मिलन 
  
  मिलन मिलन में अक्सर काफी अंतर होता
 जल जल ही रहता है ,टुकड़े  पत्थर  होता 
  दूर क्षितिज में मिलते दिखते ,अवनी ,अम्बर 
  किन्तु मिलन यह होता एक छलावा  केवल 
  क्योंकि धरा आकाश  ,कभी भी ना मिलते है 
  चारों तरफ भले ही वो मिलते ,दिखते  है 
  मिलन नज़र से नज़रों का है प्यार जगाता 
  लब से लब का मिलन दिलों में आग लगाता 
  तन से तन का मिलन ,प्रेम की प्रतिक्रिया है 
  पति ,पत्नी का मिलन  रोज  की दिनचर्या है 
  छुप छुप मिलन प्रेमियों का होता उन्मादी 
  दो ह्र्दयों का मिलन पर्व ,कहलाता  शादी 
   माटी और बीज का जल से होता  संगम 
 विकसित होती पौध ,पनपती बड़ा वृक्ष बन 
 सिर्फ मिलन से ही जगती क्रम चलता है 
 अन्न ,पुष्प,फल,संतति को जीवन मिलता है 
 हर सरिता,अंततः ,मिलती है ,सागर से 
 मीठे जल का मिलन सदा है खारे जल से 
 मिलन कोई होता है सुखकर ,कोई दुखकर
 एक मिलन मृदु होता और दूसरा टक्कर 
 मधुर मिलन तो होता सदा प्रेम का पोषक 
 पर टक्कर का मिलन अधिकतर है विध्वंशक 
 टकराते चकमक पत्थर,निकले चिगारी 
 मिले हाथ से हाथ ,दोस्ती होती  प्यारी 
 हवा मिले तरु से तो हिलते ,टहनी ,पत्ते 
 मिले पुष्प,मधुमख्खी ,भरते मधु से छत्ते 
 शीत ग्रीष्म के मिलन बीच आता बसंत है 
 मिलन मौत से,जीवन का बस यही अंत है 
 
 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
     
 
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