डॉ हरदीप सिन्धु कहती हैं कि =
हाइकु में ‘कहे’ से ‘अनकहा’ ज़्यादा होता है । जो नहीं कहा
गया वो पाठक को खुद कहना होता है ।
डुबकी लगानी पड़ती है। यह आप की अपनी क्षमता पर
निर्भर करता है कि आप क्या ढूंढ सकते हैं ।
अगर आप हाइकु को समझने की क्षमता रखते हैं तो यह
तीन पंक्तियाँ आप को तीन-तीन पन्नों पर लिखी जाने वाली
कविता से भी ज्यादा लुत्फ़ दे सकती हैं ।
" बाशो के अनुसार  हाइकु दैनिक जीवन में अनुभूत सत्य की अभिव्यक्ति है, पर वह सत्य एक विराट सत्य का अंश होना चाहिए। हाइकु सम्पूर्ण कविता नहीं है, वह विराट सत्य की ओर इंगित करने वाली सांकेतिक अभिव्यक्ति है। शब्द-संयम हाइकु की अनिवार्यता है, इसके साथ ही भाव संयम भी। "
तो सत्य की अनुपम अभिव्यक्तियों का आनंद लें -
रेखा श्रीवास्तव  http://hindigen.blogspot.in/
राजनीति में
रसूख देखना है
गाड़ी को देखो
*******
धरा कहती
इंसान से रुक जा
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रिश्तों में अभी
रहने दो गरमी
खून से जुड़ी ।
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सपने टूटे
टुकड़ों को सहेजा
आंसूं चू पड़े। 
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सपने मुझे 
देखने का हक था 
मर्जी उनकी। 
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बलात्कार में 
कलंक नारी पे है 
वे हैं निर्दोष। 
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नारी के लिए 
विवाह की मर्यादा 
शिरोधार्य है। 
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सात फेरे है 
सिर्फ नारी के लिए 
नर आजाद . 
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शब्दों के तीर 
छलनी कर गए 
आत्मा हमारी .
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प्रकृति प्रेम 
बातों से नहीं कहो 
कर्मों से बोलो .
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नौका का हश्र 
नदी पार कराये 
खुद पानी में .
********
गंगा क्यों  रोये ?
इतने पाप धोये 
मैली हो गयी .
*********
जल से प्राण 
मर्म को समझना 
अभी जल्दी है। 
*********
हर पग पे  
वहशी खड़े हैं तो 
बचोगी कैसे ?
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कीमतें तय 
क्या चाहिए तुमको ? 
मुंह तो खोलो। 
*********
आत्मा रोती  है  
उनके कटाक्षों से 
कोई दंड है? 
*********
बेलगाम हैं 
सभ्यता हार गयी 
दोषी कौन है? 
**********
अनुपमा त्रिपाठी  http://anupamassukrity.
1-
हृदय  वही  
पाषाण नहीं । 
2-
मोम-सा मन
आंच मिली ज़रा सी ..
पिघल गया  ।
3-
प्रवाह लिये  
सरिता- सा  हृदय
बहता गया  ।
4-
छाई बादरी 
बरसती  बूंदरी ....
नाचे  मयूर .. ..
5-
मेघ -घटाएँ.
छाई उर -अम्बर
भाव बरसें ।
6-
घटा सावन ,
भिगोये तन मन ..
प्रेम बरसे 
7-
मन मीन क्यों 
आकुल रहती है
लिये पिपासा...?
8-
मेरा हृदय
आस की डोर बँधा.
पतंग बना ।
डॉ रमा द्विवेदी  http://ramadwivedi.wordpress.
१- वंश का नाम
चलाता है आत्मज
बेबुनियाद ।
२- खलीफ़ा बुर्ज
मेहनत किसी की
नाम किसी का?
३- क्रान्ति का बीज
चिंगारी बनी आग
जीत निश्चित ।
४- सुलगा दिल
रोया था रातभर
ज़ुबां खामोश ।
५- बिना कफ़न
हो जाती हैं दफ़न
दहेज बिना ।
६- पीड़ा का मौन
पिघलता प्यार से
समझे कौन ?
७- बहरे लोग
कोयल मत कूक
मृदुल बोल।
८- स्त्री-भ्रूण हत्या
बिगड़ा संतुलन
सृष्टि का नाश ।
९- काल-नियति
दो पाटन के बीच
बचा न कोय ।
१०- बेटी का नेह
पूंजी मात-पिता की
अटूट निष्ठा ।
डॉ नूतन गैरोला  http://amritras.blogspot.in/
1
मित्रता में अकथ 
स्वार्थ गहरा ।
2
विष न डंक
फुंकार हो फिर भी,
शक्ति का फन ।
3
तरु जो सीधा
कुल्हाड़ी का निशाना !
बनो चतुर  !!
4
निर्भय बन 
हो कार्य निष्पादित 
अजय बनो  ।
5
फैले सुगंध 
हवा की दिशा पर,
यश चौदिशा  ।
6
जन्म से नहीं
आचरण से व्यक्ति
बने महान  ।
7
खोलो न भेद 
विश्वसनीय को भी 
हो कभी धोखा  ।
8
भय भगाओ,
पास जब फटके
लड़ो व जीतो ।
9
माँ है महान 
देवता न तुल्य है, 
माँ से बढ़के । 
10
लाड हो पर 
डाँट दो गलत पे
है ये भलाई   ।
एक मध्यांतर लूँ उससे पहले आइये चलते हैं वटवृक्ष पर जहां इंजनियार प्रदीप कुमार साहनी उपस्थित हैं अपनी अभिव्यक्ति यंग इंडिया के साथ ...यहाँ किलिक करें 
 






बेहतरीन संकलन !
जवाब देंहटाएंबढ़िया हाइकु -सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंमाँ है महान
जवाब देंहटाएंदेवता न तुल्य है,
माँ से बढ़के ।
सभी हाइकू एक से बढ़कर एक ...
सादर
परिकल्पना में अपनी रचनाये देख कर प्रसन्नता हुई...आपका आभार
जवाब देंहटाएंडॉ रमा द्विवेदी ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हाइकु संकलन है ...सभी रचनाकारों को बधाई ।अपने हाइकु परिकल्पना में देख कर हर्षित हूँ ....बहुत -बहुत हार्दिक आभार रश्मि जी...
जल से प्राण
जवाब देंहटाएंमर्म को समझना
अभी जल्दी है।
~~~~~~~~~~~~~
स्त्री-भ्रूण हत्या
बिगड़ा संतुलन
सृष्टि का नाश ।
~~~~~~~~~~~~~
विष न डंक
फुंकार हो फिर भी,
शक्ति का फन ।
~~~~~~~~~~~~~
मन मीन क्यों
आकुल रहती है
लिये पिपासा...?
~~~~~~~~~~~~~
पलते रहे
नयनों के सपने
अभावों में जो
जीवन मोड़ पर
फलने से पहले
चटकते हैं
आओ थोड़ा ध्यान दें
तोहफों से भर दें !!
"परिकल्पना' में हाइकू का बेहतरीन संकलन देख कर बहुत ख़ुशी हुई।
जवाब देंहटाएंहाइकू का बेहतरीन संग्रह------सभी को बधाई
जवाब देंहटाएंएक बार फिर से , बेहतरीन हाइकू का चयन |
जवाब देंहटाएंसादर