शनिवार, 15 मार्च 2008

चीखते-बोलते बेहिचक , आदमी बेजुवां देखिए !



हरतरफ हादसा देखिए !

देश की दुर्दशा देखिए !!

क्षेत्रवादी करे टिप्पणियाँ -

देश का रहनुमा देखिए !!

लक्ष्य को देख करके कठिन-

कांपता नौजवां देखिए !!

भर दिए कैसेटों में जहर -

जुर्म की कहकशां देखिए !!

गा रहे गीत गूंगे सभी -

संजीदा है हवा देखिए !!

वो कहने को बांहों में हैं -

फ़िर भी ये फासला देखिए !!

चीखते-बोलते बेहिचक -

आदमी बेजुवां देखिए !!

बेच करके चमन चल दिया-

बाग़ का पासबां देखिए !!

जालिमों को करो अब रिहा-

मुन्सिफों के वयां देखिए !!

"प्रभात" गुमनाम है यूं मगर-

शायरी की जुबां देखिए !!

() रवीन्द्र प्रभात

9 comments:

  1. अच्छा है भाई. छोटे बह्र में बड़ी बात. उम्दा.

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  2. ग़ज़ब! आपने तो गागर में सागर भर दिया। एक छोटी से कविता में पूरे भारत का मौजूदा चित्र दिखा दिया.

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  3. एक्दम सच है आप ने बड़े जोरदार ढंग से अपनी बात रखी है

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  4. बेहतरीन - बहुत सशक्त - बिल्कुल बेज़ुबान नहीं - डायनामाईट - मनीष

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  5. वो कहने को बांहों में हैं -फ़िर भी ये फासला देखिए !!
    चीखते-बोलते बेहिचक -आदमी बेजुवां देखिए !!

    वाह!!

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  6. खामोशी तोड़ती हुई , हालात को ललकारती हुई
    ज़मीनी रचना . जमकर लिखते रहिए .
    आपकी परिकल्पना में भाषा के साथ जीने की कला की पुकार सुन पा रहा हूँ .

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  7. बेच करके चमन चल दिया-
    बाग़ का पासबां देखिए !!
    जालिमों को करो अब रिहा-
    मुन्सिफों के वयां देखिए !!

    बहुत खूब रवीन्द्र जी...अच्छा लगा...बधाई

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  8. बेच करके चमन चल दिया-
    बाग़ का पासबां देखिए !!
    -----------------

    क्या जोरदार पंक्तियाँ हैं
    दीपक भारतदीप

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