एक संदेश कविता के माध्यम से देश के भाग्य विधाताओं के लिए --
हमें-
स्वच्छ , प्रदूषण रहित 
शहर-कस्वा-गाँव चाहिए । 
जहाँ शेर-बकरी साथ बैठे 
वह पड़ाव चाहिए ।। 
हमें नहीं चाहिए 
कोई भी सेतु 
इस उफनती सी नदी को
पार करने हेतु 
हाकिम और ठेकेदार
पैसे हज़म कर  जाएँ 
और उद्घाटन के पहले 
टूटकर बिखर जाएँ 
हमें पार करने के लिए 
बस एक नाव चाहिए । 
जहाँ शेर-बकरी साथ वैठे 
वह पड़ाव चाहिए ।। 
हमें नही चाहिए 
कारखानों का धुँआ 
जल- जमाव 
सुलगता तेल का कुँआ 
चारो तरफ 
लौदस्पिकर की आवाज़ 
प्रदूषित पानी 
और मंहगे अनाज 
सुबह की धूप, हरे- भरे 
पेड़ों की छाँव चाहिए । 
जहाँ शेर-बकरी साथ बैठे 
वह पड़ाव चाहिए ।। 
हमें नहीं चाहिए 
रिश्वत के घरौंदे 
जिसमें रहते हों
वहशी / दरिन्दे 
मंडी में -
औरत की आबरू बिके
असहायों की आंखों से 
रक्त टपके 
जहाँ पूज्य हो औरत 
हमें वह ठांव चाहिए । 
जहाँ शेर- बकरी साथ बैठे 
वह पड़ाव चाहिए ।। 
()रवीन्द्र प्रभात 
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कवि मन कितना सरल होता है! कल्पना बहुत सुन्दर करता है. पर कष्ट यही है कि वह धरा पर उतरती नहीं.
जवाब देंहटाएंजीवन कई मायनों में रुक्ष होता है. पर उसमें कविता को भी स्थान चाहिये. मैं भी चाहूंगा कि आपकी चाह सच बने.
कलम में बहुत ताकत है. थामें रहें और इसी वजन से प्रहार करते रहें, बात जरुर बनेगी. शुभकामनायें और बधाई.
जवाब देंहटाएंजहाँ पूज्य हो औरत
जवाब देंहटाएंहमें वह ठांव चाहिए ।
जहाँ शेर- बकरी साथ बैठे
वह पड़ाव चाहिए ।।
बहुत अच्छा लगा पढ़कर ...बढ़िया कविता...बधाई
प्रिय रवीन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंआपकी कविता पढ़ी , अच्छी लगी, आप ऐसे ही लिखते रहें .
आपका-
मयन्क
सुबह की धूप, हरे- भरे
जवाब देंहटाएंपेड़ों की छाँव चाहिए ।
जहाँ शेर-बकरी साथ बैठे
वह पड़ाव चाहिए ।।
ये आपके विजन को स्प्षट करता है. आपके नजरिये को दर्शाता है