कैसे हाँ कहूँ ?
जब ना कहना चाहता हूँ ?
पर ना भी कैसे कहूँ?
समझ नहीं पाता हूँ 
झंझावत में फंसा हूँ
रिश्तों के बिगड़ने का खौफ 
दुश्मनी मोल लेने का डर
मुझे ना कहने से रोकता है 
कैसे उसूलों को तोडूँ
मन को दुखी कर के हाँ कहूँ
दुविधा में फंसा हूँ
क्यों ना एक बार 
नम्रता से ना कह दूं
सदा के लिए दुविधा से 
मुक्ती पा लूँ
कुछ समय के लिए 
लोगों को नाराज़ कर दूं 
समय के अंतराल में 
सब समझ जायेंगे 
आदत समझ कर भूल 
जायेंगे 
मेरा मन खुश रहेगा
फिर हाँ ना के झंझावत में 
नहीं फंसेगा
03-06-2012
557-77-05-12
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर"
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर"
 (जीवन में अक्सर ऐसी स्थिति आती है जब इंसान ना कहना चाहता है,पर रिश्तों में कडवाहट के डर से घबराता है ,और
अनुचित बात के लिए भी हाँ कह कर मन को दुखी करता है)
 
आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 5/6/12 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है, बहुत ही सुन्दर और मनमोहक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंवैसे अगर पहली ही बार में न बोल दें तो ही अच्छा है ...क्योंकि जब न बोलेंगे..बुरे बनेंगे .....फिर इतने संत्रास से गुज़रना क्यों.....
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