शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008

ग़ज़ल: अब न हो शकुनी सफल हर दाव में ...!




भर दे जो रसधार दिल के घाव में ,
फ़िर वही घूँघरू बंधे इस पाँव में !

द्रौपदी बेवस खड़ी कहती है ये -
अब न हो शकुनी सफल हर दाव में !

बर्तनों की बात मत अब पूछिए-
आजकल सब व्यस्त हैं टकराव में !

मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
काके लागूं पाय इस अभाव में ?

है हरतरफ़ क्रिकेट की चर्चा गरम -
बेडियां हॉकी के पड़ गए पाँव में !

है सफल माझी वही मझधार का-
बूँद एक आने न दे जो नाव में !

बात करता है अमन की जो "प्रभात "
भावना उसकी जुडी अलगाव में !

(रवीन्द्र प्रभात)

6 comments:

  1. बर्तनों की बात मत अब पूछिए-
    आजकल सब व्यस्त हैं टकराव में !
    मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
    काके लागूं पाय इस अभाव में ?
    wah wah bahut khub

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  2. द्रौपदी से वर्तमान - सब हैं एक समान!

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  3. प्रभात जी,

    बर्तनों की बात मत अब पूछिए-
    आजकल सब व्यस्त हैं टकराव में !

    मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
    काके लागूं पाय इस अभाव में ?

    बात करता है अमन की जो "प्रभात "
    भावना उसकी जुडी अलगाव में !

    हर शेर बरबस ही "वाह" कह उठने को मजबूर करता है। उपर उद्धरित शेर खास पसंद आये।

    *** राजीव रंजन प्रसाद
    www.rajeevnhpc.blogspot.com

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  4. मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
    काके लागूं पाय इस अभाव में ?

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  5. मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
    काके लागूं पाय इस अभाव में ?

    बहूत सुंदर रवीन्द्र जी ,बिना गोलमोल सिधे मर्के कि बात और सीधी सादी भाषा मे.

    जवाब देंहटाएं
  6. द्रौपदी बेवस खड़ी कहती है ये -
    अब न हो शकुनी सफल हर दाव में !

    मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
    काके लागूं पाय इस अभाव में ?


    क्या बात है.....
    बेहद उम्दा भाव बेहद खूबसूरती से लिख दिये हुज़ूर आपने
    दिल को छू गये...

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