बुधवार, 26 मार्च 2008

जब शहर से वापस आना ....!

इसे कविता समझें या संदेश , या फ़िर अभिव्यक्ति के माध्यम से सुझाव उन गुमराह नवजवानों को जो अज्ञानतावश शहर के गलैमर की चकाचौंध में खोकर अपने आस-पास के अवसरों का परित्याग कर चले जाते हैं कहीं दूर .....किसी महानगर में और सबकुछ लुटाकर जब आते हैं होश में तो बहुत देर हो चुकी होती है ....कुछ जो होश में नही आते उन्हें होश में लाने का काम कर जाती हैं परिस्थितियाँ .....जब उनके द्वारा गाँव आने का इरादा किया जाता है तो उनके परिजन की क्या अपेक्षाएं होती है उनसे ? ......प्रस्तुत है उसी अभिव्यक्ति का एक कोना आपके लिए -

!! जब शहर से वापस आना !!

कारखानों का विषैला धुआं

मौत की मशीन

नदियों का प्रदूषित पानी

जिस्म खरोंचती बेशर्म लड़कियां

होटलों की रंगीन शाम

और फिल्मों के -

अश्लील शब्द मत लाना

जब शहर से वापस आना .....!!

उन्मादियों के नारे

सायरन वाली गाड़ियों की चीख

सिसकते फुटपाथ

घटनाओं- दुर्घटनाओं के चित्र

अखावारों के भ्रामक कोलाज़

और दंगे की -

गर्म हवाएं मत लाना

जब शहर से वापस आना ....!!

मगर-

दादा के दम्मे की दवा

माँ के लिए एक पत्थर की आंख

बच्चों के लिए गुड का ढेला

और बहन के लिए

पसीने से तरबितर नवयुवक का रिश्ता

अवश्य लाना

जब शहर से वापस आना .....!!

()रवीन्द्र प्रभात

10 comments:

  1. बधाई हो भाई इस रचना के लिए. मन को छू गई.

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  3. गाँव मे कारखानों का विषैला धुआं नही पर शराब की बदबु है।
    मौत की मशीन नही पर गाँझा खुब मिलता है।
    अश्लील शब्द नही है लेकिन गाली के बिना न कोई बात शुरु होती है ओर न ही खत्म ।
    सिसकते फुटपाथ नही पर भूमि हीन किसानो के भूख से बिलखते बच्चे जरुर है।
    घटनाओं- दुर्घटनाओं के चित्र लेकिन जिसकी लाठी उसकी भैस । जमीन के लिए भाई को काटना बहूत आम बात है।
    बच्चों के लिए गुड का ढेला-- चाहे उसकी माँ उस ढेले को कुत्ते को खिला दे।
    तो भईया इस गाँव ओर शहर की डाईकोटमी से बहार निकले।

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  4. भाई , आपका मेरे ब्लॉग पर आना अच्छा लगा ! कहा गया है कि निंदक नियरे राखिये .......ऐसे ही आकर मेरा मार्गदर्शन करते रहें ....समालोचना न सही आलोचना ही .... वैसे इतना तो जरूर कहूंगा कि काश आप कविता के ऊपर लिखी गयी चार पंक्तियों के भाव को समझ पाते ? खैर आपकी यह भडास मेरे लिए महत्वपूर्ण है , शुक्रिया !

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  5. माफि चहाता हू अगर ठेस पहूची । मेरा यह कहना भर था कि दिकत शहर मे नही ब्लकि व्यक्ति मे है ।
    एसे भी तो उदाहरण है की गाँव से शहर मे आकर बहुत कुछ अच्छा भी किया है। तो अगर कोई बहकता है तो ये उस्की गलती है न की शहर की या फिर गाँव की ।

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  6. आज के हालात की जाती-जागती तस्वीर पेश करती है आपकी कविता।

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  7. यह तो बड़ी पाक इच्छा की अभिव्यक्ति है। काश सही हो।

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  8. bhaisahab.. rachna bhavpurn hai.. rachnakar keval apna drishtikon dikhata hai.. yaha zaroori nahi ki sabhi us se sehmat ho.. aapkai rachna sarahniya hai.. bahdaai swikar kare..

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  9. शहर से क्या लाना व क्या न लाना बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है भाव सुंदर है सच कहता हूँ रचना बहुत अच्छी लगी शहर के विषाक्त वातावरण का जो चित्र प्रस्तुत किया गया है अद्व्तीत है उम्मीद है आगामी रचना में ग्रामीण अंचल के सौन्दर्य सरलता अपनापन निष्कपट व्यबहार =यधपि वहाँ अब राजनीति घुस चुकी है ==का चित्रण पढने को मिलेगा -सुंदर रचना के लिए साधुवाद

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