बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

अविस्मरणीय रहा वर्धा में आयोजित संगोष्ठी का दूसरा दिन


महात्मा गांधी अन्तराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला और संगोष्ठी के दूसरे दिन का दूसरा सत्र काफी महत्वपूर्ण रहा । एक ओर जहां आगंतुक ब्लोगर्स मित्रों ने अनेक बिंदूओं पर प्रकाश डालते हुए गंभीर विमर्श को जन्म देने की सार्थक पहल की वहीं साईबर लौ के एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने कई विषयों पर क़ानून की धाराओं-उप धाराओं पर प्रकाश डाला ।


ब्लॉगिंग के लिए आचार संहिता संभव नहीं है : रवि रतलामी



दूसरे दिन के द्वितीय
सत्र के दौरान हिंदी के वहुचर्चित ब्लोगर श्री रवि रतलामी ने भोपाल में बैठकर फोन के माध्यम से सेमीनार


के दौरान कंप्यूटर पर पावरप्वाइंट प्रेजेंटेशन देते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि "ब्लॉगिंग के लिए आचार संहिता संभव नहीं है। उन्होंने बतौर उदाहरण देते हुए बताया कि विकिलिक्स एक उदाहरण है कि कैसे इसके माध्यम से घोटालों को भी उजागर किया जा सकता है।"

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि "जिसे कानून का उल्लंघन करना ही होगा उसके लिए इंटरनेट पर कई साफ्टवेयर मौजूद हैं जैसे कि टॉर जिनका उपयोग करते हुए वह बेनामी ब्लॉगिंग कर सकता है।"
उनके इस पावर प्रजेंटेसन को विस्तार से यहाँ सुना जा सकता है

ब्लॉग भी अब कानून के दायरे में आ चुका है : पवन दुग्गल

श्री पवन दुग्गल ने अपने वक्तव्य में कहा कि -"किसी कंपनी के खिलाफ कोई अज्ञात बेनामी ब्लॉगर उसके उत्पाद के बारे में अंट-शंट लिखे जा रहा था। कोर्ट में मामला ले जाया गया। उस ब्लॉगर के खिलाफ फैसला आया लेकिन दिक्कत यह थी कि वह ब्लॉग नार्वे से संचालित था। फिर इसके लिए भारतीय कमीशन के माध्यम से नार्वे के कमीशन से संपर्क किया गया तब जाकर उस व्यक्ति तक पहुंचा जा सकाअज्ञात बेनामी ब्लोगर से संबंधित उन्होंने एक मुरादाबाद से संवंधित मामले का भी हवाला दिया । "



उन्होंने कहा कि- "ब्लॉग धीरे-धीरे लेकिन जल्दी असर दिखाता है, लोग उसे पढ़कर एक धारणा कायम करते हैंइसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कारगिल हमले के दौरान बरखा दत्त पर ब्लॉग हमला किये जाने का भी हवाला दिया।"



उन्होंने कहा कि यदि आपके ब्लॉग पर कोई ऐसी टिप्पणी अथवा पोस्ट है जो आपत्तिजनक है तो हम पहले सर्विस प्रोवाईडर से जानकारी प्राप्त करते हैं और उस बेनामी ब्लोगर तक पहुँचाने के बाद वास्तविक वस्तुस्थिति की जानकारी लेते हैं । फिर यह देखते हैं कि उसका कृत्य किस धारा अथवा उपधारा के अंतर्गत आता है । उसके बाद हम कार्यवाई हेतु न्यायालय की शरण में जाते हैं ।"


कुलपति श्री विभूति नारायण राय के एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि -"यदि आपने ऐसी कोई पोस्ट डाली हो जो विबादासपद है तो संज्ञान में आते ही उसे तत्काल हटा लें , और अपने इस कृत्य के लिए सार्वजनिक माफी मांग लें तो आप बच सकते हैं , बसरते कि आहत व्यक्ति ने आपके पोस्ट का प्रिंट न निकाला हो या फिर भावनाओं में आबद्ध होकर आपको माफ़ कर दे तब ।"


उज्जैन के हरफन मौला ब्लोगर सुरेश चिपलूनकर के एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि-" देश के इंफर्मेशन एक्ट 2000 में 2008 में संशोधन पारित किया गया है जो कि 27 अक्तूबर 2009 से लागू हो चुका है। इस एक्ट के अंतर्गत ब्लॉग, ब्लैकबेरी यहां तक कि सेटेलाइट फोन भी आ चुके हैं ।"


इसी क्रम में उन्होंने कहा कि " ब्लॉगिंग ने आपको पूरी स्वतंत्रता नहीं दी है कि किसी के बारे में कुछ भी जो मन में आया लिख दें, बिना किसी सबूत के। ब्लॉग कानून के दायरे में आ चुका है। कानूनन ब्लॉगिंग इंटरनिजरी है। धारा 79 कहता है कि जिम्मेदारी ब्लॉग, ब्लॉगर व ब्लॉगिंग प्लेटफार्म पर है। किसी जुर्म या कमीशन में भागीदार हैं तो पूरे तौर पर जिम्मेदार। तीन साल की सजा व पांच लाख का जुर्माना। पांच करोड़ तक का हर्जाना (6 माह के भीतर) भी हो सकता है।"


भड़ास ब्लॉग के संचालक श्री यशवंत सिंह के एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि " यदि आप ब्लॉग लेखन से जुड़े हैं और आपको किसी भी राज्य की पुलिस पूछताछ के लिए बुलाती है तो आपको जाना चाहिए और सहयोग करना चाहिए , इससे आप अन्य किसी भी विधिक समस्याओं से बच सकते हैं । "



सोशल नेट्वर्किंग से संवंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में पवन दुग्गल का कहना है कि “वर्तमान समय का आईटी अधिनियम सन 2000 का है जिसमें मूलतः ई-वाणिज्य को बढ़ावा देने का संशोधन था. तब किसी ने सोशल नेटवर्किंग साइट का नाम भी नहीं सुना था. परन्तु आजकल सोशल नेटवर्किंग साइट का व्यापक प्रयोग होने लगा है अतः पिछले वर्ष इस अधिनियम को निगमित किया गया. और अब विशेष रूप से तलाक के मामलों में इस प्रवृत्ति का चलन बढ़ रहा है.

आमतौर पर इन संदेशों का प्रयोग माध्यमिक सबूतों के रूप में होता है परन्तु यह प्राथमिक सबूतों की तरह महत्वपूर्ण भी हो सकते हैं. दुग्गल के अनुसार अगर हम गुस्सा होकर भी कोई ट्वीट्स या संदेश (जैसे कि “मैं अपनी पत्नी से नफ़रत करता हूं”) करते हैं और अगर इन संदेशों का प्रिंटआउट या स्क्रीन शॉट अदालत में पेश होता है तो यह माध्यमिक सबूत माने जाते हैं.

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि तकनीकी रूप से बेनामी ब्लोगिंग को रोक पाना बहुत मुश्किल है। अवेयरनेस लाकर ही ब्लोगर्स को इनसे दूर रखा जा सकता है।


अश्लीलता और खुलेपन के मुद्दे पर श्री पवन दुग्गल का कहना था कि "काफी बड़ी संख्या में लोग इंटरनेट पर पॉर्न मटीरियल को ही देखना, पढ़ना चाहते हैं। खास बात यह है कि अश्लीलता के मुद्दे पर भी समाज दो तबकों में बंट जाता है, एक में खुलेपन के हिमायती तो दूसरे में संस्कारों के साथी। कोई-न-कोई कॉमन व्यू तो जरूर बनना चाहिए। कम-से-कम खुलेपन की लिमिट तो तय की ही जा सकती है।"

...........रपट अभी जारी है

23 comments:

  1. एक विहंगम रिपोर्ट दे दिया आपने, सचमुच विहंगावलोकन है आपके द्वारा दी गयी समग्र जानकारी ...!

    जवाब देंहटाएं
  2. साईबर लव के एक्सपर्ट इसे सुधार लें ।
    अब तक की प्रस्तुति शानदार :)

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी यह रिपोर्ट काम आएगी हम ब्लोगरों को, आभार इस विस्तृत रिपोर्ट के लिए !

    जवाब देंहटाएं
  4. एक जानकारीपूर्ण समग्र रिपोर्ट के लिए बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  5. आपने वर्धा के बहाने जानकारियों का पिटारा खोल दिया है, अच्छा लगा पढ़कर !

    जवाब देंहटाएं
  6. ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आभार रविन्द्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  7. इस बार के सम्मेलन की सबसे बडी उपलब्धि यही कही जाए कि एक प्र्ख्यात कानूनविद ने ब्लॉगिंग और कानून पर संपूर्ण जानकारी से पूरे ब्लॉगजगत को परिचित कराया तो शायद ये ठीक ही होगा । अब देखना ये है कि इन कानूनों का प्रयोग कब कौन कैसे करता है ..और शायद तभी इसकी गंभीरता को लोग समझ पाएंगे । जानकारी देने के लिए शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  8. रविन्द्र भाई इस कार्यक्रम की अभूतपूर्व सफलता से मैं आल्हादित हूँ...आपको बहुत बहुत बधाई...

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  9. महत्वपूर्ण जानकारी के लिये धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  10. Priti sagar..That fraud lady will coordinate the blogging in wardha..who has been declared Literary writer without any creative work..who has got prepared fake icard of non existing employee..surprising

    जवाब देंहटाएं
  11. Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…

    जवाब देंहटाएं
  12. Praveen Pandey has made a comment on the blog of Mahatma Gandhi Hindi University , Wardha on quality control in education...He has correctly said that a lot is to be done in education khas taur per MGAHV, Wardha Jaisi University mein Jahan ka Publication Incharge Devnagri mein 'Web site' tak sahi nahin likh sakta hai..jahan University ke Teachers non exhisting employees ke fake ICard banwa kar us per sim khareed kar use karte hain aur CBI aur Vigilance mein case jaane ke baad us SIM ko apne naam per transfer karwa lete hain...Jahan ke teachers bina kisi literary work ke University ki web site per literary Writer declare kar diye jaate hain..Jahan ke blog ki moderator English padh aur likh na paane ke bawzood english ke post per comment kar deti hain...jahan ki moderator ko basic technical samajh tak nahi hai aur wo University ke blog per jo post bhejti hain wo fonts ki compatibility na hone ke kaaran readable hi nain hai aur sabse bada Ttamasha Siddharth Shankar Tripathi Jaise log karte hain jo aisi non readable posts per apne comment tak post kar dete hain...sach mein Sudhar to Mahatma Handhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha mein hona hai jahan ke teachers ko ayyashi chod kar bhavishya mein aisa kaam na karne ka sankalp lena hai jisse university per CBI aur Vigilance enquiry ka future mein koi dhabba na lage...Sach mein Praveen Pandey ji..U R Correct.... बहुत कुछ कर देने की आवश्यकता है।

    जवाब देंहटाएं
  13. MAHATMA Gandhi Hindi University , Wardha ke blog per wahan ke teacher Ashok nath Tripathi nein 16 november ki post per ek comment kiya hai …Tripathi ji padhe likhe aadmi hain ..Wo website bhi shuddha likh lete hain..unhone shayad university ke kisi non exhisting employee ki fake id bhi nahin banwai hai..aur unhone program mein present na rahne ke karan pogram ke baare mein koi comment nahin kia..I respect his honesty ..yahan to non readable post per bhi log apne comment de dete hain...really he is honest...Unhen salaam….

    जवाब देंहटाएं
  14. MAHATMA Gandhi Hindi University , Wardha ke blog per wahan ke teacher Ashok nath Tripathi nein 16 november ki post per ek comment kiya hai …Tripathi ji padhe likhe aadmi hain ..Wo website bhi shuddha likh lete hain..unhone shayad university ke kisi non exhisting employee ki fake id bhi nahin banwai hai..aur unhone program mein present na rahne ke karan pogram ke baare mein koi comment nahin kia..I respect his honesty ..yahan to non readable post per bhi log apne comment de dete hain...really he is honest...Unhen salaam….

    जवाब देंहटाएं
  15. There is an article on the blog of Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha ‘ Hindi-Vishwa’ of RajKishore entitled ज्योतिबा फुले का रास्ता ..Article ends with the line.....दलित समाज में भी अब दहेज प्रथा और स्त्रियों पर पारिवारिक नियंत्रण की बुराई शुरू हो गई है…. Ab Rajkishore ji se koi poonche ki kya Rajkishore Chahte hai ki dalit striyan Parivatik Niyantran se Mukt ho kar Sex aur enjoyment ke liye freely available hoon jaisa pahle hota tha..Kya Rajkishore Wardha mein dalit Callgirls ki factory chalana chahte hain… besharmi ki had hai … really he is mentally sick and frustrated ……V N Rai Ke Chinal Culture Ki Jai Ho !!!

    जवाब देंहटाएं
  16. आज महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा के हिन्दी-विश्व ब्लॉग ‘हिन्दी-विश्व’ पर ‘तथाकथित विचारक’ राजकिशोर का एक लेख आया है...क्या पवित्र है क्या अपवित्र ....राजकिशोर लिखते हैं....
    अगर सार्वजनिक संस्थाएं मैली हो चुकी हैं या वहां पुण्य के बदले पाप होता है, तो सिर्फ इससे इन संस्थाओं की मूल पवित्रता कैसे नष्ट हो सकती है? जब हम इन्हें अपवित्र मानने लगते हैं, तब इस बात की संभावना ही खत्म हो जाती है कि कभी इनका उद्धार हो सकता है .....
    क्या राजकिशोर जैसे लेखक को इतनी जानकारी नहीं है कि पवित्रता और अपवित्रता आस्था से जुड़ी होती है और नितांत व्यक्तिगत होती है. क्या राजकिशोर आस्था के नाम पर पेशाब मिला हुआ गंगा जल पी लेंगे.. राजकिशोर जी ! नैतिकता के बारे में प्रवचन देने से पहले खुद नैतिक बनिए तभी आप समाज में नैतिकता के बारे में प्रवचन देने के अधिकारी हैं ईमानदारी को किसी तरह के सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं पड़ती. आप लगातार किसी की आस्था और विश्वास पर चोट करते रहेंगे तो आपको कोई कैसे और कब तक स्वीकार करेगा ......महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा को अयोग्य, अक्षम, निकम्मे, फ्रॉड और भ्रष्ट लोग चला रहे हैं....मुश्किल यह है कि अपवित्र ही सबसे ज़्यादा पवित्रता की बकवास करता है.......
    प्रीति कृष्ण

    जवाब देंहटाएं
  17. महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के ब्लॉग हिन्दी-विश्व पर २६ फ़रवरी को राजकिशोर की तीन कविताएँ आई हैं --निगाह , नाता और करनी ! कथ्य , भाषा और प्रस्तुति तीनों स्तरों पर यह तीनों ही बेहद घटिया , अधकचरी ,सड़क छाप और बाजारू स्तर की कविताएँ हैं ! राजकिशोर के लेख भी बिखराव से भरे रहे हैं ...कभी वो हिन्दी-विश्व पर कहते हैं कि उन्होने आज तक कोई कुलपति नहीं देखा है तो कभी वेलिनटाइन डे पर प्रेम की व्याख्या करते हैं ...कभी किसी औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करते हुए कहते हैं कि सब सज कर ऐसे आए थे कि जैसे किसी स्वयंवर में भाग लेने आए हैं .. ऐसा लगता है कि ‘ कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की अपने परिवार की छीनाल संस्कृति का उनके लेखन पर बेहद गहरा प्रभाव है . विश्वविद्यालय के बारे में लिखते हुए वो किसी स्तरहीन भांड से ज़्यादा नहीं लगते हैं ..ना तो उनके लेखन में कोई विषय की गहराई है और ना ही भाषा में कोई प्रभावोत्पादकता ..प्रस्तुति में भी बेहद बिखराव है...राजकिशोर को पहले हरप्रीत कौर जैसी छात्राओं से लिखना सीखना चाहिए...प्रीति सागर का स्तर तो राजकिशोर से भी गया गुजरा है...उसने तो इस ब्लॉग की ऐसी की तैसी कर रखी है..उसे ‘कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की छीनाल संस्कृति से फ़ुर्सत मिले तब तो वो ब्लॉग की सामग्री को देखेगी . २५ फ़रवरी को ‘ संवेदना कि मुद्रास्फीति’ शीर्षक से रेणु कुमारी की कविता ब्लॉग पर आई है..उसमें कविता जैसा कुछ नहीं है और सबसे बड़ा तमाशा यह कि कविता का शीर्षक तक सही नहीं है..वर्धा के छीनाल संस्कृति के किसी अंधे को यह नहीं दिखा कि कविता का सही शीर्षक –‘संवेदना की मुद्रास्फीति’ होना चाहिए न कि ‘संवेदना कि मुद्रास्फीति’ ....नीचे से ऊपर तक पूरी कुएँ में ही भांग है .... छिनालों और भांडों को वेलिनटाइन डे से फ़ुर्सत मिले तब तो वो गुणवत्ता के बारे में सोचेंगे ...वैसे आप सुअर की खाल से रेशम का पर्स कैसे बनाएँगे ....हिन्दी के नाम पर इन बेशर्मों को झेलना है ..यह सब हमारी व्यवस्था की नाजायज़ औलाद हैं..झेलना ही होगा इन्हें …..

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
Top