तुत किया जाए ताकि नए चिट्ठाकारों अथवा पारिकल्पना से जुड़े सहयोगियों/मित्रों और शुभ चिंतकों का मार्गदर्शन हो सके । तो आईये हम ले चलते हैं आपको ब्लॉग की सच्ची दुनिया में-


ब्लॉग यद्यपि अंग्रेजी के चार अक्षरों का समूह है , यानी B L O और G ,इन चारो अक्षरों का अभिप्राय है -

B - Brief ( सारांश )
L - Logical (तर्कसंगत)
O - Operation (क्रिया)
G - Genuine
(वास्तविक)

अब नीचे से ऊपर की ओर शब्दों को मिलाईये , ब्लॉग की परिभाषा अपने आप स्पष्ट हो जायेगी -

अर्थात- वास्तविक क्रिया के द्वारा तर्कसंगत ढंग से सारांश प्रस्तुत करना ही ब्लॉग है ।

(१) सारांश का मतलब होता है - संक्षेप में विषय का सार प्रस्तुत करना

इसलिए ब्लॉग की पहली प्राथमिकता होती है छोटा लिखा जाए । अर्थात कम से कम शब्दों में लिखने का प्रयास किया जाए । लोगों के पास वक़्त कम होता है, लंबे लेख को कोई आधा पढ़े इससे अच्छा है छोटा लेख पूरा पढ़े ।

(२) तर्कसंगत का मतलब होता है - प्रमाणिकता

इसलिए जो भी प्रस्तुत किया जाए वह पूर्णत: प्रमाणिक हो मनगढ़ंत न हो और जब भी आवश्यकता महसूस हो सन्दर्भ प्रस्तुत कर उसे प्रमाणित कर दिया जाए , यदि पोस्ट लेखन के दौरान आप कोई सन्दर्भ देते हैं तो कोशिश करें कि उसके साथ लिंक लगाया जाए ।इससे आपकी विश्वसनीयता बनी रहेगी । यही है ब्लॉग की दूसरी प्राथमिकता ।

(३) क्रिया का मतलब है - आरंभिक तकनीकी जानकारी के साथ कार्य करना

अर्थात यदि आपको एक कुशल ब्लोगर बनना है तो आरंभिक तकनीकी जानकारी रखते हुए कार्य करना होगा नहीं तो ब्लोगिंग में हमेशा अवरोध की स्थिति बनी रहेगी । यही है ब्लॉग की तीसरी प्राथमिकता ।

(४) वास्तविक का मतलब है - ईमानदारी और पारदर्शिता

अर्थात आपके लेखन में ईमानदारी और पारदर्शिता होनी चाहिए , क्योंकि एक बार झूठ साबित हो जाने पर लोग आपकी सच्चाई पर शक करने लगेंगे और आप अपना पाठक वर्ग खो देंगे । यही है ब्लोगिंग की चौथी प्राथमिकता ।


इसके अतिरिक्त ब्लॉग शिष्टाचार के अंतर्गत आपको भाषा के व्याकरण पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना होगा । यह सही है कि ब्लॉग आपका पर्सनल मामला है और इसे किसी भी भाषा में और कैसे भी लिखने के लिए आप स्वतंत्र हैं । फिर भी आप चाहते हैं कि आपकी लेखनी अधिक से अधिक लोग पढ़ें तो भाषा और वर्तनी की शुद्धता पर अवश्य ध्यान देना होगा । व्याकरण एकदम शुद्ध रखने का प्रयास करना होगा । यदि उसमें कोई गलती हो तो संज्ञान में आते ही सुधारने का प्रयास करें । इसके अलावा गलती मानने की प्रवृति अपनाएं , क्योंकि कोई भी हमेशा सही नहीं हो सकता । यदि आपसे जाने-अनजाने में कोई गलती हो जाए तो वजाए तर्क-वितर्क के गलती मान लेनी चाहिए । इससे दूसरों की नज़रों में आपका सम्मान बढेगा । एक और महत्वपूर्ण बात है ब्लोगिंग के सन्दर्भ में कि ब्लॉग पढ़ने के लिए किसी को भी बाध्य न करें , क्योंकि इससे आप अपनी प्रतिष्ठा खो देंगे । एक-दो बार लोग आपका मन रखने के लिए टिप्पणी तो कर देंगे , किन्तु आपके पोस्ट से उनकी दिलचस्पी हट जायेगी । और हाँ कोशिश यह अवश्य करें कि कोई भी टिप्पणी आप अपने नाम से ही करें , क्योंकि लोग आपके विचारों को पहचानते हैं । अपनी पहचान को क्षति न पहुचाएं । स्वयं के प्रति ईमानदार बने रहें । एक और महत्वपूर्ण बात कि लेखन की जिम्मेदारी लेना लेखक की विश्वसनीयता मानी जाती है । कोई हरदम आपकी तारीफ़ नहीं कर सकता , कभी आपको कटाक्ष का दंश भी झेलना पड़ता है ऐसे में कटाक्ष पर शांत रहना सीखें ताकि आप उस आग में जलकर कंचन की भांति और निखर सकें ।

लोग ब्लॉग को भले ही व्यक्तिगत डायरी के रूप में लिखते हैं, किन्तु अंतरजाल पर आ जाने के बाद उसे पूरा विश्व पढ़ता है । इसलिए मैं ब्लॉग को निजी डायरी नहीं मानता । यह वह खुला पन्ना है , जो सारी दुनिया में आपके विचार को विस्तारित करता है । इसलिए जो भी आप लिखें उसे दुबारा जरूर पढ़ें । क्या लिखा है , उसके क्या परिणाम हो सकते हैं इसपर विचार अवश्य करें । ध्यान दें- आपका लिखा हुआ कई सालों बाद सन्दर्भ के लिए लिया जा सकता है ।


और हाँ एक विशेष सूचना परिकल्पना से जुड़े समस्त चिट्ठाकारों के लिए कि हम शीघ्र ही एक ऐसा पन्ना लेकर आ रहे हैं , जिसका नाम होगा : ब्लॉग परिक्रमा । इसके अंतर्गत हम प्रत्येक सप्ताह एक प्रेरक ब्लॉग की परिक्रमा करेंगे अर्थात उसका समग्र विश्लेषण करेंगे और बताएँगे कि क्यों पढ़ा जाए यह ब्लॉग ?

सोमवार, 6 सितंबर 2010

एक नज़र इधर भी ...

परिकल्पना पर आज :'' हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था , शौक़ से डूबें जिसे भी डूबना है ''
हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था , शौक़ से डूबें जिसे भी डूबना है '' दुष्यंत ने आपातकाल के दौरान ये पंक्तियाँ कही थी , तब शायद उन्हें भी यह एहसास नहीं रहा होगा कि आनेवाले समय में बिना किसी दबाब के लोग स्वर्ग या फिर नरक लोक की यात्रा करेंगे । वैसे जब काफी संख्या में लोग मरेंगे , तो नरक हाउस फुल होना लाजमी है , ऐसे में यमराज की ये मजबूरी होगी कि सभी के लिए नरक में जगह की व्यवस्था होने तक स्वर्ग में ही रखा जाये ।....आगे पढ़ें
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आगरा से प्रकाशित हिंदी दैनिक डी एल ए में दिनांक ०४.०९.२०१० को ब्लॉग चिंतन के अंतर्गत लोकसंघर्ष परिकल्पना सम्मान-२०१० से सम्मानित वर्ष के श्रेष्ठ ब्लोगर श्री समीर लाल 'समीर' और वर्ष की श्रेष्ठ महिला ब्लोगर श्रीमती स्वप्न मंजूषा 'अदा' की व्यापक और विस्तृत चर्चा हुई है .....आगे पढ़ें
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गुरु (संस्कृत शब्द, अर्थात भारी या महत्वपूर्ण, इसलिए आदरणीय या श्रद्धेय ), हिन्दू धर्म में एक व्यक्तिगत अध्यात्मिक शिक्षक या निर्देशक, जिसने अध्यात्मिक अंतर्दृष्टि प्राप्त कर ली हो । कम से कम उपनिषदों के समय से भारत में धार्मिक शिक्षा में गुरुकुल पद्धति के महत्व पर जोर दिया जाता रहा है । आगे पढ़ें ....
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बिहार प्रगतिशील लेखक संध के तत्चावधान में माध्यमिक शिक्षक संध, पटना के सभागार में फ़ैज अहमद फ़ैज की जन्मशती समारोह का आयोजन किया गया । समारोह की अध्यक्षता डा. इम्तियाज अहमद , निदेशक खुदाबख्श आरियंटल उर्दू लाइब्रेरी ,पटना ने की । मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार शकील सिद्दिकी, लखनऊ के साथ-साथ प्रलेस के राष्ट्रीय उपमहासचिव डा. अली जावेद थे कार्यक्रम का संचालन युवा कवि शहंशाह आलम ने किया।...आगे पढ़ें
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प्यार ....... कहते ही एक सिहरन सी होती है, पलकें भारी हो उठती हैं , पैरों से रुनझुन के गीत बजते हैं ...क्या है यह प्यार ? कि सब कहते हैं - 'मैं तख्तो ताज को ठुकरा के तुझको ले लूँगा कि तख्तो ताज से तेरी गली की ख़ाक भली 'ओह ! प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो.......आगे पढ़ें

'' हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था , शौक़ से डूबें जिसे भी डूबना है ''

'' हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था , शौक़ से डूबें जिसे भी डूबना है '' दुष्यंत ने आपातकाल के दौरान ये पंक्तियाँ कही थी , तब शायद उन्हें भी यह एहसास नहीं रहा होगा कि आनेवाले समय में बिना किसी दबाब के लोग स्वर्ग या फिर नरक लोक की यात्रा करेंगे । वैसे जब काफी संख्या में लोग मरेंगे , तो नरक हाउस फुल होना लाजमी है , ऐसे में यमराज की ये मजबूरी होगी कि सभी के लिए नरक में जगह की व्यवस्था होने तक स्वर्ग में ही रखा जाये ।

तो चलिए स्वर्ग में चलने की तैयारी करते हैं । संभव है कि पक्ष और प्रतिपक्ष हमारी मूर्खता पर हँसेंगे , मुस्कुरायेंगे , ठहाका लगायेंगे और हम बिना यमराज की प्रतीक्षा किये खुद अपनी मृत्यु का टिकट कराएँगे । जी हाँ , हमने मरने की पूरी तैयारी कर ली है , शायद आप भी कर रहे होंगे , आपके रिश्तेदार भी ? यानी कि पूरा समाज ? अन्य किसी मुद्दे पर हम एक हों या ना हों मगर वसुधैव कुटुम्बकम की बात पर एक हो सकते हैं , मध्यम होगा न चाहते हुये भी मरने के लिए एक साथ तैयार होना ।

तो तैयार हो जाएँ मरने के लिए , मगर एक बार में नहीं , किश्तों में । आप तैयार हैं तो ठीक , नहीं तैयार हैं तो ठीक , मरना तो है हीं , क्योंकि पक्ष- प्रतिपक्ष तो अमूर्त है , वह आपको क्या मारेगी , आपको मारने की व्यवस्था में आपके अपने हीं जुटे हुये हैं। यह मौत दीर्घकालिक है , अल्पकालिक नहीं । चावल में कंकर की मिलावट , लाल मिर्च में ईंट - गारे का चूरन, दूध में यूरिया , खोया में सिंथेटिक सामग्रियाँ , सब्जियों में विषैले रसायन की मिलावट और तो और देशी घी में चर्वी, मानव खोपडी, हड्डियों की मिलावट क्या आपकी किश्तों में खुदकुशी के लिए काफी नहीं ?भाई साहब, क्या मुल्ला क्या पंडित इस मिलावट ने सबको मांसाहारी बना दिया , अब अपने देश में कोई शाकाहारी नहीं , यानी कि मिलावट खोरो ने समाजवाद ला दिया हमारे देश में , जो काम सरकार तिरसठ वर्षों में नहीं कर पाई वह व्यापारियों ने चुटकी बजाकर कर दिया , जय बोलो बईमान की ।

भाई साहब, अगर आप जीवट वाले निकले और मिलावट ने आपका कुछ भी नही बिगारा तो नकली दवाएं आपको मार डालेगी । यानी कि मरना है , मगर तय आपको करना है कि आप कैसे मरना चाहते हैं एकवार में या किश्तों में? भूखो मरना चाहते हैं या या फिर विषाक्त और मिलावटी खाद्य खाकर? बीमारी से मरना चाहते हैं या नकली दवाओं से ? आतंकवादियों के हाथों मरना चाहते हैं या अपनी हीं देशभक्त जनसेवक पुलिस कि लाठियों , गोलियों से ? इस मुगालते में मत रहिए कि पुलिस आपकी दोस्त है। नकली इन्कौन्तर कर दिए जायेंगे , टी आर पी बढाने के लिए मीडियाकर्मी कुछ ऐसे शव्द जाल बूनेंगे कि मरने के बाद भी आपकी आत्मा को शांति न मिले ।

अब आप कहेंगे कि यार एक नेता ने रवरी में चारा मिलाया, खाया कुछ हुआ, नही ना ? एक नेतईन ने साडी में बांधकर इलेक्ट्रोनिक सामानों को गले के नीचे उतारा , कुछ हुआ नही ना ? एक ने पूरे प्रदेश की राशन को डकार गया कुछ हुआ नही ना ? एक ने कई लाख वर्ग किलो मीटर धरती मईया को चट कर गया कुछ हुआ नही ना ? और तो और अलकतरा यानी तारकोल पीने वाले एक नेता जीं आज भी वैसे ही मुस्करा रहे हैं जैसे सुहागरात में मुस्कुराये थे । भैया जब उन्हें कुछ नही हुआ तो छोटे - मोटे गोराख्धंदे से हमारा क्या होगा? कुछ नही होगा यार टेंसन - वेंसन नही लेने का । चलने दो जैसे चल रही है दुनिया । भाई कैसे चलने दें , अब तो यह भी नही कह सकते की अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता । क्योंकि मिलावट खोरो ने कुछ भी ऐसा संकेत नही छोड़ रखा है जिससे पहचान की जा सके की कौन असली है और कौन नकली ?

जिन लोगों से ये आशा की जाती थी की वे अच्छे होंगे , उनके भी कारनामे आजकल कभी ऑपरेशन तहलका में, ऑपरेशन दुर्योधन में, ऑपरेशन चक्रव्यूह में , आदि- आदि में उजागर होते रहते हैं । अब तो देशभक्त और गद्दार में कोई अंतर ही नही रहा। हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम - गुलिश्ता क्या होगा ?

रविवार, 5 सितंबर 2010

परिकल्पना समूह : एक विहंगावलोकन



परिकल्पना पर आज : गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माही....
आज शिक्षक दिवस है। दिवसों की भीड़ में एक और दिवस.......!
गुरु, शिक्षक, आचार्य, उस्ताद, अध्यापक या टीचर ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को व्याख्यातित करते है जो हमें सिखाता है, ज्ञान देता है। इसी महामानव को धन्यवाद देने का , अपनी कृतज्ञता/आभार/शुक्रगुजारी दर्शाने का एक दिन है जो की शिक्षक दिवस के रूप आज हमारे सामने है.....!
आगे पढ़ें ....



ब्लोगोत्सव-२०१० पर आज :शिक्षक दिवस पर कवि दीपक शर्मा की अभिव्यक्ति
आपके आशीष से ,तालीम से और ज्ञान से
उपदेश से ,उसूल से , सार और व्याख्यान से

अप्रमाण जीवन को मिली परिधि नई,नव दिशा
श्वेत मानस पटल पर स्वरूप विद्या का धरा

डगमगाते कदम को नेक राह दी,आधार दिया
संकीर्ण ,संकुचित बुद्धि को अनंत सा विस्तार
दिया.....आगे पढ़ें



वटवृक्ष पर आज : न जाने कहाँ से आए हैं हम ( गीत )
ज़िन्दगी को सब परिभाषित करना चाहते हैं , सब उसे पकड़ना चाहते हैं ...... पर ज़िन्दगी अनुत्तरित प्रश्न बनकर कभी घनी अमराइयों से गुजरती है, कभी हीर की कहानी बनती है कभी चनाब के पानी से सोहनी महिवाल का रूप लिए प्यार के गीत गाती है , कभी नन्हें पदचिन्हों से चेहरा सटाकर बैठती है, कभी पर्वतों पर बादल बनकर उतरती है , कभी वादियों से आवाज़ बनकर झंकृत होती है ............ आगे पढ़ें ॥



शब्द सभागार में आज: डॉ. ऋषभदेव शर्मा को आंध्र सरकार का सम्मान
हैदराबाद । आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद द्वारा वर्ष २०१० के लिए आंध्र प्रदेश के हिंदी सेवियों और हिंदी साहित्यकारों को विभिन्न पुरस्कार प्रदान किये जाने की घोषणा की गई है। इस वर्ष का हिंदीभाषी लेखक पुरस्कार विगत बीस वर्षों से दक्षिण भारत में हिंदी के उच्च स्तरीय अध्यापन और शोधकार्य के साथ निरंतर विविध विधाओं में श्रेष्ठ आलोचनात्मक तथा सृजनात्मक मौलिक लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा और साहित्य की सेवा कर रहे डॉ. ऋषभ देव शर्मा को प्रदान किए जाने का निर्णय लिया गया है। ...आगे पढ़ें

गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माही....


आज शिक्षक दिवस है। दिवसों की भीड़ में एक और दिवस.......!
गुरु, शिक्षक, आचार्य, उस्ताद, अध्यापक या टीचर ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को व्याख्यातित करते है जो हमें सिखाता है, ज्ञान देता है। इसी महामानव को धन्यवाद देने का , अपनी कृतज्ञता/आभार/शुक्रगुजारी दर्शाने का एक दिन है जो की शिक्षक दिवस के रूप आज हमारे सामने है.....!
केवल धन दे कर शिक्षा हासिल नहीं होती। अपने गुरु के प्रति आदर, सम्मान और विश्वास , ज्ञानार्जन में बहुत सहायक होता है। कई सारी दुविधाये केवल एक विश्वास की 'मेरे गुरु ने सही बताया है' से मिट जाती है। ऐसा कह गया है की बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त नहीं होता, अर्थात-"गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माही"। कबीर ने कहा है-
"गुरु पारस को अन्तरो ,जानत है सब सन्त ।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महन्त॥"
यह सर्वविदित है कि गुरु चाणक्य ने एक साधारण बालक को देश का सम्राट बना दिया , गुरु द्रोण ने अर्जुन को एक कुशल धनुर्धर होने का सम्मान दिया । अर्थात गुरु में वह शक्ति होती है कि वह अपने शिष्यको अपने समान महान बनाने का विशिष्ट कार्य करता है । कहा भी गया है -
"गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष ।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटे न दोष ॥ "
कबीर ने तो इतना तक कह डाला है कि -
"कबीरा ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥"
बहुत सारे कवियों /मनीषियों ने कितने ही पन्ने गुरु की महिमा में रंग डाले और गुरु को गोविन्द से भी ऊपर होने का मान दिया , जैसे- "गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥"
या फिर इन पंक्तियों में देखें-
जो गुरु बसै बनारसी ,सीष समुन्दर तीर।
एक पलक बिसरे नहीं ,जो गुण होय शरीर ॥
गुर धोबी शिष्य कपड़ा, साबू सिरजन हर।
सुरती सिला पुर धोइए, निकसे ज्योति अपार ॥
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष ।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटे न दोष ॥
गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट ।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट ॥
गुरु-गुरु में भेद है, गुरु-गुरु में भाव ।
सोइ गुरु नित बन्दिये, शब्द बतावे दाव ॥
आईये आज शिक्षक दिवस पर हम सब अपने -अपने गुरु/शिक्षक/मार्गदर्शक/प्रेरणास्त्रोत के प्रति अपना आभार, अपनी कृतज्ञता , अपनी शुक्रगुजारी व्यक्त करते हैं और इस अवसर पर विशेष रूप से उन्हें नमन करते हैं और कहते हैं-
" गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात्‌ परमब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवैनमः॥"
साथ ही जिनके जन्म दिवस पर हम मनाते हैं यह अविस्मरनीय दिवस उस महान शिक्षक भारत के द्वितीय राष्ट्रपति , शैक्षिक दार्शनिक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !

शनिवार, 4 सितंबर 2010

परिकल्पना समूह : एक विहंगावलोकन

वटवृक्ष पर आज : प्यार

ज़िन्दगी कहाँ से शुरू होती है , उस रुदन से, जब माँ के गर्भनाल से अलग होता है बच्चा , या वहाँ से जब माँ के अन्दर एक धड़कन कैद रहती है या वहाँ से जब पहली बार चोट का एहसास होता है या वहाँ से जब स्लेट पर अक्षर अक्षर शब्द उभरते हैं या वहाँ से जब बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण का ज्ञान मिलता है, या वहाँ से ......... कहाँ से ? जहाँ से शुरू हो ज़िन्दगी , प्यार सत्य है - हर रिश्तों का ! दरअसल रिश्तों का कोई नाम नहीं होता सिवाए 'प्यार' के ....आगे पढ़ें
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शब्द सभागार में आज : गाँधी जी पर आधारित हिन्दी फ़िल्म का शुभारम्भ पोर्टब्लेयर में

पोर्ट ब्लेयर । आइलैंड फ़िल्म प्रोडक्शन के द्वारा गाँधी जी पर आधारित एक हिन्दी फ़िल्म का शुभारम्भ पोर्टब्लेयर में हुआ। फ़िल्म की कथा, निर्माण एवं निर्देशन नरेश चन्द्र लाल द्वारा किया जा रहा है। कई राष्ट्रीय पुरस्कारों के विजेता श्री लाल की अंडमान आधारित ‘अमृत जल‘ फ़िल्म चर्चा में रही है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के डाक निदेशक एवं चर्चित साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव ने मुहुर्त क्लैप शॉट देकर फ़िल्म का शुभारंभ किया। आगे पढ़ें ....
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ब्लोगोत्सव-२०१० पर आज : श्री राम त्यागी का आलेख : प्रकृति से खिलवाड़

२०१० अमेरिका में याद रहेगा गल्फ ऑफ़ मेक्सिको में हो रहे तेल रिसाव के लिए ! भारत में भोपाल के गैस रिसाव काण्ड के अन्याय की चिंगारी पीडितो में तो पहले से ही सुलग रही थी, अब वो राजनीतिक और बौद्धिक बहस के गलियारों में भी रोशन हो रही है। आगे पढ़ें ....
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शब्द शब्द अनमोल पर आज : अज़ान का मतलब है उद्घोषणा

हमारा भारतीय समाज कई संस्कृति और कई भाषाओं का अनोखा गुलदस्ता है , गाहे- बगाहे हमें विभिन्न भाषाओँ के उन शब्दों को अंगीकार करने की आवश्यकता महसूस होती है जो हिन्दी में घुली-मिली है । इन्हीं भाषाओं में से एक है अरबी भाषा , जिसके बहुतेरे शब्द हिन्दी और उर्दू भाषा में काफी प्रमुखता के साथ प्रयुक्त होते रहे हैं । वर्णानुक्रम में यद्यपि हम अ श्रेणी के शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत कर रहे हैं .....इसीक्रम में एक शब्द आया है "अजान" जिसका प्रयोग उर्दू और हिन्दी में सामान रूप से आम-बोलचाल में होता है ......, आईये इस शब्द के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं आगे पढ़ें.....

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परिकल्पना पर आज : वजह क्या है ?


भूख-वहशी , भ्रम -इबादत वजह क्या है
हो गयी नंगी सियासत , वजह क्या है ?
मछलियों को श्वेत बगुलों की तरफ से -
मिल रही क्या खूब दावत , वजह क्या है ?
राजपथ पर लड़ रहे हैं भेडिये सब -
आम -जन की जान आफत , वजह क्या है ?
आगे पढ़ें .....

वजह क्या है ?



भूख-वहशी , भ्रम -इबादत वजह क्या है
हो गयी नंगी सियासत , वजह क्या है ?

मछलियों को श्वेत बगुलों की तरफ से -
मिल रही क्या खूब दावत , वजह क्या है ?

राजपथ पर लड़ रहे हैं भेडिये सब -
आम -जन की जान आफत , वजह क्या है ?

वीर योद्धाओं के पावन मुल्क में अब -
खो गयी मर्दों की ताक़त , वजह क्या है ?

आजकल बेटों को अपने बाप की भी -
कड़वी लगती है नसीहत , वजह क्या है ?

यूँ ग़ैर की करते तरफदारी '' प्रभात''
क्यों नहीं अपनों की चाहत , वजह क्या है ?

() रवीन्द्र प्रभात

(कॉपी राइट सुरक्षित )

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

बहुप्रतीक्षित वटवृक्ष का शुभारंभ

कहते हैं समय ठहरता नहीं , मौसम बदलते हैं , तेवर बदलते हैं , चाँद भी पूर्णता से परे होता है
और अमावस की रात आती है ... यूँ कहें अमावस जीवन का सत्य है, एक अध्यात्म की खोज -
जहाँ से ज्ञान मार्ग शुरू होता है ........
यह कहना है कवियित्री रश्मि प्रभा का , जिनके संचालन-समन्वयन में आज से वटवृक्ष का शुभारंभ किया जा रहा है

वटवृक्ष पर आज पढ़िए-
मुक्ति ! (यहाँ किलिक करें )
 
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