रविवार, 27 अप्रैल 2008

खेल खेल सा खेल खिलाड़ी !

खेल खेल सा खेल खिलाड़ी,
सबसे रख तू मेल खिलाड़ी !
नियम बने हैं बाती- भाँति,
खेल है दीपक, तेल खिलाड़ी !
बन्दर के हांथों में मत दे,
मीठे-मीठे बेल खिलाड़ी !
खुशी जीत की सबको होती,
हार भी हंसकर झेल खिलाड़ी !
ख्वाब हो ऊंचे, लक्ष्य बड़े हों,
मन में हो ना मैल खिलाड़ी !
टीम से तुम हो, टीम न तुमसे ,
दुनिया रेलमपेल खिलाड़ी !
भाव खाओ मत, बड़े नही हो,
"हेड" हो या फ़िर "टेल" खिलाड़ी !
(रवीन्द्र प्रभात )

5 comments:

  1. रवीन्द्र जी,

    रचना बहुत अच्छी है उस पर आपके चित्र नें इसे समसामयिक बना दिया है। बधाई स्वीकारें..

    *** राजीव रंजन प्रसाद

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  2. बहुत बढिया और ह्रदय स्पर्शी कविता
    दीपक भारतदीप

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  3. ये तो टेल रहित टेलिये हैं। क्या भाव देना इनको?! अभद्र/असंस्कृत लोग!

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  4. दोनों ही छिचोरे ओर असभ्य है नही जानते किसी पद पे बने रहकर कुछ सामाजिक आचरण का भी पालन करना पड़ता है......

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  5. बहूतही सही मजेदार और गजब है रविन्द्र जी !!

    काश ये अपना बल्ले बल्ले भज्जी भी पढ लेता !!

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