 किसी दरिया , किसी मझदार से नफरत नहीं करता ।
 किसी दरिया , किसी मझदार से नफरत नहीं करता । सही तैराक हो तो धार से नफरत नहीं करता । ।
यक़ीनन शायरी का इल्म जिसके पास होता वह -
किसी नुक्कड़ , किसी किरदार से नफरत नहीं करता।
परिन्दों की तरह जिसने गुजारी जिन्दगी अपनी -
गुलाबों के सफ़र में खार से नफरत नहीं करता ।
 चलो अच्छा हुआ तुमने बहारों को नहीं समझा -
चलो अच्छा हुआ तुमने बहारों को नहीं समझा -नहीं तो इस क़दर पतझार से नफरत नहीं करता।
फटे कपड़ों से तेरी आबरू ग़र झांकती होती-
मियां परभात तू बीमार से नफरत नहीं करता । ।
* रविन्द्र प्रभात
 

 
 
बहुत ही प्रेरणा दायी गजल है, भाई प्रभात जी. खास कर पहला शेर तो लाजवाब है जो हमें जिन्दगी में शिकायतो से किनारा कर सही दिशा में कदम उठाने को उकसाता है.
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